बाजार और टैक्सेशन – Varsity by Zerodha https://zerodha.com/varsity/module/बाजार-और-टैक्सेशन/ Markets, Trading, and Investing Simplified. Tue, 03 Aug 2021 05:31:44 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.5 ITR फॉर्म (अंतिम हिस्सा) https://zerodha.com/varsity/chapter/itr-%e0%a4%ab%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae-%e0%a4%85%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%ae-%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b8%e0%a4%be/ https://zerodha.com/varsity/chapter/itr-%e0%a4%ab%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae-%e0%a4%85%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%ae-%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b8%e0%a4%be/#comments Wed, 12 Feb 2020 09:53:15 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7075 7.1 – इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फॉर्म  टैक्स से जुड़ा अंतिम कदम है आपका इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना और इसके लिए आपको आइटीआर (ITR) फॉर्म की जरूरत पड़ती है। एक निवेशक या ट्रेडर के तौर पर ITR से जुड़ी जिन महत्वपूर्ण बातों को आपको जानना चाहिए, उनके बारे में हमने नीचे संक्षेप में बताया […]

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7.1 – इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फॉर्म 

टैक्स से जुड़ा अंतिम कदम है आपका इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना और इसके लिए आपको आइटीआर (ITR) फॉर्म की जरूरत पड़ती है। एक निवेशक या ट्रेडर के तौर पर ITR से जुड़ी जिन महत्वपूर्ण बातों को आपको जानना चाहिए, उनके बारे में हमने नीचे संक्षेप में बताया है। 

मैंने जब भी लोगों से बात की है तो मुझे एक बात समझ में आई है कि लोग अक्सर इनकम टैक्स देने और इनकम टैक्स फाइल करने का अंतर नहीं समझ पाते। कई लोगों को ऐसा लगता है कि अगर वो इनकम टैक्स देते हैं तो इनकम टैक्स फाइल करना जरूरी नहीं होता। यह सच नहीं है, मैं समझाता हूं क्यों।

इनकम टैक्स देना – अगर आप नौकरी करते हैं और आपको वेतन मिलता है तो आपको पता है कि आपको नौकरी देने वाला आपकी तरफ से आपका टैक्स (आपके टैक्स स्लैब के हिसाब से) काटता है और इनकम टैक्स अदा भी करता है। आमतौर पर इसे टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (Tax Deducted at Source) यानी TDS – टीडीएस कहते हैं। लेकिन अगर आपके वेतन के अलावा भी आपकी कमाई का कोई स्त्रोत या ज़रिया हो तो?

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि किसी साल वेतन के अलावा आप शेयर में डिलीवरी वाले ट्रेड करके भी कमाई करते हैं। आप जानते हैं कि इस तरह की कमाई गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी मानी जाती है। क्योंकि आपको नौकरी देने वाला आपकी इस कमाई के बारे में नहीं जानता इसलिए यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपनी आमदनी के इस स्त्रोत के बारे में इनकम टैक्स विभाग को बताएं और उस पर सही टैक्स अदा करें। 

इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना – इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना वह जरूरी तरीका है जिसके जरिए आप इनकम टैक्स विभाग को अपने वेतन समेत अपनी आमदनी के सभी स्रोतों के बारे में बताते हैं। इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म यानी ITR एक ऐसा फॉर्म है जिसे भर कर आप अपने आमदनी के सभी स्रोतों को डिक्लेअर करते हैं या बताते हैं। अलग-अलग तरीके के आमदनी के स्त्रोतों के लिए अलग-अलग तरह के ITR फॉर्म होते हैं। आप सोच सकते हैं कि अगर मुझे वेतन के अलावा और कोई आमदनी नहीं होती तो मुझे रिटर्न फाइल करने की क्या जरूरत है। ऐसा करना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि इस तरह से आप आधिकारिक तौर पर इनकम टैक्स विभाग को यह बता रहे होते हैं कि वेतन के अलावा आपके पास आमदनी का कोई दूसरा जरिया नहीं है। 

तो वास्तव में इनकम टैक्स रिटर्न फाइल कर के आप आधिकारिक तौर पर अपनी आमदनी के स्रोतों के बारे में इनकम टैक्स विभाग को सूचित करते हैं साथ ही, यह भी बताते हैं कि आपने इस आमदनी पर टैक्स दिया हुआ है। इसके लिए आपको सही ITR फॉर्म भरना होता है।

औपचारिक तौर पर, ITR फॉर्म एक ऐसा निर्धारित फॉर्म होता है जिसके जरिए कोई व्यक्ति इनकम टैक्स विभाग को किसी वित्त वर्ष में अपनी आमदनी और उस पर दिए गए टैक्स के बारे में सूचना देता है। ITR फॉर्म कई तरह के होते हैं और हर इंसान को आमदनी के स्त्रोतों के हिसाब से सही फॉर्म चुनना होता है। सही ITR फॉर्म आप  https://incometaxindiaefiling.gov.in/ से डाउनलोड कर सकते हैं 

7.2 – अलग-अलग ITR फॉर्म और उनका इस्तेमाल 

इस मॉड्यूल में हम उन लोगों की चर्चा कर रहे हैं जो अपने निवेश के जरिए कैपिटल गेन करते हैं या फिर ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम के तौर पर दिखाते हैं, ऐसे लोगों के लिए कुछ महत्वपूर्ण ITR फॉर्म हैं- 

ITR 1 – जब आपकी आमदनी सिर्फ वेतन, इंटरेस्ट इनकम यानी ब्याज से, एक मकान के किराए से यानी रेंटल इनकम से होती है तो  आप ITR -1 फॉर्म का इस्तेमाल कर के इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं (कुल आमदनी 50 लाख तक) । यह सबसे सीधा और सरल ITR फॉर्म है। लेकिन अगर आपको कैपिटल गेन हो रहा है या आप ट्रेडिंग को बिजनेस दिखा रहे हैं तो आप इस ITR फॉर्म के जरिए रिटर्न नहीं फाइल कर सकते। 

ITR 2 – ऐसे व्यक्ति या हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली (HUF) यानी हिंदू अविभाजित परिवार, जो कि कोई बिजनेस नहीं कर रहे हैं और जिनकी आमदनी वेतन, इंटरेस्ट (ब्याज) इनकम या घर के किराए से होती है या फिर उनको कैपिटल गेन होता है तो वो ITR 2 का इस्तेमाल कर सकते हैं। तो अगर आप ऐसे व्यक्ति हैं जो बाजार में सिर्फ इनवेस्ट करता है (याद रखिए इन्वेस्टर इसको सिर्फ कैपिटल गेन होता है) तो आप ITR 2 का इस्तेमाल कर सकते हैं।

ITR 3 –(सन 2017 से ITR 4 को ITR 3 का नाम दे दिया गया है) – जब आपको वेतन मिलता है ब्याज से आमदनी होती है घर के किराए से आमदनी होती है, कैपिटल गेन से आमदनी होती है और आपको किसी बिजनेस या ऑपरेशन से भी आमदनी होती है तो आप ITR 3 का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

अगर आप ऐसे व्यक्ति हैं जिसने ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम के तौर पर दिखाया है तो आप ITR 3 का इस्तेमाल कर सकते हैं। आप अगर एक इन्वेस्टर और ट्रेडर दोनों हैं तो आप ITR 3 में अपने ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम के तौर पर और इन्वेस्टमेंट को कैपिटल गेन के तौर पर दिखा सकते हैं। 

ITR 4 (पहले ITR 4S) – यह फॉर्म ITR 3 की तरह ही होता है बस इसमें सेक्शन 44 AD सेक्शन 44 AE के तहत बिजनेस इनकम की अनुमानित गणना की जाती है। ITR 4S का इस्तेमाल कैपिटल गेन के लिए नहीं किया जा सकता, अगर आप अपने घाटे को कैरी फॉरवर्ड करना चाहते हैं तो भी इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते। तो आप ITR 4S का इस्तेमाल बिजनेस इनकम (सट्टा या गैर सट्टा) के लिए कर सकते हैं, लेकिन अगर आप इस फॉर्म का इस्तेमाल अपनी टैक्स देनदारी घटाने के लिए कर रहे हैं तो इसके इस्तेमाल से आपको बचना चाहिए।

7.3 – ITR 4 को समझें (2017 तक ITR 4S)

ITR 4 को इस्तेमाल करने का फायदा ये है कि इसका इस्तेमाल ऐसे कर दाता (टैक्स पेयर) कर सकते हैं जिनका का टर्नओवर दो करोड़ से कम हो और जो कि अपने अकाउंट या बही खाता नहीं रखते या जो नहीं चाहते कि उनके बही खातों का ऑडिट हो । 

आप अपना बही खाता रखने या उसका ऑडिट कराने से बच सकते हैं अगर आपने सेक्शन 44AD के आधार पर अपने टर्नओवर की गणना पहले से ही कर ली है और अपने अनुमानित टर्नओवर के 6% को अपना मुनाफा घोषित कर दिया हो। इसके बाद आपको अपनी बाकी की आमदनी में अपने टर्नओवर के 6% को अपनी ट्रेडिंग की आमदनी के तौर पर और जोड़ना है और फिर उस रकम पर अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होता है। 

तो, अगर आप ऐसे ट्रेडर हैं जिसका साल का टर्नओवर दो करोड़ से कम (FY 15/16 तक ये सीमा 1 करोड़ थी) है और मुनाफा भी टर्नओवर के 6% से कम है और जिसकी सिर्फ बिजनेस इनकम है (कैपिटल गेन वालों के लिए यह संभव नहीं है) तो आप अपनी अनुमानित आमदनी टर्नओवर का 6% बता सकते हैं और खाते रखने और खातों का ऑडिट कराने से बच सकते हैं। आपको एडवांस टैक्स देने की भी जरूरत नहीं है लेकिन अगर आप ITR 4 (पहले ITR 4S) का इस्तेमाल करते हैं तो अपने बिजनेस खर्चों को डिडक्ट करने की सुविधा नहीं मिलती।

उदाहरण के लिए मान लीजिए कि पिछले वित्त वर्ष के लिए मेरा वेतन ₹500,000 है और मैंने F&O में 400,000 के टर्नओवर पर 25,000 का नुकसान किया है, क्योंकि मेरा मुनाफा टर्नओवर के 6% से कम (25,000/ 400,000) है इसलिए मुझे ITR 4 का इस्तेमाल करना होगा, अपने बही खाते बनाने होंगे और उनका ऑडिट कराना होगा। इसके बदले अगर मैं ITR 4S का इस्तेमाल कर सकता हूं और 400,00 के टर्नओवर के 6% यानी 24,000 को अपनी आमदनी दिखा सकता हूं, भले ही मुझे ट्रेडिंग में नुकसान हुआ है। 

ध्यान दें कि असेसमेंट ईयर 2017-18 या वित्त वर्ष 201617 से इस प्रतिशत को 8 से घटाकर 6% किया गया है 

साल की मेरी कुल आमदनी ₹500000 (वेतन से) + ₹24000 (बिजनेस इनकम) = ₹524000  इसलिए मेरी टैक्स देनदारी होगी 

  • 0 – 250000 – कोई टैक्स नहीं
  • 250,000 से 500,000 – 5% टैक्स यानी 12,500 
  • 500000 – 524,000 – 20% टैक्स यानी 4800 
  • इस तरह कुल टैक्स : ₹12500+ ₹4800 = 17,300 

इस तरह से अपनी अनुमानित बिजनेस आमदनी 24000 दिखाकर मैं सिर्फ ₹4800 का अतिरिक्त टैक्स दे रहा हूं। यह उस से रकम से कम है अगर मैं चार्टर्ड अकाउंटेंट से अपने खाते बनवाता और अपने खातों का ऑडिट कराता और इसके लिए उसको ₹15000 देता। तो इसलिए ITR 4 का इस्तेमाल तभी फायदेमंद होता है जब आप का टर्नओवर कम हो, तब टर्नओवर के 6% को अपनी आमदनी दिखाना एक चार्टर्ड अकाउंटेंट को ऑडिट की फीस देने के मुकाबले ज्यादा सस्ता पड़ता है। 

7.4 – कुछ जरूरी सवाल और उनके जवाब

आय का रिटर्न इलेक्ट्रॉनिक तौर पर कैसे फाइल करें?

इनकम टैक्स विभाग ने रिटर्न ई फाइल करने के लिए अलग से एक वेबसाइट बनायी है। आप रिटर्न ई फाइल करने के लिए  www.incometaxindiaefiling.gov.in पर लॉग इन कर सकते हैं। ई फाइलिंग पर आप इनकम टैक्स विभाग का ये वीडियो भी देख सकते हैं।

क्या इनकम के रिटर्न के साथ दूसरे दस्तावेज लगाना जरूरी है?

ITR रिटर्न फॉर्म मैं किसी तरीके का अटैचमेंट नहीं लगाना होता है। चाहे आप इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ITR फइल कर रहे हों या फिजिकल तरीके से, ITR के साथ किसी भी तरीके का डॉक्यूमेंट (निवेश के सबूत,TDS सर्टिफिकेट आदि) लगाने की जरूरत नहीं होती है। लेकिन आपको यह सारे डॉक्यूमेंट अपने पास रखने होते हैं और जब भी टैक्स अधिकारी मांगे तो आपको इन्हें दिखाना पड़ता है। ऐसा तब होता है जब आप असेसमेंट, इंक्वायरी या स्क्रूटनी के तहत बुलाए जाते हैं। 

लेकिन अगर आपका ऑडिट वाला केस है तो कुछ दस्तावेज़ देने पड़ते हैं। ऑडिट वाले मामलों में आपको बैलेंस शीट, P&L  और दूसरे दस्तावेजों की सॉफ्ट कॉपी और ऑडिट रिपोर्ट भी साथ लगानी होती है।

पेमेंट और ई-फाइलिंग के बीच में क्या अंतर होता है?

ई-पेमेंट का मतलब होता है कि आप अपने टैक्स का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक तरीके से कर रहे हैं (नेट बैंकिंग या SBI क्रेडिट या डेबिट कार्ड के जरिए) 

ई-फाइलिंग का मतलब यह होता है कि आप अपने इनकम के रिटर्न को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से फाइल कर रहे हैं। 

ई-पेमेंट और ई-फाइलिंग सुविधाओं का इस्तेमाल करके आप आसानी से और जल्दी से अपना टैक्स भर सकते हैं या टैक्स रिटर्न फाइल कर सकते हैं। 

अगर मुझे कोई पॉजिटिव आमदनी नहीं हुई है या सिर्फ नुकसान हुआ हो, तो क्या मुझे रिटर्न फाइल करना जरूरी है?

अगर वित्त वर्ष के दौरान आपको नुकसान हुआ है और जिसे आप अगले सालों में कैरी फारवर्ड करना चाहते हैं ताकि बाद में अपनी आमदनी के सामने के सामने उसे दिखा कर अपने टैक्स कम कर सकें तो आपको अपने रिटर्न को समय पर फाइल करना चाहिए। जिससे आप अपने नुकसान को क्लेम कर सकें और ये काम आपको ड्यू डेट (निर्धारित तिथि) से पहले करना होता है।

रिटर्न फाइल करने की अंतिम तारीख यानी ड्यू डेट क्या है?

अगर ऑडिट नहीं है तो जुलाई 31 और 

अगर ऑडिट है तो सितंबर 30 

ITR 3 (2017 तक ITR 4) में नेचर ऑफ बिजनेस के सामने क्या लिखना होता है? 

ट्रेडिंग या अन्य (कोड 0204) को नेचर ऑफ बिजनेस बताया जा सकता है। 

वित्त वर्ष 2017-18 के लिए, कोड 13010 वाला फाइनेंसियल इंटरमीडिएशन या इन्वेस्टमेंट एक्टिविटी ही ट्रेडिंग जैसी गतिविधियों के सबसे करीब है। 

अगर मैंने ड्यू डेट के अंदर अपना रिटर्न नहीं फाइल किया तो क्या मुझे पेनाल्टी या फाइन देना पड़ेगा? 

हां, अगर आपने ड्यू डेट के पहले रिटर्न नहीं भरा तो आपको अपने टैक्स रकम पर ब्याज (इंटरेस्ट) देना पड़ेगा। अगर आपने अब एसेसमेंट साल के अंत होने के पहले रिटर्न नहीं फाइल किया तो इंटरेस्ट के साथ-साथ आपको सेक्शन 271 के तहत ₹5000 की पेनाल्टी या दंड का भुगतान भी करना पड़ेगा। 

बैलेंस शीट पर प्रॉफिट और लॉस यानी नफानुकसान कैसे दिखाते हैं?

अपने पॉजिटिव टर्नओवर यानी मुनाफे को ग्रॉस रिसीट (gross receipt) के तौर पर दिखा सकते हैं और नेगेटिव टर्नओवर यानी घाटे को ग्रॉस सेल (gross sale) के तौर पर दिखा सकते हैं।

क्या ड्यू डेट के बाद भी रिटर्न फाइल किया जा सकता है?

जी हां आप ऐसा कर सकते हैं। ड्यू डेट के बाद फाइल किए गए रिटर्न को बिलेटेड रिटर्न (Belated Return) कहते हैं। अगर कोई व्यक्ति निर्धारित तारीख तक अपनी इनकम का यानी अपनी आमदनी का रिटर्न नहीं फाइल कर पाता है तो वह बिलेटेड रिटर्न फाइल कर सकता है। बिलेटेड रिटर्न को 1 साल के अंदर या फिर असेसमेंट में से जो भी पहले हो, उसके पहले फाइल करना होता है। जैसा कि पहले बताया गया है कि बिलेटेड रिटर्न फइल करने पर इंटरेस्ट और पेनाल्टी दोनों भरना पड़ता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर आप वित्त वर्ष 2013-14 में की गयी आमदनी का रिटर्न फाइल करना चाहते हैं तो आपको यह काम 31 मार्च 2016 से पहले करना होगा, लेकिन 31 मार्च 2016 के पहले भी रिटर्न फाइल करने पर आपको सेक्शन 271 के तहत पेनल्टी देनी पड़ सकती है।

अगर मैंने अपने ओरिजिनल रिटर्न में कोई गलती कर दी है तो क्या मैं दोबारा गलती सुधार कर रिटर्न फाइल कर सकता हूं?

