Trading Systems – Varsity by Zerodha https://zerodha.com/varsity/module/trading-systems/ Markets, Trading, and Investing Simplified. Mon, 19 Oct 2020 09:12:50 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.5 गति/वेग/चाल (मोमेंटम) पोर्टफोलियो https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%b5%e0%a5%87%e0%a4%97-%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b2-%e0%a4%ae%e0%a5%8b%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a4%ae-%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a4%a4%e0%a4%bf-%e0%a4%b5%e0%a5%87%e0%a4%97-%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b2-%e0%a4%ae%e0%a5%8b%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a4%ae-%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f/#comments Mon, 13 Jul 2020 05:33:25 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8434 16.1 – मोमेंटम की परिभाषा  अगर आपने शेयर बाज़ार के साथ कुछ वक्त बिताया है तो मुझे यकीन है कि आपका पाला भी बाज़ार से जुड़े भारी-भरकम शब्दों से पड़ा होगा। हम उन शब्दों को सुन लेते हैं और कई दफा बिना मतलब समझे उसका इस्तेमाल भी करने लगते हैं। ऐसा मेरे साथ भी हो […]

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16.1 – मोमेंटम की परिभाषा 

अगर आपने शेयर बाज़ार के साथ कुछ वक्त बिताया है तो मुझे यकीन है कि आपका पाला भी बाज़ार से जुड़े भारी-भरकम शब्दों से पड़ा होगा। हम उन शब्दों को सुन लेते हैं और कई दफा बिना मतलब समझे उसका इस्तेमाल भी करने लगते हैं। ऐसा मेरे साथ भी हो चुका है और मुझे लगता है कि आपके अनुभव में भी इस तरह की चीज ज़रूर हुई होगी। 

बाजार में एक ऐसा ही शब्द है – मोमेंटम (Momentum)। ध्यान दीजिए कि हिंदी में इस शब्द का अर्थ है आवेग या गति, जो कि बाजार के इस शब्द को ठीक तरीके से नहीं समझा पाता। मुझे पता है कि आपमें से बहुत सारे लोगों ने इस शब्द का इस्तेमाल कभी न कभी जरूर किया होगा या इसे सुना होगा, लेकिन वास्तव में यह मोमेंटम होता क्या है और इसे नापा कैसे जाता है? 

हमने बहुत सारे ट्रेडरों से बात की और सब ने करीब-करीब यही कहा कि यह (Momentum) वो गति है जिससे बाजार किसी दिशा में चलता है। कुछ हद तक यह सही है। लेकिन यह पूरी बात नहीं है और इसलिए हमें अपनी समझ को यहां तक सीमित नहीं रखना चाहिए। 

वैसे मोमेंटम एक शब्द है जिसका इस्तेमाल फिजिक्स या भौतिक शास्त्र में होता है। वहां पर यह किसी भी वस्तु की चाल की मात्रा को बताता है। इसी तरीके से अगर इसे शेयर बाजार के संदर्भ में देखें तो आप किसी भी वस्तु की जगह अगर शेयर या इंडेक्स शब्द का इस्तेमाल करें तो यह परिभाषा बाजार के लिए भी सही होगी। 

आम भाषा में कहें तो मोमेंटम हमें किसी भी स्टॉक या इंडेक्स के रिटर्न में होने वाले बदलाव की दर को बताता है। अगर बदलाव की यह दर ज्यादा है तो कहा जाता है कि मोमेंटम ज्यादा या तेज है और अगर बदलाव की दर कम है तो मोमेंटम को कम या नीचे माना जाता है। 

तो अब अगला सवाल यह आता है कि बदलाव की दर क्या है?

रिटर्न में बदलाव की दर हमें बताती है कि समय के किन्हीं दो बिंदुओं पर मिलने वाला रिटर्न क्या था और उनके बीच का अंतर क्या था? अभी के लिए, समय को हम दिन की अंतिम कीमत के तौर पर मान लेते हैं। तो इसका मतलब यह हुआ कि रिटर्न में होने वाले बदलाव की दर वास्तव में वह रफ्तार या गति है जिससे स्टॉक के हर दिन का रिटर्न बदलता है।

ठीक से समझने के लिए इस उदाहरण पर नजर डालिए –

यह टेबल हमें किसी एक स्टॉक के पिछले 6 दिनों की कीमत दिखा रहा है। यहां पर हमें दो बातों पर ध्यान देना चाहिए – 

  • कीमत हर दिन ऊपर जा रही है 
  • इस कीमत में प्रतिशत बदलाव हर दिन 0.5% या उससे ऊपर है 

अब एक और उदाहरण देखिए- 

ध्यान दीजिए दो बातों पर –  

  • हर दिन कीमत ऊपर की तरफ जा रही है 
  • कीमत में हर दिन 1.5% या उससे अधिक का बदलाव हो रहा है 

इन दोनों स्टॉक के बर्ताव के आधार पर मैं आपसे दो सवाल पूछता हूं 

  • किस स्टॉक के डेली यानी दैनिक रिटर्न में बदलाव की दर ज्यादा है?
  • किस स्टॉक में मोमेंटम ज्यादा है?

इस सवाल का जवाब देने के लिए आप या तो उस स्टॉक की कीमत में रूपए में हुए पूर्ण यानी एब्सॉल्यूट (absolute) बदलाव को देख सकते हैं या फिर उस कीमत में होने वाले प्रतिशत बदलाव पर भी नजर डाल सकते हैं। 

अगर आप रुपए की कीमत में नजर डालेंगे तो स्टॉक A में होने वाला बदलाव स्टॉक B में होने वाले बदलाव से ज्यादा दिखेगा। लेकिन इसको देखने का यानी डेली रिटर्न में होने वाले बदलाव को देखने का यह सही तरीका नहीं है। उदाहरण के तौर पर अगर एक स्टॉक की कीमत 2000 या 3000 है तो उसमें होने वाला बदलाव हमेशा कम कीमत वाले स्टॉक में होने वाले बदलाव के मुकाबले ज्यादा दिखेगा। इसीलिए रुपए में दिखने वाला बदलाव पूरी तस्वीर नहीं बताता। 

इसीलिए हमें प्रतिशत बदलाव को देखना पड़ता है। अगर प्रतिशत बदलाव को देखें तो स्टॉक B में होने वाला बदलाव ज्यादा है और इसलिए हम कह सकते हैं कि स्टॉक B में मोमेंटम ज्यादा है। 

अब जरा इस स्थिति पर नजर डालिए, यह एक अलग स्थिति है- 

स्टॉक A, प्रतिदिन लगातार बढ़ रहा है लेकिन स्टॉक B एक ही जगह पर पड़ा हुआ है। सिर्फ अंतिम 2 दिन में उसमें चाल आई है। लेकिन अगर कुल मिलाकर प्रतिशत के हिसाब से देखें तो 7 दिनों में दोनों ने करीब-करीब एक बराबर नतीजे दिए हैं। अब ऐसे में किस स्टॉक में ज्यादा मोमेंटम माना जाएगा?

ऐसे में स्टॉक A ने लगातार हर दिन अच्छा रिटर्न दिया है और ऊपर की तरफ चाल दिखाई है। इसलिए उसे ज्यादा अच्छा मोमेंटम वाला स्टॉक माना जाएगा। 

लेकिन अगर मैं मोमेंटम को नापने का पैमाना बदल दूं तो? हर दिन के रिटर्न के बजाय अगर मैं हर 7 दिन के रिटर्न को देखने लगूं तो? तो फिर स्टॉक A और स्टॉक B दोनों को मोमेंटम स्टॉक माना जाएगा। 

मैं यहां यह कहने की कोशिश कर रहा हूं कि ट्रेडर आमतौर पर मोमेंटम को हर दिन के रिटर्न से जोड़कर देखते हैं जो कि एक अच्छा तरीका है, लेकिन मोमेंटम को देखने का यह अकेला तरीका नहीं है। वास्तव में जिस मोमेंटम स्ट्रैटजी पर हम आगे नजर डालने वाले हैं उसमें मोमेंटम को एक लंबी अवधि में देखा जाएगा ना कि हर दिन के मोमेंटम को। इस पर आगे बात करेंगे। 

तो मुझे उम्मीद है कि अब तक आपको एक अंदाज मिल गया होगा कि मोमेंटम क्या होता है और यह भी पता चल गया होगा कि मोमेंटम को केवल हर दिन के रिटर्न के हिसाब से नहीं बल्कि लंबी अवधि के लिए भी देखा जा सकता है। वास्तव में ज्यादा ट्रेड करने वाले ट्रेडर मोमेंटम को हर मिनट या घंटे के हिसाब से भी देखते हैं।

16.2 – मोमेंटम स्ट्रैटजी 

ट्रेडर्स बाजार में जिन स्ट्रैटजी का इस्तेमाल करते हैं, उन लोकप्रिय स्ट्रैटजी में से एक है मोमेंटम स्ट्रैटजी। अपने ट्रेड के सही मौके तलाशने के लिए ट्रेडर्स मोमेंटम को कई अलग-अलग तरीके से नापते हैं। लेकिन इन सब तरीकों का लक्ष्य एक ही होता है कि ये पता चल सके कि मोमेंटम कहां है और फिर उसका फायदा उठाया जाए।

मोमेंटम स्ट्रैटजी किसी एक स्टॉक के लिए भी बनाई जा सकती है, जहां पर आप अपने ट्रैकिंग यूनिवर्स – Tracking Universe (यानी वो सभी स्टॉक जिनको आप ट्रैक कर रहे हैं) में से एक उस स्टॉक को चुनते हैं जो सबसे ज्यादा मोमेंटम दिखा रहा है और फिर उस पर ट्रेड करते हैं। याद रखिए कि मोमेंटम किसी भी तरफ हो सकता है लॉन्ग पर या शार्ट पर। तो एक स्टॉक के मोमेंटम का फायदा उठाने की स्ट्रैटजी अपनाने वाला ट्रेडर लॉन्ग और शार्ट दोनों तरह के मौके देखता है। 

कई बार ट्रेडर किसी एक सेक्टर को लेकर भी मोमेंटम स्ट्रैटजी अपनाते हैं और सेक्टर पर आधारित ट्रेड करते हैं। यहां पर भी कोशिश यही होती है कि ऐसे सेक्टर को पहचाना जा सके जो स्ट्रॉन्ग यानी ज्यादा मोमेंटम दिखा रहे हैं। इसे देखने के लिए आपको सेक्टर इंडेक्स पर नजर डालनी होती है। एक बार सेक्टर पहचान में आ गया तो उसके बाद उस सेक्टर में किसी ऐसे स्टॉक को चुना जाता है जो सबसे ज्यादा मोमेंटम दिखा रहा हो या जिसका मोमेंटम सबसे ज्यादा मजबूत हो। 

मोमेंटम को पोर्टफोलियो के आधार पर भी देखा जा सकता है। इसमें कुछ ऐसे स्टॉक का पोर्टफोलियो बनाया जाता है जो मोमेंटम दिखा रहे हों। मेरी राय में यह स्ट्रैटजी किसी भी दूसरी मोमेंटम स्ट्रैटजी के मुकाबले ज्यादा अच्छी होती है क्योंकि इसमें डायवर्सिफिकेशन की सुरक्षा भी मिलती है। 

हम एक ऐसी ही स्ट्रैटजी पर चर्चा करेंगे जहां पर मोमेंटम दिखा रहे 10 स्टॉक को चुना जाएगा। एक बार यह पोर्टफोलियो बनाने के बाद उसे तब तक रखा जाता है जब तक वहां पर मोमेंटम बना हुआ है और उसके बाद इस पोर्टफोलियो को रीबैलेंस किया जाता है।

16.3 – मोमेंटम पोर्टफोलियो

हम इस स्ट्रैटजी पर चर्चा करें, इसके पहले मैं कुछ बातों की तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं –

  • यहां पर हमारी कोशिश यह है कि हम इस बात को जान सकें कि मोमेंटम पोर्टफोलियो कैसे बनाया जा सकता है। लेकिन याद रखिए कि मोमेंटम पोर्टफोलियो बनाने का यह अकेला तरीका नहीं है। 
  • इस मोमेंटम पोर्टफोलियो को बनाने के लिए या किसी भी दूसरी मोमेंटम स्ट्रैटजी को बनाने के लिए आपको प्रोग्रामिंग की जानकारी होनी चाहिए। अगर आपको प्रोग्रामिंग नहीं आती है तो आपको किसी की मदद लेनी पड़ेगी। 
  • किसी भी दूसरी स्ट्रैटजी की तरह इसे भी बैक टेस्ट करना जरूरी है 

अब हम आगे बढ़ते हैं पोर्टफोलियो बनाने की तरफ। यह है उसकी पूरी सिलसिलेवार गाइड – 

कदम 1 – अपना स्टॉक यूनिवर्स तय कीजिए – Define your Stock Universe

जैसा कि शायद आपको पता हो कि BSE में 4000 लिस्टेड स्टॉक हैं और NSE में 1800 लिस्टेड स्टॉक हैं। जिसमें TCS जैसी नामी-गिरामी कंपनियां भी हैं और BSE की Z कैटेगरी की कंपनियां शामिल हैं। यह कंपनियों के दो अलग-अलग छोर वाले स्टॉक हैं। तो सवाल यह है कि क्या हम इन सभी को ट्रैक करेंगे ताकि हम अपना मोमेंटम पोर्टफोलियो बना सकें? 

नहीं। ऐसा नहीं है, क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा समय बर्बाद होगा। 

हमें बहुत सारे स्टॉक को बाहर करना होगा और उसके बाद एक लिस्ट बनानी होगी, जिसे ट्रैकिंग यूनिवर्स कहा जाता है। ट्रैकिंग यूनिवर्स में भी बहुत सारे स्टॉक शामिल होंगे और उसमें से हम ऐसे स्टॉक चुनेंगे जो कि हमारे मोमेंटम पोर्टफोलियो का हिस्सा होंगे। इसका मतलब यह है कि हमारे मोमेंटम पोर्टफोलियो के स्टॉक हमेशा ट्रैकिंग यूनिवर्स में से ही आएंगे।

इसको ठीक से समझने के लिए मान लीजिए आपके शहर में 100 मॉल हैं। इनमें से दो या तीन मॉल ऐसे हैं जो आपको पसंद है और जहां पर आप हमेशा अपनी शॉपिंग करते हैं। इन 2- 3 मॉल में खरीदे गए कपड़ों से आप अपने लिए एक वॉर्डरोब (जैसे कि आपका पोर्टफोलियो) तैयार करते हैं। एक तरह से, यह दो या तीन मॉल आपके लिए शहर के 100 मॉल में से तैयार किया गया ट्रैकिंग यूनिवर्स है। 

ट्रैकिंग यूनिवर्स बनाना बहुत आसान होता है। आप सिर्फ NIFTY 50 के 50 स्टॉक ले सकते हैं या BSE 500 के स्टॉक्स ले सकते हैं। ऐसे में आपका मोमेंटम पोर्टफोलियो या तो Nifty50 का हिस्सा होगा या BSE 500 का।  BSE 500 को अपना ट्रैकिंग यूनिवर्स बनाना शुरुआत के लिए अच्छा तरीका हो सकता है। लेकिन अगर आपको लगता है कि आप अपने लिए एक नया तरीका बनाना चाहते हैं आप अपना खुद का ट्रैकिंग यूनिवर्स भी बना सकते हैं। 

खुद का ट्रैकिंग यूनिवर्स बनाने के लिए, चाहें तो NSE के पूरे 1800 स्टॉक ले सकते हैं या फिर मैं यह कर सकता हूं कि एक फिल्टर लगा दूं कि मैं वैसे स्टॉक ही लूंगा जिनका मार्केट कैप कम से कम 1000 करोड़ का है। ऐसा करने से मेरी लिस्ट काफी छोटी हो जाएगी। इसी तरीके से मैं इसमें और फिल्टर भी डाल सकता हूं कि इसमें सिर्फ वही स्टॉक शामिल होंगे जिनकी कीमत 2000 से कम है। 

यह सिर्फ कुछ आईडिया है जिसके जरिए आप स्टॉक की लिस्ट को फिल्टर कर सकते हैं। अपनी खुद की लिस्ट बनाने के लिए और बहुत सारे तरीके हो सकते हैं जिससे आप स्टॉक को फिल्टर करके अपनी जरूरत के मुताबिक एक लिस्ट तैयार कर सकें। 

अंत में यह याद रखें कि मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह कहता है कि ट्रैकिंग यूनिवर्स बनाने के लिए आपको 150 या 200 स्टॉक की जरूरत होगी। जिसमें से आप आसानी से 12 से 15 स्टॉक का मोमेंटम पोर्टफोलियो बना सकते हैं।

कदम 2 – डेटा तैयार करें – Set up the Data

अब अगर आपका ट्रैकिंग यूनिवर्स तैयार हो गया है और अब आप दूसरा कदम बढ़ाने के लिए तैयार हैं। आपको अपने ट्रैकिंग यूनिवर्स में शामिल सभी स्टॉक की क्लोजिंग कीमत लेनी है। ध्यान रखिए कि ये डेटा क्लीन हो  यानी उसमें बोनस, स्प्लिट, डिविडेंड जैसे कॉरपोरेट एक्शन के असर के असर को सुधार दिया गया है। किसी भी ट्रेडिंग स्ट्रैटजी के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है। NSE और BSE की वेबसाइट के अलावा और कई जगह से आप इस तरह का डेटा पा सकते हैं। 

अब अगला सवाल यह है कि हमारा लुक बैक पीरियड कितने दिन का हो? मतलब हम पिछले कितने दिनों का डेटा देखें। इस स्ट्रैटजी के लिए आपको 1 साल का डेटा लेना होगा। उदाहरण के तौर पर अगर आज 2 मार्च 2019 है तो आपको 2 मार्च 2018 से 1 मार्च 2019 तक का डेटा चाहिए होगा। 

याद रखिए कि जब आपको यह 1 साल का डेटा मिल जाए तो आप इसको हर दिन अपडेट करते रह सकते हैं। जिससे आपके पास हर दिन की क्लोजिंग कीमत का डेटा तैयार रहे।

कदम 3 – रिटर्न निकालेंCalculate Returns

अपने ट्रैकिंग यूनिवर्स में शामिल सभी स्टॉक का रिटर्न निकालना इस स्ट्रैटजी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आप समझ ही गए होंगे कि यह रिटर्न इसलिए निकाला जाता है ताकि हमें हर स्टॉक के मोमेंटम का पता चल सके।

इस अध्याय के शुरू में हमने चर्चा की थी कि रिटर्न किसी भी समय के अवधि के लिए निकाला जा सकता है। वह दिन का हो, साप्ताहिक हो, मासिक हो या सालाना हो। लेकिन यहां पर हम सालाना रिटर्न की बात करेंगे। आप अगर चाहें तो आप इनमें से किसी भी समय अवधि के लिए भी रिटर्न निकाल कर अपना कैलकुलेशन खुद कर सकते हैं। 

तो अब आपके 150 से 200 स्टॉक का ट्रैकिंग यूनिवर्स होगा। इन सब का 1 साल का हिस्टोरिकल ऐतिहासिक डेटा आपके पास होगा। आप अपने ट्रैकिंग यूनिवर्स के इन सब स्टॉक का सालाना रिटर्न निकाल कर रखेंगे। 

उदाहरण के लिए मैंने 10 स्टॉक का एक ट्रैकिंग यूनिवर्स बनाया हे। जिसे आप नीचे देख सकते हैं-


इस ट्रैकिंग यूनिवर्स में पिछले 365 दिनों का डेटा रखा गया है और 1 साल का रिटर्न भी कैलकुलेट किया गया है। 

अगर आप को नहीं समझ में आ रहा कि 1 साल का रिटर्न कैसे कैलकुलेट किया जाता है तो उदाहरण के लिए ABB का डेटा देखिए 

रिटर्न  = [अंतिम वैल्यू / शुरूआती वैल्यू]-1

Return = [ending value/starting value]-1

= [1244.55/1435.55]-1

= -13.31%

काफी आसान है ना!

कदम 4 – रिटर्न के हिसाब से क्रम (रैंक) बनाएं – Rank the Returns

रिटर्न निकालने के बाद आपको इस रिटर्न को सबसे अच्छे से लेकर सबसे बुरे तक के क्रम में लगाना है। उदाहरण के तौर पर एशियन पेंट्स का रिटर्न 25.87% है जो कि सबसे ज्यादा है और इसलिए यह पहले नंबर पर होगा। दूसरे नंबर पर HDFC बैंक का रिटर्न है इसलिए वह दूसरे स्थान पर होगा। इस लिस्ट में इंफोसिस का रिटर्न सबसे कम है इसलिए वह सबसे नीचे होगा। इंफोसिस का रिटर्न -35.98% है इसलिए वह दसवें स्थान पर होगा। 

इस पोर्टफोलियो की रिटर्न रैंकिंग पर नजर डालिए –

अगर आप यह सोच रहे हैं कि इसमें तो नेगेटिव रिटर्न वाले बहुत सारे स्टॉक हैं। तो ऐसा इसलिए है क्योंकि स्टॉक मार्केट एक गहरे करेक्शन से गुजर रहा है। अगर हम इस स्ट्रैटजी पर हम किसी दूसरे समय में कर रहे होते तो शायद तस्वीर दूसरी होती। 

इस रैंकिंग से हमें यह पता चलता है कि किसका रिटर्न सबसे अच्छा है और किसका सबसे बुरा। एशियन पेंट्स पिछले 12 महीने में सबसे अच्छा रिटर्न देने वाला स्टॉक रहा है और इंफोसिस सबसे बुरा।

कदम 5 – पोर्टफोलियो तैयार करें – Create the Portfolio

आमतौर पर ट्रैकिंग यूनिवर्स में 150 से 200 स्टॉक होते हैं। पिछले कदम की सहायता से हम उस ट्रैकिंग यूनिवर्स को एक सही ऑर्डर में लगा चुके हैं। इस नए क्रम या ऑर्डर में लगाए गए ट्रैकिंग यूनिवर्स के सहारे हम एक अच्छा मोमेंटम पोर्टफोलियो बना सकते हैं। 

याद रखिए कि मोमेंटम, रिटर्न में होने वाले बदलाव की दर को बताता है और यहां पर हम रिटर्न को सालाना तौर पर देख रहे हैं। 

एक अच्छे मोमेंटम पोर्टफोलियो में 10 से 12 स्टॉक होते हैं। मैंने कभी-कभी 15 स्टॉक तक भी एक पोर्टफोलियो में रखे हैं लेकिन उससे ज्यादा नहीं। अभी के लिए मान लेते हैं कि हम 12 स्टॉक का मोमेंटम पोर्टफोलियो बना रहे हैं। 

अब हमारे नए क्रम के आधार पर बनी सूची में से टॉप 12 स्टॉक ही हमारा मोमेंटम पोर्टफोलियो हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हम इस सूची में ऊपर से 12 स्टॉक को खरीदेंगे। इस उदाहरण में अगर हमें पांच स्टॉक का मोमेंटम पोर्टफोलियो बनाना हो तो उसमें होंगे –

  • एशियन पेंट्स 
  • HDFC बैंक 
  • बायोकॉन 
  • ACC 
  • अल्ट्राटेक 

बाकी स्टॉक इस मोमेंटम पोर्टफोलियो का हिस्सा नहीं बनेंगे, लेकिन वो ट्रैकिंग यूनिवर्स में फिर भी रहेंगे। 

अब सवाल उठता है कि हमने ट्रैकिंग यूनिवर्स के कुछ ही स्टॉक को क्यों चुना?

तो, आप इसको ध्यान से पढ़िए – अगर किसी स्टॉक ने पिछले 12 महीने में अच्छा रिटर्न दिया है तो यह माना जाता है कि स्टॉक में अच्छा मोमेंटम है। इसलिए ऐसी उम्मीद भी की जा सकती है कि यह स्टॉक 13वें महीने में भी अच्छा प्रदर्शन जारी रखेगा और इसलिए यह स्टॉक अच्छा रिटर्न देगा। अगर आप ऐसे स्टॉक को खरीदते है तो आप उसके संभावित मोमेंटम का फायदा उठा सकते हैं। 

यहां पर यह साफ है कि यह सिर्फ एक अनुमान है। इसको साबित करने वाला कोई डेटा नहीं है। वैसे मैंने व्यक्तिगत तौर पर इस तकनीक को पिछले सालों में कई बार इस्तेमाल किया है और मुझे अच्छा रिटर्न मिला है। आप इसे आसानी से बैक टेस्ट कर सकते हैं और मैं आपको सलाह दूंगा कि आप ऐसा करें। 

कुछ सालों पहले मैं और मेरे ट्रेडिंग पार्टनर ने इस तरह से मोमेंटम पोर्टफोलियो बनाने के बारे में इकोनॉमिस्ट पत्रिका के एक आर्टिकल में पढ़ा था। आप भी इस स्ट्रैटजी को अपनाने के पहले उस आर्टिकल ( ‘Economist’) को पढ़ सकते हैं।

एक बार मोमेंटम पोर्टफोलियो के स्टॉक चुन लिए गए तो उसके बाद मोमेंटम वाले सारे स्टॉक को आप को बराबर अनुपात में खरीदना है। जैसे अगर आपके पास 200,000 हैं और आपको 12 स्टॉक खरीदने हैं तो आपको हर स्टॉक पर 16,666 लगाने होंगे। 

इस तरह से आप एक इक्वल वेट (Equal Weight) वाला या समान वजन वाला मोमेंटम पोर्टफोलियो बना सकेंगे। आप चाहें तो इस वजन में फेरबदल भी कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए आपके पास एक ठोस वजह होनी चाहिए और उसका भी बैक टेस्ट करके नतीजा देखना चाहिए।

अगर आप वजन में फेरबदल करके असमान वजन वाला पोर्टफोलियो बनाना चाहते हैं तो उसके लिए कुछ तरीके यहां पर मैं बता रहा हूं – 

  • अपनी पूंजी का 50% हिस्सा ऊपर के 5 मोमेंटम स्टॉक यानी टॉप 5 मोमेंटम स्टॉक में लगा दीजिए और बाकी 50% पूंजी बचे हुए 7 स्टॉक में लगाइए। 
  • आप अपनी पूंजी का 40% ऊपर के तीन स्टॉक में लगा सकते हैं और बाकी 60% बचे हुए 9 स्टॉक में
  • अगर आप का अनुमान है कि सूची में नीचे के स्टॉक ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करेंगे तो आप एक कॉन्ट्रेरियन मोमेंटम पोर्टफोलियो (Contrarian Momentum Portfolio) बना सकते हैं और नीचे के 5 स्टॉक में ज्यादा पैसे लगा सकते हैं 

इस तरह से आप फेरबदल कर सकते हैं लेकिन याद रखिए कि इस तरीके से पूंजी लगाने का फैसला हमेशा बैक टेस्ट करके ही होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि आपको अपने पूंजी लगाने के तकनीकों से मिलने वाले नतीजे के लिए बैक टेस्ट करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि आपके लिए किस तरीके से पूंजी लगाना सही होगा।

कदम 6 – पोर्टफोलियो को री बैलेंस करें – Rebalance the Portfolio

अब तक हमने जो ट्रैकिंग यूनिवर्स बनाया है उसमें 12 महीने का रिटर्न देखा गया है और उस आधार पर स्टॉक्स को एक क्रम में रखा गया है। हमने उन स्टॉक में से 12 टॉप स्टॉक को लेकर एक मोमेंटम पोर्टफोलियो तैयार किया है। यह पोर्टफोलियो इस उम्मीद के साथ तैयार किया गया है कि अगर इन्होंने 12 महीने तक अच्छा रिटर्न दिया है तो शायद 13वें महीने में भी इनका रिटर्न अच्छा रहे। 

यहां पर कुछ चीजें मानी गई है 

  • पोर्टफोलियो को महीने के पहले ट्रेडिंग दिन बनाया गया है और उसी दिन स्टॉक को खरीदा गया है 
  • इसका मतलब यह है कि सारे आंकड़े पिछले महीने के अंतिम दिन की ट्रेडिंग के बाद बाजार बंद होने पर लिए गए हैं 
  • स्टॉक को खरीदकर पोर्टफोलियो में शामिल करने के बाद उनको महीने के अंतिम दिन तक अपने पास होल्ड करने का इरादा है 

लेकिन महीने के अंतिम दिन को क्या होने वाला है?

