रिस्क मैनेजमेंट और ट्रेडिंग साइकॉलजी – Varsity by Zerodha https://zerodha.com/varsity/module/रिस्क-मैनेजमेंट-और-ट्रेड/ Markets, Trading, and Investing Simplified. Tue, 04 Aug 2020 05:45:39 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.5 ट्रेडिंग पूर्वाग्रह – भाग 2 https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b9-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b9-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2/#comments Mon, 01 Jun 2020 12:35:23 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8048 16.1 – एंकरिंग बायस  मैंने शेयर बाजार में अलग-अलग भूमिकाओं में 13 साल गुजारे हैं, एक ट्रेडर के तौर पर, निवेशक के तौर पर, ब्रोकर के तौर पर, मनी मैनेजर के तौर पर, एनालिस्ट के तौर पर और भी बहुत सारी भूमिकाएं मैंने अदा की हैं। मैंने खुशी वाले दिन भी देखे हैं और बुरे […]

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16.1 – एंकरिंग बायस 

मैंने शेयर बाजार में अलग-अलग भूमिकाओं में 13 साल गुजारे हैं, एक ट्रेडर के तौर पर, निवेशक के तौर पर, ब्रोकर के तौर पर, मनी मैनेजर के तौर पर, एनालिस्ट के तौर पर और भी बहुत सारी भूमिकाएं मैंने अदा की हैं। मैंने खुशी वाले दिन भी देखे हैं और बुरे दिन भी देखे हैं। इस दौरान मैंने काफी कुछ सीखा है। मुझे ऐसा लगता है कि बाजार में खुशी या दुख हमेशा किसी ट्रेड के अच्छे या बुरे होने से नहीं जुड़े होते। हां, जब आप मुनाफा कमाते हैं तो आपको खुशी होती है और जब आपको नुकसान होता है तो आपको दुख होता है, लेकिन यही भावनाएं कई बार ऐसे ट्रेड से भी आती हैं जिसको आपने किया ही नहीं है। मैं आपको स्टॉक मार्केट से जुड़े अपने आजतक के सबसे बड़े दुख या पछतावे के बारे में बताता हूं। 

पिछले कुछ सालों में, अगस्त/ सितंबर 2013 का समय मेरे हिसाब से लंबे समय का पोर्टफोलियो बनाने के लिए सबसे अच्छा समय था। बहुत सारे अच्छे स्टॉक दाम पर मिल रहे थे। मैं काफी भाग्यशाली था कि मुझे यह स्थिति पता थी और मैं बाजार में था। मैं भी अपना इक्विटी पोर्टफोलियो बना रहा था। अपने पोर्टफोलियो के लिए सही स्टॉक चुनना मेरे लिए काफी मुश्किल हो रहा था क्योंकि बाजार में उस समय बहुत सारे ऐसे स्टॉक थे जिनको चुना जा सकता था। इनमें से मुझे अपने लिए अच्छा मौका चुनना था, वास्तव में बेयर मार्केट में ऐसा ही होता है आपको बहुत सारे मौके मिलते हैं।

मैंने अपने पोर्टफोलियो के लिए कुछ स्टॉक चुने, उनको खरीदा आज तक उन्हें अपने पास रखे हुआ हूं। लेकिन मैंने कुछ अच्छे स्टॉक छोड़ दिए थे जैसे MRF, बजाज फिनसर्व आदि। जिन स्टॉक को मैंने छोड़ा, उनको छोड़ने का फैसला इस आधार पर लिया कि बाकी स्टॉक में निवेश मुझे ज्यादा आकर्षक लग रहा था। उसके बाद से, MRF और बजाज फिनसर्व ने बहुत ही अच्छा परफॉर्मेंस दिया है लेकिन मैं अपने फैसले को लेकर जरा भी विचलित नहीं हूं। 

लेकिन सुंदरम क्लेयटन लिमिटेड Sundaram Clayton Limited में निवेश न करने का फैसला आज भी मुझे दुख देता है। मेरे हिसाब से ये बाजार में मेरी सबसे बड़ी गलती रही है। 

इस चार्ट पर नजर डालिए – 

मैंने इस स्टॉक पर भी अपना रिसर्च किया था और मुझे लगता था कि यह स्टॉक खरीदने लायक है। मैं जिस स्तर पर इस स्टॉक को खरीदना चाहता था उसे मैंने गोले से घेर कर दिखाया है – करीब ₹270 प्रति स्टॉक की कीमत पर। मुझे पूरा भरोसा था कि क्योंकि यह बेयर मार्केट है इसलिए मैं इसे 270 या उससे नीचे खरीद ही लूंगा। 

स्टॉक थोड़ा सा ऊपर बढ़ा और करीब 280 पर चला गया, लेकिन मैं अपने फैसले पर अड़ा रहा। मैंने इंतजार किया। स्टॉक की कीमत 290 पर पहुंच गई, मैं फिर भी इंतजार करता रहा। एक दो दिनों बाद, बाद स्टार्ट की कीमत 310 तक पहुंच गई लेकिन फिर भी मैंने अपने आप को भरोसा दिया कि स्टॉक फिर से 270 पर आएगा क्योंकि बेयर मार्केट चल रहा है। मैं जिस कीमत को अपने लिए सबसे अच्छा मानता था उस पर 15% का प्रीमियम देने को तैयार नहीं था। 

अब तक आपको समझ में आ ही गया होगा कि यह शेयर वापस 270 पर कभी नहीं आया और मैं इसे कभी नहीं खरीद पाया उसके बाद इस स्टॉक में कुछ ऐसी रैली हुई –

मैंने 270 की इस कीमत को गोले से घेर कर दिखाया है, इसी जगह पर कीमत को लेकर मेरे दिमाग में उलझन बनी थी।

मैंने शायद अपनी जिंदगी के निवेश के सबसे बड़े मौके को गंवा दिया था क्योंकि मेरे दिमाग ने मेरे साथ एक खेल खेल लिया था। औपचारिक भाषा में कहें तो सुंदरम क्लेयटन लिमिटेड (sundaram-clayton ) को मेरे ना खरीद पाने की सबसे बड़ी वजह थी – ट्रेडिंग का नामी पूर्वाग्रह या बायस जिसे एंकरिंग बायस कहते हैं। 

मैंने विकीपीडिया पर जाकर एंकरिंग बायस के बारे में पढ़ा तो मुझे इसके लिए एक नया शब्द में मिला, इसे फोकलिज्म (Focalism) कहते हैं। एंकरिंग बायस कुछ पूर्वाग्रहों के एक समूह का हिस्सा है जिसे सामूहिक रूप से कॉग्निटिव बायस (Cognitive Biases) कहते हैं। कॉग्निटिव बायस हमारे सोचने की प्रणाली में एक गड़बड़ी पैदा करता है जिसकी वजह से हमारे फैसले लेने की क्षमता पर असर पड़ता है। 

एंकरिंग बायस का असर होने पर – जो सूचना हमें सबसे पहले मिलती है हम सूचना के उसी स्तर पर रुक जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, मेरे अपने मामले में मैंने जो पहली कीमत अपने टर्मिनल पर देखी थी वह 270 थी और मैं उसी पर अटक गया। इस इस तरह से, 270 मेरे लिए एक प्राइस एंकर बन गया। 

आप जरा अपनी ट्रेड में अब तक जो किया हो उस पर पर नजर डालिए, कितनी बार ऐसा हुआ है कि आपने खरीदने का कोई आर्डर या स्टॉपलॉस का कोई आर्डर सिर्फ इसलिए नहीं डाला क्योंकि आपको जो कीमत सही लगती थी वह कभी नहीं आई, जबकि आगे चलते हुए स्टॉक ने बिल्कुल उसी तरीके का परफॉर्मेंस दिया जैसी कि आपको उम्मीद थी। आमतौर पर ऐसे मामलों में, आप को जो कीमत सही लगती है और जो कीमत बाजार में उपलब्ध है उन दोनों के बीच का अंतर कुछ रुपयों का ही होता है, लेकिन हमारा दिमाग हमें इसकी अनुमति नहीं देता। 

सभी दूसरे पूर्वाग्रहों या बायस की तरह एंकरिंग बायस का भी कोई इलाज नहीं है, सिवाय इसके कि आप इसके बारे में अवगत रहें और उस हिसाब से अपनी सोच को बदलते रहें।

16.2 – फंक्शनल फिक्सेडनेस 

एक और कॉग्निटिव बायस है जिसके बारे में आपने ट्रेडिंग की दुनिया में शायद ज्यादा नहीं पढ़ा होगा, लेकिन मुझे लगता है कि यह ट्रेडर को और खासकर डेरिवेटिव ट्रेडर पर काफी ज्यादा असर डालता है। 

पहले समझते हैं कि फंक्शनल फिक्सेडनेस (Functional Fixedness) क्या है और उसके बाद ट्रेडिंग की दुनिया में इसके असर पर चर्चा करेंगे।  

मेरे ऑफिस के पास एक जूस की दुकान है। मैं वहां जूस पीने जाता हूं। एक बार मैं वहां गया और ऑरेंज जूस मांगा। लेकिन जूस वाला अपने मिक्सर के जार (Jar) को ठीक करने में व्यस्त था। उसके जार का हैंडल ढीला था उसको ठीक करने के लिए वो दुकानदार स्क्रूड्राइवर खोज रहा था।  स्क्रूड्राइवर उसे नहीं मिल पा रहा था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो आगे काम कैसे करे।

तभी उसका दूसरा साथी दुकान में आया। उसने पूरे मामले को समझा और फिर वहां पड़े हुए एक चम्मच को उठाया और उसके पिछले हिस्से से स्क्रूड्राइवर का काम लेते हुए जार को कस दिया। समस्या दूर हो गई और मुझे जूस दे दिया गया। 

यह घटना अपने आप में फंक्शनल फिक्सेडनेस (Functional Fixedness) को पूरी तरीके से बताती है। यह एक तरीके का कॉग्निटिव बायस है। यह किसी भी इंसान को किसी वस्तु का सिर्फ वही एक इस्तेमाल करने तक के लिए रोकता है, जो इस्तेमाल हमेशा होता आया है। हम किसी चीज का इस्तेमाल तय कर लेते हैं और पूरी जिंदगी उसी तरीके से गुजार देते हैं। जैसे कि हमें लगता है कि किसी स्क्रू को टाइट करने के लिए सिर्फ स्क्रूड्राइवर की ही जरूरत होती है और उसके बिना यह काम नहीं किया जा सकता। जबकि एक साधारण चम्मच से यह काम आसानी से किया जा सकता है। बस समस्याओं के समाधान के लिए नए तरीके ढूंढने की जरूरत है। 

ट्रेडिंग में भी इसी तरह से कई बार फंक्शनल फिक्सेडनेस (Functional Fixedness) हमारी सोच को एक दायरे में बांध देती है। आइए एक उदाहरण पर नजर डालते हैं। 

मान लीजिए आपके ट्रेडिंग अकाउंट में ₹100,000 हैं। आपको निफ्टी में ट्रेडिंग का एक शानदार मौका दिखाई दे रहा है। निफ्टी के इस सौदे को आप 2 से 3 दिनों तक होल्ड करना चाहते हैं। अब अगर इस सौदे को आप दो या तीन दिन तक होल्ड करना चाहते हैं तो आपको प्रोडक्ट टाइप NRML भरना होगा। इस ट्रेड के लिए आपका कुल ₹65,000 का मार्जिन ब्लॉक हो जाएगा।

तो अगर आपने शाम के 3:20 के पास ये ट्रेड किया और अपनी पोजीशन को कैरी फॉरवर्ड किया, तो आपके ₹65,000 ब्लॉक हो जाएंगे और आपके ऊपर अकाउंट में ₹35,000 का बैलेंस बचेगा, जिसको आप अगले दिन किसी और ट्रेड के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। 

अगले दिन जब बाजार खुलता है तो निफ्टी ऊपर की तरफ चढ़ने लगता है, जिधर आप चाहते थे। आपको फायदा होता है और आप खुश होते हैं। 

 मान लीजिए तभी आपको इंट्राडे ट्रेडिंग का एक और बड़ा मौका दिखाई देता है। TCS के स्टॉक फ्यूचर में जिसके लिए आपको 60,000 का MIS मार्जिन देना पड़ेगा। अब आप क्या करेंगे? आपको ₹25,000 की कमी पड़ेगी क्योंकि आपके पास ₹35,000 का ही मार्जिन बचा हुआ है। ऐसे में आप TCS का वह इंट्राडे ट्रेड नहीं ले पाएंगे। 

लेकिन यहां पर असली गुनहगार फंक्शनल फिक्सेडनेस (Functional Fixedness) है।  हम मान लेते हैं कि ओवरनाइट पोजीशन के लिए ब्लॉक NRML मार्जिन अब पूरी तरह से ब्लॉक है और उसका इस्तेमाल नहीं हो सकता, हम यह नहीं समझते कि जब तक यह पोजीशन स्क्वेयर ऑफ नहीं की जाए तब तक वो पूंजी हमारी पूंजी ही है। 

अगर हम यहां थोड़ा नए तरीके से सोचें और कुछ मेहनत करें, तो, हम आसानी से उस ओवरनाइट पोजीशन को भी रख सकते हैं और यह इंट्राडे मौका भी ले सकते हैं। यह ऐसे काम करेगा –

  1. दिन की शुरुआत में आपके पास 35,000 की मार्जिन है और नए इंट्राडे सौदे के लिए आपको 25,000 की कमी पड़ रही है 
  2. आपको अपने NRML निफ्टी की पोजीशन को MIS पोजीशन में बदलना होगा, जब आप यह करेंगे तो आपकी ब्लॉक मार्जिन 65,000 के बजाए सिर्फ 26,000 की मार्जिन ही रह जाएगी। बाकी ₹39,000 वापस खुल जाएंगे 
  3. अब आपके पास 35,000 और 39,000 की दो मार्जिन मिलाकर करीब दिन के लिए 74,000 के पूंजी बचेगी 
  4. 74,000 में से आप आसानी से 60,000 की MIS मार्जिन दे करके अपना इंट्राडे ट्रेड ले सकेंगे और उसके बावजूद आपके पास 14,000 की मार्जिन बची रहेगी। 
  5. दिन खत्म होने के पहले आप आसानी से अपना TCS वाला MIS ट्रेड यानी इंट्राडे ट्रेड को स्क्वेयर ऑफ करेंगे। 
  6. अब वापस सारे पैसे आपको मिल जाएंगे इस तरह से आपके अकाउंट से वापस 74,000 बचेंगे 
  7. अब बस सिर्फ यह करना है कि निफ्टी ट्रेड को वापस MIS से NRML में कन्वर्ट करना है और उस पोजीशन को कैरी फॉरवर्ड करना है। 

इसे काईट (Kite) में कैसे किया जा सकता है इसका चित्र हम नीचे दिखा रहे हैं

16.3 – कन्फर्मेशन बायस

नीचे दिखाए गए टाटा मोटर्स के चार्ट पर नजर डालिए – 

मैंने इस चार्ट में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को दिखाया है

  1. स्टॉक अभी 430 पर है 
  2. 430 वास्तव में एक प्राइस एक्शन जोन है क्योंकि यहां इस कीमत पर पिछले दिनों कुछ प्रतिक्रियाएं हुई हैं 
  3. अगस्त की शुरुआत में कीमत टूट कर 430 से टूटकर 370 तक पहुंच गई थी 
  4. स्टॉक की कीमत वापस 370 पर जाकर स्थिर हुई जो कि वहां पर बन रहे डबल और ट्रिपल बॉटम से दिख रहा है 
  5. 370 पर जाने के बाद कीमत लगातार वापस चढ़ती रही है और वापस 430 तक आ गयी है। अभी भी कीमत 430 के आसपास है 

इन सब बातों को ध्यान देने पर ये लगता है कि अब स्टॉक ऊपर चलने के लिए तैयार है। 

अगर ऊपर की इस एनालिसिस को ध्यान में रखें और फिर अभी अभी आई इस खबर पर नजर डालें

इस बात की काफी संभावना है कि आप इस खबर को स्टॉक के लिए ऊपर की तरफ चलने का एक ट्रिगर मान लें और फिर ये मानें कि स्टॉक को खरीदने का आपका फैसला सही है। लेकिन, वास्तविकता में, कोई फंडामेंटल खबर स्टॉक के ऊपर चलने के लिए शायद एक अच्छा ट्रिगर ना हो। लेकिन आपका मन इसे सच मानता है क्योंकि वो ऐसी सूचनाओं की तलाश कर रहा होता है, जो आपकी राय को सही साबित कर सकें। दूसरे शब्दों में कहें तो, जब आप ट्रेड के लिए कोई राय बना लेते हैं तो फिर आप उसको समर्थन देने वाले समाचार और सूचनाओं को खोजने लगते हैं। आपका दिमाग उन घटनाओं या सूचनाओं की तरफ नहीं जाता जो कि आपकी राय से अलग हों। 

इस पूर्वाग्रह या बायस को कन्फर्मेशन बायस कहते हैं। 

इससे बचने का तरीका यही है कि आपको अपने फैसलों को एक आलोचक की नजर से देखें।

16.4 – एट्रीब्यूशन बायस 

कभी ना कभी ऐसा जरूरू हुआ होगा कि जब आपकी कोई एनालिसिस सही साबित हुई और आपको ट्रेड में फायदा हुआ तो आपको अपने आप पर गर्व महसूस हुआ हो। जैसे आपने कोई ऑप्शन खरीदा और वह 100% बढ़ गया या आपने कोई स्टॉक खरीदा और उसको कई गुना बढ़ते देखा। 

हर बार जब आप मुनाफा कमाते हैं तो आपको लगता है कि यह आपके स्मार्ट ट्रेडिंग आइडिया की वजह से हुआ है और आप अपनी पीठ ठोकते हैं। लेकिन जब आप नुकसान उठाते हैं, तो क्या होता है? तब आप क्या करते हैं? 

स्टॉक ब्रोकिंग के अपने अनुभव से मैं बता सकता हूं कि जब लोग नुकसान करते हैं तो वह इसके लिए ब्रोकर को या किसी दूसरे को दोषी ठहराते हैं। अपने आप को कभी दोषी नहीं मानते। हर ट्रेडर अपने किसी गलत सौदे के लिए किसी और को दोषी ठहराता है- कभी ब्रोकर को, कभी ब्रोकर के सिस्टम को, कभी चार्ट के ठीक से लोड ना होने को, कभी ऑर्डर के धीमा होने को। 

कारण कोई भी हो हर बार गलती किसी और की ही होती है, इसकी नहीं कि एनालिसिस ठीक नहीं थी। 

इस पूर्वाग्रह को एट्रीब्यूशन बायस (Attribution Bias) कहते हैं। इसका शिकार होकर लोग अपनी गलतियों का दोष किसी और के ऊपर मढ़ते हैं। इससे बचने का तरीका यह है कि हर बार जब आप ट्रेड का फैसला करें तो एक डायरी में उसके बारे में नोट करें कि आपने यह फैसला क्यों किया और आप यह ट्रेड क्यों ले रहे हैं। इसी तरह से जब ट्रेड बंद करें तब भी लिखें कि आपने ये फैसला क्यों किया। इसको पढ़कर धीरे-धीरे आपको पता चलने लगेगा कि आप अपने ट्रेडिंग के फैसले किस तरह से करते हैं।

16.5 – समाप्ति

ऐसे और बहुत सारे बायस हैं और इनकी सूची इतनी लंबी है कि सबको यहां पर डालना और उनके बारे में बात करना मुश्किल है। लेकिन हम यह कर सकते हैं कि जब भी किसी नए बायस के बारे में पता चले तो उस के बारे में मैं यहां पर लिखता रहूं। 

इसके साथ ही मैं रिस्क और ट्रेडिंग साइकॉलजी के इस मॉड्यूल को यहीं खत्म करता हूं। 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. एंकरिंग बायस काफी आम है – इस के असर में ट्रेडर और इन्वेस्टर सबसे पहले मिलने वाली सूचना से एक तरह से चिपक जाते हैं और उसी के हिसाब से फैसले करने लगते हैं। 
  2. एंकरिंग बायस की वजह से आप अच्छे मौके गंवा सकते हैं।
  3. फंक्शनल फिक्सेडनेस किसी भी टूल के इस्तेमाल के बारे में आपकी राय को सीमित कर देता है और आपको उसके बारे में नई कल्पना नहीं करने देता।
  4. फंक्शनल फिक्सेडनेस से बचने का एक ही तरीका है कि आप हमेशा नए-नए रास्ते तलाशते रहें। 
  5. कन्फर्मेशन बायस आपको उन सूचनाओं को खोजने या तलाश करने की ओर धकेलता है जो आपकी राय को समर्थन दे रहे हों। 
  6. ट्रेडिंग की दुनिया में ट्रेडर आमतौर पर अपनी गलती किसी दूसरी वजह पर डालते हैं और अपनी एनालसिस को कभी गलत नहीं मानते इसे एट्रीब्यूशन बायस कहते हैं।
  7. एट्रीब्यूशन बायस से बचने के लिए आप एक ट्रेडिंग जर्नल बना सकते हैं।

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15.1 – दिमाग खेल खेलता है 

क्या आपने इस वीडियो को देखा है

यह एक शो है जिसमें दर्शक कॉल करके अपने स्टॉक मार्केट से जुड़े अपने सवाल करते हैं और शो का एंकर उन्हें इसके जवाब देता है। यह वीडियो उसी तरीके के एक शो का एक हिस्सा है। यहां पर एक दर्शक MRF लिमिटेड के 20000 शेयर को पेपर फॉर्म  से डीमैट में बदलने का तरीका जानना चाहता है। यह शेयर उसके दादाजी ने 90 के दशक में खरीदे थे और तब से उसके पास कागज के सर्टिफिकेट के तौर पर पड़े हैं। 

शेयरों को फिजिकल से डीमैट में बदलने का तरीका दर्शक को बताने के बाद शो का एंकर उसे इन शेयरों की आज की तारीख में कीमत बताता है। 

उस समय MRF के हर एक शेयर की कीमत करीब ₹64,000 थी। उस दर्शक के पास 20,000 शेयर है इसलिए कुल मिलाकर कीमत हुई 

20,000 * 64,000

= 1,280,000,000

यानी 128 करोड़

जरा कल्पना कीजिए 128 करोड़ रुपए 

इस वीडियो को देखने के बाद मेरे दिमाग में कई विचार उठे – 25 साल पहले किसी आदमी ने MRF के शेयर खरीदने का विचार कैसे आया होगा? क्या वह इतनी दूर तक देख सकता था? इतने सालों तक निवेशित रहने के पीछे उसकी प्रेरणा क्या थी? कभी भी उसने इन शेयरों को बेचने की कोशिश क्यों नहीं की? खासकर जबकि शेयर की कीमत शुरुआती निवेश के मुकाबले लगातार कई गुना होती जा रही थी, तब भी उसने इसको बेचा नहीं।

मेरा मानना है कि एक आम निवेशक को अगर यह पता चल जाए कि उस का शेयर 50%,  100% या 200% तक का रिटर्न दे रहा है तो अपने निवेश को तुरंत बेच देता है। लेकिन इस इंसान ने अपने शेयरों को रोक के रखा और उसे बढ़ते हुए देखा 20 गुना यानी 2000% 

यह कैसे हुआ होगा? 

जरा सोचिए, अगर हम यह समझ जाएं कि यह कैसे हुआ, तो हम भी इसी तरीके से अपने लिए संपत्ति जमा कर सकते हैं। 

मैंने इस वीडियो को बार-बार देखा और सोचा कि आखिर यह कैसे हुआ होगा। इसके के बाद मुझे जो समझ आया वो है – 

  • काफी समय पहले उसके दादाजी ने MRF के शेयर खरीदे और उसके बाद इन शेयरों की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया। 
  • एक दिन उन्हें याद आया होगा कि उनके पास MRF के शेयर पड़े हुए हैं
  • बाद में उन्होंने अपने पोते यानी उस शो के उस दर्शक को इन शेयरों के बारे में बताया 
  • फिर उनके पोते ने यह इन शेयरों को डीमैट में बदलने का फैसला किया 
  • मुझे लगता है कि इन शेयरों को डीमैट फॉर्म में बदलने के बाद वो इन शेयरों को बेचेगा 

मुझे ये पूरा घटनाक्रम काफी रोचक लगती है। इस दौरान क्या और कैसे हुआ होगा, इसके बारे में मुझे जो लगता है वह है – 

  1. उसके दादाजी अपने उस निवेश के बारे में भूल गए होंगे और कहीं दूसरी जगह व्यस्त हो गए होंगे 
  • मुझे यह सही इसलिए लगता है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो इसके बाद उन्होंने बीच में कभी इन शेयरों को डीमेट फॉर्म में बदलने की कोशिश जरूर की होती 
  1. क्योंकि वह इन शेयरों के बारे में भूल गए थे इसलिए इसकी कीमत के बढ़ने के बारे में उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया

इससे हमें क्या पता चलता है? 

मुझे लगता है कि सबसे बड़ी बात जो समझ में आती है वह यह है कि उसके दादाजी को के पास काफी पैसे थे और इसलिए वह MRF के शेयरों के बारे में भूल गए। 

अब जरा सोचिए कि – अगर वह अपने निवेश के बारे में नहीं भूलते तो? अगर उनका कोई दोस्त या कोई ब्रोकर होता जो उन्हें हर दिन कॉल करता और बताता कि MRF के शेयरों की कीमत किधर जा रही है तो? 

आपको क्या लगता है क्या इसके बावजूद भी वह इतने सालों तक इन शेयरों को अपने पास रखते? क्या आपको नहीं लगता है कि अगर उन्हें यह पता चलता कि यह शेयर 100%, 200% या 500% तक का रिटर्न दे रहा है तो क्या वह इन शेयरों को बेच नहीं देते? 

तो इसका मतलब यह है कि वह अपने निवेश के बारे में भूल गए इसीलिए उन्होंने सालों तक निवेश अपने पास पड़ा रहने दिया और आज इसका फायदा उनको मिल रहा है। 

अगर वो इस निवेश को या शेयर को लगातार ट्रैक करते और इस शेयर के साथ हो रहे जुड़ी घटनाओं पर नजर रखते तो आपको क्या लगता है, क्या होता? जैसे दूसरे कई लोग डेटा एनालिसिस करते हैं वो भी एनालिसिस करते। जब लोग एनालिसिस करते हैं तो एनालिसिस सिर्फ डेटा तक ही सीमित नहीं होता, आप उसमें अपनी कल्पनाएं या निर्णय भी जोड़ते हैं। ये निर्णय हमारे अनुभवों पर आधारित होते हैं। इन्हीं निर्णयों को ही पूर्वाग्रह या बायस (Bias) कहते हैं। 

ट्रेडिंग और निवेश की दुनिया में आपके और आपके मुनाफे वाली P&L के बीच में जो चीज होती है वह बायस या पूर्वाग्रह ही होती है। 

इस अध्याय में हम इन्हीं आम पूर्वाग्रहों या बायस (Bias) के बारे में बात करेंगे और आपको बताएंगे कि आप इन से कैसे बच सकते हैं।

15.2 – कंट्रोल का भ्रम (इल्यूजन ऑफ कंट्रोल / Illusion of Control)

सबसे पहले उस पूर्वाग्रह को देखते हैं जो आमतौर पर हर ट्रेडर और निवेशक के दिमाग में होता है। नीचे के चार्ट पर नजर डालिए, यह एक ऐसा चार्ट है जो किसी भी टेक्निकल एनालिस्ट के कंप्यूटर में आपको दिख जाएगा। इस चार्ट में जो चीजें आपको दिखेंगी वह हैं 

  1. प्राइस एक्शन के लिए कैंडलस्टिक चार्ट (Candlestick chart)
  2. वोलैटिलिटी को देखने के लिए बॉलिंगर बैंड (Bollinger Band)
  3. रिट्रेसमेंट को देखने के लिए फिबोनाची रिट्रेसमेंट (Fibonacci Retracement)
  4. सपोर्ट और रेजिस्टेंस जानने के लिए पीवट प्वाइंट (Pivot Point)
  5. वॉल्यूम चार्ट 
  6. ATR 
  7. स्टोकैस्टिक इंडिकेटर (Stochastic Indicator)

मुझे पक्का भरोसा है कि 10 में से 8 टेक्निकल ट्रेडर के पास एनालिसिस के लिए ऐसा ही सेटअप होगा, वो चार्ट को ऐसे ही देखते होंगे। जिन लोगों को टेक्निकल एनालिसिस नहीं आती है या जिन्हें चार्ट के बारे में नहीं समझ में आता, उनको यह चार्ट डरा सकता है क्योंकि इस इस चार्ट में काफी ज्यादा चीजें हैं।


इस चार्ट का हर हिस्सा ट्रेडर को एक नई बात बताता है। लेकिन इन बातों के अलावा यह चार्ट उसके दिमाग को एक अलग स्तर पर कुछ और संकेत भी देता है। 

क्योंकि यह चार्ट काफी जटिल है और बहुत सारे लोग इसको समझ नहीं सकते हैं – इसीलिए ट्रेडर को यह लगता है कि वह एक ऐसे विषय को जानता और समझता है जो आम लोगों को समझ में नहीं आता और इसलिए वह यह मान बैठता है कि उसे स्टॉक के बारे में सब कुछ पता है क्योंकि उसके पास बहुत ज्यादा जानकारी है। 

आमतौर पर इसे इल्यूजन ऑफ कंट्रोल कहा जाता है। टेक्निकल ट्रेडर के लिए ये सबसे ज्यादा बड़ा ट्रेडिंग पूर्वाग्रह होता है। आपको भी यह दिखता होगा, जब आप किसी ट्रेडर को यह कहते हुए सुनते हैं कि यह स्टॉक 500 के ऊपर तो बिल्कुल भी नहीं जाएगा।  कई बार आप उन्हें यह कहते हुए भी सुनते हैं कि इस स्टॉक में पुट खरीदना चाहिए और जब आप पूछेंगे कि क्यों, तो वह कहते हैं कि बस मैं कह रहा हूं ना आप बस खरीदिए 

वो ऐसा क्यों करते हैं 

क्योंकि ट्रेडर तकनीकी रूप से मुश्किल चीजों की तरफ आकर्षित होते हैं जब वो मुश्किल चार्ट को देखते हैं और उसका अर्थ समझ पाते हैं तो उन्हें काफी अच्छा लगता है। उन्हें एकदम वैसे ही लगता है जैसे आग से खेलना और सुरक्षित बचना। बाजार काफी जटिल होते हैं और ये माना जाता है कि इस जटिल चीज से जीतने के लिए जटिल एनालिसिस जरूरी है। साथ ही, जब ये पता हो कि इसे सिर्फ आप ही समझ सकते हैं तो और भी अच्छा लगता है। 

इसी व्यवहार को इल्यूजन ऑफ कंट्रोल कहा जाता है। 

याद रखिए कि आपको चार्ट से कितने भी संकेत मिल रहे हों, आप कितने भी अच्छे से भी डेटा एनालिसिस कर रहे हों, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि सभी नतीजे आपके कंट्रोल में हों। अंत में बहुत सारे ऐसे नतीजे आएंगे जिनके बारे में शायद आपने कभी सोचा भी ना हो। जिन पर आपका कंट्रोल ना हो। 

इस व्यवहार से बचने का सिर्फ एक ही तरीका है, आप नतीजों और आंकड़ों पर ही नजर रखें। अगर आप ट्रेडिंग स्ट्रैटजी बना रहे हैं तो आपको यह जानना है कि अगले ट्रेड में मुनाफा होने की कितनी संभावना है। जब आप बाजार को इस नजरिए से देखने लगेंगे तो आप अपने आप सच्चाई का सामना कर रहे होंगे। हर तरफ से आने वाली तरह-तरह की सलाह और एनालिसिस का आप पर असर नहीं पड़ेगा। 

वैसे आपको एक बात पता होनी चाहिए सबसे अच्छी एनालिसिस वह होती है जहां पर चीजें सबसे सरल और आसान हों। जटिलता कभी भी अच्छा होने की गारंटी नहीं है। एक ट्रेडर के तौर पर आपको हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए और हमेशा डेटा के आधार पर अपनी रणनीति बनानी चाहिए।

15.3 – ताजेपन का पूर्वाग्रह (रीसेंसी बायस / Recency Bias)

एक और पूर्वाग्रह जिससे सभी ट्रेडर्स ग्रसित होते हैं, चाहे उन्होंने बाजार में कितना भी समय गुजारा हो, लेकिन कभी ना कभी इसमें फंस ही जाते हैं। इसको एक ताजा उदाहरण से समझते हैं। 

अगर आपने कैफे कॉफी डे इंटरप्राइजेज (CCD) को ट्रैक किया है तो आपको पता होगा कि कंपनी में क्या चल रहा है और उसी कीमत कैसे चल रही है। कंपनी पर इनकम टैक्स विभाग की नजर है कंपनी पर टैक्स चोरी और अपनी आमदनी छुपाने का आरोप है। कुछ दिनों पहले इकोनॉमिक टाइम्स में एक खबर छपी थी जिसकी हेडलाइन थी 

मैं एक बात हमेशा मानता हूं कि अगर किसी कंपनी का कॉरपोरेट गवर्नेंस का रिकॉर्ड अच्छा ना हो तो उस कंपनी में लंबे समय का निवेश करने से बचना चाहिए, चाहे कंपनी में निवेश कितना भी आकर्षक लग रहा हो। इतिहास हमें बताता है कि ऐसा निवेश हमेशा ही नुकसान करता है। अपनी इस राय की वजह से और CCD में हो रही घटनाओं की वजह से मैं CCD में निवेश करने से बचूंगा। 

लेकिन अगर आपने उसने पहले से निवेश किया हुआ है और यह खबर आती है तो? अगर यह मान लिया जाए कि यह खबर सच है तो पहली चीज तो यह होगी कि मैं इस निवेश में से बाहर निकल जाउंगा, चाहे उस कंपनी में कितने भी पैसे लगे हुए हैं और उस पर कितना भी मुनाफा या नुकसान हो रहा हो। 

मेरे एक पारिवारिक मित्र ने CCD में निवेश किया था। इस समाचार से आने के कुछ दिनों बाद उसने मुझे कॉल किया और मुझसे मेरी राय पूछी। तब तक इस खबर को आए हुए 2 से 3 दिन हो चुके थे और इससे मची हुई हलचल कुछ कम हो गई थी। उसने जब पूछा तो मैंने उसे सलाह दी कि इस निवेश में से निकल जाना चाहिए। तब उसने CCD का चार्ट निकाला और मुझे उसे देखने को कहा –


जैसा कि आप देख सकते हैं तेज गिरावट के बाद इसमें हरे रंग का कैंडल बना है जिससे यह लगता है कि वहां पर कुछ खरीदारी आ रही है। शायद कुछ ट्रेडर और निवेशक इस कम दाम पर इसे खरीदने की कोशिश कर रहे हैं। 

