Option Strategies – Varsity by Zerodha https://zerodha.com/varsity/module/option-strategies/ Markets, Trading, and Investing Simplified. Wed, 13 Dec 2023 08:59:30 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.5 आयरन कॉन्डॉर https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%86%e0%a4%af%e0%a4%b0%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%b0/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%86%e0%a4%af%e0%a4%b0%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%b0/#comments Mon, 27 Jul 2020 11:36:46 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8568 14.1 – नया मार्जिन फ्रेमवर्क  * Hedge: बचाव, रोकना भारत में रहने वाले ऑप्शन ट्रेडर के लिए अच्छा समय चल रहा है। NSE में 1 जून 2020 से नया मार्जिन फ्रेमवर्क शुरू हो गया है। इस वजह से अब हेज्ड पोजीशन (Hedged Position) में मार्जिन की जरूरत कम होगी।  हेज्ड पोजीशन क्या होती है इस […]

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14.1 – नया मार्जिन फ्रेमवर्क 

* Hedge: बचाव, रोकना

भारत में रहने वाले ऑप्शन ट्रेडर के लिए अच्छा समय चल रहा है।

NSE में 1 जून 2020 से नया मार्जिन फ्रेमवर्क शुरू हो गया है। इस वजह से अब हेज्ड पोजीशन (Hedged Position) में मार्जिन की जरूरत कम होगी। 

हेज्ड पोजीशन क्या होती है इस बारे में हमने इस मॉड्यूल में कई बार चर्चा की है। लेकिन फिर भी एक बार उस पर जल्दी से नजर डाल लेते हैं। मान लीजिए आप एक बाइक पर 75 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से जा रहे हैं। आपने हेलमेट नहीं पहना है। अचानक आपके सामने एक गड्ढा आ जाता है आप ब्रेक लगाते हैं लेकिन आप रुक नहीं पाते और गिर जाते हैं। ऐसे में आप के सर पर चोट लगने की संभावना काफी ज्यादा है क्योंकि आपने हेलमेट नहीं पहना है। 

अब मान लीजिए कि आपने हेलमेट पहना हुआ होता, तो फिर आप के सर पर चोट लगने की संभावना कम होती क्योंकि हेलमेट आपको उस चोट से बचा सकता है। 

तो यहां पर हेलमेट एक तरीके का हेज है जो आपको नुकसान/चोट से बचा सकता है।

ठीक इसी तरह से, बाजार मे बनाई गयी नेकेड (naked) फ्यूचर या ऑप्शन पोजीशन होती है जहां पर आप बिना हेलमेट के चल रहे हैं। ऐसे में अगर बाजार आपकी पोजीशन के उल्टा चला तो आपकी पूंजी चले जाने का खतरा बढ़ जाता है। 

लेकिन अगर आपने अपनी पोजीशन को हेज (Hedge) किया हुआ है तो पूंजी को गंवाने का खतरा काफी कम हो जाता है। 

अब अगर आपका नुकसान कम या सीमित हो जाए तो इसका मतलब है आपके ब्रोकर का रिस्क भी कम हो गया है और आपके ब्रोकर का रिस्क भी कम हो गया है तो इसका मतलब है कि एक्सचेंज के लिए भी रिस्क कम हो गया है। 

आपको याद ही होगा कि मार्जिन किस तरह से काम करता है – जितना कम रिस्क आपके पोजीशन पर होता है उतना ही कम मार्जिन की जरूरत होती है। मतलब ज्यादा रिस्क तो ज्यादा मार्जिन। 

तो अगर आपने एक हेज्ड (Hedged) स्ट्रैटेजी ली है तो आपके ब्रोकर द्वारा ब्लॉक की गई मार्जिन किसी नेकेड (naked) पोजीशन के मुकाबले कम होगी। 

NSE ने नए मार्जिन फ्रेमवर्क में यही प्रस्ताव किया है। 

आप NSE के मार्जिन फ्रेमवर्क से जुड़े इस प्रेजेंटेशन यानी प्रस्तुतिकरण को देख सकते हैं। वैसे यह बहुत ही ज्यादा तकनीकी प्रेजेंटेशन है। अगर आप नहीं चाहते हैं तो इसको समझने के लिए आपको बहुत ज्यादा समय लगाने की जरूरत नहीं है। 

एक ट्रेडर को इस मार्जिन पॉलिसी में से तीन मुख्य बातें जानना जरूरी है। इन तीनों को यहां हमने एक स्लाइड में हाईलाइट किया है। इस चित्र को देखिए –

ऊपर से देखें तो 

  • पोर्टफोलियो 1 – नेकेड अनहेज्ड पोजीशन (naked unhedged position) के लिए मार्जिन बढ़ गई है पहले यह 16.7% थी अभी 18.5% होगी। 
  • पोर्टफोलियो 2 –  मार्केट न्यूट्रल (market neutral) पोजीशन के लिए मार्जिन में 70% की कमी हुई है
  • पोर्टफोलियो 3 स्प्रेड (Spread) पोजीशन के लिए मार्जिन में 80% की कमी की गई है 

एक ऑप्शन ट्रेडर के तौर पर आपके ऊपर इसका क्या असर पड़ेगा? 

सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि बहुत सारी ऐसी स्ट्रैटेजी जो लगती बहुत अच्छी थी लेकिन मार्जिन ज्यादा होने की वजह से जिसका इस्तेमाल कम किया जाता था अब वो ज्यादा काम आएगी। 

आप एक सवाल का जवाब दीजिए-  मार्जिन में कमी स्प्रेड पोजीशन में ज्यादा की गई है और मार्केट न्यूट्रल पोजीशन में कम। आपको क्या लगता है, ऐसा क्यों किया गया है? इसका जवाब नीचे कमेंट सेक्शन में डालिए। 

अब इस नई स्थिति में मैं इस मॉड्यूल में एक नई मार्जिन ऑप्शन स्ट्रैटजी पर चर्चा करना चाहता हूं, जिस पर अब तक इस मॉड्यूल में मैंने इसलिए चर्चा नहीं की थी क्योंकि इसके लिए काफी ज्यादा मार्जिन की जरूरत पड़ती थी।

14.2 – आयरन कॉन्डॉर 

आयरन कॉन्डॉर 4 चरणों वाला एक ऑप्शन सेटअप है जिसे कि शॉर्ट स्ट्रैंगल (Short Strangle) में सुधार करके बनाया गया है। इसको देखिए 

मैंने यह चित्र सेंसिबुल (Sensibull) के स्ट्रैटेजी बिल्डर (strategy builder) से लिया है। जैसा कि आप देख सकते हैं निफ्टी 9972.9 पर है और मैं यहां पर एक शॉर्ट स्ट्रैंगल (Short Strangle) बनाने की कोशिश कर रहा हूं और इसके लिए मैं OTM कॉल और पुट को शॉर्ट कर रहा हूं – 

  • 9800 का पुट 165.25 पर 
  • 10100 का कॉल 142.25 पर 

क्योंकि यह दोनों ऑप्शन यहां बेचे जा रहे हैं इसलिए मुझे ये प्रीमियम मिलेगा – 164.25 + 145.25 = 309.5 

जो पाठक अभी तक शॉर्ट स्ट्रैंगल के बारे में नहीं जानते हैं मेरी उनको सलाह है कि वह इस अध्याय को पढ़ें  this chapter

शॉर्ट स्ट्रैंगल का पे ऑफ ऐसा दिखता है –

मुझे यह स्ट्रैटजी इस लिए बहुत ज्यादा पसंद है क्योंकि इसमें अगर निफ्टी एक दायरे में रहे तो मुझे प्रीमियम अपने पास रखने का मौका मिलता है। आमतौर पर ऐसा ही होता भी है। इसके अलावा अगर बाजार में वोलैटिलिटी है तो यह एक बहुत अच्छा ट्रेड साबित होता है। जब भी आपको लगे कि बाजार में वोलैटिलिटी काफी बढ़ गई है (बाजार के किसी घटना या इवेंट के आसपास ऐसा होता है) और इस वजह से ऑप्शन प्रीमियम भी बढ़ गया है तो आप ऑप्शन बेच कर ये बढ़ा हुआ प्रीमियम अपने पास रख सकते हैं। शॉर्ट स्ट्रैंगल ऐसे समय के लिए सबसे अच्छा ट्रेड होता है। 

शॉर्ट स्ट्रैंगल में आप ऑप्शन को राइट (write) करते यानी बेचते हैं तो नेट प्रीमियम क्रेडिट मिलता है। जैसे इस उदाहरण में आपको 23,228 रुपए का प्रीमियम मिलेगा

शॉर्ट स्ट्रैंगल के साथ सिर्फ एक समस्या होती है। वो ये कि उसके दोनों सिरे एक्सपोज यानी खुले होते हैं मतलब अगर अंडरलाइंग एसेट दोनों में से किसी भी दिशा में चला जाता है तो आपको नुकसान होने लगता है। 

उदाहरण के तौर पर इस शॉर्ट स्ट्रैंगल में आपके लिए सेफ्टी रेंज यानि सुरक्षा का दायरा 9490 और 10411 के बीच है। 

मुझे पता है कि यह दायरा काफी बड़ा है लेकिन कई बार बाजार एक छोटे समय में इस तरह के दायरे के बाहर चला जाता है। अभी पिछले दिनों 2020 की शुरूआत में कोविड-19 की वजह से आई गिरावट काफी ज्यादा थी और इसके बाद आया सुधार भी उतना ही तेज था।

अगर आप इस तरह की किसी तेज गिरावट या तेज सुधार में फंस जाएं तो काफी ज्यादा नुकसान हो सकता है और आपका पूरा पैसा जा सकता है। ऑप्शन में हो सकने वाला नुकसान असीमित है इसलिए आपके और ब्रोकर के ऊपर रिस्क काफी ज्यादा होता है और इसीलिए मार्जिन भी ज्यादा होती है – 

शॉर्ट स्ट्रैंगल बनाने के लिए मार्जिन करीब 1.45 लाख है जोकि कई ट्रेडर्स के लिए काफी ज्यादा साबित हो सकती है। 

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप शॉर्ट स्ट्रैंगल ना करें। आप शॉर्ट स्ट्रैंगल में थोड़ा सा बदलाव करके एक आयरन कॉन्डॉर बना सकते हैं। मेरे हिसाब से यह ज्यादा बेहतर स्ट्रैटेजी होगी। 

एक आयरन कॉन्डॉर के लिए शॉर्ट स्ट्रैंगल में सुधार किया जाता है और शॉर्ट स्ट्रैंगल के सिरों को अच्छे से बंद कर दिया जाता है। आयरन कॉन्डॉर को तीन हिस्सों में बांट कर देखिए –

  • पहला हिस्सा – एक स्लाइटली OTM (Slightly OTM) कॉल और पुट ऑप्शन को बेचकर एक शॉर्ट स्ट्रैंगल बनाइए।
  • दूसरा हिस्सा – इसके आगे का एक OTM कॉल ऑप्शन खरीदिए जिससे कि अगर बाजार में रैली आ जाए तो आपका शॉर्ट कॉल सुरक्षित रहे। 
  • तीसरा हिस्सा – इसी तरीके से इसके आगे का एक OTM पुट खरीदिए जिससे कि आपने बाजार में पुट पहले शॉर्ट किया है उसे बाजार की किसी बड़ी गिरावट से बचाया जा सके। 

इस तरह से आयरन कॉन्डॉर चार चरणों वाली स्ट्रैटजी बन जाएगी। देखिए ये कैसी दिखेगी –

  • पहला हिस्सा – 9800 PE को 165.25 पर बेचिए और 10100 CE को 145.25 पर बेच कर 310.5 का प्रीमियम यानी 23,288 रुपए ले लीजिए 
  • दूसरा हिस्सा – 10300 CE को 77 पर खरीदिए, जिससे 10100 CE  के शॉर्ट को बचाया जा सके
  • तीसरा हिस्सा – 9600PE को 105.05 पर खरीदिए जिससे 9800 PE का शॉर्ट बचाया जा सके 

ट्रेड सेटअप ऐसा दिखेगा –

अगर आप ध्यान से देखें तो आपको समझ आएगा इस शॉर्ट ऑप्शन में जो प्रीमियम मिला है वही लॉन्ग ऑप्शन  पोजीशन खरीदने के भी काम आ रहा है। 

चूंकि हमने दो शॉर्ट ऑप्शन को बचाने के लिए दो ऑप्शन खरीदे हैं, इसकी वजह से आपकी होने वाली कमाई थोड़ी कम हो सकती है 

जैसा कि आप देख सकते हैं अधिकतम मुनाफा 9634 है लेकिन यहां पर आपके लिए खतरा भी कम है और चिंता भी। 

अधिकतम नुकसान अब असीमित नहीं है बल्कि 5366 तक का ही है। मेरे हिसाब से यह बहुत अच्छी स्थिति है क्योंकि अब मुझे अपने रिस्क के बारे में पूरे तरीके से पता है। 

मुनाफा तब तक सीमित है जब तक कि निफ्टी एक दायरे में रहे यानी 9672 और 10228 के बीच। ध्यान दीजिए कि यह दायरा या रेंज अब शॉर्ट स्ट्रैंगल के मुकाबले छोटा हो गया है। 

आयरन कॉन्डॉर का पे ऑफ ऐसा दिखेगा –

अब रिस्क पर नजर डालिए। रिस्क यहां पूरे तरीके से पता है। इसमें सबसे बुरी हालत क्या हो सकती है वह भी आपको पता है। तो ऐसे में एक ट्रेडर के तौर पर आपके लिए इसका मतलब क्या है और आपके ब्रोकर के लिए इसका क्या मतलब है? 

इसका मतलब यह है कि चूंकि अब रिस्क निश्चित है, इसलिए मार्जिन कम होगी। 

NSE का नया मार्जिन फ्रेमवर्क इसी जगह पर काम आता है। आयरन कॉन्डॉर के लिए आपको शुरुआती तौर पर सिर्फ 44,303 का मार्जिन देना पड़ेगा जो कि शॉर्ट स्ट्रैगल के 1.45 लाख के मार्जिन के मुकाबले काफी कम है। 

नया फ्रेमवर्क आने से पहले आयरन कॉन्डॉर बनाना किसी रिटेल ट्रेडर के लिए काफी मुश्किल काम होता था। इन स्ट्राइक और प्रीमियम के हिसाब से, आयरन कॉन्डॉर के लिए 2 लाख से 2.2 लाख के बीच की मार्जिन की ज़रूरत होती थी।

14.3 – अधिकतम P&L 

एक आयरन कॉन्डॉर बनाते वक्त आपको कुछ बातों को याद रखना जरूरी है 

  1. आप जिस PE और जिस CE को खरीद रहे हैं उसका फर्क बेची गई स्ट्राइक के बराबर होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर यहां हमने 9800 PE और 10100 CE बेची है। बेची गई स्ट्राइक को बचाने के लिए हम 9600 PE पर और 10300 CE पर लॉन्ग गए हैं। 9800 PE और 9600 PE के बीच का अंतर 200 का है। इसी तरह से 10100 CE और 10300 CE के बीच का अंतर भी 200 है। यह स्प्रेड एक बराबर होना चाहिए। मैं 9800 PE को 9700 PE (100 का अंतर) खरीद कर और फिर 10100 CE को 10300 CE (200 का अंतर) से नहीं बचा सकता हूं। 
  2. अधिकतम नुकसान तब होता है जब बाजार हमारे लॉन्ग CE यानी 10300 CE से ऊपर चला जाए या लॉन्ग PE यानी 9600 PE से नीचे चला जाए 
  3. स्प्रेड = 200 यानी हमारी बेची गई स्ट्राइक (sold Strike )और बचाने वाली स्ट्राइक (Protective Strike) के बीच का अंतर 
  4. अधिकतम मुनाफा = कुल मिला हुआ प्रीमियम जो कि यहां पर 128.45 (9634/75) है। 
  5. अधिकतम नुकसान = स्प्रेड कुल मिला हुआ प्रीमियम। यहां पर यह 200 – 128.45 = 71.54 

आप इस अध्याय के अंत में दिए गए हुए एक्सेल शीट पर नजर डाल सकते हैं जिसमें इसे विस्तार से दिखाया गया है। याद रखिए कि एक्सेल शीट को मैंने इस अध्याय को लिखने के 2 दिन बाद अपडेट किया है, इसलिए आपको वहां पर कुछ अंतर दिखाई दे सकता है।

14.4 – ROI और लॉजिस्टिक्स 

शॉर्ट स्ट्रैंगल बनाने पर आपको 23,288 का प्रीमियम मिला है जबकि एक आयरन कॉन्डॉर बनाकर आपको 9643 का प्रीमियम मिलेगा। यह सच है कि रुपए में देखने पर आयरन कॉन्डॉर में प्रीमियम कम मिलता दिख रहा है। लेकिन अगर आप लगने वाले मार्जिन के हिसाब से देखें तो आपको ROI आयरन कॉन्डॉर के पक्ष में दिखाई देगा।

शॉर्ट स्टेंगल में 1,45,090 का मार्जिन लगता है जिसकी वजह से ROI होगा 

23,288/1,45,090

=16%.

आयरन कॉन्डॉर के लिए मार्जिन की जरूरत है 44,303 इसलिए ROI होगा 

9,643/44,303

= 21%

एक ट्रेडर के तौर पर आपको ROI पर नजर रखनी चाहिए ना कि मिलने वाले कुल रुपयों पर , और मार्जिन में होने वाली कमी की वजह से आपको यहां ROI में एक बड़ा फायदा दिखाई पड़ेगा। 

इस ट्रेड को सफल बनाने के लिए सबसे जरूरी चीजों में से एक यह है कि आप इसको सही क्रम में करें। अगर आप आयरन कॉन्डॉर बनाने जा रहे हैं तो उस ट्रेड का सही क्रम होगा – 

  • फार OTM काल ऑप्शन को खरीदिए 
  • OTM कॉल ऑप्शन को बेचिए 
  • फार OTM पुट को खरीदें 
  • OTM पुट ऑप्शन को बेचिए

तो यहां पर जरूरी बात यह है कि आपको शॉर्ट पोजीशन बनाने के पहले एक लॉन्ग पोजीशन बनानी चाहिए। 

ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि शॉर्ट ऑप्शन पोजीशन में ज्यादा मार्जिन लगता है इसलिए अगर आपने लॉन्ग पोजीशन पहले बनाई है तो सिस्टम को पता है कि आप का रिस्क सीमित है। इसलिए सिस्टम आपसे शॉर्ट पोजीशन के लिए भी कम मार्जिन मांगेगा। 

ध्यान रखिए कि यहां पर मैंने ROI कैलकुलेशन को मार्जिन की रकम के हिसाब से ही देखा है। ऑप्शन को खरीदने के लिए जो रकम देनी पड़ेगी या ऑप्शन बेचने पर जो रकम मिलेगी मैंने उस पर यहां ध्यान नहीं दिया है। 

तो अब मेरी सलाह यह होगी कि एक ट्रेडर के तौर पर आप अलग-अलग स्ट्राइक को चुनें जिस पर आप लॉन्ग पोजीशन बना सकते हैं और देखें कि आपको कितना प्रीमियम मिल रहा है, ब्रेक इवन प्वाइंट क्या है और अधिकतम नुकसान क्या हो सकता है। 

अपने विचार और सवाल नीचे लिखें.

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  • NSC के नए मार्जिन फ्रेमवर्क की वजह से मार्केट न्यूट्रल और हेज्ड स्ट्रैटेजी के लिए मार्जिन की जरूरत कम हो गयी है।
  • वैसे तो शॉर्ट स्ट्रैंगल एक बहुत अच्छी स्ट्रैटेजी है लेकिन इसके दोनों सिरे या छोर खुले हुए होते हैं इसलिए असीमित नुकसान हो सकता है।
  • शॉर्ट स्ट्रैंगल का ही सुधरा हुआ रूप है आयरन कॉन्डॉर।
  • आयरन कॉन्डॉर में OTM के लॉन्ग और पुट, शॉर्ट स्ट्रैंगल के दोनों खुले हुए सिरों को बचाते हैं।
  • आयरन कॉन्डॉर के लिए मार्जिन की जरूरत शॉर्ट स्ट्रैंगल के मुकाबले काफी कम होती है।

आयरन कंडर एक्सेल शीट यहाँ से डाउनलोड करें

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Iron Condor https://zerodha.com/varsity/chapter/iron-condor/ https://zerodha.com/varsity/chapter/iron-condor/#comments Sun, 14 Jun 2020 06:33:54 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8171 14.1 – New margin framework These are fascinating times we are living in, especially if you are an options trader in India 🙂 Starting 1st June 2020, NSE’s new margin framework is live, which essentially brings down the margin requirement for the hedged position. What is a hedged position you may ask? Well, we have […]

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14.1 – New margin framework

These are fascinating times we are living in, especially if you are an options trader in India 🙂

Starting 1st June 2020, NSE’s new margin framework is live, which essentially brings down the margin requirement for the hedged position.

What is a hedged position you may ask? Well, we have discussed this several times in this module, but for the sake of completeness of this chapter, we will quickly discuss this again.

Assume you are riding a bike at 75Kms per hour, without wearing a helmet. Suddenly you come across a pothole, you slam the breaks to cut speed, but it’s too late, you crash and fall.  What is the probability of injuring your head? Quite high given the fact that you are not wearing a helmet.

Now imagine the same situation, but instead of being carefree, you decide to wear a helmet. Given the crash, what is the probability of injuring your head? Low probability, right? Because the helmet protects you from an injury.

The helmet acts as a hedge against a potential disaster.

In the same way, a naked futures or options position in the market is like riding a bike without wearing a helmet. The risk of market-moving against your position, causing capital erosion is high.

However, if you hedge your position, then the risk of losing capital reduces drastically.

Now, think about this – if your capital loss is minimal, then it implies that the risk for your broker is also minimum right? Now, if the risk for the broker reduces, it also means the risk for the exchange reduces.

So what does this mean to you as a trader?

Remember, the critical margin dynamics – the lesser the risk you carry, the lower the margin requirement. Higher the risk, higher the margin requirement.

Therefore, this means whenever you initiate a hedged strategy, the margins blocked by your broker is less compared to the margin required for a naked position.

In essence, NSE has proposed the same in the new margin framework.

You can check this presentation by NSE for more details. 

The presentation is quite technical; you do not have to crack your head to understand this unless you really want to.

From a trader’s point of view, there are three key takeaways from the new margin policy; all the three highlighted in 1 slide of this presentation, here is a snapshot –

Starting from the top –

  • Portfolio 1 – Margins have increased for naked unhedged positions to 18.5% from the current 16.7%.
  • Portfolio 2 – 70% reduction in margins for market-neutral positions
  • Portfolio 3 – 80% reduction in margins for spread positions

What does this mean to you as an options trader?

Well, some of the useful strategies, which looked great on paper but were prohibitive to implement due to excessive margin requirement, now look enticing.

A trick question for you here – why do you think the margin reduction is higher for spread position compared to a neutral market position?.

Do think about it and post your response in the comment section.

So given this, I want to discuss one more options strategy in this module, I had not discussed it earlier since the margin requirement was very high, but now, it’s no longer the case.

14.2 – Iron Condor

The iron condor is a four-legged option setup. The iron condor is an improvisation over the short strangle.

Have a look at this –

I’ve taken this snapshot from Sensibull’s Options Strategy Builder. As you can see, Nifty is at 9972.9, and I’m trying to set up a short strangle by shorting OTM calls and puts –

  • 9800 Put at 165.25
  • 10100 Call at 145.25

Since both the options are written/sold, I get to collect a total premium of 164.25+145.25 = 309.5.

For those of you not familiar with the strangles, I’d suggest you read through this chapter.

The pay off for this short strangle set up is as follows –

I love this strategy because it lets me retain the premium as long as Nifty stays within a range, which most often it does. Besides, this is also a great way to trade volatility. Whenever you think the volatility has shot up (usually it does around big market events) and therefore the option premiums, then you’d want to be an options seller and pocket the high premiums. Short strangles is perfect for such trades.

In a short strangle, since you sell/write options, it results in a net premium credit. In this case, you get a premium of Rs.23,288/-.

The only issue with short strangles is the exposed ends. The strategy bleeds if the underlying asset moves in either direction.

For example, this particular short strangle has a range of safety between 9490 and 10411.

I agree this is a wide enough range, but markets have taught that it can make crazy moves within a short period. Most recent being the COVID-19 crash in early 2020 followed by quick recovery from the lows.

If you are caught with such a rapid market move, the potential loss can be colossal and can wipe your account clean. Now, because the possible loss is unlimited, this means the risk to you and the broker is quite high. Eventually, this translates to higher margins as well –

The margin to set up a short strangle is nearly 1.45L, which is quite prohibitive for many traders.

However, this does not mean that you have to say goodbye to a short strangle. You can improvise on the short strangle and set up an iron condor, which in my opinion is a far better strategy.

An iron condor improvises a short strangle by plugging in the open ends. Think of an iron condor in 3 parts –

  • Part 1 – Set up a short strangle by selling a slightly OTM Call and Put option
  • Part 2 – Buy a further OTM Call to protect the short call against a massive market rally
  • Part 3 – Buy a further OTM Put to protect the short Put against a massive market decline

This makes an iron condor a four-leg option strategy. Let us see how this looks –

  • Part 1 – Sell 9800 PE at 165.25 and sell a 10100CE at 145.25, collect a premium of 310.5 or Rs.23,288/-.
  • Part 2 – Buy 10300 CE at 77 to protect the short 10100 CE
  • Part 3 – Buy 9600 PE at 105.05 to protect the short 9800 PE

The trade setup looks like this –

If you think about this, the short option premium collected finances the long option positions.

Since you buy two options to protect against two short options, the profit potential reduces to a certain extent –

As you can see, the max profit is now Rs.9,634/-, but the reduced profit comes with reduced stress 🙂

The max loss is no longer unlimited but restricted to Rs.5,366, which in my opinion is awesome because I now have visibility on risk and it is not open-ended.

The profit is restricted, as long as Nifty stays within a range, in this case between 9672 and 10228. Notice, the range has shrunk compared to the short strangle.

The payoff of an iron condor looks like this –

Now, what do you think about the risk? The risk here is completely defined. You have clear visibility on the worst-case scenario. So what does it mean to you as a trader, and what does it mean to the broker?

You guessed it right since the risk is defined, the margins are lesser.

This is where the new margin framework of NSE comes into play. An iron condor requires you to pay an upfront margin of only Rs.44,303/-, contrast this with the short strangle’s margin requirement of Rs.1.45L.

Besides, before the new margin framework, executing an iron condor was not very viable for a retail trader. For these strikes and premiums, the margin requirement for an Iron Condor was roughly in the range of 2 to 2.2L.

14.3 – Max P&L 

There are a few important things you need to remember while executing an iron condor –

  1. The PE and CE that you buy should have even strike distribution from the sold strike. For example, here we have sold 9800 PE and 10,100 CE. We have protected the sold strikes by going long on 9600 PE and 10,300 CE. The difference between 9800 PE and 9600 PE is 200 and 10,100 CE and 10,300 CE is 200. The spread should be even. I cannot protect 9800 PE by buying 9700 PE (difference of 100) and then protect 10,100 CE with 10,300 CE (difference of 200).
  2. The Max loss occurs when the market moves either above long CE i.e. 10,300 CE or moves below long PE i.e. 9,600PE
  3. Spread = 200 i.e. the difference between the sold strike and its protective strike.
  4. Max Profit = Net premium received. In this case, it is 128.45 (9634/75)
  5. Max loss = Spread – Net premium received. In this case, it is 200 – 128.45 = 71.54.

I’d suggest you look at the excel sheet at the end of this chapter for detail working of this. Please note, I have updated the excel sheet 2 days after I wrote this chapter, hence the values are different.

14.4 – ROI and Logistics

By setting up a short strangle, you receive a premium of Rs.23,288/- and for the iron condor, the premium receivable is Rs.9,643/-. Agreed, in terms of absolute Rupees, the iron condor offers a far lesser premium inflow. But when you measure this against the margin requirement, the ROI flips in favour of the Iron condor.

Short strangle requires a margin of Rs.1,45,090/-. Therefore the ROI is –

23,288/1,45,090

=16%.

The margin requirement for iron condor is Rs.44,303/-. Therefore the ROI is –

9,643/44,303

= 21%

As a trader, you need to think in terms of ROI and not absolute numbers, and the margin benefit makes a significant difference here.

The sequence of trade execution makes a big difference here. If you are considering an iron condor, then here is the trade sequence –

  • Buy the far OTM call option
  • Sell the OTM Call option
  • Buy the far OTM PUT
  • Sell the OTM PUT option

The point here is that you need to have a long position first before initiating the short position.

Why? Because short option position is a margin guzzler, so when you have a long position, the system knows the risk is contained and hence will ask you for lesser margins for the short position.

Please note, I’ve only considered the margin blocked for the ROI calculation, I’ve not considered the money paid to buy the options and the money received when you write an option.

So traders, as a next step, I’d urge you to select different strikes for the long positions and see what happens to the premium receivable, breakeven points, and the max loss.

Do post your observation and queries below.

Key takeaways from this chapter

  • NSE’s new margin framework reduces the margin requirement for market neutral and hedged strategies
  • While the short strangle is an excellent strategy, it has open ends with potentially unlimited losses
  • The iron condor is an improvisation over the short strangle
  • In an iron condor, the long OTM calls and puts protect the open ends of the  short strangle
  • Margin required for an iron condor is far lesser compared to a short strangle

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मैक्स पेन और PCR रेश्यो https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%aa%e0%a5%87%e0%a4%a8-%e0%a4%94%e0%a4%b0-pcr-%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%aa%e0%a5%87%e0%a4%a8-%e0%a4%94%e0%a4%b0-pcr-%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:50:23 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7002 13.1 – ऑप्शन पेन थ्योरी के साथ मेरे अनुभव  बाजार में ऐसे बहुत सारे सिद्धांत हैं जिनको लेकर हमेशा विवाद बना रहता है। ऐसे ही सिद्धांतों की लिस्ट में से एक है – ऑप्शन पेन थ्योरी का, जिसे कभी-कभी मैक्स पेन भी कहते हैं। बहुत सारे लोग इस सिद्धांत को मानते हैं लेकिन उतने ही […]

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13.1 – ऑप्शन पेन थ्योरी के साथ मेरे अनुभव 

बाजार में ऐसे बहुत सारे सिद्धांत हैं जिनको लेकर हमेशा विवाद बना रहता है। ऐसे ही सिद्धांतों की लिस्ट में से एक है – ऑप्शन पेन थ्योरी का, जिसे कभी-कभी मैक्स पेन भी कहते हैं। बहुत सारे लोग इस सिद्धांत को मानते हैं लेकिन उतने ही लोग ऐसे भी हैं जो इस सिद्धांत को बिल्कुल भी नहीं मानते हैं। मैं अलग अलग समय पर इन दोनों ही पक्षों में रह चुका हूं। ऑप्शन पेन थ्योरी को अपनाने के शुरुआती दिनों में, मैं कभी भी इससे पैसे नहीं बना सका, हालांकि बाद में जब मैंने अपनी रिस्क लेने की क्षमता के हिसाब से इस थ्योरी को कुछ बदलाव के साथ इस्तेमाल किया तो मुझे इससे अच्छे नतीजे मिलने लगे। इस अध्याय में मैं इस बारे में भी चर्चा करूंगा।

अब मैं ऑप्शन पेन थ्योरी के बारे में आपको बताने की कोशिश करूंगा और इस पर भी चर्चा करूंगा कि मुझे इसमें क्या पसंद है और कौन सी बातें मुझे पसंद नहीं आती हं। उसके आधार पर आप यह फैसला कर सकते हैं कि आपको ऑप्शन पेन थ्योरी के साथ रहना है या नहीं। 

ऑप्शन पेन थ्योरी को समझने के लिए आपको ओपन इंट्रेस्ट को समझना होगा। 

तो आइए शुरू करते हैं

13.2 – मैक्स पेन थ्योरी

ऑप्शन पेन की शुरुआत 2004 में हुई थी, तो एक तरह से अभी इसे नई थ्योरी माना जा सकता है। जहां तक मेरी जानकारी है इस थ्योरी के बारे में कोई भी शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध नहीं है, मुझे नहीं पता कि इस थ्योरी की इतनी उपेक्षा क्यों की गई है। 

ऑप्शन पेन थ्योरी उस धारणा पर आधारित है कि 90% ऑप्शन वर्थलेस होकर स्क्वायर होते हैं इसलिए आमतौर पर ऑप्शन बेचने वाले या ऑप्शन के राइटर, ऑप्शन को खरीदने वाले के मुकाबले ज्यादा बार पैसे बनाते हैं। 

अब अगर यह अगर यह बात सही है तो इसके आधार पर हम कुछ निष्कर्ष निकाल सकते हैं – 

    1. किसी भी समय ऑप्शन बेचने वाले और ऑप्शन खरीदने वाले में से सिर्फ एक ही पैसे बना सकता है, दोनों नहीं। ऊपर के वक्तव्य से साफ है कि आमतौर पर ऑप्शन बेचने वाला ही पैसे बनाता है।
    2. अगर सिर्फ ऑप्शन बेचने वाला ही ज्यादा पैसे बनाता है तो, इसका मतलब यह है एक्सपायरी के दिन ऑप्शन की कीमत ऐसी जगह पर पहुंच जानी चाहिए जहां पर ऑप्शन राइटर (बेचने वाले) को कम से कम नुकसान हो। 
    3. अगर प्वाइंट 2 में कही गई बात सही है तो इसका मतलब यह है कि ऑप्शन की कीमत को तोड़े मरोड़े जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। कम से कम एक्सपायरी के दिन तो जरूर ऐसा हो सकता है। 
    4. अब अगर प्वाइंट 3 की बात सही है तो इसका मतलब यह है कि बाजार में ऐसे ट्रेडर होते हैं जो कि ऑप्शन की कीमतों को कम से कम एक्सपायरी के दिन तो अपने मनमाफिक तरीके से बदलवा सकते हैं। 
    5. अब अगर बाजार में ऐसे ट्रेडर का समूह हैं जो कीमत को अपने हिसाब से बदलवा सकता है, तो यह समूह ऑप्शन बेचने वाले (ऑप्शन राइटर्स) का होगा क्योंकि वही ऑप्शन बाजार में सबसे ज्यादा बार पैसे बनाते हैं।

ऊपर निकाले गए निष्कर्षों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि बाजार में एक्सपायरी के समय, कीमत का कोई ऐसा स्तर जरूर होगा जहां पर ऑप्शन बेचने वाले यानी ऑप्शन राइटर को कम से कम नुकसान हो। यानी उसको कम से कम पेन (pain) हो (ऑप्शन खरीदने वाले को सबसे अधिक पेन हो)। अगर आप कीमत के इस स्तर को पहचान सकें, तो आप इस बात का अनुमान भी लगा सकते हैं कि बाजार कहां एक्सपायर होगा। ऑप्शन पेन थ्योरी यही काम करती है, यह पता लगाती है कि बाजार में एक्सपायरी किस कीमत पर होगी, जहाँ ऑप्शन बेचने वाले को कम से कम नुकसान हो रहा है।

optionspain.com में ऑप्शन पेन की एक परिभाषा दी गई है – ऑप्शन बाजार में ऑप्शन खरीदने वाले और बेचने वाले के बीच में धन का लेनदेन जीरो सम गेम (zero sum game) की तरह होता है (यानी जितना एक का नुकसान होता है और दूसरे का उतना ही फायदा होता है)। ऑप्शन की एक्सपायरी के दिन अंडरलाइंग स्टॉक की कीमत ऐसे स्तर पर पहुंच जाती है जहां पर ऑप्शन खरीदने वाले को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। यह कीमत बाजार में मौजूद सभी आउटस्टैंडिंग ऑप्शन के आधार पर निकाली जाती है और इसे ऑप्शन पेन कहते हैं। वास्तव में यह ऑप्शन बेचने वाले लोगों के समूह की तय की गई वह कीमत है जहां पर वह तोड़ मरोड़ कर स्टॉक की कीमत को पहुंचाना चाहते हैं।

13.3 – मैक्सिमम (Maximum/अधिकतम) पेन की गणना 

अब हम मैक्स पेन की निकालने के तरीके को अलग अलग चरणों के तौर पर देखते हैं। हो सकता है कि अभी आपको इसे समझने में थोड़ी दिक्कत हो, लेकिन फिर भी आप इसे समझने की कोशिश कीजिए। बाद में जब हम उदाहरण देंगे तो आप इसे अच्छे से समझ पाएंगे। 

कदम 1- एक्सचेंज में मौजूद सभी ऑप्शन स्ट्राइक की एक सूची बनाइए और इनमें से हर एक स्ट्राइक पर मौजूद कॉल और पुट ऑप्शन के ओपन इंट्रेस्ट को लिख लीजिए। 

कदम 2 – आपने जितने स्ट्राइक को नोट किया है, बारी-बारी से ये मान लीजिए कि बाजार इसी स्ट्राइक पर एक्सपायर होगा।

कदम 3 – अब कदम 2 में निकाले गए एक्सपायरी के हर स्तर पर इस बात की गणना कीजिए कि उस स्ट्राइक पर ऑप्शन राइटर को (कॉल और पुट दोनों के ऑप्शन राइटर को) कितने पैसे का नुकसान हो रहा है। 

कदम 4 – एक्सपायरी के निकाले गए हर स्तर पर कॉल और पुट ऑप्शन के राइटर को होने वाले नुकसान को जोड़ लीजिए।

कदम 5 – देखिए कि किस स्ट्राइक पर ऑप्शन राइटर को सबसे कम नुकसान हो रहा है। 

कीमत के जिस स्तर पर ऑप्शन राइटर को सबसे कम नुकसान हो रहा हो, उसी जगह पर ऑप्शन खरीदने वाले को मैक्सिमम पर यानी सबसे ज्यादा नुकसान होता है, इसलिए यह वह बिंदु है जहां पर बाजार एक्सपायर होने की सबसे अधिक संभावना है।

इसको समझने के लिए एक बहुत ही सीधा उदाहरण लेते हैं। आप को समझाने के लिए मैं मान लेता हूं कि बाजार में निफ्टी के सिर्फ तीन स्ट्राइक मौजूद है। मैंने इनमें से हर एक के लिए कॉल और पुट के ओपन इंट्रेस्ट को निकाला है।

