ट्रेडिंग के लिए ऑप्शन थ्योरी – Varsity by Zerodha https://zerodha.com/varsity/module/ट्रेडिंग-के-लिए-ऑप्शन-थ्य/ Markets, Trading, and Investing Simplified. Tue, 10 Aug 2021 05:40:53 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.5 फिजिकल सेटेलमेंट पर जानकारी https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%b2-%e0%a4%b8%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%95-2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%b2-%e0%a4%b8%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%95-2/#comments Mon, 27 Jul 2020 11:42:14 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=8572 24.1 – प्रस्तावना  अभी कुछ समय पहले तक भारत में इक्विटी फ्यूचर और ऑप्शन में जो ट्रेड होता था उसे कैश में सेटल किया जाता था। मतलब यह कि कॉन्ट्रैक्ट के एक्सपायर होने पर खरीदार और बिकवाल दोनों अपनी पोजीशन को कैश से सेटल करते थे और अंडरलाइंग सिक्योरिटी की डिलीवरी लेते या देते नहीं […]

The post फिजिकल सेटेलमेंट पर जानकारी appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
24.1 – प्रस्तावना 

अभी कुछ समय पहले तक भारत में इक्विटी फ्यूचर और ऑप्शन में जो ट्रेड होता था उसे कैश में सेटल किया जाता था। मतलब यह कि कॉन्ट्रैक्ट के एक्सपायर होने पर खरीदार और बिकवाल दोनों अपनी पोजीशन को कैश से सेटल करते थे और अंडरलाइंग सिक्योरिटी की डिलीवरी लेते या देते नहीं थे। 11 अप्रैल 2018 को सेबी (SEBI) ने एक सर्कुलर जारी किया जिसमें F&O के सभी कॉन्ट्रैक्ट के लिए स्टॉक की फिजिकल डिलीवरी की जरूरत को धीरे धीरे आवश्यक बनाने का ऐलान किया गया था। इसके जरिए ये कोशिश की गई कि बाजार में होने वाली सट्टेबाजी पर रोक लगाई जा सके और शेयरों में अतिरिक्त वोलैटिलिटी यानी उठा-पटक को रोका जा सके। 

24.2 – फिजिकल डिलीवरी क्या होती है?

इसका मतलब यह है कि F&O के सभी कॉन्ट्रैक्ट के खत्म होने पर उनकी अंडरलाइंग सिक्योरिटी की डिलीवरी लेनी या देनी होगी। अक्टूबर 2019 से सभी स्टॉक चाहे वो F&O के किसी भी कॉन्ट्रैक्ट में हो, उनके सेटलमेंट के लिए फिजिकल डिलीवरी को जरूरी कर दिया गया। 

इसको एक उदाहरण से समझते हैं, फिजिकल सेटलमेंट की शुरुआत के पहले, अगर आपने इस महीने एक्सपायर होने वाले SBI फ्यूचर्स का एक लॉट खरीदा था तो एक्सपायरी पर आपको कैश सेटेलमेंट करना होता और सेटलमेंट  कीमत के हिसाब से सिर्फ उतने रुपए आपके अकाउंट से निकल जाते या आ जाते थे। इस अध्याय में हमने इस बात पर चर्चा की है कि मार्क टू मार्केट सेटलमेंट कैसे काम करता है। लेकिन फिजिकल सेटलमेंट की परिस्थिति में अगर आपने अपनी पोजीशन को रोल ओवर या बंद नहीं किया तो फिर एक्सपायरी के समय आपको कॉन्ट्रैक्ट की कुल कीमत चुकानी होगी और बचे हुए शेयर आपके डीमैट एकाउंट में डिलीवर हो जाएंगे।

24.3 – फिजिकल सेटलमेंट को क्यों लागू किया गया?  