लेकिन अगर कॉरपोरेट गवर्नेंस के मुद्दे पर आप इस निवेश से निकलना चाहते हैं, तो आपको निकल जाना चाहिए। लेकिन मेरे मित्र ने मुझसे कहा कि क्या यह बेहतर नहीं होगा कि मैं कुछ समय के लिए इस स्टॉक में रुका रहूं, शायद मुझे पहले से बेहतर कीमत मिल जाए। 

इसके बाद मैंने उसे और समझाने की कोशिश नहीं की। 

लेकिन आपको क्या लगता है, मेरे मित्र के दिमाग में क्या चल रहा था, वह क्यों स्टॉक में रुकना चाहता था, क्या हरे रंग का ताजा कैंडल इस बात से बड़ा था कि इस कंपनी ने अपनी आमदनी को छुपाया और क्या इस कैंडल से कंपनी को कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मामले में क्लीन चिट मिल गयी थी। 

मुझे ऐसा नहीं लगता।  

लेकिन यह कैंडल एक काम करता है, वो एक ऐसा पूर्वाग्रह पैदा करता है जिसे रीसेंसी बायस कहते हैं। रीसेंसी बायस आपको ताजा घटनाओं और सूचनाओं पर भरोसा करने का पूर्वाग्रह पैदा करता है और पुरानी घटनाओं की और सच्चाई की तरफ देखने से रोकता है। मेरे दोस्त के साथ एकदम यही हो रहा था, कुछ हरे कैंडल उसको तेजी का भरोसा दिला रहे थे। हो सकता है कि वहां पर थोड़ी सी तेजी बने भी, लेकिन कॉरपोरेट गवर्नेंस का मुद्दा ना तो खत्म हुआ था और ना ही स्टॉक अब निवेश के लायक रह गया था। 

लेकिन रीसेंसी बायस आपके निर्णय करने की क्षमता को कमजोर कर देता है। यह आपको ताजा घटनाओं को ज्यादा महत्व देने के लिए कहता है जो कि शायद सही नहीं है। 

इस पूर्वाग्रह से बचने का सिर्फ एक ही तरीका होता है कि आप बड़ी तस्वीर को देखें यानी घटनाओं को पूरी पृष्ठभूमि के साथ देखें ना कि सिर्फ एक टुकड़े को देखें।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. बाजार जटिल होते हैं लेकिन उसकी एनालिसिस भी जटिल हो यह जरूरी नहीं है। 
  2. ट्रेडर कई बार आपने चार्ट को ज्यादा जटिल बना देते हैं। इससे उन्हें यह लगता है कि अब उन्हें कोई हरा नहीं सकता। उन्हें एक कंट्रोल की अनुभूति होती है। 
  3. इल्यूजन ऑफ कंट्रोल की वजह से आप घंटों डेटा निकाल सकते हैं जबकि उसकी कोई जरूरत नहीं होती। 
  4. अधिक डेटा का मतलब हमेशा अधिक सूचना नहीं होता है।
  5. रीसेंसी बायस आपको पिछली घटनाओं को देखने से रोकता है जबकि उनका बाजार पर काफी असर हो सकता है।
  6. घटनाओं की बड़ी तस्वीर को पूरी पृष्ठभूमि के साथ देख कर आप रीसेंसी बायस का शिकार होने से बच सकते हैं।

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केली का क्राइटेरिया https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be/#comments Mon, 01 Jun 2020 12:34:08 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8041 14.1 – प्रसतीशत रिस्क पिछले अध्याय में हमने पोजीशन साइजिंग की तीन महत्वपूर्ण तकनीकों पर नजर डाली थी। इनमें से हर तकनीक की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। ये तीन तकनीक हैं –   यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट (Unit per fixed amount) मार्जिन का प्रतिशत या परसेंटेज मार्जिन (Percentage Margin) वोलैटिलिटी का प्रतिशत या परसेंटेज वोलैटिलिटी  (Percentage Volatility) […]

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14.1 – प्रसतीशत रिस्क

पिछले अध्याय में हमने पोजीशन साइजिंग की तीन महत्वपूर्ण तकनीकों पर नजर डाली थी। इनमें से हर तकनीक की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। ये तीन तकनीक हैं –  

  1. यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट (Unit per fixed amount)
  2. मार्जिन का प्रतिशत या परसेंटेज मार्जिन (Percentage Margin)
  3. वोलैटिलिटी का प्रतिशत या परसेंटेज वोलैटिलिटी  (Percentage Volatility)

यह तीनों तकनीक अलग-अलग तरीके से काम करती हैं और जब आप इन तकनीकों को इक्विटी का अनुमान लगाने की तकनीक के साथ मिलाते हैं तो ये अलग-अलग नतीजे देती हैं। इसीलिए यह पूरी तरीके से आप पर निर्भर करता है कि पोजीशन साइजिंग और इक्विटी का अनुमान लगाने की किन दो तकनीकों को आपस में मिला कर आप अपने लिए सबसे बेहतर नतीजा पा सकते हैं।

हम आगे बढ़ें, इससे पहले जरूरी है कि मैं आपको एक और महत्वपूर्ण पोजीशन साइजिंग तकनीक के बारे में जानकारी दे दूं। इसे परसेंटेज रिस्क तकनीक कहते हैं। मेरे जानने वाले बहुत सारे ट्रेडर इसका इस्तेमाल करते हैं और मैं भी इसको बहुत सीधा और आसान तकनीक मानता हूं।

परसेंटेज रिस्क मॉडल आपके इस अनुमान पर काम करता है कि किसी ट्रेड में आप कितना नुकसान सहने को तैयार हैं। जैसा कि आपको पता है कि आम भाषा में इसे स्टॉप लॉस भी कहते हैं। किसी भी ट्रेड के लिए स्टॉप लॉस वह कीमत होती है जहां पर आप अपने ट्रेड को छोड़ देते हैं और नुकसान सह लेते हैं। परसेंटेज रिस्क तकनीक में स्टॉप लॉस के द्वारा तय की गई रिस्क के आधार पर पोजीशन की साइज तय होती है। 

स्टॉक फ्यूचर्स का एक उदाहरण लेते हैं और यह समझते हैं कि यह तकनीक कैसे काम करती है। 

यह टाटा मोटर्स का इंट्राडे चार्ट है। यहां 15 मिनट की फ्रीक्वेंसी दिखाई गयी है (14 सितंबर 2017, करीब 11.30 बजे) 

मुझे यह ट्रेड बहुत ही रोचक लगता है। 

टाटा मोटर्स 393.65 पैसे पर है जोकि प्राइस एक्शन जोन भी है क्योंकि पिछले कुछ समय में इसने दो बार इस स्तर को छुआ है। इसी वजह से 393.65 टाटा मोटर्स के इंट्रा डे के लिए सपोर्ट कीमत भी है। पिछली दोनों बार जब टाटा मोटर्स के स्टॉक ने 393.65 का लेवल छुआ था तो तो उसके बाद स्टॉक की कीमत नीचे चली गई थी, इसलिए इस बात की काफी संभावना है कि कीमत 393.65 पर पहुंचे और प्रतिक्रिया में उछल कर उस स्तर पर जाए जहां से इसमें यह गिरावट शुरू हुई थी यानी कि 400।

इस बात का भी ध्यान रखिए कि 400 और 393.65 के बीच में लो वॉल्यूम रिट्रेसमेंट है। मैंने टेक्निकल एनालिसिस के मॉड्यूल में इस बात पर चर्चा की थी कि मुझे ऐसे ट्रेड क्यों पसंद आते हैं अगर आपने वह मॉड्यूल नहीं पढ़ा है तो आपको उसे पढ़ना चाहिए। 

इन सब बातों को ध्यान रखते हुए एक ट्रेडर 393.65 पर टाटा मोटर्स फ्यूचर्स में लॉन्ग पोजीशन बनाना चाहेगा। 

लेकिन मान लीजिए कि ट्रेड उल्टा पड़ गया तो स्टॉप लॉस क्या होगा? 

मैंने 390 पर भी एक सपोर्ट देखा है इसलिए मैं इस स्तर पर एक स्टॉप लॉस लगाना पसंद करूंगा। 

आप देख सकते हैं कि यह ट्रेड सेटअप काफी सीधा सादा है।

अब यह ट्रेड इस तरह से बनेगा-

स्टॉक – टाटा मोटर्स लिमिटेड 

ट्रेड – लॉन्ग 

ट्रेड कीमत – 393.65 

टारगेट कीमत – कम से कम 400 

टारगेट का मूल्य – 6.35 

स्टॉप लॉस कीमत – 390 

स्टॉप लॉस की वैल्यू – 3.65 

रिवार्ड टू रिस्क – 1.7 

लॉट साइज – 1500 

मार्जिन – 73,500 

अब मान लीजिए कि मेरे पास 500,000 का कैपिटल है। अब अगर टाटा मोटर्स के हर लॉट के लिए मार्जिन 73,500 है तो मैं टाटा मोटर्स के कितने लॉट खरीद सकता हूं?

तकनीकी तौर पर मैं 6.8 या 6 लॉट ले सकता हूं 

500,000/73,500

=6.8

लेकिन सवाल यह है कि क्या आप अपने पूरे कैपिटल यानी पूंजी को सिर्फ एक ट्रेड पर लगा देंगे, मेरी राय में यह बहुत समझदारी वाला काम नहीं होगा। अगर यह सौदा गलत पड़ गया तो आप 32850 (3.65*1500*6) का नुकसान कर बैठेंगे। 

दूसरे शब्दों में कहें तो आप अपनी कुल पूंजी का 

32850/500,000

= 6.57% सिर्फ एक ट्रेड में गंवा देंगे

कोई भी ट्रेड सेटअप, चाहे वह कितना ही अच्छा क्यों ना हो, उस पर इतनी ज्यादा पूंजी का रिस्क लेना सही नहीं होता। आमतौर पर एक प्रोफेशनल ट्रेडर अपनी पूंजी के 1% से 3% से अधिक का रिस्क किसी एक ट्रेड पर नहीं लेता है और यही नियम या सीमा परसेंटेज रिस्क पोजीशन साइजिंग तकनीक का आधार है। 

इसके आधार पर, अब हम यह तय करते हैं कि किसी ट्रेड पर अधिकतम रिस्क की हमारी सीमा (मैक्सिमम रिस्क पर ट्रेड/maximum risk per trade) क्या है ? मान लीजिए कि अभी ये 1.5% है। इसका मतलब है कि इस एक ट्रेड पर मैं जो अधिकतम नुकसान से सह सकता हूं वह है 

1.5*500,000

= 7500

इसका अर्थ यह हुआ कि मैं किसी भी एक सौदे पर 7500 से ज्यादा का नुकसान सहने को तैयार नहीं हूं, यह मेरे नुकसान की अधिकतम सीमा है। 

हमें पता है कि इस ट्रेड के लिए स्टॉप लॉस 390 का है। मेरे 393.65 की एंट्री कीमत के मुकाबले इस स्टॉप लॉस की रुपए में कीमत होगी – 

393.65 – 390

= 3.65

इस तरह से हर लॉट पर नुकसान होगा – 

3.65*1500

= 5475

तो, अब अगर यहां पर स्टॉप लॉस ट्रिगर होता है तो मैं 5475 प्रति लॉट का नुकसान उठाऊंगा। 

मुझे अगर यह पता करना है कि मैं इस सौदे में कितने लॉट का रिस्क लेने को तैयार हूं, तो उसके लिए मुझे अपनी अधिकतम सीमा को हर ट्रेड पर होने वाले नुकसान से विभाजित करना होगा – 

7500/5475

= 1.36

इसका मतलब हुआ कि मैं इस ट्रेड के लिए 1 लॉट खरीद सकता हूं और इसके लिए मुझे 73,500 का मार्जिन देना पड़ेगा।

यहां पर अच्छा ये होगा कि अगले ट्रेड के लिए कुल ब्लॉक होने वाली पूंजी को कम कर दिया जाए और साथ ही, नुकसान को सहने की अधिकतम सीमा में भी बदलाव किया जाए। आइए देखते हैं कि , नुकसान को सहने की अधिकतम सीमा क्या हो सकती है-

500,000 – 73,500

= 426,500

1.5% * 426500

= 6397.5

इसके बाद, अब मैं अगले ट्रेड का स्टॉप लॉस निकालूंगा, फिर उसको लॉट साइज से गुणा करूंगा। अब मिलने वाली संख्या को नुकसान की अधिकतम सीमा यानी 6397.5 से विभाजित करने से मुझे पता चलेगा कि मैं कितने लॉट खरीद सकता हूं।

इसी तरह आगे भी किया जा सकता है।

अगर आप जानना चाहते हैं कि वो ट्रेड कैसा हुआ तो आइए देखते हैं-

मुझे इस तरह के ट्रेड पसंद है जहां पर कीमत स्टॉप लॉस  के आसपास भी नहीं जाती। जैसा कि मैंने पहले कहा था कि इस ट्रेड पर मुझे बहुत भरोसा था। अब हम अपने अगले टॉपिक की तरह बढ़ते हैं, जब किसी ट्रेड को लेकर आप बहुत ज्यादा आश्वस्त हों तो ऐसे में पोजीशन साइजिंग कैसे करनी चाहिए? क्या मुझे ऐसी स्थिति में थोड़ा ज्यादा पूंजी लगानी चाहिए? 

आइए बढ़ते हैं केली क्राइटेरिया की तरफ। 

14.2 – केली क्राइटेरिया

केली क्राइटेरिया की कहानी काफी रोचक है। केली क्राइटेरिया को 1950 के दशक में जॉन केली ने सबके सामने प्रस्तुत किया था। जॉन केली उस समय AT&T  के बेल लैबोरेट्रीज में काम करते थे। उन्होंने इस सिद्धांत को टेलीकॉम कंपनियों के लिए बनाया था, जिससे कि वो कंपनियां लंबी दूरी के टेलीफोन कॉल में आने वाली आवाजों की समस्या से बच सकें। लेकिन उनके इसी सिद्धांत को जुआ खेलने वालों ने अपना सही दांव पता करने के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। जल्दी ही, यह सिद्धांत स्टॉक मार्केट में भी आ गया जहां पर बहुत सारे ट्रेडर और निवेशकों ने भी केली क्राइटेरिया का इस्तेमाल अपने अपने निवेश की रकम पता करने के लिए करना शुरू कर दिया। शायद यह अपनी तरीके की कुछ ही तकनीकों में से है जिसका इस्तेमाल ट्रेडर और इन्वेस्टर दोनों करते हैं।

केली क्राइटेरिया के जरिए हमें ये अंदाजा लगाने में मदद मिलती है कि कुल कितनी रकम (या पूंजी का कितना हिस्सा) किसी एक ट्रेड में लगाना हमारे लिए सही होगा। जब 

  • हमें अपने निवेश के बारे में पक्की जानकारी हो 
  • उस ट्रेड को लेने के लिए हम तैयार हों

अब सीधे एक उदाहरण से केली क्राइटेरिया को समझते हैं। केली क्राइटेरिया एक तरीके का समीकरण है जिसका परिणाम प्रतिशत में मिलता है। इसीलिए इसे केली प्रतिशत भी कहते हैं। यह समीकरण है – 

Kelly % = W – [(1-W)/R]

जहां पर,

W = जीतने या सही होने की संभावना को बताता है

R = जीत / हार का अनुपात है

  • यहां पर जीतने की संभावना का मतलब उस संख्या से है जितनी बार कुल ट्रेड में से जीत हुई है, यानी जीत वाले ट्रेड में से कुल ट्रेड को विभाजित करने पर मिलने वाली संख्या
  • जीत हार का अनुपात वो संख्या है जो जीत वाले ट्रेड में होने वाली औसत कमाई को हार वाले ट्रेड में होने वाले औसत नुकसान से विभाजित करने से मिलती है 

इसको अच्छे से समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं, मान लीजिए मेरे पास एक ट्रेडिंग सिस्टम है जिससे मुझे निम्नलिखित नतीजे मिल रहे हैं आसानी से समझने के लिए मान लेते हैं कि इस ट्रेडिंग सिस्टम से मुझे सिर्फ एक स्टॉक का ट्रेड मिलने वाला है और वह है टाटा मोटर्स

क्रम सं संकेत मिलने की तारीख नतीजा P&L (रूपए में)
01 3rd Sept Win/जीत + 5,325
02 4th Sept         Win/जीत +2,312
03 5th Sept Win/जीत +4,891
04 6th Sept Loss/हार/नुकसान – 6,897
05 11th Sept Win/जीत +1,763
06 12th Sept Loss/हार/नुकसान -3,231
07 13th Sept Loss/हार/नुकसान -989
08 14th Sept Loss/हार/नुकसान -1,980
09 15th Sept Win/जीत +8,675
10 18th Sept Win/जीत +4,231

 

ऊपर के डेटा के मुताबिक –

W = जीत वाले ट्रेड की संख्या / कुल ट्रेड की संख्या

W = Total Number of winners / Total number of trades

= 6/10

= 0.6

R = औसत कमाई / औसत नुकसान

R = Average Gain / Average Loss

औसत कमाई =  [5325, 2312, 4891, 1763, 8675, 4231] का औसत

= 4,532

औसत नुकसान = [6897, 3231, 989, 1980] का औसत

=3,274

R = 4532 / 3274

= 1.384

ध्यान दीजिए कि 1 से बड़ी कोई संख्या अच्छी मानी जाएगी क्योंकि ये बताता है कि आपकी औसत कमाई आपके औसत नुकसान से अधिक है। 

अब इन आंकड़ों को केली क्राइटेरिया के समीकरण में डालते हैं –

Kelly % = W – [(1-W)/R]

= 0.6 – [(1-0.6)/1.384]

=0.6 – [0.4/1.384]

= 0.31 or 31%.

अपने मूल सिद्धांत के मुताबिक केली प्रतिशत हमें बताता है कि पूंजी का कितना हिस्सा एक सौदे में लगाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर टाटा मोटर्स के 11वें ट्रेड के लिए केली क्राइटेरिया ये बता रहा है कि इस ट्रेड में कैपिटल यानी पूंजी का 31% लगाना चाहिए। 

लेकिन मुझे लगता है कि यह सुझाव थोड़ा दिक्कत पैदा करने वाला है। मान लीजिए कि अगर हमारे पास ऐसा ट्रेडिंग सिस्टम है जो बहुत सही संकेत देता है, तो केली प्रतिशत यहां पर 70% भी हो सकता है। मतलब यह हमें एक ट्रेड (सौदे) में अपनी पूंजी का 70% लगाने का सुझाव दे रहा होगा। मेरे हिसाब से यह बहुत अच्छी बात नहीं है। आप पूछेंगे क्यों? अगर किसी सिस्टम 70% सही भविष्यवाणी कर रहा है तो रकम बढ़ाने में किया दिक्क्त है? 

ऐसा इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि इस बात की 30% संभावना अभी भी है कि आप अपनी 70% पूंजी को गंवा बैठें। 

तो इससे बचने के लिए केली क्राइटेरिया में एक बदलाव को देखते हैं। एक बार फिर वापस जाते हैं परसेंटेज रिस्क पोजीशन साइजिंग तकनीक पर, जिसके बारे में हमने पिछले अध्याय में चर्चा की थी। 

परसेंटेज रिस्क तकनीक एक ऐसी तकनीक है जो हमारे ट्रेड में 1.5% (या किसी और आंकड़े का) का रिस्क लेने का अनुमति देता है। अब केली क्राइटेरिया के सुझाव के बाद हम उस 1.5% को बदलकर 5% तक या किसी भी ऐसे प्रतिशत कर सकते हैं जो कि ठीक लगता हो।

इसका मतलब ये है कि किसी एक ट्रेड में मैं 5% से अधिक पूंजी नहीं लगाउंगा। तो अब मुझे 0.1% से 5% तक पूंजी के किसी भी हिस्से पर रिस्क लेने की छूट है। लेकिन सही प्रतिशत का चुनाव कैसे करें?

यहां पर हम केली प्रतिशत का इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर केली प्रतिशत 30% है तो हम 30% का 5% हिस्सा लगाएंगे। यानी कुल पूंजी का 1.5%। अगर केली प्रतिशत 70% है तो हम पूंजी का 70% का 5% यानी 3.5% लगाएंगे।  

तो केली प्रतिशत जितना अधिक होगा पूंजी उतनी ही अधिक लगेगी और कम होने पर कम। 

अगर आपको केली प्रतिशत के गणित वाले हिस्से को समझना है तो आप ये वीडियो देख सकते हैं। खास कर 10वें मिनट के बाद का हिस्सा।

 https://youtu.be/o7YIa1w58Yc

इसके साथ ही पोजाशन साइजिंग पर इस चर्चा को मैं यहीं खत्म करता हूं। उम्मीद है कि अब आपको पोजीशन साइजिंग करने में सहूलियत होगी।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. परसेंटेज रिस्क तकनीक पोजीशन साइजिंग की एक आसान तकनीक है। 
  2. इसमें रिस्क लेने की अपनी अधिकतम सीमा को तय करना होता है, इसके बाद मिली संख्या को स्टॉप लॉस से विभाजित करने पर पता चल जाता है कि एक ट्रेड में कितनी रकम लगानी चाहिए। 
  3. केली क्राइटेरिया बताता है कि पूंजी का कितना हिस्सा एक सौदे में लगाना चाहिए। 
  4. केली क्राइटेरिया को परसेंटेज रिस्क तकनीक के साथ मिला कर एक अच्छा परिणाम पाया जा सकता है। 

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ट्रेडर के लिए पोजीशन साइजिंग (भाग 3) https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%9c%e0%a5%80%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9c-3/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%9c%e0%a5%80%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9c-3/#comments Mon, 01 Jun 2020 12:33:35 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8039 13.1 – अपना रास्ता चुनिए पिछले अध्याय में हमने एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत पर चर्चा की थी। हमने देखा था कि इक्विटी कैपिटल निकालने के लिए कैसे तीन अलग-अलग मॉडल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन तीनों में से किसी भी मॉडल का इस्तेमाल करने पर आपको पोजीशन साइजिंग करने का एक अलग […]

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13.1 – अपना रास्ता चुनिए

पिछले अध्याय में हमने एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत पर चर्चा की थी। हमने देखा था कि इक्विटी कैपिटल निकालने के लिए कैसे तीन अलग-अलग मॉडल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन तीनों में से किसी भी मॉडल का इस्तेमाल करने पर आपको पोजीशन साइजिंग करने का एक अलग अनुशासन पैदा हो जाता है, लेकिन यह काफी नहीं है। हमें पोजीशन साइजिंग करने के लि एक अलग प्रणाली की जरूरत अभी भी है। इसीलिए इस अध्याय में हम आगे बढ़ेंगे और वैन थार्प की पोजीशन साइजिंग की तकनीक पर नजर डालेंगे। 

अभी हम पोजीशन साइजिंग की इन तीन मुख्य तकनीकों पर नजर डालेंगे 

  1. यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट (Unit per fixed amount)
  2. मार्जिन का प्रतिशत या परसेंटेज मार्जिन (Percentage Margin)
  3. वोलैटिलिटी का प्रतिशत या परसेंटेज वोलैटिलिटी  (Percentage Volatility)

ध्यान रखिए कि इन तीनों मॉडल में एसेट या समय से कोई अंतर नहीं पड़ता। मतलब इस बात का कोई असर नहीं पड़ता कि इनका इस्तेमाल किस तरह के एसेट पर किया जा रहा है या कितने समय के लिए किया जा रहा है। पोजीशन साइजिंग की इन तकनीकों को आप किसी भी एसेट के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, चाहे स्टॉक हो, स्टॉक फ्यूचर हो, कमोडिटी फ्यूचर हो या करेंसी फ्यूचर हो। इसी तरीके से आप इन को किसी भी समय सीमा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं- इंट्राडे, कुछ ट्रेडिंग सेशन के लिए, लंबे ट्रेडिंग सेशन के लिए या कुछ महीनों के लिए।

इसको ज्यादा अच्छे से समझने के लिए पहले एक ट्रेडिंग सिस्टम को चुनना पड़ेगा। उदाहरण के तौर पर, मूविंग एवरेज क्रॉसओवर सिस्टम का चुनाव किया जा सकता है। एंट्री और एग्जिट के लिए अपने नियम तय करें किसी तय समय अवधि में मिलने वाले अपने रिटर्न को तय करें। इसके बाद पोजीशन साइजिंग की एक तकनीक लें, उसमें इन सब डाटा को डालें और फिर उससे मिलने वाले नतीजों का आकलन करें। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इसके बाद आपको ना सिर्फ अपने P&L  में सुधार दिखेगा बल्कि अपने सिस्टम की स्थिरता में भी सुधार दिखाई पड़ेगा। 

देखते हैं कि यह कैसे काम करता है 

– मान लीजिए आपके पास एक बहुत साधारण ट्रेडिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं जैसे कि एक सिंपल मूविंग एवरेज क्रॉसओवर सिस्टम। 

– जब भी इस सिस्टम से सिग्नल यानी संकेत मिलेगा तब आप इस सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए अपने पैसे लगाएंगे और ट्रेडिंग करेंगे 

– इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाने के लिए तीन मॉडल है और इसी तरह से पोजीशन साइजिंग की तकनीक के भी 3 मॉडल हैं 

– इसका मतलब है कि आप अपनी पोजीशन साइजिंग को 3 X 3 यानी 9 अलग अलग तरीके से कर सकते हैं और अपने पैसे लगा सकते हैं 

– इनमें से हर एक तरीके में P&L  अलग-अलग होगा 

हालांकि मैं अपने अनुभव से आपको सलाह दूंगा कि आप इक्विटी निकालने के लिए किसी एक ही मॉडल का इस्तेमाल करें और पोजीशन साइजिंग के लिए एक या दो तकनीकों का इस्तेमाल करें। इससे ज्यादा आपके लिए ठीक नहीं होगा क्योंकि वह चीजों को और जटिल बनाएगा और जटिलता हमेशा अच्छी नहीं होती है। 

एक ट्रेडर के तौर पर आपको ये खुद तय करना है कि इनमे से कौन सा रास्ता आपके लिए सही है और आप किसे चुनेंगे। तो आइए पोजीशन साइजिंग की तकनीकों के बारे में जानना शुरू करते हैं

13.2 – यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट 

सबसे पहले नजर डालते हैं यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट (Unit per fixed amount) मॉडल पर। यह काफी सीधा और सरल मॉडल है। कोई भी ट्रेडर जिसने कभी भी पोजीशन साइजिंग की शुरुआत की हो उसने इस मॉडल पर नजर जरूर डाली होगी। अपनी सरलता की वजह से यह मॉडल मुझे पसंद भी है और इसी वजह से नापसंद भी है। 

इस मॉडल में आपको सिर्फ यह बताना होता है कि आपकी दी हुई रकम से कितने शेयर खरीदना चाहते हैं या फ्यूचर में कितने लॉट खरीदना चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए आपके ट्रेडिंग अकाउंट में ₹200,000 हैं और आपके पास पांच ऐसे एसेट हैं जिनमें आप निवेश कर सकते हैं। (मौके का समूह या opportunity universe)

  1. निफ्टी
  2. SBI
  3. HDFC
  4. टाटा मोटर्स
  5. इन्फोसिस

अब यह कह सकते हैं कि आप एक बार में, किसी भी एसेट के फ्यूचर के एक लॉट के लिए 100,000 रूपए से अधिक नहीं खर्च करेंगे। अब ऐसे में मान लीजिए कि आपके सिस्टम से आपको निफ्टी को खरीदने का सिग्नल मिल रहा है, अब क्योंकि आपके पास सिर्फ ₹200,000 हैं तो आप निफ्टी के सिर्फ एक या 2 लॉट खरीद सकते हैं। 

इस मॉडल (तकनीक) में फैसला करना बहुत ही आसान है। लेकिन इसमें कुछ दिक्कतें भी हैं।

मान लीजिए अगर आपको एक ही समय में निफ्टी फ्यूचर्स और टाटा मोटर्स दोनों को खरीदने का सिग्नल मिल रहा हो तो आप क्या करेंगे? चूंकि आपके पास ₹200,000 हैं आप एक लॉट निफ्टी का और एक टाटा मोटर्स का खरीदेंगे। ध्यान में रखिए कि जब मैं इसे लिख रहा हूं उस समय निफ़्टी फ्यूचर में ₹60,000 की मार्जिन लगती है और टाटा मोटर्स में करीब ₹72,000 की मार्जिन देनी पड़ती है।

मार्जिन चाहे कुछ भी हो, लेकिन इस मॉडल का नियम यह है कि एक लाख पर आपको एक लॉट ही खरीदना है। इसका मतलब यह है कि पोजीशन साइजिंग का यह मॉडल दोनों कॉन्ट्रैक्ट यानी निफ्टी और टाटा मोटर्स एक ही समान वजन दे रहा है और इस बात पर नजर नहीं डाल रहा कि दोनों एसेट से जुड़े रिस्क अलग हैं। आपको समझाने के लिए बता देता हूं कि निफ्टी फ्यूचर का एनुअलाइज्ड (वार्षिक) वोलैटिलिटी करीब 14% है जबकि टाटा मोटर्स की एनुअलाइज्ड (वार्षिक) वोलैटिलिटी करीब 40% है। इसका मतलब है कि आप पोर्टफोलियो के स्तर पर ज्यादा रिस्क लेने जा रहे हैं। 

अब यह बात अच्छी भी है और बुरी भी। अच्छी इसलिए है कि यह मॉडल रिस्क के आधार पर आपको कोई ट्रेड करने से रोक नहीं रहा है और बुरी इसलिए है कि यह रिस्क को नजरअंदाज कर रहा है। 

यहां पर एक और बात है – देखिए, आप एक ऐसा ट्रेडिंग सिस्टम अपना रहे हैं जिसमें 100,000 पर आपको एक लॉट ही खरीदना है। मान लीजिए कि आपके पास ₹200,000 की पूंजी है और आपका सिस्टम आपको हर बार अच्छे सिग्नल दे रहा है और आप लगातार अच्छी कमाई वाले सौदे कर रहे हैं। लेकिन इसके हर सिग्नल पर आप सिर्फ दो लॉट ही खरीद सकते हैं। अब आपको अगर एक या दो लॉट ज्यादा खरीदने हैं तो आपको अपने कैपिटल को बढ़ाना पड़ेगा या फिर अपने मुनाफे को वहां तक पहुंचने का इंतजार करना होगा कि आपका कैपिटल दोगुना हो जाए। इस तरह से पोजीशन साइजिंग की यह तकनीक आपके सौदों को बढ़ाने में रुकावट बनती है। इससे बचने का एक ही रास्ता होता है कि आपको अपने अकाउंट का आकार यानी अपने कैपिटल को बढ़ाना होगा। 

इन्हीं वजहों से मैं यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट नाम की पोजीशन साइजिंग की इस तकनीक का इस्तेमाल नहीं करना चाहता हूं। लेकिन मेरी सलाह यह होगी कि आप अपने हिसाब से एक रकम चुनें और फिर इस तकनीक का इस्तेमाल करके देखें। उसके बाद ही फैसला करें कि ये आपके लिए सही है या नहीं।

13.3 – मार्जिन का प्रतिशत या परसेंटेज मार्जिन 

परसेंटेज मार्जिन पोजीशन साइजिंग तकनीक काफी रोचक है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि यह तकनीक यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट तकनीक के मुकाबले ज्यादा अच्छे तरीके से बनाई गई है, खासकर इंट्राडे ट्रेडर के लिए यह ज्यादा अच्छे से काम करती है। परसेंटेज मार्जिन तकनीक में आपको अपने पोजीशन की साइज अपने मार्जिन के आधार पर तय करनी होती है। 

इस तकनीक में आप अपने कैपिटल के एक निश्चित प्रतिशत को ट्रेड के मार्जिन के लिए तय कर देते हैं। आइए एक उदाहरण से समझते हैं 

मान लीजिए आपके पास ₹500,000 की पूंजी है और आप यह तय करते हैं कि इसमें से 20% से ज्यादा पूंजी किसी एक ट्रेड के मार्जिन में नहीं लगाएंगे। इसका मतलब है कि किसी भी एक ट्रेड में ₹100,000 से ज्यादा की पूंजी नहीं लगाई जाएगी। 

अब ऐसे में, मान लीजिए कि आपको निफ़्टी फ्यूचर्स में ट्रेड करने का एक मौका दिखाई देता है, आपको पता है कि आप यह पोजीशन आसानी से ले सकते हैं क्योंकि इसके लिए आपको करीब ₹60,000 की मार्जिन देनी पड़ेगी। लेकिन मान लीजिए उसी समय आपको ICICI में भी ट्रेड का मौका दिखाई देता है जहां पर आपको ₹105,000 तक की मार्जिन देनी पड़ेगी। मार्जिन की रकम पोजीशन साइजिंग से ज्यादा होने की वजह से यह ट्रेड आपकी पहुंचकर बाहर होगा। अब ऐसे में आपको अपनी पूंजी बढ़ानी पड़ेगी, लेकिन इसी तरह से हर बार तो मौके का फायदा उठाने के लिए आप पूंजी नहीं बढ़ा सकते । पूंजी तब बढ़ती है जब आपको काफी मुनाफा हो रहा हो और वो मुनाफा आपके अकाउंट में जमा हो रहा हो।

खैर, अभी आगे बढ़ते हैं। मान लीजिए निफ्टी में पोजीशन लेने के बाद आपके सामने ACC में एक मौका आता है जिसके लिए मार्जिन ₹90,000 का है 

क्या आप यह पोजीशन लेंगे?

इसका जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपनी इक्विटी का अनुमान कैसे लगा रहे हैं? 