स्ट्राइक कॉल ओपन इंट्रेस्ट पुट ओपन इंट्रेस्ट
7700 1823400 5783025
7800 3448575 4864125
7900 5367450 2559375

 

स्थिति 1 – मान लीजिए कि बाजार 7700 पर एक्सपायर होता है 

आपको याद होगा कि जब आप कॉल ऑप्शन को बेचते यानी राइट करते हैं तो आपको नुकसान तभी होता है बाजार स्ट्राइक के ऊपर चला जाए। इसी तरीके से जब आप पुट ऑप्शन को राइट करते हैं तो आपको नुकसान तब होता है जब बाजार स्ट्राइक कीमत से नीचे चला जाए। 

इसलिए अगर बाजार 7700 पर एक्सपायर होता है तो कॉल ऑप्शन को राइट करने वाली यानी बेचने वाले को नुकसान नहीं होगा, मतलब 7700, 7800 और 7900 के स्ट्राइक पर ऑप्शन बेचने वालों को मिला हुआ प्रीमियम अपने पास रखने का मौका मिल जाएगा। 

लेकिन पुट ऑप्शन को राइट करने या बेचने वाले मुश्किल में पड़ जाएंगे। सबसे पहले 7900 PE के राइटर को देखते हैं– 

7700 की एक्सपायरी पर 7900 PE के राइटर को 200 प्वाइंट का नुकसान होगा। क्योंकि ओपन इंटरेस्ट 2559375 है इसलिए नुकसान को अगर रुपयों में निकाला जाए तो 

200 * 2559375  = Rs 5,11,875,000 

7800 के राइटर को 100 प्वाइंट का नुकसान होगा और रुपयों में इसकी कीमत होगी 

100 * 4864125  = Rs 4,86,412,500 

7700 PE के राइटर को नुकसान नहीं होगा 

तो अगर बाजार 7700 पर एक्सपायर होता है तो ऑप्शन बेचने वालों को कुल नुकसान होगा

 कॉल ऑप्शन बेचने वालों (राइटर) को कुल नुकसान + पुट ऑप्शन बेचने वालों (राइटर) को कुल नुकसान

= 0 + Rs 5,11,875,000 + Rs 4,86,412,500

= Rs 9,98,287,500

याद रखिए कि कॉल ऑप्शन राइटर को होने वाला रुपयों का कुल नुकसान = 7700 CE के राइटर को होने वाला नुकसान + 7800 CE के राइटर को होने वाला नुकसान +  7900 CE के राइटर को होने वाला नुकसान 

इसी तरीके से, पुट ऑप्शन के राइटर को होने वाला कुल नुकसान = 7700 PE के राइटर को होने वाला नुकसान + 7800 PE के राइटर को होने वाला नुकसान +  7900 PE के राइटर को होने वाला नुकसान

स्थिति 2 – मान लीजिए कि बाजार 7800 पर एक्सपायर होता है 

7800 पर, कॉल ऑप्शन के इन राइटर्स को नुकसान होगा 

7700 CE के राइटर को 100 प्वाइंट का नुकसान होगा। इसको अगर ओपन इंट्रेस्ट से गुणा किया जाए तो हमें इसकी रुपए में कीमत मिल जाएगी 

100 * 1823400  = Rs 1,82,340,000 

7800 CE और 7900 CE के बेचने वालों को कोई नुकसान नहीं होगा 

7700 PE और 7800 PE बेचने वाले को कोई नुकसान नहीं होगा 

7900 PE के राइटर को 100 प्वाइंट का नुकसान होगा इसको अगर हम ओपन इंट्रेस्ट ओपन इंटरेस्ट से गुणा करें तो हमें रुपयों में इसकी कीमत मिल जाएगी

100 * 2559375  = Rs 2,55,937,500

इस तरह से 7800 की एक्सपायरी पर ऑप्शन के बेचने वालों का कुल नुकसान होगा

= Rs 1,82,340,000 + Rs 2,55,937,500

= Rs 4,38,277,500

स्थिति 3 – मान लीजिए कि बाजार 7900 पर एक्सपायर होता है 

7900 पर इन कॉल ऑप्शन राइटर को नुकसान होगा –

7700 CE के राइटर को 200 प्वाइंट का नुकसान होगा, रुपयों में इसकी कीमत होगी –

200 * 1823400  = Rs 3,64,680,000 

7800 CE के राइटर को 100 प्वाइंट का नुकसान होगा और रुपयों में इसकी कीमत होगी

 100 * 3448575  = Rs 3,44,857,500

7900 CE के राइटर को मिला हुआ प्रीमियम अपने पास रखने का मौका मिल जाएगा 

क्योंकि बाजार 7900 पर एक्सपायर हो रहा है इसलिए पुट ऑप्शन के सभी राइटर को भी प्रीमियम अपने पास रखने का मौका मिल जाएगा।

तो इस तरीके से ऑप्शन राइटर को होने वाला कुल नुकसान होगा 

= Rs 3,64,680,000 + Rs 3,44,857,500

= Rs 7,09,537,500

तो इस तरह से हमने सभी संभावित एक्सपायरी पर ऑप्शन राइटर को होने वाले नुकसान की रुपयों में कीमत निकाल ली है। इसको नीचे के टेबल में देखते हैं-

स्ट्राइक कॉल ऑप्शन OI पुट ऑप्शन OI कॉल में नुकसान पुट में नुकसान कुल नुकसान
7700 1823400 5783025 0 998287500 998287500
7800 3448575 4864125 182340000 255937500 438277500
7900 5367450 2559375 7095375000 0 7095375000

अब क्योंकि हमने ऑप्शन राइटर को होने वाले नुकसान को निकाल लिया है तो अब हम पता लगा सकते हैं कि बाजार के किस स्तर पर एक्सपायर होने की संभावना है।

ऑप्शन पेन थ्योरी के हिसाब से, बाजार उस स्तर पर एक्सपायर होगा जहां पर ऑप्शन बेचने वाले को कम से कम नुकसान हो (कम से कम पेन हो)। अब ऊपर के टेबल से साफ है कि यह स्तर 7800 का होगा। जहां पर ऑशन बेचने वालों को करीब 43.82 करोड़ (438277500) का नुकसान हो रहा है जोकि 7700 और 7900 पर होने वाले कुल नुकसान से कम है। 

तो आपने देखा कि इस को निकालना कितना आसान है। वैसे मैंने सिर्फ तीन स्ट्राइक को लिया है जबकि बाजार में बहुत सारे स्ट्राइक मौजूद होते हैं, खासकर निफ्टी के लिए। इसलिए कई बार यह गणना काफी मुश्किल हो जाती है। इस मुश्किल से बचने का तरीका यह है कि आप माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल जैसी चीज का इस्तेमाल करें। 

मैंने 10 मई 2016 के लिए मैक्सिमम (Maximum/अधिकतम) पेन का स्तर निकाला है, इसे आप नीचे के चित्र में देख सकते हैं-

बाजार में उपलब्ध सभी स्ट्राइक के लिए हमें यह मानना होता है कि बाजार इसी स्तर पर एक्सपायर होगा और फिर कॉल और पुट ऑप्शन के नुकसान की रुपए में कीमत निकालनी होती है। इसी कीमत को अंतिम कॉलम में कुल कीमत के नीचे दिखाया गया है । एक बार आपने कुल कीमत निकाल ली तो हमें सिर्फ यह देखना होता है कि किस स्तर पर सबसे कम ऑप्शन राइटर को सबसे कम नुकसान हो रहा है। आप यह काम इस काम के लिए कुल कीमतों के बार ग्राफ का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, यह बार ग्राफ कुछ ऐसा दिखेगा – 

जैसा कि आप ग्राफ में देख सकते हैं कि 7800 का स्ट्राइक वह स्तर है जहां पर ऑप्शन राइटर को सबसे कम रुपयों का नुकसान हो रहा है। तो ऑप्शन पेन थ्योरी के हिसाब से 7800 बाजार का वो स्तर है जहां पर मई सीरीज को एक्सपायर होना चाहिए। 

अब जब आपने एक्सपायरी का स्तर निकाल लिया है, तो आप इस जानकारी का उपयोग कैसे करेंगे, इसके कई उपयोग हैं। 

ज्यादातर ट्रेडर पेन स्तर का इस्तेमाल राइट करने की सही स्ट्राइक चुनने के लिए करते हैं। इस उदाहरण में 7800 एक्सपायरी का स्तर है इसलिए आप 7800 के ऊपर का कॉल ऑप्शन या फिर 7800 के नीचे का पुट ऑप्शन राइट कर (बेच) सकते हैं ताकि प्रीमियम आपको मिल सके।

13.4 – मेरे किए कुछ बदलाव

अपने ट्रेडिंग के शुरुआती दिनों में मैं ऑप्शन पेन के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हुआ करता था। मुझे इससे जुड़ी हुई हर बात सही लगती थी। मैं हर तरीके के आंकड़ों पर नजर रखता था, एक्सपायरी स्तर को देखता था, फिर ऑप्शन राइट करता था, लेकिन हर बार बाजार किसी नए स्तर पर बंद हो जाता था और मुझे नुकसान होता था। नुकसान होने पर मैं यह सोचता था कि मेरे अपनी गणना में कहीं गलती है या फिर यह थ्योरी ही गलत है। 

इसीलिए मैंने ऑप्शन पेन थ्योरी में अपने रिस्क के हिसाब से कुछ बदलाव किए, जैसे –  

  1. ओपन इंट्रेस्ट हर दिन बदलते हैं। इसका मतलब यह है कि 10 मई को ऑप्शन पेन थ्योरी आपको यह बता सकती है कि एक्सपायरी 7800 पर होगी जबकि 20 मई को यही थ्योरी आपको बता सकती है एक्सपायरी 8000 पर होगी। इसलिए मैंने अपनी गणना करने के लिए दिन निश्चित कर दिया। मैंने अपने लिए एक्सपायरी से 15 दिन पहले का दिन निश्चित किया। 
  2. मैंने ऑप्शन पेन के आम तरीके से एक्सपायरी का स्तर निकाला।
  3. मैं इस एक्सपायरी के स्तर में 5% का सुरक्षा कुशन यानी बफर (buffer) जोड़ने लगा। जैसे एक्सपायरी के 15 दिन पहले अगर पेन थ्योरी यह बता रही है कि एक्सपायरी 7800 पर होगी तब मैं उसमें 5% का बफर जोड़ लेता था जिससे मेरे लिए एक्सपायरी का नया स्तर होता था 7800 + 7800 का 5% =  8190 या 8200 का स्ट्राइक। 
  4. इसके बाद मैं यह उम्मीद करता था कि बाजार 7800 से 8200 के बीच में एक्सपायर होगा 
  5. मैं इस एक्सपायरी के स्तर के आधार पर अपनी स्ट्रैटेजी बनाता था। मेरा सबसे पसंदीदा स्ट्राइक होता था 8200 के ऊपर का कॉल ऑप्शन खरीदना। 
  6. मैं पुट ऑप्शन खरीदने से बचता था क्योंकि मुझे लगता था कि बाजार में लालच के मुकाबले डर ज्यादा तेजी से फैलता है मतलब बाजार में बढ़त के मुकाबले गिरावट ज्यादा तेजी से आती है। 
  7. मैं बेचे हुए ऑप्शन को एक्सपायरी तक होल्ड करता था और आमतौर पर इस दौरान ऐवरेजिंग (Averaging) करने से बचता था।

जब से मैंने अपने इन सुधारों का इस्तेमाल करना शुरू किया, तब से, मुझे बाजार से नतीजे अच्छे मिलने लगे। लेकिन मैंने कभी अपने नतीजों का रिकॉर्ड नहीं रखा इसलिए यह नहीं बता सकता कि मुझे कितना मुनाफा हुआ। लेकिन अगर आप में से किसी को प्रोग्रामिंग आती है तो आप बहुत आसानी से मेरे इस तर्क को स्तर को जांच सकते हैं और इस जांच के नतीजे सबके साथ बांट सकते हैं। एक बात और, मुझे काफी समय बाद में समझ में आया कि मैं जो 5% था बफर या कुशन ले रहा था वह वास्तव में वही स्ट्राइक हैं जो 1.5 से 2% तक की स्टैंडर्ड डेविएशन दूर हैं। इसका मतलब है कि बाजार के इस स्तर पर एक्सपायर होने की संभावना करीब 34% है। 

अगर आपको मेरी बात नहीं समझ में आ रही है तो मेरी सलाह होगी कि आप स्टैंडर्ड डेविएशन और डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ रिटर्न का अध्याय पढ़ें। 

ऑप्शन पेन की गणना को एक्सेल में आप यहां से download कर सकते हैं

13.5 – पुट कॉल रेश्यो

पुट कॉल रेश्यो को निकालना काफी आसान होता है। जब बाजार में बहुत ज्यादा तेजी या बहुत ज्यादा मंदी होती है तो यह रेश्यो हमें इस बात को बता देता है। पुट कॉल रेश्यो यानी PCR को एक कांट्रेरियन इंडिकेटर (Contrarian Indicator) माना जाता है, मतलब यह कि जब PCR बताता है कि बाजार में बहुत ज्यादा मंदी है तो इसका मतलब है कि यहां से बाजार की दिशा अब पलटने वाली है यानी बाजार यहां से घूमने वाला है। ऐसे में ट्रेडर तेजी का रुख अपना लेते हैं। इसी तरह से. अगर PCR यह बताता है कि बाजार में बहुत ज्यादा तेजी है तब ट्रेडर मानता है कि बाजार के पलटने और नीचे गिरने की संभावना है। 

PCR की गणना करने के लिए पुट के कुल ओपन इंट्रेस्ट को कॉल के कुल ओपन इंटरेस्ट से विभाजित किया जाता है। आमतौर पर यह संख्या 1 के आंकड़े के आसपास होती है। नीचे के चित्र को देखिए –

यहां पर 10 मई को कॉल और पुट ऑप्शन के कुल ओपन इंट्रेस्ट निकाला गया है, पुट ऑप्शन के ओपन इंट्रेस्ट कॉल आप्शन के ओपन इंटरेस्ट से विभाजित करने पर हमें PCR रेश्यो मिलता है –

37016925 / 42874200 = 0.863385

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि –

  • अगर PCR 1 के ऊपर है मान लीजिए 1.3 तो इसका मतलब है कि बाजार में कॉल की तुलना में ज्यादा पुट खरीदे जा रहे हैं। इसका मतलब होता है कि बाजार में बहुत ज्यादा मंदी हो गई है यानी बाजार ओवरसोल्ड (oversold) है। ऐसे में आप तेजी की या बाजार के घूमने की उम्मीद कर सकते हैं। 
  • अगर PCR कम है यानी 0.5 या उससे नीचे है तो इसका मतलब है कि पुट ऑप्शन की तुलना में ज्यादा कॉल ऑप्शन खरीदे जा रहे हैं इसका मतलब होता है कि बाजार बहुत ज्यादा तेजी में आ चुका है और अब ओवरबॉट (overbought) स्थिति में है। यहां पर आप फिर से बाजार के घूमने विपरीत दिशा में चलने यानी नीचे जाने की उम्मीद कर सकते हैं। 
  • अगर PCR 0.5 और 1 के बीच में रहता है तो इसका मतलब है कि बाजार में सब कुछ सामान्य ट्रेडिंग के आधार पर हो रहा है ऐसे में पीसीआर का कोई बहुत महत्व नहीं रह जाता है।

यहां ध्यान रखने की जरूरत है कि PCR का यह तरीका आम तरीका है इसलिए इस को और बेहतर बनाने के लिए आपको 1 या 2 साल की हर दिन के PCR के स्तर को देखना होगा और उसमें से उस स्तर को पहचानना होगा जो कि बहुत अधिक या बहुत कम है। इससे आपको यह पता चल सकेगा कि किस जगह बाजार ओवरसोल्ड या ओवरबॉट होता है। जैसे कि आंकड़े आपको बता सकते हैं कि निफ्टी के लिए 1.3 का स्तर बहुत ज्यादा मंदी वाला है लेकिन हो सकता है इंफोसिस के लिए 1.2 ही बहुत ज्यादा मंदी का स्तर हो। आपको इसके बारे में पता होना चाहिए। 

आपके दिमाग में यह सवाल उठ सकता है कि PCR को कांट्रेरियन इंडिकेटर क्यों माना जाता है। इसको समझाना थोड़ा सा मुश्किल है। लेकिन आमतौर पर यह कहा जाता है कि अगर ट्रेडर तेजी या मंदी में है तो उनमें से ज्यादातर ने अपनी एक पोजीशन ले ली है (इसी वजह से PCR ऊपर या नीचे होता है) ऐसे में बाजार में बहुत ज्यादा लोग नहीं बचते हैं जो आकर नई पोजीशन लें और बाजार की दिशा बनाए रखें यानी बाजार अपनी तेजी या मंदी को आगे नहीं बढ़ा सकता। ऐसे में इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचता कि ये पोजीशन अब स्क्वेयर ऑफ हों। जिसकी वजह से बाजार दूसरी दिशा में चलने लगेगा। 

तो यह था PCR यानी पुट कॉल रेश्यो। आपको इसके कई रूप देखने को मिल सकते हैं- कुछ लोग ओपन इंट्रेस्ट की जगह कुल ट्रेडिंग की संख्या को ले कर PCR निकालते हैं जबकि कुछ लोग इसे वॉल्यूम के आधार पर निकालते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि PCR को लेकर ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है।

13.6 – कुछ और अंतिम विचार 

इसके साथ मैं ऑप्शन पर इस मॉड्यूल को खत्म करता हूं जो कि 2 मॉड्यूल और 36 अध्याय में फैला हुआ था।

हमने इस मॉड्यूल में 15 अलग-अलग तरीके की ऑप्शन स्ट्रैटेजी पर चर्चा की, मुझे लगता है कि इतनी स्ट्रैटेजी रिटेल ट्रेडर के लिए प्रोफेशनल ट्रेडिंग करने के हिसाब से काफी हैं। बाजार में आपको तरह तरह की कई और ऑप्शन स्ट्रैटेजी बाद में मिल सकती हैं। बहुत सारे लोग आपको नई नई स्ट्रैटेजी और उसके फायदे बताएंगे, लेकिन याद रखिए कि नई स्ट्रैटेजी से फायदा हो ये जरूरी नहीं होता अच्छी स्ट्रैटेजी वही होती है जो सीधी और सरल हो, और उपयोग करने में आसान हो। 

मॉड्यूल 5 और 6 में जो कुछ भी आपको बताया गया है, उसके पीछे मंशा यह थी कि आप ऑप्शन ट्रेडिंग को अच्छे तरीके से समझ लें और यह जान सकें आपके लिए क्या करना संभव है और ऑप्शन में क्या करना संभव नहीं है। हमने इस पर अच्छे से विचार किया है कि किस चीज की जरूरत है और किस की जरूरत नहीं है। मेरा मानना है कि यह दोनों मॉड्यूल आपके ऑप्शन से जुड़े हुए सवाल का समाधान करने के लिए जरूरत से ज्यादा हैं।

इसलिए कुछ समय निकालकर ये सब कुछ अपनी रफ्तार से पढ़ने के बाद ऑप्शन ट्रेडिंग अच्छे से शुरू कीजिए।

मुझे उम्मीद है कि आप को पढ़ने में उतना ही मजा आया होगा जितना कि मुझे लिखने में आया

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. ऑप्शन पेन थ्योरी मानती है कि ऑप्शन बेचने वालों के मुकाबले आप्शन राइटर लगातार ज्यादा पैसे बनाते हैं।
  2. ऑप्शन पेन का सिद्धांत यह मानता है कि आप्शन को बेचने वाले यानी राइटर एक्सपायरी के दिन कीमत को अपने हिसाब से ऊपर नीचे कर लेते हैं। 
  3. आप स्टॉक या इंडेक्स की एक्सपायरी कीमत को जानने के लिए ऑप्शन पेन थ्योरी का उपयोग कर सकते हैं।
  4. जिस स्ट्राइक पर ऑप्शन राइटर यानी बेचने वाले को सबसे कम नुकसान हो रहा हो उसी स्तर पर स्टॉक या इंडेक्स के एक्सपायर होने की संभावना होती है।
  5. PCR यानी पुट कॉल रेश्यो को निकालने के लिए पुट के कुल ओपन इंट्रेस्ट को कॉल के कुल ओपन इंट्रेस्ट से विभाजित किया जाता है। 
  6. PCR एक कॉन्ट्रेरियन इंडिकेटर माना जाता है।
  7. आमतौर पर 1.3 से ऊपर के PCR को मंदी का माना जाता है और 0.5 से कम के PCR स्तर को तेजी का स्तर माना जाता है।

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लॉन्ग और शार्ट स्ट्रैंगल https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%97-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%97-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:49:22 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=7000 12.1 – पृष्ठभूमि  अगर आपने स्ट्रैडल को समझ लिया है तो आपके लिए स्ट्रैंगल को समझना काफी आसान होगा। स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल करीब-करीब एक जैसे ही होते हैं क्योंकि इनके पीछे की सोच एक जैसी होती है। स्ट्रैंगल को वास्तव में स्ट्रैडल में सुधार कर बनाया गया है, जिससे कि स्ट्रैटेजी की कीमत कम हो […]

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12.1 – पृष्ठभूमि 

अगर आपने स्ट्रैडल को समझ लिया है तो आपके लिए स्ट्रैंगल को समझना काफी आसान होगा। स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल करीब-करीब एक जैसे ही होते हैं क्योंकि इनके पीछे की सोच एक जैसी होती है। स्ट्रैंगल को वास्तव में स्ट्रैडल में सुधार कर बनाया गया है, जिससे कि स्ट्रैटेजी की कीमत कम हो जाए। इसको थोड़ा विस्तार से समझते हैं-

मान लीजिए – निफ्टी 5921 पर ट्रेड कर रहा है इसका मतलब है कि 5900 पर ATM स्ट्राइक है। अब अगर यहां आपको लॉन्ग स्ट्रैडल बनाना है तो आपको 5900 CE और 5900 PE खरीदना होगा। इन दोनों का प्रीमियम क्रमश: 66 और 57 होगा 

नेट कैश आउट ले =  66 57 = 123 

ऊपर का ब्रेक इवन = 5921 + 123 = 6044 

नीचे का ब्रेक इवन 5921 123 = 5798 

अब ऐसे में स्ट्रैडल बनाने के लिए आपने 123 खर्च कर दिए और दोनों ही तरफ ब्रेक इवन 2.07% दूर है यानी ब्रेक इवन आना आसान नहीं है।  जैसा कि आपको पता है कि स्ट्रैडल डेल्टा न्यूट्रल होता है मतलब इस स्ट्रैटेजी पर इस बात का कोई असर नहीं होता कि बाजार की चाल किस दिशा में होगी। यहां पर सोच यह है कि आपको पता है कि बाजार काफी ज्यादा चलेगा लेकिन किस तरफ चलेगा यह आपको नहीं पता है।

अब जरा सोचिए कि आपकी रिसर्च आपको बताती है कि बाजार चलेगा और इसीलिए आपने स्ट्रैडल बनाया, लेकिन इस स्ट्रैडल के लिए आपको 123 का भुगतान तुरंत करना होगा। अब ऐसे में अगर आपको कोई ऐसी मार्केट न्यूट्रल स्ट्रैटेजी मिल जाए जो कि हो तो स्ट्रैडल की तरह ही लेकिन उसकी कीमत कम हो तो, स्ट्रैंगल ठीक यही काम करता है.

12.2 स्ट्रैटेजी से जुड़ी हुई बातें

स्ट्रैंगल, स्ट्रैडल का ही सुधरा हुआ रूप है, इस सुधार की वजह से स्ट्रैटेजी की कीमत कम हो जाती है, लेकिन इसके बदले में ब्रेक इवन जरूर बढ़ जाता है। 

स्ट्रैडल में आपको कॉल और पुट ऑप्शन के ATM स्ट्राइक को खरीदना होता है, जबकि स्ट्रैंगल में आपको OTM का कॉल और पुट ऑप्शन खरीदना होता है। याद रखिए कि ATM की तुलना में OTM हमेशा ही कम कम कीमत पर मिलता है और इसी वजह से स्ट्रैंगल की कीमत स्ट्रैडल के मुकाबले कम होती है।

इसको ज्यादा अच्छे से समझने के लिए एक उदाहरण देखते हैं –

निफ़्टी 7921 पर है। स्ट्रैंगल बनाने के लिए हमें कॉल और पुट के OTM ऑप्शन खरीदने हैं। ध्यान रखिए कि दोनों ही ऑप्शन एक ही एक्सपायरी के और एक ही अंडरलाइंग के हों। उनको लेने का अनुपात हमेशा एक समान होना चाहिए। (स्ट्रैडल के समय मैं ये बात याद दिलाना भूल गया था) 

यहां एक ही अनुपात का मतलब है कि कॉल ऑप्शन की संख्या उतनी होनी चाहिए जितनी संख्या पुट ऑप्शन की है। मतलब यह कि 1:1 का अनुपात हो सकता है अगर कॉल का एक लॉट खरीदा गया है और  पुट का भी एक ही ल़ॉट खरीदा गया। अगर आप 5:5 का अनुपात बना रहे हैं तो कॉल का 5 लॉट खरीदने पर पुट का भी 5 लॉट खरीदें। 2:3 का अनुपात या ऐसा कोई और अनुपात स्ट्रैंगल या स्ट्रैडल के लिए नहीं है। अगर आप कॉल के दो लॉट खरीदे और पुट के तीन लॉट खरीदें तो यह स्ट्रैंगल और स्ट्रैडल में काम नहीं आता।

तो अपने उदाहरण पर वापस लौटते हैं, हमने माना है कि निफ़्टी 7931 पर है हमें OTM कॉल और पुट ऑप्शन खरीदना है तो मैं यहां पर दोनों तरफ 200 प्वाइंट दूर की स्ट्राइक को खरीदूंगा (ध्यान रखिए कि इसकी कोई खास वजह नहीं है कि मैं 200 प्वाइंट दूर का स्ट्राइक चुन रहा हूं) इसका मतलब है कि मैं 7700 का पुट ऑप्शन 8100 का कॉल ऑप्शन खरीदूंगा। यह ऑप्शन 28 और 32 पर बिक रहे हैं। 

तो स्ट्रैंगल बनाने के लिए कुल मिलाकर 60 का प्रीमियम देना पड़ेगा। तो अब देखते हैं अलग-अलग स्थितियों में यह स्ट्रैटेजी किस तरह से काम करती है। मैं यहां पर चर्चा को छोटा ही रखूंगा क्योंकि मुझे भरोसा है कि अब आप बाजार की अलग-अलग स्थितियों में होने वाले P&L को आसानी से समझ सकते हैं।

स्थिति 1बाजार 7500 पर एक्सपायर होता है (PE स्ट्राइक से काफी नीचे) 

7500 पर कॉल ऑप्शन के लिए दिया गया प्रीमियम यानी 32 वर्थलेस हो जाएगा, लेकिन पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू 200 प्वाइंट की होगी। पुट ऑप्शन के लिए दिया गया प्रीमियम है 28 इस तरह कुल मुनाफा होगा 200 – 28  = 172

अब अगर हम कॉल आप्शन के लिए दिए गए प्रीमियम,32, को भी पुट ऑप्शन से हो रहे इस मुनाफे में से घटा दें तो कुल मुनाफा होगा 172 – 32 = 140

स्थिति 2 – बाजार 7640 पर एक्सपायर होता है (नीचे के ब्रेक इवन पर) 

7640 पर 7700 पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू 60 होगी। पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू दोनों ऑप्शन के लिए दिए गए प्रीमियम के बराबर है, 32 + 28 = 60 , मतलब 7640 पर स्ट्रैंगल में ना तो पैसे बनते हैं और ना ही पैसे डूबते हैं। 

स्थिति 3 – बाजार 7700 पर एक्सपायर होता है (PE स्ट्राइक पर) 

7700 पर कॉल और पुट दोनों ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर होंगे और दिया गया प्रीमियम, 32 + 28 = 60,  डूब जाएगा। यहां पर इस स्ट्रैटेजी का घाटा अपने अधिकतम स्तर पर होगा। 

स्थिति 4 – बाजार 7900,8100 पर एक्सपायर होता है (क्रमश: ATM और CE स्ट्राइक) 

7900 और 8100 पर दोनों ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर होंगे और दिया गया प्रीमियम 60,  डूब जाएगा। 

स्थिति 5 – बाजार 8160 पर एक्सपायर होता है (ऊपर का ब्रेक इवन)

8160 पर 8100 के कॉल ऑप्शन की ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू 60 होगी। कॉल ऑप्शन में हो रहा मुनाफा  कॉल और पुट ऑप्शन के लिए दिए गए प्रीमियम की भरपाई कर देगा। 

स्थिति  – बाजार 8300 पर एक्सपायर होता है (CE स्ट्राइक के काफी ऊपर)

8300 पर 8100 के कॉल ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू 200 होगी। इसलिए इस आप्शन में 200 बनेंगे। दोनों प्रीमियम के 60 को निकालने के बाद हमारे पास बचेंगे 140. ध्यान दीजिए कि ब्रेक इवन के ऊपर और ब्रेक इवन के नीचे के पे ऑफ में समानता है।

अब बाजार की अलग-अलग एक्सपायरी स्तर पर होने वाले पे ऑफ के टेबल पर नजर डालते हैं

इनको स्ट्रैंगल के पे ऑफ स्ट्रक्चर के ग्राफ में भी देखा जा सकता है

हम स्ट्रैंगल के बारे में कुछ सामान्य बाते कह सकते हैं

  1. अधिकतम नुकसान दिए गए नेट प्रीमियम के बराबर होता है
  2. अधिकतम नुकसान दो स्ट्राइक कीमतों के बीच में होता है 
  3. ऊपर का ब्रेक इवन = CE स्ट्राइक + दिया गया नेट प्रीमियम 
  4. नीचे का ब्रेक इवन =  PE स्ट्राइक दिया गया नेट  प्रीमियम 
  5. मुनाफे की संभावना असीमित होती है

बाजार ऊपर जाए या नीचे आप पैसे बनाते हैं, बाजार की दिशा यहां कोई मायने नहीं रखती। 

12.3 – डेल्टा और वेगा

स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल दोनों एक जैसी स्ट्रैटेजी हैं इसीलिए इन पर ग्रीक्स का असर एक जैसा होता है। 

क्योंकि हम OTM ऑप्शन को चुन रहे हैं (याद रखें कि ये ATM से बराबर दूरी की स्ट्राइक है) इसलिए कॉल और पुट दोनों का डेल्टा 0.3 या उससे कम होगा। हम इन दोनों डेल्टा को जोड़ सकते हैं और पोजीशन का कुल डेल्टा निकाल कर देख सकते हैं

  • 7700 PE  का डेल्टा @ 0.3, 
  • 8100 CE का डेल्टा @ + 0.3, 
  • कुल डेल्टा होगा -0.3 + 0.3 = 0

मैंने दोनों के डेल्टा को 0.3 माना है लेकिन ये थोड़ा अलग भी हो सकते हैं, इसलिए ये हो सकता है कि हम पूरी तरह से डेल्टा न्यूट्रल ना हों, लेकिन डेल्टा इतने भी अधिक नहीं होंगे कि बाजार की दिशा इस स्ट्रैटेजी पर अपना असर डालने लगे। वैसे भी कुल डेल्टा हमें यही बता रहा है कि स्ट्रैटेजी डेल्टा न्यूट्रल है।

वोलैटिलिटी स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल दोनों पर एक जैसा असर डालती है। आप अध्याय 10 के अंश 10.3 में जा कर देख सकते हैं कि वोलैटिलिटी स्ट्रैंगल पर क्या असर डालती है। 

स्ट्रैंगल पर ग्रीक्स का असर

  1. स्ट्रैटेजी बनाते समय वोलैटिलिटी को नीचे होना चाहिए 
  2. स्ट्रैटेजी के होल्डिंग अवधि में वोलैटिलिटी को ऊपर जाना चाहिए 
  3. बाजार में एक बड़ी चाल आनी चाहिए चाहे वह किसी भी दिशा में आ रही हो 
  4. बाजार की चाल एक निश्चित समय में और जल्दी होनी चाहिए यानी एक्सपायरी के पहले
  5. लॉन्ग स्ट्रैंगल को बाजार में होने वाली किसी बड़ी घटना के आसपास बनाना चाहिए और इस घटना का नतीजा बाजार की उम्मीद से काफी अलग होना चाहिए

मेरा अनुमान है कि आप समझ गए होंगे कि लॉन्ग स्ट्रैंगल को बाजार में होने वाली किसी बड़ी घटना के आसपास क्यों बनाना चाहिए, हमने इसके बारे में पहले भी बात की है, आप चाहें तो अध्याय 10 को फिर से पढ़ सकते हैं। 

12.4 – शॉर्ट स्ट्रैंगल 

शॉर्ट स्ट्रैंगल, लॉन्ग स्ट्रैंगल से पूरी तरह से विपरीत है  यहां पर OTM कॉल और पुट आप्शन को बेचना होता है जो कि ATM स्ट्राइक से बराबर दूरी पर हों। स्ट्रैंगल को शॉर्ट तब किया जाता है जबकि उससे लॉन्ग स्ट्रैंगल से मिलने वाले परिणाम के पूरी तरह से विपरीत परिणाम चाहते हों। मैं यहां पर इस पर चर्चा नहीं करूंगा कि अलग-अलग एक्सपायरी में यह स्ट्रैटेजी किस तरह से काम करती है क्योंकि मुझे लगता है कि अब तक आप पे ऑफ को देखना समझ गए होंगे।

मैंने यहां पर शॉर्ट स्ट्रैंगल के लिए भी उन्हीं स्ट्राइक का इस्तेमाल किया है जिनको लॉन्ग स्ट्रैंगल के लिए चुना था। बस यहां पर इन स्ट्राइक को खरीदने के बजाय आपको इन OTM स्ट्राइक को बेचना है ताकि शॉर्ट स्ट्रैंगल बन सके। इनके पे ऑफ टेबल पर नजर डालते हैं

जैसा कि आप देख सकते हैं कि स्ट्रैटेजी में तब नुकसान होता है जब बाजार किसी भी दिशा में चलने लगता है, लेकिन नीचे और ऊपर के ब्रेक इवन के बीच में स्ट्रैटेजी में फायदा होता है। याद रखिए कि 

  • ऊपर का ब्रेक इवन 8160 पर है
  • नीचे का ब्रेक इवन 7640 पर है
  • अधिकतम मुनाफा मिले हुए प्रीमियम के बराबर यानी 60 प्वाइंट के बराबर ही होता है

दूसरे शब्दों में आप कह सकते हैं कि अगर बाजार 7640 से 8160 के बीच में रहता है तो आप 60 प्वाइंट का मुनाफा घर ले जा सकते हैं। मेरे हिसाब से ये बहुत बढ़िया है। बाजार आमतौर पर एक दायरे में ही रहता है और इसलिए आपको इस तरह के ट्रेडिंग के मौके मिलते रहते हैं। 

आपको सोचना ये है कि- कौन से स्टॉक एक ट्रेडिंग रेंज में हैं, आमतौर पर ऐसे स्टॉक डबल या ट्रिपल टॉप और बॉटम बनाते हैं। यहां पर एक स्ट्रैंगल बनाना है जिसमें स्ट्राइक ऊपर और नीचे के रेंज के बाहर हो। साथ ही, इस तरह से स्ट्रैंगल बनाते समय ध्यान दें कि ब्रेकडाउन या ब्रेकआउट कब हो रहा है।

मुझे याद है कि मैंने कुछ साल पहले रिलायंस में ऐसा ट्रेड बार बार किया था, जब रिलायंस 850 से 100 के रेंज में फंसा हुआ था।

शॉर्ट स्ट्रैंगल का पे ऑफ ग्राफ ऐसा दिखता है

  1. शार्ट स्ट्रैंगल का पे ऑफ लॉन्ग स्ट्रैंगल के पे ऑफ के एकदम विपरीत दिखता है।
  2. मुनाफा मिले हुए नेट प्रीमियम के बराबर होता है।
  3. अधिकतम मुनाफा तब होता है जब स्टॉक दो स्ट्राइक कीमतों के बीच में रहता है।
  4. नुकसान की संभावना असीमित होती है।

यहां पर ब्रेकइवन प्वाइंट वैसे ही निकालते हैं जैसे कि लॉन्ग स्ट्रैंगल के लिए करते हैं। इसे हमने पहले देखा हुआ है।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. स्ट्रैंगल, स्ट्रैडल का ही सुधरा हुआ रूप है। इस सुधार की वजह से स्ट्रैटेजी पर होने वाला खर्च कम हो जाता है।
  2. स्ट्रैंगल डेल्टा न्यूट्रल होते हैं और इनमें बाजार की दिशा का कोई रिस्क नहीं होता है।
  3. लॉन्ग स्ट्रैंगल में आपको OTM कॉल और पुट ऑप्शन को साथ-साथ खरीदना होता है। 
  4. लॉन्ग स्ट्रैंगल में अधिकतम नुकसान कुल मिले हुए प्रीमियम के बराबर होता है। 
  5. लॉन्ग स्ट्रैंगल में मुनाफे की असीमित संभावना होती है। 
  6. शार्ट स्ट्रैंगल, लॉन्ग स्ट्रैंगल के एकदम विपरीत होता है यहां पर आपको OTM कॉल और पुट ऑप्शन को साथ-साथ बेचना होता है।
  7. स्ट्रैंगल और स्ट्रैडल पर ग्रीक्स का असर एक जैसा ही होता है।

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शॉर्ट स्ट्रैडल https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b6%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%88%e0%a4%a1%e0%a4%b2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b6%e0%a5%89%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%88%e0%a4%a1%e0%a4%b2/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:48:49 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6998 11.1 – संदर्भ पिछले अध्याय में हमने जाना कि लॉन्ग स्ट्रैडल में मुनाफा कमाने के लिए हमें कुछ चीजों को अपने पक्ष में करना पड़ता है। एक बार उन चीजों पर फिर से नजर डाल लेते हैं –  स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल करते समय वोलैटिलिटी को नीचे होना चाहिए  स्ट्रेटजी की होल्डिंग अवधि में वोलैटिलिटी को […]

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11.1 – संदर्भ

पिछले अध्याय में हमने जाना कि लॉन्ग स्ट्रैडल में मुनाफा कमाने के लिए हमें कुछ चीजों को अपने पक्ष में करना पड़ता है। एक बार उन चीजों पर फिर से नजर डाल लेते हैं – 