अगर कॉन्ट्रैक्ट को कैश में सेटल किया जा रहा है तो ट्रेडर को अपने अकाउंट में कॉन्ट्रैक्ट के लिए सिर्फ मार्जिन (स्पैन + एक्सपोजरSPAN +Exposure) को रखना जरूरी होता है। इस वजह से शॉर्ट करने वाले एक्सपायरी के आसपास बहुत ज्यादा शॉर्ट पोजीशन बनाते चले जाते हैं जिससे कीमत बहुत ज्यादा नीचे चली जाती है। जबकि फिजिकल सेटलमेंट में ट्रेडर्स को या तो स्टॉक बाजार से खरीदना होगा या फिर SLB मार्केट से उधार पर लेना होगा जिससे वह उस स्टॉक के डिलीवरी सामने वाले पार्टी को दे सके। ऐसा करने से कीमत में एक संतुलन आ जाता है और कीमत को तोड़ा मरोड़ा नहीं जा सकता। 

24.4 – पोजीशन सेटल कैसे की जाती है

एक्सपायरी पर अलग अलग F&O कॉन्ट्रैक्ट को इस तरह से सेटल किया जाता है 

  1. डिलीवरी लेना (आपके डीमैट अकाउंट में शेयर आ जाते हैं) –  लॉन्ग फ्यूचर्स, लॉन्ग ITM कॉल, और शॉर्ट ITM पुट 
  2. डिलीवरी देना (आपको स्टाक एक्सचेंज को डिलीवर करना पड़ता है) शॉर्ट फ्यूचर, शॉर्ट ITM कॉल और लॉन्ग ITM पुट 

केवल ITM ऑप्शन का फिजिकल सेटलमेंट होता है क्योंकि अगर ऑप्शन OTM एक्सपायर होता है तो वह वर्थलेस हो जाता है या नहीं उसकी कोई कीमत नहीं होती और इसलिए उसमें डिलीवरी की कोई जरूरत नहीं होती।

24.5 – पोजीशन का नेट निकालना 

*Definition of Netting. A method of reducing credit, settlement and other risks of financial contracts by aggregating (combining) two or more obligations to achieve a reduced net obligation.

अगर आपने एक ही एक्सपायरी वाले अंडरलाइंग में बहुत सारी पोजीशन ले रखी है जिससे कि आप एक हेज बना सकें, तो, फिर उस ट्रेड की दिशा के हिसाब से उनकी एक नेट पोजीशन निकाली जाएगी। 

1st चरण 2nd चरण
लॉन्ग फ्यूचर्स शार्ट ITM कॉल

लॉन्ग ITM पुट

शार्ट फ्यूचर्स लॉन्ग ITM कॉल 

शार्ट  ITM पुट

लॉन्ग ITM कॉल लॉन्ग ITM पुट 

शार्ट ITM कॉल

लॉन्ग ITM पुट लॉन्ग ITM कॉल

शार्ट  ITM पुट

शार्ट ITM कॉल लॉन्ग ITM कॉल

शार्ट ITM पुट

शार्ट ITM पुट शार्ट ITM कॉल

लॉन्ग ITM पुट

 

उदाहरण के लिए अगर आपने SBI का जून फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट लॉन्ग किया है और ITM पुट को 200 की स्ट्राइक पर लॉन्ग किया है (SBI की स्पॉट कीमत 180 है), तो फिर फ्यूचर लॉन्ग पोजीशन के लिए आपको डिलीवरी लेनी होगी और लॉन्ग पुट ऑप्शन के लिए डिलीवरी देनी होगी। आपके अकाउंट के इन दोनों सौदों की वजह से आपको किसी फिजीकल डिलीवरी की जरूरत नहीं होगी।

24.6 – मार्जिन

जब आप फ्यूचर के लिए या शॉर्ट ऑप्शन के लिए F&O सेगमेंट में ट्रेड कर रहे होते हैं, तो आपको अपने अकाउंट में सिर्फ मार्जिन की रकम रखनी पड़ती है। जब लॉन्ग ऑप्शन पोजीशन होती है तो आपको प्रीमियम देने के लिए उतनी रकम अकाउंट में रखनी पड़ती है। लेकिन फिजिकल सेटलमेंट में यह स्थिति बदल जाती है। आपको अपने कॉन्ट्रैक्ट की 100% कीमत अकाउंट में रखना होता है क्योंकि एक्सपायरी पर आपको कॉन्ट्रैक्ट की डिलीवरी लेनी पड़ती है या फिर स्टॉक की डिलीवरी देनी होती है। इसीलिए एक्सपायरी के आसपास ब्रोकर आपके लिए अतिरिक्त मार्जिन लगाते हैं। आप जेरोधा की फिजिकल सेटलमेंट पॉलिसी को यहां  here पर पढ़ सकते हैं।