अगर आपने टोटल इक्विटी मॉडल लिया है, तब आप अपनी कुल इक्विटी को 500,000 मानेंगे उसमें से 20% जो कि 100,000 होता है। तो आप ACC पोजीशन आसानी से ले सकते हैं। 

लेकिन अगर आपने रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल लिया है तब यह इस तरह से काम करेगा (20% पोजीशन साइजिंग के साथ) –

शुरुआती इक्विटी कैपिटल – 5 लाख

ब्लॉक की गयी मार्जिन – 60 हजार

नई इक्विटी कैपिटल – 4.4 लाख

20% पर मार्जिन – 88 हजार

तो इसका मतलब है कि अब आपको 90000 की पोजीशन लेने के लिए ₹2000 की कमी पड़ेगी। इस वजह से आपको यह ट्रेड छोड़ना पड़ेगा। तो अब आपको समझ में आ गया होगा कि इक्विटी का अनुमान लगाना कितनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। 

अब, मान लीजिए कि आपने कोई ऐसा मौके देखा है जहां पर ₹40,000 की मार्जिन देनी है और आपके पास ₹88,000 हैं तो आप बहुत आसानी से दो लॉट तक की पोजीशन ले सकते हैं। 

परसेंटेज मार्जिन का नियम यह सुनिश्चित करता है कि आप हर पोजीशन के लिए करीब एक बराबर मार्जिन ही दें। लेकिन हर पोजीशन के लिए वोलैटिलिटी अलग होती है। इस वजह से अंत में ऐसा हो सकता है कि आप कुछ ज्यादा रिस्क वाले ट्रेड कर बैठें। इस वजह से आपका पूरा रिस्क प्रोफाइल बदल सकता है। 

रिस्क की इस संभावना से बचने के लिए ही पोजीशन साइजिंग का अगला मॉडल आपकी मदद करता है

13.4 – वोलैटिलिटी का प्रतिशत या परसेंटेज वोलैटिलिटी 

पोजीशन साइजिंग का परसेंटेज वोलैटिलिटी मॉडल आपके एसेट की वोलैटिलिटी का भी ध्यान रखता है। इस तकनीक में स्टैंडर्ड डेविएशन वाली आम वोलैटिलिटी का इस्तेमाल नहीं होता है बल्कि हर दिन उस एसेट में आने वाले उतार-चढ़ाव का ध्यान रखा जाता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर SBI का OHLC 276, 279, 274 और 278 है, तो फिर इस मॉडल में उस दिन के लो (low) और हाई (high) के बीच के अंतर को वोलैटिलिटी माना जाता है। जैसे यहां पर

279 – 274

=

इस तरह से वोलैटिलिटी निकालने का सबसे आसान तरीका यह है कि आप कुछ दिनों के लिए लो और हाई के बीच में अंतर निकाल लें और फिर उसका औसत देख लें। यहां पर बस एक दिक्कत आएगी, वह यह कि अगर गैप अप या गैप डाउन ओपनिंग हुई तो वह इसमें शामिल नहीं होती है। इसी वजह से वैन थार्प ने एवरेज ट्रू रेंज (average true range) का सिद्धांत सामने रखा था जिसके जरिए स्टॉक की वोलैटिलिटी को नापा जा सकता है।  

पोजीशन साइजिंग के परसेंटेज वोलैटिलिटी तरीके में हमें तय करना होता है कि किसी स्टॉक के लिए हम कितनी वोलैटिलिटी लेने को तैयार हैं और उसके हिसाब से अपने कैपिटल का अनुमान लगाना होता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर इक्विटी कैपिटल 500,000 है, तो मैं एक नियम बना सकता हूं कि मैं किसी भी हालत में 2% से ज्यादा की वोलैटिलिटी नहीं सहना चाहूंगा। 

इसको एक उदाहरण से समझते हैं नीचे पिरामल एंटरप्राइजेज (PEL) का एक चार्ट दिया गया है

इसका 14 दिन का ATR 76 है। जिसका मतलब है कि PEL का हर एक शेयर मेरे इक्विटी कैपिटल पर 76 रूपए तक की वोलैटिलिटी ला सकता है।

अब मान लीजिए कि मैं PEL में ट्रेड का एक मौका देखता हूं, अब मैं 500,000 के अपने कैपिटल में से इसके कितने शेयर खरीद सकता हूं क्योंकि हमने 2% से ज्यादा की वोलैटिलिटी ना लेने की सीमा तय कर रखी है।

5 लाख का 2% होता है 10,000 जिसका मतलब है कि मैं सिर्फ उतने ही शेयर खरीद सकता हूं जिससे PEL की वोलैटिलिटी का असर 10,000 से अधिक ना हो।

यहां पर मैं कितने शेयर खरीद सकता हूं ये जानने के लिए मुझे 10,000 को 76 से विभाजित करना होगा

10,000/76

= 131.57 यानी करीब 131 शेयर

PEL के शेयर की मौजूदा कीमत करीब 2700 है तो आप कुल निवेश करेंगे

131*2700

= 353,700 रूपए

अब अगर रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मटडल का इस्तेमाल करें तो अगले ट्रेड के लिए पूंजी बचेगी – 

500,000 – 353,700

= 146,300

अब 2% की वोलैटिलिटी की सीमा के मुताबिक सिर्फ 2929 की वोलैटिलिटी ली जा सकती है। जिसका मतलब है कि अगले ट्रेड के लिए पूंजी कम है लेकिन वोलैटिलिटी लेने का स्तर उतना ही रहता है यानी 2%।

यहां पर एक सलाह (वैन थार्प की तरफ से)- अगर आप पोजीशन साइजिंग के परसेंटेज वोलैटिलिटी तरीके का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको वोलैटिलिटी के उस स्तर को तय  करना होगा जिसे आप पोर्टफोलियो पर लेना चाहते हैं। मान लीजिए कि आपने पोर्टफोलियो पर 15% की वोलैटिलिटी की सीमा तय की तो 5 लाख के कैपिटल पर ये रकम होगी 75,000 रूपए।

तो जरा सोचिए, अगर आप की ली हुई हर पोजीशन नुकसान करती है तो आप अपने 5 लाख के कैपिटल पर एक दिन में 75,000 तक गंवा सकते हैं। बुरा लग रहा है ना? अगर ये बहुत ज्यादा लग रहा है तो फिर 15% की सीमा आपके लिए नहीं है।

अगले अध्याय में हम कुछ और सिद्धांतों को समझेंगे और फिर trading biases पर नजर डालेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. इक्विटी कैपिटल का सही अनुमान लगाना पोजीशन साइजिंग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है
  2. अगर इक्विटी का अनुमान लगाने के 3 तरीके हैं और पोजीशन साइजिंग के 4 तरीके तो आप अपनी पोजीशन साइजिंग को 4 X 3 यानी 12 अलग अलग तरीके से कर सकते हैं 
  3. यूनिट पर फिक्स्ड मॉडल में आपको ये बताना होता है कि आप दी हुई रकम से कितने शेयर खरीदना चाहते हैं या फ्यूचर के कितने लॉट खरीदना चाहते हैं।
  4. यूनिट पर फिक्स्ड मॉडल- रिस्क पर ध्यान नहीं देता है
  5. परसेंटेज मार्जिन तकनीक में आपको ये बताना होता है कि अपने पोजीशन का कितना हिस्सा मार्जिन के तौर पर लगाना चाहते हैं।
  6. परसेंटेज वोलैटिलिटी तकनीक में वोलैटिलिटी को ATR में नापा जाता है
  7. परसेंटेज वोलैटिलिटी तकनीक में हर पोजीशन की वोलैटिलिटी को एक बराबर माना जाता है।

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ट्रेडर के लिए पोजीशन साइजिंग (भाग 2) https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%9c%e0%a5%80%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9c-2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%9c%e0%a5%80%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9c-2/#comments Mon, 01 Jun 2020 12:32:59 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8037 12.1 – इक्विटी कैपिटल क्या है पिछले अध्याय में हमने पोजीशन साइजिंग के बारे में बात की थी और यह बताया था कि उसकी जरूरत क्यों पड़ती है। पोजीशन साइजिंग के जरिए आप पता कर सकते हैं कि अपनी कुल पूंजी का कितना हिस्सा हर सौदे में लगाना चाहिए। इस अध्याय में हम उसी बातचीत […]

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12.1 – इक्विटी कैपिटल क्या है

पिछले अध्याय में हमने पोजीशन साइजिंग के बारे में बात की थी और यह बताया था कि उसकी जरूरत क्यों पड़ती है। पोजीशन साइजिंग के जरिए आप पता कर सकते हैं कि अपनी कुल पूंजी का कितना हिस्सा हर सौदे में लगाना चाहिए। इस अध्याय में हम उसी बातचीत को आगे बढ़ाएंगे और यह देखेंगे कि पोजीशन साइजिंग कैसे की जाती है। 

लेकिन पहले एक बार फिर से दोहरा लेते हैं कि पोजीशन साइजिंग क्या होती है 

पोजीशन साइजिंग से आपको इस बात का जवाब मिलता है कि अगर आपके पास एक निश्चित रकम– X है, तो उस रकम का कितना हिस्सा एक खास ट्रेड में लगाना चाहिए। पोजीशन साइजिंग का एक आम नियम जिसे आमतौर पर लोग इस्तेमाल करते हैं वो है -पूंजी का 5% हिस्सा। इस नियम का मतलब यह है कि किसी भी एक सौदे में आप अपनी कुल पूंजी के 5% से ज्यादा हिस्से पर रिस्क पर नहीं लेगें। मतलब अगर आपके पास ₹100000 की पूंजी है तो आप किसी एक सौदे में ₹5000 से ज्यादा की पोजीशन नहीं लेंगे। 

यहां पर ₹100000 आपकी इक्विटी कैपिटल या कुल पूंजी है और ₹5000 एक सौदे में आपका निवेश है। आपने पोजीशन साइजिंग के नियम के मुताबिक ₹5000 का सौदा करने का फैसला किया है।

पोजीशन साइजिंग के कई अलग-अलग तरीके होते हैं। इसका मतलब यह भी है कि कोई एक निश्चित तकनीक नहीं है जिसके जरिए पोजीशन को साइज किया जा सके। ट्रेडर के तौर पर आपको कई बार अलग-अलग प्रयोग करने होते हैं और देखना होता है कि आपके लिए कौन सा तरीका सही है। लेकिन चिंता मत कीजिए जल्दी ही मैं पोजीशन साइजिंग की कुछ तकनीक के बारे में चर्चा करूंगा। 

आप पोजीशन साइजिंग की कोई भी तकनीक अपनाएं, कभी ना कभी आपको अपने इक्विटी कैपिटल का अनुमान जरूर लगाना होगा, हर निवेश के पहले ये देखना होगा कि आपके पास कुल कितनी पूंजी है और आप उसमें से कितना एक बार में निवेश कर सकते हैं। इसीलिए पहले हम एक ऐसी तकनीक के बारे में चर्चा करेंगे जो आपकी कुल पूंजी का अनुमान लगाए और इसके बाद हम पोजीशन साइजिंग की तकनीक को सीखेंगे। 

आप सोच रहे होंगे कि यहां पर मैं पूंजी की बात क्यों कर रहा हूं, आज इसका क्या मतलब है। 

इक्विटी कैपिटल वास्तव में वह रकम है जो कि आपके ट्रेडिंग अकाउंट में रहती है और आप उसके बाद यह फैसला करते हैं कि हर ट्रेड में उसमें से कितने पैसे लगाए जाने हैं। आपको ये बहुत मामूली बात लग रही होगी, लेकिन मैं आपको दिखाता हूं कि क्यों यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।

मान लीजिए कि आपके पास ₹500,000 की पूंजी है। आप यह फैसला करते हैं कि किसी भी एक सौदे में आप इसका 10% से ज्यादा हिस्सा नहीं लगाएंगे। इसका मतलब है कि आप एक बार में ₹50,000 तक की पोजीशन ले सकते हैं। 

तो अब अगले ट्रेड के समय आपकी इक्विटी कैपिटल क्या होगी,

  1. क्या ये ₹450,000 है 
  2. या फिर यह अभी भी ₹500,000 है और आप जानते हैं कि आपने ₹50,000 एक ट्रेड में लगा रखे हैं 
  3. या फिर ये ₹450,000 + ₹50,000  ± इस पोजीशन के P&L के बराबर है। 

इस तरह की कई अलग-अलग परिस्थितियों हो सकती हैं। इसी वजह से यह तय करना कि हर सौदे के लिए कितनी रकम लगानी है या इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाना आसान नहीं होता। इसीलिए हर बार इक्विटी कैपिटल अनुमान लगाना जरूरी है क्योंकि तभी आप पोजीशन साइजिंग को ठीक से समझ सकते हैं।

12.2 – इक्विटी कैपिटल का अनुमान 

अब मैं कुछ ऐसी तकनीक बताऊंगा जिसका इस्तेमाल वैन थार्प (Van Tharp) करते थे। वो इसके जरिए इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाते थे। मेरे हिसाब से दूसरी उपलब्ध तकनीकों के मुकाबले यह ज्यादा बेहतर तकनीक हैं। वैन थार्प के मुताबिक इसकी 3 तकनीक या मॉडल हैं –

  1. कोर इक्विटी मॉडल – Core Equity Model
  2. टोटल इक्विटी मॉडल – Total Equity Model
  3. रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल  – Reduced Total Equity Model

कोर इक्विटी मॉडल में आप उस रकम को कुल पूंजी में से हटा देते हैं जिसे आपने किसी दूसरे ट्रेड में लगा दिया है। इस तरह से हर ट्रेड में आपका एक्स्पोज़र यानी आपकी लगने वाली पूंजी घटती जाती है। इसको एक उदाहरण से समझते हैं – मान लीजिए आपके पास ₹50,000 की इक्विटी कैपिटल यानी पूंजी है और आप 10% की पोजीशन साइजिंग के फार्मूले का इस्तेमाल कर रहे हैं। 10% के नियम के मुताबिक आप किसी भी एक सौदे में अपनी कुल पूंजी का 10% से ज्यादा हिस्सा नहीं लगाएंगे। तो आप पहले ट्रेड में ₹5000 तक की पोजीशन ले सकते हैं। लेकिन अब कुल पूंजी यानी कोर इक्विटी घटकर ₹45,000 रह गई। नीचे के टेबल पर एक नजर डालिए –

एक्सेल शीट को आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं।  here

तो पहले ट्रेड में यह अनुमान है कि आपकी कुल पूंजी करीब ₹50,000 है और इसका 10% पहले ट्रेड में लग सकता है यानी ₹5000। कोर इक्विटी मॉडल में आपको इस पैसे को कुल पूंजी में से घटाना होता है और अगली बार के लिए कोर इक्विटी मॉडल को फिर बनाना पड़ता है। तो अब कोर इक्विटी में आपके पास बचेगा ₹45000 । इसका मतलब है कि दूसरे ट्रेड के लिए इतनी ही पूंजी उपलब्ध है।

तो दूसरे सौदे में हम कुल उपलब्ध पूंजी का 10% यानी ₹45000 का 10% लगा सकते हैं जो कि ₹4500 होगा। इसके बाद हम इस रकम को घटा कर अपनी कोर इक्विटी की रकम फिर से निकालेंगे जो कि अब ₹40,500 होगी। अब अगले ट्रेड के लिए यही पूंजी उपलब्ध होगी। इस तरह से तीसरे ट्रेड में ₹4050 तक की ही पोजीशन ले पाएंगे। उसके बाद हमारी कोर इक्विटी बच जाएगी ₹36,450 और ये इसी तरह से चलता रहता है। मुझे उम्मीद है कि अब आपको यह बात समझ में आ गई होगी कि कोर इक्विटी मॉडल क्या होता है।

मुझे लगता है कि कोर इक्विटी यानी पूंजी का अनुमान करने का यह मॉडल एक सुरक्षित रास्ता अपनाता है क्योंकि आप हर बार अपनी कुल लगाए जाने वाली पूंजी को घटाते जा रहे हैं जबकि आप के मौके बढ़ते जा रहे हैं। हो सकता है कि आप का पांचवा सौदा (जिसमें आपने कम पैसे लगाए हैं), एक बहुत अच्छा सौदा साबित हो और आप उसमें एक अच्छी कमाई कर लें। लेकिन यह भी हो सकता है कि पांचवा सौदा पिछले सौदों से भी बुरा हो और आप उसमें पूंजी गंवा बैठें। लेकिन क्योंकि कम पूंजी लगाई है इसलिए नुकसान कम हो। 

लेकिन कुल मिलाकर यह मॉडल मुझे इसलिए पसंद है क्योंकि यह बहुत सीधा है। जब आप एक बार कुछ पूंजी किसी ट्रेड में लगा देते हैं तो आप उस पूंजी को भूल कर आगे जितनी पूंजी बची है उस पर ध्यान दे सकते हैं।

टोटल इक्विटी मॉडल में बाजार में ली गई आपकी हर पोजीशन और उस पोजीशन पर होने वाले मुनाफे और नुकसान यानी P&L और कुल बचे हुए नगद, सबको पूंजी के तौर पर साथ जोड़ा जाता है। एक उदाहरण से इसको समझते हैं –

कुल उपलब्ध नगद – ₹50,000 

पहले ट्रेड के लिए ब्लॉक की गई मार्जिन = ₹75,000 

पहले ट्रेड का P&L = + ₹2,000

दूसरे ट्रेड के लिए ब्लॉक की गई मार्जिन = ₹115,000

दूसरे ट्रेड का P&L = + ₹7,000

तीसरे ट्रेड के लिए ब्लॉक की गई मार्जिन = ₹55,000

तीसरे ट्रेड का P&L = ₹4,000

कुल इक्विटी =  50,000 + 7000 + 2000 + 115,000 + 7500 + 55000 – 4000

=  300,000

 

तो जैसा आप देख सकते हैं कि टोटल इक्विटी मॉडल में कुल उपलब्ध नगद, ब्लॉक की हुई मार्जिन, पोजीशन पर होने वाला P&L इन सब को एक साथ देखा जाता है। अगर मेरी पोजीशन साइजिंग की रणनीति मुझे 10% रकम ही एक नई पोजीशन में लगाने की अनुमति देती है तो मैं ₹30,000 तक की पोजीशन किसी नए ट्रेड पर ले सकता हूं। लेकिन अगर मेरे अकाउंट में ₹30,000 नगद नहीं है तो मैं यह पोजीशन नहीं ले सकता और मुझे किसी मौजूदा पोजीशन को बंद करने के बाद ही नई पोजीशन लेनी होगी। 

इस मॉडल में हर मौजूदा पोजीशन और उनके P&L को देखा जाता है और फिर कुल इक्विटी का अनुमान लगाया जाता है। इसीलिए यह मॉडल थोड़ा रिस्की मॉडल है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि इक्विटी का अनुमान लगाने का यह मॉडल अच्छा नहीं है क्योंकि इसमें कमाई होने के पहले ही उस रकम को अपनी रकम मान लिया जाता है।

मुझे अनुमान लगाने का तीसरा मॉडल पसंद है जिसे रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल कहते हैं। 

इस मॉडल में कोर इक्विटी मॉडल और टोटल इक्विटी मॉडल दोनों की अच्छी बातों को एक साथ शामिल किया गया है। इसमें हर बार एक नए सौदे के साथ अगले सौदे यानी ट्रेड के लिए लगाई जा सकने वाली पूंजी घटती जाती है (जैसा कि कोर इक्विटी मॉडल में भी होता है), लेकिन साथ ही, इसमें हर ट्रेड पोजीशन के P&L को भी शामिल किया जाता है (जैसा कि टोटल इक्विटी मॉडल में होता है)। लेकिन P&L में सिर्फ लॉक्ड प्रॉफिट यानी निश्चित मुनाफे को ही जोड़ा जाता है।

इसको भी एक उदाहरण से समझते हैं, मान लीजिए मेरे पास ₹500,000 की पूंजी है और मेरी पोजीशन साइजिंग रणनीति मुझे एक ट्रेड में 20% तक रकम निवेश करने की अनुमति देती है जो कि यहां पर ₹100,000 होगी। 

चार्ट देख कर मैं यह फैसला करता हूं कि ACC के फ्यूचर में 1800 पर लॉन्ग पोजीशन लूंगा, इसके लिए मुझे ₹90,000 की मार्जिन रकम लगानी पड़ेगी जो कि मेरे एक लाख की पोजीशन साइज के अंदर है। 

मैंने पोजीशन ले ली और बाजार के चलने का इंतजार करने लगा। ऐसी स्थिति में रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल के हिसाब से मेरे पास दूसरे ट्रेड के लिए पूंजी बचेगी –

20%*( 500,000 – 90,000)

=  Rs.410,000/- का  20% 

= Rs. 82,000/-

यहां ध्यान दीजिए कि मौजूदा पोजीशन में पैसे लगाए जाने के कारण हमारी नई पूंजी एक लाख से घटकर 82,000 हो गई है। यानी यहां तक यह कोर इक्विटी कैपिटल मॉडल की तरह काम कर रहा है। 

लेकिन मान लिया कि अब ACC का स्टॉक ऊपर चलता है और 25 प्वाइंट बढ़कर 1850 पर पहुंच जाता है। इसका लॉट साइज 400 का है इसलिए अब मैं मुनाफे पर बैठा हूं।

400*50

= Rs.20,000/-

अब मैं ट्रेलिंग स्टॉप लॉस लगाऊंगा और इस तरह से अब मैं 50 प्वाइंट में से 25 प्वाइंट निकालकर उसे रुपए में बदल लूंगा। जिसका मतलब मुझे ₹10,000 का मुनाफा अपने पास रखने का रास्ता मिल  सकता है। 

इसका मतलब है कि ACC की 1800 की पोजीशन पर अब मैंने स्टॉप लॉस 1825 का रखा है और ₹10,000 का मुनाफा लॉक कर लिया है। 

मुनाफे की इस लॉक्ड रकम को अब मैं अपनी कुल यानी टोटल इक्विटी में वापस लाऊंगा और मेरी टोटल इक्विटी अब होगी 

410,000 +10,000

=420,000/-

इसका मतलब है कि अगले ट्रेड के लिए इस कुल रकम का 20% मैं लगा सकता हूं

=20% * 420000

= Rs.84,000/-

जैसा कि आप देख सकते हैं कि मेरी लगाने वाली पूंजी अब ₹2000 से बढ़ जाती है। 

मैं इस रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल को पसंद करता हूं। अगर आप इस मॉडल का इस्तेमाल करते हैं तो धीरे-धीरे आपको एक स्टॉप लॉस लगाने की आदत पड़ जाएगी जो कि मेरे हिसाब से बहुत अच्छी चीज है। 

इस अध्याय को यहीं खत्म करते हैं। अगले अध्याय में हम ऊपर बताए गए तरीकों में से एक का इस्तेमाल करके इक्विटी निकालेंगे और पोजीशन साइजिंग की कुछ तकनीकों को देखेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. पोजीशन साइजिंग के लिए अपने इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाना जरूरी होता है। 
  2. कोर इक्विटी मॉडल में आपने जिस पूंजी को ट्रेड में लगा रखा है उसको घटाया जाता है और उसके हिसाब से फिर से नई मौजूद पूंजी का अनुमान लगाया जाता है। 
  3. टोटल इक्विटी मॉडल में आपको अपने पास मौजूद नगद रकम, कुल जमा की गई मार्जिन और उस पोजीशन पर हो रहे P&L, इन सभी को एक साथ जोड़ कर इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाना होता है।
  4. रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल में आपको अपने पास मौजूद नगद रकम और पोजीशन के लॉक किए गए प्रॉफिट को एक साथ जोड़ कर देखना होता है।

 

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11.1 – पोकर का खेल 

पिछले दिनों से अपने कुछ दोस्तों के साथ ताश का खेल पोकर खेलने का मौका मिला। मैं 6 साल बाद पोकर खेल रहा था और काफी ज्यादा उत्साहित था। हम सभी दोस्तों ने ₹1000 डाले और खेल शुरू किया। इस खेल को खेलने के लिए आपको भाग्य और कुशलता की दोनों की जरूरत पड़ती है। 

तो पत्ते बांटे गए और खेल शुरू हुआ। पहले राउंड में मैंने ₹200 लगाए और वह चले गए। अगले राउंड में मैंने फिर से ₹200 लगाए और फिर से उन्हें गंवा बैठा। अब मैंने अपने आपको समझाया कि मैं तीसरे राउंड में अपने सारे नुकसान की भरपाई कर लूंगा और इसीलिए मैंने अपने दांव को ₹600 कर दिया। मेरे वह पैसे भी चले गए। इस तरह से 10 मिनट में मैं ₹1000 गंवा चुका था। यह एकदम वैसा ही था जैसे आप अपने ट्रेडिंग अकाउंट के सारे पैसे गंवा दें। 

लेकिन मैंने हार नहीं मानी, मैंने सोचा कि मैं तो ट्रेडिंग जानता हूं और पोकर तो काफी हद तक ट्रेडिंग जैसा ही होता है, इसलिए मैं तो हार नहीं सकता। मैंने अपने सारे शुरुआती नुकसान की भरपाई करने का इरादा किया। इसी इरादे के साथ, मैंने फिर ₹1000 लगाए और खेलना शुरू किया। इस बार मैं थोड़ा ज्यादा देर तक खेल में टिका जरूर, 15 मिनट तक। लेकिन नतीजा फिर वही रहा मैंनें सारे पैसे फिर से गंवा दिए। 

मुझे जहां तक याद है, मैं कभी भी पोकर में इस तरह से नहीं हारा था। इसलिए मुझे इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था कि मेरे साथ ऐसा हो रहा है और 25 मिनट में दो बार मेरा अकाउंट खाली हो चुका है। 

साफ था कि चीजें मेरे हक में नहीं थी। लेकिन मैंने फिर से यानी तीसरी बार ₹1000 रूपए लगाने का फैसला किया। ट्रेडिंग के हिसाब से देखें तो यह इस तरह की स्थिति है जहां पर आप अपने ट्रेडिंग अकाउंट के सारे पैसे दो बार गंवा चुके हैं और तीसरी बार फिर से पैसे लगा रहे हो ।

कोई भी ऐसा इंसान जिसने बाजार में दो बार अपने सारे पैसे गंवा दिए हैं आप उसको क्या सलाह देंगे, यही ना कि बाजार से तुरंत निकल जाओ। यही शायद सही सलाह भी होती। लेकिन मैंने अपने मन की बात नहीं मानी और खेलने के लिए ₹1000 और लगा दिए थे। क्योंकि मुझे लग रहा था कि अगली बार ऐसा नहीं होगा, यानी अगली बार मैं नहीं हारूंगा। आर्थिक भाषा में कहें तो इसे गैंबलर्स फैलेसि (Gambler’s fallacy) कहते हैं और उस समय इसी का शिकार था।

आपमें से जो लोग गैंबलर्स फैलेसि के बारे में नहीं जानते हैं, उनको मैं बता दूं कि जब आप किसी एक खास नतीजे की उम्मीद पर बार-बार दांव लगाते हैं और आप लगातार नुकसान सह रहे हों और जब आप छोड़ने की तैयारी कर रहे हों तो आपका दिमाग आपको यह भरोसा दिला देता है कि आपकी हार का सिलसिला रुकने वाला है और अगला दांव आपको जिता कर रहेगा। ऐसे में आप अपने शर्त या दांव की रकम को बढ़ा देते हैं और ज्यादा बड़ा नुकसान कर बैठते हैं। गैंबलर्स फैलेसि की वजह से बहुत सारे लोगों के ट्रेडिंग अकाउंट पूरी तरह से खाली हो जाते हैं। 

खैर, तीसरे दौर के शुरू होने के पहले तक मैं ₹2000 का नुकसान कर चुका था और अब ₹1000 और लगाने को तैयार था। मुझे पूरी तरीके से भरोसा था कि मैं अपने नुकसान की कुछ तो भरपाई जरूर कर लूंगा। लेकिन बाकी खिलाड़ी भी तैयार थे और उन्होंने ऐसा खेल खेला कि मैं अगले 7 मिनट में अपने सारे पैसे गंवा चुका था इसके बाद मैंने खेल छोड़ दिया और लेकिन तब तक मैं ₹3000 गंवा चुका था। 

खेल के बाद मैंने सोचा कि आखिर मुझसे गलती कहां हुई, जवाब बिल्कुल आसान थे – 

  1. मैंने अपने पत्तों पर ध्यान नहीं दिया था और यह नहीं देखा था कि उन पत्तों के आधार पर मेरे जीतने की संभावना कितनी है 
  2. मैंने अपने दांव की पोजीशन साइजिंग नहीं की थी – मैं बिना किसी तर्क के बस ऐसे पैसे ही लगा रहा था

कुछ हफ्तों बाद मुझे फिर से पोकर खेलने का मौका मिला। पिछली बार मैंने बहुत खराब उदाहरण पेश किया था और मैंने काफी पैसे गंवाए थे। इसलिए मैंने इस बार अपने पोजीशन साइजिंग करने का फैसला किया। 

मैंने ₹1000 लगाए और खेल शुरू हुआ। हर बार पत्ते बंटने पर मैंने अपनी जीतने की संभावना को ठीक से देखा और उस हिसाब से मैंने पैसे दांव पर लगाए। ये एकदम वैसा ही था जैसे ट्रेडिंग की दुनिया में हम एक ट्रेडिंग सिस्टम के सहारे अपनी पोजीशन साइजिंग करते हैं। मेरे इस तरीके का उपयोग करने से नतीजा इस बार बिल्कुल अलग आया – 

  1. मैंने कुछ दांव जीते 
  2. एक समय मैं करीब ₹4000 जीत चुका था 
  3. जितनी भी देर खेल चला मैं खेल से बाहर नहीं हुआ और मुझे बहुत मजा आया।
  4. खेल के अंत में मैंने जीते हुए पैसों में से कुछ गंवा भी दिए लेकिन फिर भी मैं इस बात से खुश था कि मैंने अपनी तकनीक का सही इस्तेमाल किया और काफी अच्छे से खेला 

इस बार खेल में पोजीशन साइजिंग ने मेरा काफी साथ दिया था। पिछली बार के मुकाबले सबसे बड़ा अंतर यही था। मुझे लगता है कि पोजीशन साइजिंग हमेशा काम ऐती है। ये कहानी बताने का मेरा उद्देश्य भी यही है कि आप बाजार में कभी भी अपने नुकसान या फायदे को पूरी तरह से समझे बिना या पोजीशन साइजिंग किए बगैर पैसे ना लगाएं। अगर आप ऐसा करेंगे तो आप नुकसान उठाएंगे और बेवकूफ बनेंगे। 

पोकर तो एक खेल है, लेकिन जब आप ट्रेड करते हैं तो पूंजी सोच समझकर लगानी चाहिए क्योंकि यह आपके भविष्य पर काफी बड़ा असर डाल सकता है। इसलिए अगले कुछ अध्याय में हम जिन विषयों पर चर्चा करेंगे उस पर ध्यान दीजिएगा। मैं उम्मीद करता हूं कि इसके बाद आपके लिए आपका ट्रेडिंग का करियर काफी अच्छा होगा। 

मैंने पोजीशन साइजिंग को वैन थार्प (Van Tharp) की किताब से सीखा था। वैन थार्प उन लोगों में से हैं जिन्होंने पोजीशन साइजिंग के सिद्धांत को सबके सामने पेश किया था। आप उनकी किताबों को पढ़कर भी इसके बारे में अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं।

11.2 – गैम्बलर्स फैलेसि

हमने गैंबलर्स फैलेसि के बारे में थोड़ी चर्चा ऊपर की है, लेकिन अब उस को बाजार के हिसाब से विस्तार से समझ लेना बेहतर होगा। 

इस चार्ट पर नजर डालिए – 

यह निफ्टी का चार्ट है – निफ्टी ने 25 जुलाई 2017 को 10000 का जादुई आंकड़ा छुआ था। एक ट्रेडर के तौर पर इसे कैसे ट्रेड करते – 

  1. निफ़्टी अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर है यानी 10000 पर 
  2. बाजार के कई खिलाड़ी इस समय मुनाफा वसूल करेंगे क्योंकि निफ्टी एक मनोवैज्ञानिक स्तर पर है 
  3. अभी तक के सबसे ऊंचे स्तर पर होने का मतलब है कि बाजार में अब कोई रेजिस्टेंस का स्तर नहीं है 
  4. निफ्टी ने लगातार पिछले कुछ हफ्तों से ऊपर का ही रास्ता देखा है 
  5. हो सकता है कि निफ्टी इस स्तर पर कंसोलिडेट करे 
  6. हो सकता है कि रैली दोबारा शुरू होने के पहले बाजार में 2% से 3% का एक करेक्शन आए 

कुछ देर के लिए मान लेते हैं कि ऊपर के बताई हुई सभी बातें सही हैँ। तो इसका मतलब होगा कि इस जगह पर बाजार में शॉर्ट पोजीशन बनानी चाहिए या फिर पुट को खरीदना चाहिए। शॉर्ट करने के इस नतीजे तक पहुंचने के लिए आप चाहे ऊंचे स्तर की एनालसिस करें, बड़े-बड़े डेटा को देखें, कई तरीके की मॉडलिंग का इस्तेमाल करें या या सीधे-सीधे अपने अनुमान से यह कहें कि हां, इस समय शार्ट पोजीशन बनाने का समय है। 

आप चाहे जैसे भी एनालिसिस करें लेकिन बाजार के बारे में कोई भी निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कह सकता। कोई भी तकनीक ऐसी नहीं है जो यह बता सके कि बाजार में आगे क्या होने वाला है। इसका मतलब है कि हम एक ऐसी स्थिति में है जहां पर ज्यादातर लोग अनुमान ही लगा रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि आप जितनी अच्छी एनालिसिस करेंगे, आपका अनुमान सही होने की संभावना उतनी ही ज्यादा अधिक होगी। लेकिन अंत में बाजार में क्या होगा इसे कोई नहीं बता सकता। 

तो मान लीजिए कि आपने बहुत अच्छे से एनालसिस की, अच्छे तरीके से सब चीजों को देखा और निफ्टी पर एक दांव लगाया। लेकिन आपको नुकसान हुआ और आपका स्टॉप लॉस ट्रिगर हो गया। लेकिन आपने हौसला नहीं छोड़ा। आपने फिर से एक सौदा किया और इस बार भी आपने पैसे गंवा दिए। मान लीजिए ऐसा आपके साथ 4 बार होता है।  

आपको लगता है कि आपकी एनालसिस बिल्कुल सही है लेकिन फिर भी हर बार आप का स्टॉप लॉस ट्रिगर हो रहा है। आपके अकाउंट में अभी भी पैसे हैं इसलिए आप बार-बार सौदे कर रहे हैं। आपको पूरा भरोसा है कि जल्दी ही बाजार आपके पक्ष में घूमेगा और अभी भी आपको रिस्क लेने में डर नहीं लग रहा। तो आप क्या करेंगे – 

  1. क्या आप ट्रेड करना बंद कर देंगे 
  2. क्या आप फिर से उतने ही पैसे लगाएंगे 
  3. अगर आपने 6 बार लगातार पैसे गंवाए हैं तो क्या फिर आप सातवीं बार ये सोच कर ज्यादा पैसे लगाकर ट्रेड करेंगे कि आपके मुनाफा कमाने की संभावना ज्यादा है और इस तरह से आप अब तक हुए नुकसान को वापस पा सकेंगे। 

आप इनमे से कौन सा विकल्प लेंगे, थोड़ा सोच कर जवाब दीजिए। 

मैं कई बार इस तरह की स्थिति में पड़ा हूं और बहुत सारे ट्रेडर ने भी मुझे यह बताया है कि अधिकतर लोग तीसरा ऑप्शन ही लेते हैं। वो ऐसा करते हैं क्योंकि आमतौर पर बाजार में ट्रेड करने वाले लोग मानते हैं कि जब वह अगला सौदा करेंगे तो बाजार में अब तक चल रहा ट्रेंड बदल जाएगा। जैसे इस उदाहरण में जिस व्यक्ति ने अब तक छह बार नुकसान सहा है उसको यह लगेगा कि सातवीं बार वह जरूर ही फायदे में रहेगा। इसे ही गैंबलर्स फैलेसि कहते हैं। 

वास्तव में, बाजार में आप कुछ भी भरोसे के साथ नहीं कह सकते। इस 7वें सौदे में भी नुकसान होने की संभावना उतनी ही है जितनी कि पहले 6 सौदों में थी। सिर्फ इसलिए क्योंकि आपने अब तक 6 बार नुकसान सहा है, 7वीं बार आपके फायदा होने की संभावना बढ़ या घट नहीं जाती। लेकिन फिर भी आमतौर पर बाजार में ट्रेड करने वाले लोग गैंबलर्स फैलेसि का शिकार हो जाते हैं और अपने दांव को या अपने लगाए जाने वाले पैसे को बढ़ाते जाते हैं। यह सोचते-समझते नहीं हैं कि उनके नुकसान या फायदा होने की संभावना कितनी है। इस तरह से गैंबलर्स फैलेसि आप की पोजीशन साइजिंग के सिद्धांत को पूरी तरीके से बर्बाद कर देती है और कई बार लोगों के ट्रेडिंग अकाउंट पूरी तरीके से साफ हो जाते हैं।

लेकिन ऐसा नहीं है कि यह केवल नुकसान की स्थिति में ही होता है यह दूसरी तरफ भी होता है। मान लीजिए आप बहुत भाग्यशाली हैं और आपने 6 या मान लीजिए 10 लगातार बार सही मुनाफे वाले सौदे किए हैं। आप जो भी सौदा डालते हैं वह आपके पक्ष में जाता है। अब आप 11वीं बार सौदा करने जा रहे हैं तो अब आप क्या करेंगे 

  1. क्योंकि आपने काफी पैसे बना लिए हैं तो क्या आप ट्रेडिंग करना बंद कर देंगे? 
  2. क्या आप अपने सौदे में उतनी रकम का रिस्क लेंगे जितना अब तक रखते थे?
  3. क्या आप अपने सौदे की रकम बढ़ा देंगे?
  4. क्या आप एक सुरक्षित रास्ता चुनेंगे और अपने मुनाफे को बचाते हुए अपने सौदे की रकम को कम कर देंगे? 