हां आप ऐसा कर सकते हैं, अगर आपने अपना पहला रिटर्न ड्यू डेट के पहले या निर्धारित समय के पहले भरा है और इनकम टैक्स विभाग ने उसका एसेसमेंट (assessment) नहीं किया है तो आप ऐसा कर सकते हैं। ये माना जाता है कि ओरिजिनल यानी वास्तविक रिटर्न में गलती हुई है और यह गलती जानबूझकर नहीं की गई है, या पहले जान-बूझकर की गई किसी गलती को सुधारा नहीं जा रहा है। लेकिन बिलेटेड रिटर्न में, जो रिटर्न ड्यू डेट के बाद फाइल किया जाता है, उसमें सुधार नहीं किया जा सकता। 

रिटर्न में सुधार एसेसमेंट (assessment) वर्ष खत्म होने के 1 साल के अंदर या विभाग की तरफ से एसेसमेंट (assessment) पूरा होने के पहले ही किया जा सकता है, 

उदाहरण के तौर पर अगर वित्त वर्ष 2013 14 की आमदनी का रिटर्न (बिना ऑडिट वाले मामले) है तो उसको फाइल करने की निर्धारित तारीख 31 जुलाई 2014 है। अगर यह रिटर्न 31 जुलाई 2014 से पहले फाइल किया गया है और तो इस रिटर्न में सुधार 31 मार्च 2016 तक किया जा सकता है (अगर तब तक विभाग ने असेसमेंट पूरा नहीं किया है) लेकिन 31 जुलाई 2014 के बाद फाइल किया गया रिटर्न यानी कि बिलेटेड रिटर्न में कोई सुधार नहीं किया जा सकता। 

वास्तव में ITR फॉर्म एक तरीके का माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल शीट होता है, जहां पर आप जरूरी जानकारी भरते हैं और उसके हिसाब से गणना अपने आप हो जाती है।

यहां पर हमने ITR -4 फॉर्म को अटैच किया है, जिसमें हर तरीके की आमदनी यानी वेतन, कैपिटल गेन, ट्रेडिंग, रेंटल यानी किराए की आमदनी की जानकारी है। अगर आप अपना रिटर्न खुद से फाइल करना चाहते हैं तो आप इस फॉर्म को देखकर सीख सकते हैं और उसी आधार पर अपना रिटर्न फाइल कर सकते हैं। यह फॉर्म वित्त वर्ष 1314 यानी एसेसमेंट ईयर 14-15 का फॉर्म है।

http://zerodha.com/varsity/wp-content/uploads/2015/06/M7C6_Excel1.xlsx

http://zerodha.com/varsity/wp-content/uploads/2015/07/2016_ITR4_PR2.xls

http://zerodha.com/varsity/wp-content/uploads/2015/07/Computation.xlsx

https://tradingqna.com/t/sample-itr3-forms-for-fy18-19/59689

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. अपने टैक्स का भुगतान करना टैक्स पेमेंट कहलाता है, जिसको आप e-payment के जरिए कर सकते हैं। 
  2. अपनी अलग-अलग तरीके की आमदनी के बारे में इनकम टैक्स विभाग को जानकारी देना और उस पर अदा किए गए टैक्स की जानकारी देने को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना कहा जाता है। 
  3. इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना जरूरी होता है भले ही आपने अपना टैक्स पहले ही दे दिया हो।  
  4. इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए एक ITR फॉर्म का इस्तेमाल करना होता है। 
  5. अलग-अलग तरीके की आमदनी के लिए अलग अलग तरीके के ITR होते हैं।
  6. अनुमानित बिजनेस आमदनी के लिए ITR 4S का इस्तेमाल होता है। इसका इस्तेमाल करके आप अपने खर्चे कम कर सकते हैं (टैक्स Vs ऑडिट की फीस)।

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बाज़ार की गतिविधियों का वर्गीकरण https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%97%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a7%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b5/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%97%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%a7%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b5/#comments Wed, 12 Feb 2020 09:52:42 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7052 3.1 आप निवेशक हैं या ट्रेडर या दोनों? अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए सबसे पहले आपको ये बताना होता है कि आप एक ट्रेडर हैं या इंवेस्टर यानी निवेशक। इनकम टैक्स विभाग ने इस मामले में एक सर्कुलर निकाला है जिससे आपके लिए ये तय करना थोड़ा आसान हो जाए।  इस सर्कुलर […]

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3.1 आप निवेशक हैं या ट्रेडर या दोनों?

अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए सबसे पहले आपको ये बताना होता है कि आप एक ट्रेडर हैं या इंवेस्टर यानी निवेशक। इनकम टैक्स विभाग ने इस मामले में एक सर्कुलर निकाला है जिससे आपके लिए ये तय करना थोड़ा आसान हो जाए। 

इस सर्कुलर के मुताबिक एक व्यक्ति ये तय कर सकता है कि वो शेयरों में अपने निवेश से होने वाली आमदनी को कैपिटल गेन्स के तौर पर दिखाना चाहता है या फिर उसे एक बिजनेस इनकम (ट्रेडिंग) के तौर पर। वो जो भी फैसला करेगा, आने वाले सालों में उसे इस आमदनी को उसी तौर पर दिखाना होगा, भले ही उस स्टॉक का होल्डिंग पीरियड कुछ भी हो।   

तो इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के पहले आपको बताना होगा कि आप निवेशक हैं, ट्रेडर हैं या दोनों हैं। इस अध्याय में हम आपकी इसी काम में मदद करने की कोशिश करेंगे और ये भी ध्यान रखेंगे कि आपको ये बात इस नज़रिए से बताई जाए, जिस नज़रिए से आपका AO यानी असेसिंग ऑफिसर आपकी आमदनी को देखेगा। यहां आमदनी का मतलब मुनाफा और नुकसान दोनों से है। 

जब आप निवेश या ट्रेडिंग करते हैं तो आपको अपनी आमदनी को निम्न में से किसी एक शीर्षक के तहत रखना पड़ता है। 

  1. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (Long Term Capital Gain- LTCG)
  2. शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (Short Term Capital Gain- STCG)
  3. सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी (Speculative Business Income)
  4. गैर सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी (Non Speculative Business Income)

आइए इनको एक- एक करके समझते हैं। 

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (Long Term Capital Gain- LTCG)

मान लीजिए आपने आज 50,000 रुपये के शेयर या म्युचुअल फंड खरीदे और उनको 365 दिनों बाद 55,000 रुपये पर बेच दिया। आपका ये 5000 रुपये का मुनाफा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा। आमतौर पर स्टॉक या इक्विटी म्युचुअल फंड में निवेश के एक साल बाद बेच कर कमाया गया मुनाफा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के तहत आता है। भारत में अभी वो हर आमदनी जिसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के तहत दिखाया गया है (इक्विटी और इक्विटी म्युचुअल फंड से जुड़ी) पर 1 लाख तक का कोई टैक्स नहीं लगता और इस आमदनी के 1 लाख रुपये से ऊपर होने तक 10% का LTCG देना पड़ता है (FY2018-19 से )। यहां ध्यान रखें कि शेयर की खरीद और बिक्री एक मान्यता प्राप्त एक्सचेंज के ज़रिए होनी चाहिए। 

FY2017-18 तक – अगर आपने 10 साल पहले इंफोसिस के 1 लाख रुपये के शेयर खरीदे थे और आज उनको 1 करोड़ में बेचा तो आपको अपने 99 लाख रुपये के मुनाफे पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता। यानी 99 लाख रुपये की कमाई को टैक्स छूट मिलता। 

लेकिन अब 1 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई होने पर 10% का टैक्स देना पड़ेगा। ये सुनिश्चित करने के लिए कि ये टैक्स सिर्फ उस दिन के बाद लगे जब से ये नियम लागू हुआ है, एक ग्रैंडफादर क्लॉज लाया गया – 1 फरवरी के पहले किसी व्यक्ति के पास जितने शेयर थे, उसका कैपिटल गेन निकालने के लिए, उस शेयर की वास्तविक खरीद कीमत या 31 जनवरी को उस शेयर की अधिकतम कीमत में से जो भी ज्यादा होगा उसे लिया जाएगा। 

यदि ये निवेश या उसकी बिक्री ऑफ मार्केट सौदे में की गई है तो 

  1. गैर लिस्टेड स्टॉक – LTCG 20% लगेगा (उदाहरण के लिए स्टार्टअप कंपनी में वेंचर कैपिटलिस्ट द्वारा खरीदे गए शेयर)
  2. लिस्टेड स्टॉक- पहले 1 लाख रुपये तक कोई टैक्स नहीं। 1 लाख के बाद 10% का LTCG

शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (Short Term Capital Gain- STCG)

मान लीजिए कि आपने कोई लिस्टेड स्टॉक या इक्विटी म्युचुअल फंड आज 50,000 रुपये में खरीदा है और उस अगले 12 महीने के अंदर 55,000 रुपये पर बेच दिया है तो 5000 रुपये की इस कमाई पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा। 

आमतौर पर स्टॉक और इक्विटी म्युचुअल फंड में किया गया वो निवेश जो कि एक दिन से ज्यादा रखा गया हो (डिलीवरी वाले स्टॉक) और 12 महीने के अंदर उन्हे बेच दिया गया हो, उसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाता है।

अभी भारत में शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन 15% है जो कि उस आमदनी पर लगता है जो शेयर या इक्विटी म्युचुअल फंड की बिक्री से होती है। 

इसलिए अगर आप आज 1 लाख रुपये के इंफोसिस के शेयर खरीदें और उसे 10 दिन बाद 1 लाख 20 हजार पर बेच दें तो आपको उस 20,000 पर 15% STCG यानी 3,000 रुपये का टैक्स देना होगा। 

सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी (Speculative Business Income)

इनकम टैक्स एक्ट 1961की धारा 43 (5) के अनुसार इक्विटी या स्टॉक में इंट्राडे या नॉन (गैर) डिलीवरी ट्रेडिंग से होने वाली आमदनी को सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी माना जाता है। मुद्रा बाज़ार में होने वाली ट्रेडिंग को भी सट्टा व्यवसाय ही माना जाता है  क्योंकि वहां STT नहीं होता (यदि आप हेजिंग के लिए करेंसी में डेरिवेटिव ट्रेड कर रहे हैं, तब ऐसा नहीं होता)। 

कैपिटल गेन्स की तरह यहां पर बिजनेस या व्यवसाय आमदनी के लिए टैक्स की फिक्स यानी तय दर नहीं होती। ये बिजनेस इनकम आपकी दूसरी आमदनी में जुड़ती है और आप इनकम टैक्स के जिस  स्लैब में आते हैं, उस हिसाब से इस आमदनी पर टैक्स लगता है। 

उदाहरण के लिए, मान लीजिए किसी वित्त वर्ष में इंट्राडे ट्रेडिंग से मेरी आमदनी 1 लाख रुपये की है और मेरी तनख्वाह 4 लाख रुपये है तो मेरी कुल आमदनी हुई 5 लाख रुपये और मुझे अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से 25,000 रुपये का टैक्स देना होगा जैसा नीचे के टेबल में दिखाया गया है।   

क्रमांक स्लैब टैक्स योग्य रकम कर दर कर की रकम
1 0-2,50,000 2,50,000 0% शून्य
2 2,50,000-5,00,000 2,50,000 5% 12500
    कुल टैक्स                                                                                                    12,500

तो मुद्दे की बात यहां ये है कि आपको अपने सट्टा व्यवसाय की आमदनी को दूसरे स्त्रोतों से होने वाली आमदनी में जोड़ना होता है और अपने लिए टैक्स की रकम निकालनी होती है और अपने टैक्स स्लैब के आधार पर टैक्स देना होता है। 

गैर सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी (Non Speculative Business Income)

अगर आप किसी मान्यता प्राप्त एक्सचेंज में फ्यूचर और ऑप्शन का ट्रेड करते हैं (इक्विटी और कमॉडिटी में) तो उससे होने वाली कमाई को इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 43 (5) के तहत गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी माना जाता है। 

जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि व्यवसाय से होनेवाली आमदनी पर तय दर से टैक्स नहीं लगता, इसे आपको अपनी बाकी सारी आमदनी में जोड़ना होता है और उसके बाद अपने स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होता है। 

उदाहरण के तौर पर, होटल व्यापार से जुड़ा एक व्यवसायी जो कि ट्रेडिंग भी करता है, F&O ट्रेडिंग से 5 लाख रुपये कमाता है, जबकि होटल व्यवसाय से उसे 20 लाख की कमाई होती है। इस तरह से उसकी कुल आमदनी हो जाती है 25 लाख रुपये, और उसका टैक्स बनता है….

क्रमांक स्लैब टैक्स योग्य रकम कर दर कर की रकम
1 0-2,50,000 2,50,000 0 शून्य
2 2,50,000-5,00,000 2,50,000 5% 12500
3 5,00,000-10,00,000 5,00,000 20% 1,00,000
4 10,00,000-25,00,000 15,00,000 30% 4,50,00
कुल टैक्स                                                     5,62,000 रुपये

आप देख सकते हैं कि ये व्यवसायी अपने F&O से होने वाले मुनाफे पर 30% का टैक्स दे रहा है। 

आपके दिमाग में ये सवाल उठ सकता है कि इक्विटी में इंट्राडे ट्रेडिंग को सट्टा क्यों माना जाता है और F&O को गैर सट्टा क्यों माना जाता है। 

जब आप इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं तो आपका इरादा डिलीवरी लेने का नहीं होता, इसलिए इसे सट्टा माना जाता है। F&O को सरकार ने गैर सट्टा माना है, शायद इसलिए क्योंकि इसका इस्तेमाल हेजिंग के लिए हो सकता है और साथ ही अंडरलाइंग कॉन्ट्रैक्ट की डिलीवरी लेने या देने के लिए हो सकता है (वैसे भारत में अभी इक्विटी और करेंसी डेरिवेटिव का सेटलमेंट कैश में होता है लेकिन डेरिवेटिव की परिभाषा के आधार पर इसे डिलीवरी लेने और देने का जरिया माना जाता है। भारत में सोने जैसी कुछ कमोडिटी के F&O कॉन्ट्रैक्ट में डिलीवरी का ऑप्शन होता है)

 3.2 ट्रेडिंग की आमदनी को बिजनेस आमदनी बताने के फायदे और नुकसान 

पहले ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम बताने के फायदों पर नज़र डाल लेते हैं। 

  1. कम टैक्स– अगर कुल आमदनी (ट्रेडिंग और अन्य स्त्रोत) 2,50,000 से कम है तब कोई टैक्स नहीं देना पड़ता और अगर ये आमदनी 5,00,000 से कम है तो आपको सिर्फ 5% का इनकम टैक्स देना पड़ता है। 
  2. खर्चों का क्लेम– आप अपने ट्रेडिंग बिजनेस के सभी खर्चों को दिखा कर उस पर मिलने वाले छूट का फायदा ले सकते हैं (जबकि कैपिटल गेन में आपको सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट नोट में लगने वाले चार्ज और STT का क्लेम कर सकते हैं)। उदाहरण के लिए, ब्रोकरेज, STT, ट्रेडिंग के वक्त लगने वाले दूसरे टैक्स, इंटरनेट, फोन, न्यूज़पेपर, कंप्यूटर और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक के डेप्रिसिएशन, रिसर्च रिपोर्ट, किताबें और बिजनेस से जुड़ी सलाह आदि। 
  3. अपने नुकसान को फायदे के साथ ऑफसेट कर सकते हैं– अगर आपको F&O ट्रेडिंग में यानी गैर सट्टा में नुकसान होता है, तो आप इसे तनख्वाह के अलावा किसी दूसरी आमदनी से ऑफसेट कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर मुझे F&O ट्रेडिंग में 5 लाख रुपये का नुकसान होता है और मेरी दूसरी आमदनी (जैसे किराया, ब्याज, वेतन के अलावा कुछ भी) 10 लाख रुपये है तो मुझे सिर्फ 5 लाख रुपये पर ही टैक्स देना होगा। 
  4. F&O नुकसान को कैरी फॉरवर्ड करना – अगर किसी साल में आपको नुकसान होता है (F&O के गैर सट्टा कारोबार+वेतन के अलावा कोई और आमदनी) और इनकम टैक्स रिटर्न निर्धारित तारीख के पहले फाइल कर दिया जाता है तो आप इस नुकसान को अगले 8 साल तक कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं। अगले 8 सालों में व्यवसाय से होने वाले किसी फायदे (गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी) से इस नुकसान को ऑफसेट कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर F&O ट्रेडिंग से आपको 5 लाख का कुल नुकसान हुआ और आपने सही समय पर रिटर्न फाइल करके इसे डिक्लेयर कर दिया और मान लीजिए अगले साल आपको 20 लाख रुपये का फायदा हुआ तो उस साल आप पिछले साल के 5 लाख के नुकसान को इसके सामने ऑफसेट कर सकते हैं और तब आपको सिर्फ 15 लाख पर ही टैक्स देना होगा। 
  5. इंट्राडे इक्विटी के नुकसान को कैरी फॉरवर्ड करना – इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग यानी सट्टे से जुड़े किसी भी नुकसान को सिर्फ सट्टा व्यवसाय से होने वाले फायदे के साथ ही ऑफसेट किया जा सकता है (आप इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग से होने वाले नुकसान को F&O ट्रेडिंग से होनेवाले फायदे के साथ ऑफसेट नहीं कर सकते क्योंकि एक सट्टा व्यवसाय आमदनी है और दूसरी गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी)। सट्टा व्यवसाय से होने वाले नुकसान को 4 साल तक कैरी फॉरवर्ड किया जा सकता है। इसके लिए आपको सिर्फ सही समय पर रिटर्न फाइल करना होता है। मान लीजिए कि एक इक्विटी ट्रेडर इस साल 1 लाख रुपये का नुकसान करता है। वो इसे किसी और दूसरी व्यवसायिक आमदनी से ऑफसेट नहीं कर सकता, लेकिन वो इसे अगले साल या 4 साल तक कैरी फॉरवर्ड कर सकता है। मान लीजिए अगले साल वो इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग से 50,000 रुपये का मुनाफा कमाता है तो वो इसको पिछले साल के 1 लाख रुपये के नुकसान से ऑफसेट कर सकता है और बाकी बचे 50,000 के नुकसान को अगले 3 साल के लिए अभी भी कैरी फॉरवर्ड कर सकता है। ध्यान दीजिए कि नुकसान का एक हिस्सा भी ऑफसेट करना भी संभव है। नीचे की टेबल में इन बिंदुओं को संक्षेप में दिखाया गया है। 
जिस कमाई में घाटा हुआ है क्या घाटा उसी साल सेट-ऑफ हो सकता है   क्या घाटा कैरी फॉरवर्ड हो सकता है और आने वाले साल में सेट-ऑफ हो सकता है कैरी फॉरवर्ड और नुकसान सेट-ऑफ करने की समय-सीमा
उसी हेड/वर्ग के तहत दूसरे हेड/वर्ग के तहत उसी हेड/वर्ग के तहत दूसरे हेड/वर्ग के तहत
हाँ हाँ हाँ  नहीं  8 साल
सट्टा व्यवसाय हाँ नहीं हाँ नहीं  4 साल
कैपिटल गेन (शॉर्ट टर्म) हाँ नहीं हाँ नहीं 8 साल

अब शेयर ट्रेडिंग से होने वाली आमदनी को बिजनेस आमदनी दिखलाने से होने वाले नुकसान पर भी नज़र डाल लेते हैं। 

  1. टैक्स की संभावित ऊंची दरें- अगर आप 30% के टैक्स स्लैब में हैं, तो आपको शेयर ट्रेडिंग से होने वाले हर मुनाफे पर 30% तक टैक्स देना पड़ सकता है। 
  2. ITR फॉर्म- इस आमदनी को बिजनेस आमदनी दिखाने पर आपको ITR 3 (2016 तक ITR 4) या ITR 4 (2016 तक ITR 4S) का इस्तेमाल करना पड़ेगा जिसके लिए आपको चार्टर्ड अकाउंटेंट की मदद लेनी पड़ सकती है। उन लोगों के लिए जो वेतन पाते हैं और अभी तक आसानी से ITR 1  या ITR 2 का इस्तेमाल करते हैं उनके लिए ये थोड़ी ज्यादा मेहनत और ज्यादा महंगा काम हो सकता है। 
  3. ऑडिट – इसके लिए आपको अपने अकाउंट को हमेशा तैयार रखना पड़ेगा और अगर आपका टर्नओवर 5 करोड़ के ऊपर जाता है (FY 19-20 तक 2 करोड़) या आपका मुनाफा आपके टर्नओवर का 6 परसेंट से कम हो तो आपके खातों का ऑडिट हो सकता है।  

3.3 आप कौन हैं? ट्रेडर, निवेशक या दोनों?