महीने के अंत पर आपको अपने आंकड़ों को फिर से देखना होगा और उसके हिसाब से फिर से टॉप 10 या 12 स्टॉक को चुनना होगा। ऐसे स्टॉक जिन्होंने पिछले 12 महीने में अच्छा प्रदर्शन किया है। याद रखें कि हम हमेशा सबसे ताजा 12 महीने के आंकड़े को देखेंगे।

इसका मतलब यह है कि हर महीने की अंतिम दिन हम यह देखेंगे कि पिछले 12 महीने में किन स्टॉक्स ने अच्छा प्रदर्शन किया है और उसके आधार पर हम अपनी रैंकिंग में पहले से बारहवें नंबर तक के स्टॉक को खरीदेंगे जैसा कि हमने पिछले महीने की 1 तारीख को किया था। मेरा अपना अनुभव यह कहता है कि आपके शुरुआती पोर्टफोलियो में, खराब प्रदर्शन करके इस लिस्ट से बाहर निकलने वाले स्टॉक्स की संख्या काफी कम होगी। तो वो स्टॉक जो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं और अब आपके पोर्टफोलियो में शामिल नहीं हो सकते हैं आप उनको बेचेंगे और नए स्टॉक जो इस लिस्ट में शामिल हो रहे हैं उनको खरीद कर मोमेंटम पोर्टफोलियो में शामिल करेंगे। इस तरीके से हर महीने के अंत में आप अपने पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करेंगे।

16.4 – मोमेंटम पोर्टफोलियो के अलग रूप

अब हम इस स्ट्रैटजी के कुछ अलग तरीकों को देखते हैं। 

हमने 12 महीने का रिटर्न के आधार पर पोर्टफोलियो बनाया है और स्टॉक को 1 महीने तक रखा है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आप ऐसा ही करें। आप इसमें कुछ बदलाव कर सकते हैं। जैसे –  

  • आप स्टॉक के 1 महीने की प्रदर्शन के आधार पर एक क्रम बना कर रखें और उस आधार पर महीने का पोर्टफोलियो बनाएं और उसे 1 महीने तक अपने पास रखें 
  • आप चाहे तो रिटर्न को 15 दिन के लिए भी कैलकुलेट कर सकते हैं और उस आधार पर बनी हुई सूची के स्टॉक का पोर्टफोलियो बनाकर 15 दिन अपने पास रख सकते हैं 
  • स्टॉक की सूची 7 दिन के प्रदर्शन के आधार पर बनाएं और स्टॉक के पोर्टफोलियो को 7 दिन तक अपने पास रखें 
  • स्टॉक के हर दिन के रिटर्न के आधार पर क्रम तय करें और अपने लिए इंट्राडे मोमेंटम पोर्टफोलियो बनाएं 

तो आप देख सकते हैं कि आप कई तरीके से अपना मोमेंटम पोर्टफोलियो बना सकते हैं। आपने यह भी ध्यान दिया होगा कि अब तक जितने पोर्टफोलियो हमने बनाए हैं वह सब कीमत के आधार पर तैयार किए गए हैं। लेकिन आप चाहें तो फंडामेंटल के आधार पर भी मोमेंटम स्ट्रैटजी बना सकते हैं। उसके लिए कुछ तरीके ये हैं –

  • फंडामेंटल के आधार पर अच्छे स्टॉक का एक ट्रैकिंग यूनिवर्स तैयार करें 
  • उनके हर तिमाही पर आने वाले बिक्री के आंकड़ों पर नजर रखें और उसमें होने वाले प्रतिशत बदलाव को देखें 
  • स्टॉक को उनकी तिमाही बिक्री के नतीजों के आधार पर एक सूची में रखें। जिस कंपनी की बिक्री में सबसे ज्यादा बढ़त आई हो उसे पहले स्थान पर रखें और इसी हिसाब से पूरी सूची बना ले 
  • इस सूची में ऊपर के 10 से 12 स्टॉक को खरीदें 
  • हर तिमाही के अंत में इस को री-बैलेंस करें 

यह पोर्टफोलियो आप किसी भी फंडामेंटल पैरामीटर के आधार पर बना सकते हैं। जैसे EPS, प्रॉफिट मार्जिन, EBITDA मार्जिन आदि। इस स्ट्रैटजी का फायदा यह है कि यहां पर डेटा हमेशा उपलब्ध रहता है इसलिए उसको बैक टेस्ट करना काफी आसान हो जाता है।

16.5 – सावधान रहें

कीमत के आधार पर तय की गई मोमेंटम स्ट्रैटजी चाहे जितनी भी अच्छी लगे लेकिन वह तभी काम करती है जब मार्केट ऊपर की तरफ चल रहा हो। जब मार्केट एक जगह पर रूका रहे यानी ना तो ऊपर जा रहा हो ना नीचे, तो फिर ये स्ट्रैटजी ठीक से काम नहीं करती। और जब मार्केट नीचे जाता है तो इस पोर्टफोलियो में काफी ज्यादा नुकसान होता है, बाजार से भी ज्यादा। 

अलग-अलग मार्केट साइकिल में यह स्ट्रैटजी किस तरीके से काम करेगी यह समझना काफी जरूरी होता है क्योंकि तभी आप पोर्टफोलियो से फायदा पा सकते हैं। मुझे इस स्ट्रैटेजी से 2009 और 2010 में अच्छा फायदा हुआ लेकिन 2011 में जब बाजार गिरा तो मुझे नुकसान के बारे में समझ में आया। इसीलिए जब भी आप इस स्ट्रैटजी को अपनाएं तो आपको अपना होमवर्क या बैक टेस्टिंग ठीक से करें। 

लेकिन यह भी सही है कि अगर कीमत पर आधारित मोमेंटम स्ट्रैटजी ठीक तरीके से और बाजार के सही मौके पर अपनाई जाए तो आपको बहुत अच्छा रिटर्न दे सकती है। बाजार से भी ज्यादा अच्छा। 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. रिटर्न में होने वाले बदलाव की दर को मोमेंटम कहते हैं और इसे किसी भी समय अवधि के लिए नापा जा सकता है 
  2. कीमत पर आधारित मोमेंटम पोर्टफोलियो ऐसे स्टॉक से तैयार किया जाता है जिन्होंने उस समय अवधि में सबसे अच्छा मोमेंटम दिखाया हो 
  3. ट्रैकिंग यूनिवर्स अच्छे से तैयार करना बहुत जरूरी है। BSE 500 एक अच्छा ट्रैकिंग यूनिवर्स हो सकता है 
  4. अपने ट्रैकिंग यूनिवर्स के स्टॉक के रिटर्न को कैलकुलेट कीजिए 
  5. सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाले से लेकर सबसे कम रिटर्न देने वाले के आधार पर सूची तैयार कीजिए 
  6. इस सूची या लिस्ट के ऊपर के 12 से 15 स्टॉक ही आपका मोमेंटम पोर्टफोलियो हैं। 
  7. यह उम्मीद की जाती है कि उनका मोमेंटम आपके होल्डिंग पीरियड में भी बना रहेगा 
  8. इन स्टॉक के बीच पूंजी का वितरण किस तरह से किया जाए यह पोर्टफोलियो की बैक टेस्टिंग पर आधारित होता है। समान वजन वाला पोर्टफोलियो तकनीक-पूंजी वितरण का एक अच्छा तरीका है। 
  9. मोमेंटम को फंडामेंटल डेटा के आधार पर भी देखा जा सकता है जैसे बिक्री में बढ़ोतरी, EBITDA मार्जिन में बदलाव, EPS में बढ़ोतरी, कुल मार्जिन में बदलाव
  10. कीमत पर आधारित मोमेंटम पोर्टफोलियो किसी भी ऊपर चढ़ते बाजार में बहुत अच्छा काम करता है लेकिन एक जगह पर ही घूम रहे या नीचे जा रहे बाजार में अच्छा काम नहीं करता

 

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14.1 – पोजीशन की साइज (आकार)

पेयर ट्रेडिंग की चर्चा को खत्म करें, इससे पहले मुझे आपके साथ ट्रेड की एक खास स्थिति की चर्चा करना जरूरी है। 

28 मई को मैं पेयर ट्रेडिंग के एल्गो (Algo) को देख रहा था तो एक बहुत ही रोचक ट्रेड मेरे सामने आया। इसके रिग्रेशन (Regression) से जुड़ी जानकारी यह है 

  • स्टॉक X  = ICICI  बैंक
  • स्टॉक Y = HDFC बैंक 
  • ADF = 0.048
  • बीटा = 0.79
  • इंटरसेप्ट = 1626
  • स्टैन्डर्ड एरर = 2.67

आपको क्या लगता है क्या यह एक परफेक्ट ट्रेड है ?  ICICI  बैंक और HDFC बैंक प्राइवेट सेक्टर के 2 सबसे बड़े बैंक हैं। दोनों एक ही तरह के बिजनेस माहौल में काम करते हैं। दोनों के रेवेन्यू स्ट्रीम एक जैसे है यानी कमाई का जरिया एक ही है। दोनों को RBI नियंत्रित करता है। तो फिर यह पेयर तो पेयर ट्रेडिंग के लिए परफेक्ट होगा ही, है ना ? 

इसकी ADF वैल्यू है 0.048 जिसका मतलब है कि यहां पर रेजिडुअल के स्टेशनरी नहीं होने की सिर्फ 4.8% संभावना है यानी 95.4% संभावना इस बात की है कि रेजिडुअल स्टेशनरी होगा। ये एक बहुत ही अच्छी स्थिति है। 

यहां पर स्टैन्डर्ड एरर  2.67 है, जो कि एक शॉर्ट ट्रेड शुरू करने के लिए एकदम सही स्थिति है। तो, यहां पर ट्रेड ये है कि HDFC को शॉर्ट करें और  ICICI  पर लॉन्ग जाएं।

तो हम अब पोजीशन साइजिंग कैसे करें ? कीमत और लॉट साइज का विवरण देखिए – 

  • HDFC फ्यूचर्स कीमत = 2024. 8
  • HDFC लॉट साइज = 500
  • ICICI फ्यूचर्स कीमत = 298.8
  • ICICI लॉट साइज = 2750

याद कीजिए कि पिछले अध्याय में हमने पोजीशन की साइज के बारे में चर्चा की थी। हमने पेयर के बीटा को देखा था और उसके आधार पर अनुमान लगाया था कि इस ट्रेड में कितने शेयर होंगे। 

यहां पर बीटा है 0.79 इसका मतलब है कि Y के हर 1 शेयर के लिए हमें X के  0.79 शेयर की जरूरत पड़ेगी। HDFC (Y) का लॉट साइज है 500 का इसका मतलब है कि इसको ऑफसेट (offset) करने के लिए हमें ICICI (X) के 395 शेयर की जरूरत पड़ेगी। 

तो आप देख सकते हैं कि यहां समस्या क्या है, दोनों के लॉट साइज बिल्कुल नहीं मिलते हैं।

हमने जैसा पिछली बार टाटा मोटर्स और टाटा मोटर्स DVR के उदाहरण में किया था कि दोनों के एकएक लॉट को ट्रेड किया था वो हम यहां नहीं कर सकते। अगर हम ऐसा करेंगे तो वह बीटा न्यूट्रल ट्रेड नहीं होगा। 

तो यहां पर पोजीशन साइज ठीक से करने के लिए हमें लॉट साइज से अलग एक रास्ता निकालना होगा।

ICICI का लॉट साइज है 2750, बीटा है 0.79। HDFC का लॉट साइज है 500, अब अगर ICICI का लॉट साइज HDFC से बड़ा है तो HDFC के कितने कम से कम शेयरों की जरूरत पड़ेगी जिससे कि हम ICICI के 2750 शेयरों को बीटा न्यूट्रल बना सकें, 

इसके लिए हमें एक साधारण सा विभाजन करना होगा 

2750 / 0.79

= 3481.01

चूंकि HDFC का लॉट साइज 500 का है इसलिए हम इस 3481.01 को 3500 कर सकते हैं। तो ICICI के एक लॉट को ऑफसेट करने के लिए HDFC के 7 लॉट की जरूरत पड़ेगी। 

14.2 – इंटरसेप्ट 

तो अब हमें इस पोजीशन साइज यानी इसका आकार भी पता चल गया है। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या आप इस ट्रेड को करेंगे? 

सब कुछ बढ़िया लग रहा है ADF वैल्यू अच्छी दिख रही है, रेजिडुअल 2.67 SD पर है, दोनों स्टॉक अच्छी तरीके से कोरिलेटेड हैं, दोनों के बिजनेस एक जैसे हैं। तो यहां गलत क्या हो सकता है?

सही में, सब कुछ अच्छा लग रहा है। लेकिन अगर आप करीब से देखें तो इंटरसेप्ट एक अलग कहानी बता रहा है। 

इसको ठीक ढंग से समझने के लिए हमें जल्दी से एक नजर डालनी होगी रिग्रेशन के समीकरण पर 

y = Beta * x + Intercept + Residual

आपको पता है कि इस समीकरण के जरिए हम Y की स्टॉक कीमत को स्टॉक X के संदर्भ में बता रहे हैं और इसके लिए उसे बीटा से गुणा कर रहे हैं। इंटरसेप्ट वास्तव में Y की स्टॉक कीमत का वह हिस्सा है जिसको यह मॉडल ठीक तरीके से नहीं बता पाता और रेजिडुअल स्टॉक Y की वास्तविक कीमत और अनुमानित कीमत के बीच का अंतर है। 

तो इसके आधार पर हम समझ सकते हैं कि एक बड़े इंटरसेप्ट का मतलब है कि Y की स्टॉक कीमत का एक बड़ा हिस्सा इस रिग्रेशन मॉडल से हमें नहीं पता चल रहा है। यहां पर इंटरसेप्ट 1626 है। HDFC के स्टॉक की कीमत है 2024, इसका मतलब है कि 2024 में से 1626 को यह रिग्रेशन मॉडल नहीं समझा पा रहा है। इसका मतलब है कि इस रिग्रेशन समीकरण से हमें Y की स्टॉक कीमत के 80% हिस्से (1626/2024) के बारे में कुछ भी नहीं पता है। यानी ये समीकरण हमें केवल 20% कहानी ही बता पा रहा है। इसलिए यह स्थिति मुझे अच्छी नहीं लग रही है।

इसका यह भी मतलब है कि अगर हम इस पेयर में इस समय ट्रेड करते हैं तो हम एक बहुत छोटी सी संभावना के लिए ट्रेड कर रहे हैं, ऐसे में मैं इस ट्रेड को छोड़ दूंगा और किसी बड़े मौके की तलाश करूंगा। हालांकि मैं जानता हूं कि ऐसे बहुत सारे ट्रेडर हैं जो इस मौके का फायदा उठाना चाहेंगे और वो ये ट्रेड करेंगे। लेकिन मेरे जैसा आदमी इसमें दिख रहे रिस्क को नजरअंदाज नहीं कर सकता क्योंकि मैं पहले रिस्क को देखता हूं और फिर रिवार्ड को।

पेयर डाटा शीट को यहाँ से डाउनलोड करें

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कैलेंडर स्प्रेड्स https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a5%8d%e0%a4%b8/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a5%8d%e0%a4%b8/#comments Mon, 13 Jul 2020 05:31:01 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8431 15.1 – पारंपरिक तरीका  हमने फ्यूचर्स ट्रेडिंग के मॉड्यूल के अध्याय 10 में कैलेंडर स्प्रेड्स पर बात की थी। आमतौर पर कैलेंडर स्प्रेड्स कीमत के आधार पर बनाए जाते हैं। आइए देखते हैं यह कैसे किया जाता है –  मौजूदा महीने या करंट मंथ के कॉन्ट्रैक्ट की फेयर वैल्यू क्या है उसको निकाल लीजिए  मिड […]

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15.1 – पारंपरिक तरीका 

हमने फ्यूचर्स ट्रेडिंग के मॉड्यूल के अध्याय 10 में कैलेंडर स्प्रेड्स पर बात की थी। आमतौर पर कैलेंडर स्प्रेड्स कीमत के आधार पर बनाए जाते हैं। आइए देखते हैं यह कैसे किया जाता है – 

  1. मौजूदा महीने या करंट मंथ के कॉन्ट्रैक्ट की फेयर वैल्यू क्या है उसको निकाल लीजिए 
  2. मिड मंथ के कॉन्ट्रैक्ट में शेयर वैल्यू क्या है उसको निकालिए 
  3. फिर दोनों कॉन्ट्रैक्ट के बीच के रिलेटिव अंतर को देखिए 

दोनों कॉन्ट्रैक्ट के कीमत में जो अंतर दिखाई पड़े उसके आधार पर या तो आप करंट या मौजूदा मंथ का कॉन्ट्रैक्ट खरीदते और मिड मंथ का कॉन्ट्रैक्ट बेचते हैं या फिर मौजूदा या करंट मंथ का कॉन्ट्रैक्ट बेचते हैं और मिड मंथ का कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हैं। कैलेंडर स्प्रेड के एक उदाहरण पर नजर डालते हैं 

  1. 28 जून को एक्सपायर हो रहे TCS फ्यूचर्स को खरीदें @ 1846 
  2. 28 जुलाई को एक्सपायर हो रहे TCS फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट को बेचें @ 1851  

यहां आप एक ही स्टॉक के फ्यूचर को खरीदते और बेचते हैं। लेकिन यह कॉन्ट्रैक्ट अलग-अलग एक्सपायरी के होते हैं। जैसा कि आप ऊपर भी देख सकते हैं। इन दोनों कॉन्ट्रैक्ट के बीच का अंतर ही आपकी कमाई कराता है। कैलेंडर स्प्रेड पर आमतौर पर रिस्क बहुत ही कम होता है, इसीलिए इससे होने वाली कमाई भी कम होती है। अगर आप ऐसे ट्रेडर हैं जिसको ज्यादा रिस्क पसंद नहीं है तो उसके लिए यह एक अच्छी चीज है। 

कैलेंडर स्प्रेड को बनाने का यह एक अच्छा तरीका है। 

अगर आप को ये नहीं समझ में आ रहा है कि मैं यहां पर किस बात की चर्चा कर रहा हूं तो आपके लिए यह बेहतर होगा कि आप फ्यूचर्स ट्रेडिंग मॉड्यूल के अध्याय 10 को एक बार फिर से पढ़ लें। इससे आपको कैलेंडर स्प्रेड के बारे में जरूरी जानकारी मिल जाएगी। उसके बाद कैलेंडर स्प्रेड के अलग-अलग तरीकों को समझना और जानना आपके लिए आसान हो जाएगा।

15.2 – कैलेंडर स्प्रेड के पीछे का तर्क

आपने अगर पेयर ट्रेडिंग के अध्यायों को ठीक से पढ़ा है तो कैलेंडर स्प्रेड के पीछे का तर्क समझना आपके लिए आसान होगा। इस तरीके में आमतौर पर यह माना जाता है कि फ्यूचर्स बाजार में स्टॉक की मौजूदा कीमत में, बाजार में मौजूद हर जानकारी शामिल है। मतलब कि इस कीमत में स्टॉक से जुड़ी सारी खबरें, कॉरपोरेट एक्शन, डिस्काउंट, प्रीमियम, फेयर वैल्यू जैसी हर चीज शामिल है। 

अगर यह अवधारणा सच है तो फिर हम इस कीमत का इस्तेमाल कैलेंडर स्प्रेड के मौके के ट्रिगर के तौर पर कर सकते हैं। इससे ये पूरा तरीका आसान हो जाता है। कैलेंडर स्प्रेड में रिस्क कम होता है इसलिए इसमें आप ज्यादा पैसे कमाने की उम्मीद ना करें। आप यहां पर एक साथ, एक ही एसेट को खरीद और बेच दोनों रहे हैं इसलिए आप डायरेक्शन से जुड़े रिस्क से मुक्त होते हैं। ऐसे में आप ज्यादा लेवरेज ले सकते हैं। यह भी ध्यान रखें कि पेयर ट्रेडिंग के विपरीत कैलेंडर स्प्रेड काफी कम समय के लिए किया जाता है। आमतौर पर कैलेंडर स्प्रेड उसी दिन बंद कर दिए जाते हैं। मैं आपको कैलेंडर स्प्रेड का उदाहरण दूं इसके पहले मैं एक बार फिर से बता दूं कि इसे कैसे किया जाता है। 

सबसे पहले किसी एक स्टॉक के फ्यूचर्स कीमत के करंट मंथ और नेक्स्ट मंथ के कॉन्ट्रैक्ट की क्लोजिंग कीमतें डाउनलोड कर लीजिए। 

अब इन दोनों कॉन्ट्रैक्ट की कीमत में दिख रहे हिस्टोरिकल अंतर को एक टाइम सीरीज के तौर पर तैयार कर लीजिए। फिर इस टाइम सीरीज का मीन और स्टैंडर्ड डेविएशन निकाल लीजिए। इससे आपको कीमत के अंतर का रेंज या दायरा पता चल जाएगा। इसके बाद ट्रेड करने का ट्रिगर तब होगा जब दोनों कॉन्ट्रैक्ट के बीच का अंतर मीन से +1 या मीन से -1 स्टैंडर्ड डेविएशन पर चला जाए। इस ट्रेड को बंद तब किया जाएगा जब यह अंतर वापस मीन पर लौट जाए। 

उम्मीद है कि अब आपको यह बात समझ में आ गई होगी।

15.3 – कैलेंडर स्प्रेड का उदाहरण

कैलेंडर स्प्रेड को समझाने के लिए मैंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBIN) का उदाहरण लिया है। मैंने जेरोधा पाई से फ्यूचर्स का 200 दिनों का डेटा डाउनलोड किया है। मैंने इन सभी क्लोजिंग कीमतों को एक एक्सेल शीट पर ले लिया है, देखिए-

अब हमें दोनों कॉन्ट्रैक्ट की कीमतों के बीच का अंतर निकालना है। इसके लिए नियर मंथ के कॉन्ट्रैक्ट में से करंट मंथ के कॉन्ट्रैक्ट की कीमत को घटाया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि नियर मंथ के कॉन्ट्रैक्ट की फ्यूचर कीमत हमेशा पिछले मंथ के कॉन्ट्रैक्ट से ऊपर होती है क्योंकि इस कीमत में कॉस्ट ऑफ कैरी (Cost of carry) भी शामिल होता है। फ्यूचर्स के हमारे मॉड्यूल के अध्याय 10 में यह बात ज्यादा विस्तार से बताई गई है। 

दोनों के बीच का अंतर निकाल लिया गया है और उससे बना टाइम सीरीज डेटा अब ऐसा दिख रहा है-

अब मैं इस टाइम सीरीज का मीन और स्टैंडर्ड डेविएशन निकालूंगा। मीन से मुझे अनुमान मिल जाएगा कि आमतौर पर दोनों के बीच का कितना दैनिक अंतर मान्य है जबकि स्टैंडर्ड डेविएशन से मुझे दोनों की कीमत में अंतर आने वाले वेरिएशन का पता चलेगा। इस चित्र पर नजर डालिए

मीन और स्टैंडर्ड डेविएशन निकालने के लिए आप एक्सेल के ‘=Average()’ और  ‘=stdev()’ फंक्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

मीन का 1.227 पर होना मुझे बताता है कि इन दोनों कॉन्ट्रैक्ट के बीच का अंतर 1.227 या इसके आसपास होना चाहिए। इसका यह मतलब है कि अगर दोनों कॉन्ट्रैक्ट के बीच का अंतर 1.227 या इसके आसपास है तो वहां पर ट्रेड का कोई मौका नहीं बनता है। 

अब हम स्टैंडर्ड डेविएशन और मीन की वैल्यू को साथ में रख कर देखेंगे कि इस स्प्रेड की रेंज क्या है-

  • ऊपर की रेंज = 1.227  0.4935 = 1.7205
  • नाचे की रेंज = 1.227 – 0.4935 = 0.7335

मैंने अभी ऊपर यह बताया था कि स्प्रेड 1.227 के आसपास रह सकता है लेकिन मैंने यह नहीं बताया था कि आसपास का मतलब कितना है, लेकिन ये बताना काफी महत्वपूर्ण है। रेंज निकाल कर हम यही पता करते हैं। यह हमें बताता है कि स्प्रेड हर दिन आम तौर पर कितना बदल सकता है। अगर स्प्रेड कभी भी इस रेंज के बाहर जाता है तो वह कैलेंडर स्प्रेड बनाने का एक मौका होता है। 

अगर स्प्रेड ऊपर के रेंज यानी 1.7205 से ऊपर चला गया है तो इसका मतलब यह है कि या तो नियर मंथ के कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू बढ़ गई है या करंट मंथ के कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू घट गई है। 

आर्बिट्राज के किसी भी मामले में हमेशा सस्ते एसेट को खरीदा जाता है और उसी एसेट को महंगे बाजार में बेचा जाता है। इसलिए एक ट्रेडर यहां पर करंट मंथ के कॉन्ट्रैक्ट को खरीदेगा और नियर मंथ के कॉन्ट्रैक्ट को बेचेगा

इसी तरीके से, अगर स्प्रेड नीचे के रेंज यानी 0.7335 से नीचे चला गया तो इसका मतलब यह है कि करंट मंथ ज्यादा महंगा हो गया है और नियर मंथ सस्ता हो गया है। ऐसे में ट्रेडर करंट मंथ को बेचेगा और नियर मंथ के कॉन्ट्रैक्ट को खरीदेगा। 

अब इसी तर्क के आधार पर हम SBI पर नजर डालते हैं और देखते हैं कि वहां पर पिछले 200 दिनों में कोई मौका मिल रहा है या नहीं।

15.4 – मौके को पहचानना 

ऊपर के तर्कों के आधार पर हम यह मान सकते हैं कि 

  1. हमें स्प्रेड को बेचना है जब स्प्रेड 1.7205 के ऊपर चला जाए, स्प्रेड को बेचने से यहां पर मतलब है कि हमें नियर मंथ के कॉन्ट्रैक्ट को बेचना है और करंट मंथ के कॉन्ट्रैक्ट को खरीदना है।
  2. हमें स्प्रेड को खरीदना है जब यह 0.7335 के नीचे चला जाए। इसका मतलब यह है कि हम नियर मंथ के कॉन्ट्रैक्ट को खरीदेंगे और करंट मंथ के कॉन्ट्रैक्ट को बेचेंगे। 

अगर आपको यह समझने में दिक्कत हो रही है कि किस कॉन्ट्रैक्ट को खरीदना है और किस कॉन्ट्रैक्ट को बेचना है, तो इसको नियर मंथ के कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से देखिए। स्प्रेड को बेचने का मतलब यह होता है कि हमें नियर मंथ को बेचना है (यानी करंट बंद को खरीदना होगा)। स्प्रेड को खरीदने का मतलब होता है कि हमें नियर मंथ के कॉन्ट्रैक्ट को खरीदना है (इसलिए करंट बंद को बेचना होगा)। 

इस एक्सेल शीट में अब मैं हिस्टोरिकल मौकों ( historical opportunities) की तलाश करूंगा। पहले मैं इस स्प्रेड को बेचने के मौके देखता हूं। इसके लिए मुझे सिर्फ एक फिल्टर लगाना होगा कि जो भी वैल्यू 1.7205 से नीचे है वो मुझे नहीं दिखे। फिल्टर लगाने के बाद एक्सेल शीट से नतीजा यह मिला

जैसा कि आप देख सकते हैं कि 6 बार ऐसे मौके आए हैं जब स्प्रेड 1.7205 के ऊपर चला गया है या यूं कहें कि स्प्रेड पहले स्टैंडर्ड डेविएशन से ऊपर चला गया है। इसमें से हर एक को बेचने के ट्रिगर के तौर पर देखा जा सकता है, इसका मतलब यह है कि स्प्रेड वापस मीन पर लौटेगा। 

अब एक देखते हैं कि स्प्रेड में वास्तव में क्या हुआ 

संकेत की तिथि स्प्रेड बेचने की वैल्यू ट्रेड बंद करने की तिथि स्प्रेड खरीदने की वैल्यू P&L
31-08-2017 2.45 1-09-2017 1.35 1.1
28-092017 2.6 29-09-2017 1.15 1.45
30-11-2017 2.35 01-12-2017 1.55 0.8
28-12-2012 3.8 29-12-2017 1.45 2.35
22-02-2018 2.5 23-03-2018 1.3 1.2
26-04-2018 1.85 27-04-2018 0.6 1.25

 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि सिग्नल हमेशा महीने के अंत की तरफ मिलता है क्योंकि शायद एक्सपायरी की चीजें काम करने लगती हैं। आपको यह भी दिखेगा कि करीब-करीब हर ट्रेड में मुनाफा हुआ है भले ही छोटा हुआ हो और यह सब ट्रेड अगले दिन ही बंद हो गए।

अब स्प्रेड के खरीदने (buy) पर नजर डालते हैं। मैंने 0.7335 के नीचे की हर वैल्यू को हटा दिया है और उसके बाद यह नतीजे मिले 

यहां पर हमें करीब 28 ट्रेड मिले हैं और उसमें से ज्यादातर ट्रेड सफल नहीं रहे हैं। लेकिन हां, नुकसान कम हुआ हैमुनाफे के जितना ही। आप यह कैलकुलेशन खुद कर सकते हैं जैसे हमने शॉर्ट ट्रेड के लिए किया था। 

मुझे उम्मीद है कि इस उदाहरण से आपको यह समझ में आ गया होगा कि कैलेंडर स्प्रेड कैसे किया जाता है। मुझे यह लगता है कि आप इस बात से सहमत होंगे कि कैलेंडर स्प्रेड करने का यह तरीका ज्यादा आसान और अच्छा है। 

अब मैं कैलेंडर स्प्रेड से जुड़े अपने विचार यहां रख रहा हूं और यही इस अध्याय के लिए मुख्य बातें भी होंगी –

  1. कैलेंडर स्प्रेड में मुनाफा और नुकसान दोनों कम होने की उम्मीद रहती है।
  2. क्योंकि इसमें डायरेक्शन का रिस्क हटा दिया जाता है इसलिए आप लेवरेज बढ़ा सकते हैं।
  3. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर ज्यादातर शॉर्ट ट्रेड फायदेमंद रहे थे लेकिन लॉन्ग ट्रेड नहीं-  इसका मतलब यह है कि मैं SBI में शॉर्ट ट्रेड के मौके ही तलाशूंगा। इसका मतलब यह भी है कि आपको हर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के P&L को बैक टेस्ट करना चाहिए और उसके हिसाब से देखना होगा कि आप किस कॉन्ट्रैक्ट पर लॉन्ग जाना चाहते हैं और किस कॉन्ट्रैक्ट पर आप शार्ट जाना चाहते हैं। 
  4. P&L छोटा है इसलिए आपको ट्रेडिंग की कॉस्ट यानी कीमत कम रखनी होती है, इसलिए जेरोधा जैसे डिस्काउंट ब्रोकर के जरिए ही इस तरह के सौदों को करना सबसे अच्छा होगा। 
  5. इस तरह के ट्रेड एक या 2 दिन में बंद कर दिए जाते हैं।
  6. आमतौर पर ऐसे ट्रेड एक्सपायरी के आसपास होते हैं क्योंकि इस पर एक्सपायरी से जुड़ी बातें असर डाल रही होती है। 

अगर आप इक्विटी और कमोडिटी फ्यूचर्स से जुड़े हुए हर कॉन्ट्रैक्ट इस तरह से बैक टेस्ट कर लें तो आपको करीब-करीब हर दिन ट्रेड के एक या दो सिग्नल जरूर मिलेंगे। 

इस बारे में आपके विचार और सवाल नीचे लिखिए।

एक्सेल शीट को यहाँ से डाउनलोड करें

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13.1 – पेयर डेटा की ट्रैकिंग 

अब हमने पेयर ट्रेडिंग के लिए जरूरी सारी सैद्धांतिक जानकारी प्राप्त कर ली है। अब हम एक लाइव ट्रेड का उदाहरण लेंगे और उसको प्रभावित करने वाले कारकों पर नजर डालेंगे।

लेकिन अभी, ट्रेड करने के पहले के सिद्धांतों पर एक और नजर डाल लेते हैं –   

  1. लीनियर रिग्रेशन की भूमिका और उसको निकालने का तरीका 
  2. लीनियर रिग्रेशन में हम इंडिपेंडेंट वेरिएबल X को डिपेंडेंट वेरिएबल Y के लिए रिग्रेस करते हैं 
  3. जब हम रिग्रेशन करते हैं तो उससे मिलने वाले कुछ काम के परिणाम होते हैं- इंटरसेप्ट, स्लोप, रेजिडुअल्स, स्टैंडर्ड एरर, इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर
  4. किसी स्टॉक को डिपेंडेंट या इंडिपेंडेंट बनाने का फैसला एरर रेश्यो के आधार पर किया जाता है
  5. एरर रेश्यो इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर / स्टैंडर्ड एरर  का रेश्यो होता है – 
  6. हम दो स्थिति के लिए एरर रेश्यो निकालते हैं, स्टॉक को X की जगह पर रख कर भी और स्टॉक को Y की जगह पर रख कर भी। जहां पर एरर रेश्यो सबसे कम होता है उसी को स्टॉक की सही जगह माना जाता है और उसी हिसाब से स्टॉक को X या Y की जगह पर रखा जाता है 
  7. रिग्रेशन से मिलने वाला रेजिडुअल्स स्टेशनरी होना चाहिए अगर वह स्टेशनरी है तो इसका मतलब यह है कि वह दोनों स्टॉक आपस में कोइन्टीग्रेटेड हैं 
  8. अगर दो स्टॉक को इन्टीग्रेटेड होते हैं तो वह साथ में चलते हैं 
  9. किसी सीरीज का स्टेशनैरिटी निकालने के लिए ADF टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है 
  10. एक अच्छे पेयर की ADF वैल्यू 0.05 से कम होनी चाहिए

पिछले कुछ अध्यायों में हमने इन सभी बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा की है। इन बिन्दुओं से हमें अपने काम के पेयर को पहचानने में मदद मिलती है। तो, कुल मिला कर – हम एक सेक्टर के दो स्टॉक चुनते हैं, उनका लीनियर रिग्रेशन निकालते हैं, एरर रेश्यो निकालते है और ये तय करते हैं कि कौन सा स्टॉक X है और कौन सा स्टॉक Y, इसके बाद उनके रेजिडुअल्स का ADF टेस्ट करते हैं। जब किसी पेयर का ADF टेस्ट हमें 0.05 या उससे कम की वैल्यू देता है तो उसे ट्रैकिंग या ट्रेडिंग लायक मानते हैं। फिर ऐसे पेयर के रेजिडुअल्स को हर दिन ट्रैक करके ट्रेड के लिए सही मौके की तलाश करते हैं।

पेयर ट्रेड का मौका तब आता है जब –   

  1. रेजिडुअल्स – 2 स्टैंडर्ड डेविएशन (-2SD) तक पहुंच जाए ये पेयर पर लॉन्ग (Y को खरीदना और X को बेचना) करने का संकेत होता है
  2. रेजिडुअल्स + 2 स्टैंडर्ड डेविएशन (+2SD) तक पहुंच जाए ये पेयर पर शॉर्ट (X को खरीदना और Y को बेचना) करने का संकेत होता है

वैसे, व्यक्तिगत तौर पर मैं ट्रेड तब शुरू करता हूं जब रेजिडुअल्स 2.5 के करीब पहुंच जाए। एक बार ट्रेड शुरू करने के बाद लॉन्ग ट्रेड के लिए स्टॉप लॉस -3SD और शॉर्ट ट्रेड के लिए +3SD रखते हैं। शॉर्ट ट्रेड के लिए टारगेट -1 SD होता है और लॉन्ग ट्रेड के लिए +1 SD होता है। इसका मतलब ये है कि ट्रेड शुरू करने के बाद भी हमें रेजिडुअल्स की वैल्यू को ट्रैक करते रहना पड़ता है जिससे कि ट्रेड को सही तरीके से किया जा सके। इस पर हम इस अध्याय में आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।

13.2 – प्रोग्रामर लोगों के लिए

अध्याय 11 में हमने पेयर डेटा शीट दिखाया था। इसमें पेयर ट्रेडिंग एल्गॉरिदम के नतीजे थे। पेयर ट्रेडिंग एल्गॉरिदम हमारे लिए ये काम करता है – 