The post फिजिकल सेटेलमेंट पर जानकारी appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%b2-%e0%a4%b8%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%95-2/feed/ 14
कॉल और पुट ऑप्शन का संक्षेप https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a5%87/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a5%87/#comments Tue, 04 Feb 2020 10:05:34 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6478 7.1 – ये ग्रॉफ याद रखें पिछले कुछ अध्यायों में हमने ऑप्शन के दोनों तरीकों- कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन- को जाना है। हमने इस पर आधारित 4 तरीके के ऑप्शन देखे हैं  कॉल ऑप्शन को खरीदना कॉल ऑप्शन को बेचना  पुट ऑप्शन को खरीदना पुट ऑप्शन को बेचना। इन 4 तरीकों के जरिए ट्रेडर […]

The post कॉल और पुट ऑप्शन का संक्षेप appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
7.1 – ये ग्रॉफ याद रखें

पिछले कुछ अध्यायों में हमने ऑप्शन के दोनों तरीकों- कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन- को जाना है। हमने इस पर आधारित 4 तरीके के ऑप्शन देखे हैं 

  1. कॉल ऑप्शन को खरीदना
  2. कॉल ऑप्शन को बेचना 
  3. पुट ऑप्शन को खरीदना
  4. पुट ऑप्शन को बेचना।

इन 4 तरीकों के जरिए ट्रेडर कई तरह की रणनीति बना सकता है और पैसे कमा सकता है। इन रणनीतियों को “ऑप्शन स्ट्रैटेजीस- Option Strategies” कहते हैं। मुनाफा कमाने के लिए आपको थोड़ा दिमाग लगाना होगा और ट्रेड के नए-नए मौके निकालने होंगे। हम रणनीतियों पर आगे बढ़ें इसके पहले एक बार जरूरी है कि हम इन चारों प्रकार के ट्रेड को फिर से समझ लें  इसलिए एक बार इनको संक्षेप में देखते हैं। सबसे पहले इन चारों ऑप्शन के पे ऑफ ग्राफ ( pay off diagrams) को देखते हैं-

इन चार ग्राफ को इस तरीके से एक साथ रखने से कुछ चीजें बेहतर समझ में आएंगी। देखते हैं कि वो कौन सी चीजें हैं-  

  1. सबसे पहले बाएं तरफ से शुरू करते हैं- आपको दिखेगा कि कॉल ऑप्शन को खरीदने का और कॉल ऑप्शन को बेचने का ग्राफ एक दूसरे के ऊपर नीचे लगाया क्या है। अगर आप ध्यान से देखेंगे तो आपको  दिखेगा कि यह दोनों एक दूसरे के शीशे में दिखने वाले प्रतिबिंब की तरह नजर आते हैं। जिससे पता चलता है कि ऑप्शन के बेचने वाले और ऑप्शन को खरीदने वाले के रिस्क और रिवॉर्ड एक दूसरे से विपरीत दिशा में चलते हैं। कॉल ऑप्शन के खरीदार का अधिकतम घाटा और कॉल ऑप्शन के बेचने वाले का अधिक मुनाफा बराबर होता है। साथ ही, कॉल ऑप्शन खरीदने वाले का मुनाफा असीमित है और इसी के प्रतिबिंब के तौर पर कॉल ऑप्शन को बेचने वाले का नुकसान भी असीमित है।
  2. हमने कॉल ऑप्शन खरीदने वाले और पुट ऑप्शन बेचने वाले का ग्रॉफ एक दूसरे के बगल में रखा है। इससे दिखता है कि दोनों ही स्थितियों में पैसे तब बनते हैं जब बाजार ऊपर जाता है। इसका मतलब यह है कि कॉल ऑप्शन तब तक नहीं खरीदना चाहिए और पुट ऑप्शन तब तक नहीं बेचना चाहिए जब तक आपको लगता हो कि बाजार नीचे जाएगा। क्योंकि ऐसी परिस्थिति में आप पैसे  कमाएंगे नहीं, गंवाएंगे। हालांकि यहां पर वोलैटिलिटी (volatility) यानी उठा-पटक की भी अपनी भूमिका होती है, लेकिन उस पर हम आगे चलते हुए चर्चा करेंगे अभी मैं वोलैटिलिटी की बात सिर्फ इसलिए कर रहा हूं क्योंकि इसकी वजह से ऑप्शन के प्रीमियम पर असर पड़ता है।
  3. दाएं तरफ, पुट ऑप्शन को बेचने वाले और पुट ऑप्शन के खरीदने वाले के ग्रॉफ एक दूसरे के ऊपर नीचे रखे गए हैं। ये दोनों भी एक दूसरे के प्रतिबिंब जैसे दिखते हैं। इसकी वजह से यह भी साफ होता है कि पुट ऑप्शन खरीदने वाले का अधिकतम नुकसान पुट ऑप्शन बेचने वाले के फायदे के बराबर ही होगा। पुट ऑप्शन को खरीदने वाले का असीमित फायदा हो सकता है और इसके प्रतिबिंब की तरह पुट ऑप्शन बेचने वाले को असीमित नुकसान हो सकता है।