CBDT के अनुसार

निवेशक: जो भी व्यक्ति डिविडेंड कमाने की नीयत से निवेश करता है, वो निवेशक है।

ट्रेडर: जो भी व्यक्ति इस नीयत से खरीद-बिक्री करता है कि दाम बढ़े तो मुनाफा कमाया जाए, वो ट्रेडर है। 

निवेशक के तौर पर इक्विटी से हुए सारे मुनाफे (डिलीवरी वाले) को कैपिटल गेन्स के तौर पर दिखा सकते हैं। लेकिन एक ट्रेडर के लिए ये बिजनेस इनकम यानी कारोबार से हुई आमदनी होगी, जिसके अपने फायदे-नुकसान हैं, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं। 

F&O ट्रेडिंग, और इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग को लेकर नियम बहुत साफ है। F&O ट्रेडिंग को गैर सट्टा व्यवसाय माना जाएगा और इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग को सट्टा व्यवसाय माना जाएगा। तो अगर आप इनमें ट्रेड करते हैं तो आपको आई-टी रिटर्न फाइल करने के लिए ITR 3 फॉर्म इस्तेमाल करना होगा। तो भले ही आप नौकरी कर रहे हो और आपको हर महीने सैलरी आती हो, F&O और इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग से होने वाली आमदनी (कमाई या नुकसान) को डिक्लेयर करने के लिए ITR 3 का इस्तेमाल करना होगा। 

बहुत से लोग ये जानते नहीं हैं लेकिन हम आपको बता दें कि जो नुकसान आपको होता है, उसे भी डिक्लेयर करना होता है। एक्सचेंज पर हुए किसी भी ट्रेडिंग गतिविधि को IT विभाग से छिपाना मतलब मुसीबत बुलाना, खासकर तब जब IT जांच होती है। ( जब IT असेसिंग ऑफिसर आपसे मिलकर आपके IT रिटर्न पर स्पष्टीकरण मांगता है, तो उसे IT जांच [IT Scrutiny] कहते हैं।) इस तरह के जांच के आदेश आने की संभावना तब बढ़ जाती है जब IT विभाग का सिस्टम आपके PAN के आधार पर ट्रेडिंग गतिविधि को पकड़ लेता है लेकिन वो आपके ITR में दिखाई नहीं गई हो।

डिलीवरी वाले इक्विटी निवेश में, अगर आप स्टॉक को 1 साल से ज्यादा वक्त के लिए होल्ड करते हैं, तो आपको किसी न किसी तरह का डिविडेंड मिला होगा और अगर नहीं भी मिला तो आप इन सबको निवेश के तौर पर दिखा सकते हैं और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के तहत छूट क्लेम कर सकते हैं। अगर आप कम वक्त में बार-बार, लगातार स्टॉक की खरीद-बेच रहे हैं, तो बेहतर होगा कि इसे STCG के बजाए गैर सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी के तौर पर दिखाया जाए। 

एक बात आपको यहां ध्यान में रखनी है। अगर बाज़ार में निवेश/ट्रेडिंग ही आपकी कमाई का इकलौता ज़रिया है तो ऐसे में भले ही आपकी ट्रेडिंग गतिविधि ना कम ना ज्यादा हो, बेहतर होगा कि इक्विटी ट्रेडिंग से हुए सभी आय को बिजनेस इनकम के तौर पर बताया जाए। वहीं, अगर आप नौकरीपेशा हैं, या कोई और कारोबार आपकी आय का प्रमुख स्त्रोत है तो ऐसे में इक्विटी ट्रेडिंग से हुई कमाई को कैपिटल गेन्स के तौर पर दिखाना ज्यादा आसान होगा, भले ही आप थोड़ा ज्यादा और जल्दी-जल्दी ट्रेड कर रहे हों। 

अच्छी बात ये हुई कि सर्कुलर में ये साफ कर दिया गया कि आप एक ही वक्त में ट्रेडर और निवेशक दोनों हो सकते हैं। तो आपके पास ऐसे स्टॉक भी हो सकते हैं जो लंबे वक्त के निवेश के लिए हो और कुछ शेयर शॉर्ट टर्म में ट्रेड के लिए भी हो सकते हैं। सिर्फ इसलिए कि आप शॉर्ट टर्म ट्रेड बहुत करते हैं, ये कतई ज़रूरी नहीं है आपके लॉन्ग टर्म निवेश को भी ट्रेडिंग की तरह देखा जाएगा और लॉन्ग टर्म गेन्स को बिजनेस इनकम के तहत रखा जाएगा। लेकिन ये ज़रूरी है कि आप रिटर्न फाइल करते वक्त ट्रेडिंग और निवेश के पोर्टफोलियो को अलग- अलग दिखाएं। 

इसी तरह, अगर आप F&O ट्रेडिंग या इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं तो आपको खुद को ट्रेडर की श्रेणी में रखना ज़रूरी है, लेकिन तब भी औप अपने लॉन्ग टर्म निवेश की कमाई को कैपिटल गेन्स के तहत दिखा सकते हैं। 

तो आप एक निवेशक भी हो सकते हैं, एक ट्रेडर भी हो सकते हैं या फिर दोनों हो सकते हैं। बस इस बात का ध्यान रखें कि रिटर्न फाइल करते वक्त एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से परामर्श ज़रूर लें। 

एक बात ख्याल रखिए कि जब तक कि आपकी नीयत सही है, आप रिटर्न फाइल करते वक्त बेसिक नियमों का पालन करते हैं, सब बहुत आसान है। लेकिन आप अपने को जिस भी श्रेणी में रखते हैं, उस श्रेणी में ही खुद को बनाए रखें। हर बार स्विच ना करें यानी बदले नहीं। 

अगर आप इन आसान नियमों का पालन करेंगे तो टैक्स अधिकारी से डरने की कोई ज़रूरत नहीं होगी। 

इस अध्याय को समाप्त करने से पहले कुछ लिंक नीचे दे रहा हूं जिसे पढ़ना आपके लिए फायदेमंद होगा।  

CBDT circular on distinction between trades and investments.

Business Standard – Is your return from stocks capital gains or business income?

Economic Times – Are you a stock trader or an investor?

Taxguru – Income from share trading – Business or capital gain?

Moneycontrol- Investor or trader: The argument continues

Economic Times – Budget 2014 clarifies that commodity trading on recognized exchanges is non-speculative

Economic times – New data mining tool may access PAN-based information of taxpayers, help check evasion

इस अध्याय की मुख्य बातें-

  1.  फ्यूचर और ऑप्शन (इक्विटी, करेंसी और कमॉडिटी में) ट्रेडिंग को गैर सट्टा व्यवसाय माना जाता है। 
  2. इक्विटी या स्टॉक में इंट्राडे या नॉन (गैर) डिलीवरी ट्रेडिंग  को सट्टा व्यवसाय माना जाता है।
  3. अगर इक्विटी में निवेश 1 साल से ऊपर है तो उससे होने वाली कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स के तहत आएगी।
  4. इक्विटी अगर 1 दिन से 1 साल के बीच होल्ड किया है और ट्रेड कम बार किया गया है तो उससे हुई कमाई शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स के तहत रखी जाएगी। अगर ट्रेड बहुत ज्यादा बार किया गया है तो वो आमदनी गैर सट्टा व्यवसाय से हुई आमदनी मानी जाएगी। 

 

डिसक्लेमर– अपना रिटर्न फाइल करने के पहले एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की सलाह ज़रूर लें। ऊपर दी गई जानकारियां सिर्फ आपको समझाने के लिए हैं।

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ट्रेडर के लिए टैक्स https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%9f%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%9f%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8/#comments Wed, 12 Feb 2020 09:52:21 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7070 5.1 – एक बार दोहरा लें  पिछले अध्याय में हमने जाना –  अगर आपने इक्विटी में अपने निवेश को 1 साल से ज्यादा रखा है तो आप उससे हुई आमदनी को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन दिखा सकते हैं और अपने आप को निवेशक का दर्जा दे सकते हैं। आप अपने आप को तब भी निवेशक […]

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5.1 – एक बार दोहरा लें 

पिछले अध्याय में हमने जाना – 

अगर आपने इक्विटी में अपने निवेश को 1 साल से ज्यादा रखा है तो आप उससे हुई आमदनी को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन दिखा सकते हैं और अपने आप को निवेशक का दर्जा दे सकते हैं। आप अपने आप को तब भी निवेशक मान सकते हैं जब शेयरों में आपका निवेश 1 दिन से ज्यादा और 1 साल से कम हो, ऐसे निवेश की कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन दिखाया जा सकता है। हमने इस बात पर भी चर्चा की है कि अगर आप लगातार ट्रेडिंग करते हैं और इस निवेश/ट्रेडिंग से ही आपकी मुख्य कमाई होती है तो कैपिटल गेन को बिजनेस इनकम बताना क्यों फायदेमंद होता है। 

इस अध्याय में हम ट्रेडिंग से होने वाली कमाई को बिजनेस इनकम के तौर पर दिखाने से जुड़े सभी मुद्दों पर बात करेंगे। इन मुद्दों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है –

  1. सट्टा व्यापार से होने वाली कमाई यानी स्पेक्यूलेटिव बिजनेस इनकम – इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग से होने वाली कमाई को स्पेक्यूलेटिव या सट्टा कमाई कहते हैं। इसको सट्टा इसलिए कहा जाता है क्योंकि आप यह ट्रेड उन शेयरों की डिलीवरी लेने के इरादे से नहीं करते हैं। 
  2. गैर सट्टा व्यापार कमाई यानी नॉन स्पेक्यूलेटिव इनकम – F&O ट्रेडिंग से होने वाली कमाई को गैर सट्टा बिजनेस आमदनी माना जाता है। इसको गैर सट्टा इसलिए माना जाता है क्योंकि F&O का इस्तेमाल हेजिंग के लिए और अंडरलाइंग कॉन्ट्रैक्ट की डिलीवरी लेने और देने के लिए भी किया जाता है। वैसे, अभी भारत में इक्विटी, करेंसी और कमोडिटी के ज्यादातर F&O कॉन्ट्रैक्ट कैश में सेटल होते हैं, लेकिन इनकी परिभाषा यही है कि वो डिलीवरी लेने और देने के लिए काम आते हैं (सोने और बाकी कुछ कमोडिटी कॉन्ट्रैक्ट में डिलीवरी का विकल्प होता है)। छोटी अवधि (1 दिन से 1 साल तक) के डिलीवरी वाले इक्विटी ट्रेड से होने वाली कमाई को भी गैर सट्टा बिजनेस कमाई दिखाना फायदेमंद होता है अगर ऐसे सौदों की संख्या बहुत ज्यादा है और आपकी कमाई का यही मुख्य जरिया हैं।

5.2 – ट्रेडिंग या बिजनेस इनकम पर टैक्स 

बिजनेस इनकम पर कैपिटल गेन की तरह तय दर से टैक्स नहीं लगता। सट्टा व्यापार से होने वाली कमाई और गैर सट्टा बिजनेस इनकम को आप की दूसरी कमाई (जैसे वेतन, दूसरे बिजनेस इनकम, बैंक से मिलने वाला ब्याज, किराया और दूसरी चीजें) में जोड़ा जाता है और फिर इस कुल कमाई पर आपके टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है। आप टैक्स दरों के लिए इस मॉड्यूल के पहले अध्याय को फिर से देख सकते हैं। आप वित्त वर्ष 2020-21 के लिए लागू टैक्स स्लैब के अध्याय 1 का उल्लेख कर सकते हैं।

मैं इसको एक उदाहरण से समझाता हूं: 

  • मेरा वेतन – ₹1000000 
  • डिलीवरी बेस्ड इक्विटी ट्रेड से होने वाला शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन – ₹100000 
  • F&O ट्रेडिंग से होने वाला मुनाफा – ₹100000 
  • इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग से होने वाली कमाई – ₹100000 

साल की इस कमाई के आधार पर अब मेरा टैक्स कितना बनेगा? 

अपनी टैक्स देनदारी निकालने के लिए मुझे अपनी सभी तरह की कमाई, मेरा वेतन और बिजनेस इनकम (सट्टा और गैर सट्टा) को जोड़कर टैक्स योग्य रकम निकालनी होगी। इसमें मैं कैपिटल गेन को नहीं जोड़ सकता क्योंकि कैपिटल गेन के लिए एक निश्चित दर से टैक्स लगता है जबकि वेतन और बिजनेस इनकम के साथ ऐसा नहीं होता।

कुल आय (वेतन + बिजनेस इनकम) = ₹1000000 (वेतन) + ₹100000 (F&O ट्रेडिंग से होने वाला मुनाफा) + ₹100000 (इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग से होने वाली कमाई) = ₹1200000

अब मुझे ₹1200000 पर टैक्स स्लैब के मुताबिक टैक्स देना है –

  • 0 – ₹250000 – कोई टैक्स नहीं
  • ₹250000 से ₹500000 – 10% टैक्स यानी ₹25000 
  • ₹500000 – ₹1000000 – 20% टैक्स यानी ₹100000 
  • ₹1,000,000 – ₹1,200,000 – 30% टैक्स यानी ₹60000  
  • इस तरह कुल टैक्स : ₹25000 + ₹100000 +₹60000 = ₹185000 

इसके अलावा मेरे पास ₹100,000 की शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन के तौर पर होने वाली कमाई भी है जिसे मैंने डिलीवरी वाले इक्विटी सौदों से कमाया है। इस पर 15% की दर से टैक्स लगेगा। 

शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन: ₹100000, अब इस पर 15% की दर से टैक्स बना ₹15000 

इस तरह मेरा कुल टैक्स = ₹185000 +₹15000 = ₹200000 

मुझे उम्मीद है कि इस उदाहरण से आपको समझ में आ गया होगा कि अपनी कुल आमदनी और उसके आधार पर अपनी टैक्स देनदारी को आप कैसे निकाल सकते हैं। 

अब हम ट्रेडिंग से होने वाली कमाई को टैक्स के लिए बिजनेस इनकम के तौर पर दिखाने से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर नजर डालते हैं।

5.3 – बिजनेस लॉस को कैरी फॉरवर्ड करना 

अगर आप अपना इनकम टैक्स सही समय पर भरते हैं, नॉन ऑडिट मामले के लिए ये तारीख 31 जुलाई और ऑडिट वाले मामलों के लिए 30 सितंबर है, तो आप अपने बिजनेस लॉस को कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं। 

सट्टा यानी स्पेक्यूलेटिव नुकसान को आप 4 साल तक कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं और इसको किसी भी सट्टा कमाई यानी स्पेक्यूलेटिव गेन के सामने ऑफ सेट कर सकते हैं। 

गैर सट्टा नुकसान को आप वेतन के अलावा किसी भी दूसरी बिजनेस इनकम के साथ उसी साल सेट ऑफ कर सकते हैं। यानी आप बैंक के आमदनी से ब्याज से होने वाली कमाई, किराए से होने वाली कमाई, कैपिटल गेन जैसी चीजों के साथ आप इसे उसी साल सेट ऑफ कर सकते हैं। 

गैर सट्टा नुकसान को अगले 8 साल तक की कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं लेकिन याद रखिए कि कैरी फॉरवर्ड किया गया गैर सट्टा नुकसान सिर्फ गैर सट्टा कमाई के सामने ही ऑफ सेट किया जा सकता है। 

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए मुझे होटल के बिजनेस से 1,500,000 रुपए की कमाई हुई है, ब्याज से मुझे ₹200,000 की कमाई हुई है और सट्टा व्यवसाय में ₹700,000 का नुकसान हुआ है। ऐसे में, मेरी टैक्स देनदारी होगी –

बिजनेस से मेरी कमाई 1,500,000 और ब्याज से कमाई 200,000 है। कुल मिलाकर 1,700,000 

गैर सट्टा बिजनेस से मुझे ₹700,000 का नुकसान हुआ है, जिसे मैं बिजनेस कमाई या बिजनेस इनकम के सामने ऑफ सेट कर सकता हूं। इससे मेरी टैक्स देनदारी कम हो सकती है। इसलिए 

मेरी कुल टैक्स देनदारी = ₹1,700,000 – ₹700,000 = ₹1,000,000 

इस तरह से अब मैं केवल ₹1,000,000 पर ही टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स दूंगा