इस बात की संभावना है कि आप इस में से चौथा विकल्प लेंगे। आप अब तक हुए अपने मुनाफे को बचाना चाहते हैं और यह नहीं चाहते कि आपने जो कुछ बाजार से कमाया है वह वापस दे दें। लेकिन साथ ही आप यह चाहते हैं कि आगे भी ट्रेड करें क्योंकि आप लगातार मुनाफा कमा रहे हैं। 

यहां पर फिर से गैंबलर्स फैलेसि अपना काम कर रही है। आपका निर्णय, पिछले 10 सौदों में जो कुछ हुआ है उससे प्रभावित है, आप अपने 11वें सौदे की रकम को घटा रहे हैं। जबकि वास्तव में यह नया सौदा अच्छा होगा या बुरा, इसकी संभावना उतनी ही है जितनी पिछले 10 सौदों में थी, ना उससे कम ना ज्यादा। 

शायद यही वजह है कि बहुत सारे ट्रेडर लगातार फायदे वाला सौदा करने के बावजूद बाजार में बहुत कम पैसे कमा पाते हैं। गैंबलर्स फैलेसि से बचने का सिर्फ एक रास्ता है पोजीशन साइजिंग।

11.3 – रिकवरी ट्रॉमा 

ट्रेडिंग की दुनिया में, पूंजी वह कच्चा माल है जिसके सहारे हम काम करते हैं। अगर आपके पास लगाने के लिए पूंजी नहीं है तो आप पैसे कैसे कमाएंगे। इसलिए हमें अपने मुनाफे को तो बचाना होता ही है साथ में अपने अपनी पूंजी को भी बचाना होता है। 

इसीलिए अगर किसी एक सौदे में आप बहुत ज्यादा पूंजी लगा रहे हैं तो आप यह रिस्क ले रहे हैं कि आप अपनी ज्यादातर पूंजी गंवा बैठें, और हो सकता है कि अगली बार लगाने के लिए आपके पास बहुत ही कम पूंजी बचे। जब आप बहुत कम पूंजी से बाजार में निवेश कर रहे होते हैं तो हर सौदा आपके लिए बहुत रिस्की हो जाता है। नुकसान होने पर वापस अपनी पूरी पूंजी तक पहुंचने का काम काफी मुश्किल हो जाता है 

इस बात को समझाने के लिए मैंने एक टेबल बनाया है, मान लीजिए आपके पास बाजार में निवेश करने के लिए ₹100,000 की पूंजी है अब देखते हैं कि हर नुकसान होने के बाद वापस पूंजी को लाने के लिए आपको कितना फायदा कमाना होगा 

आप इस एक्सेल शीट को यहां से डाउनलोड कर सकते हैं here.

मान लीजिए आपने अपनी पूंजी का 5% यानी ₹5000 का नुकसान कर लिया। अब आपके पास शुरुआती पूंजी बची ₹95000 की। अपने 5000 को वापस लाने के लिए आपको इस 95000 पर 5.3% का मुनाफा कमाना होगा यानी जितना नुकसान हुआ है उससे 0.3% ज्यादा। 

अब मान लीजिए 5% की जगह आपने 10% का नुकसान किया है और आपकी पूंजी एक लाख के बजाय 90000 रह गई है। अब आप इस 10 हजार को वापस कमाने के लिए आपको 11.1 प्रतिशत का मुनाफा कमाना होगा। तो जैसा कि आप देख सकते हैं कि जैसे-जैसे आप का नुकसान बढ़ता जाता है आपके पैसे को और ज्यादा कमाई करनी पड़ती है, जिससे कि आप अपनी पूंजी को वापस ला सकें। उदाहरण के तौर पर 60% नुकसान होने पर आपको कम से कम 150% का फायदा कमाना होगा तब जाकर आपकी पूंजी वापस आएगी। 

दुर्भाग्यवश यह रिकवरी ट्रॉमा उन ट्रेडर्स पर ज्यादा असर डालती है जिनके पास कम पैसे होते हैं। मान लीजिए आप बाजार में ₹50000 की पूंजी के साथ आए हैं। आपने सुन रखा है कि राकेश झुनझुनवाला ने कैसे ₹10000 से 15000 करोड़ बना लिए। आप अपनी छोटी सी पूंजी से भी वैसा ही फायदा कमाना चाहते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर आप अपने ₹50000 को साल के अंत तक 60000 भी कर लें तो बहुत बढ़िया बात होगी। यह 20% का मुनाफा हुआ। लेकिन 1 साल में ₹10,000 की कमाई आपको ज्यादा बड़ी नहीं लगेगी और खास कर तब अगर आप लगातार ट्रेडिंग कर रहे हैं। आपको लगेगा कि यह सही नहीं है। 

तो फिर ऐसे में आप क्या करेंगे? आप बड़े बड़े रिस्क लेने लगेंगे जिससे कि आप बड़ा मुनाफा कमा सकें और अगर आपका एक भी सौदा आपके विरुद्ध चला गया तो फिर आप पूंजी गंवाएंगे और रिकवरी ट्रॉमा के घेरे में आ जाएंगे। 

इसीलिए बाजार में हमेशा यह कोशिश करनी चाहिए कि किसी भी एक सौदे पर बहुत ज्यादा रिस्क ना लिया जाए। खासकर तब जब आपके पास पूंजी बहुत कम है। याद रखिए कि बाजार में अच्छे पैसे बनाने के लिए यह जरूरी है कि आप लंबे समय तक बाजार में बने रहें और लंबे समय तक बाजार में बने रहने के लिए आपके पास पूंजी होनी चाहिए। पूंजी होने के लिए यह जरूरी है कि आप अपने रिस्क को समझें और अपने हर सौदे में सही मात्रा में पैसे लगाएं। मतलब बाजार में आपको हमेशा बहुत स्थिरता से काम करना होता है और इसके लिए आपको अपने सौदों की पोजिशन साइजिंग करना जरूरी है। 

इस अध्याय के अंत में मैं आपके लिए लैरी हाइट (Larry Hite) का एक क्वोट(quote) दे रहा हूं 

अगले कुछ अध्यायों में हम पोजीशन साइजिंग की तकनीक पर बात करेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. किसी भी ट्रेडिंग के लिए पोजीशन साइजिंग एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज होती है 
  2. ट्रेडिंग करने वालों पर गैंबलर्स फैलेसि बहुत बड़ा असर डालती है यह ट्रेडर को यह भरोसा दिला देती है कि अब तक बाजार में उसके साथ जो हो रहा है वो अब बदलने वाला है 
  3. जब हम बाजार में लगातार सौदा करते रहते हैं तो हर सौदे में मुनाफा कमाने या नुकसान उठाने की संभावना उतनी ही होती है जितनी संभावना पहले सौदे में थी 
  4. पूंजी को वापस लाना बहुत ही कठिन काम होता है 
  5. छोटी पूंजी वाले ट्रेडर हमेशा यह कोशिश करते हैं कि वह बड़े-बड़े सौदे करें, जबकि ऐसा करना उनके लिए ठीक नहीं होता है

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वैल्यू एट रिस्क https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82-%e0%a4%8f%e0%a4%9f-%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%95/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82-%e0%a4%8f%e0%a4%9f-%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%95/#comments Mon, 01 Jun 2020 12:31:00 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8033 10.1 – ब्लैक मंडे 70 के दशक में दुनिया में आए ग्लोबल एनर्जी संकट ने अमेरिका को एक तरह की आर्थिक मंदी में भेज दिया था। इसकी वजह से वहां मुद्रास्फीति बढ़ गई थी और बेरोजगारी भी काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी। 70 के दशक के दूसरे हिस्से में जाकर हालात कुछ सुधरे […]

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10.1 – ब्लैक मंडे

70 के दशक में दुनिया में आए ग्लोबल एनर्जी संकट ने अमेरिका को एक तरह की आर्थिक मंदी में भेज दिया था। इसकी वजह से वहां मुद्रास्फीति बढ़ गई थी और बेरोजगारी भी काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी। 70 के दशक के दूसरे हिस्से में जाकर हालात कुछ सुधरे थे और अर्थव्यवस्था भी धीरे-धीरे बेहतर होने लगी थी। अमेरिका ने सही कदम उठाए, अर्थव्यवस्था को छूट दी और धीमे-धीमे चीजें पटरी पर लौटने लगी। जैसे ही अर्थव्यवस्था सुधरी वैसे ही स्टॉक मार्केट भी रफ्तार में आ गया। 

80 के दशक की शुरुआत से लेकर करीब-करीब 1987 के मध्य तक बाजार में लगातार तेजी बनी रही। ट्रेडर्स इसे अमेरिकी शेयर बाजार का ड्रीम बुल रन (Dream Bull Run) मानते हैं। डाउ/डाओ जोन्स (Dow Jones) इंडस्ट्रियल इंडेक्स अपने सबसे ऊंचे स्तर यानी 2722 तक पहुंच गया था जो कि 1986 के मुकाबले 44% ऊपर था। लेकिन उसी समय अर्थव्यवस्था के फिर से थमने के संकेत आने लगे। आर्थिक भाषा में इसे अर्थव्यवस्था की सॉफ्ट लैंडिंग (Soft landing) कहा जाता है जिसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था दौड़ते-दौड़ते रुक कर सुस्ता रही है। 1987 के अगस्त में आई तेजी के बाद बाजार में भी थोड़ी सी सुस्ती आ रही थी। 1987 के अगस्त, सितंबर और अक्टूबर से बाजार में मिले जुले संकेत मिल रहे थे, इस समय बाजार में आई हर गिरावट पर लेवरेज्ड लॉन्ग पोजीशन (Leveraged Long Position) बना रहे थे मतलब कि लोगों ने कर्ज लेकर बाजार में लॉन्ग पोजीशन बना ली थी। उसी समय साथ में पोजीशन को अनवाइंड (unwind) करना भी शुरू कर दिया था मतलब लोग अपनी पोजीशन छोड़ रहे थे। इसी वजह से बाजार ना तो ऊपर जा रहा था और ना ही ज्यादा गिर रहा था।

जब अमेरिकी घरेलू बाजार में यह सब हो रहा था, वहीं, दुनिया के दूसरे हिस्से में ईरान ने कुवैत के ऑयल पोर्ट में खड़े अमेरिका के सुपर टैंकर पर बम गिरा दिया। अक्टूबर 1987 का महीना दुनिया के आर्थिक बाजारों के लिए एक ऐतिहासिक समय था। मैं जब भी अक्टूबर 1987 के दूसरे सप्ताह में होने वाली उन घटनाओं पर नजर डालता हूं तो मुझे लगता है कि उन दो सप्ताहों में काफी तेज घटनाचक्र चल रहा था और उस समय दुनिया में बहुत ज्यादा डर था। 

  • 14 अक्टूबर 1987 (बुधवार) –  डाओ करीब 4% गिरा, यह उस समय की एक रिकॉर्ड गिरावट थी। 
  • 15 अक्टूबर 1987 (गुरुवार) – डाओ करीब 2.5% गिरा अगस्त 1987 के अपने पिछले स्तर से डाओ में अब तक करीब 12% की गिरावट आ चुकी थी। दुनिया के दूसरी हिस्से में ईरान ने कुवैत के ऑयल पोर्ट में खड़े अमेरिका के सुपर टैंकर पर एक सिल्कवर्म (Silkworm) मिसाइल से हमला कर दिया। 
  • इन दो घटनाओं की वजह से दुनियाभर के वित्तीय बाजारों में डर और खौफ का माहौल बन गया था। 
  • 16 अक्टूबर 1987 (शुक्रवार) –  लंदन में एक बड़ा तूफान आया और वहां पर 175 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलने लगीं जिसकी वजह से लंदन में ब्लैक आउट हो गया (खासकर दक्षिण लंदन में जहां पर ज्यादातर वित्तीय संस्थान हैं)। लंदन के बाजार बंद हो गए। डाओ कमजोर खुला और करीब 5% गिरा। जिससे दुनियाभर में चिंता फैल गई। अमेरिका के ट्रेजरी सेक्रेट्री ने एक बयान जारी करके आर्थिक चिंता जताई। जिसकी वजह से डर और ज्यादा फैल गया। 
  • 19 अक्टूबर 1987 (ब्लैक मंडे/Black Monday) – हांगकांग से शुरू होकर दुनिया भर के तमाम बाजारों में भारी गिरावट आने लगी, पहले लंदन में डर फैला, फिर अमेरिका में फैला और डाओ ने अब तक के सबसे बड़ी गिरावट देखी – एक दिन में 508 प्वाइंट यानी 22.61% की गिरावट । इसीलिए इसका नाम ब्लैक मंडे पड़ा ।

दुनिया के वित्तीय बाजार ने कभी ऐसी घटनाएं नहीं देखी थीं। दुनिया के लिए शायद यह पहला ब्लैक स्वान इवेंट (Black Swan Event) था यानी एक ऐसी घटना जो कि दशकों में कभी एक बार होती है। ऐसी घटना जो कि दुनिया को काफी हद तक हिला सकती है। जब बाजार में वापस शांति आई तो वॉल स्ट्रीट (Wall Street) में एक नए तरह के ट्रेडर आ गए जो अपने आप को क्वांट (Quant) कहते थे।

10.2 – क्वांट्स (Quants) का आना 

अक्टूबर 1987 की घटना ने वित्तीय बाजारों पर एक से ज्यादा तरीकों से असर डाला। फाइनेंस सेक्टर के रेगुलेटर को इस बात की चिंता होने लगी कि पूरे सिस्टम पर यह घटनाक्रम कितना असर डालेगा और साथ ही उन्हें कंपनियों के रिस्क नापने के तौर तरीकों को ले कर भी चिंता होने लगी। वित्तीय कंपनियां इस बात की संभावना पर विचार करने लगीं कि अगर ऐसा कुछ दोबारा होता है तो पूरी कंपनी पर क्या असर पड़ेगा और कंपनी कैसे बचेगी। इसके पहले उन्हें हमेशा यही बताया गया था कि अक्टूबर 1987 की तरह की घटनाएं होने की संभावना नहीं के बराबर हैं लेकिन फिर भी ऐसा हुआ। 

आमतौर पर वित्तीय कंपनियां दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भिन्न-भिन्न चीजों में कई तरीकों से अलग-अलग एसेट क्लास में पोजीशन लेती हैं। ऐसी स्थिति में कंपनी के रिस्क को समझना और इसका अनुमान लगाना और उसके हिसाब से तैयारी करना काफी मुश्किल काम होता है। लेकिन कंपनियों को अब इसी काम की जरूरत थी। उन्हें यह पता करना था कि अगर अक्टूबर 1987 जैसी घटना दोबारा हुई तो कितना नुकसान उठाना पड़ेगा। अपने आपको क्वांट कहने वाले ट्रेडर और रिस्क मैनेजर की नई कौम ने कंपनियों की पोजीशन और रिस्क का तुरन्त अनुमान लगाने वाले बहुत विकसित गणितीय यानी मैथमेटिकल मॉडल (Mathematical model) का इस्तेमाल करना शुरू किया और रियल टाइम बेसिस (Real Time Basis) पर इसको बताना शुरू किया। यह वह लोग थे जिन्हें फाइनेंशियल विषयों की भी अच्छी जानकारी थी और उन्होंने सांख्यिकी (Statistics), भौतिक शास्त्र (Physics) और गणित (Mathematics) में रिसर्च कर रखी थी। कंपनियों को लगने लगा कि रिस्क मैनेजमेंट एक अलग विभाग है जो कंपनी में होना चाहिए। वॉल स्ट्रीट में काम करने वाले सभी बैंक और ट्रेडिंग कंपनी ने रिस्क मैनेजमेंट टीम को भर्ती करना शुरू कर दिया। इनका सिर्फ एक ही काम था कि वह रिस्क का आकलन करते रहें। 

जेपी मॉर्गन के तब के सीईओ डेनिस वेदरस्टोन ( Denis Weatherstone)  ने एक रिपोर्ट को बनवाने की शुरुआत की, जिसका नाम 4:15 पीएम/PM” रिपोर्ट पड़ गया। एक पेज की यह रिपोर्ट उन्हें पूरी कंपनी के कुल रिस्क के बारे में बताती थी। यह रिपोर्ट उन्हें हर शाम 4:15 पर दी जाती थी, बाजार बंद होने के ठीक 15 मिनट बाद। यह रिपोर्ट इतनी लोकप्रिय हुई कि जेपी मार्गन ने इसको बनाने का तरीका सबको बता दिया और सभी कंपनियों और बैंकों को इसे ने इसे अपनाया भी। इसके बाद जेपी मॉर्गन ने इस रिपोर्ट को बनाने वाली अपनी इस टीम को एक अलग नई कंपनी में बदल दिया और इसका नाम रखा गया रिस्क मैट्रिक्स ग्रुप (Risk Metrics Group) बाद में इस कंपनी को MSCI ग्रुप ने ले लिया। 

यह रिपोर्ट वास्तव में एक ऐसी चीज होती थी जिसे वैल्यू एट रिस्क (Value at Risk) या VaR कहा जाता है। इसमें एक पैमाना (Metrics)  होता है जो यह बताता है कि सबसे बुरी हालत यानी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती वैसी हालत होने पर कितना नुकसान होगा। 

इस अध्याय में हम इसी पर फोकस करेंगे कि आपके पोर्टफोलियो के लिए वैल्यू एट रिस्क क्या होगा।

10.3 – नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन 

वैल्यू एट रिस्क के केंद्र में नार्मल डिस्ट्रीब्यूशन का सिद्धांत होता है। इस सिद्धांत पर हमने पहले भी कई बार चर्चा की है, इसलिए यहां पर मैं इस सिद्धांत को समझाने की कोशिश नहीं करूंगा। मैं यह मान कर चलता हूं कि आपको इसके बारे में पता है। हम जिस वैल्यू एट रिस्क की बात कर रहे हैं वह एक ऐसा तरीका है जो जल्दी से आपके पोर्टफोलियो का VaR का अनुमान लगा कर बता देता है। मैंने पिछले कई सालों से इस तरीके का इस्तेमाल किया है और यह अच्छे तरीके से काम करता है, खासकर तब जब आप इक्विटी या स्टॉक को खरीद कर अपने पास रखना या होल्ड (hold) करना चाहते हैं। 

सीधे शब्दों में कहें तो, पोर्टफोलियो VaR आपको इन चीजों का जवाब देता है 

  1. अगर कल कोई ब्लैक स्वॉन इवेंट हो जाए यानी कोई ऐसी घटना हो जाए जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी तो फिर सबसे बुरी हालत में आपके पोर्टफोलियो का कितना नुकसान होने की संभावना है 
  2. सबसे बुरी हालत वाले पोर्टफोलियो नुकसान होने की कितनी संभावना है 

पोर्टफोलियो VaR हमें यही बताता है। पोर्टफोलियो VaR को पता करना बहुत आसान है। बस इसके लिए ये कदम उठाने होंगे 

  1. पोर्टफोलियो के रिटर्न का डिस्ट्रीब्यूशन पहचानिए 
  2. इस डिस्ट्रीब्यूशन को ग्राफ पर देखिए, क्या यह पोर्टफोलियो का रिटर्न नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन दिखता है 
  3. पोर्टफोलियो के रिटर्न को ऊपर से घटते हुए क्रम में लगाइए 
  4. अंतिम 95% ऑब्जर्वेशन को देखें 
  5. अंतिम 95% में मिलने वाला सबसे कम वैल्यू ही आपका पोर्टफोलियो VaR है 
  6. अंतिम 5% का औसत ही क्यूमुलेटिव (यानी बढ़ता हुआ) पोर्टफोलियो VaR या CVaR  है 

इस सब को ज्यादा अच्छे से समझने के लिए इसे एक पोर्टफोलियो के उदाहरण से समझते हैं। इसके लिए हम वो पोर्टफोलियो लेते हैं जिसका हमने अब तक इस्तेमाल किया है।

10.4 – पोर्टफोलियो के रिटर्न का डिस्ट्रीब्यूशन 

इस हिस्से में हम उन पहले दो कदमों पर ध्यान देंगे (जिसके बारे में हमने ऊपर बताया है) जिससे पोर्टफोलियो VaR  निकाला जा सकता है। इन पहले दो कदमों में पोर्टफोलियो रिटर्न के डिस्ट्रीब्यूशन को देखना होता है। इसके लिए हमें या तो पोर्टफोलियो के नॉर्मलाइज्ड (normalised) रिटर्न देखना होगा या फिर पोर्टफोलियो के डायरेक्ट रिटर्न को। पहले जब हम इक्विटी कर्व (Equity Curve) पर बात कर रहे थे तो हमने नॉर्मलाइज्ड (normalised) रिटर्न निकालने का तरीका बताया था अब मैं यहां पर उसी का इस्तेमाल करूंगा – 

आप इस रिटर्न को ‘EQ Curve’ नाम की शीट में पा सकते हैं। मैंने पोर्टफोलियो के इन रिटर्न को एक अलग शीट पर कॉपी किया है जिससे कि मैं पोर्टफोलियो का वैल्यू एट रिस्क निकाल सकूं। नई शीट कुछ इस तरह की दिखाई देगी –

इस समय हमारी कोशिश यह है कि हम ये पता लगा सकें कि पोर्टफोलियो का रिटर्न किस तरह के डिस्ट्रीब्यूशन में आ रहा है। इसके लिए हमें ये कदम उठाने होंगे –

कदम 1 – दिए हुए टाइम सीरीज में (पोर्टफोलियो के) अधिकतम और न्यूनतम रिटर्न को कैलकुलेट करें । इसके लिए हमें एक्सेल के  ‘=Max()’ and ‘=Min()’ फंक्शन का इस्तेमाल करना होगा।

कदम 2 –  डेटा प्वाइंट की संख्या का अनुमान लगाएं। डेटा प्वाइंट के संख्या को निकालना बहुत आसान है, बस हमें  ‘=count ()’ फंक्शन का इस्तेमाल करना होगा। 

यहां कुल 126 डेटा प्वाइंट हैं। याद रखिए कि हम केवल 6 महीने का डेटा देख रहे हैं। वैसे सही तरीका यह होता है कि हम कम से कम 1 साल के डेटा को देखते, लेकिन यहां पर हम सिर्फ इस सिद्धांत को समझ रहे हैं इसलिए हमने 6 महीने का डेटा ही लिया है।

कदम 3 बिन विड्थ (Bin Width)  

अब हमें बिन अरे (bin array ) बनाना है जिसके तहत हम रिटर्न की फ्रीक्वेंसी (frequency of returns) को डाल सकते हैं। रिटर्न की फ्रीक्वेंसी हमें बताती है कि एक खास रिटर्न कितनी बार मिला है। साधारण भाषा में कहें तो, यह हमें इस सवाल का जवाब देगा कि 0.5% का रिटर्न 126 दिनों में कितनी बार मिला है। इसको निकालने के लिए हमें पहले बिन विड्थ (bin width) को निकालना होगा – 

बिन विड्थ (bin width) = (अधिकतम और न्यूनतम रिटर्न का अंतर) / 25

Bin width = (Difference between max and min return) / 25

मैंने 25 को अपने ऑब्जर्वेशन की संख्या के आधार पर चुना है

= (3.26% – (-2.82%))/25

=0.002431

कदम 4 –  बिन अरे (Bin Array) बनाना 

यह काफी आसान है, हमें सबसे कम वाला रिटर्न लेना है और उसे बिन विड्थ (bin width) के हिसाब से बढ़ाते जाना है।  उदाहरण के तौर पर अगर सबसे न्यूनतम रिटर्न – 2.82 है तो अगला सेल होगा 

= – 2.82 + 0.002431

= -2.58

इसे हम तब तक बढ़ाते जाएंगे जब तक हम अधिकतम रिटर्न 3.26% तक नहीं पहुंच जाते। अब यहां पर ये टेबल ऐसी दिखेगी।

और ये रही पूरी लिस्ट – 

अब हमें बिन अरे (bin array ) में इन सभी रिटर्न की फ्रीक्वेंसी को निकालना है। पहले मैं डेटा पेश कर देता हूं और फिर उसको समझेंगे

मैंने फ्रीक्वेंसी को निकालने के लिए एक्सेल के  ‘=frequency ()’, फंक्शन का इस्तेमाल किया है। पहली लाइन हमें ये बता रही है कि कुल 126 रिटर्न में से सिर्फ 1 बार ऐसा हुआ है कि रिटर्न -2.82% रहा है। -2.82% और 2.58% के बीच कोई भी ऑब्जर्वेशन नहीं है, मतलब 0 है। इसी तरह से, 0.34% और 0.58% के बीच 13 ऑब्जर्वेशन हैं।

 फ्रीक्वेंसी को निकालने के लिए हमें बिन अरे (bin array) के बगल के सभी सेल (Cells) को सेलेक्ट करना होगा, फिर बिना डीसेलेक्ट (deselect) किए हुए फार्मूला बार (formula bar) में =frequency टाइप करना है और जरूरी इनपुट देना है। ये हिस्सा ऐसा दिखाई देगा।

इसके बाद यहां पर ‘Ctrl + shift + enter’  दबाना होगा, इससे आपको रिटर्न की फ्रीक्वेंसी मिल जाएगी।

कदम 5 – डिस्ट्रीब्यूशन को प्लॉट करना

यह ज्यादा मुश्किल नहीं है, हमारे पास बिन अरे (bin array) है जिसमें सारे रिटर्न हैं और उसके साथ उसकी फ्रीक्वेंसी भी है, जो कि बताता है कि वह रिटर्न कितनी बार मिला है। बस हमें फ्रीक्वेंसी के ग्राफ को प्लॉट करना है और फिर हमें फ्रीक्वेंसी का डिस्ट्रीब्यूशन मिल जाएगा। हमें अब बस यह देखना है कि डिस्ट्रीब्यूशन का ग्राफ बेल कर्व बना रहा है (यानी नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन) या नहीं। 

डिस्ट्रीब्यूशन को प्लॉट करने के लिए मैंने फ्रीक्वेंसी डाटा को सिलेक्ट किया और फिर बार चार्ट (Bar chart) चुन लिया। यह बार चार्ट ऐसा दिखता है 

हमें यहां पर एक बेल कर्व दिख रहा है इसलिए यह मानना ठीक है कि पोर्टपोलियो का रिटर्न एक नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन है। 

10.5 – वैल्यू एट रिस्क 

अब हमने यह पता कर लिया है कि हमारा पोर्टफोलियो नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन वाला है। तो अब हम आगे बढ़ते हैं और वैल्यू एट रिस्क निकालते हैं। ये भी काफी सीधा है। इसके लिए हमें पोर्टफोलियो रिटर्न को ऊपर से घटते हुए क्रम में लगाना होगा।

 इसके लिए मैंने एक्सेल के sort फंक्शन का इस्तेमाल किया है। अब मैं पोर्टफोलियो VaR और पोर्टफोलियो CVaR निकालूंगा। इस गणना का तर्क आगे बताऊंगा 

पोर्टफोलियो VaR – ये वो संख्या है जो कि 95% ऑब्जर्वेशन में सबसे कम है। हमारे पास 126 ऑब्जर्वेशन हैं, इसका 95% होगा 120 ऑब्जर्वेशन। पोर्टफोलियो VaR इन 120 में से सबसे कम होगा जो कि -1.48%

मैं बाकी बचे 5% ऑब्जर्वेशन का औसत लेता हूं यानी बाकी बचे 6 ऑब्जर्वेशन का औसत और वो होगा पोर्टफोलियो का क्यूमूलेटिव (cumulative) VaR यानी CVaR

यहां पर क्यूमूलेटिव (cumulative) VaR यानी CVaR आता है -2.39%

यहां पर आपके मन में कई सवाल उठ सकते हैं। मैं उन सारे सवालों और उसके साथ उनके जवाब की लिस्ट भी नीचे दे रहा हूं –  

  1. हमने पोर्टफोलियो के फ्रीक्वेंसी डिस्ट्रीब्यूशन को प्लॉट क्यों किया?
  1. यह दिखाने के लिए कि पोर्टफोलियो के रिटर्न का नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन है। 
  1. हमें नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन को क्यों देखना पड़ता है?
  1. अगर हम जिस डेटा को देख रहे हैं वह नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन वाला है तो फिर उस पर नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन के गुण लागू होंगे 
  1. नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन वाले डेटा के गुण क्या होते हैं? 
  1. कई गुण होते हैं लेकिन आपको जो जरूर जानना चाहिए वह यह है कि 68% डाटा 1 स्टैंडर्ड डेविएशन पर होता है, 95% डाटा 2 स्टैंडर्ड डेविएशन के भीतर होता है और 99.7% डाटा तीसरे स्टैंडर्ड डेविएशन के अंदर होता है। मेरी सलाह यह होगी कि आप इस अध्याय this chapter को पढ़ें जिससे आप नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में ज्यादा जान सकें। 
  1. हमने डेटा को sort क्यों किया था? 
  1. हमने यह सिद्ध कर दिया था कि डेटा नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन वाला है। याद रखिए कि हमें सिर्फ सबसे बुरी स्थिति के बारे में पता करना था। इसलिए जब हमने अधिकतम से न्यूनतम के हिसाब से डेटा को छांटा तो हम रिटर्न को ज्यादा व्यवस्थित तरीके से देख सके।
  1. हमने सिर्फ 95% ऑब्जर्वेशन को ही क्यों लिया?
  1. याद रखिए कि नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन के सिद्धांत के मुताबिक 95% डेटा दूसरे स्टैंडर्ड डेविएशन के अंदर होता है इसका मतलब यह है कि अचानक चुने गए किसी भी दिन को पोर्टफोलियो का रिटर्न उन 95% के ऑब्जर्वेशन के भीतर ही होगा। इसका सीधा मतलब यह है कि 95% ऑब्जर्वेशन के भीतर सबसे कम वैल्यू वाला डेटा ही सबसे बुरी हालत में होने वाला नुकसान यानी वैल्यू एट रिस्क होगा 
  1.  -1.48% का VaR  क्या बताता है? 
  1. यह बताता है कि सबसे बुरी हालत में पोर्टफोलियो में 1.48% का नुकसान होगा और इस बात को हम 95% भरोसे के साथ कह सकते हैं 
  1. क्या हमारा नुकसान -1.48% से अधिक नहीं हो सकता 
  1. हो सकता है लेकिन ऐसा होने की संभावना काफी कम है और यहीं पर क्यूमूलेटिव (cumulative) VaR यानी CVaR  काम आता है। बहुत ही बुरी स्थिति में ऐसा होने की संभावना 5% है और तब पोर्टफोलियो को -2.39% का नुकसान हो सकता है।
  1. क्या हमारा नुकसान -2.39% से अधिक नहीं हो सकता
  1. हो सकता है, लेकिन ऐसा होने की संभावना काफी कम है। 

मुझे उम्मीद है कि ऊपर की चर्चा आपके काम आएगी। आप इसको अपने इक्विटी पोर्टफोलियो पर आजमा कर देखिए मुझे उम्मीद है कि आपको अपने पोर्टफोलियो के बारे में ज्यादा बातें पता चलेंगी। 

अब तक हमने पोर्टफोलियो से जुड़ी हुई बहुत सारी बातों पर चर्चा कर ली है और इससे जुड़े हुए रिस्क को भी जान लिया है। अब हम आगे बढ़ते हुए ट्रेडिंग पोजीशन से जुड़े रिस्क पर चर्चा करेंगे। 

इस अध्याय में इस्तेमाल किए गए एक्सेल वर्कबुक को आप यहां से डाउनलोड Download कर सकते हैं

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. ऐसी घटना है जिनके होने की संभावना बहुत ही कम होती है उन्हें ब्लैक स्वॉन इवेंट कहा जाता है 
  2. जब एक ब्लैक स्वॉन इवेंट होता है तो पोर्टफोलियो में ज्यादा बड़ा नुकसान हो सकता है 
  3. वैल्यू एट रिस्क एक ऐसी प्रणाली है जो यह बताती है कि ब्लैक स्वॉन इवेंट होने पर आप को अधिकतम नुकसान कितना हो सकता है 
  4. किसी पोर्टफोलियो का VaR निकालने के लिए हमें पोर्टफोलियो के रिटर्न के डिस्ट्रीब्यूशन को देखना होता है 
  5. अंतिम 5% ऑब्जर्वेशन का औसत हमें पोर्टफोलियो का वैल्यू एट रिस्क बताता है

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पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन (भाग 2) https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%ab%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%8b-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9c%e0%a5%87-2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%ab%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%8b-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9c%e0%a5%87-2/#comments Mon, 01 Jun 2020 12:30:00 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8031 9.1 – वजन के साथ काम  पिछले अध्याय में हमने पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन को समझा था और एक्सेल के सॉल्वर टूल के जरिए उसको निकालना सीखा था। इस अध्याय में हम और आगे बढ़ेंगे और पोर्टफोलियो से जुड़े हुए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत के बारे में जानेंगे जिसे “एफिशिएंट फ्रंटियर” (Efficient Frontier) कहा जाता है।  याद कीजिए […]