नीचे दिए गए टेबल में भी हमने ऑप्शन की पोजीशन को संक्षेप में दिखाया है

बाजार पर राय ऑप्शन का प्रकार पोजीशन का नाम दूसरे विकल्प प्रीमियम
तेजी कॉल ऑप्शन (खरीद) लाँग कॉल फ्यूचर्स या स्पॉट में खरीद देना होगा
दिशाहीन बाजार या तेजी पुट ऑप्शन (बिक्री) शॉर्ट पुट फ्यूचर्स या स्पॉट में खरीद मिलेगा
दिशाहीन या मंदी कॉल ऑप्शन(बिक्री) शार्ट कॉल फ्यूचर्स बेचना मिलेगा
मंदी पुट ऑप्शन (खरीद) लाँग पुट फ्यूचर्स बेचना देना होगा

यहां यह बात याद रखनी चाहिए कि जब आप एक ऑप्शन खरीदते हैं तो आप एक लाँग पोजीशन-Long Position बनाते हैं। इस वजह से कॉल ऑप्शन के खरीदने को लाँग कॉल और पुट ऑप्शन के खरीदने को लाँग पुट पोजीशन कहते हैं। 

इसी तरीके से जब आप एक ऑप्शन बेचते हैं तो शॉर्ट पोजीशन- Short Position बनाते हैं। कॉल ऑप्शन को बेचने को शॉर्ट कॉल और पुट ऑप्शन के बेचने को शॉर्ट पुट पोजीशन कहते हैं।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि आप दो परिस्थितियों में ऑप्शन को खरीदते हैं 

  1. आप इसलिए खरीदते हैं क्योंकि आप एक नई फ्रेश ऑप्शन पोजीशन बनाना चाहते हैं, 
  2. आप अपनी पुरानी शॉर्ट पोजीशन को छोड़ना या बंद करना चाहते हैं, इसलिए ऑप्शन खरीदते हैं। 

अगर आप नई फ्रेश पोजीशन बना रहे हैं तभी उसको लाँग ऑप्शन कहते हैं। अगर आप अपनी पुरानी शार्ट पोजीशन को बंद करने/छोड़ने के लिए ऑप्शन खरीद रहे हैं तो उसको स्क्वेयर ऑफ पोजीशन – Square Off Position कहते हैं। 

इसी तरीके से आप दो परिस्थितियों में ऑप्शन बेचते हैं

  1. आप एक नई शॉर्ट पोजीशन बनाने के लिए ऑप्शन बेचते हैं
  2.  आप अपनी पुरानी लाँग पोजीशन को बंद करने या छोड़ने के लिए शॉर्ट ऑप्शन को बेचते हैं। 

यहां भी शॉर्ट ऑप्शन तभी कहा जाता है जब आप नई बेचने की पोजीशन बनाते हैं। अगर आप अपनी पुरानी लाँग पोजीशन को छोड़ने के लिए या बंद करने के लिए ऑप्शन बेच रहे हैं तो इसको स्क्वेयर ऑफ पोजीशन कहते हैं

7.2- ऑप्शन खरीदार: संक्षेप

अब तक आपको कॉल और पुट ऑप्शन के बारे में बेचने वाले और खरीदने वाले के नजरिए से सब कुछ पता चल चुका है। लेकिन मुझे लगता है कि इनमें से कुछ महत्वपूर्ण चीजें फिर से दोहरा लेनी चाहिए। 