  • 0 – ₹250000 – कोई टैक्स नहीं
  • ₹250000 से ₹500000 – 10% टैक्स यानी ₹25000 
  • ₹500000 – ₹1000000 – 20% टैक्स यानी ₹100000 

इस तरह कुल टैक्स : ₹25000 + ₹100000 = ₹125000 

5.4 – सट्टा और गैर सट्टा बिजनेस आमदनी को ऑफ सेट करना 

सट्टा आमदनी (इंट्राडे ट्रेडिंग) में होने वाले घाटे को गैर सट्टा यानी F&O से होने वाले फायदे के साथ ऑफसेट नहीं किया जा सकता, लेकिन सट्टा आमदनी में हुए फायदे को गैर सट्टा नुकसान के साथ ऑफसेट किया जा सकता है। 

अगर आप इंट्राडे इक्विटी में किसी साल ₹100,000 का सट्टा नुकसान करते हैं और उसी साल गए गैर सट्टा व्यवसाय में ₹100,000 का फायदा करते हैं तो आप इन दोनों को एक साथ दिखा कर जीरो मुनाफा नहीं बता सकते। आपको ₹100,000 के गैर सट्टा मुनाफे पर टैक्स देना पड़ेगा। सट्टा व्यवसाय से होने वाले नुकसान को आप कैरी फॉरवर्ड कर पाएंगे। 

उदाहरण के लिए, अगर 

  • वेतन से होने वाली आमदनी = ₹500000 
  • गैर सट्टा मुनाफा = ₹100000 
  • सट्टा व्यवसाय में हुआ नुकसान = ₹100000 

अब मैं अपने टैक्स की देनदारी को निकालता हूं 

कुल आय = वेतन से होने वाली आय + गैर सट्टा व्यवसाय से होने वाली आय 

  • = ₹500000 + ₹100000 = ₹600,000 

इस तरह मुझे ₹600000 पर टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होगा 

  • 0 – ₹250000 – कोई टैक्स नहीं
  • ₹250000 से ₹500000 – 10% टैक्स यानी ₹25000 
  • ₹500000 – ₹600000 – 20% टैक्स यानी ₹20000 

इस तरह कुल टैक्स हुआ ₹45000 

मैं सट्टा व्यवसाय में हुए ₹100,000 के नुकसान को कैरी फॉरवर्ड कर सकता हूं, जिसको मैं आगे के 4 सालों में कभी भी किसी नुकसान के सामने सेट ऑफ कर सकता हूं। यहां पर यह बात फिर से दोहराना जरूरी है कि सट्टा व्यवसाय से होने वाले घाटे को केवल सट्टा व्यवसाय से होने वाले फायदे के साथ ही ऑफ सेट किया जा सकता है, चाहे उस साल में या आगे के सालों में। सट्टा व्यवसाय से होने वाले नुकसान को किसी दूसरे तरीके के बिजनेस आमदनी से ऑफसेट नहीं किया जा सकता। 

लेकिन अगर मैंने सट्टा व्यवसाय से ₹100,000 की आमदनी की है और गैर सट्टा व्यवसाय में ₹100,000 का नुकसान किया है, तो इन दोनों को एक दूसरे के साथ ऑफ सेट किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में ऊपर के उदाहरण में मुझे केवल ₹500,000 के वेतन से हुई कमाई पर टैक्स देना होगा।

5.5 – टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग (Tax Loss Harvesting) क्या होती है?

हो सकता है कि वित्त वर्ष के अंत में आपको पता चले कि आपने अपना मुनाफा तो ले लिया है लेकिन आपके नुकसान अभी अप्राप्त (सामने नहीं आए) हैं। अगर आप इस पर ध्यान नहीं देंगे तो आप अपने रियलाइज्ड (प्राप्त) मुनाफे पर टैक्स दे देते हैं जबकि आपको अनरियलाइज्ड (अप्राप्त) घाटे को अगले साल के लिए कैरी फॉरवर्ड करना पड़ सकता है। इसकी वजह से उस समय आपकी टैक्स की देनदारी बढ़ जाती है, और उस टैक्स की रकम न देकर आप उस रकम पर जो ब्याज कमा सकते थे वह ब्याज चला जाता है। 

आप चाहें तो अपने टैक्स देनदारी को बहुत आसानी से आगे के लिए टाल सकते हैं, बस आपको अनरियलाइज्ड (अप्राप्त) घाटे को तुरंत बुक करना होगा। घाटा बुक कर के आप वित्त वर्ष के लिए अपनी टैक्स देनदारी को कम कर सकते हैं। जेरोधा शायद देश में अकेली ब्रोकरेज कंपनी है जो कि आपको टैक्स लॉस हार्वेस्टिंग की रिपोर्ट देता है जिसके आधार पर आप आसानी से अपने घाटे को हार्वेस्ट करने के हर मौके को पहचान सकते हैं। ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

5.6 – BTST (ATST) – यह सट्टा है या गैर सट्टा है या STCG?

बाय टुडे सेल टुमॉरो (Buy Today Sell Tomorrow – BTST) या एक्वायर टुडे सेल टुमॉरो (Acquire Today Sell Tomorrow – ATST) का इस्तेमाल बहुत सारे इक्विटी ट्रेडर करते हैं। जब आप स्टॉक की डिलीवरी लिए बगैर उसको आज खरीदते हैं और कल बेचते हैं तो उसे BTST कहा जाता है। 

क्योंकि ऐसे ट्रेड में आप शेयरों की डिलीवरी नहीं ले रहे हैं तो क्या इस ट्रेड को इंट्रा डे ट्रेड की तरह से सट्टा माना जाए? 

इसको लेकर दो विचारधाराएं चलती हैं, एक का मानना है कि क्योंकि यहां पर डिलीवरी नहीं ली जा रही है इसलिए यह एक तरह से सट्टा व्यवसाय है, लेकिन मैं दूसरी विचारधारा को मानता हूं जो यह कहती है कि यह गैर सट्टा है क्योंकि एक्सचेंज खुद इस ट्रेड पर सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स लगाता है, जैसे कि डिलीवरी आधारित सौदों पर लगता है। यहां पर बस ध्यान देने वाली बात यह है कि 1 BTST सौदे साल में कितनी बार किए जा रहे हैं, अगर इनकी संख्या कम हैं तो इसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाना चाहिए, लेकिन अगर BTST लगातार और बार-बार किए जा रहे हैं तो यह सट्टा व्यवसाय वाली आमदनी होनी चाहिए।

5.7 – बिजनेस इनकम – एडवांस टैक्स 

जब आप बिजनेस इनकम दिखाते हैं तो इस पर एडवांस टैक्स देना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। जैसा कि हम पिछले अध्याय में चर्चा कर चुके हैं कि हर साल 15 जून तक एडवांस टैक्स का 15%,  15 सितंबर तक 45%, 15 दिसंबर तक 75%, और 15 मार्च तक 100% देना होता है। यहां एक सवाल आ सकता है कि यहां यह प्रतिशत किस चीज का प्रतिशत दिखाता है 

यह है आपके सालाना टैक्स का प्रतिशत। जब आप बिजनेस इनकम दिखाते हैं तो आपको अपना ज्यादातर टैक्स 31 मार्च को साल खत्म होने के पहले दे देना होता है। ट्रेडिंग की आमदनी को बिजनेस इनकम दिखाने का यह एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि हो सकता है सितंबर तक आपने ट्रेडिंग से काफी अच्छी कमाई की हो लेकिन उसके आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि वित्त वर्ष के अंत तक वैसी ही कमाई करते रहेंगे। आप की कमाई कम या ज्यादा हो सकती है।

लेकिन इसके बावजूद आपको एडवांस टैक्स तो अदा करना ही है। नहीं तो उसमें हुई देरी पर  12% सालाना की दर से पेनाल्टी देनी पड़ सकती है। इसलिए सबसे अच्छा तरीका ये है कि जिस समय तक आपने जितना कमाया है उस पर टैक्स दे दें। 15 सितंबर तक जितना कमाया उस पर टैक्स दे दें। 15 मार्च को साल खत्म होने के करीब आने पर आप अपनी आमदनी में का सही अनुमान लगा सकते हैं अब उसके आधार पर टैक्स दे दें। अगर आपने वित्त वर्ष के लिए ज्यादा एडवांस टैक्स भर दिया है तो आप अपने एडवांस टैक्स पर रिफंड मांग सकते हैं। आयकर विभाग टैक्स रिफंड काफी जल्दी से दे देता है। 

आप एडवांस टैक्स का ऑनलाइन पेमेंट नीचे दिए गए चालान पर क्लिक करके कर सकते हैं 

अपने टैक्स का एडवांस टैक्स की गणना करने के लिए आपको हम एक लिंक दे रहे हैं 

इस लिंक के जरिए आप देख सकते हैं कि आप एडवांस टैक्स ना देने की स्थिति में इंटरेस्ट या पेनल्टी कैसे निकाली जाती है।

5.8 – बैलेंस शीट और P&L स्टेटमेंट 

जब आप अपनी ट्रेडिंग की आमदनी को बिजनेस इनकम दिखाते हैं तो किसी भी और बिजनेस की तरह आपको अपने लिए एक बिजनेस बैलेंस शीट और P&L बनाना पड़ता है, या यूं कहिए कि इस वित्त वर्ष के लिए अपना इनकम स्टेटमेंट बनाना पड़ता है। इस तरह के वित्तीय स्टेटमेंट बनाने के लिए आपके टर्नओवर और मुनाफे पर का ऑडिट जरूरी हो सकता है। हम इस पर अगले अध्याय में विस्तार से चर्चा करेंगे। 

5.9 – टर्नओवर और टैक्स ऑडिट 

ऑडिट की जरूरत कब पड़ती है? 

ऑडिट की जरूरत तब पड़ती है जब आपके पास बिजनेस इनकम हो और वित्त वर्ष में आपके बिजनेस का टर्नओवर 5 करोड़ से ज्यादा हो। अगर आपके सारे ट्रांजैक्शन डिजिटल हैं (इक्विटी के सारे सौदे डिजीटल होते हैं) तो फिर इस टर्नओवर की सीमा 5 करोड़ हो जाती है। इक्विटी के ट्रेडर के लिए सेक्शन 44AD के अनुसार ऐसे मामलों में भी टैक्स ऑडिट की जरूरत पड़ती है जहां टर्नओवर 5 करोड़ से कम हो लेकिन मुनाफा टर्नओवर के 6% से कम हो और साथ ही, कुल आमदनी छूट की न्यूनतम सीमा से अधिक हो।

इस पर हम अगले अध्याय में विस्तार से चर्चा करेंगे। 

लेकिन अभी यह समझ लेते हैं कि ऑडिट का वास्तव में मतलब क्या होता है 

डिक्शनरी के मुताबिक ऑडिट का मतलब है जांचना, परखना या फिर से देखना। अलग अलग कानूनों में अलग अलग तरीके के ऑडिट का प्रावधान होता है,जैसे कंपनी कानून में कंपनी की ऑडिट होती है, कॉस्ट एकाउटिंग कानून में कॉस्ट ऑडिट होती है, इसी तरह, इनकम टैक्स कानून के अनुसार अगर करदाता टर्नओवर की शर्तें पूरी करता है तो उसको अपने बिजनेस या कारोबार के अकाउंट का ऑडिट कराना होता है। 

आप इस लिंक पर क्लिक करके इनकम टैक्स वेबसाइट पर टैक्स ऑडिट से जुड़े सवालों के दिए गए जवाबों को जान सकते हैं

ऑडिट का एक मतलब यह भी होता है कि आप एक अकाउंटेंट से अपने पूरे अकाउंट की जांच कराएं और देखें कि उसे सही तरीके से बनाया गया है या नहीं। यहां पर आपको जांच करनी होगी कि आपने अपनी बैलेंसशीट और P&L स्टेटमेंट सही तरीके से बनाई है। वैसे तो, यह जांच इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से की जानी चाहिए लेकिन उनके पास इतनी ज्यादा फाइनेंशियल स्टेटमेंट आते हैं कि उनके लिए यह असंभव है कि वह हर एक बैलेंसशीट की सही तरीके से ऑडिट कर सकें। इसीलिए हमें एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की जरूरत पड़ती है जो कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से अधिकृत होता है कि वह आपके बैलेंस शीट और P&L स्टेटमेंट का ऑडिट कर सकें। टैक्सपेयर के तौर पर आप किसी भी चार्टर्ड अकाउंटेंट की सेवा ले सकते हैं। 

एक चार्टर्ड अकाउंट क्या भूमिका अदा करता है 

वैसे तो चार्टर्ड अकाउंटेंट का काम आप की बैलेंसशीट और P&L स्टेटमेंट की जांच यानी ऑडिट करना और उस पर हस्ताक्षर करने का ही होता है, लेकिन आमतौर पर एक चार्टर्ड अकाउंटेंट आपकी बैलेंसशीट और P&L स्टेटमेंट को बनाता भी है और उसको ऑडिट भी करता है। हम अगले अध्याय में बताएंगे कि चार्टर्ड अकाउंटेंट यह काम कैसे करता है। 

चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा की जाने वाली ऑडिट प्रक्रिया को कम नहीं आंक सकते। यह बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। यह आपकी कानूनी जरूरत को पूरा करता ही है लेकिन इसके अलावा यह आपकी वित्तीय हालत को भी सही-सही आंकता है। साथ ही, यह भी सुनिश्चित करता है कि आपकी आमदनी और जितनी भी टैक्स छूट आपने मांगी है वह सही तरीके से की गई है। इसके अलावा, आपकी वित्तीय साख का आकलन भी करता है जिससे कि किसी भी तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सके।

किस ITR फॉर्म का इस्तेमाल करें – ITR 3 (2016 तक ITR 4), हम इसके बारे में अंतिम अध्याय में ज्यादा विस्तार में बताएंगे। मेरे सामने कई ऐसे मामले आ चुके हैं जिसमें लोगों ने अपनी सट्टा आमदनी और गैर सट्टा आमदनी दोनों को कैपिटल गेन के तौर पर दिखाया है जिससे उनको बिजनेस इनकम ना दिखाना हो और ITR 3 का फॉर्म ना भरना पड़े, इस तरह का शॉर्टकट लेना कई बार मुश्किल में डाल सकता है, खासकर अगर आप के फॉर्म की स्क्रूटनी हो जाए। 

ट्रेडिंग करते समय बिजनेस के खर्चे – ट्रेडिंग को बिजनेस आमदनी दिखाने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि आप अपने सारे खर्चों को दिखा कर उस पर टैक्स छूट ले सकते हैं और टैक्स कम कर सकते हैं। अगर इन सारे खर्चों के बाद आपको नुकसान हुआ है तो आप उस नुकसान को अगले सालों के लिए कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं, जैसे कि हमने ऊपर बताया है। 

नीचे की लिस्ट में कुछ खर्च बताए गए हैं जिनको आप अपने ट्रेडिंग के खर्च के तौर पर दिखा सकते हैं 

  • ट्रेडिंग के दौरान लगने वाले सभी शुल्क (STT, ब्रोकरेज, एक्सचेंज के शुल्क और दूसरे तरीके के टैक्स) ,आपको याद होगा तो मैंने कहा था कि जब आप अपनी आमदनी को कैपिटल गेन के तौर पर दिखा रहे हैं  तो STT को खर्च के तौर पर नहीं दिखाया जा सकता लेकिन अगर आपने अपनी आमदनी को बिजनेस इनकम दिखाया है तो STT को खर्चों में शामिल किया जा सकता है। 
  • इंटरनेट और फोन के बिल (अगर इनका इस्तेमाल ट्रेडिंग के लिए हुआ है तो बिल का उतना हिस्सा)
  • कंप्यूटर और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामान का डेप्रिसिएशन (ट्रेडिंग के लिए इस्तेमाल हुए) 
  • किराया (अगर ट्रेडिंग के लिए आप अपने कमरे का एक हिस्सा इस्तेमाल करते हैं तो आपकी किराए का एक किस्सा) 
  • अपना ट्रेड करने के लिए किसी और की मदद लेते हैं तो उसको दिया गया वेतन 
  • सलाह यानी एडवाइजरी की फीस, किताबें, समाचारपत्र और दूसरे ऐसी चीजें

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. अगर इक्विटी में इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं तो यह सट्टा व्यवसाय आमदनी है। 
  2. अगर F&O में ट्रेडिंग करते हैं या इक्विटी में शॉर्ट टर्म डिलीवरी ट्रेडिंग करते हैं तो यह गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी है। 
  3. सट्टा व्यवसाय से होने वाले नुकसान को गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी से ऑफसेट से नहीं किया जा सकता। 
  4. ट्रेडिंग के बिजनेस से होने वाली आमदनी का एडवांस टैक्स देना पड़ता है 15 जून तक 15% ,15 सितंबर तक 45%, 15 दिसंबर तक 75% और 15 मार्च तक 100% 
  5. ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम दिखाने पर इसमें होने वाले सभी खर्च को आप क्लेम कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर- अपने रिटर्न फाइल करने के पहले एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की सलाह जरूर लें। यहाँ दी गई जानकारी सिर्फ समझाने के लिए है। 

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टर्नओवर, बैलेंस शीट और P&L https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a4%93%e0%a4%b5%e0%a4%b0-%e0%a4%ac%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%b8-%e0%a4%b6%e0%a5%80%e0%a4%9f-%e0%a4%94%e0%a4%b0-pl/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a4%93%e0%a4%b5%e0%a4%b0-%e0%a4%ac%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%b8-%e0%a4%b6%e0%a5%80%e0%a4%9f-%e0%a4%94%e0%a4%b0-pl/#comments Wed, 12 Feb 2020 09:51:51 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7072 6.1 टर्नओवर और टैक्स ऑडिट  पिछले अध्याय में हमने टैक्स ऑडिट पर संक्षेप में बात की थी और इस पर चर्चा की थी कि जब आप ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम के तौर पर दिखाते हैं तो ऑडिट की जरूरत कब पड़ती है। आपको ऑडिट की जरूरत पड़ेगी या नहीं इसको पता करने के लिए हमें […]

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6.1 टर्नओवर और टैक्स ऑडिट 

पिछले अध्याय में हमने टैक्स ऑडिट पर संक्षेप में बात की थी और इस पर चर्चा की थी कि जब आप ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम के तौर पर दिखाते हैं तो ऑडिट की जरूरत कब पड़ती है। आपको ऑडिट की जरूरत पड़ेगी या नहीं इसको पता करने के लिए हमें पहले यह जानना होगा कि आपके ट्रेडिंग बिजनेस का टर्नओवर कितना है। 