  1. स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल करते समय वोलैटिलिटी को नीचे होना चाहिए 
  2. स्ट्रेटजी की होल्डिंग अवधि में वोलैटिलिटी को ऊपर जाना चाहिए 
  3. बाजार में एक बड़ी चाल आनी चाहिए, भले ही किसी भी दिशा में हो 
  4. बाजार की यह चाल एक निश्चित अवधि में आनी चाहिए यानी जल्दी और एक्सपायरी के पहले होनी चाहिए 
  5. लॉन्ग स्ट्रैडल का इस्तेमाल बाजार की किसी बड़ी घटना के आसपास होना चाहिए और इस घटना का नतीजा उससे बिल्कुल अलग होना चाहिए जैसा कि बाजार उम्मीद कर रहा है

यह सच है कि लॉन्ग स्ट्रैडल में बाजार की चाल की दिशा का कोई असर नहीं होता लेकिन यहां पर पैसे कमाना इतना आसान नहीं होता खासकर जब हम यह जानते हैं कि ऊपर दिए गए पांच बिंदुओं को आपके पक्ष में काम करना होगा और तभी आप पैसे बना सकते हैं। आपको याद ही होगा कि पिछले अध्याय में हमने देखा था कि ब्रेकडाउन तक पहुंचने के लिए 2% से चाल की जरूरत होती है और मुनाफा कमाने के लिए 1% अतिरिक्त चाल की जरूरत होती है। इसका मतलब है कि इंडेक्स को करीब 3% चलना होगा। मेरा अपना अनुभव कहता है कि बाजार में इतनी बड़ी चाल का आना काफी मुश्किल होता है और यही वजह है कि मैं कभी भी लॉन्ग स्ट्रैडल लेने के पहले दो बार सोचता हूं। 

मैंने कई ट्रेडर्स को लॉन्ग स्ट्रैडल का इस्तेमाल बहुत ही लापरवाही से करते हुए देखा है, उनको लगता है कि इस स्ट्रैटेजी में बाजार की दिशा का कोई असर नहीं पड़ता इसलिए वो सुरक्षित हैं। लेकिन अंततः वो पैसे गंवा बैठते हैं। बाजार की चाल और बाजार का टाइम डिले (time delay) आमतौर पर उनके पक्ष में काम नहीं करते हैं। यहां ध्यान रखिए कि मैं आपको लॉन्ग स्ट्रैडल लेने के लिए हतोत्साहित नहीं कर रहा हूं। वास्तव में, लॉन्ग स्ट्रैडल का सीधा और सरल होना सबको पता है, जब ऊपर के 5 बिंदु आप के पक्ष में हो तो यह बहुत खूबसूरती से काम करता है, मैं सिर्फ यह मानता हूं कि इन पांचों चीजों का एक साथ आपके पक्ष में आना थोड़ा कठिन होता है। 

तो अगर इन 5 चीजों का आपके पक्ष में आना लॉन्ग स्ट्रैडल में मुनाफा कमाने से रोकता है तो यही पांच बिंदु इस स्ट्रेटजी की विपरीत स्थिति में आपका साथ देंगे यानी शॉर्ट स्ट्रैडल में आपका साथ देंगे।

10.2 – शॉर्ट स्ट्रैडल

बहुत सारे ट्रेडर इस बात से डरते हैं कि शॉर्ट स्ट्रैडल में घाटा असीमित होता है। लेकिन मैं बहुत सारे मौकों पर शॉर्ट स्ट्रैडल से ट्रेड करना फायदेमंद मानता हूं। आइए पहले देख लेते हैं कि शॉर्ट स्ट्रैडल का सेटअप कैसा होता है और इसका P&L अलग-अलग स्थितियों में किस तरह से काम करता है

एक शॉर्ट स्ट्रैडल को बनाना काफी आसान होता है – यहां ATM कॉल और पुट ऑप्शन को बेचना होता है जबकि लॉन्ग स्ट्रैडल में ATM कॉल और पुट ऑप्शन को खरीदना होता था। शॉर्ट स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल नेट क्रेडिट के लिए किया जाता है, जब आप ATM ऑप्शन को बेचते हैं तो प्रीमियम की रकम आपके एकाउंट में आती है।

एक उदाहरण देखते हैं, मान लें कि निफ्टी 7859 पर है, तो अब 7600 ATM स्ट्राइक होगा। ऑप्शन का प्रीमियम होगा –  

  • 7600 CE यहां 77 पर ट्रेड कर रहा है
  • 7600 PE यहां 88 पर ट्रेड कर रहा है 

अब शॉर्ट स्ट्रैडल के लिए हमें ये दोनों ऑप्शन बेचने होंगे और हमें कुल 77 + 88 = 165 का प्रीमियम मिलेगा। 

यह ध्यान रखें कि –  ऑप्शन एक ही अंडरलाइंग से जुड़े होंएक ही एक्सपायरी के हों और एक ही स्ट्राइक से जुड़े हों। अब मान लीजिए कि आपने शॉर्ट स्ट्रैडल ले लिया है तो आइए कुछ अलग-अलग स्थितियों में P&L को देखते हैं

स्थिति 1बाजार 7200 पर एक्सपायर होता है (पुट ऑप्शन में नुकसान होता है) 

यह वह स्थिति है जहां पुट ऑप्शन में होने वाला घाटा इतना बड़ा है कि वो CE और PE दोनों से मिलने वाले प्रीमियम से अधिक होगा। 7200 पर

  • 7600 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा, इस वजह से, ₹77 का प्रीमियम हमें मिल जाएगा। 
  • 7600 PE इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 400, दिए गए प्रीमियम को इसमें से निकालने के बाद, मतलब ₹88 को निकालने के बाद, हमें नुकसान होगा 400 – 88 = – 312 
  • कुल यानी नेट नुकसान होगा 312 – 77 = 235

जैसा कि आप देख सकते हैं कि कॉल ऑप्शन से होने वाला मुनाफे से अधिक पुट ऑप्शन में नुकसान हो रहा है। 

स्थिति 2 – बाजार 7435 पर (नीचे के ब्रेक इवन पर) एक्सपायर होता है 

यह वह स्थिति है जहां पर ना तो पैसे बनते हैं और ना ही पैसे डूबते हैं। 

  • 7600 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए जो प्रीमियम दिया गया है यानी ₹77 उसको हम अपने पास रख सकेंगे। यानी ₹77 का मुनाफा होगा। 
  • 7600 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 165 इसका मतलब है जबकि हमें प्रीमियम मिला है ₹88 का, इसलिए हमें नुकसान होगा 165 – 88 = – 77 
  • कॉल ऑप्शन से होने वाला फायदा पुट ऑप्शन के होने वाले नुकसान के बराबर है इसलिए 7435 पर ना तो पैसे बनते हैं और ना ही पैसे डूबते हैं। 

स्थिति 3 – बाजार 7600 पर एक्सपायर होता है (ATM स्ट्राइक पर, अधिकतम फायदा) 

7600 पर स्थिति शॉर्ट स्ट्रैडल के लिए सबसे अच्छी है, स्थिति सीधी है, कॉल और पुट दोनों ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर होंगे और दोनों का प्रीमियम हमें मिल जाएगा। यानी दिए गए प्रीमियम ₹165 के बराबर का फायदा होगा। 

मतलब यह कि शॉर्ट स्ट्रैडल में आपको सबसे अधिक मुनाफा तब होता है जब बाजार में कोई चाल नहीं होती है यानी वो अपनी जगह पर स्थिर रहता है।

स्थिति 4 – बाजार 7765 पर एक्सपायर होता है (ऊपर का ब्रेक डाउन) 

यह स्थिति लगभग स्थिति 2 की तरह ही है। यहां पर स्ट्रैटेजी का ब्रेक इवन ATM स्ट्राइक के ऊपर बनता है 

  • 7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 165, यानी कॉल ऑप्शन के प्रीमियम ₹77 को निकालने के बाद हमें ₹88 (165 -77) का नुकसान होगा 
  • 7600 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए इसके लिए दिया गया प्रीमियम ₹88 हम रख सकेंगे 
  • 7600 PE  में होने वाला फायदा 7600 CE  में होने वाले घाटे की भरपाई करेगा, मतलब ना तो फायदा होगा ना ही नुकसान 

इसलिए इस स्तर पर स्ट्रैटेजी का ऊपर का ब्रेक इवन होगा।

स्थिति 5 – बाजार 8000 पर एक्सपायर होता है, (कॉल ऑप्शन में पैसे डूबते हैं) 

इस स्थिति में बाजार 7600 के ATM स्तर से काफी ऊपर है। इसलिए कॉल ऑप्शन का प्रीमियम बढ़ेगा और हमें नुकसान होगा। 

  • 7600 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए ₹88 का प्रीमियम मिल जाएगा 
  • 8000 पर 7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू 400 होगी, इसलिए मिले हुए प्रीमियम ₹77 को निकालने के बाद हमें 323 (400 -77) का नुकसान होगा। 
  • हमें पुट ऑप्शन के लिए ₹88 का प्रीमियम मिला है, इसलिए नुकसान होगा 88 – 323 = 235   

तो जैसा कि आप देख सकते हैं कि कॉल ऑप्शन में होने वाला नुकसान इतना ज्यादा है कि वह दोनों ऑप्शन के लिए मिले कुल प्रीमियम से भी अधिक है।  

अब बाजार की अलग-अलग एक्सपायरी स्तर पर होने वाले पे ऑफ के टेबल पर नजर डालते हैं

 

 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि 

  1. अधिकतम फायदा (165) 7600 के स्तर पर होता है जो कि ATM स्ट्राइक है 
  2. स्ट्रैटेजी में फायदा सिर्फ नीचे और पर के ब्रेकडाउन के बाच में ही होता है 
  3. बाजार की किसी भी दिशा में चले तो असीमित नुकसान होता है 

इनको पे ऑफ स्ट्रक्चर के ग्राफ में भी देखा जा सकता है

एक उल्टे V की तरह दिखने वाले इस पे ऑफ ग्राफ से यह साफ है कि 

  1. अधिकतम फायदा ATM स्ट्राइक पर होता है, आप जैसे जैसे ATM से दूर जाते हैं मुनाफा कम होता जाता है।
  2. अगर बाजार दोनों ब्रेक डाउन स्तर के बीच में रहता है तो इस स्ट्रैटेजी में पैसे बनते हैं।
  3. अधिकतम नुकसान तब होता है जब बाजार ब्रेक डाउन स्तर से काफी दूर चला जाता है, बाजार ब्रेक डाउन स्तर से जितना दूर होता है नुकसान उतना ही अधिक होता है। 
  4. अधिकतम नुकसान =  असीमित 
  5. यहां पर दो ब्रेक इवन है दोनों ही तरफ ATM से बराबर दूरी पर 
  6. ऊपर का ब्रेक इवन = ATM + नेट प्रीमियम 
  7. नीचे का ब्रेक इवन = ATM नेट  प्रीमियम 

अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि शॉर्ट स्ट्रैडल पूरी तरह से विपरीत है लॉन्ग स्ट्रैडल से। शॉर्ट स्ट्रैडल सबसे अच्छे से काम तब करता है जब बाजार एक छोटे दायरे में रहता है और उसमें ज्यादा बड़ी चाल नहीं आती। 

बहुत सारे ट्रेडर शॉर्ट स्ट्रैडल से डरते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि इसमें दोनों तरफ असीमित नुकसान हो सकता है। लेकिन मेरा अपना अनुभव कहता है कि अगर आप इस का इस्तेमाल सही से करें तो ये एक अच्छी स्ट्रैटेजी हो सकती है। पिछले मॉड्यूल में मैंने एक खास स्थिति का जिक्र किया था जिसमें शॉर्ट स्ट्रैडल का इस्तेमाल हो सकता है। मेरे हिसाब से वो इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है कि शॉर्ट स्ट्रैडल का इस्तेमाल कब किया जाना चहिए।

अब मैं फिर से उस केस स्टडी को पेश कर रहा हूं शायद आप उसे ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकेंगे।  

11.3 – केस स्टडी ( पिछले मॉड्यूल से )

इस केस स्टडी का इस्तेमाल मैंने मॉड्यूल 5, अध्याय 23 में किया था। मैं फिर से उस केस स्टडी को पेश कर रहा हूं शायद आप इस उदाहरण को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकेंगे। आप उस अध्याय को फिर से पढ़ लेंगे तो आपके लिए इसे समझना आसान हो जाएगा।  

इंफोसिस 12 अक्टूबर को अपने Q2 के नतीजे पेश करने वाला था। यहां पर भी सोच सीधी-सादी थी कि इस खबर की वजह से वोलैटिलिटी ऊपर जाएगी, तो ऑप्शन को शॉर्ट करना चाहिए। इस उम्मीद के साथ कि आप बाद में जब वोलैटिलिटी नीचे हो जाए आप इसे कम भाव पर खरीद सकेंगे। तो पूरी योजना के साथ, इस पोजीशन को 8 अक्टूबर को लिया गया यानी घटना से 4 दिन पहले। 

इंफोसिस 1142 रुपए पर ट्रेड हो रहा था इसलिए इस ट्रेडर ने फैसला किया कि 1140 की स्ट्राइक (ATM) ली।

ट्रेड शुरू करते वक्त ऑप्शन चेन का चित्र ऐसा था

8 अक्टूबर को सुबह 10:35 पर 1140 CE ₹48 पर ट्रेड कर रहा था और इंप्लाइड वोलैटिलिटी 40.26% थी। 1140 PE ₹47 पर ट्रेड कर रहा था इंप्लाइड वोलैटिलिटी 8% थी। कुल मिलाकर दोनों का प्रीमियम ₹95 प्रति लॉट मिला। 

बाजार को उम्मीद थी कि इंफोसिस अच्छे नतीजों का ऐलान करेगा। वास्तव में नतीजे उम्मीद से भी ज्यादा अच्छे थे , देखिए –

जुलाई सितंबर तिमाही के लिए इंफोसिस ने 519 मिलियन डॉलर का नेट प्रॉफिट दिखाया था जबकि पिछले साल इसी अवधि के लिए मुनाफा 511 मिलियन डॉलर का था। कंपनी की आमदनी 8.7% बढ़कर 2.39 बिलियन डॉलर हो गई। सीक्वेंशियल बेसिस (sequential basis) यानी अनुक्रमिक आधार पर भी आमदनी 6% बढ़ी जबकि बाजार 4- 4.5 % की ही उम्मीद कर रहा था। 

रुपए में देखे तो नेट प्रॉफिट 9.8% बढ़कर 3398 करोड़ हो गया और आमदनी 15635 करोड़ रुपए जो कि पिछले साल से 17.2% ज्यादा थी। (स्त्रोत- इकोनामिक टाइम्स) 

कंपनी ने नतीजों की घोषणा सुबह 9:18 पर की बाजार खोलने के 3 मिनट बाद की और इस ट्रेडर ने अपना सौदा उसी समय काट दिया। 

यह है उस समय का चित्र-

1140 CE अब ₹55 पर ट्रेड कर रहा था और इंप्लाइड वोलैटिलिटी (Implied Volatility) गिरकर 28% रह गई थी 1140 PE अब ₹20 पर ट्रेड कर रहा था और इंप्लाइड वोलैटिलिटी गिरकर 40% रह गई थी। 

यहां ध्यान दीजिए कि कॉल ऑप्शन जिस रफ्तार से ऊपर बढ़ा वो उस रफ्तार से कम था जिस रफ्तार से पुट ऑप्शन नीचे गिरा। अब कुल मिलाकर प्रीमियम था 75 रुपए प्रति लॉट। इस तरह से  ट्रेडर ने हर लॉट पर ₹20 बनाए। 

11.4 – ग्रीक्स – The Greeks

CE और PE दोनों का डेल्टा करीब 0.5 होगा। हम इन दोनों ऑप्शन के डेल्टा को जोड़ कर इस पोजीशन के डेल्टा को देख सकते हैं। 

  • 7600 CE  का डेल्टा @ 0.5, पर चूंकि हम यहां पर शॉर्ट हैं इसलिए डेल्टा होगा – 0.5
  • 7600 PE का डेल्टा @ 0.5, पर चूंकि हम यहां पर शॉर्ट हैं इसलिए डेल्टा होगा + 0.5
  • कुल डेल्टा होगा -0.5+ 0.5 = 0

डेल्टा का 0 होना हमें बताता है कि इस स्ट्रैटेजी पर बाजार की दिशा का कोई असर नहीं होगा। याद रहे कि शॉर्ट और लॉन्ग स्ट्रैडल दोनों ही डेल्टा न्यूट्रल होते हैं। लॉन्ग स्ट्रैडल के डेल्टा न्यूट्रल होने का मतलब है कि यहां मुनाफा असीमित है जबकि शॉर्ट स्ट्रैडल के डेल्टा न्यूट्रल होने का मतलब है कि यहां नुकसान असीमित है। 

यहां पर सोचने वाली बात ये है कि – जब आप स्ट्रैडल की पोजीशन बनाते हैं तब तो आप डेल्टा न्यूट्रल होते हैं लेकिन क्या आपकी पोजीशन बाद में भी डेल्टा न्यूट्रल रहेगी। अगर हां, तो क्यों, और अगर जवाब ना है, तो पोजीशन को डेल्टा न्यूट्रल रखने के लिए क्या करना चाहिए।

अगर आपने इन बातो पर ठीक से विचार कर लिया तो मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं कि ऑप्शन को ले कर आपकी समझ बाजार के 90 प्रतिशत लोगों से बेहतर है। इन सीधे सवालों का जवाब देने के लिए आपको थोड़ा गहराई में जाना होगा।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. शार्ट स्ट्रैडल में आपको ATM कॉल और पुट ऑप्शन को साथ-साथ बेचना होता है, ये ऑप्शन एक ही अंडरलाइंग के, एक स्ट्राइक वाले और एक ही एक्सपायरी के होने चाहिए। 
  2. कॉल और पुट ऑप्शन को बेच कर ट्रेडर इस बात पर पैसे लगा रहा होता है कि बाजार एक दायरे में रहेगा और ज्यादा नहीं चलेगा। 
  3. अधिकतम फायदा कुल दिए गए प्रीमियम के बराबर होता है और यह उस स्ट्राइक पर होता है जहां पर शॉर्ट स्ट्रैडल की शुरुआत की गई है। 
  4. ऊपर का ब्रेक डाउन स्ट्राइक + नेट प्रीमियम के बराबर होता है, नीचे का ब्रेक डाउन स्ट्राइक नेट प्रीमियम के बराबर होता है। 
  5. शॉर्ट स्ट्रैडल का कुल डेल्टा जीरो होता है।
  6. स्ट्रैटेजी को काम में लाते समय वोलैटटिलिटी को ऊपर होना चाहिए। 
  7. जब आप पोजीशन होल्ड कर रहे हो यानी होल्डिंग पीरियड में वोलैटिलिटी को नीचे आना चाहिए। 
  8. शॉर्ट स्ट्रैडल बनाने को समय बाजार की किसी बड़ी घटना के पास बनाना चाहिए, जब वोलैटिलिटी प्रीमियम को ऊपर ले जाएगी और घटना का नतीजा आने के तुरंत बाद वोलैटिलिटी नीचे आएगी और प्रीमियम भी बाजार के आम उम्मीद से काफी अलग होना चाहिए।

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लॉन्ग स्ट्रैडल https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%97-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%88%e0%a4%a1%e0%a4%b2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%97-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%88%e0%a4%a1%e0%a4%b2/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:48:18 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6996 10.1 – बाजार के दिशा की दुविधा  कई बार ऐसा होता है कि आप बहुत सोच समझकर कोई लॉन्ग या शॉर्ट ट्रेड शुरू करते हैं, लेकिन आपके ट्रेड शुरू करने के कुछ देर बाद ही बाजार दूसरी दिशा में चलने लगता है। आपकी सारी रणनीति, योजना, प्रयास और पैसा, सब कुछ धरा रह जाता है। […]

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10.1 – बाजार के दिशा की दुविधा 

कई बार ऐसा होता है कि आप बहुत सोच समझकर कोई लॉन्ग या शॉर्ट ट्रेड शुरू करते हैं, लेकिन आपके ट्रेड शुरू करने के कुछ देर बाद ही बाजार दूसरी दिशा में चलने लगता है। आपकी सारी रणनीति, योजना, प्रयास और पैसा, सब कुछ धरा रह जाता है। मुझे विश्वास है कि आप सब, कभी न कभी ऐसी स्थिति में जरूर फंसे होंगे। यही वजह है कि जो प्रोफेशनल ट्रेडर होते हैं वह एक सीधा-साधा ट्रेड लेने के बजाए हमेशा किसी ना किसी स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल करते हैं, जिससे वो बाजार की ऐसी स्थितियों से बच सकें। बाजार की ऐसी रणनीति जिस पर बाजार की दिशा का कोई असर नहीं पड़ता उन्हें मार्केट न्यूट्रल या डेल्टा न्यूट्रल स्ट्रैटेजी कहा जाता है। अगले कुछ अध्यायों में हम मार्केट न्यूट्रल स्ट्रैटेजी पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि एक रिटेल ट्रेडर्स कब और कैसे ऐसी स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल कर सकता है। तो सबसे पहले बात करते हैं लॉन्ग स्ट्रैडल की।

10.2 – लॉन्ग स्ट्रैडल

लॉन्ग स्ट्रैडल इस्तेमाल करने में शायद सबसे आसान मार्केट न्यूट्रल स्ट्रैटेजी है। इसका इस्तेमाल करने के बाद आपका P&L इस पर निर्भर नहीं करता कि बाजार किस दिशा में चल रहा है, बाजार किसी भी दिशा में चले, बस बाजार का चलना जरूरी होता है। जैसे ही बाजार किसी भी दिशा में चलता है, आपका P&L मुनाफा देने लगता है। एक लॉन्ग स्ट्रैडल बनाने के लिए बस आपको 

  1. एक कॉल ऑप्शन खरीदना होता है 
  2. एक पुट ऑप्शन खरीदना होता है 

यह ध्यान रखें कि 

  1. दोनों ऑप्शन एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हों 
  2. दोनों ऑप्शन एक ही एक्सपायरी के हों 
  3. दोनों ऑप्शन एक ही स्ट्राइक से जुड़े हों 

एक उदाहरण पर नजर डालते हैं जो लॉन्ग स्ट्रैडल को बनाने और इस स्ट्रैटेजी के पे ऑफ को दिखाता है। जब मैं स्ट्रैटेजी को बना रहा हूं तो बाजार 7579 पर है इस वजह से 7605 की स्ट्राइक एट द मनी (At The Money- ATM) है। लॉन्ग स्ट्रैडल के लिए हमें ATM कॉल और पुट ऑप्शन साथ-साथ खरीदने होंगे।

जैसा कि आप ऊपर के चित्र में देख सकते हैं इस 7600 CE ₹77 पर ट्रेड कर रहा है और 7600 PE ₹88 पर ट्रेड कर रहा है। इन दोनों को एक साथ खरीदने पर आपका नेट डेबिट होगा ₹165 का। स्ट्रैटेजी यह है कि ट्रेडर ATM स्ट्राइक पर कॉल और पुट दोनों ऑप्शन पर लॉन्ग है। इसलिए ट्रेडर को यह चिंता नहीं है कि बाजार के चाल की दिशा क्या होगी। अगर बाजार ऊपर जाता है तो ट्रेडर को उम्मीद है कि उसके कॉल ऑप्शन में फायदा होगा और यह फायदा पुट ऑप्शन में दिए गए प्रीमियम से हो रहे नुकसान से ज्यादा होगा। इसी तरह अगर बाजार नीचे जाता है तो पुट ऑप्शन से होने वाला फायदा कॉल ऑप्शन में होने वाले नुकसान से अधिक होगा। यहां यह माना जाता है कि बाजार किसी भी दिशा में चले एक ऑप्शन में इतना मुनाफा होगा कि वह दूसरे ऑप्शन में होने वाले घाटे के की भरपाई करने के बाद भी आपको कुछ मुनाफा देगा यानी P&L पॉजिटिव होगा। मतलब बाजार के चाल की दिशा का यहां कोई महत्व नहीं है। आइए कुछ अलग-अलग स्थितियों को देखते हैं

स्थिति 1बाजार 7200 पर एक्सपायर होता है पुट ऑप्शन में मुनाफा होता है। यह वह स्थिति है जहां पुट ऑप्शन में होने वाला मुनाफा ना सिर्फ कॉल ऑप्शन में होने वाले घाटे की भरपाई करता है बल्कि एक पॉजिटिव P&L भी देता है, 7200 पर

  • 7600 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा इस वजह से, ₹77 का प्रीमियम जो हमने दिया है हम उसको गंवा देंगे
  • 7600 PE इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 400, दिए गए प्रीमियम को इसमें से निकालने के बाद, मतलब ₹88 को निकालने के बाद, हमारे पास बचेंगे 400 – 88 = 312 
  • कुल यानी नेट पर ऑफ होगा 312 – 77 = +235

जैसा कि आप देख सकते हैं कि पुट ऑप्शन से होने वाला मुनाफे में से अगर हम पुट ऑप्शन के लिए दिया गया प्रीमियम और कॉल ऑप्शन के लिए दिया गया प्रीमियम निकाल दें, तो हमें एक पॉजिटिव P&L मिलता है

स्थिति 2 – बाजार 7435 पर (नीचे के ब्रेक इवन पर) एक्सपायर होता है। यह वह स्थिति है जहां पर ना तो पैसे बनते हैं और ना ही पैसे डूबते हैं। 

  • 7600 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए जो प्रीमियम दिया गया है उसको राइट ऑफ करना पड़ेगा यानी ₹77 का घाटा होगा 
  • 7600 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 165 इसका मतलब है कि एक यह हमारे पुट ऑप्शन का फायदा होगा
  • लेकिन हमने कॉल और पुट ऑप्शन के लिए कुल ₹165 का प्रीमियम दिया है जो कि इस पुट ऑप्शन के होने वाले मुनाफे में के बराबर है 

अगर आप ध्यान से देखें तो बाजार ATM स्ट्राइक से नीचे जाकर एक्सपायर हुआ है, इसीलिए पुट ऑप्शन में मुनाफा हो रहा है, लेकिन यह मुनाफा पुट और कुल कॉल ऑप्शन के लिए दिए गए प्रीमियम के बराबर है। इसलिए आपके पास कुछ भी पैसे नहीं बच रहे हैं।

स्थिति 3 – बाजार 7600 पर एक्सपायर होता है (ATM स्ट्राइक पर) 7600 पर स्थिति एकदम सीधी-सादी है, कॉल और पुट दोनों ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर होंगे और दिया गया प्रीमियम डूब जाएगा। यहां पर घाटा, दिए गए प्रीमियम यानी ₹165 के बराबर होगा। 

स्थिति 4 – बाजार 7765 पर एक्सपायर होता है (ऊपर का ब्रेक इवन) यह स्थिति लगभग स्थिति 2 की तरह ही है। यहां पर स्ट्रैटेजी का ब्रेक इवन ATM स्ट्राइक के ऊपर बनता है 

  • 7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 165, यानी कॉल ऑप्शन में इतना फायदा होगा 
  • 7600 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए इसके लिए दिए गए प्रीमियम का भी घाटा होगा 
  • 7600 CE में होने वाला फायदा दोनों ऑप्शन के दिए गए प्रीमियम को मिलाकर होने वाले घाटे की भरपाई करेगा 

इसलिए इस स्तर पर स्ट्रैटेजी का ब्रेक इवन होगा

स्थिति 5 – बाजार 8000 पर एक्सपायर होता है, कॉल ऑप्शन में पैसे बनते हैं इस स्थिति में बाजार 7600 के ATM स्तर से काफी ऊपर है। इसलिए कॉल ऑप्शन का प्रीमियम बढ़ेगा और इतना बढ़ेगा कि वह कॉल ऑप्शन के लिए दिए गए प्रीमियम की भरपाई कर देगा। आइए देखते हैं 

  • 7600 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए ₹88 का प्रीमियम चला जाएगा 
  • 8000 पर 7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू 400 होगी 
  • यहां नेट पे ऑफ होगा  400 – 88 -77 = + 235 

तो जैसा कि आप देख सकते हैं कि कॉल ऑप्शन में होने वाला मुनाफा इतना ज्यादा है कि वह दोनों ऑप्शन के लिए दिए गए कुल प्रीमियम की भरपाई कर सकता है। अब बाजार की अलग-अलग एक्सपायरी स्तर पर होने वाले पे ऑफ के टेबल पर नजर डालते हैं

जैसा कि आप देख सकते हैं कि 

  1. अधिकतम घाटा (165) 7600 के स्तर पर होता है जो कि ATM स्ट्राइक है 
  2. बाजार की किसी भी दशा में चले तो असीमित मुनाफा होता है 

इनको पे ऑफ स्ट्रक्चर के ग्राफ में भी देखा जा सकता है

V की तरह दिखने वाले इस पे ऑफ ग्राफ से यह साफ है कि 

  1. अगर ATM स्ट्राइक के नजरिए से देखा जाए तो इस स्ट्रैटेजी में दोनों दिशाओं में पैसे बनते हैं 
  2. अधिकतम नुकसान तब होता है जब बाजार चलता नहीं है और ATM पर ही बना रहता है 
  1. अधिकतम नुकसान = नेट यानी कुल दिया गया प्रीमियम 
  1. यहां पर दो ब्रेक इवन है दोनों ही तरफ ATM से बराबर दूरी पर 
  1. ऊपर का ब्रेक इवन = ATM + नेट प्रीमियम 
  2. नीचे का ब्रेक इवन = ATM नेट  प्रीमियम 

मुझे पूरा विश्वास है कि यह स्ट्रैटेजी आपको काफी सीधी लगी होगी और इस को अपनाना आपको समझ में आ गया होगा। संक्षेप में कहें तो, आपको कॉल और पुट दोनों खरीदना है। दोनों चरणों में एक सीमित नुकसान हो सकता है, इसलिए दोनों पोजीशन मिलाकर एक छोटे नुकसान की संभावना बनी रहती है। लेकिन स्ट्रैटेजी में फायदा असीमित होने की भी संभावना होती है। कुल मिलाकर एक लॉन्ग स्ट्रैडल बाज़ार में होने वाले बदलाव पर दांव लगाता है।  बाजार ऊपर जाए या नीचे आप पैसे बनाते हैं, बाजार की दिशा यहां कोई मायने नहीं रखती। तो अगर दिशा मायने नहीं रखती तो इस स्ट्रैटेजी पर किस बात का असर पड़ता है?

10.3 – वोलैटिलिटी महत्वपूर्ण है

जब आप स्ट्रैडल का इस्तेमाल करते हैं वोलैटिलिटी काफी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वोलैटिलिटी ही स्ट्रैडल का खेल बनाती या बिगाड़ती है। इसीलिए वोलैटिलिटी का सही आकलन ही स्ट्रैडल की सफलता की कुंजी है। नीचे के ग्राफ पर नजर डालिए 

Y-axis पर स्ट्रैटेजी की कीमत यानी स्ट्रैटेजी पर होने वाले खर्च को दिखाया गया है, जो कि दोनों ऑप्शन का कुल प्रीमियम है। जबकि X-axis पर वोलैटिलिटी को दिखाया गया है। नीली हरी और लाल रेखाएं इस बात को दिखाती है कि जब एक्सपायरी में 30,15 और 5 दिन बचे हों और वोलैटिलिटी बढ़ रही हो, तो उसका प्रीमियम पर क्या असर पड़ता है। जैसा कि आप देख सकते हैं कि यह एक लीनियर ग्राफ है। इस पर इस बात का कोई असर नहीं है कि एक्सपायरी में कितना समय बचा है।

इस ग्राफ में दिख रहा है कि जब वोलैटिलिटी बढ़ती है तो इस स्ट्रैटेजी की कीमत भी बढ़ जाती है। इसी तरह जब वोलैटिलिटी घटती है तो इस स्ट्रैटेजी की कीमत भी घट जाती है। नीली रेखा पर नजर डालिए, इससे पता चलता है कि जब वोलैटिलिटी 15% है तो लॉन्ग स्ट्रैडल बनाने के लिए 160 का खर्च आता है। यहां याद रखिए कि लॉन्ग स्ट्रैडल का खर्च कॉल और पुट दोनों ऑप्शन को खरीदने के लिए मिला कर दिया गया कुल प्रीमियम है। मतलब 15% की वोलैटिलिटी पर लॉन्ग स्ट्रैडल बनाने की कीमत ₹160 होती है। लेकिन अगर वोलैटिलिटी 30% तक बढ़ जाती है तो यह खर्च ₹340 तक पहुंच जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, लॉन्ग स्ट्रैडल में आप अपनी रकम दोगुना कर सकते हैं अगर

  1. आप स्ट्रैडल को महीने की शुरुआत में बनाएं 
  2. लॉन्ग स्ट्रैडल बनाते समय वोलैटिलिटी नीचे हो 
  3. आपके स्ट्रैडल बनाने के बाद वोलैटिलिटी दोगुनी हो जाए 

आप हरी और लाल रेखाओं के साथ भी इसी तरीके से निष्कर्ष निकाल सकते हैं, जो यह दिखाएंगे कि वोलैटिलिटी बढ़ने के साथ स्ट्रैटेजी की कीमत कैसे बदलती है, जबकि एक्सपायरी में 15 या 5 दिन बचे हों। इसका यह भी मतलब है कि अगर आप उस समय स्ट्रैडल बना रहे हैं जब वोलैटिलिटी ऊपर हो और आपके स्ट्रैडल बनाने के बाद वोलैटिलिटी नीचे आ जाए तो आप पैसे गंवाएंगे। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है और आपको इसे याद रखना चाहिए। इसी जगह, एक बार स्ट्रैटेजी के कुल डेल्टा पर भी चर्चा कर लेते हैं क्योंकि हम ATM स्ट्राइक पर लॉन्ग हैं इसलिए दोनों ऑप्शन का डेल्टा 0.5 होगा। 

  • कॉल ऑप्शन का डाटा + 0.5 होगा और 
  • पुट ऑप्शन का डेल्टा – 0.5 होगा। 

कॉल ऑप्शन का डेल्टा पुट ऑप्शन के डेल्टा की भरपाई कर देता है इसलिए कुल मिलाकर नेट डेल्टा 0 हो जाता है। आपको याद ही होगा कि किसी पोजीशन का डेल्टा पोजीशन की दिशा के झुकाव को दिखाता है, एक पॉजिटिव डेल्टा यह दिखाता है कि बाजार का रुख तेजी का है और नेगेटिव डेल्टा यह दिखाता है कि बाजार में मंदी का रुख है। इसलिए 0 डेल्टा का मतलब है कि बाजार में दिशा के लेकर कोई भी रूख नहीं है। इसीलिए वो सभी स्ट्रैटेजी जिसमें डेल्टा जीरो होता है उनको डेल्टा न्यूट्रल स्ट्रैटेजी कहते हैं। डेल्टा न्यूट्रल स्ट्रैटेजी में बाजार की दिशा का कोई फर्क नहीं पड़ता।

10.4 – स्ट्रैडल में गलती कहां हो सकती है?