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9.1 – वजन के साथ काम 

पिछले अध्याय में हमने पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन को समझा था और एक्सेल के सॉल्वर टूल के जरिए उसको निकालना सीखा था। इस अध्याय में हम और आगे बढ़ेंगे और पोर्टफोलियो से जुड़े हुए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत के बारे में जानेंगे जिसे एफिशिएंट फ्रंटियर” (Efficient Frontier) कहा जाता है। 

याद कीजिए कि पिछले अध्याय में हमने यह जाना था कि अगर एक पोर्टफोलियो का वैरीयंस एक जगह पर स्थिर हो तो भी वो फोर्टफोलियो कैसे आपको अलग-अलग रिटर्न दे सकता है। अब हम आगे बढ़ते हैं और इसको ज्यादा अच्छे से समझते हैं। इसके जरिए हमें पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन को ज्यादा बेहतर तरीके से समझने का रास्ता मिलेगा। 

पिछले अध्याय में हमने पोर्टफोलियो को ऑप्टिमाइज करके मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो बनाया था। इसके बाद से हमारे पोर्टफोलियो के अलग-अलग स्टॉक का वजन ऐसा हो गया था। 

क्रम सं. स्टॉक का नाम ऑप्टिमाइजेशन के पहले वजन मिनिमम वैरियंस के लिए ऑप्टिमाइजेशन के बाद वजन
01 सिप्ला 7% 29.58%
02 आइडिया 16% 5.22%
03 वंडरला 25% 30.22%
04 PVR 30% 16.47%
05 अल्केम 22% 18.51%

और पोर्टफोलियो का रिटर्न और पोर्टफोलियो का वैरियंस इस तरह से बदला था

ऑप्टिमाइजेशन के पहले मिनिमम वैरियंस के लिए ऑप्टिमाइजेशन के बाद
एक्सपेक्टेड पोर्टफोलियो रिटर्न 55.14% 36.35%
पोर्टफोलियो वैरियंस 17.64% 15.57%

अब तक हमने पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन के जरिए सिर्फ मिनिमम वैरियंस वाला पोर्टफोलियो बनाया है। अब इसे कुछ और रोचक बनाते हैं। हमने पिछले अध्याय में यह चर्चा की थी कि रिस्क के हर स्तर पर बहुत सारे अलग-अलग रिटर्न वाले पोर्टफोलियो बनाए जा सकते हैं। अब हम इसी को देखने की कोशिश करेंगे। 

हमें पता है कि पोर्टफोलियो का वैरियंस 15.57% है और एक्सपेक्टेड रिटर्न 36.35% है। अब हम रिस्क को 17% तक बढ़ाते हैं और देखते हैं कि इस स्तर पर सबसे ज्यादा रिटर्न और सबसे कम रिटर्न कितना मिल सकता है। मतलब 17% के निश्चित वैरियंस पर पोर्टफोलियो का न्यूनतम और अधिकतम रिटर्न निकालेंगे। यहां पर एक बात ध्यान दीजिए कि हम जब यह कह रहे हैं कि हम रिस्क को बढ़ाकर 17% कर रहे हैं तो वास्तव में हम उसको स्थिर कर रहे हैं – 17% पर।

9.2 – और/ज्यादा ऑप्टीमाइजेशन

तो वास्तव में हम क्या करने की कोशिश कर रहे हैं, हमें पता है कि इस पोर्टफोलियो का न्यूनतम रिस्क 15.57% है और हमें यह भी पता है कि रिस्क के इस स्तर पर हम 36.35% के रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं। जैसा कि मैंने पहले कहा कि अब हम रिस्क को थोड़ा बढ़ाएंगे और यह देखें कि अधिकतम और न्यूनतम रिटर्न क्या मिलता है। इस रिटर्न पर नजर डालने के साथ ही हम यह भी देखेंगे कि हर निवेश का वजन किस तरह से बदल रहा है। इसके बाद, हम रिस्क को थोड़ा और बढ़ाएंगे और फिर से यही देखेंगे कि अब अधिकतम और न्यूनतम रिटर्न कहां मिल रहा है और उस स्तर पर वजन कितना बदल रहा है। हम यह प्रक्रिया कई बार करेंगे और हर बार अपने नतीजों को नोट करते जाएंगे। 

इसके बाद अंत में इन सारे डेटा प्वाइंट को हम एक स्कैटर प्लॉट (ScatterPlot) पर प्लॉट करेंगे और फिर उसकी जांच करेंगे। स्कैटर प्लॉट हमें पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन को ज्यादा अच्छे से समझने में मदद करेगा। 

आइए शुरू करते हैं, हम सबसे पहले रिस्क को 17% पर स्थिर करते हैं। ध्यान रहे कि अभी मैंने 17% पर स्थिर किया है लेकिन हम चाहते तो इसको 16% या 18% पर भी कर सकते थे।

कदम 1 – सॉल्वर का इस्तेमाल 

जैसा कि हम पिछले अध्याय में देख चुके हैं, हम यहां सॉल्वर कैलकुलेटर को डेटा रिबन से निकालेंगे और उस पर क्लिक करेंगे। मैंने आपके समझने के लिए मिनिमम वैरीयंस पोर्टफोलियो के हिसाब से सभी निवेश के ऑप्टिमाइज वजन को हाईलाइट कर दिया है।

कदम 2 – पैरामीटर सेट करना 

तो सबसे पहले यह देखते हैं कि 17% के स्थिर रिस्क पर हमें अधिकतम रिटर्न कितना मिल सकता है, इसके लिए हमें अपने ऑब्जेक्टिव को अधिकतम (maximize) एक्सपेक्टेड रिटर्न पर सेट करना होगा। नीचे उसी को हाईलाइट किया गया है

कदम 3 – वजन का चुनाव 

अब हमें सॉल्वर टूल को ये बताना होगा कि हम पोर्टफोलियो के निवेश के वजन को इस तरह से ऑप्टिमाइज करना चाहते हैं जिससे रिटर्न अधिकतम हो सके। ये वैसा ही है जैसा हमने पिछले अध्याय में किया था। 

ध्यान दीजिए कि यहां पर वजन वैरिएबल सेल (variable cell) हैं।

कदम 4 – सीमा तय करना 

ये ऑप्टिमाइजेशन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां पर हम सीमा तय करते हैं। हम सॉल्वर को बताएंगे कि हमें रिस्क को 17% पर स्थिर रखते हुए रिटर्न को अधिकतम पर ले जाना है और इसके लिए निवेश के वजन को बदला जा सकता है और इसके लिए हम दो सीमाएं लगा रहे हैं-

  1. निवेश का कुल वजन 100% होना चाहिए।
  2. पोर्टफोलियो का रिस्क 17% पर स्थिर रहना चाहिए।

कन्स्ट्रेंट का सेक्शन अब ऐसा दिखेगा।

 

सीमाएं तय करने और बाकी पैरामीटर सेट करने के बाद अब हम सॉल्व का बटन दबा सकते हैं जिससे हमें 17% रिस्क पर अधिकतम रिटर्न और निवेश के वजन पता चल सकें।

ऑप्टिमाइजेशन करने के बाद हमें ये नतीजा मिलता है –

अगर पोर्टफोलियो वैरियंस 17% पर स्थिर है तो हमारे लिए अधिकतम संभावित रिटर्न 55.87% होगा। इस हिसाब से हर स्टॉक का वजन भी ऊपर दिखाया गया है। ध्यान दीजिए कि हर स्टॉक का वजन उस वजन के मुकाबले कितना बदला है जो कि मिनिमम वैरीयंस पोर्टफोलियो में था। 

अब हम आगे बढ़ते हैं और देखते हैं कि इस रिस्क पर यानी 17% रिस्क पर न्यूनतम रिटर्न कितना मिल सकता है। हम आगे बढ़ें, इससे पहले मैं आपको एक बार वो टेबल दिखा देता हूं जो कि मैं अलग-अलग पोर्टफोलियो के लिए बना रहा हूं जिसमें उसके वजन और अलग-अलग रिस्क और रिटर्न को दिखाया गया है।

अब हम पोर्टफोलियो 3 (P3) पर काम कर रहे हैं जिसमें 17% रिस्क पर न्यूनतम रिटर्न दिखेगा। नीचे सॉल्वर टूल में सब कुछ लोड कर दिया गया है, बस ऑप्टिमाइज करना बाकी है।

ध्यान दीजिए कि यहां पर बाकी किसी वेरिएबल में कोई बदलाव नहीं हुआ है। सिर्फ ऑब्जेक्टिव को मैक्सिमाइज की जगह पर मिनिमाइज करने में बदला गया है। ऑप्टिमाइजेशन के बाद रिटर्न न्यूनतम होकर 18.35% हो गया है। तो एक दिए हुए या स्थिर रिस्क वाली स्थिति के लिए हमने दो अलग-अलग पोर्टफोलियो बना लिए हैं जो कि अलग-अलग रिटर्न दे रहे और इसके लिए हमने सिर्फ निवेश के वजन को बदला है।

अब तक हमने इन तीन अलग-अलग पोर्टफोलियो को बनाया है।

फिर से याद दिला दूं कि P1 मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो है, P  अधिकतम रिस्क @17% और P3 न्यूनतम रिस्क @17% पोर्टफोलियो है।

9.3 – एफिशिएंट फ्रंटियर 

जैसा कि हम पहले चर्चा कर चुके हैं, हम रिस्क को थोड़ा और ऊपर बढ़ा सकते हैं, 18%, 19%, शायद 21% या कुछ भी, और उस हिसाब से न्यूनतम और अधिकतम रिटर्न को देख सकते हैं। हमें ऐसा इसलिए करना है क्योंकि हमें अंत में रिस्क और रिटर्न का एक स्कैटर प्लॉट बनाना है और उसके गुणों की जांच करना है। मैंने अलग-अलग रिस्क के स्तर के लिए पोर्टफोलियो को ऑप्टिमाइज कर लिया है और हर स्तर पर मैंने न्यूनतम और अधिकतम रिटर्न को भी निकाल लिया है। ध्यान रखिए कि यहां पर मैंने दशमलव हटा दिए हैं जिससे कि टेबल ज्यादा साफ-सुथरी दिखाई दे। 

अगर आप ध्यान देंगे तो आपको दिखेगा कि मैंने हर पोर्टफोलियो के लिए रिस्क और रिटर्न को हाईलाइट किया हुआ है। अब हम आगे बढ़ते हैं और एक स्कैटर प्लॉट पर इसको प्लॉट करते हैं और देखते हैं कि हमें क्या नतीजा मिलता है। 

स्कैटर प्लॉट पर इसको प्लॉट करने के लिए आपको सभी डेटा बिंदुओं को सिलेक्ट करना होगा और उसके बाद इन्सर्ट रिबन (insert ribbon) के तहत स्कैटर प्लॉट को सेलेक्ट करना होगा। ये ऐसा दिखेगा –

जब आप स्कैटर प्लॉट पर क्लिक करेंगे तो आपको प्लॉट दिखेगा। ये कुछ ऐसा नजर आएगा। मैंने ग्राफ को अच्छा दिखाने के लिए उसमें सुधार किया है। 

जो कर्व आपको दिखाई दे रहा है उसको इस पोर्टफोलियो का एफिशिएंट फ्रंटियर (Efficient Frontier) कहा जाता है। इससे हमें क्या समझ में आ रहा है और यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है? इसकी कुछ वजहें हैं, आइए नजर डालते हैं –

  1. जैसा कि आप देख सकते हैं कि X एक्सिस पर रिस्क को दिखाया गया है और Y एक्सिस पर रिटर्न को दिखाया गया है। 
  2. सबसे बाई तरफ वाले बिंदु से शुरू करें जो कि सब बिन्दुओं से थोड़ा अलग दिखाई दे रहा है वह बिंदु मिनिमम वैरीयंस पोर्टफोलियो (minimum variance portfolio) को दिखाता है। हमें पता है कि इस पोर्टफोलियो का रिस्क 15.57% और रिटर्न 36.25% है। 
  3. इसके बाद हम फोकस करते हैं 17% रिस्क वाले बिन्दु पर। यहां पर आपको दो प्लॉट दिखाई देंगे, एक 18.35% पर और दूसरा 55.87% पर, यह क्या बताते हैं? 
  1. यह हमें बताता है कि 17% रिस्क पर (या जब हम इसे 17% रिस्क पर स्थिर रखना चाहें तो) इस पोर्टफोलियो का सबसे अच्छा रिटर्न 55.87% हो सकता है। 
  2. इस पोर्टफोलियो का सबसे खराब रिटर्न होगा 18.35% 
  3. सीधे शब्दों में कहें तो, जब आप अपने रिस्क को एक ऐसे स्तर पर स्थिर कर देते हैं जो आपके लिए आरामदायक है तो आपको अपने रिटर्न को अधिकतम पर ले जाने की कोशिश करनी चाहिए 
  4. 18.35% और 55.87% के बीच में (जब हमने रिस्क को 17% पर स्थिर कर दिया है) और कई पोर्टफोलियो बनाए जा सकते हैं जो कि अधिकतम और न्यूनतम रिटर्न के बीच में कहीं होंगे। यह सभी पोर्टफोलियो इनएफिशियेंट (inefficient) माने जाते हैं और इन में सबसे खराब पोर्टफोलियो मिनिमम रिटर्न यानी सबसे कम रिटर्न वाला पोर्टफोलियो को माना जाता है। 
  5. तो, एक निवेशक के तौर पर आपको रिटर्न को अधिकतम करने की कोशिश करनी चाहिए, खासकर तब जब आपको पता है कि आप कितना रिस्क लेने को तैयार हैं। 
  1. इसी तरीके के नतीजे आप 18% और 19% या 21% के रिस्क पर भी देख सकते हैं। 
  2. सबसे अच्छा संभावित पोर्टफोलियो यानी एफिशिएंट (Efficient ) पोर्टफोलियो हमेशा मिनिमम वैरीयंस पोर्टफोलियो की लाइन के ऊपर होगा। इस लाइन को नीचे हाईलाइट किया गया है।

तो एक निवेशक के तौर पर आपको हमेशा एक ऐसा पोर्टफोलियो बनाने की कोशिश करनी चाहिए जो एफिशिएंट फ्रंटियर पर हो, और जैसा कि अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि ऐसा पोर्टफोलियो बनाने के लिए आपको सिर्फ अपने निवेश के वजन को पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन के नतीजे के आधार पर बदलना होगा। 

जब आप पैसे पर रिस्क ले रहे हैं तो आप जरूर चाहते होंगे कि आपको सबसे अच्छा रिटर्न मिले। ऊपर का कर्व हमें यही बताता है। यह हमें ज्यादा एफिशिएंट पोर्टफोलियो बनाने के लिए प्रेरित करता है। 

अगले अध्याय में हम वैल्यू एट रिस्क (value at risk)  के सिद्धांत पर नजर डालेंगे और फिर एक ट्रेडर के नजरिए से रिस्क को समझने की कोशिश करेंगे।

इस अध्याय में इस्तेमाल की गयी एक्सेल शीट को आप यहां से डाउनलोड- download कर सकते हैं।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. हर स्टॉक के अलग-अलग निश्चित वजन वाला हर पोर्टफोलियो एक नया पोर्टफोलियो माना जाता है 
  2. जब हम रिस्क को एक स्तर पर निश्चित कर देते हैं तो हम अपने पोर्टफोलियो को ऑप्टिमाइज करके उससे न्यूनतम और अधिकतम रिटर्न का पोर्टफोलियो बना सकते हैं 
  3. न्यूनतम रिटर्न और अधिकतम रिटर्न वाले पोर्टफोलियो (रिस्क के एक निश्चित स्तर के लिए) के बीच में कई और नए पोर्टफोलियो बनाए जा सकते हैं 
  4. रिस्क और रिटर्न का स्कैटर प्लॉट (Scatter Plot) हमें एक एफिशिएंट फ्रंटियर (Efficient Frontier) बना कर देता है 
  5. किसी एक दिए गए स्तर के रिस्क पर सबसे अच्छा पोर्टफोलियो वो होता है जो कि एफिशिएंट फ्रंटियर पर बना हो। बाकी सभी पोर्टफोलियो अयोग्य यानी इनएफिशियेंट (inefficient) माने जाते हैं

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8.1 – दो स्टॉक की कहानी

पोर्टफोलियो से जुड़े हुए रिस्क को अब हम समझ चुके हैं और अब हमें पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन को समझ लेना चाहिए। लेकिन पहले ये समझना जरूरी है कि ये पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन क्या होता है और इसकी जरूरत ही क्यों पड़ती है?

हम आगे बढ़ें इसके पहले मुझे आपसे एक सवाल पूछना है- मान लीजिए आपके पोर्टफोलियो में सिर्फ दो स्टॉक हैं, इंफोसिस और बायोकॉन और पोर्टफोलियो में इन दोनों का वजन बराबर का है। अगर इंफोसिस का रिटर्न 22% है और बायोकॉन का रिटर्न 15% है तो फिर पोर्टफोलियो का रिटर्न कितना होगा? 

ये एक महत्वपूर्ण सवाल है और इसका जवाब देना आपको आना चाहिए।

हमें पता है कि पोर्टफोलियो में दोनों स्टॉक का वजन बराबर है यानी हमें 50% रकम इंफोसिस में निवेश करनी है और 50% बायोकॉन में, तो फिर पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न होगा –

= इंफोसिस में निवेश का वजन * इंफोसिस का एक्सपेक्टेड रिटर्न + बायोकॉन में निवेश का वजन * बायोकॉन का एक्सपेक्टेड रिटर्न

आपको याद होगा कि पिछले अध्याय में किसी स्टॉक का एक्सपेक्टेड रिटर्न निकालने पर विस्तार से चर्चा की थी। तो आइए उसका इस्तेमाल करते हैं –

50% * 22% + 50% * 15%

=11% + 7.5%

18.5%

 तो आप देख सकते हैं कि इस पोर्टफोलियो से हम 18.5% की सालाना रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं। 

लेकिन मान लीजिए पोर्टफोलियो में इन दोनों स्टॉक का वजन हम बदल दें। अगर हम सिर्फ 30% पूंजी ही इंफोसिस में निवेश करें और बाकी 70% बायोकॉन में या 70% इन्फोसिस में और 30% बायोकॉन में, तो क्या होगा? 

आइए इन दोनों स्थितियों को देखते हैं। स्थिति 1 

30% * 22% + 70% * 15%

= 6.6% + 10.5%

17.1%

स्थिति 2 –

70% * 22% + 30% * 15%

=15.4% + 4.5%

=19.9%

इसी तरीके से हम दोनों स्टॉक के वजन को बदल बदल कर उनके हिसाब से मिलने वाले अलग-अलग रिटर्न को देख सकते हैं। नीचे के चार्ट को देखिए –

जैसा कि आप को दिख रहा होगा कि जैसे-जैसे हम निवेश का वजन बदलते हैं वैसेवैसे मिलने वाला रिटर्न भी बदलता है। उदाहरण के लिए अगर हमने इंफोसिस में 40% निवेश किया होता और 60% बायोकॉन में तो 17.8% का रिटर्न मिलता लेकिन अगर मैंने इसको उल्टा कर दिया होता, जैसे 60% इंफोसिस में और 40% बायोकॉन में निवेश करता तो मुझे 19.2% का रिटर्न मिलता जो कि पहले से 2% ज्यादा है। 

ऐसे में यहां एक बहुत ही महत्वपूर्ण नतीजा सामने आता है – जैसे-जैसे निवेश का वजन बदलता है वैसे वैसे रिटर्न भी बदलता है। हम जानते हैं कि हर रिटर्न किसी एक रिस्क से जुड़ा होता है, इसलिए यहां यह भी कहा जा सकता है कि जैसे-जैसे वजन बदलता है रिस्क और रिटर्न दोनों बदलते हैं। 

तो जरा सोचिए कि पुराने डेटा को देखकर अगर हम ये पहचान सकें कि हर स्टॉक में कितना निवेश करने पर हमारे पोर्टफोलियो को सबसे अच्छा संभावित रिटर्न मिलेगा, तो इससे अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता। 

पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन के जरिए यही करने की कोशिश की जाती है। आप हर स्टॉक में निवेश का वजन इस तरह बदलते हैं कि 

  • हर स्टॉक में निवेश का वजन बदल कर उतना हो जाए कि पोर्टफोलियो सबसे अच्छा रिटर्न दे सके। 
  • आप अपने निवेश का वजन इस तरह से रखते हैं जिससे कि आपका रिस्क कम से कम हो सके।

8.2 – जरूरी शब्दावली 

मुझे उम्मीद है कि अब तक आप ये समझ गए होंगे कि पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन क्यों जरूरी है। 

अब आगे बढ़ते हैं और हम अपने पहले से बनाए हुए पोर्टफोलियो को ऑप्टिमाइज करने की कोशिश करते हैं। लेकिन इसके पहले कुछ महत्वपूर्ण शब्दों को जानना आपके लिए जरूरी है –

मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो (Minimum variance portfolio) – मान लीजिए आपके पोर्टफोलियो में 10 स्टॉक हैं। अब तक आप समझ चुके हैं कि हर स्टॉक का पोर्टफोलियो में वजन बदल कर आप अलगअलग नतीजे पा सकते हैं, मतलब रिस्क और रिटर्न दोनों बदल सकते हैं। मतलब यह कि हर बार जब आप वजन बदलते हैं तो आपके पास एक नया पोर्टफोलियो बन जाता है। उदाहरण के तौर पर 10 स्टॉक के पोर्टफोलियो में अगर 10 में से हर एक में 10% का निवेश किया तो ये एक अलग पोर्टफोलियो होगा लेकिन अगर आप इन में से किसी एक स्टॉक में 30% और बाकी 9 स्टॉक में से हर एक में 7.8% का निवेश करते हैं तो यह एक बिल्कुल ही अलग पोर्टफोलियो होगा। इसी तरीके से, हर बार जब आप ये मिश्रण बदलते हैं तो आपको एक नया पोर्टफोलियो मिलता है, जिसका रिस्क और रिटर्न पिछली बार से एकदम अलग होता है। 

तो, ऐसे में हर पोर्टफोलियो में स्टॉक के वजन का एक कॉम्बीनेशन- Combination (मिश्रण) जरूर होगा जहां पर रिस्क और रिटर्न सबसे अच्छा हो। तकनीकी शब्दों में कहें तो, पोर्टफोलियो के हर स्टॉक के वजनों का एक ऐसा मिश्रण जरूर होगा जो कि आपके पोर्टफोलियो के वैरियंस को न्यूनतम स्तर पर ले जा रहा होगा। ऐसे न्यूनतम वैरियंस वाले पोर्टफोलियो को मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो कहते हैं। मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो उस न्यूनतम रिस्क को बताता है जो आप ले सकते हैं। तो अगर आप कम से कम रिस्क लेने वाले निवेशक हैं तो आपको कोशिश करनी चाहिए कि आपका पोर्टफोलियो एक मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो हो। 

मैक्सिमम रिटर्न पोर्टफोलियो (Maximum Return portfolio) – यह एक तरह से मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो का एकदम विपरीत होता है। जैसे मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो में स्टॉक के वजन का एक ऐसा मिश्रण बनाया जाता है जिसकी वजह से रिस्क कम हो सके वैसे ही मैक्सिमम रिटर्न पोर्टफोलियो में स्टॉक के वजन का एक ऐसा मिश्रण या कॉम्बीनेशन बनाया जाता है जिसकी वजह से रिटर्न ज्यादा से ज्यादा हो सके। हां, याद रखने वाली बात यह भी है कि अगर रिटर्न मैक्सिमम यानी अधिकतम होगा तो रिस्क भी अधिकतम होगा।

फिक्स्ड वैरियंस, मल्टीपल पोर्टफोलियो (Fixed variance, multiple portfolios)– यह एक शब्द नहीं है बल्कि एक सिद्धांत है जिसको आपको यहां समझ लेना चाहिए। हो सकता है कि अभी आपको इसे समझने में थोड़ी मुश्किल हो लेकिन आगे जाते हुए इस अध्याय के खत्म होने के पहले जब हम पोर्टफोलियो का ऑप्टिमाइजेशन करेंगे तब आप इसको पूरी तरह से समझ पाएंगे।  

वैरियेंस की किसी एक स्तर पर आप कम से कम दो पूरी तरह से अलग और एकदम नए पोर्टफोलियो बना सकते हैं। इनमें से एक पोर्टफोलियो आपको अधिकतम संभावित रिटर्न देगा और दूसरा पोर्टफोलियो आप को उसी रिस्क पर न्यूनतम रिटर्न देगा। 

एक उदाहरण पर नजर डालते हैं – मान लीजिए किसी पोर्टफोलियो का वैरियंस 15% है इसमें एक ऐसा पोर्टफोलियो बनाया जा सकता है जो कि 30% का रिटर्न (अधिकतम रिटर्न) दे सके और एक ऐसा पोर्टफोलियो बनाया जा सकता है जो 12% का रिटर्न (न्यूनतम रिटर्न) दे सके। ध्यान दीजिए कि दोनों पोर्टफोलियो में रिस्क 15% ही है, लेकिन रिटर्न अलग-अलग है। 

इन दोनों पोर्टफोलियो के बीच में कई और अलग-अलग एकदम नए पोर्टफोलियो बनाए जा सकते हैं जिनका रिटर्न अलग-अलग होगा। तो कहने का मतलब यह है कि अगर एक जगह रिस्क को निश्चित कर दिया जाए या फिक्स कर दिया जाए तो भी बहुत सारे ऐसे पोर्टफोलियो बनाए जा सकते हैं जिनका रिटर्न अधिकतम से लेकर न्यूनतम के बीच में कुछ भी हो सकता है।

इस विषय पर हम आगे फिर से चर्चा करेंगे लेकिन अभी के लिए आप उसको बस अपने दिमाग में रखिए। 

8.3 – पोर्टफोलियो ऑप्टीमाइजेशन के कदम 

अब वापस आते हैं अपने उस पोर्टफोलियो पर जो हमने पहले बनाया था – उस पोर्टफोलियो के स्टॉक और उनके वजन नीचे दिखाए गए हैं –  

याद रखें कि इस पोर्टफोलियो का इस्तेमाल हम पिछले कुछ अध्याय से लगातार कर रहे हैं। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि यहां पर हर स्टॉक को जो वजन दिया गया है वह बस ऐसे ही दे दिया गया है। इस पोर्टफोलियो का वार्षिक पोर्टफोलियो वैरियंस करीब 17.64% और एक्सपेक्टेड रिटर्न करीब 55.4% है। 

अब हम इस पोर्टफोलियो को ऑप्टिमाइज करने या अपने लिए अनुकूल बनाने की कोशिश करते हैं जिससे हमें मनचाहा नतीजा मिल सके। इसके लिए हम एक्सेल (Excel) में दिए गए सॉल्वर टूल (Solver Tool) का इस्तेमाल करेंगे। सॉल्वर टूल (Solver Tool) आपको एक्सेल में डेटा रिबन (Data Ribbon) के तहत मिलेगा।

हो सकता है आप में से कुछ को सॉल्वर टूल ना मिले क्योंकि शायद आपने एक्सेल में इसे ऐड (add) नहीं किया होगा, इसे ऐड करने के लिए आपको ये कदम उठाने होंगे – 

  1. किसी भी खुले हुए एक्सेल शीट में फाइल्स (Files) पर क्लिक करें 
  2. ऑप्शंस (options) चुनें 
  3. ऐड इन्स (Add-Ins) सेलेक्ट (Select) करें 
  4. सॉल्वर ऐड इन (Solver Add in) पर क्लिक करें 
  5. गो (Go) पर क्लिक करें 
  6. सॉल्वर ऐड इन (Solver Add in)  पर चेक (check) करें 
  7. ओके (OK) पर क्लिक करें और क्लोज (Close) करें 
  8. एक्सेल शीट को बंद कर दें और अपने सिस्टम (System) को फिर से रीस्टार्ट (re start) करें 
  9. अब डेटा रिबन के तहत आपको सॉल्वर टूल दिखाई पड़ेगा 

अब शुरू करते हैं अपने पोर्टफोलियो का ऑप्टिमाइजेशन जिससे कि हमें मिनिमम वैरियेंस पोर्टफोलियो मिल सके। ऐसा करने के लिए ये कदम उठाने पड़ेंगे –

कदम 1 – अपने डेटा को व्यवस्थित करें। सॉल्वर टूल का इस्तेमाल करने के लिए यह बहुत ही जरूरी कदम है। आपके सेल (Cell) लिंक्ड  (linked) होने चाहिए, डेटा अच्छे तरीके से व्यवस्थित होना चाहिए और कोई भी हार्ड कोडिंग (hard coding) नहीं होनी चाहिए। इस समय आपकी एक्सेल शीट ऐसी दिखाई देनी चाहिए 

मैंने यहां पर दो महत्वपूर्ण हिस्सों को हाईलाइट किया है जिनका इस्तेमाल हम ऑप्टिमाइजेशन के लिए करेंगे। सबसे ऊपर का हिस्सा जहां पर हमने हर स्टॉक को एक वजन दिया है। याद रखें कि यह बदलेगा जब हम पोर्टफोलियो को ऑप्टिमाइज (optimize) करेंगे। दूसरा हाईलाइट किया गया हिस्सा है एक्सपेक्टेड रिटर्न और वार्षिक पोर्टफोलियो वैरियंस कैलकुलेशन का, यह भी ऑप्टिमाइजेशन के बाद बदलेगा। 

कदम दो – सॉल्वर टूल का इस्तेमाल करके वजन को ऑप्टिमाइज करें। मैं यह मानकर चल रहा हूं कि सॉल्वर टूल आपके लिए नया है इसलिए मैं आपको जल्दी से ये बता देता हूं कि यह टूल क्या करता है। सॉल्वर टूल का इस्तेमाल किसी एक ऑब्जेक्टिव (Objective) के लिए किया जाता है।  सॉल्वर के लिए ऑब्जेक्टिव का मतलब एक ऐसा डेटा बिन्दु (Data Point) होता है जो किसी फॉर्मूला पर आधारित होता है। आप अपने ऑब्जेक्टिव की वैल्यू या कीमत को न्यूनतम रख सकते हैं, अधिकतम रख सकते हैं या आप इसे अपने मन के हिसाब से कहीं भी तय कर सकते हैं। ऑब्जेक्टिव की वैल्यू को बदलने के लिए आपको उस फार्मूला के कुछ अवयवों या वेरियेबल (Variable) में बदलाव करना होगा। सॉल्वर के मुताबिक वेरियेबल, ऑब्जेक्टिव को पता करने वाले फॉर्मूला का एलिमेंट (Element)/पार्ट या हिस्सा है । उदाहरण के तौर पर मैं अपनी वैरियंस को न्यूनतम पर लाने का फैसला कर सकता हूं और इसके लिए मुझे अपने पोर्टफोलियो स्टॉक के के वजन में बदलाव करना होगा। यहां पर वैरियंस हमारा ऑब्जेक्टिव है और वेट (weight) यानी वजन हमारा वेरिएबल (variable) या अवयव है।

जब हम सॉल्वर को नतीजे को ऑब्जेक्टिव (यानी वैरियंस) को न्यूनतम पर ले जाने के लिए कहते हैं तो वह वैरियंस निकालने के लिए इस्तेमाल किए गए फॉर्मूले को बैकग्राउंड में चेक करता है और उसके अवयवों (वैल्यू/ मूल्यों) को बदलकर ऐसी स्थिति पैदा करता है जिससे आपके नतीजा (वैरियंस) न्यूनतम पर पहुंच जाए। 

नीचे के चित्र पर नजर डालिए जहां पर मैं सॉल्वर टूल का इस्तेमाल कर रहा हूं और इसे वैरियंस को न्यूनतम पर ले जाने के लिए कमांड (command) देने वाला हूं 

जब आप डेटा रिबन पर जाकर सॉल्वर पर क्लिक करते हैं तो, आपको सॉल्वर टूल खुल जाता है जैसा कि आप ऊपर देख सकते हैं। इसमें हमें अपने ऑब्जेक्टिव को सेट (set) करना होता है। यहां पर हमारा ऑब्जेक्टिव है – वार्षिक पोर्टफोलियो वैरियंस। याद रखिए कि हम मिनिमम वैरीयंस पोर्टफोलियो निकालने की कोशिश कर रहे हैं। 

नीचे के चित्र पर नजर डालिए 

अब हमारा ऑब्जेक्टिव है एनुअल पोर्टफोलियो वैरियंस, आप देख सकते हैं कि इसके सेल एड्रेस (Cell Address) को हमने सेट ऑब्जेक्टिव (Set Objective) में हाईलाइट किया हुआ है। वो सेल (cell) जिसमें एनुअल पोर्टफोलियो वैरियंस दिखाया गया है वह भी हाईलाइट किया गया है और यहां पर आप एक लाल रंग का तीर भी देख रहे होंगे। हम अपने ऑब्जेक्टिव को न्यूनतम पर ले जा रहे हैं और इसे हरे रंग के तीर से दिखाया गया है। 

जब यह सब सेट (set) हो जाए तो आपको सॉल्वर को बताना है कि हमें अपने ऑब्जेक्टिव को न्यूनतम तक पहुंचाना है और इसके लिए वेरिएबल में बदलाव किया जा सकता है। यहां पर वेरिएबल है हर स्टॉक को दिया गया उसका वजन 

जैसा कि आप देख सकते हैं बाई चेंजिंग वेरिएबल सेल (By changing variable cell)  फील्ड (Field) में मैंने हर स्टॉक को दिए गए वजन को हाईलाइट किया है। 

आपको एक और फील्ड (Field) दिखाई देगा सब्जेक्ट टू कॉन्स्ट्रेन्ट्स (Subject to Constraints), इसका मतलब यह है कि सॉल्वर आपसे पूछ रहा है कि वैरियंस को न्यूनतम पर ले जाने के लिए जब स्टॉक के वजन में बदलाव करना है तो क्या उसके ऊपर कोई सीमा भी है जिसका कि ख्याल रखना है।

मुझे जो एक सीमा समझ में आती है वह यह है कि सभी स्टॉक के कुल वजन का जोड़ 100% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इसका मतलब है कि मेरी 100% पूंजी इन पांच स्टॉक में लगनी चाहिए। अगर मैं यह सीमा नहीं लगाऊंगा तो हो सकता है कि साल्वर ऐसे निवेश बता दे जिसमें 5 में से कुछ स्टॉक हो ही नहीं। आखिर सॉल्वर सिर्फ एक टूल है, स्टॉक चुनने वाला कोई इंसान नहीं है। 

यह सीमा या कॉन्स्ट्रेन्ट (Constraint) लगाने के लिए आपको ऐड (Add) का बटन दबाना होगा जब आप ऐसा करेंगे तो एक नई विंडो (window) खुलेगी