यहां पर मैं एक बार फिर से दोहरा दूं कि टर्नओवर निकालने की जरूरत तब पड़ती है जब आप अपने ट्रेडिंग के P&L को बिजनेस इनकम के तौर पर दिखाते हैं (अगर आपकी इनकम सिर्फ कैपिटल गेन को दिखाती है, चाहे उसका टर्नओवर कितना भी हो, तो उसको ऑडिट की जरूरत नहीं पड़ती)। टर्नओवर सिर्फ यह बताता है कि टैक्स ऑडिट की जरूरत है या नहीं। टर्नओवर से आपके टैक्स की देनदारी पर कोई असर नहीं पड़ता। 

ऑडिट की जरूरत पड़ती है जब – 

  • ₹5 करोड़ रुपए – जब उस साल के लिए आप का टर्नओवर 5 करोड़ से ऊपर हो। यह सीमा तब है जब आपके सारे सौदे डिजिटल हों, ध्यान रहे कि स्टॉक मार्केट की ट्रेडिंग अब 100 %डिजिटल हैं। साथ ही याद रखें कि 5 करोड़ तक के टर्नओवर पर ऑडिट तभी तक नहीं होता है जब तक आपने इसको सेक्शन 44 AD के तहत डिक्लेयर किया है, नहीं तो एक करोड़ के ऊपर के टर्नओवर पर भी ऑडिट होता है। 
  • सेक्शन 44 AD – अगर टर्नओवर 5 करोड़ से नीचे है और मुनाफा टर्नओवर के 6% से कम है और कुल आमदनी छूट की न्यूनतम सीमा से ऊपर है (अगर टर्नओवर 5 करोड़ से नीचे है लेकिन आप की कुल आमदनी 2.5 लाख की टैक्स सीमा से नीचे है तो ऑडिट की जरूरत नहीं पड़ती है)। ऑडिट की लिमिट को एक करोड़ से 5 करोड़ वित्त वर्ष 19/20 में किया गया था।

नोट: वित्त विधेयक 2020 की शुरुआत के बाद टर्नओवर मूल्य को 5 करोड़ में बदल दिया गया है, वित्त वर्ष 2019-2020 से प्रभावी है यदि टर्नओवर केवल 5 करोड़ की सीमा को पार करना है।

ट्रेडिंग के टर्नओवर के बारे में बात होते ही जो सबसे पहली चीज दिमाग में आती है वह है कॉन्ट्रैक्ट का टर्नओवर, 

  • मतलब निफ्टी 8000 पर है आप 100 निफ्टी खरीदते हैं 
  • खरीद की तरफ का मूल्य = 8000*100 =   800,000
  • निफ़्टी 8100 पर पहुंचता है आप अपने 100 निफ्टी को स्क्वेयर ऑफ कर देते हैं 
  • बिक्री की तरफ का मूल्य = 8100*100 =   810,000 
  • टर्नओवर = खरीद की तरफ का मूल्य + बिक्री की तरफ का मूल्य =   800,000 + ₹ 810,000 = ₹ 1,610,000 

इनकम टैक्स विभाग इस टर्नओवर की तरफ नहीं देखता, इनकम टैक्स विभाग आपके बिजनेस के टर्नओवर को जानना चाहता है। 

बिजनेस टर्नओवर कैसे निकाला जाता है इसको जाने के लिए नीचे देखें – 

टर्नओवर निकालने के तरीके पर बहस होती रहती है, इस बहस की वजह यह है कि इनकम टैक्स विभाग की तरफ से इस पर कोई साफ दिशा-निर्देश नहीं है। इस मामले में मदद मिलती है, इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) जो कि चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की संस्था है – के एक लेख से जो कि उसने सेक्शन 44 AB के तहत टैक्स ऑडिट के बारे में जानकारी देने के लिए जारी किया था। उस लेख में, पेज 23 पर सेक्शन 5.12 में यह बताया गया है कि टर्नओवर कैसे निकाला जाता है। उसमें लिखा है कि –

  • डिलीवरी वाले सौदे

डिलीवरी वाले सभी सौदों के लिए, जहां आप स्टॉक को खरीदते हैं और उसे 1 दिन से ज्यादा रखने के बाद उसे बेचते हैं, तो बेचने की कुल कीमत को टर्न ओवर माना जाएगा। मतलब अगर आपने रिलायंस के 100 शेयर 800 पर खरीदे और उनको 820 पर बेच दिया तो उनको बेचने की कीमत यानी 82000 (820 x100) को टर्न ओवर माना जा सकता है। 

लेकिन याद रखें कि  डिलीवरी वाले सौदों का टर्नओवर निकालने का यह तरीका डिलीवरी वाले सौदों के लिए तभी लागू होता है जब आप अपने इक्विटी के डिलीवरी वाले सौदों को भी बिजनेस इनकम के तौर पर दिखा रहे हों। अगर आप उनको कैपिटल गेन की तरह या निवेश के तौर पर दिखा रहे हैं तो ऐसे सौदों का टर्नओवर निकालने की कोई जरूरत नहीं होती है। साथ ही, अगर यह सिर्फ कैपिटल गेन के तौर पर इसे दिखाया है तो आप का टर्नओवर या मुनाफा कितना भी हो आपको ऑडिट की जरूरत नहीं पड़ती है।

  • सट्टा वाले सौदे (इक्विटी की इंट्राडे ट्रेडिंग) 

सट्टे वाले सभी सौदों के लिए नफा और नुकसान वाले सौदों के बीच के अंतर के कुल जोड़ (aggregate) को टर्नओवर माना जाता है। मान लीजिए अगर आपने रिलायंस के 100 शेयर सुबह 800 पर खरीदे हैं और दोपहर में उनको 820 पर बेच दिया तो आपने 2000 का नफा कमाया या पॉजिटिव डिफरेंस (positive difference) कमाया। इस 2000 को उस ट्रेड का टर्नओवर माना जाएगा। 

  • गैर सट्टा सौदे (फ्यूचर एंड ऑप्शन) 

गैर सट्टा सौदों में टर्न ओवर निकालने के लिए 

  • आपके पक्ष में गए सौदे और विपक्ष में गए सौदों के बीच के अंतर यानी नफा और नुकसान वाले सौदों के बाच के अंतर को टर्न ओवर माना जाएगा 
  • ऑप्शन की बिक्री में मिला प्रीमियम भी टर्न ओवर में शामिल होगा 
  • किसी रिवर्स ट्रेड के होने पर भी उसके अंतर को भी टर्न ओवर में शामिल किया जाएगा 

तो यदि आप निफ़्टी फ्यूचर्स का 1 लॉट या 25 यूनिट 8000 पर खरीदते हैं और उसको 7900 पर बेच देते हैं तो 2500 का यह घाटा आपके सौदे का टर्न ओवर माना जाएगा। 

ऑप्शन में अगर आप निफ्टी के 8200 के कॉल के 4 लॉट 20  लेते हैं पर और उसको 30 पर बेचते हैं, तो पहले आपके पक्ष में गए इस सौदे का अंतर यानी 1000 (10 X 100) का मुनाफा आपका टर्नओवर होगा लेकिन बिक्री से मिला हुए प्रीमियम को भी टर्नओवर में जोड़ा जाना है, ये 30 X 100 = ₹.3000  है इस तरह से, ऑप्शन ट्रेड का कुल टर्नओवर = 1000 + 3000 = 4000

ऊपर की गणनाएं काफी सरल और सीधी थीं। अब आपको एक महत्वपूर्ण फैसला करना है कि आप शेयर के हिसाब से टर्नओवर की गणना करना चाहते हैं या आप सौदों के हिसाब से।  

शेयर के हिसाब से टर्नओवर निकालने के लिए उस वित्त वर्ष में उस शेयर में किए गए हर सौदे को एक साथ रखते हैं और फिर खरीद और बिक्री का औसत मूल्य निकालते हैं, उसके बाद ऊपर के तीन नियमों का इस्तेमाल करके औसत कीमत पर कुल नफा या नुकसान निकालते हैं। 

सौदे के हिसाब से टर्नओवर निकालने के लिए उस वित्त वर्ष में किए गए हर सौदे में हुए नफा और नुकसान को जोड़ कर ऊपर के नियमों के आधार पर कुल टर्नओवर निकालते हैं। 

इन दोनों को मैं उदाहरण से भी समझाता हूं –

  1. 1 जनवरी को 100 निफ्टी जनवरी फ्यूचर 8000 पर खरीदे गए और 8100 पर बेचे गए। 10 जनवरी को 100 और निफ्टी जनवरी फ्यूचर 8100 पर खरीदे गए और 10 जनवरी को 8050 पर बेचे गए। टर्नओवर कितना होगा-  

शेयर के हिसाब से 

निफ़्टी जनवरी फ्यूचर की औसत खरीद – 200 निफ्टी 8050 पर खरीदे गए 

निफ़्टी जनवरी फ्यूचर की औसत बिक्री – 200 निफ्टी 8075 पर बेचे गए 

कुल नफा/ नुकसान = 200 X 25 = ₹5000 का फायदा = निफ़्टी जनवरी फ्यूचर का टर्नओवर 

सौदे के हिसाब से 

100 निफ्टी खरीदे गए 8000 पर और बेचे गए 8100 पर, मुनाफा = 10000 

100 निफ्टी खरीदे गए 8100 पर और बेचे गए 8050 पर, नुकसान = 5000 

निफ़्टी जनवरी फ्यूचर का टर्नओवर = 10000 + 5000 =  15000 

  1. दिसंबर 3 को 100 निफ्टी दिसंबर के 8000 के पुट 100 पर खरीदे गए और बेचे गए 50 पर, निफ्टी दिसंबर 8000 के 100 और पुट 50 पर खरीदे गए और बेचे गए 30 पर. कुल टर्नओवर कितना होगा

शेयर के हिसाब से 

निफ़्टी दिसंबर 8000 के पुट की औसत खरीद – 200 पुट 275 पर 

निफ़्टी दिसंबर 8000 के पुट की औसत बिक्री – 200 पुट 40 पर 

कुल नफा/ नुकसान = 200 X 35 = ₹ 7000 का नुकसान

ऑप्शन की बिक्री की कुल कीमत = 200 X 40 = ₹ 8000 का फायदा 

निफ़्टी दिसंबर 8000 के पुट का कुल टर्नओवर = 7000 + 8000 =₹15000 

सौदों के हिसाब से 

पहला ट्रेड 

100 निफ़्टी दिसंबर पुट खरीदे गए 100 पर और बेचे गए 50 पर, नुकसान = 5000 

ऑप्शन की बिक्री कीमत = 100 X  50 = 5000 

टर्नओवर = 10000 

दूसरा ट्रेड

100 निफ़्टी दिसंबर पुट खरीदे गए 50 पर और बेचे गए 30 पर, नुकसान = 2000 

ऑप्शन की बिक्री कीमत = 100 X  30 = 3000 

टर्नओवर  = 5000 

कुल टर्नओवर  = टर्नओवर पहले ट्रेड का टर्नओवर + दूसरे ट्रेड का टर्नओवर = 15000 

सौदों के हिसाब से टर्नओवर निकालना चाहिए या फिर शेयरों के हिसाब से 

सौदों के हिसाब से टर्नओवर निकालना नियमों के हिसाब से सबसे सही होता है। लेकिन इसको निकालना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि कोई भी ब्रोकर (जेरोधा के अलावा) सौदों के हिसाब से टर्नओवर की रिपोर्ट नहीं देता है। सारे ब्रोकर सिर्फ खरीद और बिक्री की औसत कीमत के आधार पर एक P&L देते हैं जिसका इस्तेमाल करके आपको शेयरों के हिसाब से टर्नओवर निकालना होता है। अगर आप जीरोधा पर ट्रेड नहीं कर रहे हैं और सौदों के हिसाब से टर्नओवर निकालना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको अपने सभी सौदों को एक्सल शीट पर डाउनलोड करना होगा फिर उसका टर्नओवर खुद से निकालना होगा। 

एक नजर डालिए कि जेरोधा पर सौदों के हिसाब से और शेयरों के हिसाब से टर्नओवर की रिपोर्ट कैसी दिखती है-

एक बार आपने टर्नओवर निकाल लिया तो आपको खुद ही पता चल जाएगा कि आपको ऑडिट की जरूरत है या नहीं और उसी के आधार पर आपको ये भी पता चल जाएगा कि चार्टर्ड अकाउंटेंट के पास जाने, अपनी बैलेंस शीट और P&L को सत्यापित (Verify) कराने की जरूरत पड़ेगी या नहीं।

6.2 सेक्शन 44 AD 

जैसा कि हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि अगर आपका मुनाफा आपके टर्नओवर के 6% से कम है तो भी आपको ऑडिट की जरूरत पड़ेगी। यहां पर टर्न ओवर का मतलब है कि आपके सभी बिजनेस (सट्टा, गैर सट्टा और जो भी बिजनेस हो) का टर्नओवर। और यहां मुनाफा से मतलब है सिर्फ आपके बिजनेस मुनाफा (वेतन, कैपिटल गेन जैसी चीजें शामिल नहीं हैं) । इसका मतलब है कि अगर आप ट्रेडिंग को बिजनेस के तौर पर दिखा रहे हैं और आपको नुकसान हुआ है तो आपको अपने खातों का ऑडिट कराना पड़ सकता है। 

लेकिन एक महत्वपूर्ण बात याद रखने वाली है कि अगर आप का टर्नओवर 5 करोड़  से कम है और आप का मुनाफा आपके टर्नओवर का 6% से कम है और आपकी कुल टैक्स देनदारी उस साल के लिए जीरो है तो ऑडिट की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसका मतलब ये है कि अगर आप की कुल आमदनी (वेतन + बिजनेस से होने वाली आमदनी + कैपिटल गेन) ढाई लाख रुपए से कम है यानी आपकी कोई टैक्स देनदारी नहीं है तो ऑडिट की जरूरत नहीं है। लेकिन सही यही होगा कि अगर आपका नुकसान काफी ज्यादा है तो आप ऑडिट के साथ अपना रिटर्न फाइल करें।

ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम के तौर पर दिखाने में सेक्शन 44 AD का इस्तेमाल रिटेल ट्रेडर के लिए काफी मुश्किल पैदा कर रहा है। एक साधारण बिजनेस में टर्नओवर और ट्रेडिंग के लिए टर्नओवर काफी अलग अलग चीजें होती हैं, एक साधारण बिजनेस में जहां स्थिर मार्जिन पर सौदे होते हैं ट्रेडिंग के बिजनेस में ऐसा कोई गारंटी नहीं होती। लेकिन इस सेक्शन की वजह से सभी छोटे रिटेल ट्रेडर को अपने खाते ऑडिट कराने पड़ रहे हैं जिससे उनके ऊपर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। हमने,जेरोधा ने, अलग से सरकार को इस बारे में एक याचिका दी है और हम चाहते हैं कि आप भी इसमें हमें सहयोग और समर्थन दें।

जब आप ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम पर देख के तौर पर दिखाते हैं तो आपको ITR 4 फाइल करना पड़ता है जिसका मतलब है कि किसी भी दूसरे बिजनेस की तरह आपको 

  • बैलेंस शीट 
  • P&L स्टेटमेंट और 
  • बुक ऑफ अकाउंट को 

बनाना होगा और तैयार रखना होगा। जैसा कि हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि आपको इन सब को अपने टर्नओवर के हिसाब से ऑडिट कराना होगा (अगर आपका टर्नओवर 5 करोड़ से ऊपर है या फिर आपका मुनाफा टर्नओवर के 6% से कम है)। जो लोग सिर्फ ट्रेडिंग करते हैं और उसी को अपना बिजनेस दिखाते हैं उनके लिए बैलेंस शीट बनाना, P&L बनाना या खाता का हिसाब किताब रखना काफी आसान है। इसको कैसे करते हैं इसे नीचे समझाया गया है।

6.3 – बैलेंस शीट, P&L, बही खाता (बुक ऑफ एकाउंट) 

बैलेंस शीट 

एक व्यक्तिगत बैलेंस शीट किसी खास समय पर आपकी संपत्ति का कुल खाका तैयार कर के दिखाती है। यह आपके एसेट (आपके पास क्या है), आपकी देनदारी या लायबिलिटी और आपके नेटवर्थ यानी आपकी कुल परिसंपत्ति (एसेट और लायबिलिटी के बीच का अंतर) का संक्षिप्त विवरण देती है। 

एक व्यक्तिगत बैलेंस शीट बनाना सीधा और सरल होता है। आपको सिर्फ ये सूचनाएं जुटानी होती हैं 

  • आप का ताजा बैंक स्टेटमेंट 
  • लोन स्टेटमेंट 
  • हाउस लोन स्टेटमेंट 
  • पर्सनल लोन स्टेटमेंट 
  • किसी बचे हुए कर्ज का बचा हुआ प्रिंसिपल अमाउंट 
  • डिमैट होल्डिंग का स्टेटमेंट 

जब आपके पास सारी जानकारी आ जाए तो उसके बाद आप बैलेंस शीट बनाना शुरू करें जिसमें आपको अपने सारे एसेट (वित्तीय और भौतिक) और उनकी कीमत दिखानी होगी। जिन एसेट को आमतोर पर शामिल करना होता है, वो हैं –

  • कैश या नकद (बैंक में रखा, आपके पास रखा या बैंक में जमा) 
  • सभी निवेश (म्यूच्यूअल फंड, शेयर और डेट में निवेश) 
  • प्रॉपर्टी की कीमत (खरीद कीमत + अदा की गयी ड्यूटी + इंटीरियर पर हुआ खर्च) 
  • ऑटो मोबाइल की कीमत (कार और टू व्हीलर) 
  • पर्सनल प्रॉपर्टी की कीमत (गहने और घरेलू सामान) 
  • दूसरे एसेट (कंप्यूटर, दोस्तों को दिया गया कर्ज, जमीन की कीमत) 

इन सब की कीमत का जोड़ आपकी कुल एसेट की वैल्यू बताता है। 

इसके बाद आपको अपनी लायबिलिटी यानी देनदारियों पर नजर डालनी होती है। जो चीजें लायबिलिटी या देनदारी में आती है वो हैं 

  • बचे हुए कर्ज़ (लोन स्टेटमेंट)
  • कार लोन 
  • स्टूडेंट लोन 
  • दूसरे पर्सनल लोन 
  • क्रेडिट कार्ड का बैलेंस 