वैसे देखने में स्ट्रैडल एक बहुत ही आकर्षक लगता है, सोच कर देखिए कि बाजार किसी भी दिशा में चले, आप पैसे बनाएंगे। आपको करना सिर्फ यह है कि वोलैटिलिटी का सही अनुमान लगाना है। तो फिर ऐसे में, स्ट्रैडल के साथ गलती कहां हो सकती है, स्ट्रैडल में पैसे बनाने और आपके बीच में 2 चीजें आ सकती हैं 

  1. थीटा डीकेय (Theta Decay) सभी चीजों को देखते हुए ऑप्शन आमतौर पर डिप्रेशिएटिंग एसेट होते हैं, मतलब समय के साथ इनकी कीमत घटती रहती है और लॉन्ग पोजीशन पर इसका असर अधिक दिखाई देता है। आप एक्सपायरी के जितना नजदीक जाते जाएंगे ऑप्शन की टाइम वैल्यू उतनी ही कम होती जाएगी। यह टाइम डीकेय (Time decay) यानी समय के साथ होने वाली कीमत में कमी, एक्सपायरी के अंतिम हफ्ते में काफी तेजी से बढ़ता है। इसलिए आप आउट ऑफ द मनी (OTM) या एट द मनी (ATM) ऑप्शन को एक्सपायरी के अंतिम हफ्ते तक नहीं होल्ड करना चाहेंगे क्योंकि वहां प्रीमियम तेजी से गिरता है
  2. बड़ा ब्रेक इवन – ऊपर के उदाहरण को याद करें, स्ट्रैटेजी का ब्रेक इवन स्तर ATM से 165 प्वाइंट दूर है नीचे का ब्रेक इवन 7435 और ऊपर का ब्रेक इवन 7765 ,जबकि ATM स्ट्राइक 7600 की है। अगर प्रतिशत में देखे तो ब्रेक इवन तक पहुंचने के लिए बाजार को 2.2% चलना होगा। इसका मतलब है कि जिस समय आप स्ट्रैडल बनाते हैं उस समय के बाद से बाजार या स्टॉक को कम से कम 2.2% चलना होगा और तभी आप पैसे बना सकेंगे। और यह चाल अधिक से अधिक 30 दिनों के अंदर आनी चाहिए। साथ ही, अगर आप इस स्ट्रैटेजी में 1% से ज्यादा का मुनाफा कमाना चाहते हैं तो इसका मतलब है कि बाजार को 2.2% के बाद भी 1% ऊपर चलना होगा। इंडेक्स में इतनी बड़ी चाल का आना थोड़ा सा मुश्किल होता है। मैं इसको अगले अध्याय में विस्तार से समझाऊंगा।

ऊपर के दोनों बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए और बाजार की वोलैटिलिटी के असर पर नजर रखते हुए हम संक्षेप में कह सकते हैं कि स्ट्रैडल से मुनाफा कमाने के लिए या इसके आपके पक्ष में काम करने के लिए 

  1. स्ट्रैटेजी बनाते समय वोलैटिलिटी को नीचे होना चाहिए 
  2. स्ट्रैटेजी के होल्डिंग अवधि में वोलैटिलिटी को ऊपर जाना चाहिए 
  3. बाजार में एक बड़ी चाल आनी चाहिए चाहे वह किसी भी दिशा में आ रही हो 
  4. बाजार की चाल एक निश्चित समय में और जल्दी होनी चाहिए यानी एक्सपायरी के पहले

लॉन्ग स्ट्रैडल में ट्रेडिंग का मेरा अनुभव बताता है कि इसमें मुनाफा तब होता है जब इसे बाजार में होने वाली किसी बड़ी घटना के आसपास बनाया जाए और ऐसी घटना का असर उससे भी ज्यादा हो जितने असर की बाजार उम्मीद कर रहा है । घटना और उससे होने वाले असर को थोड़ा और समझते हैं। इंफोसिस के आने वाली नतीजे को एक उदाहरण के तौर पर लेते हैं। घटना–  इंफोसिस के तिमाही नतीजे उम्मीद– अगले कुछ तिमाही तक आमदनी में मामूली या बिलकुल बढ़त नहीं वास्तविक नतीजा –  जैसी कि उम्मीद थी इंफोसिस घोषणा करता है कि अगली कुछ तिमाहियों तक उसकी आमदनी में मामूली बढ़त होगी या कोई बढ़त नहीं होगी।

अगर आप इस स्थिति में लॉन्ग स्ट्रैडल बनाया है तो क्योंकि उम्मीद सही साबित होती है इसलए आपका स्ट्रैडल पूरी तरीके से असफल हो जाएगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बड़ी घटनाओं के आसपास वोलैटिलिटी बढ़ जाती है इसकी वजह से प्रीमियम ऊपर होते हैं और ऐसे में अगर आप ATM कॉल और पुट ऑप्शन घटना के ठीक पहले खरीदते हैं तो इसका मतलब है कि आपने ऑप्शन तब खरीदे जब वोलैटिलिटी ऊंची है। जब घटना हो जाती है औऱ उसका ऐलान हो जाता है या नतीजा निकल आता है तब वोलैटिलिटी गिर जाती है और इसकी वजह से प्रीमियम भी नीचे आ जाते हैं। ऐसा होने पर स्ट्रैडल टूट जाता है और ट्रेडर को नुकसान होता है क्योंकि उसने ऊंची वोलैटिलिटी पर खरीदा और नीची वोलैटिलिटी पर बेचा। मैंने ऐसा होते कई बार देखा है और हर बार ट्रेडर को इसी वजह से पैसों का नुकसान होते हुए भी देता है।

नतीजा आपके पक्ष में हो – लेकिन मान लीजिए कि इंफोसिस साधारण या बिना बढ़त वाली आमदनी के बजाय अगली कुछ तिमाही तक एक बहुत ही ज्यादा अच्छी आमदनी होने का एलान करता है तो इसका मतलब है कि प्रीमियम काफी तेजी से ऊपर बढ़ेंगे क्योंकि इसे एलान बाजार को चौंका दिया है। ऐसा होने पर स्ट्रैडल में काफी ज्यादा फायदा हो सकता है। इसका मतलब है कि स्ट्रैडल के सफल होने में एक और महत्वपूर्ण वस्तु है, वो है कि आपको उस घटना के नतीजे का अनुमान बाजार के अनुमान के ज्यादा अच्छा करना होगा। आप एक साधारण या आम अनुमान के भरोसे पर स्ट्रैडल नहीं बना सकते। आपको लग रहा होगा कि यह एक मुश्किल काम है, लेकिन मेरी बात पर भरोसा कीजिए कुछ साल अच्छे से ट्रेडिंग करने के अनुभव के बाद आप आमतौर पर ऐसे नतीजों का अनुमान ज्यादा बेहतर तरीके से लगा सकेंगे। आपको बेहतर समझाने के लिए अब मैं उन सारे महत्वपूर्ण मुद्दों की फिर से बता रहा हूं जो एक स्ट्रैडल में मुनाफा बनाने में मदद करते हैं

  1. स्ट्रैटेजी को काम में लाते समय वोलैटिलिटी को नीचे होना चाहिए 
  2. स्ट्रैटेजी के होल्डिंग पीरियड यानी जिस समय आप अपनी पोजीशन होल्ड कर रहे हैं उस समय वोलैटिलिटी बढ़नी चाहिए 
  3. बाजार को एक बड़ी चाल दिखानी होगी, भले ही वह किसी भी दिशा में चल रहा हो 
  4. बाजार की यह बड़ी चाल समय के अंदर और जल्दी होनी चाहिए, एक्सपायरी होने के पहले 
  5. लॉन्ग स्ट्रैडल आमतौर पर बाजार की बड़ी घटनाओं के आसपास बनाए जाने चाहिए और उन घटनाओं का नतीजा बाजार की उम्मीदों के से काफी अलग होना चाहिए 

आपको लग रहा होगा कि लॉन्ग स्ट्रैडल में मुनाफा कमाने के लिए काफी दिक्कतें आ सकती हैं। लेकिन चिंता मत कीजिए, अगले अध्याय में मैं इसका इलाज भी बताऊंगा। यानी शॉर्ट स्ट्रैडल और ये कि ये कितना महत्वपूर्ण होता है

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. वह स्ट्रैटेजी जिस पर बाजार की दिशा का कोई असर नहीं पड़ता उन्हें मार्केट न्यूट्रल या डेल्टा न्यूट्रल कहते हैं।
  2. मार्केट न्यूट्रल स्ट्रैटेजी जैसे लॉन्ग स्ट्रैडल बाजार में किसी भी दिशा की चाल होने पर पैसे बनाती है।
  3. लॉन्ग स्ट्रैडल में आपको ATM कॉल और पुट ऑप्शन को साथ-साथ खरीदना होता है, ये ऑप्शन एक ही अंडरलाइंग के, एक स्ट्राइक वाले और एक ही एक्सपायरी के होने चाहिए।
  4. कॉल और पुट ऑप्शन को खरीदकर ट्रेडर्स बाजार में दोनों दिशाओं पर पैसे लगा रहा होता है।
  5. अधिकतम नुकसान कुल दिए गए प्रीमियम के बराबर होता है और यह उस स्ट्राइक पर होता है जहां पर लॉन्ग स्ट्रैडल की शुरुआत की गई है।
  6. ऊपर का ब्रेक इवन स्ट्राइक + नेट प्रीमियम के बराबर होता है। 
  7. नीचे का ब्रेक इवन स्ट्राइक नेट प्रीमियम के बराबर होता है।
  8. लॉन्ग स्ट्रैडल का कुल डेल्टा जीरो होता है।
  9. स्ट्रैटेजी को काम में लाते समय वोलैटटिलिटी को नीचे होना चाहिए। 
  10. जब आप पोजीशन होल्ड कर रहे हो यानी होल्डिंग पीरियड में वोलैटिलिटी को ऊपर बढ़ना चाहिए।
  11. बाजार में एक बड़ी चाल या मूव आना चाहिए चाहे वह किसी भी दिशा में हो। 
  12. बाजार कि यह बड़ी चाल एक निश्चित समय में और जल्दी से होनी चाहिए यानी एक्सपायरी के भीतर होनी चाहिए। 
  13. लॉन्ग स्ट्रैडल बनाने का सबसे अच्छा समय बाजार की किसी बड़ी घटना के पास होता है और इस घटना का नतीजा बाजार के आम उम्मीद से काफी अलग होना चाहिए।

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9.1 – भूमिका

हमने इस मॉड्यूल के अध्याय 4 में कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड पर विस्तार से चर्चा की थी, पुट रेश्यो बैक स्प्रेड भी वैसा ही है, बस अंतर इतना है कि इसका इस्तेमाल ट्रेडर तब करते हैं जब स्टॉक या शेयर बाजार पर उनका नजरिया मंदी का यानी बेयरिश हो। 

मोटे तौर पर पुट रेश्यो बैक स्प्रेड का इस्तेमाल करने पर आपको निम्न चीजें का अनुभव हो सकता है-  

  1. अगर बाजार नीचे जाए तो असीमित मुनाफा 
  2. अगर बाजार ऊपर जाए तो सीमित मुनाफा 
  3. अगर बाजार एक रेंज में या दायरे में रहे तो एक निश्चित सीमा तक का ही घाटा 

मतलब यह कि इस स्ट्रैटेजी मे आप बाजार की दोनो तरफ की चाल पर पैसे बनाते हैं, लेकिन ज्यादा पैसे तब बनते हैं जब बाजार नीचे की तरफ चले।  

आमतौर पर पुट रेश्यो बैक स्प्रेड का इस्तेमाल नेट क्रेडिट के लिए होता है, मतलब जब आप पुट रेश्यो बैक स्प्रेड का इस्तेमाल करते हैं तो पैसे आपके अकाउंट में आते हैं। अगर आपकी उम्मीद के विपरीत बाजार ऊपर जाता है, तब आप नेट क्रेडिट पाते हैं। लेकिन अगर बाजार उम्मीद के मुताबिक नीचे चला जाता है, तो आप असीमित मुनाफा कमाते हैं। 

इसी वजह से एक साधारण पुट ऑप्शन खरीदने के बजाय पुट रेश्यो बैक स्प्रेड का इस्तेमाल ज्यादा बेहतर होता है। 

9.2 – स्ट्रैटेजी से जुड़ी बातें

पुट रेश्यो बैक स्प्रेड 3 चरणों वाली स्प्रेड स्ट्रैटेजी है, जिसमें दो OTM पुट ऑप्शन को खरीदा जाता है और एक ITM पुट ऑप्शन को बेचा जाता है। इसका अनुपात हमेशा 2:1 का होता है। पुट रेश्यो बैक स्प्रेड में 2:1 के अनुपात का मतलब है कि हर एक ऑप्शन की बिक्री पर दो ऑप्शन को खरीदा जाता है। 

एक उदाहरण देखते हैं – मान लीजिए कि निफ्टी 7506 पर है और आप को लगता है कि निफ्टी 7000 तक जाएगा। मतलब बाजार को ले कर आप काफी बेयरिश हैं। अब पुट रेश्यो बैक स्प्रेड बनाने के लिए –

  1. 7500 PE का एक लॉट बेचिए (ITM) 
  2. 7200 PE के दो लॉट खरीदिए (OTM) 

ध्यान रखें कि 

  1. पुट ऑप्शन एक ही एक्सपायरी सीरीज के हों 
  2. एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हुए हों 
  3. 2 :1 का अनुपात बना रहे

ट्रेड सेटअप ऐसा दिखेगा – 

  1. 7500 PE एक लॉट शॉर्ट, ₹134 का प्रीमियम प्राप्त करें। 
  2. 7200 PE के  दो लॉट लॉन्ग, हर लॉट पर ₹46 का प्रीमियम दें यानी दो लॉट के लिए कुल ₹92 अदा करें।
  3. कुल नेट कैश फ्लो  = मिला हुआ प्रीमियम – अदा किया गया प्रीमियम यानी 134 – 92 = 42 (नेट क्रेडिट)

पुट रेश्यो बैक स्प्रेड इस तरह से होता है। आइए कुछ स्थितियों पर नजर डालते हैं जिससे हमें पता चल सके कि अलग-अलग स्तर की एक्सपायरी पर पुट रेश्यो बैक स्प्रेड के कैश फ्लो पर क्या असर होगा।

याद रखिए कि हर स्तर पर पे ऑफ बदलता रहता है इसलिए हमें एक्सपायरी के अलग अलग स्तरों पर पे ऑफ को ठीक से देखना समझना होगा।

स्थिति 1 –  बाजार की एक्सपायरी 7600 पर होती है (ITM ऑप्शन के ऊपर) 

7600 पर दोनों पुट ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर होंगे। आप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू और स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ ऐसा होगा – 

  • 7200 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा हमने इस ऑप्शन के दो लॉट ₹46 पर लॉन्ग किए हैं, इसलिए हम ₹92 का पूरा प्रीमियम गंवा देंगे।
  • 7500 PE भी वर्थलेस एक्सपायर होगा, लेकिन क्योंकि हमने इसे बेचा है और ₹134 का प्रीमियम प्राप्त किया है इसलिए हम इसे अपने पास रख पाएंगे।
  • स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा 134 – 92 = 42  

ध्यान दीजिए कि 7600 पर स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ (ITM ऑप्शन के ऊपर) नेट क्रेडिट के बराबर है।

स्थिति 2 – बाजार की एक्सपायरी 7500 पर होती है (ऊपर की स्ट्राइक कीमत पर मतलब ITM ऑप्शन ) 

7500 पर दोनों ऑप्शन की कोई इंट्रिन्सिक वैल्यू नहीं होगी, इसलिए दोनों वर्थलेस एक्सपायर होंगे। इसलिए पे ऑफ वैसा ही होगा जैसा कि हमने 7600 पर देखा था। इसलिए स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ ₹42 के बराबर होगा।(नेट क्रेडिट)

जैसा कि अब तक आपने अनुमान लगा लिया होगा कि 7500 के ऊपर स्ट्रैटेजी का पे ऑफ, नेट क्रेडिट के बराबर होता है। 

स्थिति 3 – बाजार की एक्सपायरी 7458 पर होती है ( ऊपर का ब्रेक इवन)

कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड की तरह ही पुट रेश्यो बैक स्प्रेड में भी दो ब्रेक इवन होते हैं, ऊपर का ब्रेक इवन और नीचे का ब्रेक इवन। 7458 ऊपर का ब्रेक इवन स्तर है। हमने ये स्तर कैसे तय किया इसे हम आगे समझेंगे। 

  • 7458 पर 7500 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी, आपको याद ही होगा कि पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू- Max [strike  – spot, 0] यानी Max [7500 – 7458, 0] मतलब 42 होगी।
  • क्योंकि हमने 7500 PE को 134 पर बेचा है इसलिए हम मिले हुए प्रीमियम का एक हिस्सा गंवा देंगे और एक हिस्सा अपने पास रख पाएंगे। इस तरह से पे ऑफ होगा 134 – 42 = 92
  •  7200 PE की कोई इंट्रिन्सिक वैल्यू नहीं होगी, इसलिए दिया गया पूरा प्रीमियम यानी 92 डूब जाएगा
  • तो इस तरह से जहां हम एक तरफ 7500 PE पर 92 कमाएंगे वहीं 7200 PE पर 92 गंवाएंगे, यानी ना तो फायदा होगा और ना ही नुकसान। इसलिए 7458 एक ब्रेक इवन प्वाइंट होगा।

स्थिति 4-  बाजार की एक्सपायरी 7200 पर होती है (सबसे ज्यादा नुकसान वाली जगह) 

इस जगह पर स्ट्रैटेजी में सबसे ज्यादा नुकसान होता है, आइए देखते हैं क्यों 

  • 7200 पर 7500 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 300 (7500 – 7200), क्योंकि हमने 7500 PE को बेचा है और ₹134 का प्रीमियम प्राप्त किया है इसलिए हम इसे तो गंवा ही देंगे साथ ही और नुकसान भी होगा। इस तरह से पे ऑफ होगा 134 – 300 = – 166
  •  7200 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा यानी इसकी कोई इंट्रिन्सिक वैल्यू नहीं होगी, इसलिए दिया गया पूरा प्रीमियम यानी 92 डूब जाएगा
  • स्ट्रैटेजी का नेट पे ऑफ होगा  -166 -92 = – 258
  • तो इस तरह से इस जगह पर दोनों ही ऑप्शन हमें नुकसान पहुंचाएंगे। इसीलिए इसे सबसे अधिक नुकसान वाली जगह कहा जाता है। 

स्थिति 5 –  बाजार की एक्सपायरी 6942 पर होती है (नीचे का ब्रेक इवन) 

6942 पर दोनों ही ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी, लेकिन ये नीचे का ब्रेक इवन प्वाइंट है आइए देखते हैं- 

  • 6942 पर 7500 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 7500 – 6942 = 558 , क्योंकि हमने 7500 PE को ₹134 पर बेचा है इसलिए पे ऑफ होगा 134 – 558 = – 424
  •  7200 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 7200 – 6942 = 258 क्योंकि हमने इस ऑप्शन के दो लॉट ₹46 पर लॉन्ग किए हैं, इसलिए इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी  516, और चूंकि हमने ₹92 का प्रीमियम दिया है (दो लॉट के लिए) , इसलिए पे ऑफ होगा 516 – 92 = 424 
  • तो इस तरह से जहां हम एक तरफ 7500 PE पर 424 का नुकसान उठाएंगे वहीं 7200 PE पर 424 कमाएंगे, यानी ना तो फायदा होगा और ना ही नुकसान। इसलिए 6942 एक ब्रेक इवन प्वाइंट होगा।

स्थिति 6 –  बाजार की एक्सपायरी 6800 पर होती है (नीचे की स्ट्राइक प्राइस के नीचे ) 

याद रखिए कि पुट रेश्यो बैक स्प्रेड एक बेयरिश स्ट्रैटेजी है इसलिए जब बाजार नीचे के ब्रेक इवन प्वाइंट से नीचे जाए तो यहां पैसे बनने चाहिए। तो आइए देखते हैं कि जब बाजार नीचे के ब्रेक इवन प्वाइंट से नीचे जाता है तो पे ऑफ कैसा होता है – 

  • 6800 पर 7500 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 700 क्योंकि हमने 7500 PE को ₹134 पर बेचा है तो हमें नुकसान होगा 134 – 700 = – 566
  • 7200 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 400 क्योंकि हमने इस ऑप्शन के दो लॉट लॉन्ग किए हैं, इसलिए इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 800, और चूंकि हमने दो लॉट के लिए ₹92 का प्रीमियम दिया है, इसलिए दिए गए प्रीमियम को निकालने के बाद हम कमाएंगे 800 – 92 = 708
  • स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा 708 – 566 = 142  

इसी तगह से आप अलग-अलग एक्सपायरी पर इस स्ट्रैटेजी के पे ऑफ को देख सकते हैं, आपको दिखेगा कि जब बाजार नीचे फिसलता जाता है तो मुनाफा असीमित रहता है, नीचे के टेबल में भी यही दिखाया गया है

अलग अलग पे ऑफ स्तर को ग्राफ पर डाल कर स्ट्रैटेजी का पे ऑफ ग्राफ बनता है।

 

ऊपर के ग्राफ से साफ पता चलता है कि 

  1. अगर बाजार नीचे जाए तो असीमित मुनाफा होता है
  2. दो ब्रेक इवन प्वाइंट होते हैं
  3. सबसे अधिक नुकसान 7200 पर होता है 
  4. अगर बाजार ऊपर जाए तो सीमित मुनाफा होता है

9.3 – स्ट्रैटेजी की सामान्य बातें – Strategy Generalization

स्ट्रैटेजी के बारे में जो सामान्य बातें कही जा सकते हैं वो हैं  –

  • स्प्रेड = ऊपर की स्ट्राइक नीचे की स्ट्राइक
    1. 7500 – 7200 = 300
  • अधिकतम नुकसान = स्प्रेडनेट क्रेडिट
    1. 300 – 42 = 258
  • अधिकतम नुकसान होता है = नीचे की स्ट्राइक पर 
  • नीचे का ब्रेक इवन = नीचे की स्ट्राइक अधिकतम नुकसान 
    1. 7200 – 258 = 6942
  • ऊपर का ब्रेक इवन = नीचे की स्ट्राइक + अधिकतम नुकसान
    1. 7200 +  258 = 7458

9.4 – डेल्टा, स्ट्राइक का चुनाव, और वोलैटिलिटी का असर

जैसा कि आपको पता है कि जब बाजार नीचे जाता है तो स्ट्रैटेजी में मुनाफा बढ़ता है, इसका मतलब ये है कि ये दिशा आधारित स्ट्रैटेजी है (बाजार के नीचे होने पर मुनाफा देने वाली), इसलिए स्ट्रैटेजी के डेल्टा में ये दिखना चाहिए। आइए देखते हैं-

  • 7500 PE का एक ITM ऑप्शन है, इसका डेल्टा है – 0.55, लेकिन क्योंकि हमने इसे बेचा है इसलिए डेल्टा होगा –(-0.55) यानी +0.55 
  • 7200 PE का एक OTM ऑप्शन है, इसका डेल्टा है – 0.29, हमने यहां दो लॉट लॉन्ग हैं
  • इसलिए इस पोजीशन का कुल डेल्टा होगा + 0.55 + (- 0.29) + (- 0.29) = – 0.03 

डेल्टा का जीरो ना होना साफ बताता है कि स्ट्रैटेजी पर बाजार की दिशा का असर पड़ेगा (भले ही मामूली ) और यहां पर – चिन्ह का मतलब है कि बाज़ार के नीचे जाने पर इस स्ट्रैटेजी में पैसे बनेंगे।

जहां तक स्ट्राइक का सवाल है मेरी सलाह होगी कि आप ITM और OTM की जानी मानी युगलबंदी को ही अपनाएं। याद रखें कि इस ट्रेड को नेट क्रेडिट के लिए किया जाता है। अगर नेट कैश आउटफ्लो होता दिख रहा हो तो इस स्ट्रैटेजी का उपयोग ना करें।

अब बदलती वोलैटिलिटी को जानने के लिए इस ग्राफ को देखिए।

यहां पर तीन रंगों की रेखाएं हैं जो कि बदलती वोलैटिलिटी के साथ प्रीमियम में बदलाव को दिखाती हैं। ये रेखाएं हमें एक्सपायरी के नजरिए से इस स्ट्रैटेजी पर वोलैटिलिटी के असर को दिखाती हैं। 

  1. नीली रेखा – ये रेखा हमें बताती है कि जब वोलैटिलिटी बढ़ती है और एक्सपायरी में काफी समय बचा हो (30 दिन) तो पुट रेश्यो बैकस्प्रेड का इस्तेमाल फायदेमंद होता है। जैसे कि हम देख सकते हैं कि जब वोलैटिलिटी 15% से 30% हो जाती है तो इस स्ट्रैटेजी का पे ऑफ – 57 से + 10 हो जाता है। इसका मतलब है कि जब एक्सपायरी में काफी समय बचा हो तो बाजार की दिशा पर आपकी राय सही होने के साथ आपको वोलैटिलिटी पर भी राय बनानी चाहिए। इसी कारण से, अगर सीरीज की शुरुआत में वोलैटिलिटी ऊपर हो (आमतौर पर रहने वाली वोलैटिलिटी से दोगुनी) तो मैं स्टॉक पर बेयरिश होते हुए भी इस स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल करने को ले कर दुविधा में रहूंगा।
  2. हरी रेखा – ये रेखा बताती है कि अगर एक्सपायरी में 15 दिन बचे हों तो वोलैटिलिटी का बढ़ना फायदेमंद होता है। हांलाकि ये फायदा नीली रेखा के मामले में होने वाले फायदे से कम होता है। जैसा कि हम देख सकते हैं कि वोलैटिलिटी 15% से 30% होने पर इस स्ट्रैटेजी का पे ऑफ – 77 से – 47 हो जाता है।
  3. लाल रेखा – ये रेखा बताती है कि जब एक्सपायरी में कुछ ही दिन बचे हों तो वोलैटिलिटी बढ़ने पर प्रीमियम पर कोई खास असर नहीं पड़ता है। मतलब ये कि जब एक्सपायरी में कुछ ही दिन बचे हों तो वोलैटिलिटी बढ़ने की चिंता करने की जरूरत नहीं है बस आपको बाजार की दिशा की चिंता करनी चाहिए।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. पुट रेश्यो बैक स्प्रेड का सबसे अच्छा इस्तेमाल तब होता है जब स्टॉक या इंडेक्स पर आपका नजरिया मंदी का या बेयरिश हो। 
  2. इस स्ट्रैटेजी में आपको एक ITM PE बेचना होता है और दो OTM PE खरीदने होते हैं और इसको हमेशा इसी अनुपात में करना होता है। मतलब एक ऑप्शन बेचना और दो ऑप्शन खरीदना।
  3. आमतौर पर इस ऑप्शन को नेट क्रेडिट के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  4. अगर स्टॉक की कीमत ऊपर जाती है तो इस स्ट्रैटेजी में सीमित मुनाफा होता है और अगर स्टाफ की कीमत नीचे जाती है तो असीमित मुनाफा होता है। 
  5. इसमें दो ब्रेक इवन प्वाइंट होते हैं – नीचे का ब्रेक इवन और ऊपर का ब्रेक इवन प्वाइंट।
  6. स्प्रेड = ऊपर की स्ट्राइक नीचे की स्ट्राइक 
  7. नेट क्रेडिट = ऊपर की स्ट्राइक पर मिला प्रीमियम – 2*नीचे की स्ट्राइक के लिए दिया गया प्रीमियम 
  8. अधिकतम नुकसान = स्प्रेड नेट क्रेडिट 
  9. सबसे ज्यादा नुकसान =  नीचे की स्ट्राइक पर 
  10. बाजार के ऊपर जाने पर पे ऑफ = नेट क्रेडिट 
  11. नीचे का ब्रेक इवन नीचे की स्ट्राइक – अधिकतम नुकसान  
  12. ऊपर का ब्रेक इवन = नीचे की स्ट्राइक + अधिकतम नुकसान 
  13. एक्सपायरी में कितना भी समय बचा हो इस स्ट्रैटेजी में ITM + OTM स्ट्राइक के मिश्रण को ही चुनें। जब एक्सपायरी में काफी समय बचा हो तो वोलैटिलिटी के बढ़ने से इस स्ट्रैटेजी में फायदा होता है

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बेयर कॉल स्प्रेड https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%af%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%af%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:46:50 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6992 8.1 – कॉल और पुट में से किसे चुनें   बेयर पुट स्प्रेड की तरह ही बेयर कॉल स्प्रेड भी दो चरणों वाली ऑप्शन स्ट्रैटेजी है। इसका इस्तेमाल तक किया जाता है जब बाजार पर आपका नजरिया मॉडरेटली बेयरिश हो। पे ऑफ के मामले में भी बेयर कॉल स्प्रेड और बेयर पुट स्प्रेड एक समान हैं। […]

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8.1 – कॉल और पुट में से किसे चुनें  

बेयर पुट स्प्रेड की तरह ही बेयर कॉल स्प्रेड भी दो चरणों वाली ऑप्शन स्ट्रैटेजी है। इसका इस्तेमाल तक किया जाता है जब बाजार पर आपका नजरिया मॉडरेटली बेयरिश हो। पे ऑफ के मामले में भी बेयर कॉल स्प्रेड और बेयर पुट स्प्रेड एक समान हैं। लेकिन स्ट्रैटेजी को अपनाने में और स्ट्राइक को चुनने के मामले में दोनों में कुछ अंतर हैं। बेयर कॉल स्प्रेड में स्प्रेड को बनाने के लिए कॉल ऑप्शन का इस्तेमाल किया जाता है जबकि बेयर पुट स्प्रेड में पुट ऑप्शन का इस्तेमाल होता है। 

यहां पर आप यह सवाल पूछ सकते हैं कि अगर दोनों के पे ऑफ एक जैसे ही हैं तो बेयर पुट स्प्रेड का इस्तेमाल क्यों किया जाए और बेयर कॉल स्प्रेड का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाए? इस सवाल का जवाब इस पर निर्भर करता है कि प्रीमियम कहां ज्यादा आकर्षक लग रहे हैं। बेयर पुट स्प्रेड का इस्तेमाल डेबिट के लिए होता है और बेयर कॉल स्प्रेड का इस्तेमाल क्रेडिट के लिए किया जाता है। तो अगर स्थिति ऐसी है जबकि 

  1. बाजार काफी ज्यादा ऊपर बढ़ चुके हों,(कॉल प्रीमियम भी ऊपर आ गए हों)
  2. वोलैटिलिटी आपके मनमाफिक हो 
  3. एक्सपायरी में काफी समय बचा हुआ है 

इसके साथ बाजार को लेकर आपका नजरिया कुछ मंदी का यानी मॉडरेटली बेयरिश है तो ऐसे में बेयर कॉल स्प्रेड का इस्तेमाल करके नेट पर क्रेडिट लेना एक बेहतर तरीका हो सकता है बजाय इसके कि बेयर पुट स्प्रेड का इस्तेमाल करके नेट डेबिट लिया जाए। व्यक्तिगत तौर पर भी, मैं ऐसी स्ट्रैटेजी पसंद करता हूं जिसमें नेट क्रेडिट मिलता हो। मैं ऐसी स्ट्रैटेजी पसंद नहीं करता जिसमें नेट डेबिट मिलता हो।

8.2 – स्ट्रैटेजी से जुड़ी बातें

बेयर कॉल स्प्रेड दो चरणों वाली ऑप्शन स्ट्रैटेजी है और आमतौर पर इसमें ITM और OTM ऑप्शन का इस्तेमाल होता है। वैसे आप किसी दूसरी स्ट्राइक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ध्यान रखें कि चुनी गयी दोनों स्ट्राइक के बीच का अंतर जितना अधिक होगा, मुनाफा कमाने की संभावना भी उतनी ही अधिक होगी। 

बेयर कॉल स्प्रेड तैयार करने के लिए 

  1. एक OTM कॉल ऑप्शन खरीदें (पहला चरण) 
  2. एक ITM कॉल ऑप्शन को बेचे (दूसरा चरण)

याद रखें कि –

  1. सभी ऑप्शन एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हुए हों
  2. एक ही एक्सपायरी सीरीज के हों 
  3. हर चरण में ऑप्शन की संख्या बराबर हो

 इसके इस्तेमाल को और बेहतर तरीके से समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं 

तिथि – फरवरी 2016

नजरिया – मॉडरेटली बेयरिश

निफ्टी स्पॉट – 7222

बेयर कॉल स्प्रेड का ट्रेड सेट अप होगा 

  1. 7400 CE खरीदें  और ₹38 का प्रीमियम अदा करें। याद रखें कि ये OTM ऑशन है। पैसा मेरे अकाउंट से बाहर जा रहा है इसलिए यह डेबिट ट्रांजैक्शन है 
  2. 7100 CE बेचें और इसके लिए ₹136 का प्रीमियम पाएं। याद रखें कि ये ITM ऑशन है। पैसा मेरे पास आ रहा है इसलिए यह क्रेडिट ट्रांजैक्शन है 
  3. इन दोनों सौदों को मिलाकर कुल नेट कैश फ्लो यानी डेबिट और क्रेडिट के बीच का अंतर है यानी 136 – 38 =  98, पॉजिटिव कैश फ्लो है इसलिए मेरे अकाउंट में नेट क्रेडिट होगा।

आमतौर पर बेयर कॉल स्प्रेड में हमेशा नेट क्रेडिट होता है, इसलिए बुल कॉल स्प्रेड को कई बार क्रेडिट स्प्रेड भी कहते हैं। हमारे इस ट्रेड को करने के बाद बाजार किसी भी दिशा में जा सकता है और एक्सपायरी किसी भी स्तर पर हो सकती है।  इसलिए आइए कुछ परिस्थितियों पर नजर डालते हैं जिससे हमें पता चल सके कि अलग-अलग स्तर की एक्सपायरी पर बेयर कॉल स्प्रेड पर क्या असर होगा।

स्थिति 1 –  बाजार 7500 पर एक्सपायर होता है (लॉन्ग कॉल के ऊपर ) 

7500 पर दोनों ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी और ये दोनों इन द मनी एक्सपायर होंगे।

  • 7400 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 100। हमने इसके लिए 38 का प्रीमियम दिया है इसलिए हमें मुनाफा होगा 100 – 38 = 62 
  • 7100 CE  की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 400 और चूंकि हमने इसे 136 पर बेचा है इसलिए हमें नुकसान होगा 400 -136  = – 264 
  • कुल घाटा होगा -264 + 62 = – 202 

स्थिति 2 – बाजार की एक्सपायरी 7400 पर होती है (लॉन्ग कॉल पर) 

बाजार अगर 7400 पर एक्सपायर हो रहा है तो 7100 CE  की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी और ये इन द मनी एक्सपायर होगा। 7400 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा।

  • 7400 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा और हमने इसके लिए 38 का जो प्रीमियम दिया है वो डूब जाएगा। 
  • 7100 CE  की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 300 और चूंकि हमने इसे 136 पर बेचा है इसलिए हमें नुकसान होगा 300 -136  = – 164 
  • कुल घाटा होगा -164 – 38 = – 202 

ध्यान दीजिए कि 7400 पर उतना ही नुकसान हो रहा है जितना कि 7500 पर हो रहा था, जिससे पता चलता है कि एक स्तर के बाद नुकसान 202 पर ही रूक जाता है।

स्थिति 3 – बाजार की एक्सपायरी 7198 पर होती है (ब्रेकइवन पर )

7198 पर इस स्ट्रैटेजी में ना तो पैसे बनते हैं और ना ही पैसे डूबते हैं इसलिए इसे ब्रेकइवन प्वाइंट मानते हैं।  

  • 7198 पर 7100 CE 98 की इंट्रिन्सिक वैल्यू पर एक्सपायर होगा चूंकि हमने इसे 136 पर बेचा है इसलिए हमें पैसे मिलेंगे 136 – 98  =  38 
  • 7400 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा और हमने इसके लिए 38 का जो प्रीमियम दिया है वो डूब जाएगा। 
  • कुल पे ऑफ होगा – 38  + 38 = 0  

जो कि दिखाता है कि 7198 पर ना तो यहां पैसे बन रहे हैं और ना ही पैसे डूब रहे हैं। 

स्थिति 4 बाजार की एक्सपायरी 7100 पर होती है (शॉर्ट कॉल पर) 

7100 पर पर दोनों ऑप्शन वर्थलेस एक्सायर होंगे। यानी ये आऊट ऑफ द मनी होंगे।

  • 7400 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा और हमने इसके लिए 38 का जो प्रीमियम दिया है वो डूब जाएगा। 
  • 7100 CE की भी कोई इंट्रिन्सिक वैल्यू नहीं होगी इसलिए पूरा प्रीमियम यानी 136 इसलिए हमें मिल जाएगा। 
  • नेट प्रॉफिट होगा 136 – 38 =  98 

यानी बाजार के नीचे जाने पर स्ट्रैटेजी में मुनाफा होगा।

स्थिति 5  बाजार की एक्सपायरी 7000 पर होती है (शॉर्ट कॉल ऑप्शन के नीचे) 

यहां बाजार और गिरता है तो देखते हैं कि स्ट्रैटेजी के मुनाफे पर क्या असर पड़ता है। 7000 पर दोनों कॉल ऑप्शन वर्थलेस एक्सायर होंगे। 7400 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा और हमने इसके लिए 38 का जितना प्रीमियम दिया है उतना घाटा होगा। लेकिन, 7100 CE का पूरा प्रीमियम यानी 136 हमें मुनाफे के तौर पर मिल जाएगा। इसलिए स्ट्रैटेजी का कुल मुनाफा 136 – 38 =  98 होगा। मतलब ये हुआ कि बाजार जब गिरता है तो मुनाफा होता है लेकिन ये मुनाफा 98 तक ही सीमित है।

अलग अलग एक्सपायरी पर स्ट्रैटेजी का मुनाफा नीचे दिखाया गया है-

स्ट्रैटेजी का पे ऑफ, ग्राफ पर ऐसा दिखेगा

जैसा कि आप देख सकते हैं कि पे ऑफ वैसा ही है जैसा कि बेयर पुट स्प्रेड में था। सबसे अच्छी स्थिति में होने वाला मुनाफा और सबसे बुरी स्थिते में होने वाला नुकसान दोनों ही पहले से तय हैं।

8.3 – स्ट्रैटेजी की सामान्य बातें

ऊपर हमने जिन पे ऑफ की चर्चा की है उसके आधार पर हम कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाल सकते हैं- 

  1. स्प्रेड = दोनों स्ट्राइक के बीच का अंतर

7400 – 7100 = 300

  1. नेट क्रेडिट = मिला प्रीमियम – दिया गया प्रीमियम – 

      136 – 38 = 98

  1. ब्रेकइवन =  नीचे की स्ट्राइक + नेट क्रेडिट 

7100 + 98 = 7508

  1. अधिकतम मुनाफा = नेट क्रेडिट

 200 – 92 = 108

  1. अधिकतम नुकसान =  स्प्रेड – नेट क्रेडिट 
  1. – 98 = 202

इस स्तर पर हम डेल्टा को जोड़ कर इस पोजीशन का कुल डेल्टा निकाल सकते हैं जिससे हमें ये पता चल सके कि बाजार की दिशा का इस स्ट्रैटेजी पर क्या असर पड़ता है।

मैंने B&S कैलकुलेटर से डेल्टा निकाला है –

  • 7400 CE एक OTM ऑप्शन है और इसका डेल्टा होगा + 0.32
  • 7100 CE एक ITM ऑप्शन है और इसका डेल्टा होगा + 0.89
  • हम 7100 CE पर शॉर्ट हैं इसलिए डेल्टा है – (+ 0.89) = – 0.89
  • पोजीशन का कुल डेल्टा होगा = + 0.32 + (0.89) = – 0.57

इसका मतलब है कि इस स्ट्रैटेजी का डेल्टा नेगेटिव है जिसका मतलब है कि अगर अंडरलाइंग नीचे जाता है तो स्ट्रैटेजी में कमाई होगी और अंडरलाईंग के ऊपर जाने पर पर नुकसान होगी। 

8 .4  – स्ट्राइक का चुनाव और वोलैटिलिटी का असर

नीचे के ग्राफ से हमें एक्सायरी के हिसाब से सबसे अच्छी कॉल ऑप्शन को चुनने में मदद मिलेगी। सीरीज के पहले हिस्से और सीरीज के दूसरे हिस्से के तरीके की चर्चा हम कई बार कर चुके हैं इसलिए मैं सिर्फ ग्राफ और टेबल को दिखा रहा हूं। 

सीरीज के पहले हिस्से के लिए सही स्ट्राइक होगी 

4% चाल की उम्मीद  ऊपर की स्ट्राइक  नीचे की स्ट्राइक किस ग्राफ में 
5 days Far OTM ATM+2 strikes ऊपर बायीं तरफ 
15 days Far OTM ATM + 2 strikes ऊपर दाईं तरफ 
25 days OTM ATM + 1 strike नीचे बायीं तरफ
At expiry OTM ATM नीचे दायीं तरफ 

 सीरीज के दूसरे हिस्से के लिए सही स्ट्राइक 

4% चाल की उम्मीद ऊपर की स्ट्राइक नीचे की स्ट्राइक  किस ग्राफ में 
5 दिन में Far OTM Far OTM ऊपर बायीं तरफ 
15 दिन में Far OTM Slightly OTM ऊपर दायीं तरफ 
25 दिन में Slightly OTM ATM नीचे बायीं ओर 
एक्सपायरी पर OTM ATM/ITM नीचे दायीं ओर 