किसी भी ऑप्शन को खरीदना तब मायने रखता है जब आपको उम्मीद होती कि बाजार एक निश्चित दिशा मे मजबूती के साथ बढ़ेगा। किसी भी ऑप्शन के खरीदार के मुनाफा कमाने के लिए यह जरूरी है कि बाजार और उसके स्ट्राइक प्राइस में दूरी बढ़ती जाए।। इसीलिए बाजार में पैसे कमाने के लिए सबसे जरूरी चीज यह है कि आप सही स्ट्राइक प्राइस को चुनें। यह काम कैसे किया जाता है इसको हम आगे सीखेंगे। लेकिन अभी के लिए आपको कुछ महत्वपूर्ण चीजें याद रखनी चाहिए-

  • एक्सपायरी पर लाँग कॉल का P&L निकालने के लिए  फॉर्मूला है: P&L = Max [0,(स्पॉट कीमत – स्ट्राइक कीमत)] – दिया गया प्रीमियम

P&L = Max [0, (Spot Price – Strike Price)] – Premium Paid

  • एक्सपायरी पर लाँग पुट का P&L निकालने के लिए फॉर्मूला है: P&L = [Max (0,स्ट्राइक कीमत– स्पॉट कीमत)] – दिया गया प्रीमियम

P&L = [Max (0, Strike Price – Spot Price)] – Premium Paid

  • ऊपर के फार्मूले तभी काम आते हैं जबकि ट्रेडर अपने लाँग ऑप्शन को एक्सपायरी तक होल्ड करें। 
  • पिछले अध्याय में हमने इंट्रिन्सिक वैल्यू निकालने का जो फार्मूला देखा था वो भी एक्सपायरी के दिन ही काम करता है। यह फार्मूला सीरीज के दौरान काम नहीं करता है। 
  • जब ट्रेडर अपनी पोजीशन को एक्सपायरी के पहले स्क्वेयर ऑफ करता है तो P&L की गणना बदल जाती है। 
  • ऑप्शन के खरीदार के लिए रिस्क सीमित होता है उतना ही जितना कि उसने प्रीमियम दिया है लेकिन उसे मुनाफा असीमित हो सकता है

7.3- ऑप्शन बिकवाल (बेचने वाला): संक्षेप

ऑप्शन (कॉल या पुट दोनों) बेचने वाले को ऑप्शन राइटर कहते हैं। ऑप्शन को बेचने और खरीदने वालों के P&L एक दूसरे के एकदम विपरीत होते हैं। ऑप्शन को बेचने का फायदा तभी होता है जब बाजार या तो अपनी जगह पर ही रहे और या तो वह आपकी स्ट्राइक कीमत से नीचे चला जाए (कॉल ऑप्शन के लिए) या स्ट्राइक कीमत के ऊपर चला जाए (पुट ऑप्शन के लिए) 

आपको यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बाजार में ऑप्शन बेचने वाले के लिए फायदे की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि ऑप्शन बेचने वाले को मुनाफा कमाने के लिए बाजार में कई बार ज्यादा कोई ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती है अगर बाजार एक जगह पर बना भी रहे तो भी ऑप्शन बेचने वाले को मुनाफा हो सकता है जबकि ऑप्शन खरीदने वाले के मुनाफा कमाने के लिए बाजार को एक निश्चित दिशा में बढ़ना जरूरी है। हांलाकि ऑप्शन बेचने वाले के मुनाफे लिए भी कई बार ऐसा होना जरूरी होता है। इस तरह से बेचने वाले को मुनाफा दो स्थितियों में होता है जबकि खरीदने वाले को सिर्फ एक स्थिति में। लेकिन सिर्फ इस वजह से ऑप्शन को बेचना अच्छी रणनीति नहीं है।

ऑप्शन को बेचने के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें जो आपको याद रखनी चाहिए-

  1. एक्सपायरी पर शॉर्ट कॉल ऑप्शन का P&L निकालने के लिए फॉर्मूला है: P&L = प्राप्त प्रीमियम -Max[0,(स्पॉट कीमत– स्ट्राइक कीमत)]  

 P&L = Premium Received – Max [0, (Spot Price – Strike Price)]