तो जितने पैसे आप पर बकाया हैं उसे आपकी लायबिलिटी में शामिल किया जाता है। 

आपके एसेट ओर लायबिलिटी के बीच का अंतर ही आपका आपका नेटवर्थ होता है। 

बस यही आपकी बैलेंस शीट है, इसको एक बार वित्त वर्ष के अंत में बनाने के बजाय बेहतर यह होता है कि आप हर कुछ महीनों में उसमें सुधार करते रहें।

प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेंट 

प्रॉफिट एंड लॉस स्टेटमेंट किसी वित्त वर्ष में आपकी आमदनी और आपके खर्चों को दिखाता है। 

अपने P&L को बनाने के लिए आपको अपनी आमदनी के सभी स्रोतों और सभी खर्चों को दिखाना होता है। 

आमदनी – 

  • शेयरों की बिक्री से हुई आपकी कमाई (कैपिटल गेन) 
  • F&O, इंट्राडे और कमोडिटी ट्रेड से होने वाली कमाई (सट्टा और गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी) 

याद रखें आप इसमें अपनी वेतन से होने वाली को आमदनी में नहीं जोड़ सकते हैं (अगर आप कहीं और नौकरी करते हैं तो) 

खर्चे – 

  • उन लोगों का वेतन जो आपके ट्रेड के लिए काम करते हैं (अगर लोग काम करते हैं तो) 
  • किराया, अगर आपने ट्रेडिंग के लिए कोई ऑफिस या ऐसी किसी दूसरी जगह का इस्तेमाल करते हैं और किराया देते हैं 
  • ब्रोकरेज शुल्क, टैक्स और ट्रेड में होने वाले दूसरे खर्च 
  • एडवाइजरी या सलाह की फीस, कंप्यूटर का डेप्रिसिएशन आदि

कमाई में से खर्चे निकालने पर आप का मुनाफा सामने आता है। 

एक बैलेंस शीट आपको यह बताती है कि आपके दो तारीखों के बीच आपकी नेटवर्थ कितनी है, जबकि P&L आपको यह बताता है कि आपका नेटवर्थ के ऊपर जाने या नीचे जाने की वजह क्या है। लंबे समय में समृद्धि बढ़ाने के लिए वित्तीय अनुशासन रखना जरूरी है। व्यक्तिगत बैलेंसशीट और P&L सुनिश्चित करता है कि आप सच्चाई से रूबरू रहें और अपनी एसेट और लायबिलिटी पर नजर रखें।

बुक ऑफ अकाउंट/ बुक कीपिंग 

बुक ऑफ अकाउंट का यानी बही खाते और उनका रख-रखाव यानी बुक कीपिंग थोड़ा मुश्किल काम लगता है इसीलिए जब ट्रेडर को यह नाम सुनाई पड़ता है तो वह डर जाता है और इसे टालने की कोशिश करता है जिससे इस बारे में और जान सके। लेकिन एक ऐसा व्यक्ति जो ट्रेडिंग को अपनी बिजनेस इनकम दिखाता है (चाहे उसे अलग से वेतन मिलता हो या नहीं) उसके लिए का बुक ऑफ अकाउंट/ बुक कीपिंग काफी सीधा और सरल काम है। आपको सिर्फ दो खाते बनाने पड़ते हैं –

बैंक बुक – अपने सभी बैंक स्टेटमेंट को डाउनलोड करके एक्सेल में रख लीजिए और हर एक एंट्री के सामने उस एन्ट्री की वजह लिख दीजिए। अपने सभी खर्चों के बिल रखना भी फायदेमंद होता है। 

ट्रेडिंग बुक – आमतौर पर जिस ब्रोकर के साथ आप ट्रेड करते हैं, वो इसे आपके लिए तैयार करता है। आपका ब्रोकर आपको आपका P&L स्टेटमेंट दे सकता है जिसमें साल के सभी खर्चों का ब्यौरा होता है,  साथ ही, लेजर स्टेटमेंट और साल के सभी कॉन्ट्रैक्ट नोट भी आपका ब्रोकर दे सकता है। आमतौर पर कॉन्ट्रैक्ट नोट की जरूरत नहीं होती है, इसकी जरूरत तभी पड़ती है जब इनकम टैक्स विभाग स्क्रूटनी करना चाहता हो और आपसे कॉन्ट्रैक्ट नोट मांगे। 

मैंने देश के 10 ऑनलाइन ब्रोकर के साथ ट्रेड किया है, लेजर और P&L  स्टेटमेंट में आपको सभी खर्च दिख जाते हैं यहां तक कि ब्रोकर के हिडेन या छुपे हुए शुल्क भी दिखते हैं। 

ज़ेरोधा में हमें इस बात का बहुत गर्व है कि हम बहुत ही ज्यादा ट्रांसपेरेंट यानी पारदर्शी है। ब्रोकरेज के अलावा लगने वाला हर शुल्क या चार्ज आपके P&L स्टेटमेंट में क्रेडिट और डेबिट सेगमेंट में दिखाई देता है। हम आपको 1 अप्रैल से 31 मार्च तक के बीच में सभी ओपन ऑप्शन पोजीशन की वैल्यू भी दिखाते हैं। जब आप अपने लेजर को अपने P&L स्टेटमेंट के साथ मिलाते (टेली करते) हैं तो यह काफी काम आता है।

अब हम टैक्सेशन के इस मॉड्यूल को खत्म करने के कगार पर हैं, अगले और अंतिम अध्याय में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि किस तरह के ITR फॉर्म का इस्तेमाल करना चाहिए और सैंपल ITR 4 फॉर्म का एक्सेल डाउनलोड करके भी दिखाएंगे, जिससे आप उसको आगे काम में ला सकें। 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. खातों की ऑडिट की जरूरत तब पड़ती है जब आप का टर्नओवर एक करोड़ से ऊपर हो। 
  2. खातों की ऑडिट की जरूरत पड़ती है जब टर्नओवर दो करोड़ से कम हो लेकिन मुनाफा टर्नओवर के 6% से भी कम हो और साथ ही आपकी कमाई छूट की सीमा से अधिक हो (FY 2019/ 20 तक ये सीमा 2 करोड़ रूपए थी)।
  3. खातों की ऑडिट की जरूरत तब नहीं पड़ती जब आप का टर्नओवर दो करोड़ से कम हो और आप का मुनाफा 6% से ज्यादा हो (FY 2019/ 20 तक ये सीमा 2 करोड़ रूपए थी)। 
  4. टर्नओवर आपके हर रोज के कान्ट्रैक्ट टर्नओवर पर ध्यान नहीं देता।
  5. टर्नओवर का मतलब बिजनेस टर्नओवर से होता है।
  6. जब ट्रेडिंग को बिजनेस के तौर पर दिखाया गया हो तो टर्नओवर शेयर के हिसाब से या सौदों के हिसाब से निकाला जा सकता है।
  7. सौदों के हिसाब से टर्नओवर निकालना सबसे अच्छा और नियम वाला तरीका होता है।
  8. अगर आप ट्रेडिंग को अपने बिजनेस के तौर पर दिखा रहे हैं तो आपको रिटर्न फाइल करने के लिए ITR 3  (2016 तक ITR 3) का इस्तेमाल करना होता है। 
  9. ITR 3 के लिए आपको बैलेंस शीट और प्रॉफिट और लॉस स्टेटमेंट के साथ-साथ बुक ऑफ अकाउंट को भी रखना पड़ता है। 
  10. बैलेंस शीट समीकरण (इक्वेशन) बताता है नेटवर्थ = ऐसेट लायबिलिटी 
  11. P&L स्टेटमेंट आपके आमदनी और खर्चों को दिखाता है।
  12. अगर ट्रेडिंग को बिजनेस के तौर पर दिखाना है तो दो अकाउंट बुक को बनाकर रखना पड़ता है बैंक बुक और ट्रेड बुक।
  13. बैलेंस शीट, P&L  स्टेटमेंट और बुक ऑफ एकाउंट को बनाना और हर तिमाही में उसको सुधारना एक अच्छी आदत होती है।

डिसक्लेमर – अपना रिटर्न फाइल करने के पहले किसी चार्टर्ड एकाउंटेंट की सलाह लें। ऊपर बताई गयी बातें सिर्फ जानकारी के लिए है। 

 

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निवेशक के लिए टैक्स https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a4%95-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%9f%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%b5%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a4%95-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%9f%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8/#comments Wed, 12 Feb 2020 09:51:21 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7068 4.1 – एक नजर फिर पिछले अध्याय की बात को जारी रखते हैं – बाजार में अपनी गतिविधियों को कैसे वर्गीकृत करें। आप अपने आप को निवेशक तब मान सकते हैं जब आप शेयरों को खरीदने या बेचने के बाद अपने डीमेट एकाउंट में उसकी डिलीवरी लेते हों।  2 मार्च 2016 को सुधारा गया  अंततः […]

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4.1 – एक नजर फिर

पिछले अध्याय की बात को जारी रखते हैं – बाजार में अपनी गतिविधियों को कैसे वर्गीकृत करें।

आप अपने आप को निवेशक तब मान सकते हैं जब आप शेयरों को खरीदने या बेचने के बाद अपने डीमेट एकाउंट में उसकी डिलीवरी लेते हों। 

2 मार्च 2016 को सुधारा गया 

अंततः इनकम टैक्स विभाग ने यह साफ कर दिया है कि हर व्यक्ति को यह फैसला करने का अधिकार है कि वह लिस्टेड स्टॉक में किए अपने निवेश को कैपिटल गेन के तौर पर दिखाना चाहता है या बिजनेस इनकम (ट्रेडिंग) के तौर, भले ही शेयर में निवेश की अवधि कुछ भी हो। कर दाता ने एक बार जो भी फैसला किया हो आगे आने वाले सालों में भी उसको इसी फैसले से पर बने रहना होगा। इस सर्कुलर को आप यहां पर देख सकते हैं 

इसका मतलब यह है कि 

  1. जिस स्टॉक को आपने 1 साल से ज्यादा अपने पास होल्ड किया है, उनको निवेश माना जा सकता है क्योंकि अगर आपने उनको लंबे समय तक अपने पास रखा है और शायद आपने उन पर कुछ डिविडेंड भी पाया होगा।
  2. छोटी अवधि में शेयरों की खरीद और बिक्री को भी निवेश माना जा सकता है, अगर खरीद और बिक्री के इन सौदों की संख्या कम हो।
  3. आप चाहें तो अपने इक्विटी के डिलीवरी ट्रेड को भी बिजनेस इनकम के तौर पर दिखा सकते हैं, लेकिन अगर आपने यह फैसला किया तो आने वाले सालों में भी आपको इसी फैसले पर टिके रहना होगा। 

इस अध्याय में हम निवेश पर चर्चा करने वाले हैं, इसलिए हम ऊपर दिए गए बिंदु 1 और बिंदु 2 पर ही चर्चा करेंगे. ट्रेडिंग या बिजनेस इनकम पर लगने वाले टैक्स पर हम अगले अध्याय में चर्चा करेंगे।

4.2 – लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG)

सबसे पहले तो आपको यह जानना जरूरी है कि जब आप एक ही दिन में शेयरों को खरीदते और बेचते (लॉन्ग ट्रेड) करते हैं या पहले बेचते और बाद में खरीदते (शॉर्ट ट्रेड) करते हैं तो इन्हें इंट्राडे इक्विटी या स्टॉक ट्रेड कहते हैं। दूसरी तरफ यदि आप शेयर को खरीदते हैं और उन्हें बेचने के पहले शेयर के आपके डिमैट अकाउंट में आने तक का इंतजार करते हैं तो इसे इक्विटी डिलीवरी बेस्ड सौदा या ट्रेड कहते हैं। 

डिलीवरी बेस्ड इक्विटी या म्यूचुअल फंड की खरीद और बिक्री से होने वाले किसी भी मुनाफा को कैपिटल गेन के तौर पर दिखाया जा सकता है। इन को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है 

  • लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG)इक्विटी में डिलीवरी बेस्ड निवेश जहां पर निवेश को 1 साल से अधिक तक के लिए रखा गया हो 
  • शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) – डिलीवरी बेस्ड इक्विटी में ऐसे निवेश जहां पर उनको 1 साल से कम तक होल्ड किया गया हो 

डिलीवरी बेस्ड इक्विटी और म्युचुअल फंड के लिए लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स पर अब नीचे चर्चा की जा रही है –

स्टॉक या इक्विटी पर – पहले 100000 तक 0% और उसके बाद एक लाख से ऊपर जाने पर 10% टैक्स 

ऊपर बताई गयी टैक्स की दर तभी लागू होती है जब शेयरों की खरीद या बिक्री एक मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर की गई हो और जब उन पर सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स यानी एसटीटी (STT) अदा किया गया हो। जैसा कि हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं कि LTCG के लिए इस निवेश को 1 साल तक होल्ड करना जरूरी है।

अगर यह सौदे बाजार (एक्सचेंज) के बाहर किए गए हैं जहां पर शेयर को एक इंसान से दूसरे इंसान को ट्रांसफर करने के लिए डिलीवरी इंस्ट्रक्शन बुकलेट किया गया हो यानी सौदे मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज के जरिए नहीं किए जा रहे हैं और ना ही उन पर STT दिया गया है तो ऐसे मामलों में LTCG 20% होगा चाहे वह शेयर लिस्टेड हों या नॉन लिस्टेड (लिस्टेड शेयर वह होते हैं जो किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर बेचे या खरीदे जाते हैं)। यह ध्यान दीजिए कि जो सौदे बाजार के बाहर किए जा रहे हैं यानी ऑफ मार्केट किए जा रहे हैं उन पर सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स नहीं लगता लेकिन आपको कैपिटल गेन टैक्स ज्यादा देना पड़ता है। 

यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि किसी रिश्तेदार के द्वारा उपहार के तौर पर दिए गए शेयर जिनको DIS स्लिप के जरिए दिया जा रहा हो उनको सौदा नहीं माना जाता, इसलिए उन पर कोई टैक्स नहीं लगता। यहां पर महत्वपूर्ण बात यह है कि उपहार को सौदा ना मानने के लिए यह जरूरी है कि वह रिश्तेदार (i)उस इंसान का पति या पत्नी हो (ii)भाई या बहन हो (iii) पति या पत्नी का भाई या बहन हो (iv) दोनों में से किसी भी अभिभावक का भाई या बहन हो (v) उस इंसान का कोई वंशज (vi) उसकी पति या पत्नी का कोई वंशज या फिर (ii) से (vi) तक दिए गए व्यक्ति में से किसी का पति या पत्नी हो 

इक्विटी म्युचुअल फंड के लिए – पहले 100000 तक 0% और एक लाख से ऊपर की कमाई पर 10% 

इक्विटी के डिलीवरी बेस्ड सौदों की तरह ही इक्विटी म्यूचुअल फंड में होने वाले किसी भी मुनाफे को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन माना जा सकता है, अगर वह निवेश 1 साल से ऊपर तक रखा गया है। इस निवेश पर 100000 प्रति साल की कमाई तक कोई टैक्स नहीं लगता।  किसी म्यूचुअल फंड को इक्विटी म्यूचुअल फंड मानने के लिए उस फंड का कम से कम 65% निवेश देसी कंपनियों के शेयरों में होना चाहिए 

गैर इक्विटी म्युचुअल फंड यानी डेट म्यूचुअल फंड पर – 20% की दर से कैपिटल गेन टैक्स लगता है लेकिन यहां पर इंडेक्सेशन का फायदा भी दिया जाता है 

2014 के बजट में गैर इक्विटी म्यूचुअल फंड के लिए एक बड़ा बदलाव किया गया, इक्विटी म्यूचुअल फंड में 1 साल के निवेश के मुकाबले गैर इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन मानने के लिए निवेश की अवधि को 3 साल कर दिया गया। अगर आपने अपना निवेश 3 साल के पहले बेच दिया तो इसको शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा।

4.3 – इंडेक्सेशन 

गैर इक्विटी म्यूचुअल फंड, प्रॉपर्टी, सोना या इस तरह के दूसरे निवेश में जब आपका लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन निकाला जाता है तो आपको इंडेक्सेशन का फायदा मिलता है और उसके बाद ही आपका कुल कैपिटल गेन तय होता है। 

हम सब जानते हैं कि हम जो भी मुनाफा कमाते हैं उसका कुछ हिस्सा महंगाई दर यानी मुद्रास्फीति की वजह से कम हो जाता है। ये बात ऊपर बताए गए किसी भी निवेश पर भी लागू होती है। अगर आपको नहीं पता है कि इन्फ्लेशन यानी मुद्रास्फीति क्या होती है तो इसको एक सीधे उदाहरण से समझाने की कोशिश करता हूं – 

अगर मिठाई का कोई डब्बा पिछले साल 100 का था तो इस बात की संभावना है कि इस साल वही डिब्बा 110 में बिक रहा होगा। कीमत में यह बदलाव इन्फ्लेशन या मुद्रास्फीति की वजह से आता है। इस उदाहरण में मुद्रास्फीति 10% की हुई क्योंकि वही वस्तु खरीदने के लिए इस साल आपको 10% ज्यादा रकम देनी पड़ी। तो मुद्रास्फीति वह दर हुई जिस दर से आपके पैसे के खरीदने की क्षमता कम होती है। 

अगर भारत में मुद्रास्फीति की दर 6.5% है तो आपने डेट म्यूचुअल फंड में जो भी निवेश किया होगा उसके लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन का एक बड़ा हिस्सा 3 साल बाद इन्फ्लेशन की वजह से आपको नहीं मिल रहा होगा। 

उदाहरण के लिए मान लीजिए आप ने 100000 एक डेट फंड में लगाया और तीन साल बाद आपको 130000 मिले। इस तरह से 3 साल में आपने 30000 का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन किया। लेकिन मान लीजिए इसी अवधि में मुद्रास्फीति की वजह से आपकी पैसे की खरीद क्षमता 18000 कम हो गई, तो क्या ऐसे में आपको पूरे 30000 पर टैक्स देना चाहिए? आपको भी लग रहा होगा कि यह सही नहीं है।

इंडेक्सेशन वह एक सीधा और सरल तरीका है जिससे इस बात पर पता लगाया जाता है कि किसी एसेट की बिक्री से कितनी कमाई हुई (गेन) है इस कमाई का पता लगाने के लिए उस एसेट की बिक्री से हुए से मिली रकम पर मुद्रास्फीति का असर देखा जाता है। इसके लिए कॉस्ट ऑफ इन्फ्लेशन इंडेक्स यानी CII  का इस्तेमाल किया जाता है। जिसे आप इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट पर पा सकते हैं। 