नीचे के ग्राफ में वोलैटिलिटी के हिसाब से स्ट्रैटेजी की कीमत में होने वाले बदलाव को दिखाया गया है

ऊपर का ग्राफ दिखाता है कि वोलैटिलिटी और समय में बदलाव के साथ साथ प्रीमियम कैसे बदलता है।

नीली रेखा बताती है कि वोलैटिलिटी बढ़ने पर स्ट्रैटेजी की कीमत में तब ज्यादा बदलाव नहीं होता है जब एक्सपायरी में काफी समय (30 दिन) बचे हों।

हरी रेखा बताती है कि वोलैटिलिटी बढ़ने पर स्ट्रैटेजी की कीमत में तब थोड़ा बदलाव होता है जब एक्सपायरी में 15 दिन का समय बचा हो।

लाल रेखा बताती है कि कि वोलैटिलिटी बढ़ने पर स्ट्रैटेजी की कीमत में तब काफी बदलाव होता है जब एक्सपायरी में 5 दिन का समय बचा हो।

इन ग्राफ से पता चलता है कि जब एक्सपायरी में काफी समय हो तो वोलैटिलिटी बढ़ने की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन एक्सपायरी के मध्य और अंत के बीच वोलैटिलिटी पर नजर रखनी चाहिए। बेयर कॉल स्प्रेड को तभी लेना चाहिए जब वोलैटिलिटी के बढ़ने की उम्मीद हो, जब आप वोलैटिलिटी के घटने की उम्मीद कर रहे हों तो इस स्ट्रैटेजी से बचना चाहिए।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. बेयर कॉल स्प्रेड का इस्तेमाल आमतौर पर तब करना चाहिए जब बाजार पर आपका नजरिया मॉडरेटली बेयरिश हो। 
  2. बेयर पुट स्प्रेड की जगह बेयर कॉल स्प्रेड आप तब चुनेंगे जब कॉल ऑप्शन का प्रीमियम पुट ऑप्शन के प्रीमियम से अधिक आकर्षक हो। 
  3. फायदा और नुकसान दोनों ही सामित होते हैं। 
  4. आम तौर पर बेयर कॉल स्प्रेड में एक साथ एक OTM ऑप्शन को खरीदा और एक ITM ऑप्शन को बेचा जाता है।
  5. बेयर कॉल स्प्रेड में आमतौर पर नेट क्रेडिट होता है, इस वजह से भी बेयर पुट स्प्रेड की जगह बेयर कॉल स्प्रेड को चुना जा सकता है।
  6. नेट क्रेडिट =  मिला प्रीमियम – दिया गया प्रीमियम 
  7. ब्रेकइवन =  नीचे की स्ट्राइक + नेट क्रेडिट 
  8. अधिकतम मुनाफा = नेट क्रेडिट
  9. अधिकतम नुकसान =  स्प्रेड – नेट क्रेडिट 
  10. स्ट्राइक को एक्सपायरी में समय के आधार पर चुनना चाहिए।
  11. बेयर कॉल स्प्रेड की स्ट्रैटेजी को तभी लेना चाहिए जब वोलैटिलिटी के बढ़ने की उम्मीद हो (खास कर सीरीज के दूसरे हिस्से में)।

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बेयर कॉल लैडर https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%af%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%b2%e0%a5%88%e0%a4%a1%e0%a4%b0/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%af%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%b2%e0%a5%88%e0%a4%a1%e0%a4%b0/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:46:22 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6982 5.1 – भूमिका बेयर कॉल लैडर के नाम में बेयर शब्द का इस्तेमाल होने का मतलब यह नहीं है कि यह एक बेयरिश या मंदी की की स्ट्रैटेजी है। वास्तव में यह कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड का ही एक सुधरा हुआ रूप है। इसका मतलब है कि आप इस स्ट्रैटेजी को तब अपना सकते हैं […]

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5.1 – भूमिका

बेयर कॉल लैडर के नाम में बेयर शब्द का इस्तेमाल होने का मतलब यह नहीं है कि यह एक बेयरिश या मंदी की की स्ट्रैटेजी है। वास्तव में यह कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड का ही एक सुधरा हुआ रूप है। इसका मतलब है कि आप इस स्ट्रैटेजी को तब अपना सकते हैं जब आप बाजार या स्टॉक को लेकर तेजी में हो यानी बुलिश हों। 

इस स्ट्रैटेजी में कॉल ऑप्शन खरीदने का पैसा आपको इन द मनी कॉल ऑप्शन (In the money call option) को बेचने से मिलता है। बेयर कॉल लैडर का इस्तेमाल भी आमतौर पर नेट क्रेडिट के लिए ही होता है। यहां पर कैश फ्लो आमतौर पर कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड के कैश फ्लो से बेहतर होता है। ध्यान दीजिएगा कि दिन दोनों ही स्ट्रैटेजी में पे ऑफ एक जैसा दिखता है लेकिन यहां पर रिस्क अलग अलग होता है।

5.2 – स्ट्रैटेजी से जुड़ी बातें

बेयर कॉल लैडर 3 चरणों वाली ऑप्शन स्ट्रैटेजी है, जिसका इस्तेमाल नेट क्रेडिट के लिए होता है। इसमें 

  1. एक ITM कॉल ऑप्शन को बेचा जाता है 
  2. एक ATM कॉल ऑप्शन को खरीदा जाता है। 
  3. एक OTM कॉल ऑप्शन को खरीदा जाता है। 

आमतौर पर बेयर कॉल लैडर को 1:1:1  के अनुपात में ही किया जाता है। हमेशा 2:1 का होता है। बेयर कॉल लैडर में 1:1:1  के अनुपात का मतलब है कि हर एक ITM कॉल ऑप्शन को बेचने पर एक ATM कॉल ऑप्शन को और एक OTM कॉल ऑप्शन को खरीदा जाता है। इस स्ट्रैटेजी में 2:2:2 या 3:3:3 जैसे किसी भी अनुपात का इस्तेमाल हो सकता है।    

एक उदाहरण देखते हैं – मान लीजिए कि निफ्टी 7790 पर है और आप को लगता है कि एक्सपायरी तक निफ्टी 8100 तक जाएगा। मतलब बाजार को ले कर आप काफी बुलिश हैं। अब बेयर कॉल लैडर बनाने के लिए –

  1.  एक ITM कॉल ऑप्शन को बेचिए 
  2. एक ATM कॉल ऑप्शन को खरीदिए 
  3. एक OTM कॉल ऑप्शन को खरीदिए 

जब आप ऐसा करें तो ध्यान रखें कि 

  1. सभी कॉल ऑप्शन एक ही एक्सपायरी सीरीज के हों 
  2. एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हुए हों 
  3. 1:1:1 का अनुपात बना रहे

ट्रेड सेटअप ऐसा बनेगा– 

  1. 7600 CE एक लॉट शार्ट, ₹247 का प्रीमियम मिलेगा। 
  2. 7800 CE  एक लॉट लांग, इस आप्शन पर ₹ 117 का प्रीमियम दें 
  3. 7900 CE  एक लॉट लांग, इस आप्शन पर ₹ 70 का प्रीमियम दें
  4. कुल नेट क्रेडिट = 247 – 117 – 70 = 60

बेयर कॉल लैडर इस तरह से पूरा होता है। आइए कुछ परिस्थितियों पर नजर डालते हैं जिससे हमें पता चल सके कि अलग-अलग स्तर की एक्सपायरी पर बेयर कॉल लैडर स्ट्रैटेजी के कैश फ्लो पर क्या असर होगा।

याद रखिए कि हर स्तर पर पे ऑफ बदलता रहता है इसलिए हमें एक्सपायरी के अलग अलग स्तरों पर पे ऑफ को देखना समझना होगा।

स्थिति 1 –  बाजार की एक्सपायरी 7600 पर होती है (नीचे के स्ट्राइक प्राइस से भी नीचे) 

हमे पता है कि एक्सपायरी के समय कॉल ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू –

Max [spot – strike, 0]

7600 की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी –

Max [7600 -7600,0]

= 0

क्योंकि हमने इस ऑप्शन को बेचा है, इसलिए हम पूरा यानी ₹247 का प्रीमियम अपने पास रख सकते हैं।

इसी तरह से, 7800 CE और 7900 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू भी 0 होगी, इसलिए हम ₹117 और ₹70 का प्रीमियम खो देंगे।

कुल नेट कैश फ्लो  = मिला हुआ प्रीमियम – अदा किया गया प्रीमियम

= 247 – 117 – 70

= 60

स्थिति 2 – बाजार की एक्सपायरी 7660 पर होती है (नीचे के स्ट्राइक कीमत + मिला कुल प्रीमियम पर) 

7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी –

Max [spot – strike, 0]

Max [7660 -7600,0]

= 60

हमने 7600 CE को शार्ट किया है इसलिए हम 247 में से 60 गंवा देंगे और बाकी अपने पास रख सकेंगे

= 247 – 60

= 187

7800 CE और 7900 CE वर्थलेस एक्सपायर होंगे, इसलिए 117 और 70 का जो प्रीमियम हमने दिया है वो गंवा देंगे।

स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा

= 187 – 117 – 70

= 0

मतलब 7660 पर ट्रेडर के पैसे ना तो बनेंगे और ना ही डूबेंगे। यही इसका नीचे का ब्रेकइवन प्वाइंट होगा।

स्थिति 3 – बाजार की एक्सपायरी 7700 पर होती है (ब्रेकइवन प्वाइंट और बीच की स्ट्राइक यानी 7660 और 7800 के बीच)

7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी –

Max [spot – strike, 0]

Max [7700 -7600,0]

= 100

दूसरी तरफ, हमने 7800 CE और 7900 CE खरीदा है, वो वर्थलेस एक्सपायर होंगे, इसलिए 117 और 70 का जो प्रीमियम हमने दिया है वो हम गंवा देंगे।

इस तरह से स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा –

147 – 117 – 70

= – 40

स्थिति 4-  बाजार की एक्सपायरी 7800 पर होती है (बीच की स्ट्राइक प्राइस पर) 

यहां ध्यान दीजिए क्योंकि यहां दुर्घटना होती है। 

7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 200 और लेकिन हमने ये ऑप्शन के प्रीमियम 247 पर राइट किया है इसलिए हम इसकी इंट्रिन्सिक वैल्यू यानी 200 गंवा देंगे।

इस तरह, 7600 CE पर हम 200 गंवा देंगे और हमें मिलेंगे – 

247 -200 

= 47

उधर, 7800 CE और 7900 CE दोनों वर्थलेस एक्सपायर होंगे, इसलिए 117 और 70 का जो प्रीमियम हमने दिया है वो हम गंवा देंगे।

इस तरह से स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा

= 47 – 117 – 70

= – 140

स्थिति 5 –  बाजार की एक्सपायरी 7900 पर होती है (ऊपर के स्ट्राइक प्राइस पर) 

ये बहुत ही रोचक है, एक और दुर्घटना 😊

7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 300 और लेकिन हमने ये ऑप्शन के प्रीमियम 247 पर राइट किया है इसलिए प्रीमियम तो डूबेगा ही साथ में हम और पैसे भी गंवाएंगे।

इस तरह, 7600 CE पर हम गंवाएंगे –

= 247 – 300 

= – 53

7800 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू 100 होगी और चूंकि हमने 117 के प्रीमियम दिया है इसलिए ऑप्शन का पे ऑफ होगा –

= 100 – 117

= – 17

और, 7900 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा, यानी पूरा 70 हम गंवा देंगे।

इस तरह स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा

= -53 – 17 -70

= – 140

ध्यान दीजिए कि दोनों 7800 और 7900 पर नुकसान बराबर है।

स्थिति 6 –  बाजार की एक्सपायरी 8040 पर होती है (लॉन्ग स्ट्राइक के कुल जोड़ – शार्ट स्ट्राइक – कुल प्रीमियम) 

कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड की तरह बेयर कॉल लैडर स्ट्रैटेजी के भी दो ब्रेक इवन स्तर होते हैं – एक नीचे की तरफ और दूसरा ऊपर की तरफ। हमने नीचे का ब्रेक इवन पहले ही स्थिति 2 में निकाल लिया है। अब ऊपर का ब्रेक इवन स्तर –

(7900 + 7800) – 7600 -60

= 15700 – 7600 – 60

= 8100 -60

= 8040

ध्यान दीजिए कि हम 7800 और 7900, दोनों स्ट्राइक पर लॉन्ग हैं जबकि 7600 पर शार्ट हैं, इसलिए 60 नेट क्रेडिट होगा। 

तो, 8040 पर सभी कॉल ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी – 

7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी, 8040 – 7600 = 440, क्योंकि हम इस पर 247 पर शार्ट हैं इसलिए हमें 193 का नुकसान होगा – 247 – 440 = – 193

7800 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी, 8040 – 7800 = 240, क्योंकि हम इस पर 117 पर लांग हैं इसलिए हमें 123 का फायदा होगा होगा – 240 – 117 = 123

7900 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी, 8040 – 7900 = 140, क्योंकि हम इस पर 70 पर लांग हैं इसलिए हमें 70 का फायदा होगा होगा – 240 – 70 = 70

इसलिए बेयर कॉल लैडर का कुल पे ऑफ होगा 

-193 + 123

= 0

मतलब 8040 पर ट्रेडर के पैसे ना तो बनेंगे और ना ही डूबेंगे। यही इसका ऊपर का ब्रेक इवन प्वाइंट होगा।

ध्यान दीजिए कि 7800 और 7900 पर इस स्ट्रैटेजी में नुकसान हो रहा था और 8040 पर ब्रेक इवन है। इसका मतलब 8040 के बाद इस स्ट्रैटेजी में फायदा होगा। आइए इसे साबित करते हैं।

स्थिति 7 –  बाजार की एक्सपायरी 8300 पर होती है 

8300 पर सभी कॉल ऑप्शन की इंट्रिसिक वैल्यू होगी – 

7600 CE की इंट्रिसिक वैल्यू होगी, 8300 – 7600 = 700, क्योंकि हम इस पर 247 पर शार्ट हैं इसलिए हमें नुकसान होगा – 247 – 700 = – 453

7800 CE की इंट्रिसिक वैल्यू होगी, 8300 – 7800 = 500, क्योंकि हम इस पर 117 पर लांग हैं इसलिए हमें फायदा होगा होगा – 500 – 117 = 383

7900 CE की इंट्रिसिक वैल्यू होगी, 8300 – 7900 = 400, क्योंकि हम इस पर 70 पर लांग हैं इसलिए हमें  फायदा होगा होगा – 400 – 70 = 330

600 CE की इंट्रिसिक वैल्यू होगी 500 और 7800 CE की इंट्रिसिक वैल्यू होगी 300 

इसलिए बेयरकॉल लैडर का कुल पे ऑफ होगा 

-453 + 383 + 330

= 260

ध्यान दीजिए कि जैसे जैसे बाजार ऊपर जाता है वैसे वैसे मुनाफा की संभावना भी ऊपर जाती है। अलग अलग एक्सपायरी पर इस स्ट्रैटेजी के पे ऑफ को नीचे दिखाया गया है।

 

ध्यान दीजिए कि जब बाजार नाचे जाता है तो आप 60 का छोटा सा मुनाफा बनाते हैं लेकिन जैसे जैसे बाजार ऊपर जाता है वैसे वैसे मुनाफा असीमित होता जाता है।

5.3 – – स्ट्रैटेजी के सामान्य बिंदु

ऊपर जिन स्थितियों पर हमने चर्चा की है उसके आधार पर स्ट्रैटेजी के बारे में जो सामान्य बातें कह सकते हैं वो हैं  –

  • स्प्रेड = तकनीकी तौर पर ये स्प्रेड नहीं बल्कि लैडर है, लेकिन पहले दो चरण में जब हम ITM ऑप्शन बेचते हैं और ATM ऑप्शन खरीदते हैं तो एक बहुत अच्छा स्प्रेड बनता है। इसलिए ITM और ATM के बीच के अंतर को स्प्रेड मान सकते हैं। यहां पर ये 200 (7800 – 7600) 
  • नेट क्रेडिट = ITM CE के लिए मिला प्रीमियम – ATM और OTM CE के लिए दिया गया प्रीमियम
  • अधिकतम नुकसान = स्प्रेड (ITM और ATM के बीच का अंतर ) नेट क्रेडिट
  • अधिकतम नुकसान होता है = ATM और OTM स्ट्राइक पर 
  • बाजार के नीचे जाने पर पे ऑफ = नेट क्रेडिट
  • नीचे का ब्रेकइवन = नीचे की स्ट्राइक + नेट क्रेडिट
  • ऊपर का ब्रेकइवन = सभी लांग स्ट्राइक का जोड़ – शार्ट स्ट्राइक – नेट प्रीमियम 

इन बिंदुओं को इस ग्राफ में दिखाया गया है –

ध्यान दीजिए कि कैसे 7660 और 8040 के बीच इस स्ट्रैटेजी में नुकसान होता है लेकिन 8040 को पार करते ही भारी फायदा होने लगता है। अगर बाजार नीचे भी जाता है तो ऐपको एक छोटा सा मुनाफा होता है। पर, बाजार अगर एकदम ही नहीं चलता तो बुरी तरह से घाटा होता है। बेयर कॉल लैडर के इन गुणों की वजह से मेरा मानना है कि आपको ये स्ट्रैटेजी तभी अपनानी चाहिए जब पूरी तरह से निश्चित हों कि बाजार चलेगा, चाल चाहे किसी भी दिशा में हो।

मेरे अपने अनुभव में, ये स्ट्रैटेजी स्टॉक (इंडेक्स के मुकाबले) पर बेहतर काम करती है, खास कर तब जब तिमाही नतीजे आने वाले हों।

5.4 – ग्रीक्स का असर

इस स्ट्रैटेजी पर भी ग्रीक्स वैसा ही असर डलते हैं जैसा कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड पर डालते हैं, खास कर वोलैटिलिटी के मामले में। आपके समझने के लिए वोलैटिलिटी पर पिछले अध्याय में हुई चर्चा को यहां फिर से प्रस्तुत कर रहा हूं।

यहां पर तीन रंगों की रेखाएं हैं जो कि नेट प्रीमियम में बदलाव को दिखाती हैं। मतलब यह रेखाएं दिखा रही हैं कि वोलैटिलिटी में बदलाव के साथ इस स्ट्रैटेजी के पे ऑफ में किस तरह का बदलाव होता है। ये रेखाएं हमें इस स्ट्रैटेजी पर वोलैटिलिटी के असर को दिखाती हैं खासकर तब जब आप एक्सपायरी के नजरिए से देख रहे हों।

  1. नीली रेखा – ये रेखा हमें बताती है कि जब वोलैटिलिटी बढ़ती है और एक्सपायरी में काफी समय बचा हो (30 दिन) तो ये बेयर कॉल लैडर के लिए फायदेमंद होता है। जैसे कि हम देख सकते हैं कि जब वोलैटिलिटी 15% से 30% हो जाती है तो इस स्ट्रैटेजी का पे ऑफ – 67 से + 43 हो जाता है। इसका मतलब है कि जब एक्सपायरी में काफी समय बचा हो तो बाजार की दिशा पर आपकी राय सही होने के साथ आपको वोलैटिलिटी पर भी राय बनानी चाहिए। इसीलिए अगर सीरीज की शुरुआत में वोलैटिलिटी ऊपर हो (मान लीजिए कि आम तौर पर रहने वाली वोलैटिलिटी के मुकाबले दोगुना) तो मैं स्टॉक पर बुलिश होने पर भी इस स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल करने को ले कर निश्चित नहीं रहूंगा।
  2. हरी रेखा – ये रेखा बताती है कि अगर एक्सपायरी में 15 दिन बचे हों तो वोलैटिलिटी का बढ़ना फायदेमंद होता है। हांलाकि ये फायदा नीली रेखा के मामले में होने वाले फायदे से कम होता है। जैसा कि हम देख सकते हैं कि वोलैटिलिटी 15% से 30% होने पर इस स्ट्रैटेजी का पे ऑफ – 77 से – 47 हो जाता है।
  3. लाल रेखा – यहां पर ऐसा परिणाम आता है जो आप सोच भी नहीं सकते, जब एक्सपायरी में कुछ ही दिन बचे हों तो वोलैटिलिटी बढ़ने पर स्ट्रैटेजी पर निगेटिव असर पड़ता है। जरा सोचिए, एक्सपायरी में कुछ ही दिन बचे हों तो वोलैटिलिटी बढ़ने पर ऑप्शन के OTM हो कर एक्सपायर होने की संभावना बन जाती है और प्रीमियम घट जाता है। तो अगर आप एक्सपायरी से कुछ दिन पहले स्टॉक पर बुलिश हैं और आप वोलैटिलिटी के बढ़ने की उम्मीद कर रहे हैं तो जरा सावधान रहिए।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. बेयर कॉल लैडर वास्तव में कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड का एक सुधरा हुआ रूप है। 
  2. बेयर कॉल लैडर को इस्तेमाल करने की कीमत कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड की कीमत के मुकाबले आपके लिए बेहतर होती है, लेकिन बाजार के चलने का दायरा भी बड़ा हो जाता है। 
  3. बेयर कॉल लैडर में 1 ITM CE को बेचा जाता है, 1 ATM CE को और 1 OTM CE स्टको खरीदा जाता है।
  4. नेट क्रेडिट = ITM CE के लिए मिला प्रीमियम – ATM और OTM CE के लिए दिया गया प्रीमियम
  5. अधिकतम नुकसान = स्प्रेड (ITM और ATM के बीच का अंतर ) – नेट क्रेडिट
  6. अधिकतम नुकसान होता है = ATM और OTM स्ट्राइक पर 
  7. बाजार के नीचे जाने पर पे ऑफ = नेट क्रेडिट
  8. नीचे का ब्रेकइवन = नीचे की स्ट्राइक + नेट क्रेडिट
  9. ऊपर का ब्रेकइवन = सभी लांग स्ट्राइक का जोड़ – शार्ट स्ट्राइक – नेट प्रीमियम 
  10. इस स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल तभी करना चाहिए जब आपको पूरी तरीके से भरोसा हो कि बाजार काफी ऊपर जाएगा।

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7.1 – स्प्रेड Vs नेकेड (Naked) पोजीशन  

पिछले 5 अध्यायों से हम कई चरणों वाली बुलिश स्ट्रैटेजी पर बात करते रहे हैं। इन में हमने पूरी तरह यानी आउटराइटली बुलिश (outrightly  bullish) नजरिए से लेकर मॉडरेटली बुलिश (moderately bullish) नजरिए तक की स्ट्रैटेजी पर बात की है। इन 5 अध्यायों को पढ़ने के बाद आपको समझ में आ गया होगा कि ज्यादातर ऑप्शन ट्रेडर नेकेड ऑप्शन पोजीशन लेने के बजाय एक स्प्रेड स्ट्रैटजी बनाना पसंद करते हैं। वैसे ये सच है कि स्प्रेड आपके कुल मुनाफे को घटा देता है. लेकिन आपके रिस्क को पूरी तरीके से बता देता है। एक अच्छा ट्रेडर इस बात को ज्यादा महत्व देता है कि उसे उसका रिस्क पता हो, बजाय इसके कि उसे मुनाफा कितना हो रहा है। सीधे शब्दों में कहें तो अगर आपको यह पता हो कि आपका अधिकतम नुकसान या घाटा कितना हो सकता है तो कम मुनाफा लेकर लेकर घर जाना एक अच्छा रास्ता हो सकता है।

स्प्रेड स्ट्रैटजी की एक और अच्छी बात यह है कि आमतौर पर इसमें आपका ट्रेड फाइनेंस हो जाता है, मतलब आपका एक ऑप्शन को खरीदने का पैसा दूसरे ऑप्शन को बेचने से ही आ जाता है। वास्तव में नेकेड पोजीशन और स्प्रेड पोजीशन में यही सबसे बड़ा अंतर होता है। अगले कुछ अध्यायों में हम ऐसी स्ट्रैटजी पर बात करेंगे जिनका इस्तेमाल आप तब करते हैं जब आपका नजरिया मॉडरेटली बेयरिश या पूरी तरीके से बेयरिश (मंदी का) होता है। सबसे पहली बेयरिश स्ट्रैटजी है, बेयर पुट स्प्रेड। जैसा कि आपको नाम से ही समझ में आ गया होगा कि यह बुल कॉल स्प्रेड की तरह की ही एक स्ट्रैटजी है।

2.2 – स्ट्रैटेजी से जुड़ी बातें

बुल कॉल स्प्रेड की ही बेयर पुट स्प्रेड का इस्तेमाल बहुत आसान है। यह आपके काम तब आता है जब बाजार या स्टॉक पर आपका नजरिया मॉडरेटली बेयरिश हो मतलब जब आपको बाजार के नीचे जाने की उम्मीद तो हो लेकिन आप ये भी मानते हों कि ये गिरावट ज्यादा नहीं होगी। अगर आप मॉडरेटली बेयरिश को संख्या में बताना चाहते हों तो ये कह सकते हैं कि 4 से 5 प्रतिशत की गिरावट। अगर उम्मीद के मुताबिक बाजार में गिरावट होती है तो बेयर पुट स्प्रेड के इस्तेमाल से आप एक छोटा मुनाफा कमा सकते हैं, दूसरी तरफ, अगर बाजार ऊपर भी चला जाए तो ट्रेडर को सीमित नुकसान ही होता है।

एक सतर्क रहने वाला ट्रेडर (रिस्क से बचने वाला ट्रेडर) बेयर पुट स्प्रेड तैयार करने के लिए एक साथ 

  1. एक ITM पुट ऑप्शन खरीदे 
  2. एक OTM पुट ऑप्शन को बेचे 

वैसे ये जरूरी नहीं है कि बेयर पुट स्प्रेड को ITM और OTM ऑप्शन से ही बनाया जाए, इसे किसी भी दो पुट ऑप्शन से बनाया जा सकता है। स्ट्राइक का चुनाव इस बात पर निर्भर करेगा कि ट्रेडर कितना आक्रामक रवैया रखता है। लेकिन याद रखें कि दोनों ऑप्शन एक ही एक्सपायरी सीरीज के हों और एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हुए हों। 

 इसके इस्तेमाल को और बेहतर तरीके से समझने के लिए कुछ परिस्थितियों पर नजर डालते हैं और देखते हैं कि ये स्ट्रैटजी कैसे काम करती है।  

अभी निफ्टी 7485 पर है, ऐसे में, 7600 PE इन द मनी (ITM) ऑप्शन होगा और 7400 PE यहां OTM होगा। बेयर पुट स्प्रेड के लिए 7400 PE को बेचना होगा और इसके लिए जो प्रीमियम मिलेगा उसमें कुछ और रकम मिला कर 7600 PE खरीदा जाएगा। 7600 PE के लिए दिया गया प्रीमियम (PP – Premium Paid) होगा Rs165  और 7400 PE के लिए मिला प्रीमियम (PR- Premium Received) Rs 73 है। इस सौदे का नेट डेबिट होगा – 

73 – 165

= – 92

अलग अलग एक्सपायरी पर इस स्ट्रैटेजी का पे ऑफ कैसा होगा ये देखने के लिए हमें कुछ स्थितियों पर नजर डालनी होगी। यहां ध्यान रखिए कि ये एक्सपायरी पर होने वाला पे ऑफ है मतलब ट्रेडर को अपनी पोजीशन एक्सपायरी तक होल्ड करना होगा। 

स्थिति 1 –  बाजार 7800 पर एक्सपायर होता है (लॉन्ग पुट ऑप्शन यानी 7600 के ऊपर ) 

ये वो स्थिति है जहां बाजार उम्मीद के मुताबिक नीचे नहीं गया बल्कि ऊपर चला गया। 7800 पर दोनों ऑप्शन  7600 और 7400 की इंट्रिन्सिक वैल्यू कुछ नहीं होगी और ये वर्थलेस एक्सपायर होंगे।

  • 7600 PE के लिए दिया गया प्रीमियम यानी 165 रुपया  अब 0 पर पहुंच जाएगा और हमें कुछ नहीं मिलेगा। 
  • 7400 PE के लिए मिला प्रीमियम यानी 73 रुपया पूरा मिल जाएगा। 
  • इस तरह से, 7800 पर हम 165 रुपये का घाटा सह रहे होंगे लेकिन कुछ हद तक इसकी भरपाई मिलने वाले प्रीमियम यानी 73 रुपये  से हो जाएगी।
  • कुल घाटा होगा -165 + 73 = – 92 

यहां 165 के साथ – का चिन्ह इस लिए लगाया गया है क्योंकि ये रकम एकाउंट से जा रही है और 73 के साथ + इस लिए लगा है क्योंकि ये रकम एकाउंट में आ रही है।

साथ ही, 92 का घाटा इस स्ट्रैटेजी के नेट डेबिट के बराबर है।

स्थिति 2 – बाजार की एक्सपायरी 7600 पर होती है (लॉन्ग पुट ऑप्शन पर) 

इस स्थिति में बाजार 7600 पर एक्सपायर हो रहा है, हमने यहां पर पुट ऑप्शन खरीदा है। लेकिन, दोनों ऑप्शन  7600 और 7400 PE वर्थलेस एक्सपायर होंगे (जैसा कि स्थिति 1 में था) और – 92 का नुकसान होगा।

स्थिति 3 – बाजार की एक्सपायरी 7508 पर होती है (ब्रेकइवन पर )

7508 दोनों 7600 और 7400 के बीच में है, शायद आपको समझ में आ गया होगा कि मैंने 7508 को इसलिए चुना है जिससे ये दिखा सकूं कि इस जगह पर इस स्ट्रैटेजी में ना तो पैसे बनते हैं और ना ही पैसे डूबते हैं। 

  • 7600 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी Max [7600-7508,0] जो कि 92 है।
  • हमने 7600 PE के लिए 165 रुपये का प्रीमियम दिया है, इसकी कुछ रकम यानी, 165 – 92  = 73 हमें वापस मिल जाएगी, तो, इश स्तर पर नुकसान 165 का नहीं सिर्फ 73 का होगा।
  • 7400 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा, पूरा प्रीमियम यानी 73 रुपया हमें मिल जाएगा।
  • तो एक तरफ हम 73 कमा रहे होंगे (7400 PE पर) और दूसरी तरफ हम 73 का निकसान उठा रहे हैं (7600 PE पर) यानी हमें ना तो फायदा हो रहा है ना ही नुकसान।

इसलिए 7508 इस स्ट्रैटेजी का ब्रेकइवन होगा।

स्थिति 4 बाजार की एक्सपायरी 7400 पर होती है (शॉर्ट पुट ऑप्शन पर) 

ये एक रोचक स्थिति है, याद रखिए कि जब हमने पोजीशन बनाई थी तो निफ्टी स्पॉट 7485 पर था और अब बाजार उम्मीद के मुताबिक ही नीचे आ गया है। इस जगह पर दोनों ऑप्शन से रोचक परिणाम निकलेंगे।

  • 7600 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी, Max [7600-7400,0] यानी 200
  • हमने 165 रुपये का प्रीमियम दिया है, इसकी कुछ रकम हमें 200 की इंट्रिन्सिक वैल्यू से वापस मिल जाएगी, तो प्रीमियम देने के बाद भी हमें 35 रुपये मिल जाएंगे।
  • 7400 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा, पूरा प्रीमियम यानी 73 रुपया हमें मिल जाएगा।
  • इस स्तर पर कुल मुनाफा होगा 35 + 73 = 108

स्ट्रैटेजी का कुल यानी नेट पे ऑफ वैसा ही होगा जैसी कि इस स्ट्रैटेजी से उम्मीद थी, यानी बाजार के नीचे जाने पर ट्रेडर को एक छोटा मुनाफा होगा।

स्थिति 5  बाजार की एक्सपायरी 7200 पर होती है (शॉर्ट पुट ऑप्शन के नीचे) 

ये फिर एक रोचक स्थिति है, यहां दोनों ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी। देखते हैं – 

  • 7600 PE की इंट्रिसिक वैल्यू होगी, Max [7600-7200,0] यानी 400
  • हमने 165 रुपये का प्रीमियम दिया है, इसकी रकम हमें 400 की इंट्रिन्सिक वैल्यू से वापस मिल जाएगी, और प्रीमियम देने के बाद भी हमें 235 रुपये मिल जाएंगे।
  • 7400 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी, Max [7400-7200,0] यानी 200
  • हमें 73 रुपये का प्रीमियम मिला है, लेकिन ये 73 की रकम तो हमारे हाथ से जाएगी ही, साथ ही, हमें 200 -73 = 127 का नुकसान भी होगा।
  • तो एक तरफ हम 235 कमा रहे होंगे और दूसरी तरफ हम 127 का नुकसान उठा रहे हैं, इसलिए स्ट्रैटेजी का नेट पे ऑफ होगा 235 – 127 = 108

 इन सभी स्थितियों को एक साथ हम इस एक चार्ट में देख सकते हैं (मैंने पे ऑफ को सीधे प्रीमियम की गणना के हिसाब से लिख दिया है)

बाज़ार एक्सपायरी लॉन्ग पुट (7600)_IV शॉर्ट पुट  (7400)_IV नेट पेऑफ 
7800 0 0 -92
7600 0 0 -92
7508 92 0 0
7200 400 200 +108

यहां पर ध्यान दीजिए कि स्ट्रैटेजी का नेट पे ऑफ वैसा ही है जैसा कि इस स्ट्रैटेजी से उम्मीद थी, यानी बाजार के नीचे जाने पर ट्रेडर को एक छोटा मुनाफा होता है और बाजार ऊपर जाने पर नुकसान सीमित रहता है ।

नीचे के टेबल को देखिए –

यहां पर अलग अलग एक्सपायरी के स्तर पर स्ट्रैटेजी के पे ऑफ को दिखाया गया है। नुकसान 92 तक ही सीमित हैं (जब बाजार ऊपर जाते हैं) और फायदा भी 108 तक सीमित है (जब बाजार नीचे जाते हैं)।  

7.3 – स्ट्रैटेजी के महत्वपूर्ण स्तर

ऊपर हमने जिन स्थितियों की चर्चा की है उसके आधार पर हम कुछ समान निष्कर्ष निकाल सकते हैं- 

  1. अगर स्पॉट ब्रेकइवन के ऊपर चला जाता है तो इस स्ट्रैटेजी में नुकसान होता है और अगर ये ब्रेकइवन के नीचे चला जाता है तो इस स्ट्रैटेजी में फायदा होता है। 
  2. मुनाफा और नुकसान दोनों ही सीमित होते हैं।
  3. दोनों स्ट्राइक कीमतों के अंतर ही स्प्रेड होता है
  1. इस उदाहरण में स्प्रेड होगा- 7600 -7400 = 200
  1. नेट डेबिट =  दिया गया प्रीमियम – मिला प्रीमियम 
  1. 165 – 73 = 92
  1. ब्रेकइवन =  ऊपर की स्ट्राइक – नेट डेबिट 
  1. 7600 – 92 = 7508
  1. अधिकतम मुनाफा = स्प्रेड – नेट डेबिट
  1.  200 – 92 = 108
  1. अधिकतम नुकसान =  नेट डेबिट 
  1. 92

इन सभी निष्कर्षों को आप स्ट्रैटेजी के पे ऑफ चित्र में नीचे देख सकते हैं

7.4– डेल्टा से जुड़ी कुछ बातें 

यह बात मैं पहले के अध्यायों में बताना भूल गया, जब भी आप कोई भी ऑप्शन स्ट्रैटेजी अपनाते हैं तो आपको डेल्टा को जरूर जोड़ना चाहिए। मैंने यहां पर B&S कैलकुलेटर का इस्तेमाल करके डेल्टा निकाला है। 

7600 PE का डेल्टा होगा – 0.618

7400 PE का डेल्टा होगा –0.342

यहां पर निगेटिव चिन्ह का मतलब है कि अगर बाजार ऊपर जाता है तो पुट ऑप्शन का प्रीमियम नीचे जाएगा और बाजार नीचे जाता है तो प्रीमियम ऊपर जाएगा। लेकिन हमने 7400 PE को बेचा (राइट किया) है, इसलिए डेल्टा होगा 

  –(-0.342)

= + 0.342

आपको पता है कि हम डेल्टा को जोड़ सकते हैं, इसलिए हम जोड़ कर इस पोजीशन का कुल डेल्टा निकाल सकते हैं, जो होगा 

– 0.618 + (+0.342)

= – 0.276

इसका मतलब है कि इस स्ट्रैटेजी का कुल डेल्टा है 0.276 और यहां पर – चिन्ह का मतलब है कि अगर बाजार नीचे जाता है तो प्रीमियम ऊपर जाएगा। हमने अब तक जिस भी स्ट्रैटेजी पर चर्चा की है, जैसे बुल कॉल स्प्रेड, कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड आदि, उन सभी स्ट्रैटेजी का कुल डेल्टा आप इसी तरह से निकाल सकते हैं। जब आप डेल्टा निकालेंगे तो आपको दिखेगा कि वो सभी डेल्टा पॉजिटिव में है जिसका अर्थ है कि ये सब बुलिश स्ट्रैटेजी हैं।  

जब किसी ऑप्शन स्ट्रैटेजी में 2 या उससे ज्यादा चरण होते हैं, तो यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है कि वह स्ट्रैटेजी बुलिश है या बेयरिश है। ऐसे में, आप अगर उस स्ट्रैटेजी के डेल्टा को जोड़ लें तो आपको यह पता चल जाएगा कि स्ट्रैटेजी का झुकाव किस तरफ है। अगर कुल डेल्टा जीरो निकलता है तो इसका मतलब है कि स्ट्रैटेजी का झुकाव ना बुलिश है और ना ही बेयरिश है। ऐसी स्ट्रैटेजी को डेल्टा न्यूट्रल स्ट्रैटेजी कहते हैं। इस मॉड्यूल में आगे जाते हुए हम ऐसी स्ट्रैटेजी पर भी चर्चा करेंगे। 

आपको यह पता होना चाहिए कि डेल्टा न्यूट्रल स्ट्रैटेजी मैं इस बात का कोई असर नहीं पड़ता कि बाजार की चाल किस दिशा की तरफ है। ऐसी स्ट्रैटेजी सिर्फ वोलैटिलिटी और समय पर प्रतिक्रिया देती है इसीलिए इन्हें कभी-कभी वोलैटिलिटी पर आधारित स्ट्रैटेजी भी कहते हैं।