  1. एक अंडरलाइंग के पिछले 200 दिनों की क्लोजिंग कीमत को डाउनलोड करता है। इसे आप NSE की भाव कॉपी से ले सकते हैं, एक स्क्रिप्ट रन कर के आप इसे ऑटोमैटिक तरीके से भी कर सकते हैं।
  2. स्टॉक की लिस्ट और उसके सेक्टर की पहचान पहले ही हो चुकी होती है इसलिए ये डाउनलोड काफी व्यवस्थित होता है।
  3. कई रिग्रेशन करता है और इनमे से हर एक रिग्रेशन के लिए एरर रेश्यो निकालता है। उदाहरण के लिए, अगर हम RBL बैंक और कोटक बैंक की बात कर रहे हैं तो ये रिग्रेशन मॉड्यूल RBL बैंक ( X) और कोटक बैंक ( Y) के लिए और कोटक ( X) तथा  RBL ( Y) के लिए रिग्रेस करेगा। इनमें से जिसका एरर रेश्यो सबसे कम होगा उसी को चुना जाएगा और दूसरे का इस्तेमाल नहीं होगा।
  4. सबसे कम एरर रेश्यो वाले मेल यानी कॉम्बीनेशन (Combination) के रेजिडुअल्स पर ADF टेस्ट का इस्तेमाल किया जाएगा।
  5.  पेयर डेटा की रिपोर्ट तैयार की जाएगी जिसमें सभी संभावित मेल यानी कॉम्बीनेशन (Combination) के नाम होंगे, उनका इंटरसेप्ट, बीटा, ADF वैल्यू, स्टैंडर्ड एरर और सिग्मा आदि की जानकारी होगी। वैसे हमने अभी तक सिग्मा के बारे में बात नहीं की है लेकिन जल्दी ही ये काम करेंगे।

अगर आप प्रोग्रामर हैं तो आप इस गाइडलाइन का इस्तेमाल करके खुद के लिए पेयर ट्रेडिंग एल्गॉरिदम बना सकते हैं।

अध्याय 11 में हमने पेयर डेटा शीट के डेटा को देखने के तरीके पर भी कुछ चर्चा की थी। लेकिन अब उस पर विस्तार से बात करने का समय आ गया है। एक नजर डालिए पेयर डेटा शीट की इस एक्सेल शीट पर – 

हाईलाइट किए गए डेटा को देखिए । Y स्टॉक है बजाज ऑटो और X स्टॉक है TVS, इस रिपोर्ट में इस कॉम्बीनेशन के होने का मतलब है कि बजाज ऑटो के Y और TVS के X होने पर एरर रेश्यो कम है। इसका यह भी मतलब है कि X की जगह पर बजाज और Y की जगह पर TVS रख कर बनाने पर यह पेयर हमारे काम का नहीं रह जाता क्योंकि इसका एरर रेश्यो ज्यादा है। इसीलिए इस कॉम्बीनेशन (बजाज- X और TVS- Y) को आप इस रिपोर्ट में नहीं पाएंगे। 

कौन सा स्टॉक X है और कौन सा Y इसको बताने के अलावा यह रिपोर्ट आपको यह भी बताती है कि 

  1. इंटरसेप्ट: 1172.72
  2. बीटा: 2.804
  3. ADF वैल्यू: 0.012
  4. स्टैंडर्ड एरर:  -0.77
  5. सिग्मा: 103.94

मुझे उम्मीद है कि आप इनमें से पहले तीन वेरिएबल यानी इंटरसेप्ट, बीटा और ADF वैल्यू के बारे में जानते हैं, इसलिए मुझे आपको इन्हें फिर से नहीं समझाना होगा। अब मैं जल्दी से बाकी बचे दोनों वेरिएबल के बारे में बात कर लेता हूं। 

यहां पर इस रिपोर्ट में जिस स्टैंडर्ड एरर की चर्चा की गई है वह वास्तव में आज के रेजिडुअल और रेजिडुअल के स्टैंडर्ड एरर के बीच का रेश्यो है। यह थोड़ा उलझाने वाला हो सकता है क्योंकि यहां पर हम दो स्टैंडर्ड एरर की बात कर रहे हैं। जिस दूसरे स्टैंडर्ड एरर की हम बात कर रहे हैं वह रेजिडुअल का स्टैंडर्ड एरर है जो कि इस रिग्रेशन रिपोर्ट में बताया जा रहा है। इसको एक उदाहरण से समझिए। 

नीचे के चित्र पर नजर डालिए – 

यह यस बैंक और साउथ इंडियन बैंक के बीच के रिग्रेशन के आउटपुट का सारांश (summary) है। मैंने स्टैंडर्ड एरर (22.776) को हाईलाइट किया है। यह रेजिडुअल का स्टैंडर्ड एरर है। हम इस मॉड्यूल में पहले भी इस पर चर्चा कर चुके हैं । 

दूसरी हाईलाइट की गई संख्या है 20.914 जोकि रेजिडुअल है। 

तो, इस रिपोर्ट में बताई गई स्टैंडर्ड एरर रेश्यो है –  

आज का रेजिडुअल / रेजिडुअल का स्टैंडर्ड एरर 

= 20.92404 / 22.776 

= 0.91822

यह संख्या मुझे बताती है कि आज का रेजिडुअल अब तक के स्टैंडर्ड डिस्ट्रीब्यूशन के हिसाब से कैसा है। यही वह संख्या है जो ट्रेड के लिए सबसे सही ट्रिगर होता है। अगर यह संख्या -2.5 या उससे ऊपर है और -3 अगर स्टॉपलॉस है तो ये लॉन्ग पोजीशन बनती है अगर यह संख्या + 2.5 या ऊपर है और इसका स्टॉपलॉस +3 है तो एक शॉर्ट पोजीशन ट्रिगर होती है। लॉन्ग की स्थिति में टारगेट 1 या नीचे होता है और शॉर्ट की स्थिति में टारगेट +1 या उससे नीचे का होता है। 

इसका यह भी मतलब है कि स्टैंडर्ड एरर का नंबर हर दिन कैलकुलेट किया जाना चाहिए और उसको लगातार ट्रैक करना चाहिए। तभी आप ट्रेडिंग के सही मौके पहचान पाएंगे। इस पर हम आगे से चर्चा करेंगे। 

पेयर डेटा शीट में दिखाई गई सिग्मा की वैल्यू हमें रेजिडुअल का स्टैंडर्ड एरर बताती है, यहां पर ये 10 22.2 776 है। 

तो अब आप पेयर डेटा शीट के हर आंकड़े को ठीक से पढ़ और समझ सकते हैं। 

आइए अब पहले ट्रेड की तरफ बढ़ते हैं

13.3 – लाइव उदाहरण 

मैं शेयर ट्रेडिंग के एल्गोरिदम को चला कर मौके तलाश रहा था और मुझे 10 मई 2018 को एक ट्रेड का मौका दिखा। पेयर डेटा का चित्र नीचे आपको दे रहा हूं। आप इसे बाद में डाउनलोड भी कर सकते हैं। याद रखिए कि ये पेयर ट्रेडिंग एल्गो 10 मई की क्लोजिंग कीमत के आधार पर तैयार किया गया है। 

लाल रंग से हाईलाइट किए गए डेटा को देखिए यह टाटा मोटर्स को Y (डिपेंडेंट) की जगह पर और टाटा मोटर्स DVR  को X (इंडिपेंडेंट) की जगह पर रखने पर बना है। 

यहां ADF वैल्यू 0.0179 है (जो कि हमारे 0.05 की सीमा से कम है)। मेरे हिसाब से यह बहुत ही अच्छी ADF वैल्यू है। आपको याद ही होगा कि 0.05 से कम की ADF वैल्यू हमें बताती है कि रेजिडुअल स्टेशनरी हैं और वही ट्रेड के लिए सही स्थिति होती है जिसकी हमें तलाश होती है। 

स्टैंडर्ड एरर -2.54 है इसका मतलब है कि रेजिडुअल अपने मीन से दूर चला गया है और यहां पर आप लॉन्ग ट्रेड बना सकते हैं। क्योंकि यह एक लॉन्ग ट्रेड है इसलिए आपको डिपेंडेंट स्टॉक टाटा मोटर्स को खरीदना है और इंडिपेंडेंट स्टॉक टाटा मोटर्स DVR को शॉर्ट करना है। इस ट्रेड को मुझे 11 मई (शुक्रवार) की सुबह को शुरू करना था लेकिन किसी वजह से मैं उस दिन इस ट्रेड को नहीं कर पाया। इसलिए मैंने इस ट्रेड को 14 मई (सोमवार) की सुबह किया। उस समय तक रेट बदल चुके थे लेकिन मुझे आपको दिखाने के लिए यह ट्रेड करना था और मुझे P&L की परवाह नहीं थी, तो ट्रेड करने पर जो नतीजा आया वह यह है – 

यहां पर आपके दिमाग में 2 सवाल उठ सकते हैं

सवाल क्या मैंने यह ट्रेड वास्तव में बिना कीमत को देखे शुरू किया ? मतलब क्या मैंने ना तो कीमत देखी, ना ही सपोर्ट देखा ना रजिस्टेंस ना RSI और ना ही कुछ और। क्या इन सब को जानना जरूरी नहीं है ?  

जवाब – नहीं इनमें से किसी भी चीज की जरूरत नहीं है। यहां पर सिर्फ एक ही चीज मायने रखती है वो है रेजिडुअल्स। रेजिडुअल कहां पर पर ट्रेड हो रहा है मैं सिर्फ उसी को देख रहा था 

सवाल – मैंने किस आधार पर यह तय किया कि दोनों का सिर्फ एक-एक लॉट ही ट्रेड करना है ? मैं टाटा मोटर्स के दो लॉट और टाटा मोटर्स DVR के तीन लॉट क्यों नहीं ट्रेड कर सकता।  

जवाब – यह इस बात पर निर्भर करता है कि स्टॉक का बीटा क्या है। हम बीटा का इस्तेमाल कर के यह तय करेंगे कि स्टॉक X के कितने शेयर खरीदें और स्टॉक Y  के कितने जिससे कि ये पोजीशन बीटा न्यूट्रल बनी रहे। पोजीशन बीटा न्यूट्रल रखने का मतलब यह होता है कि स्टॉक Y के एक शेयर के मुकाबले हमें स्टॉक X के बीटा * X स्टॉक का सौदा (beta*X stock of X) करना होगा। उदाहरण के लिए अगर टाटा मोटर्स स्टॉक Y है और टाटा मोटर्स DVR स्टॉक X है और बीटा 1.59 है तो इसका मतलब यह है कि टाटा मोटर्स के एक शेयर के लिए मुझे टाटा मोटर्स DVR के 1.59 शेयर की जरूरत होगी।

तो इस स्थिति के हिसाब से, टाटा मोटर्स का लॉट साइज अगर 1500 है तो हमें टाटा मोटर्स DVR के 1500 * 1.59 यानी 2385 शेयर्स चाहिए होंगे। यहां पर टाटा मोटर्स DVR का लॉट साइज़ 2400 का है  जो कि 2385 के काफी करीब है, इसीलिए मैंने दोनों का एक-एक लॉट लिया। मुझे यह भी पता है कि यह ट्रेड लॉन्ग साइड की तरफ झुका हुआ है क्योंकि मैंने 115 स्टॉक अतिरिक्त खरीद रखे हैं। 

वैसे यह भी याद रखिए कि कई बार इस सीमा की वजह से हम कुछ पेयर ट्रेड नहीं कर पाते, खास कर तब जब वो बीटा नेगेटिव होते हैं। 

याद रखिए कि मैंने यह ट्रेड तब शुरू किया था जब कि रेजिडुअल की वैल्यू – 2.54 थी। हमारा इरादा यह था कि हम इस ट्रेड को तब तक ओपन (Open) रखेंगे जब तक हम अपने टारगेट (-1 रेजिडुअल) पर या फिर स्टॉपलॉस (-3 रेजिडुअल ) ना आ जाए। हमें बस इंतजार करना था। 

इस ट्रेड को लाइव तरीके से ट्रैक करने के लिए मैंने एक बेसिक एक्सेल ट्रैकर तैयार किया है। अगर आप एक प्रोग्रामर हैं तो आप इससे बेहतर तरीका निकाल सकते हैं। लेकिन मेरे लिए एक्सेल पर एक बेसिक पोजीशन ट्रैकर बनाना ही सबसे अच्छा तरीका था। इस ट्रैकर का चित्र नीचे है । इसे डाउनलोड करने का लिंक अध्याय के अंत में दिया गया है। 

इस पोजीशन ट्रैकर में पेयर के बारे में सभी जरूरी जानकारी हैं। मुझे लगता है कि इस शीट को समझने में आपको कोई दिक्कत नहीं होगी। मैंने इसको इस तरह से तैयार किया है कि आप X और Y की वैल्यू को डालेंगे तो Z की वैल्यू भी तुरंत पता चल जाएगी और साथ ही आपको P&L  भी पता चल जाएगा। आपको इस शीट का इस्तेमाल करना चाहिए और इससे बेहतर होगा कि आप अपने लिए खुद बना लें। 

एक बार आपने पोजीशन ले ली तो आपको सिर्फ रेजिडुअल की Z वैल्यू को ट्रैक करना है। इसका मतलब है कि आपको सभी वैल्यू को ट्रैक करना है और साथ ही उससे जुड़ी Z  वैल्यू को भी देखते रहना है। मैंने एकदम यही किया है। इस अध्याय को तैयार करने के लिए मेरे दोस्त फैजल ने सभी वैल्यू (14th और 15th के अलावा) का एक लॉग तैयार किया है।

जैसा कि आप देख सकते हैं कि मौजूदा वैल्यू को दिन में कई बार ट्रैक किया गया और उस हिसाब से Z स्कोर को भी दिन में कई बार कैलकुलेट किया गया। यह पोजीशन 7 दिन तक बनी रही थी जो कि पेयर ट्रेडिंग में एक आम बात है। मैंने ऐसे पेयर ट्रेड भी देखे हैं जहां पर पोजीशन 22 से 25 ट्रेडिंग दिनों तक बनी रही थी। अगर आपने कैलकुलेशन को ठीक से किया है तो आपको बस यह करना है कि अपने टारगेट या स्टॉपलॉस का इंतजार करें। 

अंतत: 23 मई की सुबह Z स्कोर टारगेट लेवल तक नीचे गया और तब यह मौका मिला कि मैं ट्रेड को बंद कर सकूं। यह रहा उस का चित्र – 

यहां ध्यान दीजिए कि टाटा मोटर्स DVR में काफी ज्यादा बढ़त हुई है और ये टाटा मोटर्स में हुए नुकसान के मुकाबले काफी अधिक है। हम जब पेयर ट्रेड लेते हैं तो हमें नहीं पता होता है कि दोनों में से किस पोजीशन में पैसे बनेंगे, बस यह पता होता है कि इनमें से एक हमारे पक्ष में जाएगा और दूसरा उल्टी दिशा में जाएगा। लेकिन यह पता करना मुश्किल होता है कि इनमें से पैसा कमा कर कौन देगा। 

23 मई को हमारा पोजीशन ट्रैकर इस तरह से दिख रहा था –

 इसका ट्रेड का P&L करीब 14000 का था जो कि बिना किसी बड़े रिस्क वाले ट्रेड के हिसाब से काफी अच्छा है।

13.4 – पेयर ट्रेडिंग पर कुछ अंतिम बातें

तो पिछले 13 अध्याय में मैंने वो सब बातें आपसे की जो मैं पेयर ट्रेडिंग के बारे में जानता हूं। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि ट्रेडिंग का यह तरीका, ट्रेडिंग के किसी भी उस दूसरे तरीके से बेहतर है जहां पर आप बिना जाने समझे ट्रेड करते हैं। हालांकि यह एक कम रिस्क वाला तरीका है लेकिन इसके अपने रिस्क भी जरूर हैं। आपको इसके रिस्क को भी जानना चाहिए। पेयर ट्रेड में पैसे गंवाने की का सबसे आम स्थिति वह होती है जब आपके पोजीशन लेने के बाद भी स्टॉक डाइवर्ज (Diverge) करता रहे। ऐसे में आप को बड़ा नुकसान हो सकता है। साथ ही, इसमें मार्जिन की जरूरत भी ज्यादा होती है क्योंकि यहां पर आप दो कॉन्ट्रैक्ट में एक साथ पोजीशन बना रहे होते हैं। इसीलिए आपको अपने ट्रेडिंग अकाउंट में इतने पैसे रखने पड़ते हैं जिससे आप हर दिन के  M2M को मैनेज कर सकें। 

कभी ऐसी स्थिति भी आ सकती है कि जहां पर आपको स्पॉट मार्केट में भी पोजीशन लेनी पड़े। उदाहरण के तौर पर 23 मई को मुझे एक सिग्नल मिला था कि हम इलाहाबाद बैंक (Y) और यूनियन बैंक (X) पर शॉर्ट जाएं। वहां Z स्कोर 2.64 था और इस पेयर का बीटा 0.437 था। 

अगर बीटा न्यूट्रैटिलिटी को ध्यान में रखें तो इलाहाबाद बैंक के हर एक शेयर के लिए मुझे यूनियन बैंक के 0.437 शेयर की जरूरत थी। इलाहाबाद बैंक का लॉट साइज 10 हजार का है इसका मतलब यह है कि मुझे यूनियन बैंक के 4378 शेयर चाहिए थे, लेकिन यूनियन बैंक का लॉट साइज 4000 का है इसलिए मुझे 378 शेयर स्पॉट बाजार में खरीदने पड़े।

मुझे पता है कि आपमें से काफी लोग पेयर डेटा शीट चाहते हैं, हम कोशिश करेंगे कि आपको हर दिन यहां पर पेयर डेटा शीट दी जा सके। जिससे कि आप पेयर को ट्रैक कर सकें। लेकिन मैं आप को सलाह दूंगा कि आप आप अपना खुद का एल्गो बनाने की कोशिश करें।  अगर किसी मदद की जरूरत हो तो हमें यहां नीचे लिखें। 

अगर आपको प्रोग्रामिंग नहीं आती है तो आपके पास सिवाय इसके कोई रास्ता नहीं है कि आप किसी ऐसे आदमी से अनुरोध करें जो कि प्रोग्रामिंग जानता है। मैंने भी यही किया था।

यहां पर मैं कुछ बातें आपके विचार के लिए छोड़ जा रहा हूं- 

  1. हम स्टॉक A का स्टॉक B के साथ लिनियर रिग्रेशन करते हैं जिससे हमें पता चल जाए कि दोनों स्टॉक को-इन्टीग्रेटेड हैं या नहीं और उनके रेजिडुअल्स स्टेशनरी हैं या नहीं।
  2. अगर स्टॉक A स्टॉक B के साथ स्टेशनरी नहीं है लेकिन स्टॉक B & C  के जोड़े के साथ स्टेशनरी हो तो क्या होगा?

पेयर के भी आगे बढ़कर होने वाली इस ट्रेडिंग को कहते हैं मल्टीवेरिएट रिग्रेशन (multivariate regression)।  यह आसान नहीं है, लेकिन अगर आप इसको समझ जाएं तो आप यहां एक अलग ही लेवल पर पहुंच जाएंगे। 

पोजीशन ट्रैकर को यहाँ से डाउनलोड करें

पेयर डाटा शीट को यहाँ से डाउनलोड करें

पोजीशन ट्रैकर और पेयर डेटाशीट को आप यहां पर डाउनलोड कर सकते हैं 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. एक पेयर को ट्रेड करने का ट्रिगर रेजिडुअल की करंट यानी मौजूदा वैल्यू से आता है।
  2. स्टॉक X के कितने शेयर खरीदने हैं और स्टॉक Y के कितने शेयर, इसको पता करने के लिए आपको बीटा न्यूट्रैटिलिटी पर नजर रखनी होगी।
  3. अगर पेयर का बीटा नेगेटिव है तो इस ट्रेड को करना संभव नहीं होगा।
  4. एक बार ट्रेड शुरू करने के बाद आपको Z स्कोर पर लगातार नजर लगती है आप उसके हिसाब से अपनी पोजीशन को ट्रेड करना है।
  5. फ्यूचर्स की कीमत का बहुत असर नहीं होता, यहां पर सिर्फ और सिर्फ Z स्कोर पर ही ध्यान देना होता है।

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ट्रेड की पहचान https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a4%b9%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%a8/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a4%b9%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%a8/#comments Mon, 13 Jul 2020 05:27:36 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8425 12.1 – समीकरण का ट्रेड  अब तक आप पेयर ट्रेडिंग के लिए जरूरी सारी बातों को जान चुके हैं। अब इन बातों को एक साथ इस्तेमाल करके हमें यह देखना है कि ये सिद्धांत वास्तविकता में कैसे काम करते हैं और इनसे पेयर ट्रेडिंग कैसे की जा सकती है।  सबसे पहले शुरुआत करते हैं उस […]

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12.1 – समीकरण का ट्रेड 

अब तक आप पेयर ट्रेडिंग के लिए जरूरी सारी बातों को जान चुके हैं। अब इन बातों को एक साथ इस्तेमाल करके हमें यह देखना है कि ये सिद्धांत वास्तविकता में कैसे काम करते हैं और इनसे पेयर ट्रेडिंग कैसे की जा सकती है। 

सबसे पहले शुरुआत करते हैं उस जरूरी इक्वेशन या समीकरण से। हमने इस समीकरण के बारे पर मॉड्यूल के शुरुआत में पढ़ा है, लेकिन अब इसको एक ट्रेडर के नजरिए से देखना है। आपको देखना है कि आप इस समीकरण के हिसाब से अपने ट्रेड के लिए मौके कैसे तलाश सकते हैं। जो कुछ आपने सीखा है उसका इस्तेमाल यहां करना होगा। 

                                                                              y = M*x + c

तो ये समीकरण हमें क्या बता रहा है, इसको आप दो नजरिए से देख सकते हैं –

  1. एक सांख्यिकीविद् (Statistician) के रूप में 
  2. एक ट्रेडर के रूप में 

क्योंकि हम यहां दो स्टॉक के साथ काम कर रहे हैं तो सांख्यिकीविद् इसे एक इक्वेशन (Equation) यानी समीकरण के नजरिए से देखेगा, जहां पर डिपेंडेंट स्टॉक Y की कीमत को इंडिपेंडेंट स्टॉक X की कीमत के आधार पर बताया जा रहा है। कीमत बताने की इस प्रक्रिया में हमें दो और वेरिएबल मिलते हैं जो कि स्लोप (या बीटा),M और इंटरसेप्ट,C हैं। 

तो सैद्धांतिक रूप में, स्टॉक Y की कीमत बराबर होगी स्टॉक X की कीमत का बीटा गुणा और इंटरसेप्ट के जोड़ के (Beta times X plus the intercept)

लेकिन हमें पता है कि यह सच नहीं है। इस समीकरण में हमेशा एक वेरिएशन या अंतर आता है जो कि हमें स्टॉक की वास्तविक कीमत और उसके अनुमानित कीमत के अंतर की ओर ले जाता है। इस अंतर को हम रेजिडुअल्स या एरर के हिसाब से बताते हैं। 

तो अगर हम इस समीकरण में रेजिडुअल्स को भी शामिल कर लें तो ये समीकरण ऐसा दिखाई देगा –

y = M*x + c + ε

यहां पर ε हमें एरर या रेजिडुअल्स को दिखा रहा है। अब तक आप रेजिडुअल्स की स्टेशनैरिटी को भी जान चुके हैं जो कि इस समय समीकरण को और बेहतर बना देता है। 

लेकिन अब, अगर इसी समीकरण को हमें एक ट्रेडर के नजरिए से देखना हो तो हम इसको कैसे देखेंगे, पहले एक बार समीकरण पर फिर से नजर डालिए –

y = M*x + c + ε

अब इस समीकरण को छोटे हिस्सों में बांटते हैं –

y = M*x, इसका मतलब है कि डिपेंडेंट स्टॉक Y की कीमत बराबर है इंडिपेंडेंट स्टॉक X में स्लोप यानी M से गुणा करके मिलने वाली संख्या के। यहां पर स्लोप या बीटा हमें बता रहा है कि स्टॉक X की कितनी संख्या स्टॉक Y के एक शेयर की कीमत के बराबर होगी।

उदाहरण के तौर पर, HDFC बैंक (Y) और ICICI बैंक (X)  के लीनियर रिग्रेशन का परिणाम यह है –

जबकि HDFC बैंक और ICICI बैंक की वास्तविक कीमत ये रही – 

तो इसका मतलब यह हुआ कि HDFC बैंक के शेयर की कीमत करीब-करीब बराबर है ICICI बैंक की कीमत और बीटा के गुणा करने से निकली हुई संख्या के। तो 1914 = 291 * 7.61 

मुझे पता है कि यह परिणाम सही नहीं निकलेगा। 

लेकिन कुछ समय के लिए मान लीजिए कि यह समीकरण सही है। तो इसका मतलब यह हुआ कि ICICI के 7.61 शेयर बराबर हैं HDFC के एक शेयर के। यह एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष है। 

इसका यह भी मतलब है कि अगर मैं HDFC के एक शेयर पर लॉन्ग जा रहा हूं तो मुझे ICICI के 7.61 शेयर को शॉर्ट करना होगा। तभी मैं एक ही समय पर लॉन्ग और शार्ट बराबरी से हो पाऊंगा और डायरेक्शन से जुड़े अपने रिस्क को काफी हद तक हेज (hedge) कर पाऊंगा। यहां पर यह याद रखना जरूरी है कि हम इन दोनों स्टॉक को इसलिए चुन रहे हैं क्योंकि यह दोनों आपस में को-इन्टीग्रेटेड हैं। 

एक बार फिर से समीकरण को देखिए – 

y = M*x + c + ε

अगर यह समीकरण सही है तो Y और X पर लॉन्ग और शॉर्ट जा कर आप डायरेक्शन के रिस्क को ठीक तरीके से हेज कर पाएंगे। 

अब बचा इस समीकरण का दूसरा हिस्सा – c + ε

जैसा कि आप जानते हैं कि C इंटरसेप्ट है। आपको यहां पर मैं एरर रेश्यो के बारे में याद दिलाना चाहूंगा जिस पर हमने अध्याय 10 में चर्चा की थी।

एरर रेश्यो = इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर / स्टैंडर्ड एरर 

हमने ये भी चर्चा की थी कि एरर रेश्यो जितना कम हो उतना बेहतर होता है। गणित के हिसाब से देखें तो इसका मतलब यह है कि हम ऐसे पेयर की तलाश में हैं जिसका इंटरसेप्ट कम हो। 

यह एक बहुत महत्वपूर्ण बात है, जो आपको याद रखनी चाहिए। हम ऐसे पेयर चुन रहे हैं जहां पर इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर कम हो। 

याद रखिए कि इस समीकरण  y = M*x + c + ε के हर हिस्से से हम एक ट्रेड (या हेज) पाने की कोशिश कर रहे हैं। हम Y को Mx से हेज कर रहे हैं। हम C या इंटरसेप्ट को कम करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि हम इसको ना तो ट्रेड कर रहे हैं और ना ही हेज  कर रहे हैं। इसीलिए यह जितना कम हो हमारे लिए उतना बेहतर है। 

अब इसके बाद हमारे पास बचता है रेजिडुअल्स या ε

आपको याद ही होगा कि रेजिडुअल्स एक टाइम सीरीज है। हमने इस सीरीज की स्टेशनैरिटी को भी जांच लिया है। तो अब अगर रेजिडुअल्स एक स्टेशनरी टाइम सीरीज है तो फिर ये नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन का बहुत अच्छे तरीके से पालन करेगा। इसका मतलब है कि हमें अब केवल रेजिडुअल्स को ट्रैक करना है और जब यह स्टैंडर्ड डेविएशन के ऊपरी स्तर को या निचले स्तर को छूता है तो ट्रेड को शुरू करना है।

तो इसका मतलब यह हुआ कि हम एक ट्रेड तब शुरू करेंगे जब –

  1. पेयर पर लॉन्ग (Y को खरीदना और X को बेचना) तब करना है रेजिडुअल्स – 2 स्टैंडर्ड डेविएशन (-2 SD) तक पहुंच जाए 
  2. पेयर पर शॉर्ट (X को खरीदना और Y को बेचना) तब करना है रेजिडुअल्स + 2 स्टैंडर्ड डेविएशन (+2 SD) तक पहुंच जाए

तो पेयर ट्रेड के पहले तरीके की तरह यहां भी हम ट्रेड तब शुरू करेंगे जब वह 2nd स्टैंडर्ड डेविएशन पर पहुंच जाए और ट्रेड को तब तक होल्ड करेंगे जब तक रेजिडुअल्स वापस अपने मीन तक ना पहुंच जाए। इन दोनों ट्रेड में स्टॉप लॉस 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन का होगा। अगले अध्याय में हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे। 

अब मैं इस अध्याय को यहां खत्म कर रहा हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि आपके दिमाग में बहुत सारी बातें एक साथ डाली जाएं। 

यह जरूरी है कि आप इस समीकरण को ट्रेडर के नजरिए से समझ जाएं और यह देख लें कि आपको क्या ट्रेड करना है। हम यहां पर सिर्फ रेजिडुअल्स के हिसाब से ट्रेड कर रहे हैं। हम स्टॉक Y की कीमत को स्टॉक X से हेज कर रहे हैं। इंटरसेप्ट को नीचे या कम रख रहे हैं और रेजिडुअल्स पर ट्रेड कर रहे हैं। 

रेजिडुअल्स पर ट्रेड इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह स्टेशनरी है और इसलिए हम यह उम्मीद करते हैं कि हम इसके बर्ताव या व्यवहार का अनुमान लगा सकते हैं। अगले अध्याय में हम एक वास्तविक ट्रेड को लेंगे और देखेंगे कि वास्तविकता में इसमें क्या होता है।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. पेयर ट्रेडिंग इक्वेशन या समीकरण ही वास्तव में वह समीकरण है जिसको हम ट्रेड करते हैं। 
  2. इस समीकरण के हर हिस्से को देखा जाता है।
  3. हम स्टॉक Y की कीमत को स्टॉक X से हेज करते हैं। X का बीटा हमें बताता है कि स्टॉक Y को पूरी तरह से हेज करने के लिए स्टॉक X के कितने शेयरों की जरूरत होगी।  
  4. एरर रेश्यो को देख कर हम यह सुनिश्चित करते हैं कि इंटरसेप्ट नीचे यानी कम रहे । याद रखें कि हम इंटरसेप्ट को ट्रेड नहीं कर रहे हैं इसलिए इसका कम रहना जरूरी है। 
  5. हम रेजिडुअल्स को ट्रेड करते हैं क्योंकि यह स्टेशनरी है और यह नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन का अच्छे से पालन करता है। 
  6. जब रेजीडुअल -2 स्टैंडर्ड डेविएशन तक पहुंचता है तो एक लॉन्ग ट्रेड शुरू किया जाता है। इसी तरह से, जब रेजीडुअल +2 स्टैंडर्ड डेविएशन पर पहुंचता है तो एक शॉर्ट ट्रेड शुरू किया जाता है।
  7. एक पेयर पर लॉन्ग जाने का मतलब है कि हम Y पर लॉन्ग जा रहे हैं और X पर शॉर्ट जा रहे हैं।
  8. पेयर पर शॉर्ट जाने का मतलब यह है कि हम Y पर शॉर्ट हैं और X पर लॉन्ग हैं।
  9. जब हम पेयर ट्रेड की शुरुआत करते हैं तो हम उम्मीद करते हैं कि रेजिडुअल्स वापस मीन पर जाएगा और हम तब तक ट्रेड को होल्ड करते हैं।
  10. लॉन्ग और शॉर्ट दोनों ट्रेड का स्टॉप लॉस 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन होता है।

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PTM 2, C 4 – एडीएफ टेस्ट https://zerodha.com/varsity/chapter/ptm-2-c-4-%e0%a4%8f%e0%a4%a1%e0%a5%80%e0%a4%8f%e0%a4%ab-%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f/ https://zerodha.com/varsity/chapter/ptm-2-c-4-%e0%a4%8f%e0%a4%a1%e0%a5%80%e0%a4%8f%e0%a4%ab-%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f/#comments Mon, 13 Jul 2020 05:26:58 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8423 11.1 – दो टाइम सीरीज का को-इन्टीग्रेशन  मुझे लगता है कि यह अध्याय थोड़ा कठिन होगा क्योंकि इस अध्याय में हम सांख्यिकी से जुड़े हुए कुछ सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे। मैं कोशिश करूंगा कि इन सिद्धांतों को मैं ट्रेडिंग के नजरिए से आपको समझा पाऊं।   ये जरूरी है कि अभी तक जो कुछ हमने सीखा […]

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11.1 – दो टाइम सीरीज का को-इन्टीग्रेशन 

मुझे लगता है कि यह अध्याय थोड़ा कठिन होगा क्योंकि इस अध्याय में हम सांख्यिकी से जुड़े हुए कुछ सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे। मैं कोशिश करूंगा कि इन सिद्धांतों को मैं ट्रेडिंग के नजरिए से आपको समझा पाऊं।  

ये जरूरी है कि अभी तक जो कुछ हमने सीखा है एक बार उसको सिलसिलेवार ढंग से देख लें। इसलिए मैं उसको यहां पर संक्षेप में प्रस्तुत कर रहा हूं – 

  1. पहले से सातवें अध्याय तक हमने पेयर ट्रेड का एक बहुत ही आम तरीका सीखा था। हमने इस पर चर्चा इसलिए की थी क्योंकि हम जानकारी का एक मजबूत आधार बनाना चाहते थे क्योंकि हमें एक मुश्किल पर बढ़िया ट्रेडिंग तकनीक – रिलेटिव वैल्यू ट्रेड तकनीक – समझना था। 
  2. रिलेटिव वैल्यू ट्रेड में लीनियर रिग्रेशन का इस्तेमाल किया जाता है।
  3. लीनियर रिग्रेशन में हम एक इंडिपेंडेंट वेरिएबल X को एक डिपेंडेंट वेरिएबल Y के लिए रिग्रेस करते हैं। 
  4. इस रिग्रेशन से जो काम की चीजें निकलती हैं उनमें इंटरसेप्ट, स्लोप, रेजिडुअल्स, स्टैंडर्ड एरर और इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर होते हैं। 
  5. दो में से किस स्टॉक को डिपेंडेंट और किसको इंडिपेंडेंट माना जाएगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि एरर रेश्यो क्या है। 
  6. हम दोनों स्टॉक का एरर रेश्यो दोनों तरफ से निकालते हैं यानी X की जगह पर रखकर भी और Y की जगह पर रखकर भी, और इनमें से जिसका एरर रेश्यो सबसे कम होता है उसी के हिसाब से स्टॉक को X या Y की जगह दी जाती है।

मुझे उम्मीद है कि अब तक हमने जिन चीजों पर चर्चा की है आपने उसको पढ़ और समझ लिया है। अगर नहीं कि ऐसा नहीं है तो मेरी भी सलाह यह होगी कि आप उन अध्यायों को फिर से पढ़ें और तभी आगे बढ़ें। 

पिछले अध्याय में हमने रेजिडुअल्स पर चर्चा की थी और मैंने यह भी कहा था कि आगे जाते हुए हमारा ज्यादा फोकस रेजिडुअल्स पर ही होने वाला है। इसलिए अब समय है कि हम रेजिडुअल्स पर और अधिक विस्तार से चर्चा करें और यह जानें कि रेजिडुअल्स किस तरह का बर्ताव दिखाते हैं। इसको समझने की कोशिश में हमें दो और बातें सीखनी होंगी – कोइन्टीग्रेशन और स्टेशनैरिटी (Cointegration and Stationarity)

आम भाषा में कहें तो, अगर दो टाइम सीरीज कोइन्टीग्रेट हैं (इस जगह पर स्टॉक X और स्टॉक Y) तो इसका मतलब यह होता है कि ये दोनों स्टॉक साथ-साथ चलते हैं और इनकी चाल में कभी थोड़ा बदलाव या डेविएशन आता भी है तो यह डेविएशन बहुत कम समय के लिए आता है और यह किसी घटना की वजह से आता है। साथ ही, आप यह उम्मीद भी कर सकते हैं कि यह दोनों टाइम सीरीज वापस अपने पुरानी चाल पर वापस आ जाएंगे, मतलब मिलेंगे यानी कन्वर्ज (Converge) करेंगे और फिर से साथ चलने लगेंगे। किसी भी तरीके की पेयर ट्रेडिंग में हम ऐसा ही चाहते हैं। तो इसका मतलब यह हुआ कि जिस पेयर को हमने पेयर ट्रेड के लिए चुना है उनको आपस में को-इन्टीग्रेटेड होना चाहिए।

तो अब सवाल यह है कि हमें कैसे पता चलेगा कि दोनों स्टॉक आपस में को-इन्टीग्रेटेड हैं? 