इसको डेट म्यूचुअल फंड खरीद के एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि – 

डेट म्यूचुअल फंड में खरीद कीमत  100000 

खरीद का साल  2005 

बिक्री कीमत   300000 

बिक्री का साल   2015 

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन   200000 

बिना इंडेक्सेशन कि मुझे इस 200000 के कैपिटल गेन पर 20% की दर से टैक्स देना होगा जो कि 40000 होगा। 

लेकिन हम इस लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन को इंडेक्सेशन के बाद कम कर सकते हैं। 

इंडेक्स्ड खरीद कीमत निकालने के लिए हमें कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स (CII) का इस्तेमाल करना होगा। नीचे दिए गए चार्ट में इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट पर 2019 – 20 तक के कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स को दिखाया गया है। 2001- 2002 के पहले के लिए CII के इस डेटा का इस्तेमाल करें।

वित्तीय वर्ष CII
2001-02 100
2002-03 105
2003-04 109
2004-05 113
2005-06 117
2006-07 122
2007-08 129
2008-09 137
2009-10 148
2010-11 167
2011-12 184
2012-13 200
2013-14 220
2014-15 240
2015-16 254
2016-17 264
2017-18 272
2018-19 280
2019-20 289

अब ऊपर के अपने उदाहरण पर लौटते हैं 

खरीद के साल (2005) में CII – 117 

बिक्री के साल (2015) में सीआईआई  – 240 

इंडेक्स्ड खरीद कीमत = खरीद कीमत * (बिक्री के साल का CII /  खरीद के साल का CII) 

तो 

इंडेक्स्ड खरीद कीमत = ₹100000 *(240 /117

= ₹ 205128.21 

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन = बिक्री कीमत इंडेक्स्ड खरीद कीमत 

इसलिए हमारे उदाहरण में, 

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन = ₹300000 205128.21 

= ₹ 94871.79 

तो अब हमें 94871.79 का 20% टैक्स के तौर पर देना होगा जो कि 18974 रुपए होगा ये 40000 के उस टैक्स से काफी कम है जो बिना इंडेक्सेशन के देना पड़ता। 

जैसा कि मैंने पहले कहा है इंडेक्स्ड खरीद कीमत निकालने के लिए ऊपर दिए गए तरीके का इस्तेमाल आप उस हर निवेश में कर सकते हैं जिसमें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन देना पड़ता है जैसे कि डेट फंड, रियल एस्टेट, सोना और ऐसा कुछ भी। आप इनकम टैक्स विभाग के कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स यूटिलिटी का इस्तेमाल करके अपनी खरीद की इंडेक्स्ड खरीद वैल्यू निकाल सकते हैं। 

यहां पर एक मजेदार बात यह है कि 20% टैक्स पर इंडेक्सेशन लगाने के बाद इक्विटी डेट फंड या दूसरे कोई भी निवेश मैं आमतौर पर आपको कोई टैक्स नहीं देना पड़ता क्योंकि आमतौर पर इस तरह के डेट फंड का रिटर्न 8 से 10% ही होता है और भारत में मुद्रास्फीति यानी इंन्फ्लेशन भी इसी के आसपास होता है, तो इंडेक्सेशन लगाने के बाद आपके लिए टैक्स की गुंजाइश कम बनती है।

4.4 – शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG)

अब हम इक्विटी और म्यूचुअल फंड पर लगने वाले शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स पर चर्चा करेंगेः

स्टॉक या इक्विटी पर- मुनाफे यानी गेन पर 15% का शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है 

अगर खरीद और बिक्री किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर की गई है और इस पर STT दिया गया है तो STCG 15% लगता है। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स 1 दिन से ज्यादा और 12 महीने से कम के निवेश पर लगता है। अगर यह खरीद बिक्री ऑफ मार्केट ट्रांसफरके जरिए की गई है जहां शेयर को एक इंसान से दूसरे इंसान तक डिलीवरी इंस्ट्रक्शन बुकलेट के द्वारा किया गया हो (यानी एक्सचेंज पर ना किया गया हो)और जहां इस पर STT भी नहीं दिया गया हो, तो ऐसे में शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स आपकी टैक्स स्लैब के अनुसार देना होता है। उदाहरण के लिए अगर आप 1000000 हर साल का वेतन पा रहे हैं तो आप 30% के टैक्स स्लैब में आएंगे और इसलिए आपका शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन भी 30% की दर से लगेगा। साथ ही यह भी याद रखिए कि शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स तभी लगता है जब आपकी आमदनी दो 2.5 लाख रुपए के सालाना टैक्स स्लैब से ऊपर हो। मतलब अगर आपकी कोई दूसरी आमदनी नहीं है आपकe 100000 का STCG है तो आपको 15% की दर से लगने वाला ये टैक्स नहीं देना होगा।

इक्विटी म्यूचुअल फंड के लिए: कमाई यानी गेन पर 15% का टैक्स देना होता है 

इक्विटी के डिलीवरी बेस सौदों की तरह ही इक्विटी म्यूचुअल फंड में ऐसे निवेश जिनको आपने 1 साल से कम तक अपने पास रखा है उन पर होने वाली कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स माना जाता है और उन पर 15% की दर से टैक्स लगता है। याद रखिए कि एक फंड को इक्विटी म्युचुअल फंड तभी माना जाता है जबकि उसका 65% निवेश घरेलू यानी भारतीय कंपनियों में हो।

गैर इक्विटी म्यूचुअल फंड यानी डेट म्यूचुअल फंड में: आपके टैक्स स्लैब के मुताबिक टैक्स 

2014 के बजट में सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए जो कि गैर इक्विटी म्यूचुअल फंड पर लागू होते हैं। आपको इस तरह के म्यूचल फंड में कम से कम 3 साल तक निवेशित रहना होगा और तभी आपको लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन लगेगा, 3 साल से कम तक के निवेश पर होने वाली किसी भी कमाई पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स के लिए इस मुनाफे को आप की कुल आमदनी में जोड़ दिया जाता है और उसके बाद आपके टैक्स स्लैब के हिसाब से आप पर टैक्स लगता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर आप 800000 हर साल कमा रहे हैं और आपको 100000 का शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन हुआ है तो आपको अपनी कुल कमाई यानी 900000 पर 20% की दर से टैक्स देना होगा। इसका मतलब यह हुआ कि इस उदाहरण में आपको 20% का शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा।

4.5 – होल्ड करने की अवधि 

एक निवेशक के लिए शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन में टैक्स का अंतर काफी ज्यादा होता है। अगर आप किसी स्टाफ को 360 दिन तक रखते हैं और फिर बेच देते हैं, तो उससे होने वाली कमाई पर आपको 15% का शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना पड़ेगा। लेकिन अगर आप उसी स्टॉक को 5 दिन और अपने पास रख लेते हैं यानी 365 दिन रख लेते हैं तो आपको उस स्टॉक की बिक्री से होने वाली कमाई पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा क्योंकि अब यह लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन बन चुका है। 

इसलिए यह जरूरी है कि निवेशक इस बात पर नजर रखें कि उसने अपने खरीदे हुए शेयर को कितने दिनों तक अपने पास रखा है। अगर आपने एक ही स्टॉक को बार-बार खरीदा और बेचा है तो स्टॉक की आपकी होल्डिंग अवधि निकालने के लिए FIFO (First In First Out) तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। इसको ऐसे समझिए, मान लीजिए 10 अप्रैल 2014 को आपने रिलायंस के 100 शेयर 800 प्रति शेयर के भाव पर खरीदे और फिर 1 जून 2014 को 100 और शेयर 820 प्रति शेयर के भाव पर खरीदे। 

1 साल बाद 1 मई 2015 को आपने इनमें से 150 शेयर को 920 पर बेच दिया। 

FIFO नियम के अनुसार 10 अप्रैल 2014 को खरीदे गए 100 शेयर और 1 जून 2014 को खरीदे गए 100 शेयरों में से 50 को बेचा हुआ माना जाएगा। 

इसलिए, 10 अप्रैल 2014 को खरीदे गए शेयरों पर होने वाली कमाई = 120 (920 -800) * 100 = ₹12000 (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन और इसलिए जीरो टैक्स लगेगा) 

1 जून को खरीदे गए शेयरों पर होने वाला गेन = 100(920-800) * 50 = 5000 (शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और इसलिए 15% टैक्स लगेगा)

अगर आप जेरोधा पर ट्रेडिंग करते हैं तो हमारे बैक ऑफिस असिस्टेंट Q में आपके होल्डिंग पेज पर आपको अपने खरीदे गए हर शेयर के होल्डिंग अवधि की जानकारी मिल सकती है। यदि आप शेयर को कई बार खरीद और बेच चुके हैं तो भी आपको अलग अलग होल्डिंग अवधि की  जानकारी मिल जाएगी। एक नजर डालिए कि यह जानकारी कैसी दिखती है-

 हाईलाइट कर के दिखाया गया है कि 

  1. डे काउंटर (यानी हेल्डिंग के दिन) 
  2. हरे रंग के सही के निशान से वह होल्डिंग दिखाई गई है जो 365 दिन से ज्यादा है जिसको बेचने पर कोई अतिरिक्त टैक्स नहीं लगेगा 
  3. अगर आपने किसी एक होल्डिंग को कई सौदों में मिलाकर खरीदा है तो उनका अलग-अलग विवरण भी दिख जाएगा 

जेरोधा Q के अलावा इक्विटी टैक्स P&L अकेली ऐसी रिपोर्ट है जो कि आपके शॉर्ट टर्म और लांग टर्म कैपिटल गेन को अलग-अलग करके दिखाती है

4.6 – सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (STT), एडवांस टैक्स और अन्य बातें

सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स वो टैक्स होता है जो भारत सरकार मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर होने वाले सौदों पर लगाती है। यह टैक्स उन सौदों पर नहीं लगता जो कि ऑफ मार्केट होते हैं यानी जिनमें शेयर एक डिमैट अकाउंट से दूसरे डिमैट अकाउंट में डिलीवरी इंस्ट्रक्शन स्लिप के जरिए ट्रांसफर जाते हैं। लेकिन जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि इस तरह के ऑफ मार्केट सौदे पर कैपिटल गेन टैक्स ज्यादा लगता है। अभी STT की मौजूदा दर डिलीवरी बेस्ड इक्विटी सौदों पर 0.1% की है। 

कैपिटल गेन टैक्स की गणना करते समय STT को इक्विटी या स्टॉक की खरीद के खर्चों में शामिल नहीं किया जा सकता जबकि ब्रोकरेज और दूसरे शुल्क, जैसे एक्सचेंज का शुल्क, सेबी का शुल्क, स्टाम्प ड्यूटी, सर्विस टैक्स आदि को शेयर की कीमत में शामिल किया जा सकता है। इस तरह से आप इन खर्चों का फायदा उठाकर टैक्स देनदारी कम कर सकते हैं।

शार्ट टर्म कैपिटल गेन के बाद एडवांस टैक्स 

बिजनेस इनकम वाला हर टैक्स पेयर यानी कर दाता और वे टैक्स पेयर जिसने शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पा लिया है यानी मुनाफा बुक कर लिया है उसको 15 जून, 15 सितंबर, 15 दिसंबर और 15 मार्च को एडवांस टैक्स देना होता है। एडवांस टैक्स का भुगतान इस अनुमान के आधार पर किया जाता है कि साल के अंत तक आपको कितनी बिजनेस आमदनी और कैपिटल गेन से आमदनी हो सकती है। एक व्यक्ति के तौर पर आपको अपनी अनुमानित आमदनी का 15 परसेंट टैक्स के तौर 15 जून तक, अपने कुल टैक्स का 45% हिस्सा 15 सितंबर तक, 75% हिस्स 15 दिसंबर तक और 100% टैक्स 15 मार्च तक एडवांस टैक्स के तौर पर देना होता है। यह टैक्स ना देने पर आपको 12% की सालाना दर से पेनाल्टी देनी पड़ सकती है।

जब आप शेयर बाजार में निवेश करते हैं तो कुछ समय के फायदे से या कुछ समय के शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन के आधार पर यह बता पाना मुश्किल होता है कि पूरे साल के लिए आमदनी कितनी होगी। इस आधार पर कैपिटल गेन निकालना एक मुश्किल काम हो सकता है। इसलिए अगर आपने कुछ शेयर बेचे हैं और अगर उन पर मुनाफा हुआ है तो उस कमाई पर कैपिटल गेन टैक्स एडवांस टैक्स के तौर पर दे देना एक बेहतर तरीका हो सकता है। क्योंकि अगर आपने अपने मुनाफे से ज्यादा एडवांस टैक्स दे दिया तो बाद में आप उस टैक्स के लिए रिफंड क्लेम कर सकते हैं। आजकल टैक्स रिफंड काफी जल्दी आ जाता है क्योंकि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट इस पर काफी ज्यादा ध्यान देता है। 

आप अपने एडवांटेक्स का ऑनलाइन पेमेंट इस चालान पर क्लिक करके कर सकते हैं 

कौन सा ITR फॉर्म इस्तेमाल करें 

आप कैपिटल गेन को दिखाने के लिए ITR 2  या ITR 3 का इस्तेमाल कर सकते हैं 

जब आपकी बिजनेस इनकम और कैपिटल गेन हो तो ITR 3 (साल 2017 तक ITR 4)

जब आपकी वेतन और कैपिटल गेन हो तो ITR 2

4.7 – शॉर्ट और लॉन्ग टर्म कैपिटल लॉस 

हम शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर 15% और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 0% टैक्स देते हैं, लेकिन अगर किसी साल में हमें गेन की जगह अगर लॉस हो तो क्या होगा? 

शॉर्ट टर्म कैपिटल लॉस को अगर आपके इनकम टैक्स रिटर्न में सही समय पर फाइल किया जाए तो आप इसको 8 साल तक लगातार कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं और इसको उन सालों में हुए फायदे के सामने सेट ऑफ किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए इस साल आपने 100000 का शॉर्ट टर्म कैपिटल लॉस किया आप इसको अगले 8 साल तक कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं। अब अगर अगले साल आपने 50000 का शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन किया तो आपको उस कमाई पर 15 परसेंट टैक्स नहीं देना पड़ेगा क्योंकि आप उसे पिछले साल के 100000 के लॉस के सामने सेट ऑफ कर सकते हैं। ये करने के बाद अब आपके पास 50000 का लॉस अभी भी बचेगा जिसको कि आप अगले 7 साल तक कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं। 

लॉन्ग टर्म कैपिटल लॉस को भी लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन से सेट ऑफ किया जा सकता है।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. एलटीसीजी/LTCG: इक्विटी, इक्विटी म्यूचुअल फंड पहले 100000 तक 0% और एक लाख से ऊपर की कमाई पर 10% , डेट म्यूचुअल फंड: इंडेक्सेशन के बाद 20% 
  2. STCG : इक्विटी 15%, इक्विटी म्यूचुअल फंड 15%, डेट म्यूचुअल फंड टैक्स देने वाले के टैक्स स्लैब के आधार पर 
  3. आप इंडेक्स्ड खरीद मूल्य का फायदा उठाने के लिए कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स का इस्तेमाल कर सकते हैं 
  4. इंडेक्स खरीद कीमत=  इंडेक्स्ड खरीद मूल्य * (बिक्री के साल का CII /  खरीद के साल का CII) 
  5. अगर आपने एक ही शेयर को कई बार खरीदा और बेचा है तो इसके लिए FIFO तरीके का इस्तेमाल करके आप अपने होल्डिंग पीरियड निकाल सकते हैं और कैपिटल गेन भी निकाल सकते हैं 
  6. STT सरकार को दिया जाता है इसलिए इसका इस्तेमाल अपने निवेश के खर्चों के लिए के तौर पर नहीं किया जा सकता

पढ़ कर जानकारी बढ़ाइए:

Livemint: If you pay STT STCG is 15% otherwise as per tax slab

Income tax India website – Cost inflation index utility

Taxguru – Taxation of income & capital gains for mutual funds

HDFC- Debt mutual funds scenario post finance bill (no2), 2014

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मूलभूत/बुनियादी बातें https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ae%e0%a5%82%e0%a4%b2%e0%a4%ad%e0%a5%82%e0%a4%a4-%e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%82/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ae%e0%a5%82%e0%a4%b2%e0%a4%ad%e0%a5%82%e0%a4%a4-%e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%82/#comments Wed, 12 Feb 2020 09:50:01 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7048 2.1 – संदर्भ आयकर विभाग यानी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को लेकर जो डर हमारे दिमाग में बना रहता है उससे बचने का एक ही तरीका है कि हम इनकम टैक्स से जुड़े नियम और कानून के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करें। भारत में इनकम टैक्स की दरों में 70 के दशक से […]

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2.1 – संदर्भ

आयकर विभाग यानी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को लेकर जो डर हमारे दिमाग में बना रहता है उससे बचने का एक ही तरीका है कि हम इनकम टैक्स से जुड़े नियम और कानून के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करें। भारत में इनकम टैक्स की दरों में 70 के दशक से अभी तक काफी कमी आई है। 70 के दशक में जहाँ ये 90 परसेंट तक हुआ करती थी, अब 2.5 लाख तक की सालाना कमाई पर कोई टैक्स नहीं देना होता है। लेकिन इनकम टैक्स फाइल करने में बेपरवाही और टैक्स न भरने की आदत आज भी बनी हुई है। 

हमारा इनकम टैक्स डिपार्टमेंट लगातार अपने आप को अपग्रेड कर रहा है और ऐसे में रिटर्न नहीं फाइल करना, गलत फाइल करना, और रिटर्न फाइल करते वक्त ज़रूरी जानकारी छिपा लेना जैसी हरकतों के अंजाम खतरनाक साबित हो सकते हैं। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास आपके सभी बैंक डीटेल्स होते हैं साथ ही वो आपके कैपिटल मार्केट में किए गए सभी ट्रांजैक्शन की भी जानकारी रखते हैं क्योंकि आपके सारे निवेश PAN (परमानेंट अकाउंट नंबर) से जुड़े हुए होते हैं। अब धीरे-धीरे आधार नंबर भी हर चीज़ से जुड़ता जा रहा है, तो वो दिन दूर नहीं जब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आपकी कमाई और खर्चे का कंसोलिडेटेड स्टेटमेंट आपको भेजने लगेगा, ठीक वैसे ही जैसे NSDL/CSDL आपको डीमैट अकाउंट का कंसोलिडेटेड स्टेटमेंट भेजता है। 