 7.5 – स्ट्राइक का चुनाव और वोलैटिलिटी का असर

बेयर पुट स्प्रेड के लिए स्ट्राइक का चुनाव वैसे ही होता है जैसे बुल कॉल स्प्रेड में किया जाता है। मुझे आशा है कि आप को सीरीज के पहले हिस्से और सीरीज के दूसरे हिस्से का तरीका याद है। अगर नहीं, तो आपको दूसरे अध्याय का 2.3 हिस्सा पढ़ना चाहिए। नीचे के ग्राफ को देखिए

अगर हम सीरीज के पहले हिस्से में हैं (एक्सपायरी में काफी समय है) और हम बाजार के 4% तक नीचे जाने की उम्मीद कर रहे हैं तो नीचे दी गई स्ट्राइक को चुन कर आप स्प्रेड बना सकते हैं – 

4% की चाल की उम्मीद  ऊपर की स्ट्राइक नीचे की स्ट्राइक किस ग्राफ में 
5 दिन में Far OTM Far OTM Top left
15 दिन में ATM Slightly OTM Top right
25 दिन में ATM OTM Bottom left
एक्सपायरी पर ATM OTM Bottom right

अब मान लीजिए कि हम सीरीज के दूसरे हिस्से में हैं, इन स्ट्राइक को चुन कर स्प्रेड बनाना बेहतर होगा।

4% की चाल की उम्मीद ऊपर की स्ट्राइक नीचे की स्ट्राइक  किस ग्राफ में 
उसी दिन  OTM OTM Top left
5 दिन में ITM/OTM OTM Top right
10 दिन में ITM/OTM OTM Bottom left
एक्सपायरी पर ITM/OTM OTM Bottom right

मुझे उम्मीद है कि ऊपर के दोनों टेबल बेयर पुट स्प्रेड की सही स्ट्राइक चुनने के समय आपके लिए उपयोगी साबित होंगे। 

अब हम बेयर पुट स्प्रेड पर वोलैटिलिटी के असर पर फोकस करेंगे । नीचे के चित्र पर नजर डालिएऊपर का ग्राफ दिखाता है कि वोलैटिलिटी और समय में बदलाव के साथ साथ प्रीमियम कैसे बदलता है।

नीली रेखा बताती है कि वोलैटिलिटी बढ़ने पर स्ट्रैटेजी की कीमत में तब ज्यादा बदलाव नहीं होता है जब एक्सपायरी में काफी समय (30 दिन) बचे हों।

हरी रेखा बताती है कि वोलैटिलिटी बढ़ने पर स्ट्रैटेजी की कीमत में तब थोड़ा बदलाव होता है जब एक्सपायरी में 15 दिन का समय बचा हो।

लाल रेखा बताती है कि कि वोलैटिलिटी बढ़ने पर स्ट्रैटेजी की कीमत में तब काफी बदलाव होता है जब एक्सपायरी में 5 दिन का समय बचा हो।

इन ग्राफ से पता चलता है कि जब एक्सपायरी में काफी समय हो तो वोलैटिलिटी बढ़ने की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन एक्सपायरी के मध्य और अंत के बीच वोलैटिलिटी पर नजर रखनी चाहिए। बेयर पुट स्प्रेड को तभी लेना चाहिए जब वोलैटिलिटी के बढ़ने की उम्मीद हो, जब आप वोलैटिलिटी के घटने की उम्मीद कर रहे हों तो इस स्ट्रैटेजी से बचना चाहिए।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. एक स्प्रेड आपके रिस्क को तो बता देता है लेकिन आपके मुनाफे को घटा देता है। 
  2. जब आप एक स्प्रेड बनाते हैं तो आपका एक ऑप्शन को खरीदने का पैसा दूसरे ऑप्शन को बेचने से ही आ जाता है। 
  3. बेयर पुट स्प्रेड का इस्तेमाल आमतौर पर तब करना चाहिए जब आपका नजरिया मॉडरेटली बेयरिश हो। 
  4. फायदा और नुकसान दोनों ही सीमित होते हैं। 
  5. आम तौर पर पुट स्प्रेड में एक साथ एक ITM ऑप्शन को खरीदा और एक OTM ऑप्शन को बेचा जाता है।
  6. बेयर पुट स्प्रेड में आमतौर पर नेट डेबिट होता है
  7. नेट डेबिट =  दिया गया प्रीमियम – मिला प्रीमियम 
  8. ब्रेकइवन =  ऊपर की स्ट्राइक – नेट डेबिट 
  9. अधिकतम मुनाफा = स्प्रेड – नेट डेबिट
  10. अधिकतम नुकसान =  नेट डेबिट 
  11. स्ट्राइक को एक्सपायरी में समय के आधार पर चुनना चाहिए।
  12. बेयर पुट स्प्रेड की स्ट्रैटेजी को तभी लेना चाहिए जब वोलैटिलिटी के बढ़ने की उम्मीद हो (खास कर सीरीज के दूसरे हिस्से में)।

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सिंथेटिक लॉन्ग और आर्बिट्राज https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%a5%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%97-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%86%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%9f/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%a5%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%b2%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%97-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%86%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%9f/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:44:59 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6985 6.1 – भूमिका अगर आपको निफ़्टी फ्यूचर्स की एक ही एक्सपायरी सीरीज में लॉन्ग पोजीशन और शार्ट पोजीशन दोनों बनानी हो तो? आप इसे कैसे करेंगे और ऐसा करने की वजह क्या हो सकती है?  इस अध्याय में हम इन्हीं दोनों सवालों का जवाब देंगे। तो पहले यह समझते हैं कि इसको कैसे करना चाहिए […]

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6.1 – भूमिका

अगर आपको निफ़्टी फ्यूचर्स की एक ही एक्सपायरी सीरीज में लॉन्ग पोजीशन और शार्ट पोजीशन दोनों बनानी हो तो? आप इसे कैसे करेंगे और ऐसा करने की वजह क्या हो सकती है? 

इस अध्याय में हम इन्हीं दोनों सवालों का जवाब देंगे। तो पहले यह समझते हैं कि इसको कैसे करना चाहिए और आगे यह समझेंगे कि कोई इसको क्यों करना चाहेगा (वैसे इसका सबसे सीधा जवाब है कि आर्बिट्राज करने के लिए)। 

अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि ऑप्शंस एक बहुत ही वर्सेटाइल डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट (versatile derivative instrument) है यानी इसके जरिए बहुत सारी चीजें की जा सकती हैं। आप इनका इस्तेमाल कर के किसी भी तरीके का पे ऑफ स्ट्रक्चर बना सकते हैं इनपेऑफ में फ्यूचर्स भी एक है (लॉन्ग और शार्ट फ्यूचर दोनों तरह के पे ऑफ) 

इस अध्याय में हम समझेंगे कि कैसे ऑप्शन का इस्तेमाल करके एक बनावटी यानी आर्टिफिशियल लॉन्ग फ्यूचर पे ऑफ बनाया जा सकता है। लेकिन ऐसा करने के पहले एक बार लॉन्ग फ्यूचर के लीनियर पे ऑफ पर यहां नजर डाल लेते हैं। here

नहीं तो आप इसे भी देख सकते हैं।

जैसा कि आप देख सकते हैं कि लॉन्ग फ्यूचर पोजीशन 2360 पर शुरू की गई है और इस जगह पर ना तो आप पैसे बना रहे हैं और ना ही पैसे गंवा रहे होंगे। इसलिए जहां पर आपने पोजिशन बनाई है वह आपका ब्रेक इवन प्वाइंट है। अगर फ्यूचर आपके ब्रेक इवन प्वाइंट से ऊपर जाता है तो आप पैसे बनाएंगे और अगर फ्यूचर आपके ब्रेक इवन प्वाइंट के नीचे जाता है तो आपको घाटा सहना पड़ेगा। 10 प्वाइंट ऊपर जाने पर आप जितना मुनाफा कमाएंगे एकदम उतना ही घाटा 10 प्वाइंट नीचे जाने पर भी उठाएंगे। इस तरह के लीनियर पे ऑफ की वजह से  फ्यूचर को लीनियर इंस्ट्रूमेंट भी कहते हैं। 

सिंथेटिक लॉन्ग बनाने के लिए ऑप्शन का इस्तेमाल करते हुए इसी तरीके का लॉन्ग फ्यूचर्स तैयार किया जाता है। 

6.2 – स्ट्रैटेजी से जुड़ी बातें

सिंथेटिक लॉन्ग बनाना काफी आसान है, बस इसमें 

  1. एक ATM कॉल ऑप्शन को खरीदना होता है 
  2. एक ATM पुट ऑप्शन को बेचना होता है। 

जब आप ऐसा करें तो ध्यान रखें कि 

  1. सभी ऑप्शन एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हुए हों 
  2. एक ही एक्सपायरी सीरीज के हों 

इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि निफ्टी 7389 पर है मतलब 7400 की स्ट्राइक ATM होगी। सिंथेटिक लॉन्ग बनाने के लिए हमें 7400 CE  पर लॉन्ग जाना होगा, इसका प्रीमियम होगा 107 और साथ ही हमें 7400 PE को 80 पर शार्ट करना होगा। 

दोंनो प्रीमियम का अंतर नेट कैश प्लो होगा यानी 107 – 80 = 27

आइए कुछ परिस्थितियों पर नजर डालते हैं 

स्थिति 1 –  बाजार की एक्सपायरी 7200 पर होती है (ATM से नीचे) 

7200 पर 7400 CE वर्थलेस हो कर एक्सपायर होगा। इसलिए हम दिया हुआ प्रीमियम, 107 गंवा देंगे। जबकि 7400 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी, इसे निकालने के लिए- 

पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू –

Max [strike – spot, 0]

Max [7400 -7200,0]

= Max [200,0]

= 200

क्योंकि हमने इस ऑप्शन को शॉर्ट किया (बेचा) है, इसलिए हमें जो प्रीमियम मिला है उसे खो देंगे। हमारा घाटा होगा – 

80 – 200 = – 120

लॉन्ग और शॉर्ट पोजीशन का कुल पे ऑफ होगा – 

= -107 – 120 

= – 227

स्थिति 2 – बाजार की एक्सपायरी 7400 पर होती है (ATM पर) 

अगर बाजार की एक्सपायरी 7400 पर होती है तो दोंनो ही ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर होंगे, इसलिए-

  1. 7400 CE के लिए दिया गया प्रीमियम 107 हम खो देंगे।
  2. 7400 PE का प्रीमियम यानी 80 हमें मिल जाएगा।
  3. दोनों पोजीशन का नेट पे ऑफ होगा -27 क्योंकि 80 -107 = -27

यहां ध्यान रखिए कि इस स्ट्रैटेजी का नेट कैश आउट फ्लो भी 27 ही है और दोनों प्रीमियम का अंतर भी उतना ही है।

स्थिति 3 – बाजार की एक्सपायरी 7427 पर होती है (ATM + दोनों प्रीमियम के अंतर पर)

7427 वास्तव में एक रोचक स्तर है, ये इस स्ट्रैटेजी का ब्रेक इवन है, जहां हम ना तो पैसे बनाएंगे और ना ही पैसे गंवाएंगे। 

  1. 7400 CE – ये एक ITM ऑप्शन है और इसकी इंट्रिन्सिक वैल्यू है 27 । लेकिन हमने 107 का प्रीमियम दिया है इसलिए हमें 80 का नुकसान होगा।   
  2. 7400 PE – ये ऑप्शन OTM हो कर एक्सपायर होगा इसलिए इसका प्रीमियम यानी 80 हमें अपने पास रखने मिल जाएगा।
  3. इस तरह, हम 80 बनाएंगे और 80 ही गंवा भी रहे हैं, इसीलिए 7427 ही इस स्ट्रैटेजी का ब्रेक इवन है।

 स्थिति 4-  बाजार की एक्सपायरी 7600 पर होती है (ATM के ऊपर) 

7600 पर 7400 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 200 और हम कमाएंगे – 

इंट्रिन्सिक वैल्यू – प्रीमियम

= 200 – 107 

= 93

7400 PE वर्थलेस एक्सपायर होंगा इसलिए इसका प्रीमियम यानी 80 हमें अपने पास रखने को मिल जाएगा।

इस तरह से स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा

= 93 + 80 

= 173

इन चार स्थितियों के आधार पर अन्य हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं की जब बाजार ऊपर जाता है तो इस स्ट्रैटेजी में पैसे बनते हैं और जब बाजार नीचे जाता है तो पैसे डूबते हैं, ठीक वैसे ही, जैसे कि फ्यूचर्स में होता है। लेकिन अभी भी इसका यह मतलब नहीं है कि इसमें पे ऑफ फ्यूचर्स की तरह का होगा। सिंथेटिक लॉन्ग का पे ऑफ भी फ्यूचर के पे ऑफ की तरह ही काम कर रहा है यह जानने के लिए हमें इस स्ट्रैटेजी के पे ऑफ को ब्रेक इवन प्वाइंट के नजरिए से देखना होगा। मान लीजिए कि ब्रेक इवन प्वाइंट से 200 प्वाइंट ऊपर और नीचे। अगर इन दोनों जगहों पर पे ऑफ बराबर है तो इसका मतलब है कि इस यह पे ऑफ एक लीनियर पे ऑफ है, जो कि फ्यूचर्स की तरह का ही है। 

आइए देखते हैं –  

हमें पता है कि इसका ब्रेक इवन प्वाइंट है – 

ATM + दोनों प्रीमियम का अंतर

= 7400 + 27

= 7427

इस जगह पर पे ऑफ दोनों तरफ से एक जैसा दिखना चाहिए यानी सिमेट्रिक होना चाहिए। हम 7427 + 200 = 7627 और 7427 – 200 = 7227 को जांचते है।

7627 पर 

  1. 7400 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 227 । इसलिए हम 227 – 107 = 120 कमाएंगे। 
  2. 7400 PE वर्थलेस एक्सपायर होंगा इसलिए इसका प्रीमियम यानी 80 हमें अपने पास रखने को मिल जाएगा।
  3. इस तरह, कुल मिला कर पे ऑफ होगा 120 + 80 =  200 
  4. 7400 CE की कोई इंट्रिन्सिक वैल्यू नहीं होगी। इसलिए हमने जो 107 का प्रीमियम दिया है वो हम गंवा देंगे। 
  5. 7400 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 7400 -7227 = 173 इसलिए हमें इसका प्रीमियम 80 मिला है इसलिए कुल नेट घाटा होगा 80 – 173 = -93  
  6. इस तरह, कुल मिला कर पे ऑफ होगा -93 – 107 = – 200 

तो साफ है कि ब्रेक इवन पर पे ऑफ में सिमेट्री है और इस वजह कहा जा सकता है कि सिंथेटिक लॉन्ग का पे ऑफ भी फ्यूचर के पे ऑफ की तरह का ही है।

एक्सपायरी के अलग अलग स्तर पर पे ऑफ को नीचे दिखाया गया है।

जब आप नेट पे ऑफ को एक ग्राफ पर डालते हैं तो ये लॉन्ग कॉल फ्यूचर्स की तरह ही दिखता है।

सिंथेटिक लॉन्ग कैसे बनाया जाए यह हम अब समझ चुके हैं। अब यह समझना बाकी है कि किस खास स्थिति में सिंथेटिक लॉन्ग को बनाने की जरूरत पड़ती है।

6.3 – द फिश मार्केट आर्बिट्राज (The Fish Market Arbitrage)

मैं यहां यह मान ले रहा हूं कि आप आर्बिट्राज के बारे में कुछ जानते हैं। आसान शब्दों में कहें तो, आर्बिट्राज एक ऐसा मौका है जब आप किसी वस्तु को सस्ते में बाजार से खरीदते हैं और बाद में उसी को महंगे दाम पर बेचते हैं और दोनों कीमतों के बीच में मिलने वाला अंतर ही आपकी कमाई बनता है। अगर ठीक से किया जाए तो आर्बिट्राज का सौदा हमेशा बिना रिस्क का होता है। एक साधारण से उदाहरण से आपको समझाने की कोशिश करता हूं।

मान लीजिए आप समुद्र के किनारे के किसी शहर में रहते हैं जहां पर ताजी मछलियां बहुत आसानी से मिलती हैं। आपके शहर में मछली की कीमत काफी कम है मान लीजिए ₹100 किलोग्राम। आपके शहर से 125 किलोमीटर दूर एक और शहर है, जहां पर ताजी मछलियों की काफी मांग है। लेकिन वहां पर यही मछली ₹150 किलोग्राम पर बिकती है। 

ऐसी हालत में, अगर आप अपने शहर में ₹100 प्रति किलो पर मछली खरीद सकें और उसी मछली को पास वाले शहर में ₹150 प्रति किलो पर बेच सकें तो इस तरीके से आप हर किलोग्राम मछली पर ₹50 कमा सकते हैं जो कि दोनों कीमतों का अंतर है। मान लीजिए कि मछली को एक शहर से दूसरे शहर ले जाने में आपको कुछ पैसे खर्च करने पड़ते हैं और आपको पास 50 की जगह सिर्फ ₹30 की ही कमाई होती है। लेकिन फिर भी यह एक अच्छा सौदा है। यह मछली के बाजार में एक आर्बिट्राज का नमूना है।

जरा सोचिए अगर हर दिन आप अपने शहर से ₹100 प्रति किलो पर मछली खरीद सकें और उसको पास के शहर में ₹150 प्रति किलो पर बेच सकें और ₹20 का खर्च काटने के बाद ₹30 प्रति किलो की कमाई कर सकें, तो इससे अच्छा क्या हो सकता है। आपके पास बिना रिस्क मुनाफा कमाने की गारंटी है।

अगर सब कुछ ऐसे ही चले तो कोई भी रिस्क नहीं है, लेकिन अगर चीजें बदलती है और तब आपका मुनाफा भी बदलेगा। ऐसी ही कुछ चीजों पर नजर डालते हैं जो बदल सकती हैं – 

  1. मछली ना हो (अपॉर्चुनिटी यानी मौके का रिस्क) – मान लीजिए एक दिन जब आप ₹100 प्रति किलो पर मछली खरीदने बाजार जाते हैं और वहां जाकर आपको पता चलता है कि आज बाजार में मछली ही नहीं है। तो आपके पास ₹30 कमाने का मौका नहीं होगा। 
  2. खरीदार ना होना (लिक्विडिटी यानी खरीदार ना होने का रिस्क) – आप ₹100 प्रति किलो पर मछली खरीदते हैं और बगल के शहर में जाते हैं ताकि आप उस मछली को ₹150 पर बेच सकें। लेकिन जब आप वहां पहुंचते हैं तो आपको पता चलता है कि मछली के लिए कोई खरीदार नहीं है। आपके पास सिर्फ मरी हुई मछलियां बचती हैं जिसकी कोई कीमत नहीं रह जाती। 
  3. सही कीमत न मिले (कीमत (बैड बारगेनिंग) का रिस्क यानी एग्जीक्यूशन रिस्क) – आर्बिट्राज के मौके का यह पूरा कारोबार इस बात पर टिका हुआ है कि आप हर बार ₹100 पर मछली खरीद पाएंगे और उसे ₹150 पर बेच पाएंगे। लेकिन मान लीजिए किसी दिन आपको मछली 110 पर खरीदनी पड़े और 140 पर बेचना पड़े और वहां तक पहुंचने के लिए आपको ₹20 खर्च भी करने पड़े तो इसका मतलब होगा कि आम तौर पर ₹30 कमाने की जगह आप सिर्फ ₹10 कमा पाएंगे। अगर ऐसा ही कुछ समय तक चलता रहा तो आर्बिट्राज का यह मौका आपके लिए आकर्षक नहीं रह जाएगा और हो सकता है कि आगे से आप इसे ना करना चाहें।
  4. मछली की ढुलाई महंगा हो जाए ( ट्रांजैक्शन यानी सौदे की कीमत बढ़ जाने का रिस्क) –  आर्बिट्राज के मौके के मैं मुनाफा कमाने के लिए मछली की ढुलाई कीमत का स्थिर रहना बहुत ही जरूरी है। मान लीजिए कि ढुलाई ₹20 से बढ़कर ₹30 हो जाती है तो आर्बिट्राज का आकर्षण कम हो जाएगा और अगर ढुलाई बढ़ती गई तो फिर इस आर्बिट्राज में कमाई कम होती जाएगी। इसीलिए इस सौदे की कीमत कारोबार में मुनाफा कमाने के लिए एक जरूरी चीज है। 
  • बाजार में कम्पीटीशन का आ जाना (कौन सस्ते में बेच सकता है) – हम एक कम्पीटीशन वाली दुनिया में रहते हैं। ऐसे में कुछ और लोग भी आ सकते हैं जो बिना रिस्क के ₹30  कमाना चाहते हैं। जरा सोचिए –  
  • अब तक केवल आप ये काम कर रहे थे कि ₹100 पर मछली खरीद कर ₹150 पर बेच रहे थे। 
  • आपके दोस्त ने देखा कि आप एक बिना रिस्क वाला मुनाफा कमा रहे हैं और वह भी आपकी तरह ही यह काम करना चाहता है, आप उसको रोक नहीं सकते। 
  • अब आप दोनों ₹100 पर मछली खरीद रहे हैं ₹20 उसकी ढुलाई पर खर्च कर रहे हैं और पास के शहर में मछली को बेचने की कोशिश में लगे हैं।  
  • एक खरीदार आता है और देखता है कि अब यहां पर दो मछली बेचने वाले हैं और दोनों एक ही तरीके की मछली बेच रहे हैं । अब आप दोनों में से कौन उस खरीदार को मछली बेच पाएगा?
  • अब आप दोनों के पास एक ही तरीके की मछली है। इसलिए खरीदार देखेगा कि कौन उसको सस्ते में मछली दे रहा है। अब मान लीजिए कि आप चाहते हैं कि आपकी मछली बिके, तो आप अपनी कीमत ₹145 कर देंगे। 
  • अगले दिन आपका दोस्त भी यही तरीका अपनाता है और मछली को ₹140 प्रति किलो पर बेचना शुरू कर देता है। इससे एक तरीके की प्राइस वॉर शुरू हो जाएगी और धीरे-धीरे कीमतें गिरती जाएंगी और दोनों के लिए आर्बिट्राज का यह मौका खत्म होता जाएगा। 
  • कीमतें कितनी गिर सकती हैं? साफ है कि ₹120 तक कीमत गिर सकती है क्योंकि मछली खरीदने और उसको यहां तक ढो कर लाने की कीमत इतनी ही है। 120 के नीचे इस धंधे या कारोबार को करने का कोई मतलब ही नहीं बनता। 
  • इस तरह से कम्पीटीशन के कारण बाजार में यह आर्बिट्राज का मौका धीमे-धीमे खत्म हो जाता है। अब उस बगल के शहर में भी मछली ₹120 प्रति किलो पर मिलने लगती है। 

मुझे उम्मीद है कि अब आपको आर्बिट्राज के बारे में कुछ हद तक समझ में आ गया होगा। वास्तव में आर्बिट्राज के किसी भी मौके को एक गणित के फार्मूले के तौर पर भी दिखाया जा सकता है। अगर अपने मछली वाले उदाहरण को एक गणित के फार्मूले में दिखाना हो तो 

[शहर B में मछली को बेचने का खर्च शहर A में मछली को खरीदने का खर्च] = 20

जब इस फार्मूले में असंतुलन बना रहता है तब तक वहां पर आर्बिट्राज का मौका बना रहता है। चाहे वह किसी भी तरीके का बाजार हो, मछली बाजार, कृषि बाजार, मुद्रा बाजार या फिर शेयर बाजार। ऐसे आर्बिट्राज के मौके वहां पर मौजूद होते हैं और वे मौके गणित के सीधे फार्मूले पर आधारित होते हैं।

6.4 – ऑप्शन आर्बिट्राज

आर्बिट्राज का मौका हर तरीके के बाजार में होता है, बस आपको एक पैनी नजर रखनी पड़ती है और बाजार में जब ऐसा मौका आए तो उसे पहचान कर वहां से फायदा कमाना होता है। आमतौर पर शेयर बाजार में आर्बिट्राज के मौके आपको एक निश्चित सीमा तक मुनाफा कमाने का अवसर देते हैं। इसमें कम लेकिन गारंटी सहित मुनाफा होता है। इस मुनाफे पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ता कि बाजार किस तरफ जा रहा है। इसीलिए बाजार में रिस्क से डरने वाले के कारोबारियों के लिए आर्बिट्राज बहुत ही पसंदीदा सौदा होता है। 

मैं यहां पर एक सीधे सादे आर्बिट्राज के मामले पर चर्चा करना चाहता हूं जो कि पुट कॉल पैरिटी पर आधारित है। मैं पुट कॉल पैरिटी के बारे में विस्तार से आपको नहीं समझाउंगा, सीधे अपने उदाहरण पर जाऊंगा। 

लेकिन अगर आप पुट कॉल पैरिटी को समझना चाहते हैं तो खान एकेडमी के इस वीडियो को देख सकते हैं 

https://youtu.be/m4mrd7sHCPM

तो, पुट कॉल पैरिटी पर आधारित आर्बिट्राज का समीकरण ऐसा होगा 

लॉन्ग सिंथेटिक लॉन्ग + शॉर्ट फयूचर्स =

इसे आप और विस्तार दे सकते हैं 

लॉन्ग ATM कॉल + शॉर्ट ATM पुट + शॉर्ट फ्यूचर्स = 0

इस समीकरण से दिखता है कि अगर आप सिंथेटिक लॉन्ग को होल्ड करते हैं और फ्यूचर को शार्ट करते हैं तो फिर एक्सपायरी के समय आपका P&L  जीरो होगा। इस पोजीशन में नतीजा जीरो क्यों निकलता है, इसका जवाब पुट कॉल पैरिटी में छुपा है।

लेकिन अगर इस समीकरण P&L  में जीरो की जगह कोई भी और संख्या आती है तो इसका मतलब है कि वहां पर एक आर्बिट्राज का मौका है। 

इसको अच्छे से समझने के लिए नीचे के उदाहरण पर नजर डालिए –

21 जनवरी को निफ्टी स्पॉट 7304 था और निफ्टी फ्यूचर्स 7316 पर 

7300 CE और  PE (ATM ऑप्शन) 79.5 और 73.85 पर ट्रेड कर रहे हैं। ध्यान दीजिए कि ये सभी कॉन्ट्रैक्ट जनवरी 2016 सीरीज के हैं।

ऊपर बताए गए आर्बिट्राज के समीकरण के आधार पर ट्रेड करें तो पोजीशन ऐसे बनेगी

  1. लॉन्ग 7300 CE @ 79.5
  2. शार्ट 7300 PE @ 73.85
  3. शॉर्ट निफ्टी फ्यूचर्स @ 7316

ध्यान दीजिए कि पहली दो पोजीशन से लॉन्ग सिंथेटिक लॉन्ग बन रहा है। अब आर्बिट्राज के समीकरण के आधार पर एक्सपायरी पर पोजीशन का P&L  जीरो होगा। आइए देखते हैं कि ये सच साबित होता है कि नहीं

स्थिति 1 –  बाजार की एक्सपायरी 7200 पर होती है

  • 7300 CE वर्थलेस हो कर एक्सपायर होगा। इसलिए हम दिया हुआ प्रीमियम, 79.5 गंवा देंगे। 
  • 7300 PE की इंट्रिन्सिक वैल्यू 100 होगी, लेकिन हम इस पर 73.85 पर शॉर्ट हैं पे ऑफ होगा  73.85 – 100 = – 26.15
  • हम निफ्टी फ्यूचर्स पर @ 7316 पर शॉर्ट हैं इसलिए हमें 116 प्वाइंट का फायदा होगा (7316 -7200 = 116)
  • कुल यानी नेट पा ऑफ होगा -79.5 – 26.15 + 116 = + 10.35

साफ है कि 0 पे ऑफ की जगह हमें P&L  में एक पॉजिटिव संख्या मिल रही है।

स्थिति 2 – बाजार की एक्सपायरी 7300 पर होती है 

अगर बाजार की एक्सपायरी 7400 पर होती है तो दोंनो ही ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर होंगे, इसलिए-

    1. 7300 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए दिया गया प्रीमियम 79.5 हम खो देंगे।
    2. 7400 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए इसका प्रीमियम यानी 73.85 हमें मिल जाएगा।
    3. हम निफ्टी फ्यूचर्स पर 7316 पर शॉर्ट हैं इसलिए हमें 16 प्वाइंट का फायदा होगा (7316 -7300 = 16)
  • नेट पे ऑफ होगा  – 79.5 + 73.85 + 16 + 10.35

स्थिति 3 – बाजार की एक्सपायरी 7400 पर होती है 

    1. 7300 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू 100 होगी इसलिए इसका पे ऑफ होगा 100 – 79.5 =  20.5
    2. 7300 PE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए इसका प्रीमियम यानी 73.85 हमें मिल जाएगा।
    3. हम निफ्टी फ्यूचर्स पर 7316 पर शॉर्ट हैं इसलिए हमें 84 प्वाइंट का नुकसान होगा(7316 -7400 = -84)
  • नेट पे ऑफ होगा  20.5 + 73.85 -84 + 10.35

आप से किसी भी एक्सपायरी के लिए जांच सकते हैं (भले ही बाजार किसी भी दिशा में जा रहे हों), हर जगह एक्सपायरी पर आपको 10.35 कमाने का मौका मिलेगा। मैं फिर से दोहरा देता हूं कि एक्सपायरी पर 10.35 कमाने का मौका मिलेगा।  

अलग अलग एक्सपायरी को पे ऑफ को आप नीचे देख सकते हैं

सब कुछ बढ़िया लग रहा है, लेकिन एक मुश्किल आ सकती है,

सौदे पर होने वाला खर्च 

आपको यह देखना होगा कि यह ट्रेड करने के लिए आपको कितने पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं और क्या उस खर्च के बाद भी होने वाला मुनाफा आपको इस ट्रेड को करने के लिए सही लग रहा है। इन चीजों पर ध्यान दीजिए 

  • ब्रोकरेज –  अगर आप एक साधारण ब्रोकर के साथ ये ट्रेड कर रहे हैं तो आपको अपने ट्रेड का एक निश्चित प्रतिशत ब्रोकरेज के तौर पर देना पड़ेगा जो कि आपके मुनाफे में से ही निकलेगा। तो अगर आप 10 प्वाइंट का मुनाफा कमा रहे हैं तो हो सकता है कि आपको 8 से 10 प्वाइंट का ब्रोकरेज भी देना पड़े। लेकिन अगर आप यह ट्रेड ज़ेरोधा जैसे डिस्काउंट ब्रोकर के साथ कर रहे हैं तो इसके लिए आपका ब्रेक इवन चार से पांच प्वाइंट का ही होगा। इसलिए भी ज़ेरोधा के साथ अकाउंट खोलना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। 
  • एसटीटी (STT) – याद रखिए कि P&L  एक्सपायरी के बाद ही समझ में आती है। इसका मतलब है कि आपको अपनी पोजीशन को एक्सपायरी तक ले जाना पड़ेगा। अगर आप एक ITM ऑप्शन पर लॉन्ग है तो  एक्सपायरी पर आपको एक अच्छी खासी रकम एसटीटी के तौर पर देनी पड़ेगी। यह रकम भी आपके मुनाफे में से ही निकलेगी। 
  • दूसरे टैक्स-  इसके अलावा आपको सर्विस टैक्स, स्टाम्प ड्यूटी आदि भी देना पड़ेगा। 

तो इन सब खर्चों को देखने के बाद, 10 पॉइंट के आर्बिट्राज का फायदा उठाने की कोशिश बहुत आकर्षक नहीं लगेगी। लेकिन अगर पे ऑफ 15 या 20 प्वाइंट का हो और आप एसटीटी से बचने के लिए अपनी पोजीशन को एक्सपायरी के ठीक पहले स्क्वेयर ऑफ कर सकें (कुछ और प्वाइंट इसकी वजह से कम हो जाएंगे) तो आप एक ठीक-ठाक मुनाफा कमा सकते हैं। 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. आप ऑप्शन का इस्तेमाल फ्यूचर्स के पे ऑफ के जैसा पे ऑफ बनाने के लिए भी कर सकते हैं।
  2. एक सिंथेटिक लॉन्ग किसी भी लॉन्ग फ्यूचर के पे ऑफ जैसा पे ऑफ तैयार कर सकता है। 
  3. एक साथ ATM कॉल को खरीद और ATM कॉल को बेच कर एक सिंथेटिक लॉन्ग बनाया जाता है।
  4. सिंथेटिक लॉन्ग का ब्रेक इवन प्वाइंट होता है ATM स्ट्राइक + दिया गया नेट प्रीमियम 
  5. अगर सिंथेटिक लॉन्ग + शार्ट फ्यूचर मिल कर एक्सपायरी के समय जीरो के अलावा कोई भी एक पॉजिटिव संख्या दिखाते हैं, तो वहां पर आर्बिट्राज का मौका बनता है। 
  6. आर्बिट्राज का ट्रेड तभी करें जब आपको लगे कि एक्सपायरी पर हर तरीके के खर्च निकालने के बाद आपको कुछ अच्छा मुनाफा होगा।

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कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b-%e0%a4%ac%e0%a5%88%e0%a4%95-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b-%e0%a4%ac%e0%a5%88%e0%a4%95-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:43:33 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6977 4.1 – भूमिका कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड एक बहुत ही रोचक ऑप्शन स्ट्रेटजी है। मैं इसको रोचक इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इसका इस्तेमाल बहुत ही आसान है और इससे अच्छी कमाई हो सकती है। आपकी ऑप्शन रणनीतियों में इसका होना जरूरी है। इसका इस्तेमाल तब होता है जब आप स्टॉक या इंडेक्स को लेकर […]

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4.1 – भूमिका

कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड एक बहुत ही रोचक ऑप्शन स्ट्रेटजी है। मैं इसको रोचक इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इसका इस्तेमाल बहुत ही आसान है और इससे अच्छी कमाई हो सकती है। आपकी ऑप्शन रणनीतियों में इसका होना जरूरी है। इसका इस्तेमाल तब होता है जब आप स्टॉक या इंडेक्स को लेकर तेजी में हों। बुल कॉल स्प्रेड या बुल पुट स्प्रेड की तरह मॉडरेटली बुलिश नहीं होते बल्कि पूरी तरीके से बुलिश या तेजी में होते हैं। 

आमतौर पर जब कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड का इस्तेमाल करते हैं तो निम्न चीजें हो सकती हैं – 

  1. अगर बाजार ऊपर जाए तो असीमित मुनाफा 
  2. अगर बाजार नीचे जाए तो सीमित मुनाफा 
  3. अगर बाजार एक रेंज में या दायरे में रहे तो एक निश्चित सीमा तक का ही घाटा 

मतलब यह कि इस स्ट्रैटजी मे आप बाजार की दोनो तरफ की चाल पर पैसे बनाते हैं, बाजार ऊपर की तरफ चले या नीचे की तरफ बस एक चाल आनी चाहिए।

आमतौर पर कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड का इस्तेमाल नेट क्रेडिट के लिए होता है, मतलब जब आप कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड का इस्तेमाल करते हैं तो पैसे आपके अकाउंट में आते हैं। अगर बाजार आपकी उम्मीद के मुताबिक ऊपर नहीं जाता बल्कि बाजार नीचे चला जाता है, तब आप नेट क्रेडिट पाते हैं। लेकिन अगर बाजार वास्तव में उम्मीद के मुताबिक ऊपर चला जाता है, तो आप असीमित मुनाफा कमाते हैं। इसी वजह से एक साधारण कॉल ऑप्शन खरीदने के बजाय कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड का इस्तेमाल ज्यादा बेहतर होता है। 

तो चलिए समझते हैं कि यह कैसे काम करता है।

4.2 – स्ट्रैटेजी से जुड़ी बातें

कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड 3 चरणों वाली स्प्रेड स्ट्रेटजी है, जिसमें दो OTM कॉल ऑप्शन को खरीदा जाता है और एक ITM कॉल ऑप्शन को बेचा जाता है। इसका अनुपात हमेशा 2:1 का होता है। कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड में 2:1 के अनुपात का मतलब है कि हर एक ऑप्शन की बिक्री पर दो ऑप्शन को खरीदा जाता है। 

एक उदाहरण देखते हैं – मान लीजिए कि निफ्टी 7743 पर है और आप को लगता है कि निफ्टी 8100 तक जाएगा। मतलब बाजार को ले कर आप काफी बुलिश हैं। अब कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड बनाने के लिए –

  1. 7600 CE का एक लॉट बेचिए (ITM) 
  2. 7800 CE का दो लॉट खरीदिए (OTM) 

जब आप ऐसा करें तो ध्यान रखें कि 

  1. सभी कॉल ऑप्शन एक ही एक्सपायरी सीरीज के हों 
  2. एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हुए हों 
  3. 2 :1 का अनुपात बना रहे

कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड का ट्रेड सेटअप – 

  1. 7600 CE एक लॉट शार्ट, ₹201 का प्रीमियम प्राप्त करें। 
  2. 7800 CE दो लॉट लांग, हर लॉट पर ₹ 78 का प्रीमियम दें यानी दो लॉट के लिए कुल ₹156 अदा करें।
  3. कुल नेट = कैश फ्लो मिला हुआ प्रीमियम – अदा किया गया प्रीमियम यानी 201 – 156 = 45 (नेट क्रेडिट)

कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड इस तरह से पूरा होता है। आइए कुछ स्थितियों पर नजर डालते हैं जिससे हमें पता चल सके कि अलग-अलग स्तर की एक्सपायरी पर कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड के कैश फ्लो पर क्या असर होगा।

याद रखिए कि हर स्तर पर पे ऑफ बदलता रहता है इसलिए हमें एक्सपायरी के अलग अलग स्तरों पर पे ऑफ को ठीक से देखना समझना होगा।

स्थिति 1 –  बाजार की एक्सपायरी 7400 पर होती है (नीचे के स्ट्राइक प्राइस से भी नीचे) 

हमे पता है कि एक्सपायरी के समय कॉल ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू –

Max [spot – strike, 0]

7600 की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी –

Max [7400 -7600,0]