  1. एक्सपायरी पर शॉर्ट पुट ऑप्शन का P&L निकालने के लिए फॉर्मूला है: P&L = प्राप्त प्रीमियम -Max (0, स्ट्राइक कीमत – स्पॉट कीमत)] 

P&L = Premium Received – Max (0, Strike Price – Spot Price)

  1. ये फार्मूले तभी लागू होते हैं जब ट्रेडर अपनी पोजीशन को एक्सपायरी तक होल्ड करें। 
  2. जब आप ऑप्शन बेचते हैं तो आपके ट्रेडिंग अकाउंट से मार्जिन ब्लॉक हो जाता है 
  3. ऑप्शन बेचने वाले के लिए रिस्क असीमित होता है लेकिन मुनाफे की संभावना सीमित होती है (मिलने वाले प्रीमियम के बराबर) 

इसकि मतलब है कि ऑप्शन राइटर की कमाई छोटी होती है लेकिन जब नुकसान होता है तो काफी ज्यादा हो जाता है। 

अब मुझे लगता है कि आपके लिए आप कॉल और पुट ऑप्शन कैसे काम करते हैं इसके बारे में काफी कुछ समझ चुके हैं। अब हम इनसे जुड़ी बहुत सारी दूसरी चीजों जैसे ऑप्शन के प्रीमियम ऑप्शन की प्राइसिंग ऑप्शन ग्रीक्स (option Greeks), स्ट्राइक कीमत के बारे में जानेंगे। उसके बाद आप कॉल और पुट ऑप्शन को नए तरीके से देख सकेंगे और ट्रेड करना सीख सकेंगे।

7.4 – प्रीमियम से जुड़ी कुछ बातें

इस चित्र पर नजर डालिए –

यह चित्र दिखाता है कि BHEL का प्रीमियम 30 अप्रैल 2015 को इंट्राडे में किस तरीके से रहा है। यह प्रीमियम 230 स्ट्राइक कॉल के लिए है और यह यूरोपियन कॉल ऑप्शन पर आधारित है। इस जानकारी को लाल रंग के बॉक्स से हाईलाइट किया गया है। इसके नीचे मैंने नीले रंग के बॉक्स से कीमत की जानकारी को हाईलाइट किया है। आपको दिखेगा कि 230 CE का प्रीमियम ₹2.25 पैसे पर खुला, ₹8 तक ऊपर गया दिन के अंत में ₹4.05 पर बंद हुआ। 

इस तरह से इस पूरे दिन में प्रीमियम में ₹2.25 से ₹8 तक 350% का उतार चढाव हुआ। प्रीमियम बंद हुआ 180% ऊपर। बाजार में इस तरह की उठापटक आपको चौंका सकती है लेकिन ऑप्शन बाजार में इस तरह की उठापटक आम बात है।

जरा सोचिए इस भारी उठापटक में अगर आप केवल 2 प्वाइंट का भी फायदा उठा सकें तो आप इस ऑप्शन ट्रेड से आपको ₹2000 का मुनाफा हो सकता है, क्योंकि इस स्टॉक का लॉट साइज हजार का है। वास्तव में ऑप्शन सौदों  में ऐसा ही होता है, ट्रेडर आमतौर पर केवल प्रीमियम के लिए ही ट्रेड करते हैं। आमतौर पर कोई भी ट्रेडर ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को एक्सपायरी तक होल्ड नहीं करता। ज्यादातर कारोबारी सौदा करने के कुछ देर बाद ही अपनी पोजीशन को स्क्वेयर ऑफ कर देते हैं और प्रीमियम में  बदलाव का फायदा उठा लेते हैं। 

आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि ऑप्शन सौदों में 100% तक की कमाई हो सकती है। लेकिन ज्यादा लालच में मत आइए। लगातार ऐसी कमाई करने के लिए आपको ऑप्शन को बहुत ही ज्यादा अच्छे तरीके से समझना होगा। इस चित्र पर नजर डालिए-

ये आइडिया सेल्यूलर लिमिटेड का ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट है, जिसकी स्ट्राइक प्राइस 190 की है और एक्सपायरी 30 अप्रैल 2015 की है। यह यूरोपियन कॉल ऑप्शन है। इस सारी जानकारी को नीले रंग के बक्से में हाईलाइट किया गया है। इसके नीचे आप OHLC डेटा को देख सकते हैं जो कि काफी ज्यादा रोचक है। 