नीचे दिए गए नोटिस को देखें, जो कि एक क्लायंट को भेजा गया है 2015 में। उसने फाइनेंशियल साल 2012/13 में कमोडिटी एक्सचेंज में किए गए सौदों को डिक्लेयर नहीं किया था। नोटिस में उससे इन सौदों को ना डिक्लेयर करने के पीछे की वजह बताने को कहा गया है।.इस लिंक पर क्लिक करके आप उन कोड को देख सकते हैं जिनके तहत इनकम टैक्स विभाग आपको ये नोटिस भेजता है।  Check this link that has a list of various codes in which these notices are sent by the IT department.
हो सकता है कि टैक्स चोरी का इरादा लोगों का ना हो लेकिन बहुत सारे लोग और कई चार्टर्ड अकाउंटेट भी बाज़ार में किए गए निवेश और ट्रेडिंग से जुड़े टैक्सेशन को पूरे तरीके से नहीं समझ पाते हैं, और इसलिए गलतियां कर बैठते हैं। हमने कुछ साल पहले Z-Connect पर टैक्सेशन सिम्प्लीफाइड नाम का एक ब्लॉग डाला था जिसमें बाज़ार के कारोबारियों के लिए टैक्सेशन के मुद्दे को समझाने की कोशिश की गई थी। पिछले 2 साल में उस ब्लॉग पर हमें हज़ारों सवाल मिले हैं। उनका जवाब देते हुए हमें समझ में आया कि टैक्सेशन के मुद्दे को और अच्छे से समझाने की ज़रूरत है और इसलिए इस मॉड्यूल को तैयार किया गया। 

अगर आप सिर्फ स्टॉक या म्युचुअल फंड में निवेश करते हैं, तो टैक्स रिटर्न फाइल करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता। लेकिन जैसे ही आप इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं या फिर फाइनेंशियल डेरिवेटिव्स जैसे फ्यूचर्स और ऑप्शन्स में ट्रेड करने लगते हैं, रिटर्न फाइल करना मुश्किल हो जाता है। 

इस मॉड्यूल में हम सभी ज़रूरी सिद्धान्तों को छोटे-छोटे आसानी से समझ में आने वाले अध्यायों में बांटेंगे और कोशिश करेंगे कि ऐसे तकनीकी शब्दों का इस्तेमाल कम से कम करे जो कि एक CA या टैक्स कंसल्टेंट करता है। इस मॉड्यूल में हम निम्न मुद्दों पर चर्चा करेंगे। 

  1. परिचय
  2. ज़रूरी बुनियादी बातें
  3. बाज़ार के आपके कारोबार को अलग-अलग हिस्सों में बांटना
  4. निवेशक के लिए टैक्स 
  5. ट्रेडर के लिए टैक्स
  6. टर्नओवर, बैलेंसशीट और P&L 
  7. ITR फॉर्म

2.2 इनकम टैक्स क्या है? 

भारत सरकार हर इंसान की आमदनी पर एक टैक्स लगाती है, जिसे इनकम टैक्स कहते हैं। इससे जुडे नियम कानून, इनकम टैक्स एक्ट 1961 पर आधारित होते हैं। सरल शब्दों में कहें तो आप अपनी आमदनी का एक हिस्सा भारत सरकार को देते हैं। 

मैं टैक्स क्यों भरूं?

भारत में सोशल सिक्योरिटी और मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं नहीं दी जाती जैसे कि कई विकसित देशों में दी जाती है। लेकिन सरकार को और बहुत सारे काम करने होते हैं जैसे सरकारी अस्पताल, शिक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास। इन सबके लिए पैसों की ज़रूरत होती है और टैक्स से ही इस रकम को जुटाया जाता है।

इनकम टैक्स किसे देना होता है?

हर वो इंसान जो एक निश्चित सीमा से अधिक कमाता है, उसे इनकम टैक्स देना होता है। ये सीमा सरकार तय करती है। इनकम टैक्स केवल इंसानों को ही नहीं बल्कि कंपनियों और संस्थानों को भी देना पड़ता है। 

भारत की 130 करोड़ जनता में सिर्फ 5 प्रतिशत जनसंख्या ही इनकम टैक्स देती है जबकि USA जैसे विकसित देश में 45 परसेंट लोग टैक्स देते हैं। इसकी एक वजह तो ये है कि बहुत सारे भारतीय इतना कमाते ही नहीं है कि उन्हें टैक्स देना पड़े। लेकिन एक और वजह ये है कि हमारे देश में टैक्स कल्चर ही नहीं है। 

आप हर वित्त वर्ष में जितनी कमाई करते हैं उसके आधार पर आपको टैक्स देना होता है। भारत में वित्त वर्ष 1 अप्रैल को शुरू होता है और 31 मार्च को खत्म होता है। हर साल को या तो फाइनेंशियल ईयर यानी वित्त वर्ष के तौर पर देखा जाता है या फिर असेसमेंट ईयर यानी आकलन वर्ष के तौर पर।

वित्त वर्ष यानि FY ये बताता है कि आमदानी किस साल में हुई और किसके लिए आप टैक्स दे रहे हैं। इस तरह से FY2019-20 का मतलब है 1 अप्रैल 2019 से शुरू होने वाला साल जो 31 मार्च 2020 को खत्म होगा। 

AY यानी असेसमेंट ईयर (आकलन वर्ष) उस साल को बताता है जब आप इस टैक्स को फाइल करेंगे। मतलब AY2020-21वो साल है जिसमें आप FY2019-20 की आमदनी पर टैक्स फाइल करेंगे। मतलब ये हुआ कि AY2020-21 और FY2019-20 एक ही हैं। तो आप AY2020-21 वाले ITR को इस्तेमाल करेंगे ताकि आप अप्रैल 1 2019 से 31 मार्च 2020 तक के वित्त वर्ष की आमदनी पर टैक्स दे सकें। 

2.3 वित्त वर्ष 2017-18 के लिए भारत में इनकम टैक्स स्लैब

सभी भारतियों को नीचे दिए गए टैक्स स्लैब के आधार पर अपनी हर साल की आमदनी पर टैक्स देना होता है। अगर आप नौकरी करते हैं तो आपको नौकरी देने वाला आपकी तरफ से पहले ही टैक्स सरकार को दे देता है और आपको फॉर्म 16 जारी करता है जो कि इस बात की जानकारी देता है कि आपका टैक्स अदा किया जा चुका है। लेकिन आपको नौकरी देने वाला आपके आमदनी के दूसरे स्त्रोतों को जैसे बैंक से मिला ब्याज, कैपिटल गेन्स यानी पूंजीगत लाभ, किराए से आने वाली आमदनी और दूसरी चीजों को नहीं जानता। इसलिए आपको फॉर्म 16 का इस्तेमाल करने के साथ आपने बाकी सभी आमदनी को जोड़ना होता है और जो भी अतिरिक्त टैक्स हो, उसे इनकम टैक्स रिटर्न में दिखाना और अदा करना होता है। एक व्यक्ति के लिए (FY20/21) टैक्स स्लैब नीचे दिखाई गई है। 

व्यक्ति (60 साल से कम आयु)

आय सीमा टैक्स रेट/कर दर/आयकर की दरें
0-2.5 लाख रुपये शून्य
2.5 लाख- 5 लाख रुपये 2.5 लाख रुपये के ऊपर की रकम पर 5%
5 लाख -10 लाख रुपये 12,500 रुपये+ 5 लाख से ऊपर की रकम का 20%
10 लाख से ऊपर 112,500 रुपये+ 10 लाख से ऊपर की रकम का 30%

सरचार्ज: इनकम टैक्स का 10% अगर आय 50 लाख से 1 करोड़ के बीच है। 15% अगर आय 1 करोड़ से ज्यादा है।

सीनियर सिटीजन/वरिष्ठ नागरिक (60 साल से 80 साल की आयु)

आय सीमा टैक्स रेट/कर दर/आयकर की दरें
0 – 3 लाख रुपये शून्य
3 लाख- 5 लाख रुपये 3 लाख रुपये के ऊपर की रकम पर 5%
5 लाख -10 लाख रुपये 10,000 रुपये+ 5 लाख से ऊपर की रकम का 20%
10 लाख से ऊपर 110,000 रुपये+ 10 लाख से ऊपर की रकम का 30%

अति वरिष्ठ नागरिक/ सुपर सीनियर सिटीजन (80 साल और उसके ऊपर की आयु)

आय सीमा टैक्स रेट/कर दर/आयकर की दरें
0 – 5 लाख रुपये शून्य
5 लाख -10 लाख रुपये 5 लाख से ऊपर की रकम का 20%
10 लाख से ऊपर 100,000 रुपये+ 10 लाख से ऊपर की रकम का 30%

यदि कुल आय 2.5 से 5 लाख रुपये के बीच है, तो आप 5% कर छूट और प्रभावी रूप से शून्य कर का भुगतान करने का दावा कर सकते हैं।

उपरोक्त सभी आयु समूहों के लिए अधिभार: आयकर का 10% यदि आय 50 करोड़ रुपये से 1 करोड़ रुपये के बीच है। 15% अगर 1 करोड़ रुपये से 2 करोड़ रुपये के बीच आय। 25% अगर 2 करोड़ रुपये से 5 करोड़ रुपये के बीच आय। 5% से अधिक होने पर 37%।

बजट 2020 ने एक नई कर व्यवस्था शुरू की है, जहां करदाता के पास विभिन्न कटौतियों का दावा करने वाले उपरोक्त स्लैब के अनुसार करों का भुगतान करने का विकल्प होता है (उदाहरण के लिए, ईएलएसएस में निवेश, मकान किराया भत्ता, आदि) या सभी कटौती और विकल्प को छोड़ दें। नीचे दिए गए टैक्स स्लैब के लिए। ऊपर लागू अधिभार।

0 – Rs 2.5lks NIL
Rs 2.5lks – Rs 5lks राशि का 5% जिसके द्वारा आय 2.5lks से अधिक है।
Rs 5lks – Rs 7.5lks
12,500 + 10% राशि जिसके द्वारा आय 5l ks से अधिक है
Rs 7.5lks – Rs 10lks Rs. 37,500 + 15% राशि जिसके द्वारा आय 7.5 lks से अधिक है
Rs 10lks- Rs 12.5lks Rs. 75,000 + 20% राशि जिसके द्वारा आय 10 lks से अधिक है
Rs 12.5lks- Rs 15lks Rs. 1,25,000 + 25% राशि जिसके द्वारा आय 12.5 lks से अधिक है
15lks से अधिक Rs. 187,500 + 30% राशि जिसके द्वारा आय 15 lks से अधिक है

 

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. सही इनकम टैक्स फाइल करना हर भारतीय का दायित्व है। 
  2. आयकर विभाग के पास बाज़ार में आपके किए गए हर कारोबार की जानकारी होती है। 
  3. केवल 5 प्रतिशत भारतीय ही टैक्स देते हैं। 
  4. वित्त वर्ष यानी FY वो वर्ष है जिसमें आमदनी हुई है। असेसमेंट साल-AY वो साल है जिसमें आप इस आमदनी पर टैक्स चुकाते हैं। 
  5. वित्त वर्ष 1 अप्रैल को शुरू होता है और अगले साल की 31 मार्च को खत्म होता है। 
  6. आपका इनकम टैक्स कितना होगा ये तय करने के लिए इनकम टैक्स स्लैब बनाए गए हैं। 
  7. आपकी उम्र के हिसाब से इनकम टैक्स स्लैब में भी बदलाव होता है। 

 

डिसक्लेमर– अपना रिटर्न फाइल करने के पहले एक चार्टर्ड अकाउंटेट की सलाह ज़रूर लें। ऊपर दी गई जानकारियां सिर्फ आपको समझाने के लिए हैं। 

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आमतौर पर ऐसे चार्टर्ड अकाउंटेंट को खोजना मुश्किल होता है, जिसे टैक्स के साथ-साथ बाज़ार की भी समझ हो। मुझे आज भी याद है, करीब 6 साल पहले मेरी एक ऐसे ही एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से मुलाकात हुई थी। मेरे दोस्त के घर हो रही एक पार्टी में इस चार्टर्ड अकाउंटेंट ने मुझसे पूछा कि मैं क्या करता हूं, तो मैंने बताया कि मैं शेयर ट्रेडिंग करता हूं। इसके बाद हमारी बातचीत का सिलसिला काफी लंबा चला। इस दौरान उसने मुझसे कुछ सवाल पूछे। 

  1. मैं बाज़ार में होने वाले नफा-नुकसान को कैसे डेक्लेयर करता हूं?
  2. मैं सट्टा व्यवसाय (Speculative Business) से होने वाली आमदनी और गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी को अलग कैसे करता हूं?
  3. अपने कारोबार के बहीखाता यानी अकाउंट को कैसे तैयार करता हूं?

मेरे पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था, क्योंकि मुझे पता ही नहीं था। 

मैं कुछ भी सीखने के लिए हमेशा तैयार रहता हूं, बाज़ार और बाज़ार की ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी को सीखने के लिए मैंने काफी समय लगाया है। लेकिन टैक्सेशन और बाज़ार के कारोबारियों के लिए इसके महत्व को सीखने के लिए मैंने कुछ भी नहीं किया था। 

शायद मुझे इस बात से डर लगता था कि जब मैं टैक्सेशन को सीखना शुरू करूंगा तो मुझे बहुत सारे कठिन शब्दों, बहुत सारे सेक्शन, सब-सेक्शन, सर्कुलर को देखना पड़ेगा। मैंने एक बार इन चीजों को सीखने की कोशिश की थी और इसके लिए अपने ब्रोकर के ऑफिस भी गया था। वहाँ जब मैं अपने डीलर से मिला और उससे टैक्सेशन पर सवाल किए तो उसने कहा “अरे क्यों परेशान हो रहे हो? लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स ज़ीरो परसेंट और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स 15 परसेंट है, बस! इतनी सी ही बात है” 

मुझे पता था कि ऐसा नहीं है। मैंने कोशिश की कि किसी ऐसे इंसान से मिल सकूं जिसे इस बारे में ज्यादा जानकारी हो ताकि मैं इस विषय को समझ सकूं। सौभाग्य से मैं उस स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी के क्षेत्रीय प्रमुख से मिल सका, मैंने बाज़ार के कारोबारियों और टैक्सेशन से जुड़े कई सवाल उससे पूछें लेकिन दुर्भाग्यवश उसका भी जवाब वही था जो मेरे डीलर ने मुझे बताया था। 

इसके बाद एक चार्टर्ड अकाउंटेंट के पास गया और उसने भी वही बात कही जो डीलर ने कही थी, बस ये कहते वक्त उसने कुछ बड़े-बड़े शब्दों का इस्तेमाल कर दिया जिससे मैं और भी ज्यादा उलझ गया। उस समय तक इस बारे में किसी ने न तो ब्लॉग किया था और ना ही इस बारे में कुछ अच्छे लेख लिखे गए थे। नतीजा ये हुआ कि मैं कुछ सीख नहीं पाया। 

जब मैं पिछली घटनाओं पर नज़र डालता हूं तो मुझे लगता है कि अगर मुझे इस विषय में ज्यादा जानकारी होती, तो मुझे कई तरीके का फायदा हो सकता था। 

मुझे विश्वास हो कि बहुत सारे ट्रेडर और निवेशक भी इसी स्थिति से गुजरते होंगे। जब हमने कुछ साल पहले टैक्स पर ब्लॉग लिखा तो हमारे पास करीब 2000 सवाल आएं। इसके अलावा बहुत सारे ईमेल भी मिलें जो कि इसी संदर्भ में सवाल से जुड़े थे। साफ था कि लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। 

इसी को ध्यान में रखते हुए हमने ज़ेरोधा वार्सिटी में ये नया मॉड्यूल डाला है और इसका नाम रखा है- बाज़ार और टैक्सेशन। इस मॉड्यूल में हम उन सब बातों पर चर्चा करेंगे जो टैक्सेशन और बाज़ार से जुड़ी हुई हैं, चाहे वो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स की बात हो या आपके इंट्राडे ट्रेड को सट्टा व्यवसाय की आमदनी के तौर पर रखने की बात हो या सेक्शन 44AD और सेक्शन 44ADA – सब बातों को यहां आसान शब्दों में एक जगह समझाया जाएगा। 

इस पूरे मॉड्यूल को नितिन ने खुद लिखा है। इसका मतलब है कि आपको टैक्सेशन के बारे में ट्रेडर/निवेशक के नज़रिए से सीखने को मिलेगा, किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट के नज़रिए से नहीं। 

मैं अगर जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो मैं इस बात का अनुमान भी नहीं लगा पाता हूं कि कोई ब्रोकर अपने ग्राहकों को इतनी महत्वपूर्ण जानकारी देगा। वास्तव में स्टॉक ब्रोकर जानकारी को अपने पास ही रखते हैं और केवल चुनिंदा ग्राहकों को ही समझाते हैं। अगर आप बाज़ार में ट्रेड करते हैं तो आपको इस बात का एहसास ज़रूर होगा। भारत में स्टॉक ब्रोकर आमतौर पर महंगे तो होते ही हैं, अपने ग्राहकों के साथ इसी तरीके से पेश भी आते हैं। 

धीरे-धीरे स्टॉक ब्रोकिंग इंडस्ट्री को ये बात समझ में आने लगी है कि ग्राहको बड़ा हो या छोटा, उसको अच्छी सर्विस देना ज़रूरी है। मुझे लगता है कि इस बदलाव की एक बड़ी वजह ज़ेरोधा ही है। चाहे आपको ट्रेड करने के लिए बेहतर टूल्स देने की बात हो, ट्रेड से जुड़ी जानकारी और शिक्षा देने की बात हो या फिर टैक्स के लिए ज़रूरी रिपोर्ट देने की बात हो, ज़ेरोधा में आपको सब मिलता है। 

तो बाज़ार और टैक्सेशन से जुड़े इस नए मॉड्यूल को अच्छे से पढ़िए और समझिए। मुझे पूरा भरोसा है कि इसको पढ़ने के बाद आप टैक्स से जुड़े मामलों को अच्छे से हैंडल कर पाएंगे और आपको टैक्स अफसर से डर नहीं लगेगा। 

जुड़े रहें, मुनाफे में रहें।

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