इसको पता करने के लिए हमें सबसे पहले उन दोनों स्टॉक पर लीनियर रिग्रेशन करना होगा फिर उस लीनियर रिग्रेशन से निकले हुए रेजिडुअल्स को ले कर ये देखना होगा कि क्या वो रेजिडुअल्स स्टेशनरी (Stationary) हैं। 

अगर रेजिडुअल्स स्टेशनरी हैं तो इसका मतलब यह होगा कि दोनों स्टॉक आपस में को-इन्टीग्रेटेड हैं। अगर दोनों स्टॉक आपस में को-इन्टीग्रेटेड हैं तो वह साथ साथ चलेंगे और इसका मतलब यह है कि उन स्टॉक को पेयर ट्रेडिंग के मौके तलाशने के लिए ट्रैक करना सही है। 

इस चीज को देखने का एक और रोचक तरीका यह है कि किसी भी दो अलग-अलग टाइम सीरीज को लीजिए और उन पर रिग्रेशन कीजिए। इस रिग्रेशन से एक परिणाम निकलेगा। अब देखना होगा कि क्या वह परिणाम आपके काम का है। इसको पता करने के लिए ही स्टेशनैरिटी (stationarity) का इस्तेमाल होता है। रिग्रेशन इक्वेशन तभी काम का माना जाता है जब रेजिडुअल्स स्टेशनरी हो, अगर रेजिडुअल्स स्टेशनरी नहीं है तो रिग्रेशन रिलेशन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। 

किसी को-इन्टीग्रेटेड टाइम सीरीज के आधार पर अनुमान लगाना और ट्रेड को तय करना काफी काम का होता है। बाजार की दिशा से इस पर कोई असर नहीं पड़ता। 

तो इसका मतलब यह हुआ कि रेजिडुअल्स स्टेशनरी है या नहीं है यह पता करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

अब यहां पर मैं आपको सीधे-सीधे यह बता सकता हूं कि ये कैसे पता करें कि रेजिडुअल्स स्टेशनरी हैं या नहीं। इसे पता करने के लिए आपको एक साधारण टेस्ट करना होगा जिसे ADF टेस्ट कहते हैं। आपको सिर्फ इतना ही जानना है। लेकिन मुझे ये लगता है कि इसके पहले आपको कुछ समय इस बात को समझने में गुजारना चाहिए स्टेशनैरिटी होती क्या है और इसलिए मैं स्टेशनैरिटी के बारे में अगले हिस्से में बताने जा रहा हूं। आप अगर इसको नहीं जानना चाहते तो आप सीधे उसके अगले वाले हिस्से पर जा सकते हैं।

11.2 – स्टेशनरी और नॉन-स्टेशनरी सीरीज 

किसी भी टाइम सीरीज को स्टेशनरी मानने के लिए तीन शर्तों को पूरा होना जरूरी है। अगर कोई टाइम सीरीज इनमें से सिर्फ दो शर्तों को पूरा करती है तो यह माना जाता है कि स्टेशनैरिटी कमजोर है। और अगर तीनों शर्तों में से किसी को भी पूरा नहीं करती तो यह माना जाता है कि टाइम सीरीज नॉन-स्टेशनरी है। 

तो, ये तीन शर्ते हैं 

– सीरीज का माध्य/मीन (Mean) एक समान होना चाहिए या एक बहुत ही छोटे दायरे में होना चाहिए 

– सीरीज का स्टैंडर्ड डेविएशन भी एक दायरे में ही होना चाहिए 

– सीरीज के अंदर कोई ऑटो कोरिलेशन नहीं होना चाहिए – इसका मतलब यह है कि इस सीरीज में कोई भी वैल्यू, मान लीजिए वैल्यू n, उससे यानी n से पहले आने वाले किसी दूसरे वैल्यू पर निर्भर नहीं होना चाहिए। इसके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे 

तो पेयर ट्रेडिंग में हम हमेशा ऐसे पेयर की तलाश करते हैं जो पूरी तरीके से स्टेशनैरिटी दिखा रहे हों। नॉन-स्टेशनरी सीरीज या कमजोर स्टेशनरी वाले सीरीज हमारे काम के नहीं होते हैं। 

मुझे लगता है कि यहां पर हमें उदाहरण के लिए कोई टाइम सीरीज ले लेना चाहिए और देखना चाहिए कि उसमें क्या यह तीनों शर्तें पूरी हो रही हैं। अगर ऐसा होगा तो हम स्टेशनैरिटी को अच्छे से समझ पाएंगे। 

उदाहरण के लिए मेरे पास दो टाइम सीरीज डाटा है। दोनों में से हर में 9000 डेटा प्वाइंट हैं। मैंने इनको सीरीज A और सीरीज B का नाम दिया है। अब मैं इनको स्टेशनैरिटी की तीनों शर्तों के आधार पर देखूंगा।

शर्त 1 –  सीरीज का मीन एक जैसा होना चाहिए या एक छोटे दायरे में रहना चाहिए 

इसका आकलन करने के लिए मैं हर टाइम सीरीज डेटा को तीन हिस्सों में विभाजित करूंगा और हर हिस्से का अलग-अलग मीन निकालूंगा।। तीनों अलग-अलग हिस्सों के लिए मिला मीन एक जैसा होना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो मैं यह मान सकता हूं कि इस सीरीज में नया डेटा प्वाइंट आने पर भी यह मीन एक समान ही रहेगा। 

तो, आइए आगे बढ़ते हैं और मीन निकालना शुरू करते हैं। मैंने टाइम सीरीज डेटा A को 3 हिस्सों में बांटा और उनका मीन निकाला। आइए देखते हैं- 

जैसा कि मैंने पहले कहा है कि टाइम सीरीज A और टाइम सीरीज B में मेरे पास 9000 डेटा प्वाइंट हैं। मैंने सीरीज A के डेटा प्वाइंट को तीन हिस्सों में विभाजित किया है। जैसा कि आप देख सकते हैं मैंने इन तीनों हिस्सों के शुरुआती और आखिरी सेल (Cell) को यहां पर हाईलाइट किया है। 

आप देख सकते हैं कि तीनों हिस्सों का मीन एक जैसा है। इसलिए पहली शर्त पूरी होती है। 

अब मैंने यही काम सीरीज B के लिए किया और उसका मीन रहा है – 


आप को दिख रहा होगा कि सीरीज B का मीन काफी ज्यादा इधर-उधर जा रहा है और यहां पहली शर्त यानी स्टेशनैरिटी की पहली शर्त पूरी नहीं होती है।

शर्त 2 –  स्टैंडर्ड डेविएशन एक दायरे के भीतर होना चाहिए 

यहां भी मैं पहले जैसा ही तरीका अपना रहा हूं। मैं तीन हिस्सों का अलग-अलग स्टैंडर्ड डेविएशन निकालूंगा। 

सीरीज A के लिए जो परिणाम आए वो ये हैं – 

यहां स्टैंडर्ड डेविएशन 14% से 19% के बीच में घूम रहा है इसका मतलब है कि यह एक दायरे में है और यह दूसरी शर्त को पूरा करता है। 

सीरीज B के लिए स्टैंडर्ड डेविएशन रहा –

आपको यहां अंतर दिख रहा होगा, सीरीज B का स्टैंडर्ड डेविएशन एक दायरे में नहीं है और यह इधर उधर जा रहा है। इसका मतलब यह है कि सीरीज B एक स्टेशनरी सीरीज नहीं है जबकि सीरीज A पूरी तरीके से स्टेशनरी देख रही है। अब हम तीसरी शर्त की ओर बढ़ते हैं और देखते हैं कि उसका नतीजा क्या मिलता है 

शर्त 3 – सीरीज के अंदर कोई ऑटो कोरिलेशन नहीं होना चाहिए 

आम भाषा में कहें तो यहां पर ऑटो कोरिलेशन का मतलब यह होता है कि टाइम सीरीज की कोई भी वैल्यू उसके पहले आने वाली किसी वैल्यू पर निर्भर नहीं करती है। 

उदाहरण के लिए इस चित्र को देखिए 

यहां पर सीरीज में 9वीं वैल्यू 29 है, अगर इस सीरीज में कोई ऑटो कोरिलेशन नहीं है तो 29 की इस वैल्यू को किसी इसके पहले आने वाली किसी और वैल्यू पर निर्भर नहीं होना चाहिए। मतलब सेल नंबर (Cell number) 2 से सेल नंबर 8 की किसी वैल्यू पर इसे निर्भर नहीं होना चाहिए। 

इसे पता करने की एक तकनीक है।

मान लीजिए आप के पास कुल 10 डेटा प्वाइंट हैं। मैं इसमें से सेल नंबर 1 से सेल नंबर 9 तक के डेटा लेता हूं और इसे सीरीज X कहता हूं, अब सेल नंबर 2 से सेल नंबर 10 तक के डेटा लेता हूं और इसे सीरीज Y कहता हूं। अब इन दोनों सीरीज X और Y के बीच में ऑटो कोरिलेशन निकालते हैं। इस तरीके को 1-lag कोरिलेशन कहते हैं। ये कोरिलेशन 0 के आसपास होना चाहिए। 

मैं इसे 2 Lag के लिए भी निकाल सकता हूं, मतलब सेल 1 से 8 तक और सेल 3 से 10 तक। यहां भी कोरिलेशन 0 के आसपास होना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो यह मान लेना आसान है कि इस सीरीज में ऑटो कोरिलेशन नहीं है। और इसलिए ये स्टेशनैरिटी की तीसरी शर्त को पूरा करती है। 

मैंने सीरीज A के लिए 2 Lag कोरिलेशन निकाला है –

याद रखिए कि मैंने सीरीज A को दो हिस्सों में बांटा है और उनसे दो सब सीरीज (Sub Series) X और Y – बनाया है। उसके बाद इन दोनों सब सीरीज का कोरिलेशन निकाला है। इन दोनों का कोरिलेशन 0 के करीब है इसलिए हम कह सकते हैं कि टाइम सीरीज A स्टेशनरी है। 

अब यही काम सीरीज B के लिए करते हैं –

यहां भी उसी तरीके से करने पर कोरिलेशन 1 के आसपास निकला है। 

जैसा कि आपने देख लिया होगा कि सीरीज A स्टेशनैरिटी की सारी शर्तों को पूरा करता है यानी सीरीज A स्टेशनरी है जबकि सीरीज B स्टेशनरी नहीं है।

मुझे पता है कि स्टेशनैरिटी और को-इंटीग्रेशन निकालने के लिए मैंने जो तरीका अपनाया है वह थोड़ा अलग है। आमतौर पर सांख्यिकीय आंकड़े निकालने के लिए कई तरह के फॉर्मूलों का इस्तेमाल होता है लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है। मैंने यह जानबूझकर किया है क्योंकि मुझे लगा कि आपको इन विषयों के बारे में समझाने का यह सबसे अच्छा तरीका है। वैसे भी, हमारी कोशिश यहां पेयर ट्रेड अच्छे से करना सीखना है ना कि इस कैलकुलेशन को सीखना। 

मैं आपको यह भी बता चुका हूं कि हमें सिर्फ ये जानना है कि रेजिडुअल्स की टाइम सीरीज वास्तव में स्टेशनरी है या नहीं है। और ये नतीजा हमें ADF टेस्ट से मिल सकता है। 

11.3 – ADF टेस्ट

ADF टेस्ट यानी ऑगमेंटेड डिकी फुलर (Augmented Dicky Fuller) टेस्ट किसी टाइम सीरीज की स्टेशनैरिटी निकालने की शायद सबसे अच्छी तकनीक है। याद रखें कि हमें अपने काम के लिए रेजिडुअल्स टाइम सीरीज की स्टेशनैरिटी को निकालना है। 

वास्तव में ADF टेस्ट वही सब करता है जिसकी हमने ऊपर चर्चा की है, यह ऑटो कोरिलेशन को निकालने के लिए कई तरह के Lag प्रोसेस का इस्तेमाल करता है। यहां पर आपको यह भी जानना जरूरी है कि ADF टेस्ट का परिणाम आमतौर पर ऐसे नहीं मिलता कि – हां ये सीरीज स्टेशनरी है या नहीं ये सीरीज स्टेशनरी नहीं है।  ADF टेस्ट का नतीजा प्रोबेबिलिटी यानी कि संभावना के तौर पर मिलता है। यह हमें किसी सीरीज के स्टेशनरी ना होने की संभावना या प्रोबेबिलिटी को बताता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर किसी ADF टेस्ट का नतीजा 0.25 है तो इसका मतलब है कि इस सीरीज के स्टेशनरी ना होने की संभावना 25% है। यानी इस बात की संभावना 75% है कि सीरीज स्टेशनरी है। प्रोबेबिलिटी यानी कि संभावना की इस संख्या को P-value कहते हैं।

किसी टाइम सीरीज को स्टेशनरी मानने के लिए P-value  को 0.05 यानी 5% या उससे नीचे होना चाहिए। इसका मतलब यह होता है कि उस टाइम सीरीज के स्टेशनरी होने की संभावना 95% या उससे ऊपर है। 

अब देखते हैं कि ADF टेस्ट कैसे किया जाता है। 

यह एक बहुत ही लंबी और कठिन प्रक्रिया है। मुझे कोई ऐसा तरीका ऑनलाइन नहीं मिला जो आपको ADF टेस्ट मुफ्त में करने दे। मेरे पास एक एक्सेल शीट है जिसमें एक paid plugin यानी पैसे देकर खरीदा गया प्लग-इन है जो ADF टेस्ट कर सकता है। लेकिन मैं उसको यहां शेयर नहीं कर सकता। 

अगर आप प्रोग्रामर हैं तो आप खुद अपने लिए इसे बना सकते हैं। मुझे बताया गया है कि पाइथन (python) में ऐसे प्लग-इन मौजूद हैं जो ADF टेस्ट कर सकते हैं। 

लेकिन अगर आप प्रोग्रामर नहीं हैं तो आप मेरी तरह आप इस जगह पर फंस सकते हैं। इसलिए मैं ये करता हूं कि हर हफ्ते या 15 दिन में यहां पर एक पेयर डेटा शीट को अपलोड करने की कोशिश करूंगा। इस शीट में सबसे अच्छे पेयर से जुड़ी ये जानकारियां होंगी – 

  1. आपको पता चलेगा कि कौन सा स्टॉक X है और कौन सा स्टॉक Y है 
  2. आपको इस जोड़े (पेयर) का इंटरसेप्ट और बीटा पता चलेगा 
  3. आपको इस जोड़े की P-value भी पता चलेगी

अभी मैं एक शीट डाल रहा हूं, इस शीट के लिए लुक बैक पीरियड 200 ट्रेडिंग दिन है यानी 200 दिन पीछे तक के डेटा को देखा गया है। मैंने इस शीट को सिर्फ बैंकिंग स्टॉक तक ही सीमित रखा है। बाद में शायद मैं और दूसरे सेक्टर भी जोड़ पाऊंगा। आप बैंकिंग स्टॉक के नए पेयर डेटा शीट के चित्र को देखिए–

यहां पहली लाइन बता रही है कि फेडरल बैंक Y है और पंजाब नेशनल बैंक (PNB) X है और यह एक सही पेयर यानी जोड़ा है। इसका ये भी मतलब है कि फेडरल बैंक को Y के तौर पर और PNB को X के तौर पर रखकर और फेडरल बैंक को X और PNB को Y के तौर पर रखकर, दोनों तरीकों से एरर रेश्यो निकाला जा चुका है। और उससे यह पता चला है कि फेडरल बैंक को Y है और PNB को X की जगह पर रखने पर सबसे कम एरर रेश्यो मिलता है। 

एक बार इन दोनों की जगह तय हो गई कि कौन X है और कौन Y तो फिर इनका इंटरसेप्ट और बीटा निकाला गया है। इसके बाद इसमें ADF टेस्ट किया गया और P-value निकाली गई है। आप देख सकते हैं कि फेडरल बैंक को Y के तौर पर और PNB  को X के तौर पर रखने पर P-value 0.365 आ रही है। 

इसका मतलब यह हुआ कि यहां पर रेजिडुअल्स के स्टेशनरी होने की संभावना सिर्फ 63.5% है और ऐसे में आपको इस जोड़े को लेकर काम नहीं करना चाहिए। 

आप इस चित्र को ध्यान से देखेंगे तो आपको केवल दो जोड़े मिलेंगे जिनकी P-value आपके काम आ सकती है, कोटक और PNB जिनकी P-value 0.01 है और HDFC और PNB जिनकी P-value 0.037 है। P-value आसानी से जल्दी-जल्दी नहीं बदलती इसीलिए मैं P-value को हर 15 या 20 दिन में एक बार निकालता रहूंगा और मैं उसको यहां पर बताता रहूंगा।

मुझे लगता है कि इस अध्याय में आपने काफी कुछ सीख लिया है। इस अध्याय में बताई गई बहुत सारी जानकारी बहुत सारे पाठकों के लिए नई होंगी, इसलिए पेयर ट्रेडिंग के बारे में अब तक आपने सीखा है मैं इन सब को एक बार फिर से संक्षेप में बता दे रहा हूं –  

  1.  पेयर ट्रेडिंग का मुख्य आधार 
  2. लीनियर रिग्रेशन की भूमिका और उसको निकालने का तरीका 
  3. लीनियर रिग्रेशन में हम इंडिपेंडेंट वेरिएबल X को डिपेंडेंट वेरिएबल Y के लिए रिग्रेस करते हैं 
  4. जब हम रिग्रेशन करते हैं तो उससे मिलने वाले कुछ काम के परिणाम होते हैं- इंटरसेप्ट, स्लोप, रेजिडुअल्स, स्टैंडर्ड एरर, इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर
  5. किसी स्टॉक को डिपेंडेंट या इंडिपेंडेंट बनाने का फैसला एरर रेश्यो के आधार पर किया जाता है
  6. हम दो स्थिति के लिए एरर रेश्यो निकालते हैं, स्टॉक को X की जगह पर रख कर भी और स्टॉक को Y की जगह पर रख कर भी। जहां पर एरर रेश्यो सबसे कम होता है उसी को स्टॉक की सही जगह माना जाता है और उसी हिसाब से स्टॉक को X या Y की जगह पर रखा जाता है 
  7. रिग्रेशन से मिलने वाला रेजिडुअल्स स्टेशनरी होना चाहिए अगर वह स्टेशनरी है तो इसका मतलब यह है कि वह दोनों स्टॉक आपस में को-इन्टीग्रेटेड हैं 
  8. अगर दो स्टॉक को-इन्टीग्रेटेड होते हैं तो वह साथ में चलते हैं 
  9. किसी सीरीज का स्टेशनैरिटी निकालने के लिए ADF टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है 

अगर इनमें से कोई भी चीज आपको ठीक से नहीं समझ में आई है तो मेरी सलाह यह होगी कि आप अध्याय 7 और उसके आगे के अध्यायों एक बार फिर से पढ़ें। 

अगले अध्याय में हम पेयर ट्रेड का एक उदाहरण देखेंगे। 

11 अप्रैल 2018 को अपडेट किए गए पेयर डेटाशीट को आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं  download the Pair Data

और मैं इस मॉड्यूल, खासकर इस अध्याय में अपनी जानकारी मेरे साथ बांटने के लिए अपने दोस्त और पुराने पार्टनर प्रकाश लेक्कला को धन्यवाद देता हूं। उनकी मदद के बिना ये अध्याय पूरा नहीं होता।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. अगर दो स्टॉक साथ में चलते हैं तो वह आपस में को-इन्टीग्रेटेड होते हैं 
  2. स्टॉक का जो पेयर आपस में को-इन्टीग्रेटेड होता है आप उसमें पेयर ट्रेडिंग कर सकते हैं 
  3. अगर लीनियर रिग्रेशन से निकला हुआ रेजिडुअल्स स्टेशनरी है तो इसका मतलब यह है कि दोनों स्टॉक आपस में को-इन्टीग्रेटेड हैं 
  4. किसी टाइम सीरीज को स्टेशनरी तब माना जाता है जब उस सीरीज का मीन ( Mean) स्थिर या कांस्टेंट ((Constant ) हो, स्टैंडर्ड डेविएशन कांस्टेंट ((Constant )  हो और आपस में कोई ऑटो कोरिलेशन ना हो 
  5. स्टेशनैरिटी को चेक करने या पता करने के लिए ADF टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है 
  6. ADF टेस्ट की P Value 0.05% या उससे नीची होनी चाहिए तभी सीरीज को स्टेशनरी माना जाता है

 

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PTM 2, C 3 – एरर रेश्यो https://zerodha.com/varsity/chapter/ptm-2-c-3-%e0%a4%8f%e0%a4%b0%e0%a4%b0-%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b/ https://zerodha.com/varsity/chapter/ptm-2-c-3-%e0%a4%8f%e0%a4%b0%e0%a4%b0-%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b/#comments Mon, 13 Jul 2020 05:26:09 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8349 10.1 – कौन है X और Y कौन है?  मुझे उम्मीद है कि पिछले अध्याय से आपको लीनियर इक्वेशन समझ में आ गया होगा। साथ ही यह भी पता चल गया होगा कि किसी दो डेटा समूह के लिए MS Excel का इस्तेमाल कर के लीनियर इक्वेशन कैसे निकाला जा सकता है। याद रखिए कि […]

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10.1 – कौन है X और Y कौन है? 

मुझे उम्मीद है कि पिछले अध्याय से आपको लीनियर इक्वेशन समझ में आ गया होगा। साथ ही यह भी पता चल गया होगा कि किसी दो डेटा समूह के लिए MS Excel का इस्तेमाल कर के लीनियर इक्वेशन कैसे निकाला जा सकता है। याद रखिए कि यहां पर हम दो वेरिएबल की बात कर रहे हैं X और Y

X डिपेंडेंट वेरिएबल है Y डिपेंडेंट वेरिएबल है। आपको समझ में आ ही गया होगा कि X और Y यहां पर दो अलग-अलग स्टॉक हैं। 

तो थोड़ा आगे बढ़ते हैं और दो स्टॉक का लीनियर रिग्रेशन निकालते हैं – HDFC बैंक और ICICI बैंक पर और देखते हैं कि हमें क्या परिणाम मिलता है। 

मैं ICICI को X और HDFC बैंक को Y बना रहा हूं। यहां पर डाटा को लेकर जो बातें ध्यान में रखनी है उन्हें एक बार देख लेते हैं – 

  1. यह ध्यान देना है कि डेटा साफ हो मतलब उसकी कीमत में स्प्लिट, बोनस या ऐसे किसी और कॉरपोरेट एक्शन की वजह से कोई भारी बदलाव नहीं आ रहा हो 
  2. यह भी ध्यान देना है कि डेटा एक समान तारीख का हो मतलब अगर मैंने एक स्टॉक के लिए 4 दिसंबर 2015 से 4 दिसंबर 2017 तक का डेटा लिया है तो दूसरे के लिए भी इन्हीं तारीखों का डेटा होना चाहिए। 

इन दोनों बैंकों का जो डेटा हमने लिया है वो ऐसा है 


अब मैं इन दोनों स्टॉक पर लीनियर रिग्रेशन निकालूंगा। (इसे कैसे निकाला जाता है इस पर हम पिछले अध्याय में चर्चा कर चुके हैं)। ये भी ध्यान रहे कि यहां हम स्टॉक की कीमत पर लीनियर रिग्रेशन निकाल रहे हैं, स्टॉक के रिटर्न पर नहीं।


लीनियर इक्वेशन का परिणाम ये है-

चूंकि ICICI इंडिपेंडेंट है और HDFC डिपेंडेंट है, इसलिए यहां समीकरण ये होगा 

HDFC = Price of ICICI * 7.613 – 663.677

मुझे उम्मीद है कि आप इस समीकरण से परिचित हैं। जो इस समीकरण के बारे में नहीं जानते हैं उनको मेरी सलाह होगी कि वह पिछले दो अध्यायों को पढ़ें। वैसे संक्षेप में कहें तो यह समीकरण ICICI  की कीमत के आधार पर HDFC की कीमत का अनुमान लगाने की कोशिश करता है। 

दूसरे शब्दों में कहें तो, हम ICICI  के संदर्भ में HDFC की कीमत को बताने की कोशिश कर रहे हैं। 

अब हम यहां इसको उलट देते हैं। अब ICICI  डिपेंडेंट है और HDFC इंडिपेंडेंट है। 

अब जो नतीजे निकलते हैं वो ये हैं –

और अब समीकरण है 

ICICI = HDFC * 0.09 + 142.4677

तो आप किन्हीं दो स्टॉक का रिग्रेसन आप दो तरीके से कर सकते हैं पहले एक स्टॉक को डिपेंडेंट और दूसरे को इंडिपेंडेंट बनाया और बाद में, इसको उलट कर भी आप रिग्रेसन निकाल सकते हैं। 

लेकिन सवाल यह है कि यह आप कैसे तय करें कि कौन सा स्टॉक डिपेंडेंट है और कौन सा इंडिपेंडेंट है। या इन दोनों में से किसको पहले रखना चाहिए और किसको बाद में 

इस सवाल का जवाब तीन चीजों पर निर्भर करता है –

  1. स्टैंडर्ड एरर (Standard Error)
  2. इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर (Standard Error of Intercept) 
  3. इन दो वेरिएबल का रेश्यो 

याद रखिए कि ऊपर का लीनियर इक्वेशन यह बताता है कि ICICI  की कीमत में HDFC के मुकाबले क्या बदलाव हो रहा है (ऊपर के समीकरण को देखें)। एक स्टॉक की कीमत में बदलाव को दूसरे स्टॉक के आधार पर बताना कभी भी 100 % सही नहीं हो सकता। ऐसा होता तो कोई दिक्कत ही नहीं होती।

लेकिन इसके बावजूद ये समीकरण ऐसा होना चाहिए कि ये एक स्टॉक (डिपेंडेंट वेरिएबल) की कीमत में होने वाले बदलाव को दूसरे स्टॉक (इंडिपेंडेंट वेरिएबल) के हिसाब से बता सके। ये जितना अच्छा बता सकेगा उतना ही अच्छा।

अब यहां पर दूसरा सवाल आता है – हम ये कैसे पता करें कि लीनियर रिग्रेसन का समीकरण कितना अच्छा है, इसके लिए ये रेश्यो काम आता है – 

Standard Error of Intercept (इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर) / Standard Error (स्टैंडर्ड एरर

इस रेश्यो को समझने के लिए इसमें इस्तेमाल किए गए अंश (Numerator) और हर (Denominator) को समझना होगा।

10.2 – फिर से रेजिडुअल्स पर –  Back to Residuals

ICICI को इंडिपेंडेंट और HDFC को डिपेंडेंट रख कर निकाला गया लीनियर रिग्रेसन का समीकरण ये है –

HDFC = Price of ICICI * 7.613 – 663.677

इसका मतलब ये है कि अगर हमें ICICI की कीमत पता है तो हम HDFC की कीमत का अनुमान लगा सकते हैं। लेकिन इस अनुमानित कीमत और वास्तविक कीमत में अंतर होगा? इस अंतर को ही रेजिडुअल्स कहते हैं।

जब आप ICICI को इंडिपेंडेंट रखते हुए HDFC की कीमत का अनुमान लगाते हैं तो ये रेजिडुअल्स मिलते है – 

मैं जब भी रिग्रेशन के इक्वेशन और रेजिडुअल्स की बात करता हूं तो मुझसे सवाल पूछा जाता है – रिग्रेशन का फायदा क्या है अगर हर बार रेजिडुअल्स मिलना है या फिर ऐसे समीकरण पर भरोसा करने की क्या जरूरत है जो कि एक बार भी ठीक तरीके से अनुमान नहीं लगा पाता? 