190 CE का प्रीमियम ₹8.25 पर खुला और इसने ₹0.30 का लो बनाया। मान लीजिए यहां भी आपने सिर्फ 2 प्वाइंट उतार-चढ़ाव का फायदा उठाया तो आप ₹4000 का मुनाफा कमा सकते थे क्योंकि यहां लॉट साइज 2000 का है। दिन के लिए ₹4000 कम नहीं होते। 

मैं सिर्फ यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि ऑप्शन में ट्रेड करने वाले ट्रेडर आमतौर पर प्रीमियम के इस उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने के लिए ही ट्रेड करते हैं। वह एक्सपायरी का इंतजार नहीं करते। लेकिन मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ऑप्शन को एक्सपायरी तक होल्ड नहीं करना चाहिए। मैं खुद कई बार ऑप्शन को एक्सपायरी तक होल्ड करता हूं। आमतौर पर ऑप्शन को बेचने वाले ऑप्शन को एक्सपायरी तक होल्ड करते हैं जबकि खरीदने वाले आमतौर पर ऐसा नहीं करते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि अगर ऑप्शन बेचने वाले ने ₹8 के प्रीमियम के लिए ऑप्शन बेचा है तो उसे अधिकतम प्रीमियम यानी ₹8 तभी मिलेगा जब वह ऑप्शन को एक्सपायरी तक होल्ड करे। 

अगर यह सच है कि ट्रेडर केवल प्रीमियम के लिए ही ऑप्शन को खरीदते हैं तो आप कुछ सवाल पूछ सकते हैं। प्रीमियम इतना ज्यादा ऊपर नीचे क्यों होते हैं? प्रीमियम  बदलता क्यों है? मैं प्रीमियम में बदलाव को पहले से कैसे जान सकता हूं? किसी ऑप्शन का प्रीमियम कौन तय करता है? 

आपकी यह सारे सवाल सही हैं और अगर इन सवालों के जवाब आप ठीक से समझ लें तो आप ऑप्शन ट्रेडिंग को समझ जाएंगे और आप ऑप्शन को अच्छे से ट्रेड कर सकेंगे। 

अभी आप ये जान लीजिए कि इन सवालों का जवाब चार ऐसी ताकतों में छुपा है जो एक साथ ऑप्शन के प्रीमियम के ऊपर असर डालती हैं जिसकी वजह से ऑप्शन ऊपर या नीचे होता है। इसको समझने के लिए आप समुद्र में नाव को उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। नाव (इसे ऑप्शन का प्रीमियम जैसा मान लीजिए) किस रफ्तार से चलेगी यह बहुत सारी चीजें पर निर्भर करता है- जैसे हवा की गति क्या है, पानी कितना गहरा है, पानी का घनत्व क्या है, पानी का दबाव क्या है और उस नाव के इंजन की ताकत कितनी है? इनमें से कुछ चीजें जहाज की गति को बढाती हैं और कुछ जहाज की गति को कम करती हैं। इन्हीं ताकतों के आपसी बैलेंस से यह तय होता है कि नाव की सही गति क्या होगी। 

इसी तरीके से ऑप्शन का प्रीमियम कुछ  ताकतों पर निर्भर करता है जिन्हें ऑप्शन ग्रीक्स (Option Greeks) कहते हैं। इनमें से कुछ ऑप्शन ग्रीक्स ऑप्शन की प्रीमियम को बढ़ाने की कोशिश करते हैं जबकि कुछ प्रीमियम को घटाने की। एक फार्मूला जिसे “ब्लैक एंड स्कोल्स ऑप्शन प्राइसिंग फार्मूला- Black & Scholes Option Pricing Formula” कहते हैं इन्हीं ताकतों के आधार पर बनाया गया है। ये फार्मूला इन ताकतों को एक संख्या के  रूप में दिखाता है और वही संख्या ऑप्शन का प्रीमियम होता है। 

यहाँ ये जानना भी जरूरी है कि ऑप्शन ग्रीक्स ऑप्शन के प्रीमियम को तय करते हैं लेकिन ऑप्शन ग्रीक्स खुद बाजार की उठापटक से बदलते हैं। बाजार जैसे-जैसे हर मिनट ऊपर नीचे होता है उसी के साथ ऑप्शन ग्रीक्स  भी बदलते रहते हैं और इसी वजह से ऑप्शन का प्रीमियम भी बदलता रहता है। 