अब सेल रेफरेंस के तहत मैं सभी स्टॉक के वजन का कुल जोड़ दूंगा जो कि 100% होना चाहिए। आपको इसके बगल में एक और dropdown-menu दिखाई देगा जिसमें बहुत सारे ऑप्शन होंगे यहां पर मैं “=” को चुन लूंगा। अब सीमा या कॉन्स्ट्रेन्ट 100% होगी। ध्यान दें कि मैंने यहां पर 100% टाइप किया है।

आम भाषा में कहें तो मैंने सॉल्वर (Solver) को मिनिमम वैरियंस को ऑप्टिमाइज करने के लिए कहा है और ये कहा है कि सभी स्टॉक को कुल वजन 100% होना चाहिए। अब ये विन्डो ऐसी दिखेगी।

अब सॉल्वर (Solver) पूरी तरह से सेट अप हो चुका है। बस सॉल्व (Solve) का बटन दबाना है, अभी ये विन्डो ऐसी दिखेगी

यहां मैंने सभी स्टॉक का वजन हाईलाइट कर दिया है। याद रखें कि यह ऑप्टीमाइजेशन करने के पहले का वह वजन है जो हमने शुरू में हर स्टॉक को दिया था। ऑप्टीमाइजेशन कर के जब वैरियंस को न्यूनतम पर ले जाया जाएगा तो ये सारे वजन बदलेंगे। अब आगे बढ़ते हैं और सॉल्व (Solve) का बटन दबाते हैं और देखते हैं सॉल्वर (Solver) क्या करता है

सॉल्वर ने इसका नतीजा दे दिया है और उसने हमारे लिए मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो बना दिया है और उसी हिसाब से हर स्टॉक का वजन भी बदल दिया है। 

सॉल्वर की गणना के हिसाब से हमें सिप्ला से अपना वजन 7% से बढ़ाकर 29.58% करना चाहिए जबकि आइडिया में हमारा वजन 16% से घटाकर 5.22% करने की सलाह है। इसी तरीके से सॉल्वर ने हर स्टॉक के वजन में बदलाव का सुझाव दिया है। साथ ही, सॉल्वर हमें यह भी बता रहा है कि इस पोर्टफोलियो के लिए न्यूनतम वैरियंस 15.57% होगा याद रहे कि पहले यह वैरियंस 17.64% था। इसके साथ ही पोर्टफोलियो से मिलने वाला एक्सपेक्टेड रिटर्न भी नीचे आ गया है। अब यह 36.25% है जबकि पहले यह 55.14% था।

तो अब आप कुछ भी करें वैरियंस 15.57% से नीचे नहीं जा सकता। इसका मतलब है कि अगर आप इन पांच स्टॉक में निवेश करना चाहते हैं तो आपको कम से कम 15.57% का रिस्क लेना ही होगा। आपकी पूंजी पर इससे कम रिस्क नहीं हो सकता। 

अब यहां पर रुकते हैं। अगले अध्याय में हम इस पोर्टफोलियो को कुछ और स्थितियों के हिसाब से ऑप्टिमाइज करेंगे जिससे कि कुछ और अलग-अलग स्थितियां हमारे सामने आ सकें। इस तरह से हम एक ऐसी चीज बनाएंगे जिसे एफिशिएंट फ्रंटियर (Efficient Frontier)” कहा जाता है। 

इस अध्याय में इस्तेमाल की गई एक्सेल शीट को आप यहां से डाउनलोड- download कर सकते हैं। इस एक्सेल शीट में सभी स्टॉक का मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो के हिसाब से ऑप्टिमाइज किया हुआ वजन दिया गया है। 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. पोर्टफोलियो का रिटर्न इस बात पर निर्भर करता है कि किस स्टॉक को कितना वजन दिया गया है।
  2. मिनिमम वैरियंस पोर्टफोलियो किसी पोर्टफोलियो की वह स्थिति है जहां पर वैरियंस या रिस्क कम से कम होता है। 
  3. मैक्सिमम रिटर्न पोर्टफोलियो वह पोर्टफोलियो होता है जहां पर रिटर्न अधिकतम हो सकता है। 
  4. जब हम किसी पोर्टफोलियो का वैरियंस तय या निश्चित कर देते हैं तब हमें कम से कम दो पोर्टफोलियो मिलते हैं जहां पर पोर्टफोलियो का रिटर्न अधिकतम या न्यूनतम होता है। 
  5. आप किसी भी पोर्टफोलियो को स्टॉक की किसी भी संख्या के हिसाब से ऑप्टिमाइज कर सकते हैं। इसके लिए आपको एक्सेल में सॉल्वर टूल का इस्तेमाल करना होगा। 
  6. सॉल्वर टूल का इस्तेमाल करते हुए आपको जिस बात का सबसे ज्यादा ध्यान रखना है वह यह है कि आपका डेटा अच्छे से व्यवस्थित हो। इसके लिए आपको सभी जरूरी सेल को लिंक करना होगा और किसी भी तरीके की हार्ड कोडिंग से बचना होगा।
  7. आप पोर्टफोलियो को ऑप्टिमाइज करने के लिए वेरिएबल में किसी भी तरीके की सीमा तय कर सकते हैं।

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7.1 – संभावित रिटर्न / एक्सपेक्टेड रिटर्न्स

जिन लोगों ने कभी पोर्टफोलियो तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया है उनके लिए अगले 2 अध्याय बहुत काम के साबित होने वाले हैं। इन अध्यायों में हम बात करेंगे पोर्टफोलियो से कितना रिटर्न मिल सकता है यानी एक्सपेक्टेड रिटर्न की और इसके आधार पर पोर्टफोलियो में सुधार कैसे किया जाए। इसे पोर्टफोलियो ऑप्टिमाइजेशन (Portfolio Optimization) कहते हैं (इस पर हम अगले अध्याय में चर्चा करेंगे) इसके जरिए आपको यह पता चलता है कि किसी एक स्टॉक में कितने पैसे लगाने चाहिए जिससे आपको सबसे ज्यादा रिटर्न मिले और रिस्क और रिटर्न का संतुलन भी बना रहे। आमतौर पर फाइनेंस से जुड़े लोग इन मुद्दों पर चर्चा नहीं करते और यह जानकारी अपने तक ही सीमित रखते हैं। लेकिन हम यह जानकारी आप तक पहुंचा रहे हैं। 

लेकिन ध्यान रहे कि इसको अच्छे से समझने के लिए यह जरूरी है कि अब तक पिछले कुछ अध्यायों में हमने जिन विषयों पर बात की है आप उनके बारे में जानते हों। इसलिए अगर आपने अब तक उन अध्यायों को नहीं पढ़ा है तो मेरी सलाह यह होगी कि आप पहले जाकर उनको पढ़ लेँ। उन पर बिताए गए कुछ घंटे आपके लिए बाजार में पैसे कमाने में काफी काम आने वाले हैं। यहां पर भी हम उसी एक्सेल शीट का इस्तेमाल करेंगे जिसका इस्तेमाल हमने पिछले कुछ अध्यायों में किया है। 

तो आइए शुरू करते हैं – 

शुरुआत के लिए सबसे पहले हम पोर्टफोलियो वैरियंस पर नजर डालते हैं जिसको हमने पिछले अध्याय में निकाला था

इस संख्या से हमें पता चलता है कि पोर्टफोलियो से कितना रिस्क जुड़ा हुआ है। याद रखें कि हमने वैरियंस निकालन् के लिए डेली यानी दैनिक डेटा का इस्तेमाल किया था, इसलिए 1.11हर दिन के रिस्क को बताता है। 

रिस्क, वैरियंस या वोलैटिलिटी सब एक सिक्के की तरह हैं जिसका एक दूसरा पहलू भी है। जिस कीमत पर हम निवेश करते हैं, उससे नीचे की तरफ का कोई भी चाल हमारे लिए रिस्क होता है लेकिन जब वही चाल दूसरी तरफ यानी हमारे निवेश की कीमत से ऊपर की तरफ होती है तो उसको रिटर्न कहते हैं। हम वैरियंस के डेटा का इस्तेमाल करके यह जानने की कोशिश करेंगे कि एक साल में हमारे पोर्टफोलियो किस रेंज (दायरे) में बदलाव हो सकता है। अगर आपने ऑप्शन का मॉड्यूल पढ़ा है तो आपको समझ में आ गया होगा कि मैं क्या बात कर रहा हूं। 

लेकिन ऐसा करने के पहले हमें पोर्टफोलियो के एक्सपेक्टेड रिटर्न को पता करना होगा। पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न निकालने के लिए हमें उसमें के हर स्टॉक के औसत रिटर्न को उसके अपने वेट (वजन/weight) से गुणा करना होगा और फिर इन सबका जोड़ निकालना होगा। फिर इस मिली हुई संख्या को 252 (साल में ट्रेडिंग वाले दिनों की संख्या) से गुणा करना होगा। सीधे शब्दों में कहें तो हम अपने दैनिक यानी डेली रिटर्न को वार्षिक रिटर्न में बदल रहे हैं और फिर इसको अपने निवेश के हिसाब से निकाल रहे हैं। 

तो आइए देखते हैं कि जो हमारा पोर्टफोलियो है उसका एक्सपेक्टेड रिटर्न कितना है। उम्मीद है कि इसको देखने के बाद आपको यह बात अच्छे से समझ में आएगी। नीचे के चार्ट में मैंने डेटा को कैसे लगाया है देखिए –

पहले 3 कॉलम तो आसानी से समझ में आ जाएंगे, अंतिम कॉलम में मैंने हर दिन के औसत रिटर्न को 252 से गुणा किया है जिससे कि उस स्टॉक का वार्षिक रिटर्न पता चल सके। 

उदाहरण के लिए सिप्ला में – 0.06% * 252 = 15.49%

इसको समझना बहुत आसान है, मान लीजिए कि मैंने अपने सारे पैसे सिप्ला में लगाए होते और किसी दूसरे स्टॉक में नहीं, तो पोर्टफोलियो में सिप्ला का वेट यानी वजन होता 100% और इससे मैं 15.49% के रिटर्न की उम्मीद करता। लेकिन चूंकि मैंने सिप्ला में अपनी कुल पूंजी का सिर्फ 7% ही लगाया है इसलिए सिप्ला से मेरा एक्सपेक्टेड रिटर्न होगा –

वजन (वेट/weight) * एक्सपेक्टेड रिटर्न

= 7% * 15.49%

= 1.08%

तो इसी तरह से हम अब पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न भी निकाल सकते हैं – 

जहां,

Wt = हर स्टॉक का वजन

Rt = स्टॉक का एक्सपेक्टेड वार्षिक रिटर्न

मैंने इसी फार्मूले का इस्तेमाल अपने पोर्टफोलियो के 5 स्टॉक पर किया और ये है उसका परिणाम –

तो अब हमें दो ऐसे मापदण्ड मिल गए हैं जो पोर्टफोलियो के हिसाब से बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। वो हैं, पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न जो कि 55.4% है और पोर्टफोलियो का वैरियंस जो कि 1.11% है। 

हम अगर चाहे तो पोर्टफोलियो के इसी वैरियंस से इसका वार्षिक वैरियंस भी निकाल सकते हैं, इसके लिए हमें सिर्फ इसको 252 के वर्गमूल (Square root) से गुणा करना होगा –

वार्षिक वैरियंस =

 

= 1.11% * Sqrt (252)

= 17.64%

अभी के लिए हम इन आंकड़ों को अलग रखते हैं।

अब हमें नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन की चर्चा पर वापस लौटना होगा जिसे हमने ऑप्शन के मॉड्यूल में किया था। 

मेरी सलाह यह होगी कि आप जल्दी से डाल्टन बोर्ड एक्सपेरिमेंट (Dalton board experiment) के बारे में पढ़ लें और नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन को समझ लें। साथ ही, यह भी जान लें कि इसका इस्तेमाल करके भविष्य के परिणाम का अनुमान कैसे लगाया जा सकता है। यहां पर, नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन और इसके गुणों को जानना बहुत जरूरी है। 

पोर्टफोलियो का रिटर्न आमतौर पर नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन तरीके से ही होता है। अगर आप किसी पोर्टफोलियो के डिस्ट्रीब्यूशन को ग्राफ पर प्लॉट करेंगे तो आपको एक नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन वाला पोर्टफोलियो मिलेगा। एक पोर्टफोलियो का नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन मिल जाए तो उसके आधार पर पोर्टफोलियो के अगले 1 साल के संभावित रिटर्न का अनुमान काफी हद तक लगाया जा सकता है।  

रिटर्न का अनुमान आत्मविश्वास के साथ लगाने के लिए आपको अपने एक्सपेक्टेड वार्षिक रिटर्न में से पोर्टफोलियो वैरियंस को घटाना और जोड़ना पड़ेगा। ऐसा करने से आपको पता चल जाएगा कि एक साल में आपका पोर्टफोलियो कितना गंवा सकता है या कितना कमा सकता है।

तो यह कहा जा सकता है कि नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन के आधार पर हम काफी हद तक यह बता सकते हैं कि हमारा पोर्टफोलियो किस रेंज में ऊपर या नीचे हो सकता है। यह अनुमान भरोसे के तीन अलग-अलग स्तरों पर लगाया जा सकता है –

  • स्तर 1 – एक स्टैन्डर्ड डेविएशन की दूरी पर, 68% भरोसे के साथ
  • स्तर 2 – दो स्टैन्डर्ड डेविएशन की दूरी पर, 95% भरोसे के साथ
  • स्तर 3 – तीन स्टैन्डर्ड डेविएशन की दूरी पर, 99% भरोसे के साथ

याद रखिए कि वैरियेंस को स्टैंडर्ड डेविएशन में नापा जाता है। यहां पर यह ध्यान देना जरूरी है कि पोर्टफोलियो का वार्षिक वैरियंस जो कि 17.64% है, वह 1 स्टैंडर्ड डेविएशन है। 

तो अगर 17.64% 1 स्टैंडर्ड डेविएशन है तो 2 स्टैंडर्ड डेविएशन होगा 17.64% * 2 = 35.28% और 3 स्टैंडर्ड डेविएशन होगा 17.64% * 3 = 52.92% । 

अगर आप यह सब पहली बार पढ़ रहे हैं तो मुझे पक्का पता है कि आपको ये समझ में नहीं आ रहा होगा। इसीलिए यह जरूरी है कि आप नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में पढ़ें और जानें। इसे मैंने ऑप्शन के अध्याय में बताया था।

7.2 – पोर्टफोलियो के रेंज अनुमान लगाना

अब हमारे पास वार्षिक वैरियंस (17.64%) और एक्सपेक्टेड एनुअल रिटर्न यानी वार्षिक रिटर्न (55.4%) है। इसके आधार पर अब हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि पोर्टफोलियो का रिटर्न अगले साल किस रेंज या दायरे में रह सकता है। ध्यान दें कि जब हम एक दायरे या रेंज की बात कर रहे हैं तो यह हम यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इसके ऊपर और नीचे जाने की सीमा क्या होगी। 

ऊपर की सीमा की संख्या निकालने के लिए हमें अपने वार्षिक पोर्टफोलियो वैरियेंस में एक्सपेक्टेड एनुअल रिटर्न को जोड़ना है, यानी 17.64% + 55.4% = 72.79% , दायरे की निचली सीमा निकालने के लिए हमें वार्षिक पोर्टफोलियो वैरियेंस में से एक्सपेक्टेड वार्षिक रिटर्न को घटाना है, यानी 55.4%  – 17.64% = 37.51%  

तो अगर आप मुझसे पूछे कि अगले 1 साल में मेरे 5 स्टॉक के पोर्टफोलियो में रिटर्न कैसा रह सकता है, तो मेरा जवाब होगा कि रिटर्न 37.51% से लेकर 72.79% तक के बीच में होगा। 

अब यहां पर 3 सवाल खड़े हो सकते हैं 

  1. रिटर्न का यह रेंज हमें बता रहा है कि पोर्टफोलियो में पैसा डूबने की कोई संभावना नहीं है, यह कैसे संभव है? यह तो बता रहा है कि बुरी से बुरी हालत में भी 37.51% का रिटर्न मिलेगा जो कि बहुत ही ज्यादा अच्छा है। 
  • मैं मानता हूं कि यह बात सही है लेकिन सच्चाई भी यही है कि रेंज यानी दायरे की गणना सांख्यिकी के आधार पर की गई है। ध्यान रहे कि अप्रैल से मई 2017 के इस दौर में (जब मैं इसको लिख रहा हूं) बाजार में बुल रन चल रहा था और हमने जो स्टॉक चुने हैं उन्होंने इस दौरान बहुत ही ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया था, इसीलिए यह सारे आंकड़े बहुत ही ज्यादा पॉजिटिव दिखाई दे रहे हैं। अगर हमने 1 साल से ज्यादा के आंकड़े लिए होते तो यह रेंज एकदम ही अलग तस्वीर पेश कर रहा होता। लेकिन यहां पर हमारे लिए यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें यह सीखना है कि रेंज या दायरा कैसे निकाला जाता है
  1. तो आपको यह तो समझ आ गया कि रेंज को निकालने में कोई गलती नहीं हुई है, लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि पोर्टफोलियो रिटर्न 37.15% से लेकर 72.79% के बीच में ही रहेगा?
  • जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं कि हम स्तर एक पर हैं यानी 1 स्टैंडर्ड डेविएशन पर, इसलिए इस बात की संभावना 68% है। 
  1. अगर मुझे इससे ज्यादा भरोसा चाहिए तो 
  • ऐसी स्थिति में आपको हुए बड़े स्टैंडर्ड डेविएशन के साथ इसको निकालना पड़ेगा 

आइए अब यही करते हैं, 

इस रेंज को 95% भरोसे के साथ निकालने के लिए हमें दूसरे स्टैंडर्ड देविएशन पर जाना होगा, मतलब हमें पहले स्टैंडर्ड डेविएशन से मिली हुई संख्या को 2 से गुणा करना होगा। हम पहले भी यह कर चुके हैं इसलिए हमें पता है कि दूसरा स्टैंडर्ड देविएशन 35.28% का होता है। 

इसके आधार पर हम 95% भरोसे के साथ अगले 1 साल के लिए इस पोर्टफोलियो का रिटर्न होगा 

दायरे की निचली सीमा =  55.15% 35.28% = 19.87%

दायरे की ऊपरी सीमा =  55.15% 35.28% = 90.43%

हम अपने कॉन्फिडेंस यानी भरोसे को और भी बढ़ा कर 99% तक ले जा सकते हैं। इसके लिए हमें बस अपने रिटर्न के रेंज को तीसरे स्टैंडर्ड डेविएशन तक ले जाना होगा आपको याद है कि तीसरा स्टैंडर्ड डेविएशन 52.92% होता है – 

दायरे की निचली सीमा =  55.15% 52.92% = 2.23%

दायरे की ऊपरी सीमा =  55.15% 52.92% = 108.07%

जैसा कि आपको दिख रहा होगा कि हम जैसे जैसे अपने भरोसे का स्तर बढ़ाते जाते हैं, वैसे वैसे हमारा रेंज या दायरा भी बढ़ता जाता है। इस अध्याय के अंत में मैं आपके लिए कुछ अभ्यास छोड़ जा रहा हूं 

  1. इन पांच स्टॉक के पोर्टफोलियो के फ्रिकवेंसी डिस्ट्रीब्यूशन (Frequency Distribution) को प्लॉट कीजिए और इसके डिस्ट्रीब्यूशन को देखकर यह बताइए कि क्या आपको यहां पर कोई बेल कर्व दिख रहा है?
  2. हमने यहां पर 1 साल के लिए दायरा या रेंज निकाला है लेकिन अगर आपको 3 महीने के लिए रेंज को निकालना हो या 3 हफ्ते के लिए रेंज को निकालना हो तो आप क्या करेंगे?

आप इसका जवाब नीचे कमेंट सेक्शन में लिख सकते हैं। आप इस एक्सेल शीट को यहां से डाउनलोडdownload कर सकते हैं।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. पोर्टफोलियो का रिटर्न इस बात पर निर्भर करता है कि अलग-अलग स्टॉक का पोर्टफोलियो में कितना वजन है 
  2. किसी स्टॉक का पोर्टफोलियो के रिटर्न पर कितना असर पड़ेगा यह जानने के लिए उस स्टॉक के औसत रिटर्न को उसके स्टॉक के वजन से गुणा करना होता है 
  3. किसी पोर्टफोलियो का कुल एक्सपेक्टेड रिटर्न उस में शामिल अलग-अलग स्टॉक के एक्सपेक्टेड रिटर्न का जोड़ होता है 
  4. हर दिन के वैरियंस यानी डेली वैरियेंस को वार्षिक वैरियंस में बदला जा सकता है इसके लिए बस उसे 252 के वर्गमूल/स्कैवयर रूट से गुणा करना होता है 
  5. जब भी हम किसी पोर्टफोलियो का वैरियंस निकालते हैं तो वह पहले स्टैंडर्ड डेविएशन पर होता है 
  6. दूसरे और तीसरे स्टैंडर्ड डेविएशन का वैरियंस निकालने के लिए उसे 2 या 3 से गुणा करना पड़ता है 
  7. किसी पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न एक दायरे के तौर पर निकाला जाता है
  8. इस रेंज को पाने के लिए हमें पोर्टफोलियो के एक्सपेक्टेड रिटर्न में से वैरियंस को घटाना या जोड़ना होता है।
  9. हर स्टैन्डर्ड डेविएशन के साथ भरोसे का एक स्तर जुड़ा होता है, भरोसे के स्तर को बढ़ाने के लिए ऊंचे स्टैन्डर्ड डेविएशन का इस्तेमाल करना होता है  

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इक्विटी कर्व https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%87%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%87%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%9f%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5/#comments Mon, 01 Jun 2020 12:25:24 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8024 6.1 – संक्षिप्त विवरण यह अध्याय हमारे मुख्य विषय से थोड़ा हटकर है।  पिछले अध्याय में हमने पोर्टफोलियो वैरियंस के बारे में चर्चा की थी। अब हमने इतनी मेहनत करके पोर्टफोलियो वैरियंस निकाला और अगर उसका इस्तेमाल ना करें तो फिर कोई फायदा नहीं। इसलिए अगले 2 अध्याय में हम यही काम करेंगे।  अगले 2 […]

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6.1 – संक्षिप्त विवरण

यह अध्याय हमारे मुख्य विषय से थोड़ा हटकर है। 

पिछले अध्याय में हमने पोर्टफोलियो वैरियंस के बारे में चर्चा की थी। अब हमने इतनी मेहनत करके पोर्टफोलियो वैरियंस निकाला और अगर उसका इस्तेमाल ना करें तो फिर कोई फायदा नहीं। इसलिए अगले 2 अध्याय में हम यही काम करेंगे। 

अगले 2 अध्यायों में हम कोशिश करेंगे कि 

  • इक्विटी कर्व (curve) पर चर्चा करें और पोर्टफोलियो वैरियंस निकालने का एक दूसरा रास्ता देखें 
  • पोर्टफोलियो का 1 साल का एक्सपेक्टेड रिटर्न निकालें 
  • पोर्टफोलियो में इस तरह के बदलाव करें जिससे रिटर्न अधिक हो जाए और वैरियंस कम हो जाए 

ध्यान दीजिए कि ये अध्याय पिछले अध्याय में की गई चर्चा पर आधारित है। इसलिए अगर आप इस अध्याय को बिना पीछे की चीजों को जाने समझे पढ़ेंगे तो कोई फायदा नहीं होगा। मेरी सलाह है कि अगर आपने अब तक वह अध्याय नहीं पढ़े हैं तो पहले जाकर उनको पढ़ लें।

6.2 – इक्विटी कर्व

हम यहां पर अपने पांच स्टॉक के पोर्टफोलियो के लिए एक इक्विटी कर्व बनाने की कोशिश करेंगे। अगर संक्षेप में कहें तो, एक आम इक्विटी कर्व आपको 100 के स्केल पर पोर्टफोलियो का परफॉर्मेंस दिखाता है। मतलब यह आपको बताता है कि अगर आपने अपने पोर्टफोलियो में 100 का निवेश किया है तो एक निश्चित समय के बाद उससे कितनी कमाई हुई है यानी आपका पोर्टफोलियो कैसा परफॉर्मेंस दिखा रहा है। आप इस कर्व का इस्तेमाल ये देखने के लिए भी कर सकते हैं कि आपका पोर्टफोलियो अपने बेंचमार्क यानी Nifty50 या BSE Sensex के मुकाबले किस तरह का प्रदर्शन कर रहा है। 

इक्विटी कर्व में से और भी कई तरह की जानकारी निकाली जा सकती है जो आपको पोर्टफोलियो के बारे में काफी कुछ बता सकती है। लेकिन उस पर चर्चा बाद में करेंगे। 

पहले अपने 5 स्टॉक के पोर्टफोलियो के लिए इक्विटी कर्व बनाते हैं। आपको याद होगा कि हमने पिछले अध्याय में ये पांच स्टॉक चुने थे और उनको अलग अलग वजन दिया था। नीचे के चित्र में उन पांचों स्टॉक के नाम और पोर्टफोलियो में उनका कितना वजन है वह दिखाया गया है-

स्टॉक का नाम निवेश का वजन
सिप्ला 7%
आइडिया सेलुलर लि 16%
वंडरला 25%
PVR 30%
एल्केम 22%

तो, यह निवेश का वजन यानी इन्वेस्टमेंट वेट होता क्या है? वास्तव में यह बताता है कि आप के कुल निवेश का कितना प्रतिशत किसी स्टॉक में लगा है। उदाहरण के लिए 100,000 में से 7,000 सिप्ला में जाएंगे और 22,000 एल्केम लैब में निवेश होंगे। और इसी तरह बाकियों में भी। 

इक्विटी कर्व बनाने के लिए आम तरीका यह है कि पोर्टफोलियो को 100 के हिसाब से देखा जाए। इससे हमें यह समझने में आसानी होती है कि अगर 100 इस पोर्टफोलियो में निवेश किए गए हैं तो वह रकम इस निश्चित अवधि में कहां तक पहुंची है। हमने पिछले अध्याय में जिस एक्सेल शीट का इस्तेमाल किया था, मैंने उसी में पोर्टफोलियो को 100 के हिसाब से दिखा दिया है। नीचे के चित्र पर नजर डालिए- 

आपको यहां दिखेगा कि मैंने डेली रिटर्न के कॉलम (Column) के बगल में एक नया कॉलम डाला है और उसमें उस स्टॉक का पोर्टफोलियो में वजन कितना है यह दिखाया है। इसी तरह, अंत में आपको दो और कॉलम दिखेंगे जो यह बता रहे हैं कि शुरुआती निवेश 100 का है और कुल वजन 100% है। 

शुरुआती निवेश उस रकम को दिखाता है कि जितने पैसे से हम निवेश की शुरुआत कर रहे हैं। मैंने इसको 100 रखा है। इसका मतलब है कि 100 में से 7 सिप्ला में निवेश हो रहे हैं 16 आईडिया में निवेश हो रहे हैं, 25 वांडरला में निवेश हो रहे हैं और इसी तरह से बाकी निवेश भी बांटा गया है। 

अब मैं अगर हर निवेश के वजन को एक साथ जोड़ लूं तो यह 100% होना चाहिए, जो हमें यह बताता है कि 100 का 100% निवेशित है। 

अब हमें यह देखना है कि हर स्टॉक में किया गया निवेश किस तरह का प्रदर्शन दिखा रहा है। इसको ज्यादा अच्छे से समझने के लिए सबसे पहले सिप्ला का उदाहरण लेते हैं। सिप्ला का पोर्टफोलियो में वजन 7% है इसका मतलब है कि 100 में से 7 से सिप्ला में निवेश किए गए हैं। सिप्ला के स्टॉक की कीमत में हर दिन होने वाले बदलाव की वजह से यह 7 या तो बढ़ेंगे या घटेंगे। यहां पर याद रखने वाली बात यह है कि अगर पहले दिन हमारे 7 बढ़कर  7.50 हो जाते हैं तो अगले दिन हमारा शुरुआती निवेश 7.50 रहेगा 7 नहीं। मैंने एक एक्सेल में इसको बनाया है- 

1 सितंबर को सिप्ला की कीमत 579.15 थी। इस दिन हमने इस स्टॉक में 7 निवेश करने का फैसला किया। मुझे पता है कि तकनीकी रूप से यह संभव नहीं है लेकिन उदाहरण के लिए इसे हम मान लेते हैं। 1 सितंबर को हमने 7 का निवेश किया। 2 सितंबर को सिप्ला 577.5 रुपए पर बंद हुआ मतलब -0.21% नीचे। इसका मतलब यह हुआ कि अपने 7 के निवेश पर हमने 0.21% का नुकसान उठाया और अब हमारे निवेश की कीमत बची 6.985, 6 सितंबर को सिप्ला 0.11% बढ़ा और 578.6 पर बंद हुआ इस तरह हमारा 6.985 भी 0.11% बढ़ा और 6.993 हो गया। और यह इसी तरीके से आगे भी चलता रहेगा 

मैंने पोर्टफोलियो के सभी स्टॉक के लिए ये जोड़ घटाव किया है और ये रहा उसका टेबल –

मैंने हर स्टॉक में निवेश की गई रकम के मुकाबले कीमत में हर दिन होने वाले बदलाव को निकाला है और उसे नीले रंग से हाईलाइट किया है।ध्यान दीजिए, मैंने 100 को पांच अलग-अलग स्टॉक में बांटा है और उनको स्टॉक के वजन के हिसाब से निवेश कर दिया है। अब अगर मैं हर स्टॉक की कीमत में हर दिन के बदलाव को देखूं तो मुझे यह पता चल जाएगा कि मेरे 100 के कुल निवेश में हर दिन किस तरह का बदलाव हो रहा है। इस तरीके से मुझे यह पता चल जाएगा कि मेरा पोर्टफोलियो किस तरह का प्रदर्शन कर रहा है। यह गणना करके देखते हैं कि मेरा 100 जो कि 5 स्टॉक में लगा है वह हर दिन किस तरह से चल रहा है। 

इन सब अलग-अलग संख्याओं को जोड़कर देखें तो मुझे इनके कीमत में हर दिन होने वाले बदलाव का एक टाइम सीरीज मिल जाएगा 

अब अगर मैं इसको एक ग्राफ पर डाल दूं तो यह मुझे इक्विटी कर्व बन कर मिल जाएगा। मतलब कि पोर्टफोलियो के हर दिन की नॉर्मलाइज्ड कीमत का टाइम सीरीज डेटा मिल जाएगा। मैं नॉर्मलाइज्ड कीमत इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैंने इसे 100 के लिए बनाया है।

तो यह रहा हमारे पोर्टफोलियो का इक्विटी कर्व –

तो इतना आसान है इसको बनाना। पोर्टफोलियो का परफॉरमेंस देखने के लिए इस इक्विटी कर्व का काफी इस्तेमाल होता है। ये पता चलता है कि पोर्टफोलियो कितना रिटर्न दे रहा है। इस उदाहरण में हमने 100 से निवेश शुरू किया और 6 महीने बाद उसकी वैल्यू 113.84 हो गयी। नीचे के चित्र को देखिए

तो सीधे सादे तरीके से मुझे पता है कि मेरा पोर्टफोलियो 6 महीने की इस अवधि में 13.8% की कमाई कर चुका है।

6.3 – पूरा पोर्टफोलियो एक यूनिट

अब एक नई चीज पर नजर डालते हैं। पिछले अध्याय में हमने पोर्टफोलियो वैरियंस निकाला था। इसे निकालने के लिए हमने हर स्टॉक का स्टैन्डर्ड डेविएशन निकाला था। जैसा कि आपको पता है कि स्टैन्डर्ड डेविएशन हमें उस स्टॉक की वोलैटिलिटी को बताता है और ये और कुछ नहीं बस उस स्टॉक से जुड़ा हुआ रिस्क है। 

स्टैन्डर्ड डेविएशन निकालने के लिए हमने स्टॉक के डेली रिटर्न पर एक्सेल में ‘=STDEV()’ फंक्शन का इस्तेमाल किया था। लेकिन, अब तो हमें हमारे पोर्टफोलियो की हर दिन की कीमत या वैल्यू पता है (भले ही वो 100 के हिसाब से नॉर्मलाइज्ड है।) 

तो अगर हम यह मान लें कि हमारा पोर्टफोलियो एक स्टॉक है और हम इसका हर दिन का रिटर्न निकाल लें, जैसे कि हमने पिछले अध्याय में हर स्टॉक का अलग-अलग डेली रिटर्न निकाला था। अगर मैं यहां पर  ‘=STDEV()’ फंक्शन का इस्तेमाल पोर्टफोलियो का डेली रिटर्न निकालने के लिए करूं तो? तो इससे जो स्टैन्डर्ड डेविएशन हमें मिलेगा वह पोर्टफोलियो का स्टैन्डर्ड डेविएशन होगा जो कि वास्तव में पोर्टफोलियो का वैरियंस होगा यानी पोर्टफोलियो के रिस्क को बता रहा होगा। 

तो आपको समझ में आ गया मैं क्या कर रहा हूं, जी हां हम पोर्टफोलियो वैरियंस निकालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन एक दूसरे तरीके से। 

आपको यह बात अच्छे से समझ में आ जाए इसलिए हम ने पिछले अध्याय में जो पोर्टफोलियो वैरियंस निकाला था उसे यहां नीचे दिखा रहा हूं-

इस पोर्टफोलियो वैरियंस निकालने के लिए हमने मैट्रिक्स मल्टीप्लिकेशन किया था और कोरिलेशन मैट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल किया था। 

लेकिन अब हम पोर्टफोलियो को एक यूनिट की तरह देखेंगे और स्टॉक की तरह से नॉर्मलाइज्ड वैल्यू वाले इस पोर्टफोलियो का हर दिन का रिटर्न निकालेंगे। पोर्टफोलियो के हर दिन के रिटर्न का स्टैन्डर्ड डेविएशन हमें जो संख्या बताएगा वह पोर्टफोलियो वैरियंस के आसपास होनी चाहिए जिसे हमने पहले निकाला हुआ है।  

मैंने अपने नॉर्मलाइज्ड वैल्यू वाले इस पोर्टफोलियो के वैल्यू के बगल में एक नया कॉलम बनाया है और वहां पोर्टफोलियो का हर दिन का रिटर्न निकाला है। 

जब हमारा रिटर्न निकल जाएगा तो मैं स्टैन्डर्ड डेविएशन फंक्शन का इस्तेमाल करूंगा जिससे मुझे पहले निकाले गए पोर्टफोलियो वैरियंस के आसपास की कोई संख्या/वैल्यू मिलनी चाहिए