ये सवाल ठीक है। अगर आप ऊपर दिखाए गए रेजिडुअल्स को ध्यान से देखेंगे तो आपको दिखेगा कि ये नीचे -288 से ऊपर 548 तक जाता है। इसलिए भी इसके आधार पर कीमत का अनुमान लगाना बहुत काम का नहीं है। 

लेकिन ये सब कुछ किसी एक इंडिपेंडेंट स्टॉक के आधार पर एक डिपेंडेंट स्टॉक की कीमत का अनुमान लगाने के लिए नहीं किया जा रहा, इसके मूल में तो रेजिडुअल्स है। 

मैं आपको समझाता हूं, रेजिडुअल्स एक खास तरीके से बर्ताव करते हैं। अगर हम इसको समझ लें और इसके पीछे का पैटर्न समझ लें, तो हमारे लिए ट्रेड करना आसान हो जाएगा। एक ऐसा ट्रेड जिसमें हम एक स्टॉक खरीद रहे होंगे और एक बेच रहे होंगे यानी यह एक पेयर ट्रेड होगा। 

अगले कुछ अध्यायों में हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे। लेकिन अभी हम स्टैंडर्ड एरर पर बात करते हैं जो कि हमारे Standard Error of Intercept (इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर) / Standard Error (स्टैंडर्ड एरर) समीकरण में नीचे या डिनॉमिनेटर की जगह पर है।

जब भी आप लीनियर रिग्रेशन ऑपरेशन करते हैं तो हर बार एक स्टैंडर्ड एरर बताया जाता है। इसे नीचे के चित्र में देखिए –

स्टैंडर्ड एरर वास्तव में रेजिडुअल्स का स्टैंडर्ड डेविएशन होता है। याद रखिए कि रेजिडुअल्स खुद भी एक टाइम सीरीज अरे (Time Series Array) हैं इसलिए अगर आप रेजिडुअल्स का स्टैंडर्ड डेविएशन निकालेंगे तो आपको एक स्टैंडर्ड एरर मिलेगा। 

आइए जरा इस रेजिडुअल्स का स्टैंडर्ड एरर निकालते हैं। मैं इसके लिए X = ICICI और  Y= HDFC ले रहा हूं

एक्सेल से मुझे पता चल रहा है कि स्टैंडर्ड डेविएशन 152.665 है। हमारे समरी आउटपुट (Summary Output) में स्टैंडर्ड एरर निकला था 152.89 । इस मामूली अंतर का बहुत महत्व नहीं है। यानी दोनों एक ही हैं।

इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर (Standard Error of Intercept ) थोड़ा ज्यादा मुश्किल है, ये हर बार रिग्रेसन रिपोर्ट में बताया जाता है। X = ICICI और  Y= HDFC के लिए इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर ये है – 

याद कीजिए कि रिग्रेसन इक्वेशन या समीकरण है – 

y=M*x+ C

जहां,

M = स्लोप 

C = इंटरसेप्ट

आपको शायद समझ में आ गया होगा कि M और C दोनों ही एक अनुमान हैं। इन का अनुमान वास्तव में रिग्रेसन एल्गोरिदम (Regression Algorithm)  को दिए गए हिस्टोरिकल डेटा के आधार पर लगाया जाता है। इस डेटा में कुछ न कुछ ऐसी बातें (noise) जरूर होंगी जो उसे सही परिणाम देने से रोकती होंगी और यही वजह है कि इस अनुमान के गलत जाने की संभावना रहती है। 

इंटरसेप्ट के अनुमान में होने वाले वैरियंस को इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर (Standard Error) कहा जाता है। यह हमें बताता है कि इंटरसेप्ट वास्तव में खुद कितना इधरउधर जा सकता है यानी उसमें कितना वैरियंस आ सकता है। तो यह खुद इस तरीके का स्टैंडर्ड एरर होता है। संक्षेप में देखें तो 

  • इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर – इंटरसेप्ट के अनुमान में होने वाला वैरियंस 
  • स्टैंडर्ड एरर – रेजिडुअल्स का वैरियंस

अब क्योंकि हमने इन दोनों वेरिएबल को परिभाषित कर लिया है तो अब वापस लौटते हैं एरर रेश्यो (Error Ratio) पर । याद रखिए कि एरर रेश्यो (Error Ratio)  एक आम शब्द नहीं है, इसे मैंने निकाला है, जिससे इस बात को ठीक से समझ सकें। 

तो यहां एरर रेश्यो होगा –

एरर रेश्यो (Error Ratio) इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर (Standard Error of Intercept) / स्टैंडर्ड एरर  (Standard Error)

इसे मैंने कैलकुलेट कर लिया है – 

  1. X की जगह ICICI और Y की जगह HDFC रखने पर  =  0.401 
  2. X की जगह HDFC और Y की जगह ICICI रखने पर  =  0.227 

हम किस स्टॉक को X की जगह रखेंगे और किस स्टॉक को Y की जगह रखेंगे यह इस बात पर निर्भर करेगा कि एरर रेश्यो की वैल्यू क्या है। यह जितना कम होगा उतना बेहतर। क्योंकि HDFC को X  के तौर पर ICICI को Y के तौर पर रखने पर रेश्यो सबसे कम मिल रहा है इसलिए हम HDFC को इंडिपेंडेंट वेरिएबल (X) और ICICI को डिपेंडेंट वेरिएबल (Y) रखेंगे। 

वैसे तो मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि हम एरर रेश्यो का इस्तेमाल X और Y के फैसले के लिए क्यों कर रहे हैं, लेकिन मैं इसको अभी नहीं बताऊंगा। मैं इसको तब बताऊंगा जब हम पेयर ट्रेड का उदाहरण देख रहे होंगे। 

अभी बस यह याद रखिए कि एरर रेश्यो को कैलकुलेट करना है और उसके आधार पर हमें यह तय करना है कि कौन सा स्टॉक डिपेंडेंट है और कौन सा स्टॉक इंडिपेंडेंट होगा। 

इस अध्याय में इस्तेमाल किए गए एक्सेल शीट को आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं। here.

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. X इंडिपेंडेंट स्टॉक होता है और Y डिपेंडेंट स्टॉक होता है। 
  2. किस स्टॉक को X जगह पर रखा जाए और कौन सा स्टॉक Y होगा, इसका फैसला एरर रेश्यो के आधार पर किया जाता है।
  3. किसी लीनियर रिग्रेशन इक्वेशन में स्लोप और इंटरसेप्ट दोनों ही एक तरीके के अनुमान होते हैं। 
  4. एरर रेश्यो (Error Ratio) =  इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर (Standard Error of Intercept) / स्टैंडर्ड एरर (Standard Error)
  5. रेजिडुअल्स के स्टैंडर्ड डेविएशन को स्टैंडर्ड एरर कहते हैं।
  6. इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर आपको यह बताता है कि इंटरसेप्ट में कितना वैरियंस है।
  7. आप स्टॉक 1 को स्टॉक 2 से या स्टॉक 2 को स्टॉक 1 से रिग्रेस कर सकते हैं, बस देखना ये है कि किसका एरर रेश्यो कम है और उसके आधार पर डिपेंडेट और इंडिपेंडेंट स्टॉक का फैसला कर लें।
  8. रेजिडुअल्स एक खास तरीके से बर्ताव करते हैं। अगर आप उनको समझ जाए तो आपके लिए पेयर ट्रेडिंग के लिए पेयर का अनुमान लगाना आसान होगा।

 

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9.1 – लीनियर रिग्रेसन (Linear Regression) – एक परिचय

पिछले अध्याय में स्ट्रेट लाइन इक्वेशन (Straight Line Equation) को समझाया गया था। हमने बहुत सरल उदाहरण का इस्तेमाल करके ये समझाने की कोशिश की थी कि दो वेरिएबल के बीच के संबंधों कैसे पता किया जा सकता है। उदाहरण इतने सीधे थे कि आप उसे देख कर भी जान सकते थे कि उनके बीच में कैसा संबंध है। अध्याय के अंत में दो वेरिएबल का एक टेबल दिखाया था और ये सवाल उठाया था कि इनमें संबंध कैसे स्थापित करें? यहां पर हम कैसे स्लोप और इंटरसेप्ट यानी E की वैल्यू कैसे निकालें? 

इस अध्याय में हम इसी संबंध को स्थापित करने का तरीका ढूंढेंगे और रिलेटिव वैल्यू ट्रेडिंग तकनीक की तरफ बढ़ेंगे। सबकी सुविधा के लिए मैं उस टेबल को फिर से डाल रहा हूं –

X Y
10 3
12 6
8 4
9 17
20 36
18 22

 

सीधे तौर पर देखने से इनके बीच में कोई संबंध पता नहीं चलता है।

ऐसी स्थिति में हम लीनियर रिग्रेसन (Linear Regression) तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इस सांख्यिकी तकनीक में इनपुट के तौर पर संख्याओं के दो समूह को डाला जाता है, और आउटपुट के तौर पर हमें बहुत सारी सूचनाएं मिलती हैं जिनमें इंटरसेप्ट और अचर (Constant) संख्या भी होती है जिससे हम स्ट्रेट लाइन इक्वेशन (Straight Line Equation) बना सकते हैं।

लीनियर रिग्रेसन (Linear Regression) निकालने के लिए हम एक्सेल का उपयोग कर सकते हैं। संख्याओं के दो समूह का लीनियर रिग्रेसन (Linear Regression) को एक्सेल पर निकालने का तरीका नीचे बताया जा रहा है।

कदम 1 – प्लग इन इन्स्टॉल  करें – Install the Plugin

एक नया एक्सेल शीट खोलें और उसमें X  और Y की वैल्यू डालें जैसा कि ऊपर के टेबल में दिखाया गया है। जैसे कि मैंने नीचे दिखाया है – 

ये हमारा डेटा है। याद रखें कि Y एक डिपेंडेंट वेरिएबल बन जाता है जिसकी वैल्यू इंडिपेंडेंट वेरिएबल X पर निर्भर करती है। X  और Y दोनों को लीनियर रिग्रेसन के इनपुट के तौर इस्तेमाल किया जाएगा।

एक्सेल शीट में डेटा रिबन (लाल रंग के घेरे से दिखाए गए) पर क्लिक करें, जैसा कि चित्र में दिख रहा है –

डेटा रिबन अब आपको डेटा एनालिसिस का ऑप्शन देगा। इसे नीले रंग से हाईलाइट किया गया है। हो सकता है कि आपमें से कुछ लोगों को ये ऑप्शन ना दिखाई दे। अगर ऐसा है तो घबराने की जरूरत नहीं है, आपको सिर्फ ये करना है – 

फाइल पर क्लिक करें

इसके बाद एक नई विन्डो खुलेगी और उसमें बायीं तरफ के पैनल में आपको ये ऑप्शन दिख जाएगा

इस ऑप्शन पर क्लिक करने पर आपको बहुत सारे विकल्प मिलेंगे,। इसमें से आपको बायीं तरफ के पैनल में ऐड इन (Add Ins) पर क्लिक करना है और फिर गो (Go) का बटन दबाना है और फिर अंत में ओके (OK) पर क्लिक करना है।इस तरह से आप डेटा रिबन (Data Ribbon) में डेटा एनालिसिस (data Analysis) को जोड़ पाएंगे।

अब आप एक्सेल शीट बंद करके अपने कम्प्यूटर को दोबारा चालू कर लें। अब आपकी तैयारी पूरी हैं।

कदम 2 – वैल्यू भरिए- Enter the Values

अब आपके एक्सेल शीट में डेटा एनालिसिस का पैक है। अब आपको डेटा एनालिसिस पैक में लीनियर रिग्रेसन फंक्शन का इस्तेमाल करना है। इसके लिए डेटा रिबन पर क्लिक करें, और डेटा एनालिसिस को सेलेक्ट करें। इसकेबाद एक पॉप अप खुलेगा जिसमें आपको बहुत सारे ऑपरेशन की लिस्ट दिखेगी जिनको आप डेटा सेट में इस्तेमाल कर सकते हैं। आपको उसमें से रिग्रेसन को चुनना है।

रिग्रेसन को सेलेक्ट कर के ओके (OK) दबाने पर आपको ये पॉप अप (Pop Up) दिखेगा।

जैसा कि आप देख सकते हैं कि यहां पर बहुत सारे फील्ड हैं। आपको पहले सेक्शन पर ध्यान देना है, जो कि इनपुट का सेक्शन है। इसमें दो फील्ड हैं – इनपुट X रेंज और इनपुट Y रेंज। आप समझ ही गए होंगे कि Y डिपेंडेंट वेरिएबल के लिए है और X इंडिपेंडेंट वेरिएबल के लिए।

यहीं पर हमें X और Y सीरीज के डेटा को भरना है। इसके लिए इनपुट चैनल पर क्लिक करें और X रेंज और Y रेंज को सेलेक्ट करें।

यहां पर ध्यान दीजिए कि मैंने लेबल बॉक्स को टिक किया है ,ये बताता है कि पहले सेल (Cell) की  वैल्यू यानी A2 और B2 में सीरीज की वैल्यू है यानी X और Y है।

मेरी सलाह है कि आप बाकी इनपुट पर ध्यान ना दें।

आउटपुट की तरफ में आपको इसे ज़रूर चुनें- 

न्यू वर्कशीट (new worksheet) को सेलेक्ट करने से आपका आउटपुट डेटा एक नई वर्कशीट में मिलेगा। मैंने यहां पर रेजिडुअल्स (Residuals) और स्टैन्डर्डाइज्ड रेजिडुअल्स (Standardised Residuals) पर भी टिक किया है। ये क्या हैं इस पर हम बाद में चर्चा करेंगे अभी के लिए बस आप इनको सेलेक्ट कर लें।

अब आप लीनियर रिग्रेसन ऑपरेशन करने के लिए तैयार हैं। सबसे ऊपर दायीं तरफ ओके (OK) बटन पर क्लिक करें।

एक्सेल अब इन इनपुट को लेगा और लीनियर रिग्रेसन ऑपरेशन करेगा। इसका परिणाम उसी वर्कबुक में एक नई शीट में मिल जाएगा।

9.2 – लीनियर रिग्रेसन आउटपुट

लीनियर रिग्रेसन का आउटपुट ऐसा दिखेगा, इस आउटपुट का सारांश (Summary) एक नई शीट में होगा।

मुझे पता है कि इसे देख कर आप डर सकते हैं। इसमें काफी सूचनएं हैं। हम आगे जाते हुए इसको छोटे छोटे टुकड़ों में समझते रहेंगे।

लेकिन अभी, स्लोप और इंटरसेप्ट को तलाशते हैं। मैंने नीचे के चित्र में इनको हाईलाइट किया है –

लाल रंग से हाईलाइट किए कोएफिसिएंट (Coefficients)  ही इंटरसेप्ट (अचर) और स्लोप (X) हैं।

यहां पर स्लोप को X से दिखाया गया है और वो भ्रम पैदा कर सकता है लेकिन आप उससे किसी भ्रम में ना पड़ें। अगर यहां पर X की जगह M होता तो वो स्ट्रेट लाइन इक्वेशन के हिसाब से ठीक होता लेकिन हमें X से ही काम चलाना पड़ेगा।

तो,

  • समीकरण का स्लोप = 1.885
  • इंटरसेप्ट (अचर-Constant) = 7.859813

इसके आधार पर, हमारे डेटा का स्ट्रेट लाइन इक्वेशन होगा –

y = 1.885*x + (-7.859813) या

y = 1.885*x – 7.859813

तो इसका मतलब क्या हुआ?

आपको याद होगा कि पिछले अध्याय में हमने कहा था कि ये समीकरण हमें  X के आधार पर Y की यानी डिपेंडेंट वेरिएबल की वैल्यू पता करने में मदद करता है। एक बार फिर से अपने टेबल पर नजर डालते हैं –

 

X Y
10 3
12 6
8 4
9 17
20 36
18 22
15 ??

 

मैंने यहां पर X की एक नई वैल्यू 15 डाली है, अब स्लोप और इंटरसेप्ट का उपयोग करके हम Y की वैल्यू पता कर सकते हैं। 

 Y = 1.885 * 15 – 7.859813

= 28.275 – 7.859813

= 20.415

तो अब अगर X की वैल्यू 15 है तो फिर Y की वैल्यू 20.415 होगी।

आप के दिमाग में सवाल आ सकता है कि ये कितनी सही वैल्यू है।

तो याद रखिए ये सिर्फ एक अनुमान है इसलिए इसको एकदम सही ना मान लें। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि X की वैल्यू 18 है, तो स्ट्रेट लाइन इक्वेशन के हिसाब से Y की वैल्यू होगी –

y = 1.885*18 – 7.859813

= 33.93 – 7.859813

= 26.07019

लेकिन में इसकी वास्तविक वैल्यू 22 दी गयी है।

इसका मतलब है कि Y की दो वैल्यू होगी –

  1. स्ट्रेट लाइन इक्वेशन के हिसाब से Y की अनुमानित वैल्यू
  2. Y की वास्तविक वैल्यू

इन दोनों वैल्यू के बीच के अंतर को रेजिडुअल्स (Residuals) कहते हैं। उदाहरण के लिए जब X की वैल्यू 18 है तो Y की रेजिडुअल्स वैल्यू (Y की वास्तविक वैल्यू और अनुमानित वैल्यू का अंतर) होगी –

26.07019 – 22

= 4.070187

जब आप लीनियर रिग्रेसन निकालते हैं तो उसके आउटपुट में भी आपको रेजिडुअल्स (Residuals) मिलता है। इसको मैंने नीचे हाईलाइट किया है – 

जब X की वैल्यू 18 है तो Y की रेजिडुअल्स वैल्यू क्या होगी उसको भी मैंने हाईलाइट किया है।

आपको बता दूं कि रिलेटिव वैल्यू ट्रेडिंग (RVT) में रेजिडुअल्स की काफी बड़ी भूमिका होती है।

आप एक्सेल शीट को यहां से डाउनलोड कर सकते हैं।here.

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  • लीनियर रिग्रेसन एक सांख्यिकीय ऑपरेशन है जो स्ट्रेट लाइन इक्वेशन बनाने में मदद करता है।
  • लीनियर रिग्रेसन को निकालने के लिए एक्सेल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए एक्सेल के एक प्लग इन को इन्स्टॉल करना पड़ता है। 
  • लीनियर रिग्रेसन से हमें बहुत सारे आउटपुट मिलते हैं जिसमें स्लोप और इंटरसेप्ट भी होते हैं। 
  • स्लोप और इंटरसेप्ट का उपयोग करके हम Y की वैल्यू पता कर सकते हैं। 
  • Y की वास्तविक वैल्यू और अनुमानित वैल्यू का अंतर को रेजिडुअल्स (Residuals) कहते हैं।
  • आउटपुट सारांश (Summary) में भी आपको रेजिडुअल्स (Residuals) की वैल्यू मिलती है।

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पेयर ट्रेड तरीका 2, अध्याय 1, (PTM 2, C 1) – स्ट्रेट लाइन इक्वेशन https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%87%e0%a4%af%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1-%e0%a4%a4%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a4%be-2-%e0%a4%85%e0%a4%a7%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%af-1-ptm-2-c/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%87%e0%a4%af%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1-%e0%a4%a4%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a4%be-2-%e0%a4%85%e0%a4%a7%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%af-1-ptm-2-c/#respond Mon, 13 Jul 2020 05:24:07 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8344 8.1 – एक सीधा संबंध  आज मैं संख्याओं के दो समूहों के बीच के संबंधों की बात करूंगा। हम यह देखेंगे कि उनके बीच में अगर कोई संबंध है तो उसको कैसे नापा जा सकता है।  लेकिन उसके पहले एक बार हम फिर से अब तक सीखी चीजों को दोहरा लेते हैं। हमने इस मॉड्यूल […]

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8.1 – एक सीधा संबंध 

आज मैं संख्याओं के दो समूहों के बीच के संबंधों की बात करूंगा। हम यह देखेंगे कि उनके बीच में अगर कोई संबंध है तो उसको कैसे नापा जा सकता है। 

लेकिन उसके पहले एक बार हम फिर से अब तक सीखी चीजों को दोहरा लेते हैं। हमने इस मॉड्यूल में अध्याय 1 से 7 के बीच में पेयर ट्रेडिंग की एक सीधी और आसान तकनीक पर चर्चा की है। इस तकनीक को हमें मार्क विसलर ने समझाया था। अब इस अध्याय से आगे जाते हुए हम एक थोड़ी जटिल पर सुधरी हुई तकनीक पर चर्चा करेंगे। इसे स्टैटिसटिकल आर्बिट्राज (Statistical Arbitrage) या रिलेटिव वैल्यू ट्रेडिंग (Relative Value Trading-RVT) कहते हैं। 

तो आइए शुरू करते हैं।

हो सकता है कि आपने स्कूल में गणित सीखते हुए स्ट्रेट लाइन इक्वेशन (Straight Line Equation) के बारे में पढ़ा हो। यह इक्वेशन या समीकरण इस तरह से होता है 

Y = mx + E 

इसके बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए आप यहांClick here क्लिक कर सकते हैं। अगर सिर्फ इसकी जरूरी जानकारी पाना चाहते हैं तो आगे बढ़ते हैं। 

समीकरण पर और चर्चा करने के पहले इस के अलग-अलग नोटेशन (Notation) बारे में जान लीजिए – 

y =  डिपेंडेंट वेरिएबल (Dependent Variable)

M =  स्लोप (Slope) 

X =  इंडिपेंडेंट वेरिएबल (Independent Variable)

E = इंटरसेप्ट (Intercept)

इस समीकरण के मुताबिक, आप डिपेंडेंट वेरिएबल यानी Y की कीमत को इंडिपेंडेंट वेरिएबल X के जरिए निकाल सकते हैं। इसके लिए आपको X को Y के साथ के स्लोप से गुणा करना होगा और उसमें इंटरसेप्ट यानी को E जोड़ना होगा। 

इसे समझना थोड़ा मुश्किल है 

लेकिन मैं विस्तार से समझाने की कोशिश करता हूं। इसे मैं इसलिए भी समझा रहा हूं क्योंकि इस स्ट्रेट लाइन इक्वेशन (Straight Line Equation) का रिलेटिव वैल्यू ट्रेडिंग यानी RVT से बहुत गहरा संबंध है।

अब मान लीजिए कि दो लोग हैं जो अपनी सेहत को सुधारना चाहते हैं। उनको हम इस वक्त FF1 और FF2 कहते हैं। अब FF2 एक ऐसा इंसान है जो FF1 के मुकाबले थोड़ा ज्यादा मेहनत करने को तैयार है। अगर FF1 किसी दिन 5 पुश अप करता है तो FF2 उस दिन 10 करता है, इसी तरह से, अगर FF1 किसी दिन 20 पुश अप करता है तो FF2 उस दिन 40 पुशअप करता है। नीचे के टेबल में यह दिखाया गया है कि इन दोनों ने सोमवार से शनिवार तक कितने पुश अप किए हैं 

दिन FF1 FF2
सोमवार 30 60
मंगलवार 15 30
बुधवार 40 80
गुरूवार 20 40
शुक्रवार 10 20
शनिवार 15 ???

अब अगर आपको यह अनुमान लगाना हो कि शनिवार को FF2 कितने पुश अप करेगा तो यह बहुत आसान होगा। वो 30 पुश अप करेगा। 

इसका यह मतलब है कि FF2 कितने पुश अप करेगा यह एक तरीके से इस बात पर निर्भर करता है कि FF1 कितने पुश अप कर रहा है। FF1 को इस बात से कोई असर नहीं पड़ता कि FF2 क्या कर रहा है, वह जितने कर पाता है उतने पुश अप कर रहा है जबकि FF2 कोशिश कर रहा है कि वो  FF1 के मुकाबले दोगुने पुश अप कर ले।

तो इस वजह से FF2 एक डिपेंडेंट वेरिएबल बन जाता है और FF1 एक इंडिपेंडेंट वेरिएबल। तो, एक स्ट्रेट लाइन इक्वेशन (Straight Line Equation) में FF2 = Y औऱ FF1 = X,

FF2 = FF1 * M + E

साधारण भाषा में कहें तो, FF2 कितने पुश अप करेगा यह बराबर है, FF1 कितने पुश अप कर रहा है उसमें और एक संख्या के गुणा करने से मिले परिणाम और फिर उस परिणाम में एक अचर (Constant) को जोड़ने से मिलने वाली संख्या के।

इस संख्या को स्लोप (M) कहा जाता है, जो कि यहां पर 2 है, और वो अचर यानी E है 0, तो ये समीकरण हुआ 

FF2 = FF1 * 2 + 0

तो ये तो साफ हो गया होगा, अब पहले दी गयी परिभाषा को मैं वापस लाता हूं –

स्ट्रेट लाइन इक्वेशन यानी समीकरण के मुताबिक, आप डिपेंडेंट वेरिएबल यानी Y की कीमत को इंडिपेंडेंट वेरिएबल X के जरिए निकाल सकते हैं। इसके लिए आपको X को के साथ उसके स्लोप से गुणा करना होगा और उसमें इंटरसेप्ट यानि को जोड़ना होगा।

The straight line equations states, the value of a dependent variable ‘y’ can be derived from an independent variable ‘x’, by multiplying x by its slope with y’ and adding the intercept ‘e’ to this product.

अब एक दूसरा उदाहरण लेते हैं, 

दो भूखे इंसान हैं, H1 औऱ H2, लगभग FF1 और FF2 की तरह ही, H2 हमेशा H1 के मुकाबले दोगुने पराठों से 1.5 पराठे ज्यादा खाता है। उदाहरण के लिए, अगर H1 2 पराठे खाता है तो H2 4 पराठे और उसके साथ 1.5 पराठे खाएगा। H2 का पेट कितना भी भरा हो लेकिन वो ये 1.5 पराठे अधिक जरूर खाता है।

नीचे के टेबल में ये दिखाया गया है कि इन दोनों ने पिछले 6 दिनों में कितने पराठे खाए

 –

दिन H1 H2
सोमवार 2 5.5
मंगलवार 1.5 4.5
बुधवार 1 3.5
गुरूवार 3 7.5
शुक्रवार 3.5 8.5
शनिवार 4 ???

तो आप देख सकते हैं कि H2 ने हमेशा H1 के मुकाबले दोगुने पराठों से 1.5 पराठे ज्यादा खाए हैं, तो शनिवार को वह कितने पराठे खाएगा –

4*2 + 1.5 = 9.5 पराठे

याद रखिए कि H2 कितने पराठे खाएगा ये इस पर निर्भर करता है कि H1 ने कितने पराठे खाए हैं, जबकि H1 उतने पराठे ही खाता है जितनी उसको भूख है। तो इस आधार पर एक स्ट्रेट लाइन इक्वेशन बनाते हैं 

H2 = H1 * 2 + 1.5

यहां पर H2 एक डिपेंडेंट वेरिएबल बन जाता है जिसकी वैल्यू H1 पर निर्भर करती है, स्लोप है 2 और अचर यानी E है 1.5

हम इससे आगे बढ़ें यहां पर पराठे वाले उदाहरण में एक बदलाव करते हैं, Y को अपना वजन घटाने वाला व्यक्ति मान लेते हैं जो कि सिर्फ 1.5 पराठा ही खाता है चाहे उसे कितनी भी भूख लगी हो।

तो X अगर 3 पराठे खाता है तो भी Y 1.5 पराठे खाता है, X अगर 5 पराठे खाता है तो भी Y 1.5 पराठे खाता है और X अगर 2.5 पराठे खाता है तो भी Y 1.5 पराठे ही खाता है, तो अब समीकरण क्या होगा –

y = x*0 + 1.5

यहां पर स्लोप 0 है, इसलिए Y अब X पर निर्भर नहीं है, वास्तव में, Y की वैल्यू 1.5 पर स्थिर है। मुझे उम्मीद है कि अब तक आपको समझ आ गया होगा कि संख्याओं के दो समूहों में संबंध कैसे जोड़ सकते हैं।

अब संख्याओं के दो नए समूहों पर नजर डालते हैं – 

X Y
10 3
12 6
8 4
9 17
20 36
18 22

 यहां पर X इंडिपेंडेंट वेरिएबल है और Y डिपेंडेंट वेरिएबल है। तो क्या आपको इन दोनों में कोई संबंध दिखता है? सीधे तौर पर देखने से पता चलता है कि यहां पर X और Y में कोई भी संबंध नहीं है, कम से कम वैसा कोई संबंध नहीं है जैसा कि पिछले दोनों उदाहरणों में था। लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि इनमे कोई संबंध ही नहीं है, बस ये दिख नहीं रहा है।

तो अब इमनें संबंध कैसे स्थापित करें? यहां पर हम कैसे स्लोप और इंटरसेप्ट यानी E की वैल्यू कैसे निकालें?

इसके लिए काम आएगा लीनियर रिग्रेसन (Linear Regression)

इस पर हम अगले अध्याय में चर्चा करेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  • स्ट्रेट लाइन इक्वेशन यानी समीकरण के जरिए आप दो वेरिएबल में संबंध परिभाषित कर सकते हैं।
  • इन दोनों वेरिएबल में से डिपेंडेंट वेरिएबल होता है और दूसरा इंडिपेंडेंट वेरिएबल।
  • स्ट्रेट लाइन इक्वेशन में स्लोप यानी M हमें बताता है कि इंडिपेंडेंट वेरिएबल को कितना बढ़ाना है।
  • इस समीकरण में E हमें अचर संख्या को बताता है
  • अगर स्लोप 0 है तो फिर Y = ɛ
  • कई बार दो वेरिएबल में संबंध साफ दिखाई नहीं देता। 
  • जब दो वेरिएबल में संबंध साफ दिखाई नहीं देता तो लीनियर रिग्रेसन (Linear Regression) तकनीक का इस्तेमाल करके इस संबंध को पता किया जा सकता है।

 

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7.1 – याद रखें 

पिछले अध्याय के अंत में हमने डेंसिटी कर्व पर बात की थी और यह जाना था कि डेंसिटी कर्व की वैल्यू देख कर कैसे हमें पेयर ट्रेडिंग के मौके पता चल सकते हैं। इस अध्याय में हम सीखने की कोशिश करेंगे कि हम कैसे ट्रेडिंग के उन मौकों को पहचान सकें और एक वास्तविक ट्रेड कर सकें। साथ ही हम इससे जुड़ी हुई दूसरी बातें भी सीखेंगे। 

यहां पर मैं एक बार फिर से याद दिला दूं कि अभी पेयर ट्रेडिंग की जिस तकनीक पर हम चर्चा कर रहे हैं, वह ट्रेडिंग पेयर्स नाम की एक पुस्तक पर आधारित है और इसे लिखा है मार्क विसलर ने। इस तकनीक की अच्छी बात यह है कि यह काफी सीधी और सरल है। लेकिन इसकी सरलता ही मुझे पसंद नहीं आती है। इसीलिए मैंने अपने हिसाब से इस तकनीक में कुछ सुधार किया है और एक नई तकनीक बनाई है। जिस पर मैं अगले अध्याय से चर्चा शुरू करूंगा। 

शुरुआत में ही मैंने अपनी तकनीक इसलिए नहीं बताई क्योंकि मुझे लगता है कि मार्क विसलर की इस तकनीक से आपको पेयर ट्रेडिंग को समझने में आसानी होगी और उसके बाद अगर मैं जब एक कठिन तकनीक समझाऊंगा तो उसको समझना भी आपके लिए आसान हो जाएगा। मैं कोशिश करूंगा कि मैं मार्क विसलर की तकनीक पर अपनी चर्चा को इस अध्याय में समाप्त कर सकूं। जिससे मैं अगले अध्याय में नई तकनीक की शुरुआत कर सकूं। 

इसीलिए, अब इस अध्याय में मार्क विसलर की पेयर ट्रेडिंग की तकनीकी गहराइयों में जाने के बजाय सीधे इसके इस्तेमाल की तरफ बढ़ता हूं। देखते हैं कि इससे ट्रेड सेटअप कैसे किया जा सकता है।

7.2 – डेंसिटी कर्व का इस्तेमाल

डेंसिटी कर्व एक ट्रिगर की तरह काम करता है जिससे हम ट्रेड के मौके को पहचानते हैं। यहां मैं आपका ध्यान दो चीजों की तरफ दिलाना चाहता हूं।

  1. डेंसिटी कर्व को एक टाइम सीरीज डेटा के आधार पर निकाला जाता है। हमारे संदर्भ में यह टाइम सीरीज डेटा रेश्यो का है। जैसा कि आपने पिछले अध्याय में देखा था कि डेंसिटी कर्व का मुख्य इनपुट –  रेश्यो के टाइम सीरीज का डेटा, रेश्यो का मीन और रेश्यो का स्टैंडर्ड डेविएशन होता है। 
  2. डेंसिटी कर्व की वैल्यू 1 से 0 के बीच में होती है और डेंसिटी कर्व हमें रेश्यो के मीन तक वापस जाने की संभावना या प्रोबेबिलिटी (probability) को बताता है। 

हो सकता है कि कुछ लोगों को ऊपर का यह दूसरा प्वाइंट ठीक से समझ में ना आए। लेकिन मुझे पक्का विश्वास है कि आगे चलते हुए यह आपको समझ में आ जाएगा। 

अभी कुछ समय के लिए फिर से नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन पर नजर डालते हैं।  

आमतौर पर किसी भी टाइम सीरीज डेटा ((जैसे रेश्यो) का एक औसत/माध्य (यानी मीन) वैल्यू होता है। उदाहरण के तौर पर हमारे रेश्यो की टाइम सीरीज का मीन या औसत 1.87 है। (इसे हमने पिछले अध्याय में कैलकुलेट किया था)। ज्यादातर समय रेश्यो इस मीन वैल्यू या औसत के आस-पास ही रहता है। अगर रेश्यो अपने मीन वैल्यू यानी औसत से दूर चला जाता है तो आप यह उम्मीद कर सकते हैं कि रेश्यो वापस मीन की तरफ लौटेगा। 