= 0

क्योंकि हमने इस ऑप्शन को बेचा है, इसलिए हम पूरा यानी ₹201 का प्रीमियम अपने पास रख सकते हैं।

7800 के कॉल आप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू भी 0 होगी, इसलिए हम हर लॉट पर ₹78 का प्रीमियम यानी कुल ₹156 का प्रीमियम खो देंगे।

कुल नेट कैश फ्लो  = मिला हुआ प्रीमियम – अदा किया गया प्रीमियम

= 201 – 156

= 45

स्थिति 2 – बाजार की एक्सपायरी 7600 पर होती है (नीचे के स्ट्राइक कीमत पर) 

7600 और 7800 दोनों ऑप्शन की इंट्रिसिक वैल्यू जीरो है। इसलिए दोनों वर्थलेस एक्सपायर होंगे।

हमने 7600 CE के लिए जो ₹201 का प्रीमियम लिया है वो हम अपने पस रख पाएंगे लेकिन हमने 7800 के लिए जो ₹156 का प्रीमियम दिया है वो डूब जाएगा और स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ ₹45 होगा।

स्थिति 3 – बाजार की एक्सपायरी 7645 पर होती है (नीचे की स्ट्राइक कीमत + नेट क्रेडिट)

आप सोच रहे होंगे कि मैंने 7645 को क्यों चुना है। मैंने ऐसा ये दिखाने के लिए किया है कि ये इस स्ट्रैटेजी का ब्रेकइवन स्तर है। 

7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू 0 होगी, 

Max [spot – strike, 0]

7600 की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी –

Max [7645 -7600,0]

= 45

हमने इस ऑप्शन को 201 पर बेचा है इसलिए पे ऑफ होगा

201 – 45 

= 156

दूसरी तरफ, हमने 7800 CE के 2 लॉट 156 का प्रीमियम दे कर खरीदे हैं। अब तक ये साफ हो चुका है कि ये वर्थलेस हो कर एक्सायर होंगे, यानी हम पूरा प्रीमियम गंवा देंगे।

इस तरह से स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा –

156 – 156

= 0

इसका मतलब 7645 पर ट्रेडर के पैसे ना तो बनेंगे और ना ही डूबेंगे। यही इसका ब्रेकइवन प्वाइंट होगा।

स्थिति 4-  बाजार की एक्सपायरी 7700 पर होती है (ऊपर के स्ट्राइक प्राइस और नीचे की स्ट्राइक के बीच में) 

7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 100 और 7800 CE की इंट्रिसिक वैल्यू 0 होगी 

7600 CE पर हमें 101 ही मिलेंगे क्योंकि हमें जो 201 का प्रीमियम मिला है, उसमे से हम 100 गंवा देंगे, 

201 -100 = 101,

उधर, 7800 CE पर हम पूरा प्रीमियम यानी 156 गंवा देंगे।

इसलिए स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा

= 101 – 156

= – 55

स्थिति 5 –  बाजार की एक्सपायरी 7800 पर होती है (ऊपर के स्ट्राइक प्राइस पर) 

ये बहुत ही रोचक है, देखिए

  1. 7800  पर 7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 200, इसलिए हमें जो 201 का प्रीमियम मिला है, उसे हम पूरा गंवा देंगे
  2. 7800 पर 7800 CE वर्थलेस एक्सपायर होगा इसलिए हमने 2 लॉट जो 156 का प्रीमियम दे कर खरीदे हैं। वो पूरा प्रीमियम यानी 156 हम गंवा देंगे।

तो ये एक दोहरी मार वाली स्थिति है।

इस स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा

= 7600 CE के लिए मिला हुआ प्रीमियम – 7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू – 7800 CE के लिए अदा किया गया प्रीमियम

= 201 – 200 -156

= – 155

ये इस स्ट्रैटेजी में हो सकने वाला अधिकतम नुकसान भी है।

स्थिति 6 –  बाजार की एक्सपायरी 7955 पर होती है (ऊपर के स्ट्राइक प्राइस यानी 7800 + अधिकतम नुकसान पर) 

मैंने 7955 को इसलिए चुना है क्योंकि ये इस स्ट्रैटेजी का ब्रेकइवन स्तर है। 

अब आप सोच रहे होंगे कि लेकिन स्ट्रैटेजी के ब्रेकइवन पर तो हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं।

वास्तव में इस स्ट्रैटेजी के दो ब्रेकइवन स्तर हैं – एक नीचे की तरफ (7645) और दूसरा ऊपर की तरफ यानी 7955 पर।

अब 7955 पर स्ट्रैटेजी का पे ऑफ होगा – 

7600 CE के लिए मिला हुआ प्रीमियम – 7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू + (2*7800 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू) – 7800 CE के लिए अदा किया गया प्रीमियम

= 201 – 355 + (2* 155) – 156

= 201 – 355 + 310 – 156

= 0

स्थिति 7 –  बाजार की एक्सपायरी 8100 पर होती है (ऊपर के स्ट्राइक प्राइस के भी ऊपर, आपके टारगेट कीमत पर) 

7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 500 और 7800 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 300 

कुल पे ऑफ होगा –

7600 CE के लिए मिला हुआ प्रीमियम – 7600 CE की इंट्रिन्सिक वैल्यू + (2*7800 CE की इंट्रिसिक वैल्यू) – 7800 CE के लिए अदा किया गया प्रीमियम

= 201 – 500 + (2* 300) – 156

= 201 – 500 + 600 – 156

= 145

अलग अलग एक्सपायरी पर इस स्ट्रैटेजी के पे ऑफ को नीचे दिखाया गया है। ध्यान दीजिए कि जैसे जैसे बाजार ऊपर जाता है वैसे वैसे मुनाफा भी ऊपर जाता है और जब बाजार नीचे जाता है तो भी पैसे बनते हैं, भले ही कम बन रहे हों।

 

4.3 – स्ट्रैटेजी के सामान्य बिंदु

ऊपर जिन स्थितियों पर हमने चर्चा की है उसके आधार पर स्ट्रैटेजी के बारे में जो सामान्य बातें कह सकते हैं वो हैं  –

  • स्प्रेड = ऊपर की स्ट्राइक नीचे की स्ट्राइक
  • नेट क्रेडिट = नीचे की स्ट्राइक के लिए प्रीमियम – 2* ऊपर की स्ट्राइक के लिए प्रीमियम
  • अधिकतम नुकसान = स्प्रेडनेट क्रेडिट
  • अधिकतम नुकसान होता है = ऊपर की स्ट्राइक पर 
  • बाजार के नीचे जाने पर पे ऑफ = नेट क्रेडिट
  • नीचे का ब्रेकइवन = नीचे की स्ट्राइक + नेट क्रेडिट
  • ऊपर का ब्रेकइवन = ऊपर की स्ट्राइक + अधिकतम नुकसान

इन बिंदुओं को इस ग्राफ में दिखाया गया है –

ध्यान दें कि बाजार के नीचे जाने पर पे ऑफ एक जगह पर स्थिर हो जाता है, अधिकतम नुकसान 7800 पर होता है और 7955 के बाद पे ऑफ किस तरह ऊपर भाग जाता है

4.4 – एक बार फिर ग्रीक्स का स्वागत कीजिए

मुझे उम्मीद है कि अब आप इस तरह के ग्राफ को समझ लेंगे। नीचे के ग्राफ एक्सपायरी में समय के हिसाब से स्ट्रैटेजी में हो सकने वाले मुनाफे को दिखाते हैं और इसीलिए इनके आधार पर ट्रेडर सही स्ट्राइक चुन सकता है।

ऊपर के ग्राफ को समझने के पहले कुछ बातें याद रखिए –

  1. निफ़्टी स्पॉट को 8000 पर माना गया है 
  2. यहां सीरीज की शुरुआत का मतलब है सीरीज के पहले 15 दिन 
  3. सीरीज के खत्म होने का मतलब है सीरीज के अंतिम 15 दिन में कभी भी 
  4. कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड को नियमित किया गया है और स्प्रेड को 300 प्वाइंट के अंतर पर रखा गया है 

यहां पर उम्मीद है कि बाजार करीब 6.25% बढ़ेगा और 8000 से 8500 तक जाएगा। तो इस बाजार की इस चाल और एक्सपायरी के समय के हिसाब से देखें तो ऊपर का ग्राफ बताता है कि-

  1. ग्राफ 1 (सबसे ऊपर बाई तरफ) और ग्राफ 2 (सबसे ऊपर दाएं तरफ)  – आप सीरीज की शुरुआत में हैं और आपको उम्मीद है कि अगले 5 दिनों में बाजार में मूव आ जाएगी (ग्राफ 2 के लिए 15 दिन) तो 7800 CE (ITM) और 8100 CE (OTM) के साथ बनाया गया कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड सबसे अधिक मुनाफा देगा। याद रखिए कि कि भले ही बाजार की दिशा आपने सही पहचानी है लेकिन फार OTM स्ट्राइक चुनने पर आपको नुकसान होगा। 
  2. ग्राफ 3 (नीचे बाई तरफ) और ग्राफ 4 (नीचे दाएं तरफ)  – आप एक्सपायरी सीरीज के शुरुआत में हैं और आपको उम्मीद है कि चाल अगले 25 दिनों में आएगी (ग्राफ 3 के लिए एक्सपायरी के दिन) । ऐसे में 7800 CE (ITM) और 8100 CE (OTM) वाला कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड सबसे ज्यादा मुनाफा देगा। यहां पर आप एक 7800 CE बेच रहे हैं और दो 8100 CE खरीदेंगे।

यहां पर आपको दिखेगा कि एक्सपायरी के लिए समय कुछ भी हो लेकिन स्ट्राइक एक ही है, इसकी वजह ये है कि – कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड सबसे ज्यादा अच्छा काम तब करता है जब एक्सपायरी दूर होने की स्थिति में आप स्लाइटली ITM आप्शन बेचते हैं और स्लाइटली OTM आप्शन खरीदते हैं। सच तो ये है कि बाकी सभी स्ट्राइक में नुकसान होता है, खासकर फार OTM आप्शन, और अगर आप ये उम्मीद कर रहे हैं कि टारगेट एक्सपायरी के करीब जा कर हासिल होगा।

अब कुछ और चार्ट देखते हैं इसमें चाल (6.25%) ही है लेकिन अंतर बस इतना है कि यह चार्ट तब की स्ट्राइक दिखा रहे हैं जब आप सीरीज के दूसरे हिस्से में हैः

 

  1. ग्राफ 1 (सबसे ऊपर बाई तरफ) और ग्राफ 2 (सबसे ऊपर दाएं तरफ)  – अगर आप सीरीज के दूसरे हिस्से में हैं और आपको उम्मीद है कि अगले 1 दिन में बाजार में मूव आ जाएगी (ग्राफ 2 के लिए 5 दिन) तो डीप ITM और स्लाइटली ITM सही स्ट्राइक होगी मतलब 7600 (नीचे की स्ट्राइक शार्ट) और 7900  (ऊपर की स्ट्राइक पर लॉन्ग)। याद रखिए कि ये कि ITM + OTM का आम मिश्रण नहीं है। ये ITM और ITM का स्प्रेड है। बाकी कोई भी जुगलबंदी यहां काम नहीं करेगी।  
  2. ग्राफ 3 (नीचे बाई तरफ) और ग्राफ 4 (नीचे दाएं तरफ)  – आप एक्सपायरी सीरीज के दूसरे हिस्से में हैं  और आपको उम्मीद है कि चाल अगले 10 दिनों में आएगी (ग्राफ 4 के लिए एक्सपायरी के दिन) । ऐसे में डीप ITM  और स्लाइटली ITM की स्ट्राइक सबसे अच्छी होगी, 7600 (नीचे की स्ट्राइक शार्ट) और 7900  (ऊपर की स्ट्राइक पर लॉन्ग) , एकदम वैसा ही जो कि ग्राफ 1 और ग्राफ 2 बता रहे हैं।

यहां पर आप ध्यान दें कि बाजार की दिशा को सही पहचानने के अलावा सही स्ट्राइक चुन कर ही आप इस स्ट्रैटेजी में पैसे बना सकते हैं। यहां पर एक्सपायरी को सही तरीके से देखना और सही स्ट्राइक को चुनने पर खास ध्यान देना होगा। 

यहां वोलैटिलिटी का भी काफी असर होता लिए है इस चित्र को देखिए।

यहां पर तीन रंगों की रेखाएं हैं जो कि नेट प्रीमियम में बदलाव को दिखाती हैं। मतलब यह रेखाएं दिखा रही हैं कि वोलैटिलिटी में बदलाव के साथ इस स्ट्रैटेजी की कमाई में किस तरह का बदलाव होता है। ये रेखाएं हमें इस स्ट्रैटेजी पर वोलैटिलिटी के असर को दिखाती हैं खासकर तब जब आप एक्सपायरी के नजरिए से देख रहे हों।

  1. नीली रेखा – ये रेखा हमें बताती है कि जब वोलैटिलिटी बढ़ती है और एक्सपायरी में काफी समय बचा हो (30 दिन) तो कॉल रेश्यो बैकस्प्रेड का इस्तेमाल फायदेमंद होता है। जैसे कि हम देख सकते हैं कि जब वोलैटिलिटी 15% से 30% हो जाती है तो इस स्ट्रैटेजी का पे ऑफ – 67 से + 43 हो जाता है। इसका मतलब है कि जब एक्सपायरी में काफी समय बचा हो तो बाजार की दिशा पर आपकी राय सही होने के साथ आपको वोलैटिलिटी पर भी राय बनानी चाहिए। इसीलिए अगर सीरीज की शुरुआत में वोलैटिलिटी ऊपर हो तो मैं स्टॉक पर बुलिश होने पर भी इस स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल करने को ले कर दुविधा में रहूंगा।
  2. हरी रेखा – ये रेखा बताती है कि अगर एक्सपायरी में 15 दिन बचे हों तो वोलैटिलिटी का बढ़ना फायदेमंद होता है। हांलाकि ये फायदा नीली रेखा के मामले में होने वाले फायदे से कम होता है। जैसा कि हम देख सकते हैं कि वोलैटिलिटी 15% से 30% होने पर इस स्ट्रैटेजी का पे ऑफ – 77 से – 47 हो जाता है।
  3. लाल रेखा – यहां पर ऐसा परिणाम आता है जो आप सोच भी नहीं सकते, जब एक्सपायरी में कुछ ही दिन बचे हों तो वोलैटिलिटी बढ़ने पर स्ट्रैटेजी पर निगेटिव असर पड़ता है। जरा सोचिए, एक्सपायरी में कुछ ही दिन बचे हों तो वोलैटिलिटी बढ़ने पर ऑप्शन के OTM हो कर एक्सपायर होने की संभावना बन जाती है और प्रीमियम घट जाता है। तो अगर आप एक्सपायरी से कुछ दिन पहले स्टॉक पर बुलिश हैं और आप वोलैटिलिटी के बढ़ने की उम्मीद कर रहे हैं तो जरा सावधान रहिए।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड का सबसे अच्छा इस्तेमाल तब होता है जब स्टॉक या इंडेक्स पर आपका नजरिया तेजी का या बुलिश हो।
  2. इस स्ट्रैटेजी में आपको एक ITM CE बेचना होता है और दो OTM CE खरीदने होते हैं और इसको हमेशा इसी अनुपात में करना होता है मतलब एक ऑप्शन बेचना और दो ऑप्शन खरीदना। 
  3. आमतौर पर इस ऑप्शन को नेट क्रेडिट के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 
  4. अगर स्टॉक की कीमत नीचे जाती है तो इस स्ट्रैटेजी में सीमित मुनाफा होता है और अगर स्टाफ की कीमत ऊपर जाती है तो असीमित मुनाफा होता है। घाटा एक निश्चित सीमा तक ही होता है।
  5. इसमें दो ब्रेक इवन प्वाइंट होते हैं – नीचे का ब्रेक इवन और ऊपर का ब्रेक इवन प्वाइंट 
  6. स्प्रेड = ऊपर की स्ट्राइक नीचे की स्ट्राइक 
  7. नेट क्रेडिट = नीचे की स्ट्राइक पर मिला प्रीमियम – 2*ऊपर की स्ट्राइक का प्रीमियम 
  8. अधिकतम नुकसान = स्प्रेड नेट क्रेडिट 
  9. सबसे ज्यादा नुकसान =  ऊंची स्ट्राइक पर 
  10. बाजार के नीचे जाने पर होने वाला पे ऑफ = नेट क्रेडिट 
  11. नीचे का ब्रेक इवन नीचे की स्ट्राइक + नेट क्रेडिट 
  12. ऊपर का ब्रेक इवन = ऊपर की स्ट्राइक + अधिकतम नुकसान 
  13. एक्सपायरी में कितना भी भले ही कितना समय बचा हो इस स्ट्रेटजी में स्लाइटली ITM + स्लाइटली OTM स्ट्राइक के मिश्रण को ही खरीदना चाहिए। 
  14. जब एक्सपायरी में काफी समय बचा हो तो कि वोलैटिलिटी बढ़ने से इस स्ट्रेटजी में फायदा होता है लेकिन अगर एक्सपायरी में समय कम बचा हो तो कि वोलैटिलिटी बढ़ना इस स्ट्रेटजी के लिए अच्छा नहीं होता।

 

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बुल पुट स्प्रेड https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%b2-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%b2-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:42:47 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6974 3.1 – बुल पुट स्प्रेड क्यों? बुल कॉल स्प्रेड की तरह ही बुल पुट स्प्रेड भी दो चरणों की ऑप्शन स्ट्रैटजी है। इसका इस्तेमाल भी तभी किया जाता है जब बाजार को लेकर आपकी राय मॉडरेटली बुलिश हो। बुल पुट स्प्रेड का पे ऑफ स्ट्रक्चर भी बुल कॉल स्प्रेड की तरह ही होता है, सिर्फ […]

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3.1 – बुल पुट स्प्रेड क्यों?

बुल कॉल स्प्रेड की तरह ही बुल पुट स्प्रेड भी दो चरणों की ऑप्शन स्ट्रैटजी है। इसका इस्तेमाल भी तभी किया जाता है जब बाजार को लेकर आपकी राय मॉडरेटली बुलिश हो। बुल पुट स्प्रेड का पे ऑफ स्ट्रक्चर भी बुल कॉल स्प्रेड की तरह ही होता है, सिर्फ स्ट्राइक के चुनाव में और स्ट्रैटेजी के इस्तेमाल में थोड़ा सा अंतर होता है। बुल पुट स्प्रेड में पुट ऑप्शन का इस्तेमाल करके स्प्रेड बनाया जाता है ना कि कॉल ऑप्शन का इस्तेमाल करके (जैसा कि बुल कॉल स्प्रेड में किया जाता है) 

तो ऐसे में यह सवाल उठना वाजिब है कि जब दोनों में पे ऑफ एक जैसा ही होता है, तो तो फिर बुल कॉल स्प्रेड के बजाय बुल पुट स्प्रेड का इस्तेमाल क्यों किया जाए? 

यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्रीमियम कैसे चल रहे हैं? बुल कॉल स्प्रेड डेबिट के तौर पर किया जाता है जबकि बुल पुट स्प्रेड को क्रेडिट के तौर पर किया जाता है। तो अगर बाजार ऐसी स्थिति में है कि –

  1. बाजार काफी नीचे गिर चुके हैं और इसलिए पुट के प्रीमियम बढ़ गए हैं 
  2. वोलैटिलिटी ऊपर है 
  3. एक्सपायरी में काफी समय बचा हुआ है 

और बाजार पर आपकी राय मॉडरेटली बुलिश है, तो ऐसे में बुल पुट स्प्रेड का इस्तेमाल करके नेट क्रेडिट का फायदा उठाना सही तरीका होगा बजाय इसके कि बुल कॉल स्प्रेड का इस्तेमाल करके नेट डेबिट लें। व्यक्तिगत तौर पर मैं ऐसी स्ट्रैटेजी पसंद करता हूं जिसमें नेट क्रेडिट हो बजाय ऐसी स्ट्रैटेजी के, जिसमें नेट डेबिट हो।

3.2 – स्ट्रैटेजी से जुड़ी बातें

बुल पुट स्प्रेड दो चरणों वाली स्प्रेड स्ट्रैटजी है, जिसमें आमतौर पर ITM और OTM ऑप्शन होते हैं। वैसे आप चाहें तो बुल पुट स्प्रेड में दूसरी तरह की स्ट्राइक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। 

बुल पुट स्प्रेड को बनाने के लिए 

  1. एक OTM पुट ऑप्शन खरीदें (पहला चरण) 
  2. एक ITM पुट ऑप्शन को बेचे (दूसरा चरण) 

जब आप ऐसा करें तो यह ध्यान रखें कि 

  1. सभी स्ट्राइक एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हुए हों 
  2. एक ही एक्सपायरी सीरीज के हों और 
  3. हर चरण में ऑप्शन की संख्या एक जैसी हो 

उदाहरण के लिए –

तारीख – 7 दिसंबर 2015 

नजरिया – मॉडरेटली बुलिश (बाजार के ऊपर जाने की उम्मीद है) 

निफ़्टी स्पॉट –  7805 

बुल पुट स्प्रेड, ट्रेड सेटअप – 

  1. 7700 PE खरीदें, ₹72 का प्रीमियम अदा करें। याद रखें कि OTMऑप्शन है। क्योंकि यह पैसा मेरे अकाउंट से बाहर जा रहा है इसलिए यह डेबिट ट्रांजैक्शन है 
  2. 7900 PE बेचें,  ₹163 का प्रीमियम पाएं। याद रखें कि ITM ऑप्शन है। क्योंकि यह पैसा मेरे पास आ रहा है इसलिए यह क्रेडिट ट्रांजैक्शन है 
  3. इन दोनों सौदों को मिलाकर कुल नेट कैश फ्लो यानी डेबिट और क्रेडिट के बीच का अंतर है 163 – 72 = 91, ये कैश फ्लो पॉजिटिव है इसलिए मेरे एकाउंट में क्रेडिट होगा।

 आमतौर पर बुल पुट स्प्रेड में हमेशा नेट क्रेडिट होता है, इसलिए बुल पुट स्प्रेड को कई बार क्रेडिट स्प्रेड भी कहते हैं। 

हमारे इस ट्रेड को करने के बाद बाजार किसी भी दिशा में जा सकता है और एक्सपायरी किसी भी स्तर पर हो सकती है। इसलिए आइए कुछ परिस्थितियों पर नजर डालते हैं जिससे हमें पता चल सके कि अलग-अलग स्तर की एक्सपायरी पर बुल पुट स्प्रेड पर क्या असर होगा।

स्थिति 1 –  बाजार की एक्सपायरी 7600 पर होती है (नीचे के स्ट्राइक प्राइस से भी नीचे मतलब OTM ऑप्शन) 

एक्सपायरी पर पुट ऑप्शन की कीमत इसकी इंट्रिसिक वैल्यू पर निर्भर करेगी। आपको याद होगा कि एक्सपायरी के समय पुट ऑप्शन की इंट्रिसिक वैल्यू –

Max [strike-spot, 0]

7700 PE में इंट्रिसिक वैल्यू होगी –

Max [7700 -7600-0]

= Max [100,0]

= 100

क्योंकि हम 7700 PE पर लॉन्ग हैं और ₹72 का प्रीमियम दिया है, इसलिए हमारी कमाई होगी-

= इंट्रिसिक वैल्यू – दिया गया प्रीमियम 

= 100 – 72

= 28

इसी तरह, 7900 PE ऑप्शन की इंट्रिसिक वैल्यू 300 है। लेकिन चूंकि हमने इस ऑप्शन को ₹163 पर बेचा है इसलिए –

7900 PE के इस ट्रेड में पे ऑफ होगा 

163 – 300 

137

और स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा –

= +28 – 137

= -109

स्थिति 2 – बाजार की एक्सपायरी 7900 पर होती है (नीचे के स्ट्राइक कीमत पर यानी OTM ऑप्शन) 

7700 PE ऑप्शन की कोई इंट्रिसिक वैल्यू नहीं है। इसलिए हमने इस ऑप्शन के लिए जो ₹72 का प्रीमियम दिया है वो डूब जाएगा।

7900 PE ऑप्शन की इंट्रिसिक वैल्यू 200 है।

स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा

7900 PE ऑप्शन को बेच कर मिला प्रीमियम – 7900 PE ऑप्शन की इंट्रिसिक वैल्यू – 7700 PE ऑप्शन का डूबा प्रीमियम

= 163 -200 -72

= -109

स्थिति 3 – बाजार की एक्सपायरी 7900 पर होती है (ऊपर के स्ट्राइक कीमत पर यानी ITM ऑप्शन )

7700 PE और 7900 PE की इंट्रिसिक वैल्यू 0 होगी, इसलिए दोनों बिना मूल्य वाले (वर्थलेस /worthless) हो कर एक्सपायर होंगे –

स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा

7900 PE ऑप्शन को बेच कर मिला प्रीमियम – 7700 PE ऑप्शन का डूबा प्रीमियम

= 163 -72

= 91

स्थिति 4-  बाजार की एक्सपायरी 8000 पर होती है (ऊपर के स्ट्राइक प्राइस से भी ऊपर मतलब ITM ऑप्शन) 

दोनों ऑप्शन 7700 PE और 7900 PE बिना मूल्य वाले (वर्थलेस /worthless) हो कर एक्सपायर होंगे

इसलिए स्ट्रैटेजी का कुल पे ऑफ होगा

7900 PE ऑप्शन को बेच कर मिला प्रीमियम – 7700 PE ऑप्शन का डूबा प्रीमियम

= 163 -72

= 91

इस को एक चार्ट में देखते हैं-

बाजार की एक्सपायरी 7700 PE (इंट्रिसिक वैल्यू) 7900 PE (इंट्रिसिक वैल्यू) नेट पे ऑफ
7600 100 300 -109
7700 0 200 -109
7900 0 0 91
8000 0 0 91

इससे आपको 3 बातें साफ हो जाएंगी- 

  1. बाजार में जब भी तेजी आएगी, इस स्ट्रैटेजी से मुनाफा होगा।
  2. गिरावट के बावजूद आपका नुकसान ₹109 तक ही सीमित रहेगा। अधिकतम नुकसान इस स्ट्रेटजी के स्प्रेड और नेट क्रेडिट के अंतर के बराबर होगा। 
  3. अधिकतम मुनाफा भी ₹91 पर रूक जाता है। वास्तव में, ये आपके स्ट्रैटेजी के नेट क्रेडिट को बराबर है। 

यहां पर स्प्रेड की परिभाषा है-

स्प्रेड = ऊपर की स्ट्राइक और नीचे की स्ट्राइक का अंतर 

Spread = Difference between the higher and lower strike price

हम इस स्ट्रैटेजी के तहत किसी भी स्ट्राइक कीमत के लिए मुनाफे की गणना कर सकते हैं। मैंने एक एक्सेल सीट पर कुछ गणना की है जिसका स्क्रीनशॉट यहां दे रहा हूं। –

  • LS – IV – Lower Strike – Intrinsic value (7700 PE, OTM)
  • PP – Premium Paid
  • LS Payoff – Lower Strike Payoff
  • HS-IV – Higher strike – Intrinsic Value (7900 CE, ITM)
  • PR – Premium Received
  • HS Payoff – Higher Strike Payoff

जैसा कि आप देख सकते हैं कि नुकसान ₹109 तक ही सीमित है और मुनाफा ₹91 तक। इसके आधार पर हम बुल पुट स्प्रेड की अधिकतम नुकसान और अधिकतम मुनाफे के स्तर का एक अनुमान बना सकते हैं- 

बुल पुट स्प्रेड का अधिकतम नुकसान = स्ट्रैटेजी का नेट क्रेडिट 

नेट क्रेडिट = ऊपर की स्ट्राइक के लिए लिया गया प्रीमियम – नीचे की स्ट्राइक के लिए दिया गया प्रीमियम- 

बुल पुट स्प्रेड का अधिकतम मुनाफा = नेट क्रेडिट

Bull PUT Spread Max loss = Spread – Net Credit

Net Credit = Premium Received for higher strike – Premium Paid for lower strike

Bull Put Spread Max Profit = Net Credit

बुल पुट स्प्रेड के नफा नुकसान का चित्र ऐसा दिखाई देगा-

ऊपर के चित्र से तीन महत्वपूर्ण बातें नजर आती हैं – 

  1. अगर निफ्टी की एक्सपायरी 7700 के नीचे होती है तो इस स्ट्रैटेजी में नुकसान होता है हालांकि यह नुकसान ₹109 तक ही सीमित है 
  2. ब्रेक इवन प्वाइंट यानी जिस जगह पर यह स्ट्रैटेजी ना तो मुनाफा कमा रही होती है ना ही नुकसान सह रही होती है, वो तब आता है जब बाजार 7809 पर एक्सपायर हो। इसका मतलब है कि हम यह कह सकते हैं कि बुल पुट स्प्रेड का ब्रेक इवन प्वाइंट = ऊपर की स्ट्राइक – नेट क्रेडिट  (Higher Strike – Net Credit)
  3. इस स्ट्रैटेजी में पैसे तब बनते हैं जब बाजार की एक्सपायरी 7809 से ऊपर जाकर होती है। हांलाकि अधिकतम मुनाफा ₹91 तक ही हो सकता है। मतलब ITM PE के लिए मिले प्रीमियम और OTM PE के लिए दिए गए प्रीमियम के अंतर के बराबर।
  1. 7700 PE के लिए दिया गया प्रीमियम = 72 
  2. 7900 PE के लिए लिया गया प्रीमियम = 163
  3. नेट क्रेडिट = 163 – 72 = 91

3.3 – कुछ और स्ट्राइक का चुनाव 

आपको एक बात याद रखना चाहिए – स्प्रेड  का मतलब है दो स्ट्राइक के बीच का अंतर । बुल पुट स्प्रेड हमेशा 1 OTM पुट और 1 ITM पुट से बनाया जाता है। लेकिन आप कोई भी OTM स्ट्राइक और  ITM स्ट्राइक चुन सकते हैं। ये स्ट्राइक जितना दूर होंगे मुनाफा भी उतना बड़ा होगा। 

7612 की स्पॉट कीमत के उदाहरण से देखते हैं – 

पहला – 7500 PE (OTM) और 7700 PE (ITM) वाली बुल पुट स्प्रेड 

लोअर/नीचे की स्ट्राइक (OTM, लॉन्ग) 7500
हायर/ऊपर की स्ट्राइक (ITM, शॉर्ट) 7700
स्प्रेड 7700 – 7500 = 200
नीचे की स्ट्राइक के लिए दिया गया प्रीमियम 62
ऊपर की स्ट्राइक के लिए लिया गया प्रीमियम 137
नेट क्रेडिट 137 – 62 = 75
अधिकतम नुकसान (स्प्रेड नेट क्रेडिट) 200 – 75 = 125
अधिकतम मुनाफा (नेट क्रेडिट) 75
ब्रेक इवेन (ऊपर की स्ट्राइक नेट क्रेडिट) 7700 – 75 = 7625

7400 PE (OTM) और 7800 PE (ITM) वाला बुल पुट स्प्रेड 

लोअर/नीचे की स्ट्राइक (OTM, लॉन्ग) 7400
हायर/ऊपर की स्ट्राइक (ITM, शॉर्ट) 7800
स्प्रेड 7800 – 7400 = 400
नीचे की स्ट्राइक के लिए दिया गया प्रीमियम 40
ऊपर की स्ट्राइक के लिए लिया गया प्रीमियम 198
नेट क्रेडिट 198 – 40 = 158
अधिकतम नुकसान (स्प्रेड नेट क्रेडिट) 400 – 158 = 242
अधिकतम मुनाफा (नेट क्रेडिट) 158
ब्रेक इवेन (ऊपर की स्ट्राइक नेट क्रेडिट) 7800 – 158 = 7642

7500 PE (OTM) और 7800 PE (OTM) स्ट्राइक वाली बुल पुट स्प्रेड 

लोअर/नीचे की स्ट्राइक (OTM, लॉन्ग) 7500
हायर/ऊपर की स्ट्राइक (ITM, शॉर्ट) 7800
स्प्रेड 7800 – 7500 = 300
नीचे की स्ट्राइक के लिए दिया गया प्रीमियम 62
ऊपर की स्ट्राइक के लिए लिया गया प्रीमियम 198
नेट क्रेडिट 198 – 62 = 136
अधिकतम नुकसान (स्प्रेड नेट क्रेडिट) 300 – 136 = 164
अधिकतम मुनाफा (नेट क्रेडिट) 136
ब्रेक इवेन (ऊपर की स्ट्राइक नेट क्रेडिट) 7800 – 136 = 7664

तो खास बात यह है कि आप किसी भी OTM स्ट्राइक और  ITM स्ट्राइक के साथ ये स्प्रेड बना सकते हैं। लेकिन आप जैसी स्ट्राइक चुनते हैं (और जैसा स्प्रेड आप बनाएंगे) उस हिसाब से आपका रिस्क और रिवार्ड बदलता रहता है। तो अगर आप को अपने मॉडरेटली बुलिश नजरिए पर भरोसा है तो आप बड़ा स्प्रेड बना सकते हैं, नहीं तो छोटे स्प्रेड पर भरोसा कीजिए।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. बुल पुट स्प्रेड बुल कॉल स्प्रेड का एक विकल्प है। इसका सबसे अच्छा इस्तेमाल तभी होता है जब बाजार को लेकर आपकी आपका नजरिया मॉडरेटली बुलिश हो। 
  2. बुल पुट स्प्रेड में नेट क्रेडिट मिलता है।
  3. बुल पुट स्प्रेड का सबसे सही इस्तेमाल तब होता है जब बाजार टूट रहे हों, प्रीमियम ऊपर हो, और वोलैटिलिटी भी ऊपर हो। और आपको उम्मीद हो कि अब बाजार यहां से और ज्यादा नीचे नहीं गिरेंगे।
  4. बुल पुट स्ट्रैटेजी में OTM पुट ऑप्शन को खरीदा और ITM पुट ऑप्शन को बेचा जाता है।
  5. कुल मुनाफा नेट क्रेडिट के बराबर ही हो सकता है। 
  6. कुल नुकसान स्प्रेड में से नेट क्रेडिट को घटाकर मिलने वाले आंकड़े के बराबर ही हो सकता है।
  7. ब्रेक इवेन होता है: हाई स्ट्राइक – नेट क्रेडिट।
  8. इस स्प्रेड को बनाने के लिए आपको OTM और ITM स्ट्राइक का इस्तेमाल करना होता है।
  9. स्प्रेड जितना ज्यादा बड़ा होगा मुनाफे की उम्मीद उतनी ज्यादा होगी और ब्रेक इवेन प्वाइंट भी उतना ही ऊपर होगा।

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2.1 – भूमिका 

ऑप्शन ट्रेडिंग में जितने तरीके की भी स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें से सबसे ज्यादा सरल स्ट्रैटेजी होती है – स्प्रेड स्ट्रैटजी। स्प्रेड कई चरणों वाली स्ट्रैटेजी होती है जिसमें 2 या उससे ज्यादा ऑप्शन हो सकते हैं। कई चरणों वाली स्ट्रैटेजी होने का मतलब यह है कि इस स्ट्रैटजी में 2 या उससे ज्यादा ऑप्शन के सौदे होते हैं।

बुल कॉल स्प्रेड जैसी स्प्रेड स्ट्रैटजी का सबसे अच्छा इस्तेमाल तब होता है जब बाजार को लेकर आपका नजरिया बहुत ही ज्यादा आक्रामक या महत्वाकांक्षी ना हो बल्कि नियंत्रित या सीमित हो। उदाहरण के तौर पर आपका किसी स्टॉक को लेकर आपका नजरिया को हल्का (मॉडरेटली) बुलिश या हल्का (मॉडरेटली) बेयरिश हो सकता है। 

कुछ स्थितियां जिनमें आपका नजरिया हल्का बुलिश हो सकता है- 

फंडामेंटल परिस्थिति –  रिलायंस इंडस्ट्रीज के Q3 के नतीजे आने वाले हैं, Q2 के नतीजों के समय मैनेजमेंट ने जो बातें कही थी यानी जो गाइडेंस दिया था उससे आपको पता है कि Q3 के नतीजे पिछले साल के Q2 और Q3 के नतीजों से भी अच्छे आएंगे। लेकिन अभी आपको यह नहीं पता है कि नतीजे में कितने प्वाइंट का या कितने प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। यह हिस्सा अभी भी पता चलना बाकी है। 

इस स्थिति में आपको उम्मीद तो है कि स्टॉक की कीमत ऊपर जाएगी। लेकिन हो सकता है कि Q2 के नतीजों के समय दिए गए कंपनी के गाइडेंस की वजह से स्टॉक की कीमत में इस अच्छे नतीजे का असर पहले ही शामिल हो। इस वजह से आपकी राय यह है कि स्टॉक ऊपर तो जा सकता है लेकिन ऊपर एक सीमा तक ही जाने की संभावना है।

टेक्निकल परिस्थिति –  जिस स्टॉक पर आपकी नजर है वो पिछले कुछ समय से लगातार मंदी की गिरफ्त में है। उसने अपना 52 हफ्तों का निचला स्तर छू लिया है, 200 दिनों के मूविंग एवरेज को छू लिया है और अब कई सालों के स्पॉट यानी मल्टी ईयर स्पॉट के पास खड़ा है। इसे देखते हुए आपको लगता है कि स्टॉक में एक रिलीफ रैली यानी थोड़ी तेजी आ सकती है। लेकिन आप पूरी तरीके से तेजी में नहीं है क्योंकि आपको लगता है कि स्टॉक अभी भी मंदी में ही है। 

क्वांटिटेटिव परिस्थिति –  एक स्टॉक लगातार दोनों तरफ फर्स्ट (1st) स्टैंडर्ड डेविएशन ( +1 SD और  –1 SD) के बीच में घूम रहा है। मतलब ये लगातार रिवर्टिंग बिहेवियर (reverting behaviour) दिखा रहा है। लेकिन स्टॉक में अचानक से गिरावट आती है और स्टॉक की कीमत सेकंड (2nd)स्टैंडर्ड डेविएशन तक पहुंच जाती है। इस गिरावट के पीछे कोई फंडामेंटल वजह नहीं है। इसलिए इस बात की अच्छी संभावना है कि स्टॉक की कीमत वापस अपने मीन या माध्य (mean) पर पहुंच जाए। इस वजह से स्टॉक पर आपका नजरिया तेजी का बनता है। लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि स्टॉक सेकंड स्टैंडर्ड डेविएशन पर ही कुछ समय तक टिका रहे और अपने माध्य की तरफ ना बढ़े।