तो आप जैसा देख सकते हैं कि STDEV भी फंक्शन से हमें वही संख्या मिली है। 

इस अध्याय में इस्तेमाल किए गए एक्सेल शीट को आप यहां से डाउनलोड- download  कर सकते हैं अगले अध्याय में हम पोर्टफोलियो वैरियंस का इस्तेमाल करके एक्सपेक्टेड रिटर्न निकालेंगे और पोर्टफोलियो को सुधारेंगे भी।

आपके लिए अभ्यास- हमने हर स्टॉक को एक वजन दिया है, आपको बस ये करना है कि उस वजन को बदल कर देखिए कि कुल रिटर्न पर किस तरह का असर पड़ता है। अपना नतीजा हमारे साथ शेयर कीजिए कमेंट बॉक्स में।

 इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. किसी पोर्टफोलियो का प्रदर्शन देखने का एक आम तरीका है – इक्विटी कर्व को देखना 
  2. इक्विटी कर्व बनाने के लिए आमतौर पर जो तरीका इस्तेमाल किया जाता है उसमें शुरुआती निवेश की कीमत को 100 रखा जाता है 
  3. हम पोर्टफोलियो के हर स्टॉक में निवेश को अलग-अलग वजन देते हैं 
  4. हमें हर निवेश की कीमत में हर दिन होने वाले बदलाव को निकालना होता है 
  5. हर स्टॉक में हर दिन होने वाले इस बदलाव का जोड़ ही उस पोर्टफोलियो में होने वाला बदलाव होता है 
  6. हर दिन के इस बदलाव को अगर एक ग्राफ पर देखा जाए तो यह पोर्टफोलियो का इक्विटी कर्व हो जाता है 
  7. हम पोर्टफोलियो को एक स्टॉक की तरह देखकर उसका स्टैन्डर्ड डेविएशन निकाल सकते हैं 
  8. पोर्टफोलियो का स्टैन्डर्ड डेविएशन ही पोर्टफोलियो वैरियंस भी बताता है

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5.1 – कोरिलेशन मैट्रिक्स

पिछले अध्याय में हमने वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स निकाला था। जैसा कि हमने कहा था कि इसमें मिलने वाली संख्या इतनी छोटी होती है जिससे कोई अर्थ निकालना मुश्किल होता है, इसीलिए आमतौर पर वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स के बाद साथ में कोरिलेशन मैट्रिक्स निकाला जाता है। 

तो आगे बढ़ते हैं और कोरिलेशन मैट्रिक्स निकालते हैं।

किन्हीं दो स्टॉक के बीच में कोरिलेशन कैसे निकाला जाता है, हमने इसका फार्मूला पिछले अध्याय में भी बताया था। एक बार फिर देख लीजिए 

जहां,

Cov (x,y) दो स्टॉक के बीच का कोवैरियंस है

σ= स्टॉक x का स्टैन्डर्ड डेविएशन

σ= स्टॉक y का स्टैन्डर्ड डेविएशन y

अगर आपके पोर्टफोलियो में दो स्टॉक हैं तो यह फार्मूला बहुत अच्छे से काम करता है। लेकिन हमारे पोर्टफोलियो में पांच स्टॉक हैं, इसलिए हमें कोरिलेशन निकालने के लिए मैट्रिक्स ऑपरेशन करना पड़ेगा। जब किसी पोर्टफोलियो में कई स्टॉक होते हैं तो उसका कोरिलेशन निकालने के लिए सभी स्टॉक के कोरिलेशन को n x n के मैट्रिक्स में रखना पड़ता है। जैसे हमारे पोर्टफोलियो में 5 स्टॉक हैं तो हमें 5 x 5 का मैट्रिक्स तैयार करना होगा।

कोरिलेशन निकालने का फार्मूला वही रहता है। पिछले अध्याय में बनाए गए वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स के चित्र पर फिर से नजर डालिए – 

तो हमें इस तरह इस मैट्रिक्स से फॉर्मूले में दिखाए गए विभाजन के लिए ऊपर का अंक (Numerator) तो मिल गया, अब विभाजन के नीचे का हिस्सा (denominator/डिनॉमिनेटर) निकालना है, जो कि वास्तव में स्टॉक A के स्टैन्डर्ड डेविएशन को स्टॉक B के स्टैन्डर्ड डेविएशन से विभाजित करके मिलने वाली संख्या है। अगर पोर्टफोलियो में 5 स्टॉक हैं तो हमें उस उन पांचों स्टॉक के जितने भी जोड़े बन सकते हैं उन सभी जोड़ों के लिए इसी तरीके से स्टैन्डर्ड डेविएशन निकालना होगा। 

तो आइए आगे बढ़ते हैं और इसे करते हैं। 

सबसे पहले हमें पोर्टफोलियो के सभी स्टॉक के लिए स्टैन्डर्ड डेविएशन निकालना होगा। मुझे उम्मीद है कि आपको यह करना आता है। आपको सिर्फ एक्सेल में डेली रिटर्न ऐरे (array) में ‘=Stdev()’ के जरिए  स्टैन्डर्ड डेविएशन निकालना है। 

मैंने इसको एक एक्सेल पर पिछले अध्याय में निकाला था उस चित्र को फिर से से दे रहा हूं

अब हमारे पास सभी स्टॉक का अलग-अलग स्टैन्डर्ड डेविएशन है। अब हमें सभी संभावित जोड़ों के स्टैन्डर्ड डेविएशन का प्रॉडक्ट निकालना है। इसके लिए हमें मैट्रिक्स मल्टीप्लिकेशन करना होगा। ये बहुत ही आसान है, बस स्टैन्डर्ड डेविएशन ऐरे (array) को उसके ट्रांसपोज से गुणा करना होगा।

इसके लिए पहले हम मैट्रिक स्केल्टन (skeleton/ ढांचा) बनाते हैं और सभी सेल (Cell) को हाईलाइट कर के रखेंगे।

इसके बाद सेल को बिना डिसेलेक्ट किए हुए हम मैट्रिक्स मल्टीप्लिकेशन फंक्शन करेंगे। ध्यान दीजिए कि हम स्टैन्डर्ड डेविएशन ऐरे (array) को उसके अपने ट्रांसपोज से गुणा कर रहे हैं। नीचे के चित्र पर नजर डालिए तो आपको यह समझ में आएगा। साथ ही चित्र में दिए गए फॉर्मूले पर भी नजर रखिए।

जैसा कि मैंने पिछले अध्याय में भी कहा था कि जब भी आप मैट्रिक्स या ऐरे (array) फंक्शन का एक्सेल में इस्तेमाल करते हैं तो आपको कंट्रोल+शिफ्ट+एंटर (Ctrl +Shift +Enter)  एक साथ दबाना है। इससे आपको एक ऐसा मैट्रिक्स मिलेगा 

 

अब एक बार फिर से कोरिलेशन के फार्मूले पर नजर डालिए 

तो अब इस विभाजन में ऊपर का हिस्सा हमें नीचे के वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स में दिख रहा है जबकि इस विभाजन में नीचे का हिस्सा स्टैन्डर्ड डेविएशन के उस कैलकुलेशन से निकला है जिसको हमने अभी ऊपर किया है। 

वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स को स्टैन्डर्ड डेविएशन के विभाजन से निकले नतीजे से विभाजित करेंगे तो हमें कोरिलेशन मैट्रिक्स मिलता है। ध्यान दीजिए कि यहां हर आंकड़ा अलग-अलग विभाजित किया जाता है यानी यह एक तरीके का ऐरे (array) फंक्शन है जिसमें हमें कंट्रोल+शिफ्ट+एंटर (Ctrl +Shift +Enter)  दबाना होगा।

इससे मिलने वाला कोरिलेशन मैट्रिक्स कुछ ऐसा दिखेगा 

कोरिलेशन मैट्रिक्स हमें दो स्टॉक के बीच में कोरिलेशन को दिखाता है। उदाहरण के तौर पर, अगर मुझे सिप्ला और एल्केम के बीच में कोरिलेशन को देखना है, तो हमें देखना होगा कि इन दोनों यानी सिप्ला और एल्केम के नाम के सामने आपस में मिलने वाले सेल कौन से हैं और उनमें कौन सी संख्या है। इसको करने के दो तरीके हैं 

  1. सिप्ला के रो (row) को देखें और वहां से सीधे एल्केम के कॉलम (column) तक जाएं  
  2. एल्केम के रो देखें और सिप्ला के कॉलम तक जाएं 

इन दोनों में आपको एक ही परिणाम मिलेगा – 0.2285, आपको पता ही है कि स्टॉक A और स्टॉक B के बीच का कोरिलेशन वैसा ही होगा जैसा स्टॉक B और स्टॉक A के बीच का होगा। इसी वजह से मैट्रिक्स में आपको एक जैसे परिणाम दो जगहों पर देखने को मिलेंगे, पीले रंग के सेल से बन रही तिरछी रेखा के दोनो तरफ। नीचे के चित्र पर नजर डालिए मैंने सिप्ला और एल्केम के कोरिलेशन और एल्केम और सिप्ला के कोरिलेशन को हाईलाइट किया है – 

बीच में पीले रंग से हाईलाइट किए गया कोरिलेशन उस स्टॉक का अपने साथ का कोरिलेशन है। यहां पर आपको ये भी दिखेगा कि पीले रंग से हाईलाइट किए गए सेल के ठीक नीचे जो संख्या है वही संख्या अगले कॉलम में पीले रंग से हाईलाइट सेल के ठीक ऊपर है। 

ये भी साफ है कि स्टॉक A और स्टॉक A के बीच का कोरिलेशन हमेशा 1 होता है, इसी को पीले रंग से हाईलाइट किया गया है।

5.2 पोर्टफोलियो वैरियंस

अब हम पोर्टफोलियो वैरियंस निकालने से कुछ ही कदम दूर हैं। जैसा कि हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं कि पोर्टफोलियो वैरियंस निकाल कर ही हम यह पता कर सकते हैं कि हमारे पोर्टफोलियो पर हम कितना रिस्क ले रहे हैं। इसके आधार पर ही हम अपना निवेश कर सकते हैं नहीं तो हम अंधेरे में ही तीर चलाते रहेंगे। ये पता करके हम और भी अधिक जानकारी के साथ निवेश कर सकेंगे। हम इसके बारे में आगे और भी चर्चा करेंगे। 

पोर्टफोलियो वैरियंस निकालने के पहले कदम के तौर पर हमें हर स्टॉक को एक वेट (weight) यानी वजन देना होगा, यह और कुछ नहीं सिर्फ पोर्टफोलियो में उसका हिस्सा है। इसमें यह तय करना होता है कि हर स्टॉक में हम कितने पैसे निवेश करने जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर अगर मेरे पास 100 हैं और मैं यह सारे 100 एक ही स्टॉक में लगाने जा रहा हूं तो इसका मतलब है कि उस स्टॉक का वेट यानी वजन 100% है। इसी तरीके से अगर मैं उस 100 में से 50 एक स्टॉक में, 20 दूसरे स्टॉक में और 30 तीसरे स्टॉक में लगाने जा रहा हूं तो इन तीनों का वजन यानी वेट 50% 20% और 30% होगा। 

तो अब मैं अपनी मर्जी के हिसाब से अपने पोर्टफोलियो के पांचों स्टॉक को अलग-अलग वेट दे देता हूं।

  • सिप्ला @ 7%
  • आइडिया @ 16%
  • वंडरला @ 25%
  • PVR @ 30%
  • एल्केम @ 22%

यहां पर अलग-अलग वेट या वजन देने के पीछे कोई भी विज्ञान नहीं है, लेकिन यह कैसे होता है इस पर हम इस मॉड्यूल में आगे चर्चा करेंगे। 

अब अगला कदम है कि हम इन सब का वेटेड स्टैन्डर्ड डेविएशन (weighted standard deviation) निकालना, इसका मतलब है कि हमें हर स्टॉक के वेट (वजन) को उसके स्टैंडर्ड डेविएशन से गुणा करना होगा। उदाहरण के तौर पर सिपला का स्टैन्डर्ड डेविएशन 1.49%  है इसलिए इसका वेटेड स्टैन्डर्ड डेविएशन होगा  7% * 1.49% = 0.10%.

अब हम पांचों स्टॉक के वेट और उनके वेटेड स्टैंडर्ड डेविएशन पर नजर डालते हैं

ध्यान रहे कि कुल वेट यानी कुल वजन 100% ही होना चाहिए मतलब सभी स्टॉक के वजन को मिला कर 100 की संख्या आनी चाहिए।  

अब हमारे पास टुकड़ों में वो सारी जानकारी है जिसके आधार पर हम पोर्टफोलियो वैरियंस निकाल सकते हैं। पोर्टफोलियो वैरियंस निकालने का फार्मूला नीचे दिया गया है – 

पोर्टफोलियो वैरियंस = Sqrt (ट्रांसपोज (Wt.SD) * कोरिलेशन मैट्रिक्स * Wt. SD)

Portfolio Variance = Sqrt (Transpose (Wt.SD) * Correlation Matrix * Wt. SD)

जहां,

Wt. SD = वेट स्टैन्डर्ड डेविएशन ऐरे (weights standard deviation array)

इस फॉर्मूले को हम तीन कदमों में लागू करेंगे 

  1. Wt. SD के ट्रांसपोज और कोरिलेशन मैट्रिक्स को गुणा करेंगे, इससे हमें 5 अवयवों (Elements) वाला मैट्रिक्स मिलेगा।
  2. ऊपर मिले परिणाम (row matrix) को वेट स्टैन्डर्ड डेविएशन ऐरे (weights standard deviation array) से गुणा करेंगे तो हमें एक संख्या मिलेगी
  3. अब ऊपर निकाले गए इस परिणाम का वर्गमूल यानी स्क्वैयर रूट (square root) निकालेंगे तो हमें पोर्टफोलियो वैरियंस मिलेगा

तो, आइए अब सीधे इस तरह से पोर्टफोलियो वैरीयंस निकालते हैं –

मैं एक 5 अवयवों (element) वाला एक रो मैट्रिक्स बना कर उसे ‘M1’ नाम देता हूं। ये Wt. SD के ट्रांसपोज और कोरिलेशन मैट्रिक्स को गुणा से मिलने वाला परिणाम है।

ध्यान रखें कि आपको खाली ऐरे (array)  स्थान को सेलेक्ट करना है और कंट्रोल+शिफ्ट+एंटर (Ctrl +Shift +Enter)  एक साथ दबाना है।

अब हम M2 तैयार करेंगे जो कि M1 और स्टैन्डर्ड डेविएशन को गुणा करके मिलेगा।

हम M2 का मूल्य निकालेंगे जो कि 0.000123542 है, इसका वर्गमूल यानी स्केवैयर रूट ही पोर्टफोलियो वैरियंस होगा

इस गणना से हमें नतीजा मिलेगा 1.11%, जो कि इन पांच स्टॉक के पोर्टफोलियो का पोर्टफोलियो वैरियंस होगा।

अब यहां पर थोड़ा आराम करते हैं। बाकी सब अगले अध्याय में।

इस अध्याय में इस्तेमाल हुए एक्सेल शीट को आप यहां से Download डाउनलोड कर सकते हैं।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  • कोरिलेशन मैट्रिक्स किन्हीं दो स्टॉक के बीच के कोरिलेशन को दिखाता है।
  • स्टॉक A और स्टॉक B के बीच का कोरिलेशन वैसा ही होगा जैसा स्टॉक B और स्टॉक A के बीच का होगा।
  • किसी स्टॉक का खुद से कोरिलेशन हमेशा 1 होता है।
  • कोरिलेशन मैट्रिक्स के बाच की तिरछी रेखा (diagonal) किसी स्टॉक का खुद के साथ कोरिलेशन दिखाती है।
  • कोरिलेशन मैट्रिक्स में तिरछी रेखा (diagonal) के ऊपर और नीचे एक जैसी संख्या दिखती है।

 

 

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रिस्क (भाग 3) – वैरियंस और कोवैरियंस मैट्रिक्स https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%95-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-3-%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%82%e0%a4%b8-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8b%e0%a4%b5/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%95-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-3-%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%82%e0%a4%b8-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8b%e0%a4%b5/#comments Mon, 01 Jun 2020 12:24:15 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7835 4.1 – एक नजर फिर इस अध्याय को शुरू करने के पहले एक नजर डाल लेते हैं कि अब तक हमने क्या-क्या चर्चा की है। इस मॉड्यूल के शुरु में हमने चर्चा की थी कि बाजार में निवेश करने पर कारोबारियों के लिए दो तरीके के रिस्क होते हैं। वो जब भी कोई स्टॉक खरीदते […]

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4.1 – एक नजर फिर

इस अध्याय को शुरू करने के पहले एक नजर डाल लेते हैं कि अब तक हमने क्या-क्या चर्चा की है।

इस मॉड्यूल के शुरु में हमने चर्चा की थी कि बाजार में निवेश करने पर कारोबारियों के लिए दो तरीके के रिस्क होते हैं। वो जब भी कोई स्टॉक खरीदते हैं तो उन्हें सिस्टमैटिक रिस्क और अनसिस्टमैटिक रिस्क उठाना होता है। इन दोनों के अंतर को समझने के बाद हमने रिस्क को एक पोर्टफोलियो की नजर से समझा। पोर्टफोलियो रिस्क या पोर्टफोलियो वैरियंस से जुड़ी चर्चा के दौरान हमने 2 सिद्धांतों वैरियंस और कोवैरियंस को जाना। वैरियंस हमें यह बताता है कि किसी स्टॉक का रिटर्न उसके औसत रिटर्न से कितनी दूर तक जा सकता है। जबकि कोवैरियंस एक स्टॉक के रिटर्न और किसी दूसरे स्टॉक के रिटर्न के बीच के वैरियंस को बताता है। वैरियंस और कोवैरियंस पर यह चर्चा मुख्यत दो स्टॉक के पोर्टफोलियो के लिए की गई थी, लेकिन उस चर्चा को हमने समाप्त किया था एक आम पोर्टफोलियो से जिसमें आमतौर पर कई स्टॉक होते हैं। कई स्टॉक वाले पोर्टफोलियो के वैरियंस, कोवैरियंस और कोरिलेशन को निकालने के लिए हमें मैट्रिक्स अल्जेब्रा (Algebra/बीजगणित) की जरूरत पड़ेगी। 

तो अब हम यही करेंगे।

इस अध्याय में हम बहुत सारे स्टॉक के लिए वैरियंस और कोवैरियंस का अनुमान लगाने पर चर्चा करेंगे। इस संदर्भ में हम मैट्रिक्स गुणन यानी मैट्रिक्स मल्टीप्लिकेशन (Matrix Multiplication) और दूसरे सिद्धांतों को भी देखेंगे। लेकिन आपको पता होना चाहिए कि वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स से बहुत ज्यादा सूचना नहीं मिलती। इसमें से जरूरी सूचना निकालने के लिए हमें एक कोरिलेशन मैट्रिक्स भी बनाना पड़ता है। यह सब कर लेने के बाद हम कोरिलेशन मैट्रिक्स के नतीजों का इस्तेमाल करके पोर्टफोलियो वैरियंस निकालेंगे। याद रहे कि हमारा लक्ष्य पोर्टफोलियो वैरियंस निकालने का ही है। पोर्टफोलियो वैरियंस हमें यह बताता है कि अगर हमारे पोर्टफोलियो में काफी सारे स्टॉक हैं तो हम कितना रिस्क ले रहे हैं। 

यहां आपको पता होना चाहिए कि अब हम पूरे पोर्टफोलियो के नजरिए से रिस्क को देख रहे हैं। इसके साथ ही, हम ऐसेट एलोकेशन पर भी चर्चा करेंगे और यह देखेंगे कि यह पोर्टफोलियो के रिटर्न और रिस्क पर किस तरह से असर डालता है। ऐसा करते हुए हम वैल्यू ऐट रिस्क (Value at Risk) के सिद्धांत पर भी नजर डालेंगे। 

साथ ही हम ट्रेडर के नजरिए से भी रिस्क पर एक विस्तार से चर्चा करेंगे। ये जानेंगे कि ट्रेडिंग के दौरान वो किस तरीके से रिस्क को पहचान सकता है और कैसे उससे बच सकता है।

4.2 – वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स

मैं लगातार वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स के बारे में बात करता जा रहा हूं, तो आखिर यह वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स क्या होता है? यह एक वैरियंस मैट्रिक्स है या फिर एक कोवैरियंस मैट्रिक्स है? या फिर ये एक ही मैट्रिक्स है जिसका नाम है वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स। 

वास्तव में यह एक ही मैट्रिक्स है जिसका नाम है वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स। अगर आपके पास 5 स्टॉक हैं तो आपको हर स्टॉक का वैरियंस पता होना चाहिए और साथ ही, आपको यह भी पता होना चाहिए कि उस एक स्टॉक और दूसरे बाकी बचे चार स्टॉक के बीच का कोवैरियंस कितना है। जब हम इसको एक उदाहरण से समझेंगे तो आपके लिए इसे समझना आसान हो जाएगा। 

लेकिन यहां पर ध्यान दीजिए कि इसके लिए यह जरूरी है कि आपको मैट्रिक्स ऑपरेशन के बारे में कुछ आधारभूत जानकारी हो। अगर आपको मैट्रिक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता है तो यहां हम खान एकेडमी का एक वीडियो दे रहे हैं जो मैट्रिक्स मल्टीप्लिकेशन को समझाता है –  https://youtu.be/kT4Mp9EdVqs

 अब हम कई स्टॉक वाले एक पोर्टफोलियो के लिए वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स की गणना करने और कोरिलेशन मैट्रिक्स बनाने की कोशिश करेंगे। एक अच्छा डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो वह होता है जिसमें 10 से 15 स्टॉक होते हैं। वैरियंस कोवैरियंस की गणना को समझाने के लिए मैं इस तरीके के पोर्टफोलियो का इस्तेमाल करना चाहता था लेकिन तब वह गणना इतनी लंबी हो जाती कि एक्सेल शीट में उसको समझाना मुश्किल हो जाता और वो किसी नए इंसान के लिए समझ के परे हो जाता। इसीलिए मैंने यहां पर सिर्फ 5 स्टॉक का पोर्टफोलियो लिया है। इस पोर्टफोलियो में जो 5 स्टॉक हैं, वो हैं 

  1. सिपला 
  2. आईडिया 
  3. वंडरलाWonderla
  4. PVR 
  5. एल्केम 

5 स्टॉक के पोर्टफोलियो के लिए वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स का आकार 5x5 होगा मतलब अगर किसी पोर्टफोलियो में स्टॉक की संख्या K है तो वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स का आकार K x K होगा। 

वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स निकालने का फार्मूला यह है – 

जहां,

k = पोर्टफोलियो में स्टॉक की संख्या

n = लिए गए आंकड़ों की संख्या

X = ये n x k का एक्सेस रिटर्न मैट्रिक्स है, इसे हम अभी आगे समझेंगे। 

XT  = X का ट्रांसपोज मैट्रिक्स

देखते हैं कि इस फार्मूले में होता क्या है, यह बात आपको अच्छे से तब समझ में आएगी जब हम इसका इस्तेमाल करेंगे। 

सबसे पहले हम n x k का एक्सेस रिटर्न मैट्रिक्स निकालते हैं, फिर इस मैट्रिक्स को इसके अपने ट्रांसपोज मेट्रिक से गुणा करेंगे। यह एक मैट्रिक्स मल्टीप्लीकेशन होगा और इसके बाद जो मैट्रिक्स मिलेगा वह K x K मैट्रिक्स होगा। फिर हम इस K x K मैट्रिक्स के हर हिस्से को n से विभाजित करेंगे। जहां पर n देखे गए डेटा बिन्दुओं की संख्या है। इस विभाजन के बाद जो मैट्रिक्स मिलेगा वह एक K x K वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स होगा। 

K x K वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स निकालने के बाद हम अपने अंतिम पड़ाव यानी कोरिलेशन मैट्रिक्स से सिर्फ एक कदम दूर रह जाते हैं। 

आइए अब इस फार्मूले का इस्तेमाल करते हैं और ऊपर बताए गए 5 स्टॉक के लिए वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स निकालते हैं। इसके लिए हम माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल का इस्तेमाल करेंगे। मैंने इन सभी पांच स्टॉक के लिए पिछले 6 महीने की हर दिन की क्लोजिंग कीमत निकाली हुई है।

कदम 1 – पहले डेली यानी दैनिक रिटर्न निकाल लें। इसे तो अब तक आप समझ चुके होंगे इसलिए मैं इसको निकालने का तरीका यहां नहीं बता रहा हूं। बस एक्सेल शीट का एक चित्र दे रहा हूं 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि मैंने स्टॉक की क्लोजिंग कीमत के बगल में ही उसका डेली रिटर्न निकाल कर लिखा है, रिटर्न निकालने का फार्मूला भी साथ में दिखाया गया है। 

कदम 2 –  हर स्टॉक का औसत डेली रिटर्न निकालें। इसके लिए आप एक्सेल के एवरेज फंक्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं।

कदम 3 – एक्सेस रिटर्न मैट्रिक्स बनाएं। 

एक्सेस रिटर्न मैट्रिक्स यह बताता है कि स्टॉक के दैनिक यानी डेली रिटर्न और औसत रिटर्न में कितना अंतर है। हम ने इसको पिछले अध्याय में भी निकाला था जब हम दो स्टॉक के बीच में वैरियंस निकाल रहे थे। 

मैंने एक्सेस रिटर्न मैट्रिक्स इस तरह से बनाया है।

यहां ध्यान दीजिए कि यह मैट्रिक्स n x k आकार का है, जहां पर n हमें यह बता रहा है कि कितनी बार आंकड़ों को लिया गया है (यहां 127 बार) और k हमें बता रहा है कि कितने स्टॉक हैं (यहां पर 5) तो यहां पर हमारा मैट्रिक्स 127 x  5 बना है। हमने इस मैट्रिक्स को नाम दिया है- X

कदम 4 – अब XT X मैट्रिक्स ऑपरेशन करना है जिससे k x k मैट्रिक्स बन जाए।

यह सुनने में काफी हाई फाई लग रहा होगा लेकिन ऐसा नहीं है।

XT एक नया मैट्रिक्स है, जिसे X मैट्रिक्स के रो (row) और कॉलम (column) को आपस में अदल बदल करके बनाया गया है और अब इसे X का ट्रांसपोज मैट्रिक्स कहा जाएगा और इसे दिखाने के लिए XT सिंबल का इस्तेमाल किया जाएगा। हमारा लक्ष्य है X को उसके ट्रांसपोज मैट्रिक्स से गुणा करना यानी XT X मैट्रिक्स बनाना।

याद रखिए कि इस तरह से जो मैट्रिक्स बनेगी वो k x k मैट्रिक्स होगी, जहां K, उस मैट्रिक्स में मौजूद स्टॉक की संख्या बता रहा है। हमारे इस उदाहरण में ये 5 x 5 का मैट्रिक्स होगा।

हम एक्सेल में इसे एक बार में कर सकते हैं। मैं k x k मैट्रिक्स बनाने के लिए निम्न कदम उठाऊंगा।

स्टॉक को रो और कॉलम में लिख लें

अब फंक्शन = MMULT (transposeX),X), याद रहे कि X का मतलब है एक्सेस रिटर्न मैट्रिक्स।

 याद रखें कि इस फॉर्मूले का इस्तेमाल करते समय आपको k x k को हाईलाइट करना है। फॉर्मूला टाइप करने के बाद आपको सीधे ENTER नहीं दबाना है। आपको Ctrl+Shift+Enter दबाना है। वास्तव में एक्सेल में हर ऐसे फंक्शन के लिए Ctrl+Shift+Enter ही दबाना है।

जब आप Ctrl+Shift+Enter दबाएंगे तो एक्सेल आपके सामने k x k मैट्रिक्स पेश कर देगा, जो ऐसा दिखेगा

कदम 5 – वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स के पहले का ये अंतिम कदम है। अब हमें XT X मैट्रिक्स के पूरे हिस्से को डेटा बिन्दुओं की संख्या यानी n से विभाजित करना है। मैं वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स का फार्मूला फिर से दे रहा हूं

अब हम फिर से k x k मैट्रिक्स का लेआउट लाएंगे

जब ये लेआउट आ जाए तो सेल (cells) को डी सेलेक्ट (deselect) किए बगैर पूरे  XT X मैट्रिक्स को सेलेक्ट करना है और फिर उसे n से यानी 127 से विभाजित करना है। ध्यान रहे कि ये अभी भी ऐरे (Array) फंक्शन है इसलिए यहां पर Ctrl+Shift+Enter दबाना है सिर्फ Enter नहीं दबाना है। 

जब आप Ctrl+Shift+Enter दबाएंगे तो आपको वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स मिलेगा। आपको दिखेगा कि इसमें संख्याएं काफी छोटी हैं, लेकिन अभी आप उसकी चिन्ता ना करें। तो ये रहा वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स –

अब वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स को जरा आराम से समझने की कोशिश करते हैं। मान लीजिए मुझे दो स्टॉक्स के बीच में कोवैरियंस को जानना है, उदाहरण के तौर पर वंडरला और PVR के बीच। तो मुझे करना सिर्फ यह है कि अपने बाएं तरफ वाले कॉलम में मुझे वंडरला को खोजना है और उसी रो में हमें PVR को तलाशना है। उनके सामने जो संख्या लिखी है वह इन दोनों के बीच का कोवैरियंस होगा। मैंने इसको यहां पीले रंग से हाईलाइट किया है। 

तो मैट्रिक्स हमें बता रहा है कि वंडरला और PVR के बीच कोवैरियंस 0.000034 है। ध्यान रहे कि PVR और वंडरला के बीच में भी कोवैरियंस यही होगा। 

अब उस संख्या पर नजर डालिए जिसको मैंने नीले रंग से हाईलाइट किया है यह संख्या सिप्ला और सिप्ला को दिखाती है, इसका क्या मतलब हुआ? मतलब यह सिप्ला और सिप्ला के बीच का कोवैरियंस है। ध्यान दें कि स्टॉक का कोवैरियंस और कुछ नहीं उस स्टॉक का वैरियंस ही होता है। इसी वजह से इस मैट्रिक्स को वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स कहते हैं क्योंकि यह हमें दोनों आंकड़े देता है।

लेकिन कड़वी बात यह है कि वैरियंस कोवैरीयंस मैट्रिक्स अपने आप में कुछ ज्यादा काम की चीज नहीं है। जैसा कि आप खुद ही देख सकते हैं कि यह संख्याएं काफी छोटी हैं और इनसे कोई मतलब निकालना मुश्किल काम है। इसीलिए हमें कोरिलेशन मैट्रिक्स की जरूरत पड़ती है। 

अगले अध्याय में हम कोरिलेशन मैट्रिक्स बनाने और उसको समझने की कोशिश करेंगे। जिसके जरिए हम पोर्टफोलियो का वैरीयंस निकालेंगे जो कि हमारा लक्ष्य है। हम यह अध्याय खत्म करें इसके पहले आपके लिए कुछ अभ्यास देता हूं 

  1. 5 या उससे ज्यादा स्टॉक का एक साल का डेटा डाउनलोड कीजिए 
  2. उसका वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स निकालिए 
  3. किसी एक स्टॉक का वैरियंस निकालिए, फिर एक्सेल में = ‘Var()’ फंक्शन का इस्तेमाल करके उसका वैरियंस निकालिए और देखिए कि दोनों आंकड़े एक जैसे हैं या नहीं है। 

आप इस एक्सेलशीट को यहां पर डाउनलोड कर सकते हैं 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. X का मतलब है एक्सेस रिटर्न मैट्रिक्स
  2. एक्सेस रिटर्न मैट्रिक्स किसी टाइम सीरीज पर किसी स्टॉक के डेली रिटर्न और उसके औसत रिटर्न का अंतर है।
  3. ट्रांसपोज मैट्रिक्स को दिखाने के लिए XT का इस्तेमाल किया जाता है।
  4. डेटा बिन्दुओं की संख्या को n दिखाता है। उदाहरण के लिए n यहां 127 है, एक साल के लिए ये 252 होगा।
  5. एक्सेस रिटर्न मैट्रिक्स का आकार n x k होता है, यहां पर k हमें बता रहा है कि इसमें कितने स्टॉक हैं
  6. जब हम XT X मैट्रिक्स के पूरे हिस्से को डेटा बिन्दुओं की संख्या यानी n से विभाजित करते हैं तो हमें वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स मिलता है
  7. वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स का आकार k x k का होता है।
  8. किसी स्टॉक का उसके साथ कोवैरियंस और कुछ नहीं, उस स्टॉक का वैरियंस ही होता है
  9. वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स हमें कोरिलेशन मैट्रिक्स तक ले जाता है

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रिस्क (भाग 2) – वैरियंस और कोवैरियंस https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%95-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2-%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%82%e0%a4%b8-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8b%e0%a4%b5/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%95-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2-%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%82%e0%a4%b8-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%8b%e0%a4%b5/#comments Mon, 01 Jun 2020 12:23:24 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7833 3.1 – वैरियंस पिछले अध्याय में हमने एक्सपेक्टेड रिटर्न की बात की थी, अब हम पोर्टफोलियो वैरियंस की बात करेंगे। पोर्टफोलियो वैरियंस हमें बताता है कि पोर्टफोलियो के स्तर पर हम कितना रिस्क उठा रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि आप स्टैन्डर्ड डेविएशन के बारे में जानते हैं जिससे रिस्क को नापा जाता है। हमने […]

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3.1 – वैरियंस

पिछले अध्याय में हमने एक्सपेक्टेड रिटर्न की बात की थी, अब हम पोर्टफोलियो वैरियंस की बात करेंगे। पोर्टफोलियो वैरियंस हमें बताता है कि पोर्टफोलियो के स्तर पर हम कितना रिस्क उठा रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि आप स्टैन्डर्ड डेविएशन के बारे में जानते हैं जिससे रिस्क को नापा जाता है। हमने स्टैन्डर्ड डेविएशन पर पहले कई बार अलग-अलग मॉड्यूल में चर्चा की है (मॉड्यूल 5 अध्याय 15 के बाद)। अगर आप स्टैन्डर्ड डेविएशन को नहीं समझते हैं तो मेरी सलाह यह होगी कि पहले इसके बारे में जान लीजिए। किसी एक स्टॉक से जुड़े हुए रिस्क को जानने के लिए स्टैन्डर्ड डेविएशन का इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है, लेकिन किसी पोर्टफोलियो का रिस्क जानना इतना आसान नहीं होता। जब आप बहुत सारे अलग-अलग स्टॉक एक साथ लाकर एक पोर्टफोलियो बनाते हैं तो रिस्क पता करना मुश्किल हो जाता है। इस अध्याय में हम इसी बात पर चर्चा करेंगे कि अपने पोर्टफोलियो के रिस्क का अनुमान कैसे लगाया जाए? 