उदाहरण के तौर पर अगर रेश्यो की मौजूदा वैल्यू 2.5 है तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि कुछ समय बाद रेश्यो वापस 1.87 के पास पहुंचेगा। इसी तरीके से अगर रेश्यो की वैल्यू अपने मीन से काफी नीचे चली जाती है तो भी वह वापस मीन पर लौट आती है।

अब सवाल यह है कि जब रेश्यो मीन से दूर चला जाता है (जो कि करीब-करीब हर बार, हर दिन होता है) तो क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे हम यह नाप सकें कि रेश्यो के मीन तक लौटने की संभावना कितनी है।

उदाहरण के तौर पर अगर रेश्यो 2.5 पर है और हम जानते हैं कि यह वापस 1.87 पर जाएगा, तो ऐसा होने की संभावना कितनी है 10%, 20% या 90% । 

डेंसिटी कर्व इसी काम में मदद करता है। डेंसिटी कर्व की वैल्यू हमें बताती है कि स्टैंडर्ड डेविएशन के हिसाब से रेश्यो मीन से कितना दूर गया है। अब अगर हमें स्टैंडर्ड डेविएशन के हिसाब से वैल्यू पता है तो साथ में उसकी प्रोबेबिलिटी या संभावना भी पता चल जाती है क्योंकि ये दोनों साथ जुड़े होते हैं। फिर, उसी के हिसाब से हम अपना ट्रेड सेटअप कर सकते हैं। 

इसे एक उदाहरण से समझते हैं 

इस डेटा को देखिए – 

नया/नवीनतम रेश्यो –  2.87 

रेश्यो का मीन – 1.87 

डेंसिटी कर्व – 0.92

इस डेटा को आप इस तरह से समझ सकते हैं – डेंसिटी कर्व के 0.92 पर होने का मतलब है कि 2.87 पर चला गया रेश्यो करीब 2nd स्टैंडर्ड डेविएशन तक चला गया है और इसीलिए इस बात की 95% संभावना है कि 2.87 से रेश्यो वापस 1.87 पर आ जाएगा। 

हमने यह निष्कर्ष कैसे निकाला कि रेश्यो के 2.87 तक जाने का मतलब है कि यह 2nd स्टैंडर्ड डेविएशन तक चला गया है? वास्तव में, इसके लिए हमने सिर्फ डेंसिटी कर्व की वैल्यू को देखा जो कि 0.92 है।

डेंसिटी कर्व की 0 से 1 के बीच की वैल्यू ही हमें स्टैंडर्ड डेविएशन का भी पता बताती है। उदाहरण के तौर पर देखिए – 

  1. डेंसिटी कर्व का 0.16 होने का मतलब है कि यह -1 स्टैंडर्ड डेविएशन पर है और यह मीन से नीचे है।
  2. डेंसिटी कर्व के 0.84 पर होने का मतलब है कि यह + 1 स्टैंडर्ड डेविएशन पर है और मीन से ऊपर है।
  3. डेंसिटी कर्व पर 0.997 होने का मतलब है कि यह 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन पर है और मीन से ऊपर है। 

एक बार स्टैंडर्ड डेविएशन पता चल जाता है तो हमें प्रोबेबिलिटी या संभावना भी पता चल जाती है। 

आपके दिमाग में यह सवाल उठ सकता है कि हमने 0.16, 0.84, 0.997 कहां से लिया? वास्तव में ये सब स्टैंडर्ड डेविएशन की वैल्यू है। लेकिन अभी इस पर चर्चा करने का समय नहीं है, मैं आपको इसका एक टेबल बनाकर दे रहा हूं जिसे आप इस्तेमाल कर सकते हैं – 

डेंसिटी कर्व की वैल्यू स्टैंडर्ड डेविएशन से दूरी मीन तक लौटने की संभावना/Probability
0.16 – 1 SD 65%
0.025 – 2 SD 95%
0.003 –  3 SD 99.7%
0.84 + 1 SD 65%
0.974 + 2 SD 95%
0.997 + 3 SD 99.7%

 

ऊपर के टेबल में हम जान सकते हैं कि अगर डेंसिटी कर्व 0.19 के पास है तो रेश्यो – 1 स्टैंडर्ड डेविएशन के पास है, इसलिए इसके मीन तक वापस जाने की संभावना करीब 65% है। अगर डेसिटी कर्व की वैल्यू 0.999 है तो यो – 3 स्टैंडर्ड डेविएशन के पास है और इसके मीन तक वापस लौटने की संभावना 99.7% है। 

इसी तरीके से इस टेबल का इस्तेमाल किया जा सकता है। 

7.3 – पहला पेयर ट्रेड 

तो अब समय आ गया है कि हम अपने पहले पेयर ट्रेड को शुरू करें। यहां कुछ बातें याद रखनी होंगी –

  1. रेश्यो को निकालने के लिए स्टॉक A की कीमत को स्टॉक B की कीमत से विभाजित किया जाता है। हमारे उदाहरण में स्टॉक A एक्सिस बैंक है और स्टॉक B है ICICI बैंक, इसलिए रेश्यो = एक्सिस बैंक / ICICI बैंक 
  2. रेश्यो हर दिन बदलता है और यह बदलाव इसलिए आता है क्योंकि एक्सिस बैंक और ICICI बैंक के स्टॉक की कीमत बदलती रहती है 
  3. रेश्यो और डेंसिटी कर्व की वैल्यू को भी हर दिन निकालना या कैलकुलेट करना पड़ता है 

यहां पर हमारी ट्रेडिंग फिलॉसफी (Philosophy) है – 

  1. अगर दो बिजनेस एक ही तरीके से काम करते हैं और उनके बिजनेस का माहौल एक ही है, जैसे एक्सिस बैंक और ICICI बैंक, तो उनके स्टॉक कीमत एक तरह से चलती है। 
  2. बिजनेस के माहौल में होने वाला कोई भी बदलाव इन दोनों स्टॉक की कीमतों पर असर डालेगा।
  3. किसी एक कंपनी को प्रभावित करने वाली कोई घटना केवल उस कंपनी की कीमत पर असर डालेगी और उसकी कीमत की चाल में बदलाव होगा, ऐसे दिनों में स्टॉक का रेश्यो भी बदलेगा।
  4. हमें ऐसे बदलाव को ही देखना है क्योंकि उससे ही ट्रेडिंग के सही मौके निकलते हैं। 

तो, यहां पर दिख रहा है कि पेयर ट्रेडर हमेशा रेश्यो और उससे जुड़े डेंसिटी कर्व की वैल्यू को ट्रैक करता है। जब भी रेश्यो (और डेंसिटी कर्व) मीन से एक अच्छी खासी दूरी पर चले जाते हैं तो फिर ट्रेड सेट अप किया जाता है।   

इसके साथ अगला सवाल यह है कि वो अच्छी खासी दूरी क्या है, या डेंसिटी कर्व की वो वैल्यू क्या हो जब हम ट्रेड की शुरुआत करें? 

यहां पर मैं इसके कुछ सामान्य नियम दे रहा हूं –

 –

कौन सा ट्रेड ट्रिगर (डेसिटी कर्व) स्टैंडर्ड डेविएशन टारगेट स्टॉप लॉस
लांग 0.025 & 0.003 के बीच 2nd & 3rd के बीच 0.25 या नीचे 0.003 या ऊपर
शॉर्ट 0.975& 0.997 के बीच 2nd & 3rd के बीच 0.975 या नीचे 0.997 या ऊपर

 

ट्रेड शुरू करते वक्त कोशिश यह की जानी चाहिए कि जब रेश्यो 2nd और 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन के बीच में हो, तभी ट्रेड को शुरू किया जाना चाहिए। जब रेश्यो दूसरे स्टैंडर्ड डेविएशन से नीचे चला जाए तो पोजीशन को स्क्वेयर ऑफ कर देना चाहिए। वैसे यह मीन के जितना पास जाएगा आप का मुनाफा उतना ही ज्यादा होगा। 

अब ऊपर के इस टेबल के आधार पर एक ट्रेड सेटअप करते हैं। इसके लिए मेरी सलाह ये है कि आप पिछले अध्याय के अंत में दिए गए एक्सेल शीट को डाउनलोड कर लें। 

25 अक्टूबर 2017 को डेंसिटी कर्व की वैल्यू थी 0.05234 और उस समय रेश्यो था 1.54, लॉन्ग पेयर ट्रेड के लिए यह एक ठीक-ठाक सेट अप है। लेकिन यह लॉन्ग ट्रेड की परिभाषा में फिट नहीं बैठता (इसके लिए डेंसिटी कर्व 0.025 से 0.003 के बीच में होना चाहिए) लेकिन इस टाइम सीरीज में सबसे अच्छी वैल्यू यही है। 

अगर रेश्यो स्टॉक A को स्टॉक B की कीमत से विभाजित करने पर मिल रहा है तो –

  1. एक लॉन्ग ट्रेड में आपको स्टॉक A को खरीदना है और स्टॉक B को बेचना है 
  2. शॉर्ट ट्रेड में आपको स्टॉक A को बेचना है स्टॉक B को खरीदना है 

हमने रेश्यो को एक्सिस / ICICI  की 25 अक्टूबर की क्लोजिंग के आधार पर निकाला है इसलिए 

  1. एक्सिस बैंक को 473 रुपये की कीमत पर खरीदें 
  2. ICICI को 305.7 रुपये के रेट पर बेचें

एक्सिस का लॉट साइज 1200 है इसलिए कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू होगी 1200 * 473 = 567,600, ICICI का लॉट साइज 2750 है इसलिए कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू होगी 2750 * 305.7 = 840,675/

आमतौर पर कोशिश यह होनी चाहिए कि लॉन्ग और शॉर्ट दोनों ट्रेड की रुपए में कीमत एक बराबर हो।  इसे रूपी न्यूट्रैलिटी (Rupee Neutrality) कहते हैं। लेकिन अभी इसको मैं चर्चा इस पर नहीं करूंगा। जब हम पेयर ट्रेडिंग की अगली तकनीक पर बात करेंगे तो इस सिद्धांत पर चर्चा करेंगे। 

एक बार आपका ट्रेड सेटअप हो गया तो हमें पेयर के मीन की तरफ वापस लौटने का इंतजार करना होता है। सैद्धांतिक तौर पर सबसे अच्छा पेयर ट्रेड तब होता है जब आप इसे 3rd स्टैंडर्ड देविएशन के पास शुरू करें और रेश्यो के मीन तक जाने का इंतजार करें। लेकिन कई बार ये इंतजार काफी लंबा होता है। ऐसे में, मार्क टू मार्केट (MTM) काफी परेशानी देता है। जिसके पास मार्क टू मार्केट (MTM) की इस समस्या को झेलने के लिए ज्यादा रकम ना हो उसे यह पेयर ट्रेड जल्दी बंद करना पड़ता है। 

31 अक्टूबर 2017 को यह रेश्यो 1.743 तक चला गया और उसके हिसाब से डेंसिटी कर्व की वैल्यू हो गई 0.26103 जो कि हमारे टारगेट के काफी करीब है। इसलिए हम इस ट्रेड को यहां पर बंद कर सकते हैं। हम एक्सिस बैंक को 523 के रेट पर बेचेंगे और ICICI बैंक को 300.1 के रेट पर खरीदेंगे। इस ट्रेड का P&L  होगा

 

तिथि स्टॉक ट्रेड लॉट साइज स्क्वेयर ऑफ तारीख स्क्वेयर ऑफ कीमत P&L
9th Aug Axis Bank Sell @ 574.1 1200 8th Sept Buy @ 571 3.1*1200 = 3.72K
9th Aug ICICI Bank Buy @ 245.3 2750 8th Sept Sell @276.33 31.03*2750 = 85.3K
कुल P&L Rs.89,052/-

 

यहां पर आपको दिखेगा कि ज्यादातर मुनाफा एक्सिस बैंक से आ रहा है, जिसका मतलब यह है कि एक्सिस बैंक अपने आम ट्रेडिंग पैटर्न से दूर चला गया था। 

अब एक शॉर्ट ट्रेड को देखते हैं 

9 अगस्त 2016 को डेंसिटी कर्व की वैल्यू थी 0.99063156 जो कि शॉर्ट ट्रेड शुरू करने के लिए ठीक वैल्यू है। याद रखिए कि शॉर्ट ट्रेड में हम एक्सिस बैंक को बेचेंगे और ICICI को खरीदेंगे। 

अगर आपके लिए यह याद रखना मुश्किल हो रहा हो कि किस को खरीदना है और किस को बेचना है, तो आप इसको इस तरह से याद रख सकते हैं – जो स्टॉक विभाजित हो रहा है वो यानी न्यूमैरेटर (Numerator/अंश) स्टॉक ज्यादा महत्वपूर्ण स्टॉक होता है। इसलिए पेयर ट्रेड में जब आप लॉन्ग जाते हैं तो आप ऊपर वाले यानी न्यूमैरेटर स्टॉक को खरीदते हैं। इसी तरीके से जब पेयर ट्रेड में आप शॉर्ट जा रहे होते हैं तो आप न्यूमैरेटर (Numerator/अंश) को शॉर्ट करते हैं। आप जो कुछ भी न्यूमैरेटर स्टॉक के साथ करते हैं उसका उल्टा आपको डिनॉमिनेटर ( Denominator/ विभाजक) यानी नीचे वाले स्टॉक के साथ करना होता है। 

इसीलिए हम एक्सिस बैंक (Numerator/अंश) को बेच रहे हैं और ICICI बैंक ( Denominator/ विभाजक)  को खरीद रहे हैं। 

इस ट्रेड का विवरण है –

  • शॉर्ट एक्सिस बैंक @ 574.1
  • ICICI बैंक को खरीदें @ 245.35
  • रेश्यो – 2.34
  • डेंसिटी कर्व की वैल्यू – 0.99063156

इस ट्रेड को बंद करने का मौका मिला 8 सितंबर को, मतलब यह ट्रेड करीब 1 महीने तक खुला रहा। बंद करते समय इस ट्रेड का विवरण इस प्रकार था –

  • एक्सिस बैंक खरीदा  @ 571
  • ICICI बैंक को बेचा @ 276.33
  • रेश्यो – 2.27
  • डेंसिटी कर्व की वैल्यू – 0.979182

कुछ लोगों को यह लग सकता है कि इस ट्रेड में थोड़ा और इंतजार करना चाहिए था, ताकि डेंसिटी कर्व और ज्यादा नीचे गिर जाता। लेकिन जैसा मैंने कहा था कि पेयर ट्रेड में हमेशा इस बात का संतुलन बना कर रखना होता है कि समय कितना दे रहे हैं और मार्क टू मार्केट कितना है। 

इस ट्रेड का P&L ऐसा है – 

 

तिथि स्टॉक ट्रेड लॉट साइज स्क्वेयर ऑफ तारीख स्क्वेयर ऑफ कीमत P&L
9th Aug Axis Bank Sell @ 574.1 1200 8th Sept Buy @ 571 3.1*1200 = 3.72K
9th Aug ICICI Bank Buy @ 245.3 2750 8th Sept Sell @276.33 31.03*2750 = 85.3K
कुल P&L Rs.89,052/-

 

आपको फिर दिखेगा की ज्यादा कमाई एक ही स्टॉक यानी ICICI से से हो रही है, जिसका मतलब है कि ICICI का स्टॉक अपने आम रास्ते से दूर चला गया था।

यहां पर मैं एक बात कबूल करता हूं कि इन दोनों ही ट्रेड में हमने उस टेबल का अनुसरण नहीं किया है जिसको हमने ट्रेड में इंटर और एग्जिट करने की गाइडलाइन के तौर पर बनाया था। लेकिन मैंने पहले भी कहा था कि इस टेबल का इस्तेमाल आपको एक गाइडलाइन के तौर पर करना है और इसके बाद आपको अपने अनुभव से सीखना है। 

मैं आपसे कहूंगा कि आप एक्सिस और ICICI बैंक में इस के तरह से और उदाहरण को भी देखें। 

मुझे यहां लगता है कि इस ट्रेड में हुआ मुनाफा यानी इसका P&L आपको इस बात के लिए प्रोत्साहित करेगा कि आप पेयर ट्रेडिंग के बारे में और जानें और इसका इस्तेमाल करें। अब मैं अपनी बात यहां बंद कर रहा हूं और आपके लिए कुछ जरूरी प्वाइंट छोड़कर जा रहा हूं

  1.  अभी तक आपने जो कुछ सीखा है वह उसका सिर्फ 25% है जो मैं आपको आगे बताने वाला हूं।
  2. अब तक शुरू के 7 अध्यायों में मैंने पेयर ट्रेडिंग की जिस तकनीक पर चर्चा की है वह बहुत ही साधारण और बेसिक है। लेकिन मैंने इसके जरिए आपके लिए एक भूमिका तैयार करने की कोशिश की है। 
  3. मैंने ट्रेड के स्टॉपलॉस और टारगेट जैसी चीजों की तय परिभाषा के हिसाब से काम नहीं किया है। मैंने सब कुछ बहुत ही सरल तरीके से समझाया है। 
  4. दोनों पोजीशन के लिए न्यूट्रैलिटी बहुत जरूरी चीज है लेकिन मैंने अभी तक उस पर चर्चा नहीं की है।
  5. मैंने पेयर ट्रेडिंग से जुड़े हुए रिस्क पर भी चर्चा नहीं की है।
  6. पेयर ट्रेडिंग में मार्जिन के लिए बहुत सारा पैसा लगता है। इसलिए पेयर ट्रेड करने के पहले आपके पास काफी पैसे होने चाहिए लेकिन इसका P&L इस निवेश की भरपाई कर देता है। 
  7. किसी भी पेयर में आपको साल में दो या तीन बार ही मौके या सिग्नल मिलते हैं, इसलिए आपको कई पेयर को ट्रैक करना होगा जिससे आपको लगातार मौके मिलते रहें। 

मुझे उम्मीद है कि अब आप पेयर ट्रेडिंग के बारे में और अधिक जानना चाहेंगे। 

एक्सेल शीट को आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं।Download

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. किसी पेयर ट्रेड को शुरू करने के लिए डेंसिटी कर्व एक ट्रिगर के तौर पर काम करता है। 
  2. पेयर ट्रेड तब शुरू किया जाता है जब रेश्यो जब रेश्यो 2nd और  3rd स्टैंडर्ड डेविएशन के बीच में हो।
  3. एक पेयर ट्रेड को तब बंद कर दिया जाता है जब रेश्यो वापस मीन की तरफ लौट जाए। 
  4. लॉन्ग पेयर ट्रेड में आपको न्यूमैरेटर को खरीदना होता है और डिनॉमिनेटर को बेचना होता है। 
  5. शॉर्ट पेयर ट्रेड में आपको न्यूमैरेटर को बेचना होता है और डिनॉमिनेटर को खरीदना होता है।
  6. आमतौर पर पेयर ट्रेड के P&L में ज्यादा कमाई किसी एक स्टॉक से होती है जो कि पेयर की आम चाल से काफी दूर चला गया हो। 
  7. एक पेयर ट्रेड काफी लंबा हो सकता है लेकिन उससे होने वाला P&L इस इंतजार की कीमत चुका देता है।
  8. पेयर ट्रेडिंग में बहुत ज्यादा मार्जिन मनी देनी पड़ती है।

 

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PTM 1, C4 – डेन्सिटी कर्व https://zerodha.com/varsity/chapter/ptm-1-c4-%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5/ https://zerodha.com/varsity/chapter/ptm-1-c4-%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5/#comments Mon, 13 Jul 2020 05:22:26 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8339 6.1 – एक बार फिर  सबसे पहले अब तक जो कुछ हमने सीखा है उसको एक बार दोहरा लेते हैं जिससे किसी के दिमाग में कोई संशय ना रहे। मेरी सलाह यह होगी कि आप इसको ठीक से पढ़ें।  अगर दो कंपनियां एक ही तरीके के बिजनेस माहौल (बैकग्राउंड) में काम करती हैं उनकी तुलना […]

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6.1 – एक बार फिर 

सबसे पहले अब तक जो कुछ हमने सीखा है उसको एक बार दोहरा लेते हैं जिससे किसी के दिमाग में कोई संशय ना रहे। मेरी सलाह यह होगी कि आप इसको ठीक से पढ़ें। 

  • अगर दो कंपनियां एक ही तरीके के बिजनेस माहौल (बैकग्राउंड) में काम करती हैं उनकी तुलना की जा सकती है।
  • बिजनेस का माहौल या बैकग्राउंड उन चीजों को कहते हैं जो बिजनेस चलाने में हर दिन सामने आती हैं। 
  • अगर दो कंपनियों का बिजनेस बैकग्राउंड एक जैसा है तो यह माना जा सकता है कि उन दोनों के शेयरों की कीमत करीब-करीब एक जैसी चाल दिखाएगी।
  • अगर दो कंपनियों की शेयर की कीमत हर दिन एक जैसी चलती है और उन उनका डेली रिटर्न भी एक जैसा दिखता है तो इससे पता चलता है कि उन दोनों में एक मजबूत कोरिलेशन है। 
  • कई बार, कोई एक घटना इन दोनों में से किसी एक कंपनी की कीमत की चाल में बदलाव ला सकती है और तब वहां एक पेयर ट्रेडिंग का मौका बनता है। 
  • किन्हीं दो कंपनियों के बीच के संबंध का अनुमान लगाने के लिए किन्हीं भी तीन अवयवों – स्प्रेड, डिफरेंशियल या फिर रेश्यो – का इस्तेमाल किया जा सकता है। 
  • ऐसा माना जाता है कि ये तीनों अवयव नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूट होंगे इसलिए उनका स्टैंडर्ड डेविएशन निकाला जाता है। साथ ही उनके कुछ सांख्यिकी आंकड़े जैसे मीन, मीडियन और मोड भी निकाले जाते हैं। 
  • इसके अलावा, पेयर पर हमेशा नजर रखने के लिए हम स्टैंडर्ड डेविएशन टेबल भी बना सकते हैं जो दोनों तरफ 3rd स्टैंडर्ड देविएशन तक जा सकता है। 
  • अंत में यही याद रखिए कि हम पेयर ट्रेडिंग के दो अलग-अलग तरीकों पर चर्चा करने वाले हैं। पहला है पॉल विसलर की पेयर ट्रेडिंग तकनीक और इसके बाद मैं एक थोड़ी कठिन पेयर ट्रेडिंग की तकनीक पर चर्चा करूंगा।

तो हमने अब तक यह सब जान लिया है। अब इस अध्याय में हम आगे डेन्सिटी कर्व (Density Curve) और पेयर ट्रेडिंग के ट्रिगर पर चर्चा करेंगे।

6.2 – सही अवयव को चुनना

अब हम उस जगह पर आ गए हैं जहां पर हमें स्प्रेड, डिफरेंशियल और रेश्यो के बीच में से किसी एक अवयव (Variable) को चुनना होगा। 

ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि हम चाहते हैं कि हम कोई एक कार्यप्रणाली बनाएं। ऐसा ना हो कि हम बहुत सारी चीजों में उलझ जाएं और हमें अलग-अलग सिग्नल मिलने लगें। मैंने आपको तीनों के बारे में इसलिए बताया था ताकि आपको यह पता चल सके कि इनमें से किसी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन एक ट्रेडर के तौर पर आपको तय करना होगा कि इनमें से आप किसका इस्तेमाल सबसे अच्छे से कर सकते हैं और किस पर आपको भरोसा है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे डिफरेंशियल या स्प्रेड के मुकाबले रेश्यो ज्यादा पसंद है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुझे यह पता है कि रेश्यो में शेयर की कीमत यानी स्टॉक की ताजा वैल्यूएशन भी शामिल रहती है। इसके अलावा रेश्यो से हमें यह अनुमान भी मिलता है कि स्टॉक 2 के संदर्भ में स्टॉक 1 की कितनी मात्रा को खरीदा या बेचा जाए। 

उदाहरण के तौर पर अगर स्टॉक 1 की कीमत 190 है और स्टॉक 2 की कीमत 80 है तो स्टॉक 1 और स्टॉक 2 का रेश्यो होगा – 

190 / 80

2.375

इसका मतलब है कि स्टॉक 1 के हर शेयर के मुकाबले स्टॉक 2 के 2.375 शेयर का सौदा करना चाहिए। इसके बारे में हम विस्तार से आगे चर्चा करेंगे। लेकिन उम्मीद है कि अभी आपको एक संकेत मिल गया होगा 

आप स्प्रेड, डिफरेंशियल या रेश्यो में से किसी  एक का चुनाव कर सकते हैं। लेकिन अपनी चर्चा के लिए मैं अभी रेश्यो के साथ आगे बढ़ रहा हूं।

6.3 – ट्रेड का ट्रिगर

आप जानते ही हैं कि पेयर का मतलब होता है जोड़ा यानी इसमें दो स्टॉक होते हैं। अब तक हमने इस बात पर चर्चा नहीं की है कि पेयर को कैसे खरीदा या बेचा जा सकता है। हम अध्याय में आगे इस पर चर्चा करेंगे। फिलहाल के लिए आप सिर्फ यह मान लीजिए कि जैसे आप किसी एक स्टॉक को खरीदते या बेचते हैं ठीक उसी तरीके से पेयर को भी खरीद या बेच सकते हैं। 

जैसा कि आपको पता है कि किसी पेयर को खरीदने या बेचने का फैसला उस वैरिएबल के आधार पर होता है जिसको आप ट्रैक कर रहे होते हैं। ये वेरिएबल स्प्रेड, डिफरेंशियल या रेश्यो में से कुछ भी हो सकता है। इस अध्याय में अपनी चर्चा के लिए हमने रेश्यो को चुना है 

आप जानते हैं कि स्टॉक की कीमत हर दिन बदलती है और इस वजह से पेयर का रेश्यो भी हर दिन बदलता है। ज्यादातर समय यह रेश्यो एक निश्चित दायरे या रेंज में रहता है। लेकिन कभी कभी ऐसा दिन भी आ सकता है जब उस दिन का बदलाव उस दायरे से बाहर निकल जाए। यही वह दिन होता है जब पेयर ट्रेडिंग का मौका होता है। 

नीचे के चार्ट पर नजर डालिए – 

चार्ट पर एक सरसरी नजर डालने पर भी दो बातें सामने दिखाई देंगी – 

  1. रेश्यो का चार्ट 1.8 से 2 के बीच में घूम रहा है, हो सकता है कि इस रेश्यो का मीन इसके आसपास हो। इसे मैंने हरे रंग की रेखा से दिखाया है। मेरी सलाह होगी कि पिछले अध्यायों में जहां हमने रेश्यो के मीन की गणना की थी, वहां पर जाकर आप उसे देखें।
  2. ज्यादातर समय रेश्यो मीन के ऊपर या नीचे रहता है 

अब यहां पर एक बहुत महत्वपूर्ण बात पर आपको विचार करना है। अगर आप इस बात को समझ गए तो पेयर ट्रेडिंग से जुड़ी बाकी बातें समझना आपके लिए काफी आसान होगा। 

रेश्यो को एक स्टॉक की कीमत को दूसरे स्टॉक की कीमत से विभाजित करके निकाला जाता है, क्योंकि स्टॉक की कीमत हर दिन बदलती रहती है इसलिए रेश्यो भी हर दिन बदलता रहता है। अगर आप रेश्यो में हर दिन होने वाले बदलाव का एक चार्ट बनाएं तो आपको दिखेगा कि रेश्यो का एक औसत यानी मीन (Mean) होता है और ये उसके ऊपर या नीचे ही घूमता रहता है। रेश्यो आज कहीं भी हो, मीन के नीचे या मीन के ऊपर, लेकिन इस बात की संभावना हमेशा रहती है कि अगले कुछ दिनों में रेश्यो मीन पर वापस आ जाए। यहां ध्यान दीजिए कि मैंने कहा है कि इस बात की काफी संभावना रहती है, इसका मतलब है कि हम इस संभावना को यानी प्रोबेबिलिटी को नाप सकते हैं। 

जब ऐसा होता है तो इसे मीन रिवर्जन (Mean Reversion) या रिवर्जन टू मीन (Reversion to Mean) कहते हैं

मैंने चार्ट में उन दो बिंदुओं को लाल रंग से घेरा है जहां पर रेश्यो मीन से दूर चला गया है। बाएं तरफ से पहला गोला उस जगह पर है जहां पर रेश्यो मीन से काफी दूर ऊपर चला गया है। बाएं तरफ ही दूसरा गोला वह जगह दिखाता है जहां पर रेश्यो मीन वैल्यू से नीचे चला गया है। हालांकि दोनों ही बार अंत में रेश्यो मीन के पास वापस आ गया। 

अगर आप इसे दूसरी नजर से देखें तो, इसके आधार पर हम एक राय बना सकते हैं कि रेश्यो किस दिशा में चलने वाला है। उदाहरण के तौर पर- पहले घेरे में, जब रेश्यो औसत या मीन से ऊपर चला गया था तो ये स्थिति हमें बताती है कि रेश्यो वापस मीन की तरफ जाएगा। दूसरे शब्दों में, उस ऊंचाई पर आप रेश्यो को शॉर्ट कर सकते हैं और जब वो नीचे वापस मीन के पास आए तो उसे खरीद सकते हैं। इसी तरीके से दूसरे गोले के पास वह मौका बनता है जहां पर आप रेश्यो को खरीद सकते हैं और उम्मीद कर सकते हैं रेश्यो वापस ऊपर मीन के पास जाएगा। 

आपको रेश्यो को एक स्टॉक या फ्यूचर के तौर पर देखना है। अगर हमें यह पता है कि रेश्यो के चाल की दिशा क्या होगी तो हम आसानी से उसके चाल की दिशा के हिसाब से अपने सौदे लगा सकते हैं यानी ट्रेड कर सकते हैं। 

मुझे उम्मीद है कि यह बात आपको समझ में आ गयी होगी 

मीन के मुकाबले रेश्यो कहां पर है, इसी से हमें ट्रेड का ट्रिगर मिलता है। अगर रेश्यो –

  • मीन से ऊपर है तो यह उम्मीद की जा सकती है कि रेश्यो वापस मीन की तरफ जाएगा इसलिए आप रेश्यो को शॉर्ट कर सकते हैं 
  • मीन के नीचे है तो इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि रेश्यो वापस से ऊपर की तरफ मीन के पास जाएगा इसलिए यहां पर हम रेश्यो पर लॉन्ग कर सकते हैं। 

अब कुछ सवाल – 

  1. रेश्यो हमेशा मीन के ऊपर या नीचे होता है, तो क्या इसका मतलब यह है कि हर समय वहां एक ट्रेडिंग का मौका है ? 
  2. बहुत सारी जगह पर ऐसा लगता है कि रेश्यो ने या तो बॉटम बना लिया है या तो पीक यानी ऊंचाई पर है, हमें कैसे पता कि कहां पर ट्रेड शुरू करना चाहिए? 