तो यहां मुद्दे की बात यह है कि आपका नजरिया किसी भी चीज के आधार पर बना हो फंडामेंटल, टेक्निकल या क्वांटिटेटिव लेकिन आप अपने को ऐसी स्थिति में पा सकते हैं जहां पर आपका नजरिया से कुछ तेजी का यानी मॉडरेटली बुलिश हो। मॉडरेटली बेयरिश या कुछ मंदी का नजरिया भी ऐसे ही बनता है। ऐसी स्थिति में आप स्प्रेड स्ट्रेटजी का इस्तेमाल कर सकते हैं। जिसमें आप पोजीशन ऐसे बनाएंगे कि  

  1. आप अपनी नुकसान के लिए एक सीमा तय कर सकें (अगर आपकी राय गलत साबित हो)
  2. आप अपने मुनाफे की भी एक सीमा तय कर देंगे (तय कर देंगे कि मुनाफा कितना होगा) 
  3. अगर आप ने मुनाफे की सीमा तय कर दी है तो बाजार में आपको कम खर्च पर निवेश करने का मौका मिले 

हो सकता है कि तीसरा प्वाइंट आपको पूरी तरीके से ना समझ में आए लेकिन आगे बढ़ने पर आप इसको समझ सकेंगे।

2.2 – स्ट्रैटेजी से जुड़ी बातें

बुल कॉल स्प्रेड सबसे लोकप्रिय स्प्रेड स्ट्रैटजी में से एक है। यह आपके काम तब आती है जब बाजार या स्टॉक पर आपका नजरिया मॉडरेटली बुलिश हो। 

बुल कॉल स्प्रेड दो चरणों वाली स्प्रेड स्ट्रैटजी है, जिसमें आमतौर पर ATM और OTM ऑप्शन होते हैं। वैसे आप चाहें तो बुल कॉल स्प्रेड में दूसरी तरह की स्ट्राइक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। 

बुल कॉल स्प्रेड को बनाने के लिए 

  1. एक ATM कॉल ऑप्शन खरीदें (पहला चरण) 
  2. एक OTM कॉल ऑप्शन को बेचे (दूसरा चरण) 

जब आप ऐसा करें तो यह ध्यान रखें कि 

  1. सभी स्ट्राइक एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हुए हों 
  2. एक ही एक्सपायरी सीरीज के हों और 
  3. हर चरण में ऑप्शन की संख्या एक जैसी हो 

उदाहरण के लिए –

तारीख – 23 नवंबर 2015 

नजरिया – मॉडरेटली बुलिश (बाजार के ऊपर जाने की उम्मीद तो है लेकिन एक्सपायरी पास होने की वजह से इसके ऊपर जाने की सीमा कम है) 

निफ़्टी स्पॉट –  7846 

ATM –  7800 CE , प्रीमियम ₹79 

OTM – 7900 CE , प्रीमियम ₹25 

बुल कॉल स्प्रेड, ट्रेड सेटअप – 

  1. 7800 CE खरीदें, ₹79 का प्रीमियम अदा करें। क्योंकि यह पैसा मेरे अकाउंट से बाहर जा रहा है इसलिए यह डेबिट ट्रांजैक्शन है 
  2. 7900 CE बेचें,  ₹25 का प्रीमियम पाएं। क्योंकि यह पैसा मेरे पास आ रहा है इसलिए यह क्रेडिट ट्रांजैक्शन है 
  3. इन दोनों सौदों को मिलाकर कुल नेट कैश फ्लो यानी डेबिट और क्रेडिट के बीच का अंतर है 79 – 25 = 54 

आमतौर पर बुल कॉल स्प्रेड में हमेशा नेट डेबिट होता है, इसलिए बुल कॉल स्प्रेड को कई बार डेबिट बुल स्प्रेड भी कहते हैं। 

हमारे इस ट्रेड को करने के बाद बाजार किसी भी दिशा में जा सकता है और एक्सपायरी किसी भी स्तर पर हो सकती है।  इसलिए आइए कुछ परिस्थितियों पर नजर डालते हैं जिससे हमें पता चल सके कि अलग-अलग स्तर की एक्सपायरी पर बुल कॉल स्प्रेड पर क्या असर होगा।

स्थिति 1 –  बाजार 7700 पर एक्सपायर होता है (नीचे के स्ट्राइक प्राइस से भी नीचे मतलब ATM ऑप्शन) 

कॉल ऑप्शन की कीमत इसकी इंट्रिसिक वैल्यू पर निर्भर करेगी। आपको याद होगा कि एक्सपायरी के समय कॉल ऑप्शन की इंट्रिसिक वैल्यू –

Max [0, spot -strike]

7800 CE में इंट्रिसिक वैल्यू होगी

Max [0, 7700 -7800]

= Max [0, -100]

= 0

क्योंकि 7800 (ATM) कॉल ऑप्शन की इंट्रिसिक वैल्यू जीरो है, इसलिए हमने जितना प्रीमियम दिया है -₹79 , उसे पूरा डुबा देंगे। 

7900 CE ऑप्शन का भी इंट्रिसिक वैल्यू जीरो है। लेकिन चूंकि हमने इस ऑप्शन को बेचा है इसलिए हमें ₹25 का यह पूरा प्रीमियम मिल जाएगा। 

तो हमारे इस ट्रेड में कुल पे-ऑफ होगा 

-79 + 25 

-54

याद रखिए कि यह इस स्ट्रैटेजी का नेट डेबिट है। 

स्थिति 2 – बाजार की एक्सपायरी 7800 पर होती है (नीचे के स्ट्राइक कीमत पर यानी ATM ऑप्शन) 

यहां पर मैं गणना नहीं दिखा रहा हूं क्योंकि आपको पता होगा कि 7800 और 7900 दोनों में इंट्रिसिक वैल्यू जीरो है। इसलिए कुल घाटा ₹54 का होगा। 

स्थिति 3 – बाजार की एक्सपायरी 7900 पर होती है (ऊपर के स्ट्राइक कीमत पर यानी OTM ऑप्शन )

7800 CE की इंट्रिसिक वैल्यू होगी

Max [0, 7900-7800]

= 100

हम इस ऑप्शन पर लॉन्ग हैं और हमने ₹79 का प्रीमियम अदा किया है इसलिए हम मुनाफा कमाएंगे

100-79

= 21

7900 CE का इंट्रिसिक वैल्यू भी जीरो होगा इसलिए हम ₹25 के अपने पूरे प्रीमियम को अपने पास रख पाएंगे। इसलिए कुल मुनाफा होगा 21+25 =  ₹46 

स्थिति 4 बाजार की एक्सपायरी 8000 पर होती है (ऊपर के स्ट्राइक प्राइस से भी ऊपर मतलब ATM ऑप्शन) 

दोनों ऑप्शन की इंट्रिसिक वैल्यू पॉजिटिव होगी।

7800 CE की इंट्रिसिक वैल्यू होगी 200 और 7900 CE की इंट्रिसिक वैल्यू होगी होगी 100 

7800 CE पर हम बनाएंगे 200-79 = 121 का मुनाफा और 

7900 CE में घाटा होगा 100-25 =75 का 

इस तरह से कुल मुनाफा होगा 

121 -75

= 46 

इस को एक चार्ट में देखते हैं

बाज़ार की एक्सपायरी LS – IV HS – IV नेट पे-ऑफ
7700 0 0 (54)
7800 0 0 (54)
7900 100 0 +46
8000 200 100 +46

इससे आपको दो बातें साफ हो जाएंगी 

  1. बाजार में गिरावट के बावजूद आपका नुकसान ₹54 तक ही सीमित रहेगा। अधिकतम नुकसान इस स्ट्रेटजी के नेट डेबिट के बराबर है। 
  2. अधिकतम मुनाफा भी ₹46 पर रूक जाता है। वास्तव में, ये आपके स्ट्रैटजी के नेट डेबिट और स्प्रेड के बीच का अंतर है। 

यहां पर स्प्रेड की परिभाषा है-

स्प्रेड = ऊपर की स्ट्राइक और नीचे की स्ट्राइक का अंतर 

Spread = Difference between the higher and lower strike price

हम इस स्ट्रैटेजी के तहत किसी भी स्ट्राइक कीमत के लिए मुनाफे की गणना कर सकते हैं। मैंने एक एक्सेल सीट पर कुछ गणना की है जिसका स्क्रीनशॉट में यहां दे रहा हूं। –

  • LS – IV – Lower Strike – Intrinsic value (7800 CE, ATM)
  • PP – Premium Paid
  • LS Payoff – Lower Strike Payoff
  • HS-IV – Higher strike – Intrinsic Value (7900 CE, OTM)
  • PR – Premium Received
  • HS Payoff – Higher Strike Payoff

जैसा कि आप देख सकते हैं कि नुकसान ₹54 तक ही सीमित है और मुनाफा ₹46 पर। इसके आधार पर हम बुल कॉल स्प्रेड की अधिकतम नुकसान और अधिकतम मुनाफे के स्तर का एक अनुमान बना सकते हैं- 

बुल कॉल स्प्रेड का अधिकतम = नुकसान स्ट्रैटेजी का नेट डेबिट 

नेट डेबिट = नीचे की स्ट्राइक के लिए दिया गया प्रीमियम ऊपर की स्ट्राइक के लिए लिया गया प्रीमियम 

बुल कॉल स्प्रेड का अधिकतम मुनाफा = स्प्रेड नेट डेबिट 

बुल कॉल स्प्रेड के नफा-नुकसान का चित्र ऐसा दिखाई देगा


ऊपर के चित्र से तीन महत्वपूर्ण बातें नजर आती हैं – 

  1. अगर निफ्टी की एक्सपायरी 7800 के नीचे होती है तो इस स्ट्रैटेजी में नुकसान होता है हालांकि यह नुकसान ₹54 तक ही सीमित है 
  2. जिस जगह पर यह स्ट्रैटेजी ना तो मुनाफा कमा रही होती है ना ही नुकसान सह रही होती है यानी ब्रेक इवन प्वाइंट, वो तब आता है जब बाजार 7854 (7800 + 54) पर एक्सपायर हो। इसका मतलब है कि हम यह कह सकते हैं कि बुल कॉल स्प्रेड का ब्रेक इवन प्वाइंट = नीचे की स्ट्राइक+नेट डेबिट 
  3. यह स्ट्रैटेजी में पैसे तब बनते हैं जब बाजार की एक्सपायरी 7854 से ऊपर जाकर होती है। हांलाकि अधिकतम मुनाफा ₹46 तक ही हो सकता है। मतलब स्ट्राइक नेट डेबिट के बराबर।
  1. 7900 – 7800 = 100
  2. 100 – 54 = 46

हो सकता है कि अब तक आपके दिमाग में यह सवाल उठने लगा हो कि बुल कॉल स्प्रेड को लेना जरूरी क्यों है? क्यों नहीं सीधा-साधा कॉल ऑप्शन खरीद लिया जाए? इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इसमें स्ट्रैटेजी कॉस्ट यानी कीमत कम पड़ती है।

याद रखिए कि आपका नजरिया मॉडरेटली बुलिश है। इसलिए एक OTM ऑप्शन खरीदना संभव नहीं है। अगर आपको ATM ऑप्शन खरीदना पड़े तो आपको ₹79 ऑप्शन के प्रीमियम के तौर पर देने पड़ेंगे और अगर बाजार में आपकी राय गलत साबित हुई तो आप यह ₹79 गंवा देंगे। लेकिन अगर आपने बुल कॉल स्प्रेड लिया तो आप का कुल खर्चा 79 की जगह ₹54 रह जाएगा। हालांकि यह भी सच है कि इसके बदले आप के मुनाफे की भी सीमा तय हो जाएगी। लेकिन मेरी राय में अगर आप स्टॉक या इंडेक्स पर बहुत ज्यादा तेजी में नहीं है तो यह एक अच्छा सौदा है।

2.3 – स्ट्राइक का चुनाव 

अगर मॉडरेटली बुलिश या बेयरिश को संख्या या आंकड़ों में बताना हो तो? इंफोसिस पर 5% की चाल को क्या आप मॉडरेटली बुलिश कहेंगे या फिर 10% को या फिर उससे भी ऊपर की चाल को? बैंक निफ़्टी या निफ्टी 50  के लिए मॉडरेटली बुलिश किसको कहेंगे? या फिर यस बैंक, माइंडट्री, स्ट्राइड एक्रोलैब्स आदि जैसे मिडकैप में यह संख्या क्या होगी? सच बात तो यह है कि इसके लिए कोई एक सही उत्तर नहीं है। हर एक के लिए यह अलग अलग होगा। आप हर स्टॉक या इंडेक्स के लिए उसकी वोलैटिलिटी के आधार पर उसका मॉडरेट होना तय कर सकते हैं।

वोलैटिलिटी के आधार पर मैंने कुछ नियम बनाए हैं (जो मेरे लिए ठीक से काम करते हैं), आप चाहें तो अपने हिसाब से इसमें बदलाव भी कर सकते हैं – अगर स्टॉक बहुत ज्यादा वोलेटाइल है 5 से 8% तक की चाल को मैं मॉडरेट मानूंगा। लेकिन कम वोलेटाइल स्टॉक में 5% से कम के तेजी को भी मॉडरेट मानूंगा। जहां तक इंडेक्स की बात है इंडेक्स में मैं 5% से कम की चाल को मॉडरेट मानूंगा।

अब मान लीजिए कि निफ्टी 50 पर आपका  मॉडेस्टली बुलिश रवैया है तो इसके लिए आप बुल कॉल स्प्रेड में कौन से स्ट्राइक चुनेंगे? क्या यहां भी ATM+ OTM की जुगलबंदी ही सबसे सही स्प्रेड होगा? 

इसका जवाब छुपा है थीटा में। 

नीचे के कुछ ग्राफ को देखकर आपको पता चलेगा कि एक्सपायरी पर आधारित सबसे बढ़िया स्ट्राइक को कैसे चुना जाए-

ऊपर के ग्राफ को समझने के पहले कुछ बातें याद रखिए –

  1. निफ़्टी स्पॉट को 8000 पर माना गया है 
  2. यहां सीरीज की शुरुआत का मतलब है सीरीज के पहले 15 दिन 
  3. सीरीज के खत्म होने का मतलब है सीरीज के अंतिम 15 दिन में कभी भी 
  4. बुल कॉल स्प्रेड को नियमित किया गया है और स्प्रेड को 300 प्वाइंट के अंतर पर रखा गया है 

यहां पर उम्मीद है कि बाजार करीब 3.75% बढ़ेगा और 8000 से 8300 तक जाएगा। तो इस बाजार की इस चाल पर और एक्सपायरी के समय के हिसाब से देखें तो ऊपर का ग्राफ बताता है कि-

  1. ग्राफ 1 (सबसे ऊपर बाई तरफ) – अगर आप सीरीज की शुरुआत में हैं और आपको उम्मीद है कि अगले 5 दिनों में चाल (मूव) आ जाएगी तो फार OTM वाला बुल स्प्रेड सबसे ज्यादा मुनाफा देगा, मतलब 8600 (नीचे की स्ट्राइक पर लॉन्ग) और 8900 पर (ऊपर की स्ट्राइक पर शॉर्ट)
  2. ग्राफ 2 (सबसे ऊपर दाएं तरफ) – आप सीरीज की शुरुआत में है और आपको अगले 15 दिनों में चाल आने की उम्मीद है तब स्लाइटली OTM ऑप्शन का बुल स्प्रेड सबसे ज्यादा मुनाफा देगा मतलब 8200 और 8500
  3. ग्राफ 3 (नीचे बाई तरफ) – आप एक्सपायरी सीरीज के शुरुआत में हैं और आपको उम्मीद है कि चाल अगले 25 दिनों में आएगी इसका ऐसे में 8000 और 8300 का ATM वाला बुल स्प्रेड सबसे ज्यादा मुनाफा देगा। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि 8200 का स्ट्राइक (OTM ऑप्शन) नुकसान करेगा। 
  4. ग्राफ 4 (नीचे दाएं तरफ) – आप सीरीज की शुरुआत में है और आप को उम्मीद है कि चाल एक्सपायरी तक आएगी। तब ATM वाला बुल स्प्रेड मतलब 8000 और 8300 वाला स्प्रेड सबसे ज्यादा मुनाफा देगा। ध्यान दीजिए कि OTM और फॉर OTM ऑप्शन का नुकसान बढ़ जाता है। 

अब कुछ और चार्ट देखते हैं इसमें अंतर बस इतना है कि यह चार्ट तब की स्ट्राइक दिखा रहे हैं जब आप सीरीज के दूसरे हिस्से में हैः

  1. ग्राफ 1 (ऊपर बाई तरफ) – अगर आपको सीरीज के दूसरे हिस्से में मॉडरेट चाल आने की उम्मीद है और आपको लगता है कि ऐसा एक या दो दिनों में होगा तो फार OTM की स्ट्राइक सबसे अच्छी होगी मतलब 8600 की (नीचे की स्ट्राइक पर लांग) और 8900 (ऊंची स्ट्राइक पर शॉर्ट) 
  2. ग्राफ 2 (ऊपर दाहिनी तरफ) – अगर आपको सीरीज के दूसरे हिस्से में छोटे (मॉडरेट) चाल की उम्मीद है, जो कि अगले 5 दिनों में हो सकती है तो OTM वाली स्ट्राइक सबसे अच्छी होगी, मतलब 8600 (नीचे के स्ट्राइक पर लांग) और 8900 (ऊपर की स्ट्राइक पर शार्ट)। ध्यान दीजिए कि ग्राफ 1 और ग्राफ 2 दोनों एक ही स्ट्राइक के बारे में सलाह दे रहे हैं, लेकिन दोनों स्ट्रैटेजी में मुनाफा कम हो जाता है क्योंकि थीटा अपना असर दिखाता है। 
  3. ग्राफ 3 (नीचे दाहिनी तरफ अगर) – आपको सीरीज के दूसरे हिस्से में एक छोटी चाल की उम्मीद है और आप इसे अगले 10 दिनों में होने की आशा रख रहे हैं तो सबसे अच्छी स्ट्राइक होगी स्लाइटली OTM (ATM से एक स्ट्राइक दूर) 
  4. ग्राफ 4 (नीचे बाई तरफ) – अगर आप सीरीज के दूसरे हिस्से में एक छोटी चाल की उम्मीद कर रहे हैं और आपको लगता है कि यह चाल एक्सपायरी के दिन होगी तो सबसे अच्छा स्ट्राइक होगा ATM यानी 8000 (नीचे स्ट्राइक पर लॉन्ग) और 8300 (ऊपर की स्ट्राइक शॉर्ट) याद रखिए कि यहां पर बाजार ऊपर जाएगा तो भी फार OTM ऑप्शन में पैसे डूब रहे होंगे।

2.4 स्प्रेड बनाना 

आपको एक बात जानना चाहिए – स्प्रेड जितना भी बड़ा होगा उतना ही ज्यादा पैसे आप बनाएंगे। लेकिन ध्यान रखें इसके साथ आपका ब्रेक इवन भी बढ़ता जाएगा। 

एक उदाहरण से देखते हैं – 

आज 28 नवंबर है, दिसंबर सीरीज का पहला दिन, निफ़्टी स्पॉट 7883 पर है। तीन अलग-अलग बुल कॉल स्प्रेड पर नजर डालते हैं 

पहला – ITM और ATM स्ट्राइक वाली बुल कॉल स्प्रेड 

लोअर स्ट्राइक (ITM, लॉन्ग)  7700
हायर स्ट्राइक (ATM, शॉर्ट) 7800
स्प्रेड  7800 – 7700 = 100
नीचे की स्ट्राइक पर दिया गया प्रीमियम 296
ऊपर की स्ट्राइक पर मिला प्रीमियम 227
नेट डेबिट  296 – 227 = 69
अधिकतम घाटा (नेट डेबिट के समान) 69
अधिकतम मुनाफा (स्प्रेडनेट डेबिट) 100 – 69 = 31
ब्रेक-इवेन 7700 + 69 = 7769
टिप्पणी नज़रिया मॉडरेटली बुलिश है इसलिए 7769 का ब्रेक-इवेन आना मुमकिन है, लेकिन मुनाफा 31 तक सीमित है। ऐसे में रिस्क (69 प्वाइंट) और रिवार्ड (31 प्वाइंट) का अनुपात सही नहीं है। 

दूसराATM और OTM स्ट्राइक वाली बुल कॉल स्प्रेड 

लोअर स्ट्राइक (ATM, लाँग) 7800
हायर स्ट्राइक (ATM, शॉर्ट) 7900
स्प्रेड 7900 – 7800 = 100
नीचे की स्ट्राइक पर दिया गया प्रीमियम 227
ऊपर की स्ट्राइक पर मिला प्रीमियम 167
नेट डेबिट 227 – 167 = 60
अधिकतम घाटा (नेट डेबिट के समान) 60
अधिकतम मुनाफा (स्प्रेडनेट डेबिट) 100 – 60 = 40
ब्रेक-इवेन 7800 + 60 = 7860
टिप्पणी रिस्क रिवार्ड बेहतर है, लेकिन ब्रेक-इवेन ऊपर है।

 

तीसराOTM और OTM स्ट्राइक वाली बुल कॉल स्प्रेड 

लोअर स्ट्राइक (ATM, लाँग) 7900
हायर स्ट्राइक (ATM, शॉर्ट) 8000
स्प्रेड 8000 – 7900 = 100
नीचे की स्ट्राइक पर दिया गया प्रीमियम 167
ऊपर की स्ट्राइक पर मिला प्रीमियम 116
नेट डेबिट 167 – 116 = 51
अधिकतम घाटा ( नेट डेबिट के समान) 51
अधिकतम मुनाफा(स्प्रेडनेट डेबिट) 100 – 51 = 49
ब्रेक-इवेन 7900 + 51 = 7951
टिपप्णी रिस्क रिवार्ड आकर्षक है लेकिन ब्रेक-इवेन ऊपर है

तो खास बात यह है कि आप जैसी स्ट्राइक चुनते हैं उस हिसाब से आपका रिस्क और रिवॉर्ड बदलता रहता है। लेकिन कभी भी केवल रिस्क और रिकॉर्ड के आधार पर अपना स्ट्राइक मत चुनिए। याद रखिए कि जब आप बुल कॉल स्प्रेड के लिए आप दो ऑप्शन चुनते हैं। उदाहरण के तौर पर -दो ATM ऑप्शन खरीदिए और दो OTM ऑप्शन बेचिए। 

ऑप्शन ट्रेडिंग में हमेशा आपको ग्रीक्स का ध्यान रखना होगा, खासकर थीटा का। 

मुझे उम्मीद है कि इस अध्याय में आपको स्प्रेड के बारे में कुछ जरूरी बातें पता चल गई है। आगे जाते हुए मैं यह मान की चलूंगा कि आपको पता है कि थोड़ा बुलिश और बेयरिश यानी मॉडरेटली बुलिश और बेयरिश चाल क्या होती है, इसलिए आगे से मैं सीधे स्ट्रैटेजी पर जाऊंगा

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. एक छोटे यानी मॉडरेट मूव (चाल) का मतलब यह है कि आपको चाल की उम्मीद तो है लेकिन आप बहुत ज्यादा बुलिश या बेयरिश नहीं है।
  2. मॉडरेट को अंको में निकालने के लिए स्टॉक या इंडेक्स कि वोलैटिलिटी को देखा जाता है। 
  3. जब आपका नजरिया मॉडरेटली बुलिश हो तो बुल कॉल स्प्रेड का इस्तेमाल किया जाता है जो कि एक सबसे साधारण स्प्रेड है। 
  4. आमतौर पर बुल कॉल स्प्रेड का मतलब होता है ATM ऑप्शन को खरीदना और OTM ऑप्शन को बेचना यह सारे ऑप्शन एक ही एक्सपायरी के, एक ही अंडरलाइंग के होने चाहिए और ये बराबर मात्रा में खरीदे जाते हैं।
  5. स्ट्राइक को चुनने में थीटा एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  6. आप जैसी स्ट्राइक चुनते हैं उसी के आधार पर आप का रिस्क और रिवार्ड तय होता है।

 

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दिशा निर्धारण https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a3/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a3/#comments Fri, 07 Feb 2020 10:40:47 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6965 1.1 पॄष्ठभूमि हम ऑप्शन स्ट्रैटजी पर इस मॉड्यूल को शुरू करें, इसके पहले मैं आपको एक लेख दिखाना चाहता हूं जिसे मैंने 2 साल पहले पढ़ा था। इस लेख का शीर्षक है “वाय विनिंग इज एडीक्टिव” (Why winning is addictive) । इसे बी वेंकटेश ने लिखा है, जो हिंदू बिजनेस लाइन के लिए लगातार कॉलम […]

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1.1 पॄष्ठभूमि

हम ऑप्शन स्ट्रैटजी पर इस मॉड्यूल को शुरू करें, इसके पहले मैं आपको एक लेख दिखाना चाहता हूं जिसे मैंने 2 साल पहले पढ़ा था। इस लेख का शीर्षक है “वाय विनिंग इज एडीक्टिव” (Why winning is addictive) । इसे बी वेंकटेश ने लिखा है, जो हिंदू बिजनेस लाइन के लिए लगातार कॉलम लिखते हैं। 

उस लेख का हिंदी अनुवाद आपके लिए यहाँ पेश कर रहा हूं

“आप लॉटरी का टिकट आमतौर पर क्यों नहीं खरीदते क्योंकि आपको पता होता है कि इस खेल में जीतने की संभावना बहुत ही कम है। लेकिन एक बार अगर आप लॉटरी मे जीत गए तो इस बात की काफी संभावना है कि आप बार-बार लॉटरी का टिकट खरीदेंगे।

हम अपने निवेश के साथ भी ऐसा ही करते हैं। लेकिन हम ऐसा क्यों करते हैं? मानव जाति का स्वभाव है कि वह आने वाले समय की उम्मीदों पर जीवन जीता है। इसीलिए दोबारा लॉटरी जीतने की उम्मीद हम में ज्यादा ऊर्जा भरती है और जब वह उम्मीद पूरी होती है तो हमें और भी अच्छा लगता है।

न्यूरोसाइंस के क्षेत्र में की गई रिसर्च हमें बताती है कि जीतने से ज्यादा मजा, हमें जीतने की उम्मीद में आता है। जब एक बार आप लॉटरी जीत लेते हैं तो वह अनुभव आपको उत्तेजित करता है और इस बात के लिए प्रेरित करता है कि आप लॉटरी के और टिकट खरीदें, भले ही आप इस बात से पूरी तरह से अवगत हैं कि दोबारा लॉटरी जीतने की संभावना काफी कम है।

ऐसा इसलिए होता है कि हम अपने दिमाग के रिफ्लेक्सिव (Reflexive) हिस्से का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं और रिफ्लेक्टिव (Reflective) हिस्से का इस्तेमाल कम करते हैं। हमारे दिमाग का रिफ्लेक्टिव हिस्सा गणना करता है और चीजों का विश्लेषण करता है और सोचता है। जबकि दिमाग का रिफ्लेक्सिव हिस्सा हमें महसूस कराता है और सहज ज्ञान से ज्यादा काम करता है। जब आपको दोबारा लॉटरी टिकट खरीदने की इच्छा होती है तो आपकी दिमाग का रिफ्लेक्सिव हिस्सा आपको ऐसा करने को कह रहा होता है। आपके दिमाग का रिफ्लेक्टिव हिस्सा आपको यह बता सकता है कि दोबारा लॉटरी जीतने की संभावना काफी कम है।

अब इक्विटी ऑप्शन ट्रेडिंग पर नजर डालते हैं। आपको पता है कि कॉल और पुट को खरीदने में रिस्क है, आपका ऑप्शन वर्थलेस होकर एक्सपायर हो सकता है। लेकिन फिर भी, अगर आपने एक बार इस तरह के ऑप्शन से बड़ी कमाई की है तो आप उनको लगातार खरीदने का फैसला कर सकते हैं। इस तरह का निवेश हमारे दिमाग के रिफ्लेक्सिव हिस्से की उपज है। ऑप्शन की ट्रेडिंग में एक और महत्वपूर्ण चीज है, जो अपनी भूमिका अदा करती है। हमें पता है कि अगर ऑप्शन में अंडरलाइंग स्टॉक या इंडेक्स पर हमारी जो राय है वह गलत साबित हो जाए तो हम अपनी पूरी पूंजी गंवा सकते हैं।

यह जानकारी ही कि हम अपनी पूंजी गंवा सकते हैं और जीत की संभावना कम होने पर भी आप जीतने की उम्मीद ही हमारे जीतने की उत्तेजना को और बढ़ाती है लॉटरी खरीदने में और निवेश में यही अंतर है कि लॉटरी भाग्य का खेल है जबकि हमें लगता है कि निवेश के लिए हमें जानकारी और कुशलता की जरूरत पड़ती है।“

  • लेख की समाप्ति

मैंने इस मॉड्यूल की शुरुआत में ही इस लेख को क्यों डाला इसकी एक वजह है। मेरे अपने विचार भी इस लेख से मिलते-जुलते हैं। और यह लेख उन विचारों को वित्तीय व्यवहार के संदर्भ में पेश करता है। मैंने जितने भी ऑप्शन ट्रेडर से बात की है चाहे वो अनुभवी हों या एकदम नए सारे ट्रेडर एक बात मानते हैं कि ऑप्शन का ट्रेड एक “हिट या मिस” ट्रेड होता है। उनका मानना है कि ऑप्शन का ट्रेड शुरू करना एक तरह के मनोरंजन या आनंद की अनुभूति देता है। ज्यादातर ट्रेडर यह नहीं समझते कि आनंद की ये अनुभूति कितनी खतरनाक हो सकती है।

कई ट्रेडर लगातार महीनों तक इस उम्मीद पर ऑप्शन खरीदते रहते हैं कि उनका निवेश दोगुना हो जाएगा। इस तरह के विचार के साथ ऑप्शन की ट्रेडिंग करने से आपका P&L बड़े खतरे में पड़ सकता है। सच बात तो यह है कि अगर आपको ऑप्शन में ट्रेड करना है तो आपको इसे सही तरीके से करना चाहिए और एक सही नीति अपनानी चाहिए। नहीं तो जुआ खेलने की आदत की तरह कभी भी आप अपनी पूरी पूंजी को डुबा सकते हैं। आपका ऑप्शन ट्रेडिंग का करियर बहुत छोटा साबित हो सकता है।

ऑप्शन ट्रेड के बारे में जो यह कहावत है कि “लिमिटेड रिस्क और अनलिमिटेड प्रॉफिट पोटेंशियल (Limited risk & unlimited profit potential)” यानी रिस्क सिर्फ एक सीमा तक और मुनाफे की संभावना असीमित (यानी बिना किसी सीमा के), यह कहावत चुपचाप आपके पूरे P&L को खत्म कर सकती है। ऑप्शन के नए ट्रेडर कई बार धीरे-धीरे करके अपनी पूरी पूंजी डूबा देते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि ऑप्शन की ट्रेडिंग को बिना किसी स्ट्रैटजी या रणनीति के करना एक खतरनाक दिल बहलाने का खेल साबित हो सकता है।

ध्यान रखें कि मैं यहां पर आपको डराने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। मैं केवल सही माहौल बना रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि ऑप्शन थ्योरी के पिछले मॉड्यूल में आपको समझ में आ गया होगा कि बाजार की दूसरी चीजों के मुकाबले ऑप्शन थ्योरी काफी ज्यादा वैज्ञानिक तरीकों पर आधारित है। इसीलिए इसको समझना थोड़ा मुश्किल होता है। लेकिन मेरी इस बात पर भरोसा कीजिए कि ऑप्शन ट्रेडिंग को समझने और इसमें बेहतर करने के लिए एक ही तरीका है कि आप अपने ऑप्शन ट्रेडिंग की रणनीति को सही तरीके से बनाएं जिसमें थ्योरी और प्रैक्टिस यानी सिद्धांत और व्यवहार का सही मिश्रण हो।

इस मॉड्यूल में मैं आपको कुछ लोकप्रिय ऑप्शन स्ट्रैटजी के बारे में बताऊंगा और हमेशा की तरह यह कोशिश करूंगा कि आपको उपयोगी जानकारी दी जाए। और ज्यादा थ्योरी यानी सिद्धांत से आपको बोर ना किया जाए।

जहां तक मुझे पता है कि करीब 475 तरीके की ऑप्शन स्ट्रैटजी हैं जो लोगों को पता हैं। इसके अलावा करीब 100 स्ट्रैटजी ऐसी होंगी जो कुछ जानकारों (जैसे ब्रोकर, बैंकर या ट्रेडर) ने अपने लिए विकसित की हैं और सिर्फ उन्हें पता हैं। तो क्या आपको यह सारी स्ट्रैटजी पता होनी चाहिए?

एक शब्द में इस सवाल का जवाब है नहीं। 

1.2 – आपको क्या जानना चाहिए?

आपके लिए ऑप्शन की कुछ ही स्ट्रैटजी को जानना जरूरी है। लेकिन आपको उन्हें बहुत अच्छे से जानना चाहिए। एक बार आपने इन स्ट्रैटजी को सीख लिया तो आपको सिर्फ यह देखना है कि बाजार की मौजूदा हालत में कौन सी स्ट्रैटजी सही साबित होगी।

इस बात को ध्यान में रखते हुए अब हम कुछ स्ट्रैटजी के बारे में चर्चा करते हैं – 

bullish-strategies
बुलिश स्ट्रेटेजीज

  1. बुल्ल कॉल स्प्रेड
  2. बुल्ल पुट स्प्रेड
  3. कॉल रेश्यो बैक स्प्रेड
  4. बेयर कॉल लैडर
  5. कॉल बटरफ्लाई
  6. सिंथेटिक कॉल
  7. स्ट्रैप्स
bearish-strategies
बेयरिश स्प्रेड्स

  1. बेयर कॉल स्प्रेड
  2. बेयर पुट स्प्रेड
  3. बुल्ल पुट लैडर
  4. पुट रेश्यो बैक स्प्रेड
  5. स्ट्रिप
  6. सिंथेटिक पुट
neutral-strategies
न्यूट्रल स्ट्रेटेजीज

  1. लॉन्ग & शार्ट स्ट्रडल्स
  2. लॉन्ग & शार्ट स्ट्रांगलेस
  3. लॉन्ग & शार्ट आयरन कंडर
  4. लॉन्ग & शार्ट बटरफ्लाई
  5. बॉक्स

ऊपर बताई गई स्ट्रैटजी के अलावा जिन और चीजों पर मैं चर्चा करूंगा, वह हैं – 

  1. मैक्स पेन फॉर ऑप्शन राइटिंग – Max Pain for option writing (कुछ महत्वपूर्ण बिंदु और प्रायोगिक उपयोग)
  2. डायनामिक डेल्टा हेजिंग पर आधारित वोलैटिलिटी आर्बिट्राज – Volatility Arbitrage employing Dynamic Delta hedging

मेरा इरादा यह है कि हर अध्याय में एक स्ट्रैटजी पर चर्चा की जाए जिससे आपको उस स्ट्रैटजी के बारे में सब कुछ समझ में आ जाए और किसी भी तरीके का संशय ना बचे। इसका मतलब है कि इस मॉड्यूल में करीब 16-20 अध्याय बनेंगे वैसे अध्याय छोटे ही रहेंगे। मैं हर स्ट्रैटजी की पृष्ठभूमि, उसके इस्तेमाल, पेऑफ, ब्रेक इवन और उसके इस्तेमाल के लिए एक्सपायरी के समय पर आधारित सही स्ट्राइक क्या हो इन सब पर चर्चा करूंगा। इसके अलावा मैं एक ऐसा एक्सेल डॉक्यूमेंट भी आपके साथ शेयर करूंगा जो तब आपके काम आएगा जब आप इस स्ट्रैटजी का इस्तेमाल करना चाहेंगे।

यहां पर यह ध्यान रखिए कि मैं ये सारी स्ट्रैटजी निफ़्टी इंडेक्स के बारे में बना रहा हूं लेकिन आप चाहे तो इनका इस्तेमाल किसी भी शेयर के लिए कर सकते हैं।

आगे बढ़ने के पहले एक महत्वपूर्ण बातयाद रखिए कि इनमें से कोई भी स्ट्रैटजी पैसा बनाने का 100% निश्चित और सही फार्मूला नहीं है। आप जानते ही हैं कि बाजार में कुछ भी 100% निश्चित नहीं होता। हमारा मकसद ये है कि हम यहां पर कुछ महत्वपूर्ण और सीधी स्ट्रेटजी पर चर्चा करें और अगर आप इनका सही इस्तेमाल करें तो आप पैसे बना सकें।

जैसे कि मान लीजिए कि आपके पास एक अच्छी कार है, आप अगर उसको अच्छे से चलाएंगे तो आप इसका इस्तेमाल अपने और अपने परिवार के आरामदायक सफर के लिए कर सकते हैं। लेकिन अगर आप इसको ठीक से ना चलाएं तो यह कार आपके लिए खतरनाक हो सकती है और आपके आसपास लोगों को भी नुकसान पहुंचा सकती है।

ठीक इसी तरीके से अगर आप इसका सही इस्तेमाल करें तो ये स्ट्रैटजी आपको पैसे कमा कर दे सकती है नहीं तो यह आपके पैसे को डुबा भी सकती है। मेरा काम यहां ये है कि मैं आपको स्ट्रैटजी के बारे में समझाउं (जैसे आपको कार चलाना सिखा रहा हूं)। मैं आपको वह स्थितियां भी बताऊंगा जिनमें इनका सबसे अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन इस स्ट्रैटजी का आपके लिए काम करना आपके हाथ में है। यह इस पर निर्भर करेगा कि आप कितने अनुशासित तरीके से काम करते हैं और बाजार की आपको कितनी अच्छी समझ है। लेकिन मेरा मानना है कि समय के साथ और जैसे-जैसे आप स्ट्रैटजी का इस्तेमाल ज्यादा करेंगे और बाजार को अच्छे से समझेंगे, आप इनके इस्तेमाल में बेहतर होते जाएंगे। 

तो अगले अध्याय से हम बुलिश स्ट्रैटजी पर काम शुरू करेंगे और सबसे पहले बुल कॉल स्प्रेड पर।

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