हम आगे बढ़ें, इसके पहले यह जरूरी है कि हम वैरियंस और कोवैरियंस के सिद्धांत को समझ लें। यह दोनों ही सांख्यिकी (statistical measures) से जुड़ी हुई चीजें हैं। पहले वैरियंस को समझते हैं। 

किसी स्टॉक के रिटर्न का वैरियंस हमें यह बताता है कि उस स्टॉक के रिटर्न में होने वाले दैनिक औसत बदलाव और उस स्टॉक के रिटर्न में कितना अंतर है। वैरियंस निकालने का फार्मूला काफी सीधा है – 

यहां,

σ2 = वैरियंस

X = दैनिक रिटर्न

µ = औसत दैनिक रिटर्न

N = देखे गए आंकड़ों/प्रेक्षणों (Observation) की संख्या 

ध्यान दीजिए कि वैरियंस को सिग्मा स्क्वायर (sigma squared) के रूप में निकाला जाता है। ऐसा क्यों किया जाता है, मैं इसके विस्तार में नहीं जाऊंगा क्योंकि इसको समझाना बहुत मुश्किल है। इसलिए बस ये याद रखिए कि इसको सिग्मा स्क्वायर के रूप में निकाला जाता है। वैरियंस को निकालना काफी आसान होता है। इसे समझने के लिए यहां हम एक उदाहरण लेते हैं। 

मान लीजिए किसी स्टॉक का पांच 5 दिनों का रिटर्न ऐसा दिखता है –

दिन 1 – + 0.75%

दिन 2 – + 1.25%

दिन 3 – -0.55%

दिन 4 – -0.75%

दिन 5 – +0.8%.

यहां पर औसत रिटर्न +0.3% है। अब हमें औसत रिटर्न पर हर दिन के रिटर्न में होने वाले डिस्पर्शन (Dispersion) को समझना है (मतलब ये देखना है कि हर दिन का रिटर्न औसत रिटर्न से कितनी दूर तक जाता है) और फिर उस डिस्पर्शन को स्क्वेयर करना है यानी उसका वर्ग निकालना है।

दैनिक रिटर्न औसत से डिस्पर्शन  डिस्पर्शन का वर्ग
+ 0.75% 0.75% – 0.3% = + 0.45% 0.45%^2 = 0.002025%
+ 1.25% +1.25% – 0.3% = + 0.95% 0.95%^2 = 0.009025%
-0.55% -0.55% – 0.3% = -0.85% -0.85%^2 = 0.007225%
-0.75% -0.75% – 0.3% = -1.05% -1.05%^2 = 0.011025%
+0.80% +0.8% – 0.3% = +0.5% 0.50%^2 = 0.002500%

अब हमें इस डिस्पर्शन के वर्ग को जोड़ना है जिससे हमें 0.318000% मिलता है। जब हम इसको 5 (N) से विभाजित करेंगे तो हमें वैरियंस मिल जाएगा-

0.0318000% / 5

σ2 = 0.0063600%.

तो यह संख्या हमें बता रही है कि दैनिक रिटर्न औसत एक्सपेक्टेड रिटर्न से कितना दूर तक जा सकता है। तो एक निवेशक के तौर पर जब आप यह जानना चाहते हैं कि आपका निवेश कितना रिस्की है तो आपको वैरियंस को देखना होता है। वैरियंस जितना ज्यादा होगा आपके स्टॉक पर उतना ही ज्यादा रिस्क होगा। अगर वैरियंस कम है तो स्टॉक कम रिस्की माना जाएगा। ऊपर के उदाहरण में मैं वैरियंस को अधिक मानूंगा क्योंकि यहां पर हम सिर्फ 5 दिनों के आंकड़ों पर नजर डाल रहे हैं। 

यहां पर आप शायद यह जानना चाहें- वैरियंस और स्टैन्डर्ड डेविएशन एक दूसरे से एक साधारण गणित के फॉर्मूले से जुड़े हुए हैं। देखिए- 

वैरियंस का स्क्वेयर रूट =  स्टैन्डर्ड डेविएशन 

Square Root of Variance = Standard Deviation

आप ऊपर के उदाहरण में इस फॉर्मूले का इस्तेमाल करके स्टॉक का 5 दिनों का स्टैन्डर्ड डेविएशन निकाल सकते हैं। 

%

~ 0.8%

यह स्टॉक का स्टैन्डर्ड डेविएशन यानी वोलैटिलिटी है (पिछले 5 दिनें की)। लेकिन हम यहां पर वैरियंस की बात कर रहे हैं और यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि इसका क्या मतलब होता है। हम आगे जाते हुए वैरियंस को कोवैरियंस के साथ जोड़ कर पोर्टफोलियो वैरियंस में इस्तेमाल करेंगे।

3.2 – कोवैरियंस

कोवैरियंस हमें बताता है कि 2 या उससे ज्यादा वेरिएबल साथ में कैसे चलते हैं? ये बताता है कि क्या वो दोनों वेरिएबल साथ साथ चलते हैं (तब यह माना जाएगा कि उनके बीच में पॉजिटिव कोवैरियंस है) या फिर दोनों वेरिएबल अलग-अलग दिशा में चलते हैं (इसका मतलब है कि वह उनके बीच नेगेटिव को कोवैरियंस है)। शेयर बाजार के संदर्भ में देखें तो कोवैरियंस हमें बताता है कि दो या उससे ज्यादा स्टॉक साथ में कैसे चलते हैं? अगर दोनों स्टॉक के बीच में पॉजिटिव कोवैरियंस है तो वह एक दिशा में चलेंगे और अगर नेगेटिव कोवैरियंस है तो वह अलग-अलग दिशा में जाएंगे। 

मुझे पता है कि कोवैरियंस काफी हद तक कोरिलेशन जैसा लग रहा होगा, लेकिन ये दोनों काफी अलग हैं। इनके बीच के अंतर पर हम इस अध्याय में आगे चर्चा करेंगे। 

मुझे लगता है कि जब हम 2 स्टॉक के कोवैरियंस को निकालेंगे तो फिर आपको कोवैरियंस को समझने में आसानी होगी। 2 स्टॉक का कोवैरीयंस निकालने का फार्मूला यह है-

जहां,

Rt S1 = स्टॉक 1 का दैनिक रिटर्न

Avg Rt S1 = n अवधि में स्टॉक 1 का औसत रिटर्न  

Rt S2 = स्टॉक 2 का दैनिक रिटर्न

Avg Rt S2 = n अवधि में स्टॉक 2 का औसत रिटर्न  

nकुल दिनों की संख्या

दूसरे शब्दों में कहें तो, दो स्टॉक्स के बीच का कोवैरियंस को निकालने के लिए दोनों स्टॉक के दैनिक यानी डेली रिटर्न और उनके औसत रिटर्न के अंतर को निकालकर उनके जोड़ को निकालना होता है। यह समझना थोड़ा कठिन है इसलिए आइए इसको एक उदाहरण से समझते हैं।

मैंने यहां पर दो स्टॉक चुने हैं – सिप्ला लिमिटेड और आइडिया सेल्यूलर लिमिटेड। इनका कोवैरियंस निकालने के लिए हमें ऊपर दिखाए गए फार्मूले का इस्तेमाल करना होगा साथ ही, इसके लिए हम माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल का भी इस्तेमाल करेंगे। 

हम आगे बढ़ें इसके पहले, आप अगर अनुमान लगाना चाहें कि सिप्ला और आइडिया के बीच में कोवैरीयंस कितना होगा? याद रखिए कि दोनों बड़ी कंपनियां हैं, करीब-करीब एक ही आकार की हैं, लेकिन दोनों अलग-अलग एक दूसरे से दूर वाले सेक्टर में काम करती हैं। आपको क्या लगता है कि इनका कोवैरियंस क्या होगा? जरा सोचिए। 

एक्सेल में इनका कोवैरियंस निकालने के लिए हमें निम्न कदम उठाने होंगे। (ध्यान रहे कि एक्सेल में कोवैरियंस निकालने का सीधा सीधा तरीका भी है, लेकिन मैं थोड़ा लंबा रास्ता चुन रहा हूं जिससे आपको यह बात अच्छे से समझ में आ सके) 

कदम 1 –  स्टॉक की डेली यानी दैनिक कीमत को डाउनलोड कीजिए। आप को समझाने के लिए मैंने दोनों स्टॉक के 6 महीने के डेटा को डाउनलोड किया है। 

कदम 2 – दोनों स्टॉक का डेली रिटर्न निकालिए। इसके लिए आपको स्टॉक की आज की कीमत को पिछले दिन की कीमत से विभाजित करना होगा और उससे मिली हुई संख्या में से 1 घटाना होगा। 

कदम 3 – अब डेली रिटर्न का औसत निकालिए 

कदम 4 – एक बार औसत निकल आए तो फिर उसमें से दैनिक यानी डेली रिटर्न को घटा दें 

कदम 5 – पिछले कदम में निकाले गए दोनों सीरीज को आपस में गुणा कर दें 

कदम 6 – पिछले कदम में निकाली गई संख्याओं को जोड़ लें। यह जांच लें कि आपको कितने डेटा प्वाइंट मिल रहे हैं। इसके लिए आप एक्सेल के काउंट फंक्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं। मैंने यहां तारीख की गणना की है और इसके लिए काउंट फंक्शन इस्तेमाल किया है। 

कदम 7 – कोवैरियंस निकालने के लिए यह आखिरी कदम है। अब आपको जोड़ से निकली हुई संख्या को गिनती (काउंट) से निकली संख्या से विभाजित करना है और उसमें से 1 (n-1) घटाना है। यहां पर काउंट यानी गिनती है 127, इसमें से 1 घटाने पर मिलेगा 126। पिछले कदम में जोड़ निकला है 0.006642 इसलिए कोवैरियंस होगा

= 0.006642/126

= 0.00005230

आप इस एक्सेल शीट को यहां से डाउनलोड कर सकते हैं download

जैसा कि आप देख सकते हैं कि कोवैरियंस की संख्या काफी छोटी है, लेकिन हमें उससे कोई अंतर नहीं पड़ता। हमें सिर्फ यह देखना है कि दोनों स्टॉक के बीच में पॉजिटिव कोवैरियंस है या नेगेटिव। यहां पर, इन दोनों स्टॉक के बीच में पॉजिटिव कोवैरियंस है। इसका मतलब है कि इन दोनों स्टॉक के रिटर्न एक ही दिशा में चलेंगे यानी बाजार में किसी खास स्थिति में दोनों स्टॉक की दिशा एक ही होगी। ध्यान रहे कि कोवैरियंस हमें यह नहीं बताता कि दोनों की चाल की ताकत या रफ्तार भी एक जैसी होगी या नहीं। चाल कितनी बड़ी होगी यह कोरिलेशन से पता चलता है। आइडिया और सिप्ला के बीच में कोरिलेशन 0.106 है। इसका मतलब यह है कि इनके बीच में बहुत तगड़ा कोरिलेशन नहीं है। 

दोनों स्टॉक के बीच में कोरिलेशन निकालने का गणित का फॉर्मूले ये है

जहां,

Cov (x,y) दोनों स्टॉक के बीच का कोवैरियंस है

σ= स्टॉक x का स्टैन्डर्ड डेविएशन है

σ= स्टॉक y का स्टैन्डर्ड डेविएशन है

याद रहे कि किसी स्टॉक का स्टैन्डर्ड डेविएशन उसके वैरियंस का स्क्वेयर रूट होता है। यहां पर आपको एक अभ्यास देता हूं – हमने एक्सेल फंक्शन का इस्तेमाल करके सिप्ला और आइडिया के बीच में कोरिलेशन निकाला है। क्या आप इसी कोरिलेशन के फॉर्मूले का इस्तेमाल करके देख सकते हैं कि दोनों परिणामों में कोई अंतर तो नहीं है?

जब हम स्टॉक का पोर्टफोलियो बनाते हैं तो पॉजिटिव कोवैरियंस बेहतर होता है या बुरा होता है? पोर्टफोलियो मैनेजर क्या चाहते हैं कि उनके स्टॉक पोर्टफोलियो के स्टॉक के बीच में एक पॉजिटिव कोवैरियंस हो या वह ऐसा नहीं चाहते हैं? सच्चाई यह है कि पोर्टफोलियो मैनेजर हमेशा कोशिश करते हैं कि उनके स्टॉक्स के बीच में नेगेटिव कोवैरियंस हो। इसके पीछे का तर्क बहुत सीधा सा है- वह यह चाहते हैं कि ऐसी स्थिति ना आए कि उनके सारे स्टॉक्स एक ही दिशा में चलने लगें, कुछ स्टॉक अलग दिशा में भी चलने चाहिए। मतलब वह चाहते हैं कि अगर एक स्टॉक गिर रहा है तो कुछ स्टॉक तो ऐसे हों जो कि ना गिर रहे हों। इससे पोर्टफोलियो में संतुलन बना रहता है और रिस्क कम होता है। 

अब एक साधारण पोर्टफोलियो की चर्चा करते हैं- इसमें 2 से ज्यादा स्टॉक होंगे, वास्तव में एक अच्छे पोर्टफोलियो में कम से कम 12 से 15 स्टॉक होंगे। अब ऐसे में कोवैरियंस कैसे निकालेंगे? आपको पोर्टफोलियो के हर एक स्टॉक का बाकी सभी दूसरे स्टॉक के साथ कोवैरियंस निकालना होगा। मैं 4 स्टॉक के पोर्टफोलियो का उदाहरण लेकर इसको दिखाता हूं। मान लीजिए पोर्टफोलियो ऐसा है

  1. ABB
  2. सिप्ला
  3. आइडिया
  4. विप्रो

ऐसी स्थिति में हमें सभी के बीच के कोवैरियंस निकालना होगा

  1. ABB, सिप्ला
  2. ABB, आइडिया
  3. ABB, विप्रो
  4. सिप्ला, आइडिया
  5. सिप्ला, विप्रो
  6. आइडिया, विप्रो

ध्यान दीजिए कि स्टॉक 1 और स्टॉक 2 के बीच में कोवैरियंस वही होगा जो कि स्टॉक 2 और स्टॉक 1 के बीच में है। तो आप देख सकते हैं कि 4 स्टॉक के पोर्टफोलियो में हमें 6 कोवैरियंस निकालने होते हैं। तो सोचिए कि  अगर पोर्टफोलियो में 15 से 20 स्टॉक हों तो कितने ज्यादा कोवैरियंस निकालने होंगे? इसीलिए जब हमारे पोर्टफोलियो में 2 से ज्यादा स्टॉक होते हैं तो कोवैरियंस निकालने के लिए एक टेबल का इस्तेमाल किया जाता है जिसे वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स कहते हैं। मैं इस पर अगले अध्याय में चर्चा करूंगा। 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. स्टॉक का वैरियंस उस स्टॉक के औसत एक्सपेक्टेड रिटर्न से डिस्पर्शन मतलब दूरी को दिखाता है 
  2. वैरियंस अधिक होता है तो रिस्क ज्यादा माना जाता है और कम वैरियंस में रिस्क कम 
  3. वैरियंस का स्क्वायर रूट ही स्टैन्डर्ड डेविएशन होता है 
  4. किन्हीं दो स्टॉक के बीच के रिटर्न का कोवैरियंस ये नापता है कि उनके रिटर्न किस तरीके से चलते हैं 
  5. पॉजिटिव कोवैरियंस दिखाता है कि दोनों स्टॉक के रिटर्न एक साथ चलते हैं और नेगेटिव कोवैरियंस दिखाता है कि एक स्टॉक का रिटर्न ऊपर जाता है तो दूसरे का रिटर्न नीचे आता है 
  6. दोनों स्टॉक के बीच का कोरिलेशन इस बदलाव के आकार यानी ताकत को बताता है 
  7. दो स्टॉक के बीच के कोवैरियंस को उनके अपनेअपने स्टैन्डर्ड डेविएशन से विभाजित करके दोनों स्टॉक के बीच का कोरिलेशन निकाला जा सकता है 
  8. जब पोर्टफोलियो में 2 से ज्यादा स्टॉक होते हैं तब वैरियंस कोवैरियंस मैट्रिक्स का इस्तेमाल किया जाता है

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2.1 – रिस्क को समझने की शुरूआत

जब बाजार में एक ट्रेडर पैसे कमाता है तो दूसरा ट्रेडर पैसे गँवा रहा होता है। इसी को दूसरे तरीके से देखें तो, ट्रेडर्स का एक समूह अगर पैसे बनाता है तो ट्रेडर का एक दूसरा समूह जरूर पैसे गँवाता है। आमतौर पर देखा जाए तो लगातार पैसे कमाने वालों की संख्या कम होती है, उन लोगों के मुकाबले जो लगातार पैसे गँवा रहे होते हैं।

इन दोनों समूहों के बीच में जो अंतर होता है, वो है – रिस्क को ले कर उनकी समझ और उनका मनी मैनेजमेंट।  मार्क डगलस ने अपनी किताब द डिसिप्लिन्ड ट्रेडर (The Disciplined Trader )में कहा है कि सफल ट्रेडिंग के पीछे 80% मनी मैनेजमेंट है और 20% स्ट्रैटेजी होती है। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं। 

मनी मैनेजमेंट और इससे जुड़े हुए दूसरे विषय ज्यादातर रिस्क को पहचानने से ही जुड़े होते हैं। इसीलिए इस जगह रिस्क और इसके अलग-अलग प्रकार को समझना बहुत ही ज्यादा जरूरी हो जाता है। इसके लिए पहले रिस्क को अलगअलग मुख्य हिस्सों में बांटते हैं और फिर उनको समझते हैं। 

आम भाषा में कहें तो शेयर बाजार में रिस्क का मतलब है पैसे गँवाने की संभावना। जब आप बाजार में सौदा करते हैं तो आप एक रिस्क ले रहे होते हैं और हो सकता है कि आपके पैसे डूब जाएं।  उदाहरण के तौर पर जब आप किसी कंपनी का शेयर खरीदते हैं, तो आप चाहें या ना चाहें, आपने रिस्क ले लिया है। मोटे तौर पर देखें तो शेयर बाजार में रिस्क दो प्रकार होते हैं – सिस्टमैटिक रिस्क (Systematic Risk) और अनसिस्टमैटिक रिस्क (Unsystematic Risk) । जब आप कोई स्टॉक खरीदते हैं तो आप इन दोनों तरीके का रिस्क ले रहे होते हैं।

जरा सोचिए, आपके पैसे क्यों डूबते हैं? वो कौन सी चीजें हैं जो शेयर की कीमत को नीचे खींचती हैँ? आप इसके बहुत सारे कारण सोच सकते हैं, लेकिन मैं उनमें से कुछ को नीचे की लिस्ट में डाल रहा हूं – 

  1. बिजनेस का भविष्य खराब होनाDeteriorating business prospects
  2. बिजनेस की कमाई घटनाDeclining business margins
  3. मैनेजमेंट की गलतियांManagement misconduct
  4. कंपीटीशन यानी प्रतियोगिता की वजह से कमाई घटनाCompetition eating margins

यह सब अलग-अलग तरीके से रिस्क को दिखाते हैं। इसी तरीके के कई और रिस्क भी हो सकते हैं। लेकिन अगर आप ध्यान से देखें तो आपको समझ में आएगा कि यह सारे रिस्क एक कंपनी से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप के पास 100,000 की पूंजी है और आपने उसे HCL टेक्नोलॉजी लिमिटेड में लगाने का फैसला किया। कुछ महीने बाद HCL ने कहा कि उनकी आमदनी में कमी हुई है। तय है कि इस वजह से HCL के शेयर कीमतों में गिरावट आएगी और इसका मतलब है कि आपने जो निवेश किया है उसमें से कुछ पैसे आप गँवा देंगे। लेकिन इस खबर की वजह से HCL के कंपीटीशन में चलने वाली कंपनियां (जैसे माइंडट्री या विप्रो) के शेयर कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसी तरीके से अगर HCL का मैनेजमेंट किसी गलत काम में फंसता है तो भी सिर्फ HCL के स्टॉक की कीमत नीचे जाएगी लेकिन उसकी प्रतियोगी कंपनियों के स्टॉक पर कोई असर नहीं पड़ेगा। साफ है कि इस तरह के रिस्क कंपनी से जुड़े हुए होते हैं और उसकी प्रतियोगी कंपनियों पर असर नहीं डालते हैं।

इसको जरा विस्तार से समझते हैं – मुझे नहीं पता कि 7 जनवरी 2009 की सुबह जब सत्यम घोटाला सामने आया तो आप में से कितने लोग बाजार में ट्रेडिंग कर रहे थे, लेकिन मैं उस दिन ट्रेड कर रहा था और मुझे वह दिन अच्छे से याद है। सत्यम कंप्यूटर्स लिमिटेड अपने खातों में गड़बड़ी कर रहा था, आंकड़े बढ़ा चढ़ा कर दिखा रहा था, पैसों की हेरा फेरी कर रहा था और अपने निवेशकों के साथ धोखा कर रहा था। जो आंकड़े दिखाए जाते थे वो असली आंकड़ों से काफी अधिक होते थे, बहुत सारे इन्टर्नल पार्टी ट्रांजैक्शन यानी अंदरूनी सौदे होते थे। इन सबकी वजह से शेयर की कीमत ऊपर दिखाई देती थी। घोटाला तब सामने आया जब कंपनी के चेयरमैन रामालिंगा राजू ने एक पत्र लिखकर निवेशकों, ग्राहकों, कंपनी के कर्मचारियों और एक्सचेंज के सामने इस वित्तीय घोटाले का खुलासा किया। रामलिंगा राजू की इस बात के लिए तो सराहना की जानी चाहिए कि उसने इतना साहस दिखाया और इतने बड़े अपराध का गुनाह कबूल किया जबकि उसे पता था कि गुनाह कबूल करने पर उसके साथ क्या होगा। 

मुझे याद है कि मैंने इसको TV पर देखा तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ उदयन मुखर्जी ने इस पत्र को दर्शकों के सामने लाइव पढ़ा और शेयर की कीमत धड़ाम से नीचे गिरी। मेरे लिए शेयर बाजार में यह सबसे ज्यादा दिल दहलाने वाली घटनाओं में से एक थी। इस वीडियो को देखिए – 

https://youtu.be/K8jUkKmm-cg  

मैं चाहता हूं कि इस वीडियो में आप निम्न चीजों पर ध्यान दें –

  1. शेयर की कीमत गिरने की रफ्तार पर ध्यान दें। (कीमत गिरते हुए शायद 7 या 8 तक पहुंच गई थी) 
  2. नीचे चलने वाले टिकर पर ध्यान दीजिए आपको दिखेगा कि बाकी किसी भी कंपनी के शेयर पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा था। 
  3. ध्यान दीजिए कि दोनों इंडेक्स यानी सेंसेक्स और निफ्टी में भी इतनी गिरावट नहीं आ रही थी जितना सत्यम गिरा था। 

मैं यहां सिर्फ यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि स्टॉक की कीमत में कंपनी के अंदर की वजह से गिरावट आई है। इसमें बाहर की कोई वजह नहीं थी। कहने का मतलब यह है कि शेयर की कीमत में गिरावट सिर्फ कंपनी के अंदर हो रही कुछ घटनाओं की वजह से हुई थी। जब इस तरह की किसी घटना की वजह यानी कंपनी से जुड़ी किसी खास वजह के कारण आप नुकसान उठाते हैं तो इस को अनसिस्टमैटिक रिस्क – unsystematic Risk कहते हैं।

अनसिस्टमैटिक रिस्क से बचने के लिए डायवर्सिफाई (diversify) किया जा सकता है। मतलब एक कंपनी में सारे पैसे लगाने के बजाय आप इसको दो तीन अलग-अलग कंपनियों में या अलग-अलग सेक्टर की कंपनियों में भी लगा सकते हैं। इसे डायवर्सिफिकेशन (Diversification) कहा जाता है। जब आप अपने निवेश को डायवर्सिफाई करते हैं तो अनसिस्टमैटिक रिस्क काफी कम हो जाता है। अगर ऊपर के उदाहरण से देखें तो HCL में सारा पैसा लगाने के बजाय अगर आप आधे हिस्से यानी 50,000 से HCL और बाकी 50,000 कर्नाटक बैंक लिमिटेड में लगाते तो ऐसी स्थिति में अगर HCL के स्टॉक की कीमत गिर भी जाती तो भी आपके सिर्फ आधे निवेश पर ही असर पड़ता और आधा निवेश सुरक्षित रहता क्योंकि वह हिस्सा दूसरी कंपनी में निवेशित है। वास्तव में अगर दो स्टॉक की जगह आप 5 या 10 स्टॉक लें या फिर 20 स्टॉक का पोर्टफोलियो बनाएं तो आपका डायवर्सिफिकेशन ज्यादा अच्छा होगा। आपके पोर्टफोलियो में जितने स्टॉक होंगे उतना ही ज्यादा डायवर्सिफिकेशन होगा और अनसिस्टमैटिक रिस्क उतना ही कम होगा। 

इससे एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठता है – एक अच्छे पोर्टफोलियो में कितने स्टॉक रखने चाहिए जिससे कि अनसिस्टमैटिक रिस्क पूरी तरीके से डायवर्सिफाई हो जाए। रिसर्च से पता चलता है कि अगर आप अपने पोर्टफोलियो 21 स्टॉक तक रखें तो आपके लिए डायवर्सिफिकेशन सबसे अच्छा होता है। अगर आपने 21 स्टॉक से ज्यादा रखे हैं तो उससे डायवर्सिफिकेशन का कोई ज्यादा फायदा नहीं होता। नीचे के ग्राफ से आपसे आपको पता चलेगा कि डायवर्सिफिकेशन किस तरह से काम करता है।

 

जैसा कि आप ग्राफ में देख सकते हैं कि जब आप डायवर्सिफाई करते हैं और ज्यादा स्टॉक जोड़ते हैं तो अनसिस्टमैटिक रिस्क काफी तेजी से कम हो जाता है। लेकिन 20 स्टॉक जोड़ने के बाद अनसिस्टमैटिक रिस्क कम नहीं होता चाहे आप जितना भी डायवर्सिफाई करते रहें। आप ग्राफ में भी देख सकते हैं कि 20 स्टॉक के बाद ग्राफ की लाइन सीधी हो जाती है। लेकिन वास्तव में डायवर्सिफिकेशन के बाद भी एक रिस्क बना रहता है जिसको सिस्टमैटिक रिस्क – Systematic Risk कहते हैं। 

सिस्टमैटिक रिस्क वो है जो बाजार के सभी स्टॉक यानी शेयरों पर असर डालता है। सिस्टमैटिक रिस्क बाजार पर सामूहिक तौर पर असर डालने वाली चीजों से निकलता है जैसे राजनीतिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, भौगोलिक स्थिरता, मौद्रिक स्थिति आदि। कुछ ऐसे सिस्टमैटिक रिस्क जो स्टॉक की कीमतों को नीचे खींच सकते हैं – 

  1. जीडीपी में गिरावट De-growth in GDP
  2. ब्याज दरों में कमी Interest rate tightening
  3. मुद्रास्फीति या महंगाईInflation
  4. फिस्कल डेफिसिट या मौद्रिक घाटाFiscal deficit
  5. भू राजनीतिक रिस्क Geopolitical risk

यह लिस्ट और भी लंबी हो सकती है लेकिन मुझे लगता है कि इससे आपको यह समझ में आ गया होगा कि कौन सी चीजें सिस्टमैटिक रिस्क में आती हैं। सिस्टमैटिक रिस्क सभी स्टॉक पर असर डालता है। अगर आपके पास 20 स्टॉक का एक पोर्टफोलियो है तो GDP में गिरावट इन सभी पर असर डालेगी और सभी स्टॉक की कीमत नीचे जाएंगी। सिस्टमैटिक रिस्क सिस्टम में होता है इसलिए डायवर्सिफिकेशन से उससे नहीं बचा जा सकता है। लेकिन सिस्टमैटिक रिस्क से बचने का एक रास्ता है – हेज (Hedge) करना। हेजिंग (Hedging) का इस्तेमाल करके आप सिस्टमैटिक रिस्क से बच सकते हैं। आप हेजिंग को एक छतरी की तरह मान सकते हैं जिसे आप अपने पास तब रखते हैं जब आसमान में बादल लगे हों और जैसे ही बारिश होने लगे आप अपनी छतरी तान लेते हैं और अपने को भीगने से बचा लेते हैं।

तो जब हम हेजिंग के बारे में बात करते हैं तो याद रखिए कि यह डायवर्सिफिकेशन जैसा नहीं है, इसका असर अलग होता है। कई बार, बाजार में लोग डायवर्सिफिकेशन और हेजिंग को एक ही मान लेते हैं। याद रखिए कि हम अनसिस्टमैटिक रिस्क से बचने के लिए डायवर्सिफिकेशन करते हैं और सिस्टमैटिक रिस्क को कम करने के लिए हेज करते हैं। ध्यान दीजिए कि यहां पर मैं यह कह रहा हूं कि – रिस्क को कम करने के लिए, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि – रिस्क को खत्म करने के लिए। बाजार में जुड़ा हुआ कोई भी निवेश कभी भी पूरी तरीके से सुरक्षित नहीं माना जाना चाहिए। 

2.2 – एक्सपेक्टेड रिटर्न (अनुमानित रिटर्न, यानी ये पता करना कि निवेश से कितनी कमाई होगी) 

हम रिस्क पर और आगे बात करें उसके पहले मैं एक और सिद्धांत आप को समझाना चाहता हूं- इसे एक्सपेक्टेड रिटर्न कहा जाता है। हर व्यक्ति अपने निवेश पर कमाई करना चाहता है। एक्सपेक्टेड रिटर्न वह रिटर्न है जिसकी आप इस निवेश से उम्मीद करते हैं। अगर आपने अपनी इंफोसिस में निवेश किया है और उससे 20% की कमाई की उम्मीद कर रहे हैं तो आपका एक्सपेक्टेड रिटर्न हुआ 20%।

फाइनेंस की दुनिया में एक्सपेक्टेड रिटर्न की एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। हर तरीके की गणना में इस आंकड़े का इस्तेमाल किया जाता है चाहे वह पोर्टफोलियो में सुधार की बात हो या फिर आपके इक्विटी कर्व का एस्टीमेट (अनुमान) हो। अगर आपने एक ऐसा एक्सपेक्टेड रिटर्न चुना है जिसके पूरे होने की संभावना ज्यादा है तो आपके निवेश का मैनेजमेंट आसान हो जाता है। इस विषय पर हम आगे विस्तार से बात करेंगे लेकिन अभी हम बेसिक समझने की कोशिश करते हैं।

ऊपर हमने जो उदाहरण लिया था, उसी के साथ आगे बढ़ते हैं – अगर आपने इंफोसिस में 1 साल के लिए 50,000 का निवेश किया है और आप उम्मीद कर रहे हैं कि आपको 20% का रिटर्न मिलेगा, तो आपका एक्सपेक्टेड रिटर्न हुआ 20%। अगर आपने इंफोसिस में सिर्फ 25000 ही निवेश किए होते और आपको 20% कमाई की उम्मीद होती और बाकी 25000 आपने रिलायंस इंडस्ट्रीज में निवेश किए होते और आपको वहां पर एक्सपेक्टेड रिटर्न 15% होता तो कुल मिलाकर आपका एक्सपेक्टेड रिटर्न कितना हुआ 20% या 15% या कुछ और? 

आपने अनुमान लगा ही लिया होगा कि यहां पर एक्सपेक्टेड रिटर्न ना तो 20% होगा ना ही 15%। क्योंकि हमने दो अलग-अलग स्टॉक में निवेश किया है, इसलिए अब हमारा एक पोर्टफोलियो बन चुका है और इसलिए इस मामले में एक्सपेक्टेड रिटर्न पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न होगा और किसी एक स्टॉक या ऐसेट का नहीं। पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न निकालने के लिए इस फार्मूले का इस्तेमाल किया जाता है 

E(RP) = W1R1 + W2R2 + W3R3 + ———– + WnRn

यहां,

E(RP) = पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न

W = निवेश का वजन (weight)

R = अलग अलग ऐसेट का एक्सपेक्टेड रिटर्न

ऊपर के उदाहरण में हमने दो अलग-अलग स्टॉक में 25000 निवेश किया है इसलिए यहां पर हमारा वजन (weight) दोनों पर 50-50% है। हमारा एक्सपेक्टेड रिटर्न है एक पर 20% और दूसरे पर 15% इसलिए

E(RP) = 50% * 20% + 50% * 15%

= 10% + 7.5%

= 17.5%

हमने यहां इस फॉर्मूले का इस्तेमाल दो स्टॉक के लिए किया है, लेकिन आप इसका इस्तेमाल कितने भी निवेश के लिए कर सकते हैं। अलग-अलग ऐसेट के लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। यह काफी सीधा-साधा है और मुझे उम्मीद है कि इसको समझने में आपको परेशानी नहीं हुई होगी। जो बात आपको याद रखनी चाहिए वह यह है कि एक्सपेक्टेड रिटर्न का मतलब होता है उम्मीद यानी आप इतने रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं लेकिन यह गारंटीड रिटर्न नहीं है मतलब इस रिटर्न की गारंटी नहीं है। 

चूंकि हमने अब एक्सपेक्टेड रिटर्न को समझ लिया है इसलिए अब हम वैरियंस और कोवैरियंस (variance and covariance) जैसे क्वान्टिटेटिव सिद्धांतों (quantitative concepts) को भी देखना शुरू सकते हैं, इन पर हम अगले अध्याय में चर्चा करेंगे 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. जब आप कोई स्टॉक खरीदते हैं तो आप अनसिस्टमैटिक और सिस्टमैटिक रिस्क ले रहे होते हैं 
  2. अनसिस्टमैटिक रिस्क किसी एक कंपनी के स्टॉक से जुड़ा हुआ होता है और यह कंपनी के अंदर होता है 
  3. अनसिस्टमैटिक रिस्क सिर्फ उस कंपनी के स्टॉक पर असर डालता है, उसकी प्रतियोगी कंपनियों पर नहीं 
  4. अनसिस्टमैटिक रिस्क से बचने के लिए आप डायवर्सिफिकेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं 
  5. सिस्टमैटिक रिस्क वह होता है जो सिस्टम में होता है 
  6. सिस्टमैटिक रिस्क सभी स्टॉक पर एक तरह से असर डालता है 
  7. सिस्टमैटिक रिस्क से बचने के लिए आप हेजिंग का इस्तेमाल कर सकते हैं या हेज कर सकते हैं 
  8. कोई भी हेजिंग संपूर्ण नहीं होती। इसका मतलब है कि बाजार में निवेश करते समय किसी न किसी तरीके का रिस्क हमेशा बना रहता है 
  9. एक्सपेक्टेड रिटर्न वह कमाई है जो आप अपने निवेश से उम्मीद कर रहे हैं 
  10. एक्सपेक्टेड रिटर्न किसी तरीके से रिटर्न की गारंटी नहीं है 
  11. पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न निकालने के लिए फार्मूला यह है – E(RP) = W1R1 + W2R2 + W3R3 + ———– + WnRn

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