इन सवालों का जवाब जिस चीज से मिलता है उसे डेंसिटी कर्व कहते हैं। आइए उसे देखते हैं।

6.4 – डेंसिटी कर्व – Density Curve

इस चार्ट पर नजर डालिए –

मैंने इस चार्ट पर चार बिंदुओं को हाईलाइट किया है। इन सभी जगहों पर रेश्यो मीन के ऊपर ट्रेड कर रहा है। मान लीजिए आप चार्ट को उस जगह पर देखते हैं जहां पर मैंने पहला गोला बनाया है। यहां पर क्या सिर्फ इसलिए आप अपना ट्रेड शुरू करेंगे क्योंकि रेश्यो मीन के ऊपर है? जब भी रेश्यो मीन के ऊपर या नीचे होता है तो यह सवाल उठ सकता है। 

अगर हम इस तरह का ट्रेड कर पाएं तो यह बहुत अच्छी बात होगी। लेकिन इसके लिए रेश्यो को बहुत करीब से देखना होगा और ट्रेड को तब शुरु करना होगा जब मीन रिवर्जन (Mean Reversion) की संभावना सबसे ज्यादा हो। मतलब हमें ट्रेड तब शुरु करना होगा जब हम बहुत ज्यादा आश्वस्त हों कि रेश्यो मीन के पास बहुत जल्दी आएगा। 

यह एकदम वैसा ही है जैसे एक शेर झाड़ियों में छुपा हो और अपने शिकार पर झपटने वाला हो। सिर्फ इस वजह से, क्योंकि शिकार खुले में है शेर उस पर हमला नहीं करेगा और उसको मारने का मौका हाथ से नहीं गंवाएगा। वह हमला तभी करेगा जब वो पूरी तरह से आश्वस्त हो कि वह शिकार को मार पाएगा। 

तो हम हमला करने की तैयारी में कैसे रहें और कैसे सही समय पर हमला करें यह जानना जरूरी है। 

इसके लिए हमें एक बार फिर से नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन और इसकी विशेषताओं पर नजर डालनी होगी। मुझे उम्मीद है कि आपको इसके बारे में पता होगा। फिर भी इस पर संक्षेप में नजर डाल लेते हैं –  

  • 1st स्टैंडर्ड डेविएशन में आप 68% डेटा को देख सकते हैं 
  • 2nd स्टैंडर्ड डेविएशन में आप 95% डेटा को देख सकते हैं 
  • 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन में आप 99.7% डेटा को देख सकते हैं

तो रेश्यो के संदर्भ में इसका इस्तेमाल कैसे होगा – 

  • रेश्यो मीन के मुकाबले कहीं पर भी हो, उसका अपना एक स्टैंडर्ड डेविएशन होता है। उदाहरण के तौर पर हो सकता है कि रेश्यो मीन से कुछ प्वाइंट ही दूर हो और ये दूरी मीन से 0.5 स्टैंडर्ड डेविएशन पर हो 
  • अगर रेश्यो 2nd स्टैंडर्ड डेविएशन तक चला जाता है तो नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन के हिसाब से वहां पर इस बात की सिर्फ 5% संभावना है कि वो और ऊपर जाएगा। इसका मतलब यह है कि 95% संभावना इस बात की है कि रेश्यो मीन की तरफ वापस लौटेगा।
  • इसी तरह से अगर रेश्यो 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन की तरफ जाता है तो इस बात की संभावना 0.3% ही है कि वह और ऊपर जाएगा। हम यह कह सकते हैं कि 99.7% संभावना इस बात की है कि रेश्यो मीन की तरफ ही जाएगा।

तो हर स्टैंडर्ड डेविएशन पर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि रेश्यो के मीन के पास जाने की कितनी संभावना है। इसका मतलब है कि जब भी हमें मौका दिखाई दे तो हम यह पता कर सकते हैं कि यहां पर ट्रेड करने के सफल होने की संभावना कितनी है और सफलता की अच्छी संभावना होने पर ही ट्रेड शुरु कर सकते हैं। 

एक और महत्वपूर्ण बात निकलती है कि रेश्यो मीन के मुकाबले कहां है-सिर्फ इसके आधार पर ट्रेड नहीं किया जा सकता, स्टैंडर्ड डेविएशन को भी देखना होता है। यानी हम यह कह सकते हैं कि रेश्यो को हर दिन ट्रैक करने के बजाय हम अगर रेश्यो के स्टैंडर्ड डेविएशन को हर दिन ट्रैक करें तो ज्यादा अच्छा होगा। 

इस ट्रैकिंग में हमारे काम आता है- डेंसिटी कर्व (Density Curve)। डेंसिटी कर्व कभी भी नेगेटिव नहीं होता। यह हमेशा 0 से 1 के बीच में होता है। मेरी सलाह यह है कि आप खान एकेडमी के इस वीडियो को देखिए ( watch this video) जो डेंसिटी कर्व के बारे में बताता है। 

डेंसिटी कर्व को एक्सेल शीट पर निकालना काफी सीधा और आसान है। आप इसे इस तरह से निकाल सकते हैं, नीचे के चित्र पर नजर डालिए 

आप चाहें तो एक्सेल में इसके लिए दिए गए फंक्शन Norm.dist का इस्तेमाल इसके लिए कर सकते हैं। इस फंक्शन में आपको 4 इनपुट देने होंगे

  • X – रेश्यो की दिन की वैल्यू 
  • मीन – रेश्यो के मीन या औसत की वैल्यू 
  • स्टैंडर्ड डेविएशन – रेश्यो का स्टैंडर्ड डेविएशन 
  • क्यूम्युलेटिव (Cumulative) – यहां पर आपको ट्रू (True) या फॉल्स (False) चुनना है। हमेशा ट्रू को ही डिफॉल्ट के तौर पर चुनिए 

मैंने सभी वेरिएबल के लिए डेंसिटी कर्व की गणना की है, नीचे के टेबल पर नजर डालिए – 

अब हम इस अध्याय को यहां खत्म करते हैं। अगले अध्याय में हम यह देखेंगे कि डेंसिटी कर्व का इस्तेमाल पेयर ट्रेड के ट्रिगर के तौर पर शॉर्ट और लॉन्ग के लिए कैसे किया जा सकता है। 

इस अध्याय में इस्तेमाल किए गए एक्सेल शीट को आप यहां से डाउनलोड (Download) कर सकते हैं।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. रेश्यो एक ज्यादा अच्छा वेरिएबल है क्योंकि यह स्टॉक की कीमत को भी शामिल करता है।
  2. रेश्यो हमेशा अपनी मीन वैल्यू के ऊपर या नीचे रहता है। 
  3. यह माना जाता है कि जब रेश्यो मीन से दूर चला जाता है तो इसके फिर से मीन के पास वापस आने की संभावना होती है। 
  4. जब भी रेश्यो मीन से दूर चला जाए तो आप रिवर्जन टू मीन (reversion to mean) की संभावना को या प्रोबेबिलिटी को निकाल सकते हैं।
  5. रिवर्जन टू मीन को आप नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन से निकाल सकते हैं। 
  6. डेंसिटी कर्व एक गैर नेगेटिव (non negative) संख्या होती है जो 0 से 1 के बीच में होती है। इसे आसानी से एक्सेल का इस्तेमाल करके निकाला जा सकता है।

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PTM 1, C3 – ट्रेड के पहले का सेट-अप https://zerodha.com/varsity/chapter/ptm-1-c3-%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b9%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a5%87%e0%a4%9f-%e0%a4%85%e0%a4%aa/ https://zerodha.com/varsity/chapter/ptm-1-c3-%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b9%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a5%87%e0%a4%9f-%e0%a4%85%e0%a4%aa/#comments Mon, 13 Jul 2020 05:20:55 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8337 5.1 – नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन – एक बार फिर  आपने ऑप्शन के मॉड्यूल में नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में पढ़ा होगा। अगर आपने नहीं पढ़ा है तो मेरी सलाह यह होगी कि आप पहले जाकर नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन का अध्याय पढ़ लें।  यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है और इस अध्याय में आगे बढ़ने के पहले […]

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5.1 – नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन – एक बार फिर 

आपने ऑप्शन के मॉड्यूल में नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में पढ़ा होगा। अगर आपने नहीं पढ़ा है तो मेरी सलाह यह होगी कि आप पहले जाकर नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन का अध्याय पढ़ लें। 

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है और इस अध्याय में आगे बढ़ने के पहले उस अध्याय को पढ़ना आपके लिए अच्छा होगा। नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन का सिद्धांत पेयर ट्रेडिंग की उन दोनों तकनीक में काम आने वाला है जिन पर हम चर्चा करने वाले है- मार्क विसलर की पेयर ट्रेडिंग तकनीक और दूसरी तकनीक जिस पर हम मॉड्यूल में आगे चर्चा करेंगे। 

मैं एक बार संक्षेप में नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन के सिद्धांत को दोहरा दे रहा हूं जिससे आपकी याद ताजा हो जाए। 

नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन का सामान्य सिद्धांत जिसे आपको जानना चाहिए –

  • 1st स्टैंडर्ड डेविएशन के भीतर आप 68% डेटा को देख सकते हैं 
  • 2nd स्टैंडर्ड डेविएशन में आप 95% डेटा को देख सकते हैं 
  • 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन के भीतर आप 99.7% डेटा पर नजर डाल सकते हैं 

इन बिंदुओं को आप नीचे के चित्र के रूप में भी देख सकते हैं 

वैसे आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूं कि डेटा और कई तरीके से डिस्ट्रीब्यूट होता है, जैसे यूनिफॉर्म डिस्ट्रीब्यूशन, बायनॉमियल डिस्ट्रीब्यूशन, एक्स्पोनेंशियल डिस्ट्रीब्यूशन आदि। 

5.2 – सांख्यिकीय विस्तार 

पिछले अध्याय में हमने सांख्यिकी से जुड़े हुए तीन मानकों की चर्चा की थी – मीन, मीडियन और मोड। अब हम इन तीनों को पेयर डेटा के लिए कैलकुलेट करेंगे, मतलब डिफरेंशियल, स्प्रेड और रेश्यो के लिए मीन, मीडियन और मोड निकालेंगे। हम यह काम एक्सेल शीट के जरिए करेंगे। 

मैंने पिछले अध्याय में जिस एक्सेल शीट पर काम किया था, मैं उसी पर काम करना जारी रखूंगा। आप चाहें तो इस एक्सेल शीट को अध्याय के अंत में दिए गए लिंक के जरिए डाउनलोड कर सकते हैं। 

इस शीट को इस तरह से सेट-अप किया गया है

एक्सल फंक्शन ये हैं

  1. मीन  – ‘=average()’
  2. मीडियन – ‘=median()’
  3. मोड – ‘=mode.mult()’

संख्याएं नीचे दी गई हैं –

जैसा कि आप देख सकते हैं कि कोरिलेशन की संख्याएं पिछले अध्याय में ही कैलकुलेट कर ली गई थीं। 

अब हमारा डेटा सेट अप तैयार है, अब हमें यहां पर सिर्फ एक वेरिएबल जोड़ना है जो है – स्टैंडर्ड डेविएशन। आपको स्टैंडर्ड डेविएशन का सिद्धांत पहले समझाया जा चुका है। मेरी सलाह है कि आप इस अध्याय ( read this chapter) को पढ़ लें। यहां मैं उसको संक्षेप में बता देता हूं –

स्टैंडर्ड डेविएशन औसत से होने वाली दूरी या बदलाव यानी डेविएशन को दिखाता है। स्टैंडर्ड डेविएशन की किताबों में दी गई परिभाषा है – सांख्यिकी में स्टैंडर्ड डेविएशन (SD ग्रीक शब्द सिग्मा σ) एक माप है जो बताता है कि किसी दिए गए डेटा में कितना बदलाव या वेरिएशन या डिस्पर्शन हुआ है। 

तो एक तरह से स्टैंडर्ड डेविएशन हमें बताता है कि डेटा में बदलाव कितना हो रहा है यानी उसकी वैरिएबिलिटी कितनी है, जिससे हमें यह पता चलता है कि डेटा कहां तक फैला है। अब मैं इसको अपने पेयर के डेटा के संदर्भ में समझाने की कोशिश करता हूं।

थोड़ी देर पहले हमने डिफरेंशियल का जो डेटा निकाला है वो ये है- 

कुल मिला कर, हमारे पास 496 डिफरेंशियल डेटा प्वाइंट हैं। हमने थोड़ी देर पहले इस अध्याय में इनका औसत निकाला था जो कि 228.52 है। 

अब अगर मैं आपसे पूछूं कि डेटा प्वाइंट में औसत से कितना बदलाव दिख रहा है यानी इसकी वैरिएबिलिटी कितनी है? या अगर एक दूसरे तरीके से पूछें कि मुझे यह क्यों जानना है कि इस डेटा में औसत से कितनी दूरी तक का बदलाव दिख रहा है यानी इसकी वैरिएबिलिटी कितनी है? 

वास्तव में, अगर हमें यह नहीं पता हो कि हमारा डेटा औसत से कितनी दूर तक इधर-उधर जा सकता है, तो हमारे लिए यह उस डेटा के व्यवहार का आकलन करना मुश्किल होगा। उदाहरण के तौर पर जब हमारे पास 498वें नंबर का डेटा प्वाइंट आएगा तो हम यह देख पाएंगे कि यह डेटा मीन के आसपास या किसी एक दायरे में है या नहीं। 

वास्तव में, ये पेयर ट्रेडिंग की सबसे जरूरी चीज है। 

इस बदलाव को मापने का तरीका है स्टैंडर्ड डेविएशन। 

व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि स्टैंडर्ड डेविएशन से इसे आसानी से नापा जा सकता है, लेकिन बहुत सारे ट्रेडर ऐसे हैं जो एक दूसरा तरीका अपनाते हैं जिसे एब्सॉल्यूट डेविएशन (Absolute Deviation )कहा जाता है। स्टैंडर्ड डेविएशन और एब्सॉल्यूट डेविएशन, दोनों हमें डेटा में आ सकने वाले बदलावों को बताते हैं। लेकिन इन दोनों में डेटा को अलग अलग तरीके से देखा जाता है।

मैं आपको स्टैंडर्ड डेविएशन और एब्सॉल्यूट डेविएशन के बीच का अंतर समझाने का तरीका खोज रहा था तब मुझे इन्वेस्टोपीडिया पर एक व्याख्या मिली जो कि मुझे काफी अच्छी लगी, इसलिए मैं उसको ही यहां पर दे रहा हूं – 

किसी भी डेटा समूह में हो सकने वाले बदलाव को नापने के कई तरीके हो सकते हैं, लेकिन दो सबसे लोकप्रिय तरीके हैं- स्टैंडर्ड डेविएशन और औसत यानी एवरेज डेविएशन। ये दोनों काफी मिलते-जुलते हैं लेकिन इनको कैलकुलेट या इनकी गणना करने का तरीका और उनसे निष्कर्ष निकालने का तरीके में कुछ अंतर है। रेंज यानी दायरा निकालना और वोलैटिलिटी निकालना फाइनेंस की दुनिया में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, इसीलिए अकाउंटिंग, इन्वेस्टिंग और इकनॉमिक्स से जुड़े हुए लोगों को इन दोनों को अच्छे से समझना होता है।

स्टैंडर्ड डेविएशन, डेटा में हो सकने वाले बदलाव यानी वैरिएबिल्टी को नापने का सबसे आम तरीका है। स्टॉक मार्केट और दूसरे निवेश में वोलैटिलिटी को नापने के लिए अक्सर इसका इस्तेमाल होता है। स्टैंडर्ड डेविएशन को निकालने या कैलकुलेट करने के लिए सबसे पहले वैरियंस को पता करना होता है। इसके लिए आपको हर डेटा प्वाइंट से मीन को घटाना होता है, फिर उसका वर्ग निकालना होता है, इन को आपस में जोड़ना होता है और फिर इन सब का औसत निकालना होता है। वैसे वैरियंस अपने आप में वैरिएबिलिटी निकालने और रेंज यानी दायरा निकालने का एक अच्छा तरीका होता है। वैरियंस जितना ज्यादा होता है डेटा का स्प्रेड उतना ही ज्यादा होता है। स्टैंडर्ड डेविएशन वास्तव में कुछ और नहीं बस वैरियेंस का वर्गमूल होता है। हर डेटा प्वाइंट और मीन के बीच के अंतर का वर्ग निकालना इसलिए अच्छा होता है क्योंकि इससे मीन के नीचे के डेटा प्वाइंट से आने वाले नेगेटिव डिफरेंस से बचा जा सकता है। लेकिन इसका यह भी मतलब होता है कि वैरियंस की यूनिट वास्तविक डेटा की यूनिट से अलग हो जाती है। इसीलिए वैरियंस का वर्गमूल निकाला जाता है ताकि स्टैंडर्ड डेविएशन वापस वास्तविक यूनिट में आ सके और उसका इस्तेमाल और निष्कर्ष निकालना आसान हो।

बदलाव यानी वैरिएबिल्टी को नापने का दूसरा तरीका है एवरेज डेविएशन जिसे एब्सॉल्यूट डेविएशन (Absolute Deviation) भी कहा जाता है। एवरेज डेविएशन निकालने के लिए वास्तविक डेटा को वैसे ही इस्तेमाल किया जाता है। डेटा और मीन के बीच निगेटिव डिफरेंस की समस्या से बचने के लिए संख्याओं का वर्ग यहां नहीं निकाला जाता। एवरेज डेविएशन निकालने के लिए डेटा के हर प्वाइंट से मीन को घटाते हैं, उसके बाद उन सब को जोड़ते हैं, फिर इसका औसत निकालते हैं। इस तरीके में, मीन एब्सॉल्यूट वैल्यू का इस्तेमाल कम होता है क्योंकि एब्सॉल्यूट वैल्यू लेने पर आगे की गणना या कैलकुलेशन, स्टैंडर्ड डेविएशन के मुकाबले ज्यादा बड़ी और मुश्किल हो जाती है। 

अब हम पेयर डाटा के तीनों अवयवों- मीन, मीडियन और मोड के लिए स्टैंडर्ड डेविएशन और एब्सॉल्यूट डेविएशन ((Absolute Deviation)) निकालेंगे। 

मैंने यहां पर बदलाव किया है- Y-Axis मीन, मीडियन और मोड के लिए और X-Axis को डिफरेंशियल रेश्यो और स्प्रेड के लिए रखा है। इस वजह से ऊपर के चित्र और नीचे के चित्र में थोड़ा सा अंतर होगा।

इन वैरिएबल को निकालने के एक्सेल फंक्शन हैं

स्टैंडर्ड डेविएशन – ‘=Stdev.p()’

एब्सॉल्यूट डेविएशन – ‘=avedev()’

एक बात और – मीन, मीडियन, मोड, स्टैंडर्ड डेविएशन और एब्सॉल्यूट डेविएशन को बेसिक डिस्क्रिप्टिव स्टैटिसटिक्स (Basic Descriptive Statistics) भी कहा जाता है।

5.3 – स्टैंडर्ड डेविएशन टेबल

जैसा कि आपको पता है कि स्टैंडर्ड डेविएशन हमें यह बताता है कि डेटा में कितना वैरिएशन या बदलाव हो रहा है। अब हम थोड़ा आगे बढ़ते हैं और इस वैरिएशन या बदलाव को नापने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने से हमें पता चलेगा कि मीन की संख्या से कितना वैरिएशन या बदलाव देखने को मिल रहा है। उदाहरण के तौर पर 498वां डिफरेंशियल डेटा 275 हो सकता है।  वैरिएशन को नाप कर हम यह पता कर सकते हैं कि 275 मीन से ऊपर है या मीन से बहुत ज्यादा नीचे है। 

इस सूचना के आधार पर हम फैसला कर सकते हैं कि हमें पेयर को खरीदना है या हमें पेयर को शॉर्ट करना है। वैसे, इस बारे में आगे फिर चर्चा करेंगे। लेकिन अभी हम वैरिएशन या बदलाव को नापने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने के लिए, हमें पहले एक टेबल बनाना होगा जिसे स्टैंडर्ड डेविएशन टेबल कहते हैं। 

यह टेबल ऐसा दिखाई देता है 

अब हम स्प्रेड डिफरेंशियल और रेश्यो के लिए मीन के ऊपर और मीन के नीचे 1st, 2nd और 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन के मूल्य को निकालेंगे। 

सबसे पहले स्प्रेड के डेटा पर फोकस करते हैं। स्प्रेड का मीन 0.06 है। हमें यह भी पता है कि स्टैंडर्ड देविएशन 8.075 है। 

ऐसे में, मीन के ऊपर का 1st स्टैंडर्ड डेविएशन होगा 

0.064 + 8.075 = 8.139

2nd SD –

0.064 + (2*8.075) = 16.123

3rd SD –

0.064 + (3*8.075) = 24.288

ये सब मीन के ऊपर की वैल्यू हैं। इसी तरह से हम मीन के नीचे की वैल्यू भी निकाल सकते हैं।

-1 SD –

0.064 – 8.075 = -8.011

-2 SD –

0.064 – (2*8.075) = -16.086

-3 SD –

0.064 – (3*8.075) = -24.160

मैंने डिफरेंशियल और रेश्यो के लिए भी ये गणना कर ली है, और यह टेबल अब इस तरह का दिख रहा है –

अगर 498वां डिफरेंशियल डेटा 315 की संख्या दिखाता है तो हम बहुत जल्दी से यह समझ सकते हैं कि यह +2 स्टैंडर्ड डेविएशन के पास है और 95% भरोसे के साथ हम यह कह सकते हैं कि अगला डेटा प्वाइंट 315 से ऊपर होने की संभावना सिर्फ 5% ही है। 

तो फिलहाल हमारे पास वह सारा डेटा है जो हमें पेयर के बारे में निष्कर्ष निकालने के लिए मदद कर सकता है और यह बता सकता है कि वहां पर ट्रेड करने का मौका है या नहीं। अगले अध्याय में हम आगे बढ़ेंगे और यही करेंगे। 

यहां पर इस्तेमाल किए गए एक्सेल शीट को आप यहां से ( here.) डाउनलोड कर सकते हैं 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. पेयर ट्रेडिंग में नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है 
  2. 1st स्टैंडर्ड डेविएशन के अंदर आप 68% डाटा को देख सकते हैं 
  3. 2nd स्टैंडर्ड डेविएशन में आप 95% डाटा को देख सकते हैं 
  4. 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन में आप 99.7% डाटा को देख सकते हैं 
  5. स्टैंडर्ड डेविएशन और एब्सॉल्यूट डेविएशन के जरिए आप डेटा के वैरीएबिलिटी यानी बदलाव को नाप सकते हैं 
  6. स्टैंडर्ड डेविएशन टेबल से हम मौजूदा डेटा और अनुमानित वैरिएशन की तुलना कर सकते हैं। 
  7. स्टैंडर्ड डेविएशन टेबल से हमें यह संकेत मिलता है कि हम पेयर ट्रेड में लॉन्ग करेंगे या शॉर्ट करेंगे

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4.1 – कोरिलेशन और उसके प्रकार 

अब हम जिस पेयर ट्रेडिंग तकनीक की बात करने जा रहे हैं उसकी चर्चा मार्क विसलर (Mark Whistler) ने अपनी किताब ट्रेडिंग पेयर्स (Trading Pairs)” में की है। इस किताब ने ही मुझे पेयर ट्रेडिंग की तरफ आकर्षित किया था और धीरे-धीरे इसमें मेरी रुचि बढ़ती गई। मैंने इस स्ट्रैटेजी को मार्क विसलर की तकनीक से आगे जाकर भी सीखने की कोशिश की। मैं उन तकनीकों पर इस मॉड्यूल में आगे चर्चा करूंगा। लेकिन अभी मेरी कोशिश यह है कि आपको पेयर ट्रेडिंग उसी तरीके से सिखा सकूं जिस तरीके से मैंने सीखा है। 

पिछले अध्याय के अंत में हमने कोरिलेशन के सिद्धांत और कोरिलेशन के मूल्यों की एनालिसिस पर चर्चा की थी। अब हम इसी को आगे बढ़ाएंगे और समझेंगे कि दो स्टॉक के कोरिलेशन को कैसे कैलकुलेट किया जाता है। अब तक आपको समझ में आ ही गया होगा कि पेयर ट्रेडिंग की सबसे बड़ी कुंजी है उन 2 स्टॉक के कोरिलेशन की गणना या कैलकुलेशन। 

इसके लिए उदाहरण के तौर पर मैंने एक्सिस बैंक औऱ ICICI बैंक को लिया है। दोनों ही प्राइवेट सेक्टर के बैंक हैं और एक तरीके के बिजनेस माहौल से आते हैं। इसलिए ऐसा माना जा सकता है कि दोनों स्टॉक के बीच का कोरिलेशन काफी अच्छा होगा। 

अभी मैंने एक्सिस बैंक और ICICI बैंक की 4 दिसंबर 2015 से 4 दिसंबर 2017 के बीच के क्लोजिंग क्लोजिंग कीमत को डाउनलोड किया है। ये करीब 2 साल का डेटा है और इसमें 496 डेटा प्वाइंट हैं। हम आगे बढ़ें इसके पहले इस डेटा से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें –

  1. आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि डेटा प्वाइंट की संख्या बराबर हो। उदाहरण के तौर पर अगर आपने स्टॉक A के लिए 400 डेटा प्वाइंट लिए हैं तो आपको यह देखना होगा कि स्टॉक B के लिए भी 400 डेटा प्वाइंट ही हों और उनकी तारीखें एक जैसी हों। 
  2. यह भी ध्यान दीजिए कि डेटा को कॉरपोरेट एक्शन के हिसाब से ठीक कर दिया गया हो, जैसे बोनस या स्प्लिट जैसे कॉरपोरेट एक्शन का ध्यान रखते हुए डेटा को संतुलित कर दिया गया है।

जैसा कि आप देख सकते हैं कि ICICI और एक्सिस बैंक के अलावा मैंने BPCL, HPCL और HDFC बैंक का भी डेटा निकाला है। आप इस डेटा का इस्तेमाल करके दूसरे कुछ कोरिलेशन भी देख सकते हैं।

फिलहाल हमारे पास सिर्फ तारीख और क्लोजिंग कीमत का डेटा है। अब हम डेली रिटर्न की गणना करेंगे। मुझे उम्मीद है कि डेली रिटर्न निकालना आपको आता है, हमने पहले के मॉड्यूल में कई बार इसे देखा और सीखा है। 

डेली रिटर्न निकालने के लिए –

=  {आज की क्लोजिंग कीमत / पिछले दिन की को क्लोजिंग कीमत} –

[today’s closing price / previous day’s closing price] – 1

मैंने ICICI बैंक और एक्सिस बैंक- दोनों के लिए इसे कैलकुलेट किया हुआ है –

कोरिलेशन की गणना करने के लिए दो मानक या पैरामीटर तय करने होते हैं – 

  1. डेली क्लोजिंग प्राइस या हर दिन की क्लोजिंग कीमत 
  2. डेली रिटर्न सीरीज यानी हर दिन के रिटर्न की सीरीज 

डेली क्लोजिंग कीमत की कोरिलेशन निकालने के लिए आपको दोनों स्टॉक की क्लोजिंग कीमत के आधार पर कोरिलेशन निकालना होता है। मुझे क्लोजिंग कीमत के आधार पर कोरिलेशन निकालना बहुत पसंद नहीं है। लेकिन अभी हम इसको सीख लेते हैं। 

एक्सेल में इसे निकालने के लिए डेली क्लोजिंग कीमत के डेटा पर सिर्फ ‘=Correl()’ फंक्शन का इस्तेमाल करना होगा। मैं इसे एक नई शीट पर निकाल रहा हूं जिसे मैंने पेयर डेटा का नाम दिया है, देखिए – 

ICICI बैंक और एक्सिस बैंक के बीच में क्लोजिंग कीमत की कोरिलेशन 0.51 है। ये कोरिलेशन बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन अभी हम इससे काम चलाते हैं। याद कीजिए कि हमें लग रहा था कि इन दोनों बैंकों के बीच कोरिलेशन काफी मजबूत होगा क्योंकि इनका बिजनेस एक तरह का है, लेकिन इनके कोरिलेशन का नंबर बहुत अच्छी तस्वीर नहीं दिखा रहा है। 

अब हम दोनों स्टॉक के डेली % रिटर्न सीरीज के आधार पर कोरिलेशन निकालेंगे। मैंने प्रतिशत रिटर्न पहले ही निकाल रखा है बस मुझे अब ‘=Correl()’ फंक्शन का इस्तेमाल करना है। 

फिर से यह नंबर हमें बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं नजर आ रहा है। लेकिन अभी इसे यहीं छोड़ते हैं।

कुछ ट्रेडर कोरिलेशन के लिए कीमत में हर दिन के कुल बदलाव यानी absolute per day change का इस्तेमाल करते हैं, जो कि स्टॉक की आज की कीमत – स्टॉक की पिछले दिन की कीमत (‘Today’s stock price – yesterday’s stock price)के आधार पर निकाला जाता है। मुझे ये तरीका भी बहुत पसन्द नहीं है। लेकिन अभी आप इसे देख लीजिए –  

ऊपर के सभी कैलकुलेशन में, मैंने एक्सिस बैंक और ICICI बैंक के बीच का कोरिलेशन निकाला है। इससे मिलने वाला परिणाम वैसा ही मिलेगा जैसा ICICI बैंक और एक्सिस बैंक के बीच कोरिलेशन निकालने पर मिलेगा। मतलब A और B के बीच का कोरिलेशन वैसा ही होगा जैसा कि B और A के बीच का कोरिलेशन होगा।

पेयर ट्रेडिंग के इस तरीके में कोरिलेशन की संख्या बहुत मायने रखती है। साधारणतया, ये संख्या 0.75 से ऊपर होनी चाहिए। आप देख ही चुके हैं कि ICICI बैंक और एक्सिस बैंक के बीच में कोरिलेशन इतना नहीं है। लेकिन अभी इसी से काम चलाते हैं।

4.2 – डेटा शीट तैयार करना 

पिछले अध्याय में हमने पेयर से जुड़े हुए तीन अवयवों की बात की थी, स्प्रेड, डिफरेंशियल और रेश्यो की। अब हम जिन दो स्टॉक की बात कर रहे हैं उनके लिए इन तीनों अवयवों को कैलकुलेट करते हैं। इसे हम उसी वर्कबुक में एक अलग शीट पर निकालेंगे और उस शीट का नाम दे रहे हैं- डेटा शीट। देखिए –

ये कैलकुलेशन काफी आसान है और इसे मैंने पिछले अध्याय में समझाया था।

अलग-अलग प्रकार की पेयर ट्रेडिंग में अलग अलग विषमताएं (Complexities) होती हैं। अभी के लिए हम साधारण स्तर के आंकड़ों से काम चला रहे हैं। लेकिन अब हम तीन सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले सांख्यिकीय वैरिएबल को परिभाषित करेंगे।

4.3 – बेसिक स्टैट्स 

अब हम तीन साधारण यानी बेसिक सांख्यिकीय शब्दों पर चर्चा करेंगे। इनको जानना आपके लिए बहुत जरूरी है क्योंकि ये पेयर ट्रेडिंग में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। बहुत संभव है कि आपने इनके बारे में हाई स्कूल में पढ़ा हो। नहीं भी याद हो तो ये काफी आसान है और इनको समझना मुश्किल नहीं है। 

इनको समझने के लिए मैंने एक शीट तैयार की है जिसमें एक बल्लेबाज ने पिछले 10 मैच में जितने रन बनाए हैं उनको दिखाया गया है

मैच रन
1 72
2 65
3 44
4 100
5 82
6 55
7 100
8 23
9 51
10 34

मीन (Mean)इसे अंकगणितीय माध्य/औसत भी कहते हैं और ये अंकों के समूह का औसत बताता है। आप सभी अंकों को आपस में जोड़ कर और फिर उससे मिले परिणाम को जितने अंक थे, उस संख्या से विभाजित करके मीन यानी माध्य निकाल सकते हैं।

तो, अगर मुझे ऊपर के टेबल में दिए गए उदाहरण का माध्य निकालना हो तो सभी 10 मैचों में बनाए गए रनों को जोड़ने से मिली संख्या को 10 से विभाजित करना होगा।

मीन (माध्य) = 626 / 10

= 62.6

एक्सेल शीट पर इसे निकालने के लिए बस ‘=Average()’ फंक्शन का इस्तेमाल करना होगा।

माध्यक – मीडियन (Median) सँख्याओं के समूह को अंकों के हिसाब से लगा दिया जाए तो फिर उस सीरीज के बीच में पड़ने वाली संख्या को माध्यक यानी मीडियन कहते हैं। अगर संख्याओं के समूह में सम संख्याएं हैं, जैसे 2, 4, 6, 8, 10 , (हमारे उदाहरण में भी 10 संख्याएं हैं) तो बीच वाली दो संख्याओं को जोड़ कर उनका औसत निकाल लिया जाता है और वही मीडियन होता है। लेकिन अगर सीरीज में विषम संख्याएं हैं तो फिर बीच वाली संख्या ही मीडियन होती है। 

तो, हमारे ऊपर के उदाहरण की संख्याओं को उनके अंकों के हिसाब से लगाते हैँ

23, 34, 44, 51, 55, 65, 72, 82, 100, 100

यहां पर हमारे पास सम संख्याएं हैं, इसलिए बीच की दो संख्याओं 55 और 65 को जोड़ कर उनका औसत निकालना होगा और वही मीडियन होगा।  

मीडियन = ( 55 + 65) / 2

= 60

मीडियन निकालने का एक्सेल फंक्शन है ‘=Median()’

मीन और मीडियन को एक साथ देखने पर हम ट्रेंड को पहचान सकते हैं। इस पर हम आगे चर्चा करेंगे।

बहुलक- मोड (Mode) – किसी भी डेटा सीरीज मेंजो संख्या सबसे अधिक बार आती है वो उस सीरीज का बहुलक- मोड होता है। जैसे हमारे उदाहरण में 100 दो बार आया है और बाकी सभी संख्याएं एक बार ही आई हैं इसलिए 100 मोड यानी बहुलक होगा।

इसके लिए एक्सेल फंक्शन है ‘=Mode()’

अगले अध्याय में हम इन सभी फंक्शन का एक्सेल में इस्तेमाल करेंगे और पेयर ट्रेडिंग में उनके महत्व को समझेंगे।

इस अध्याय में इस्तेमाल किए गए एक्सेल को आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैंय़

 इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. ध्यान दीजिए कि डेटा को कॉरपोरेट एक्शन के हिसाब से ठीक कर दिया गया हो।
  2. दोनों स्टॉक की क्लोजिंग कीमत के आधार पर निकाले गए कोरिलेशन को क्लोज कोरिलेशन कहते हैं। 
  3. दोनों स्टॉक के डेली % रिटर्न सीरीज के आधार पर निकाले गए कोरिलेशन को  % रिटर्न कोरिलेशन कहते हैं।
  4. अंकों के समूह के अंकगणितीय औसत को मीन या माध्य भी कहते हैं।
  5. सँख्याओं के समूह को अंकों के हिसाब से लगाने के बाद उस सीरीज के बीच में पड़ने वाली संख्या को मीडियन कहते हैं। 
  6. अगर संख्याओं के समूह में सम संख्याएं हैं, तो बीच वाली दो संख्याओं को जोड़ कर उनका औसत निकाल लिया जाता है और वही मीडियन होता है।
  7. अगर सीरीज में विषम सेख्याएं हैं तो फिर बीच वाली संख्या ही मीडियन होती है।
  8. किसी भी डेटा सीरीज में जो संख्या सबसे अधिक बार आती है वो उस सीरीज का मोड यानी बहुलक होता है।
  9. मीन और मीडियन को एक साथ देखने पर हम डेटा के ट्रेंड को पहचान सकते हैं।

 

 

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पेयर ट्रेडिंग, तरीका 1, अध्याय 1– पेयर को ट्रैक करना https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%87%e0%a4%af%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-%e0%a4%a4%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a4%be-1-%e0%a4%85%e0%a4%a7%e0%a5%8d%e0%a4%af/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%87%e0%a4%af%e0%a4%b0-%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-%e0%a4%a4%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a4%be-1-%e0%a4%85%e0%a4%a7%e0%a5%8d%e0%a4%af/#comments Mon, 13 Jul 2020 05:17:49 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8148 2.1 – शब्दावली से परिचय  हमने पिछले अध्याय में यह बताया था कि पेयर ट्रेडिंग करने की दो तकनीकें होती हैं। अब हम पहली तकनीक पर बात करेंगे, जिसे को-रिलेशन बेस्ड (Correlation based) तकनीक कहा जाता है। पेयर ट्रेडिंग का ये काफी सीधा तरीका है, बहुत सारे ट्रेडर पेयर ट्रेडिंग की शुरुआत इसी तकनीक के […]

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2.1 – शब्दावली से परिचय 

हमने पिछले अध्याय में यह बताया था कि पेयर ट्रेडिंग करने की दो तकनीकें होती हैं। अब हम पहली तकनीक पर बात करेंगे, जिसे को-रिलेशन बेस्ड (Correlation based) तकनीक कहा जाता है। पेयर ट्रेडिंग का ये काफी सीधा तरीका है, बहुत सारे ट्रेडर पेयर ट्रेडिंग की शुरुआत इसी तकनीक के आधार पर करते हैं। 

हम इस तकनीक के बारे में जानें उसके पहले यह जरूरी है कि हम इससे जुड़े कुछ शब्दों को जान और समझ लें। जिससे इस तकनीक को जानना आसान हो सके। ये सभी शब्द पेयर की ट्रैकिंग (Tracking) से जुड़े हुए हैं। तो आइए शुरू करते हैं इन शब्दों को जानना 

स्प्रेड (Spread) – ट्रेडिंग की दुनिया में जिस शब्द का इस्तेमाल बहुत ज्यादा होता है, वो है स्प्रेड। उदाहरण के तौर पर, अगर आप बाजार में स्कैल्पिंग (Scalping) कर रहे हैं तो वहां पर स्प्रेड का मतलब होता है बिड (bid) कीमत और आस्क (ask) कीमत के बीच का अंतर। अगर आप आर्बिट्राज ट्रेड कर रहे हैं तो स्प्रेड का मतलब होता है दो अलग-अलग बाजारों में एक ही अंडरलाइंग एसेट की कीमत का अंतर। अगर आप पेयर ट्रेडिंग पर ट्रेडिंग की दुनिया में हैं (मुख्य तौर पर को-रिलेशन आधारित तकनीक में) तो स्प्रेड का मतलब होता है कि 2 स्टॉक की क्लोजिंग कीमत में आए बदलाव में कितना अंतर है। 

स्प्रेड की गणना करने या कैलक्यूलेट/कैल्क्यलेट (Calculate)  करने के लिए –

स्प्रेड = स्टॉक 1 का क्लोजिंग मूल्य में हुआ बदलाव – स्टॉक 2 की क्लोजिंग मूल्य में हुआ बदलाव

Spread = Closing value of stock 1 – closing value of stock 2

इस पर नजर डालिए 

मान लीजिए कि GICRE यहां पर स्टॉक 1 है और ICICIGI  स्टॉक 2, तो यहां पर स्प्रेड होगा – 

स्प्रेड = 6.1 – 3.85

= 2.25

यहां ध्यान दीजिए कि 6.10 और 3.85 दोनों ही, स्टॉक की पिछली क्लोजिंग कीमत के मुकाबले हुए बदलाव को दिखा रहे हैं। साथ ही, दोनों ही संख्याएं पॉजिटिव हैं। लेकिन मान लीजिए कि ICICIGI की क्लोजिंग कीमत निगेटिव 3.85 होती तब यह स्प्रेड होता

6.1 – (-3.85)

= 9.95

मैंने पिछले कुछ ट्रेडिंग सेशन का स्प्रेड कैलकुलेट किया है जिससे आपको यह पता चल सके कि स्प्रेड किस तरह से चलता है (run करता है)। साथ ही मैंने यहां हर दिन का स्प्रेड कैलकुलेट किया है जिसे ट्रेडर आमतौर पर हिस्टोरिकल स्प्रेड (historical Spread) कहते हैं। 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि स्प्रेड हर दिन बदलता रहता है। इसमें से जो कुछ खास चीजें दिखाई देती हैं, वो हैं – 

  1. अगर S1 की क्लोजिंग कीमत पॉजिटिव है और S 2 की क्लोजिंग कीमत नेगेटिव है तो स्प्रेड बढ़ता है 
  2. अगर S1 की क्लोजिंग कीमत पॉजिटिव है और S 2 की क्लोजिंग कीमत भी पॉजिटिव है तो इस स्प्रेट घटता है 

इस तरह की और संयोजन/मेल (combination) हो सकते हैं जिनकी वजह से स्प्रेड बढ़ या घट सकता है। लेकिन उस पर हम बाद में चर्चा करेंगे। 

डिफरेंशियल (Differential) डिफरेंशियल में दोनों स्टॉक की कीमतों के अंतर को नापा जाता है। डिफरेंशियल दोनों स्टॉक की क्लोजिंग कीमत के अंतर को बताता है। इसे निकालने का फार्मूला है –

डिफरेंशियल = स्टॉक 1 की क्लोजिंग कीमत – स्टॉक 2 की क्लोजिंग कीमत

तो, अगर स्टॉक 1 की क्लोजिंग कीमत 175 है और स्टॉक 2 की क्लोजिंग कीमत 232 है तो डिफरेंशियल होगा –

175 – 232 

= – 57

डिफरेंशियल को भी आप एक टाइम सीरीज के तौर पर देख सकते हैं और इसे हर दिन कैलकुलेट कर सकते हैं। मैंने GICRE और ICICIGI  के लिए इसे निकाला है।


डिफरेंशियल के बारे में एक खास बात जो आपको जाननी चाहिए वो ये है कि इंट्राडे आधार पर पेयर को ट्रैक करने के लिए डिफरेंशियल बहुत अच्छी तकनीक नहीं है, इसका इस्तेमाल एंड ऑफ द डे (End of the day) पर ही होना चाहिए यानी दिन की अंतिम कीमत पर ही होना चाहिए। अगर आप इंट्राडे आधार पर किसी पेयर की ट्रैकिंग करना चाहते हैं तो उसके लिए स्प्रेड का इस्तेमाल कर सकते हैं। पेयर की ट्रैकिंग के लिए डिफरेंशियल के सही इस्तेमाल पर हम आगे चर्चा करेंगे। 

रेश्यो (Ratio) रेश्यो मुझे काफी रोचक लगता है। इसे पाने के लिए स्टॉक 1 की कीमत को स्टॉक 2 की कीमत से विभाजित किया जाता है। या स्टॉक 2 की कीमत को स्टॉक 1 की कीमत से भी विभाजित किया जा सकता है।

रेश्यो = स्टॉक 1 की स्टॉक कीमत / स्टॉक 2 की स्टॉक कीमत

Ratio = Stock Price of stock 1 / stock price of stock 2

मैंने अपने दोनों स्टॉक का रेश्यो निकाला है- 

आप देख सकते हैं कि रेश्यो को जब एक टाइम सीरीज के तौर पर देखें तो वो थोड़ा ज्यादा एक समान (consistent) दिखाई देता है। मैंने तीनों अवयवों (Variables) को नीचे एक ग्राफ के रूप में दिखाया है –

तो हमने जिन तीन चीजों की बात की –  स्प्रेड, डिफरेंशियल और रेश्यो-  ये सब पेयर ट्रेडिंग से कैसे जुड़े हुए हैं? 

ये तीनों अलग अलग तरीके के अवयव (variable) हमें ये बताते हैं कि पेयर के तौर पर देखे जा रहे दोनों स्टॉक के बीच में संबंध कैसा है? उनके संबंध को नापने के लिए इन तीनों अवयवों का इस्तेमाल होता है। ये ग्राफ हमें बताता है कि दोनों स्टॉक एक दूसरे के संदर्भ में किस तरह से चलते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर हम स्प्रेड को लें, तो हमें पता है कि अगर S1 की क्लोजिंग कीमत पॉजिटिव हो और s2 की क्लोजिंग कीमत नेगेटिव हो तो स्प्रेड कम होता है। इसी तरीके से अगर S1 की वैल्यू पॉजिटिव हो और s2 की भी पॉजिटिव हो तो स्प्रेड बढ़ता है।

इसी तरह से रेश्यो- दो स्टॉक के बीच का रेश्यो कम होता है अगर दोनों स्टॉक की कीमत नीचे गिरती है और अगर दोनों स्टॉक की कीमत बढ़ती है तो रेश्यो बढ़ता है। इसके अलावा भी और कई रूपांतर (variation) हो सकते हैं, जैसे अगर स्टॉक 1 की कीमत गिरती है और स्टॉक 2 की कीमत फ्लैट यानी स्थिर रहती है या फिर इसका उल्टा होता है तो फिर रेश्यो बढ़ता है। इसी तरह से स्टॉक 2, स्टॉक 1 की तुलना में काफी बढ़ सकता है या फिर इसका उल्टा भी हो सकता है।  

यह सब थोड़ा उलझन भरा लग सकता है 

इसीलिए हमें अपने सारे अवयवों के चार्ट को देखना होता है चाहे वो स्प्रेड हो, डिफरेंशियल हो या फिर रेश्यो। हमें इन अवयवों को देख कर ये पता लगाना होता है की स्प्रेड बढ़ रहा है या घट रहा है। ये करते वक्त दो नए शब्द सामने आएंगे।

डायवर्जेंस (Divergence) – अगर किन्हीं दो स्टॉक के बीच का स्प्रेड या रेश्यो अलग यानी दूर होने लगे या फिर ग्राफ ऊपर जाने लगे तो इस स्थिति को डायवर्जेंस कहते हैं। अगर जब आप अपने अवयवों में डायवर्जेंस की उम्मीद कर रहे हों तो आप डायवर्जेंस ट्रेड करके पैसे बनाने की कोशिश कर सकते हैं।

कन्वर्जेंस (Convergence) – अगर किन्हीं दो स्टॉक के बीच का स्प्रेड या रेश्यो पास आने लगे या फिर ग्राफ नीचे की तरफ जाने लगे तो इसे कन्वर्जेंस कहते हैं। अगर जब आप अपने अवयवों में कन्वर्जेंस की उम्मीद कर रहे हों तो आप कन्वर्जेंस ट्रेड करके पैसे बनाने की कोशिश कर सकते हैं।

अब एक बड़ा सवाल – आप कैसे मानेंगे कि अवयव में कन्वर्जेंस या डायवर्जेंस होने वाला है? आप ट्रेड की तैयारी कब करेंगे? ट्रेड का सेट अप कैसे करेंगे? अगर ट्रेड सही नहीं पड़ा तो? ऐसे ट्रेड का स्टॉप लॉस क्या होगा?

इन सवालों का जवाब देने के पहले कुछ और सवाल- दो स्टॉक पेयर कब बनते हैं? क्या दो स्टॉक का एक ही सेक्टर से होना ही उनके पेयर होने के लिए काफी है? उदाहरण के तौर पर, क्या ICICI Bank और HDFC Bank सिर्फ इसलिए पेयर बन सकते हैं कि वो दोनों ही प्राइवेट सेक्टर के बैंक हैं?

दो स्टॉक को पेयर बन रहा है या नहीं, इसको पता करने के लिए हम सांख्यिकी माप (statistical measure), कोरिलेशन (Correlation) पर भरोसा कर सकते हैं। हमने पहले कई बार इस पर चर्चा की है, संक्षेप में फिर से बता देते हैं – 

कोरिलेशन से हमें पता चलता है कि दो स्टॉक एक दूसरे के संदर्भ में किस तरह से चलते हैं। कोरिलेशन को एक संख्या के तौर पर दिखाया जाता है जो कि – 1 से + 1 के बीच होती है। उदाहरण के लिए अगर दो स्टॉक के बीच का कोरिलेशन +0.75 है तो ये हमें दो बातें बताता है –

 

  • कोरिलेशन की संख्या के पहले लगा +  बता रहा है कि दोनों में पॉजिटिव कोरिलेशन है मतलब दोनों एक ही दिशा में चलते हैं
  •  कोरिलेशन की संख्या हमें बताती है कि कोरिलेशन कितना मजबूत है, ये संख्या + 1 या – 1 के जितना करीब होगी कोरिलेशन उतना ही मजबूत माना जाएगा, मतलब दोनों उनकी चाल काफी हद तक एक जैसी होगी
  • अगर कोरिलेशन की संख्या 0 है तो इसका मतलब है कि दोनों स्टॉक के बीच कोई कोरिलेशन नहीं है

 

तो इसका मतलब हुआ कि +0.75 के कोरिलेशन का अर्थ है कि दोनों स्टॉक ना सिर्फ एक दिशा में चलेंगे बल्कि काफी हद तक साथ में चलेंगे। लेकिन यहां पर एक बात याद रखनी चाहिए कि कोरिलेशन हमें ये नहीं बताता कि चाल कितनी बड़ी होगी। उदाहरण के तौर पर, अगर स्टॉक A और B के बीच का कोरिलेशन +0.75 है और स्टॉक A में 3% की चाल आती है तो इसका ये मतलब नहीं है कि स्टॉक B में भी 3% की चाल आएगी। यहां पर कोरिलेशन सिर्फ ये बता रहा है कि स्टॉक B भी स्टॉक A की तरह ऊपर की तरफ जाएगा।

लेकिन यहां पर एक और पेंच है, मान लीजिए कि स्टॉक A और स्टॉक B के बीच का कोरिलेशन +0.75 है, स्टॉक A और स्टॉक B का औसत डेली रिटर्न 0.9% और 1.2% है। तो ऐसे में ये कहा जा सकता है कि अगर स्टॉक A ने अपने औसत डेली रिटर्न 0.9% से ऊपर की चाल दिखाई है तो स्टॉक B भी अपने औसत डेली रिटर्न 1.2% से ऊपर की चाल दिखाएगा।

इसी तरह से, – 0.75 के कोरिलेशन का अर्थ है कि दोनों स्टॉक साथ चलेंगे लेकिन अलग अलग दिशा में चलेंगे। उदाहरण के तौर पर, अगर स्टॉक A और B के बीच का कोरिलेशन – 0.75 है और स्टॉक A में + 2.5 % की चाल आती है तो इसका ये मतलब है कि निगेटिव कोरिलेशन की वजह से स्टॉक B में नीचे की चाल आएगी लेकिन ये गिरावट कितनी होगी ये नहीं कहा जा सकता।

कोरिलेशन से जुड़ी एक और बात, उन लोगों के लिए जो कि गणित में रूचि रखते हैं, कोरिलेशन का डेटा तभी काम का होता है जब डेटा सीरीज माध्य/मीन के पास स्थिर हो (stationary around the mean)’। इसका अर्थ ये है कि डेटा औसत के जितना करीब दिख रहा हो उतना अच्छा।

डेटा सीरीज के मीन के पास स्थिर हो (stationary around the mean)’ होने के इस सिद्धांत को याद रखिए, जब हम पेयर ट्रेडिंग की दूसरी तकनीक पर चर्चा करेंगे तो हम इस पर लौटेंगे।

हम दो स्टॉक के संबंध को नापने के लिए कोरिलेशन का इस्तेमाल करते रहेंगे। अगले अध्याय मे हम कोरिलेशन के दो अलग अलग तरीकों की गणना करना सीखेंगे।

उम्मीद है कि स्प्रेड, डिफरेंशियल, रेश्यो, डायवर्जेंस ट्रेडिंग, कन्वर्जेंस ट्रेडिंग और कोरिलेशन आपको समझ आ गया है।

इस अध्याय में इस्तेमाल किए गए एक्सेल शीट को आप यहां से here डाउनलोड कर सकते हैं।

 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. दो कंपनियों के स्टॉक के क्लोजिंग कीमत में बदलाव को स्प्रेड कहा जाता है।
  2. डिफरेंशियल दो स्टॉक की क्लोजिंग कीमत के अंतर को बताता है। 
  3. रेश्यो पाने के लिए स्टॉक 1 की कीमत को स्टॉक 2 की कीमत से विभाजित किया जाता है। 
  4. दो स्टॉक के बीच का स्प्रेड या रेश्यो अलग यानी दूर होने लगे तो इसे डायवर्जेंस कहते हैं। 
  5. दो स्टॉक के बीच का स्प्रेड या रेश्यो पास आने लगे तो उसे कन्वर्जेंस कहते हैं। 
  6. कोरिलेशन हमें बताता है कि दो स्टॉक कितनी मजबूती से एक दूसरे के साथ चलेंगे।

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2.1 – ये क्या होता है?

अगर आपने किसी हाईवे पर सफर किया है तो आपने यह जरूर देखा होगा कि जिस हाईवे पर आपकी गाड़ी तेज रफ्तार से भागती है, उसके बगल में उसके साथ ही एक छोटी या पतली सड़क जरूर चलती रहती है जिसे सर्विस रोड कहा जाता है। इस सड़क पर कम दूरी तक जाने वाले वो वाहन चलते हैं जिनको पास की दुकान, घरों या आसपास की दूसरी जगहों तक जाना होता है। यह दोनों सड़कें एक दूसरे से समानांतर चलती हैं। 

अब जरा कल्पना कीजिए कि एक नए हाईवे और सर्विस रोड को बनाने का काम शुरू होता है। जो कॉन्ट्रैक्टर इस सड़क को बना रहा है उसे सर्विस रोड के रास्ते में कुछ दूर पर एक पेड़ मिलता है। सड़क बनाने वाला कॉन्ट्रैक्टर यह फैसला करता है कि वह इस पेड़ को नहीं काटेगा। और उस पेड़ के पास से वह सड़क को थोड़ा सा घुमाकर बनाएगा जिससे कुछ दूर के लिए रास्ता अलग होगा लेकिन फिर यह सर्विस रोड वापस हाईवे के समांतर चलने लगेगी। 

सड़क बन जाती है और लोग उसका इस्तेमाल करने लगते हैं।

अब जरा देखिए, दोनों सड़कें लगातार एक दूसरे के बराबर बराबर चलती हैं। पूरे रास्ते में जहां हाईवे ऊपर जाता है सर्विस रोड भी ऊपर जाती है, हाईवे नीचे जाता है तो सर्विस रोड भी नीचे जाती है, हाईवे एक नदी को पार करता है तो सर्विस रोड भी पार करती है। तो कुल मिलाकर दोनों सड़कें एकदम एक जैसे ही चलती हैं और एक जैसे ही बर्ताव करती हैं। सिर्फ एक जगह ऐसा नहीं होता, जहां पर वह पेड़ आकर उस सर्विस रोड पर रास्ते में रुकावट खड़ा करता है। 

अब अगर हम इन सबको अलग-अलग टुकड़ों मे में बांटे तो –

  1. तत्व (Entities) – हाईवे और सर्विस रोड 
  2. संबंध (Relationship) – दोनों तत्व का संबंध एक दूसरे के बराबर समानांतर चलने का है। जैसा एक तत्व (हाईवे) के साथ होता है वैसा ही दूसरे तत्व (सर्विस रोड) के साथ होता है 
  3. संबंध में विसंगति (Relationship Anomaly) – दोनों में समानांतर चलने संबंध है लेकिन सिर्फ एक जगह पर, जहां वह पेड़ आता है, यह स्थिति बदल जाती है 
  4. विसंगति का असर (Effect of the anomaly) – यह विसंगति बहुत छोटी सी है और दोनों सड़कें दोबारा अपने संबंध को कायम कर लेती हैं 

यह उदाहरण बहुत ही ज्यादा अजीब लग सकता है, लेकिन अगर आप सड़क, सर्विस रोड और पेड़ वाली इस पूरी स्थिति और उनके संबंध को ठीक से समझ लें तो शायद आपके लिए पेयर ट्रेडिंग के सिद्धांत को समझना आसान हो जाएगा। 

आइए इसी बात की कोशिश करते हैं 

तो सबसे पहले लेते हैं दो सड़कों या दो तत्वों जैसे यहां पर हमने हाईवे और सर्विस रोड को लिया है, इनको दो कंपनियां मान लीजिए जो कि एक जैसी हैं, उदाहरण के तौर मान लीजिए – HDFC बैंक और ICICI बैंक। 

आमतौर पर, पेयर ट्रेडिंग की हर किताब में पेप्सी और कोका-कोला का उदाहरण लिया जाता है लेकिन वो दोनों ही भारत में लिस्टेड नहीं हैं इसलिए मै HDFC बैंक और ICICI बैंक का उदाहरण ले रहा हूं, आइए आगे बढ़ते हैं – 

  1. दोनों बैंक काफी हद तक एक दूसरे के जैसे ही हैं 
  2. दोनों प्राइवेट सेक्टर के बैंक हैं 
  3. दोनों एक तरह की बैंकिंग उत्पाद और सेवाएं देते हैं 
  4. दोनों के ग्राहक करीब-करीब एक जैसे हैं 
  5. पूरे देश में दोनों की उपस्थिति एक जैसी है 
  6. दोनों बैंकों पर एक जैसे नियम कानून लागू होते हैं 
  7. दोनों बैंकों के सामने चुनौतियां भी एक जैसी होती हैं 

अगर इन दोनों बैंकों के बीच में इतनी ज्यादा समानताएं हैं तो बिजनेस के माहौल में होने वाला किसी भी बदलाव का जो असर एक बैंक पर होगा वही असर दूसरे बैंक पर भी होगा। उदाहरण के तौर पर अगर RBI ब्याज दरें बढ़ाता है तो दोनों बैंकों पर एक जैसा असर होगा और RBI ब्याज दरें कम करता है तो भी असर समान होगा।

तो हम कह सकते हैं कि –

  1. तत्व – HDFC  और ICICI बैंक 
  2. संबंध – एक जैसे बिजनेस

ऊपर दी गई सूचनाओं के आधार पर हम जो निष्कर्ष निकाल सकते हैं – 

  1. दोनों बिजनेस एक ही तरीके के हैं इसलिए उनके स्टॉक की कीमत और उसमें होने वाले बदलाव भी एक जैसे होने चाहिए 
  2. यदि किसी दिन HDFC बैंक के स्टॉक की कीमत ऊपर जाती है तो ICICI बैंक के स्टॉक की कीमत भी ऊपर जानी चाहिए 
  3. अगर HDFC के स्टॉक की कीमत नीचे आती है तो ICICI के स्टॉक की कीमत भी नीचे आनी चाहिए 

इनके आधार पर सभी कंपनियों के लिए एक सामान्य नियम भी बनाया जा सकता है – 

अगर किन्ही दो कंपनियों के बीच में एक अच्छा संबंध स्थापित है तो पहली कंपनी की कीमत में आने वाला कोई भी बदलाव दूसरी कंपनी की कीमत में भी दिखाई देना चाहिए। और अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो वहां पर एक ट्रेड का मौका बनता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर किसी दिन ICICI का स्टॉक X% ऊपर जाता है तो इस संबंध के मुताबिक HDFC के स्टॉक को भी उस दिन Y% ऊपर जाना चाहिए। लेकिन अगर किसी वजह से HDFC का स्टॉक ऊपर नहीं जाता है और अपनी जगह पर ही बना रहता है तो हम कह सकते हैं कि ICICI के स्टॉक की कीमत HDFC की तुलना में उम्मीद से ज्यादा ऊपर चली गई है। 

आर्बिट्राज की दुनिया में इसे सस्ते स्टॉक यानी HDFC को खरीदने या महंगे स्टॉक यानी  ICICI बैंक को बेचने के मौके के तौर पर देखा जाता है। 

संक्षेप में कहें तो इसे ही पेयर ट्रेडिंग का आधार कहा जा सकता है।

अब आप पूछ सकते हैं कि सड़क वाले उदाहरण में जो पेड़ की बात की गई थी उसका यहां पर क्या महत्व है? याद कीजिए कि समांतर चल रही दोनों सड़कों के संबंध में इस पेड़ की वजह से एक विसंगति आ गई थी। 

ठीक वैसे ही, एक दूसरे से एक संबंध के जरिए जुड़े हुए दो स्टॉक की कीमतों में कोई एक घटना विसंगति पैदा कर सकती है जिसकी वजह से एक स्टॉक की कीमत दूसरे स्टॉक की कीमत से अलग चलने लगे। 

यही विसंगति हमें ट्रेड करने का मौका देती है। यह विसंगति किसी भी वजह से आ सकती है – 

  1. HDFC बैंक अपने तिमाही नतीजों का ऐलान करता है। उस समय इसका असर HDFC के स्टॉक की कीमत पर अधिक पड़ेगा और ICICI पर कम। जिसकी वजह से इन दोनों स्टॉक की कीमतों के संबंध में एक विसंगति आएगी जो आगे जाकर ठीक होगी। 
  2. इसी तरीके से जब ICICI बैंक अपने नतीजों का ऐलान करेगा तो एक विसंगति पैदा हो सकती है। 
  3. इनमें से किसी एक बैंक का बड़ा अधिकारी इस्तीफा दे देता है जिसकी वजह से उस स्टॉक की कीमत पर असर पड़ता है जबकि दूसरे स्टॉक पर कोई इसका असर नहीं होता। 
  4. इनमें से किसी एक स्टॉक के बारे में काफी अफवाहें फैलती हैं जबकि किसी दूसरे स्टॉक में ऐसा कुछ नहीं होता। 

आमतौर पर, कीमत में होने वाली विसंगति एक छोटी घटना होती है जो उस समय असर डालती है। मैं इसको छोटी घटना इसलिए कहता हूं क्योंकि इसका असर दो में से सिर्फ एक कंपनी पर पड़ता है। 

दो स्टॉक के बीच का संबंध एक तरह से वह आधार या नियम तय करता है जिससे दोनों स्टॉक की कीमतें जुड़ी होती हैं। इसीलिए पेयर ट्रेडिंग के मामले में ज्यादातर जो चीजें काम आती हैं वह हैं – 

  1. दोनों स्टॉक के बीच के संबंध को पहचानना 
  2. उन दोनों स्टॉक के बीच के संबंध को नापना 
  3. दोनों स्टॉक के बीच के संबंध को हर दिन ट्रैक करना  
  4. इन दोनों के संबंध में आने वाली किसी विसंगति को पहचानना 

दो स्टॉक के बीच के संबंध को परिभाषित करने के कई तरीके हो सकते हैं लेकिन दो सबसे लोकप्रिय तकनीक हैं –  

  1. कीमत का स्प्रेड और रेश्यो – Price spreads and ratios
  2. लीनियर रिग्रेशन – Linear Regression

ये दोनों तकनीक अलग-अलग तरीके की हैं और इन दोनों पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे। 

हम इस अध्याय को समाप्त करें इसके पहले पेयर ट्रेडिंग का इतिहास आपको बता देता हूं। 

पहली बार पेयर ट्रेडिंग मॉर्गन स्टैनली ने 80 के दशक के शुरुआती दिनों में की थी। इस ट्रेड को करने वाले ट्रेडर का नाम गेरी बैमबर्गर था। ऐसा माना जाता है कि गेरी ने इस तकनीक को काफी पहले ही खोज लिया था लेकिन उसने काफी समय तक इसे सिर्फ अपने इस्तेमाल के लिए छुपा कर रखा हुआ था। फिर एक दिन नुनजियो टार्टग्लिया (Nunzio Tartaglia) नाम के एक दूसरा ट्रेडर इसे लोगों के सामने लाया और लोकप्रिय बनाया। 

उस समय काफी लोग नुनजियो टार्टग्लिया को फॉलो करते थे क्योंकि वॉल स्ट्रीट में उसे क्वान्ट ट्रेडिंग का एक्सपर्ट माना जाता था। वो 1980 के दशक में मॉर्गन स्टैनली के प्रॉप ट्रेडिंग डेस्क का हेड था।

मशहूर हेज फंड डी ई शॉ (DE Shaw) ने शुरूआती दिनों में इस स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल किया था।

2.2 – कुछ विचार

जैसा कि आपको समझ में आ गया होगा कि पेयर ट्रेडिंग में आपको दो स्टॉक या इंडेक्स को एक साथ में बेचना और खरीदना होता है। इस वजह से कई लोग मानते हैं कि यह मार्केट न्यूट्रल स्ट्रैटेजी है। मार्केट न्यूट्रल इसे इसलिए कहते हैं क्योंकि आप एक ही समय में लॉन्ग और शॉर्ट दोनों होते हैं। लेकिन ऐसा मानना सही नहीं है क्योंकि आप दो अलग-अलग स्टॉक पर लॉन्ग और शॉर्ट होते हैं 

मार्केट न्यूट्रल होने के लिए आपको एक ही समय एक ही अंडरलाइंग पर लॉन्ग और शॉर्ट दोनों होना चाहिए। कैलेंडर स्प्रेड इसका एक अच्छा नमूना होता है। कैलेंडर स्प्रेड में आप एक ही अंडरलाइंग पर दो अलग-अलग तारीख पर लॉन्ग और शॉर्ट होते हैं। 

इसलिए ऐसा मत मानिए कि पेयर ट्रेडिंग मार्केट न्यूट्रल है। यह एक ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी है जो कि दोनों स्टॉक की कीमतों में होने वाले आपसी अंतर का फायदा उठाने की कोशिश करती है। जब आप एक साथ दो स्टॉक को खरीदते और बेचते हैं तो आप उन दोनों के रिलेटिव वैल्यू का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे होते हैं। इसीलिए मैं पेयर ट्रेडिंग को रिलेटिव वैल्यू ट्रेडिंग (Relative Value Trading) भी कहता हूं। 

वैसे देखा जाए तो यह पूरी तरीके से एक आर्बिट्राज का मौका होता है। हम कम कीमत वाले स्टॉक को खरीद रहे होते हैं और ज्यादा कीमत वाले स्टॉक को बेच रहे होते हैं। इसीलिए कुछ लोग इसे स्टैटिसटिकल आर्बिट्राज (Statistical Arbitrage) भी कहते हैं। 

यहां पर कम कीमत और अधिक कीमत का मतलब एक दूसरे की तुलना में कीमत से है। इसको नापने का तरीका हम अगले अध्याय में सीखेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. एक ही तरीके के बिजनेस से जुड़ी हुई दो कंपनियों के स्टॉक की कीमत एक तरीके की चाल दिखाती हैं 
  2. किसी एक कंपनी में हो रही कोई घटना इन दोनों कंपनियों के शेयर की कीमत के आपसी संबंध में कुछ समय के लिए एक विसंगति पैदा कर सकती है 
  3. जब यह विसंगति पैदा होती है तो यह ट्रेड करने का एक मौका होता है 
  4. पेयर ट्रेडिंग में आप कम कीमत वाले स्टॉक को खरीदते हैं और अधिक कीमत वाले स्टॉक को बेचते हैं 
  5. पेयर ट्रेडिंग को रिलेटिव वैल्यू ट्रेडिंग या स्टैटिसटिकल आर्बिट्राज ट्रेडिंग भी कहते हैं

The post पेयर ट्रेडिंग का आधार appeared first on Varsity by Zerodha.

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