इस मॉड्यूल में आगे हम इन सारी चीजों को अच्छे से समझाने की कोशिश करेंगे और यह जानेंगे कि यह ताकतें किस तरह से काम करती हैं। किस तरह से बाजार ऑप्शन ग्रीक्स को प्रभावित करते हैं ऑप्शन ग्रीक्स कैसे  प्रीमियम को प्रभावित करते हैं। 

यानी हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि-

  1. ऑप्शन ग्रीक्स किस तरीके से प्रीमियम को प्रभावित करते हैं
  2. ऑप्शन ग्रीक्स और उनके प्रभाव की वजह से प्रीमियम की रकम कैसे तय होती है 
  3. ग्रीक्स और कीमत के आधार पर हम यह देखेंगे कि सही स्ट्राइक प्राइस किस तरीके से चुना जाए

ऑप्शन ग्रीक्स को समझने के लिए हमें एक और चीज को समझना होगा जिसे  मनीनेस ऑफ ऐन ऑप्शन (Moneyness of an Option) कहते हैं। इस पर हम अगले अध्याय में नजर डालेंगे। 

हो सकता है कि अगले कुछ अध्याय आपको कठिन लगें। लेकिन हम कोशिश करेंगे कि इनको आपके लिए सरल बनाया जा सके। लेकिन इसके लिए आपने जो कुछ सीखा है उसको आपको बहुत अच्छे से ध्यान में रखना होगा।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. कॉल ऑप्शन की खरीद या पुट ऑप्शन की बिक्री तभी करें जब आपको यह उम्मीद हो कि बाजार ऊपर जाएगा।
  2. एक पुट ऑप्शन की खरीद या कॉल ऑप्शन की बिक्री तभी करें जब आपको उम्मीद हो कि बाजार नीचे जाएगा। 
  3. ऑप्शन को खरीदने वाले का मुनाफा असीमित होता है जबकि उसका रिस्क सीमित होता है (उतना ही जितना उसने प्रीमियम दिया है)।
  4. ऑप्शन को बेचने वाले का रिस्क असीमित होता है और उसको होने वाला मुनाफा सीमित (जितना उसको प्रीमियम मिला है)।
  5. ज्यादातर ट्रेडर ऑप्शन में ट्रेड केवल प्रीमियम में बदलाव से मुनाफा कमाने के लिए करते हैं।
  6. ऑप्शन प्रीमियम में उतार-चढ़ाव बहुत ज्यादा होता है और एक ऑप्शन ट्रेडर के तौर पर आप इसे हर दिन होता देख सकते हैं।
  7. प्रीमियम ऑप्शन ग्रीक्स के चार तत्वों के आधार पर तय होता है।
  8. ब्लैक एंड स्कोल्स ऑप्शन प्राइसिंग फार्मूला इन्हीं चार तत्वों पर आधारित होता है।
  9. ऑप्शन ग्रीक्स में बदलाव बाजार के उतार चढाव की वजह से होता है।

The post कॉल और पुट ऑप्शन का संक्षेप appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a5%87/feed/ 78 Image1_Payoff M5-Ch7-title1 M5-Ch7-title2 Image 2_BHEL Image 3_Idea option chain
पुट ऑप्शन को बेचना https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%9a%e0%a4%a8%e0%a4%be/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%9a%e0%a4%a8%e0%a4%be/#comments Tue, 04 Feb 2020 10:03:25 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6476 6.1 – क्यों बेचना चाहिए पुट ऑप्शन हम यह बात पहले भी कर चुके हैं कि ऑप्शन बेचने वाला और ऑप्शन खरीदने वाला एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बाजार को लेकर उन दोनों के विचार एक दूसरे से एकदम विपरीत होते हैं। इसलिए अगर पुट ऑप्शन को खरीदने वाला बाजार को लेकर मंदी […]

The post पुट ऑप्शन को बेचना appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
6.1 – क्यों बेचना चाहिए पुट ऑप्शन

हम यह बात पहले भी कर चुके हैं कि ऑप्शन बेचने वाला और ऑप्शन खरीदने वाला एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बाजार को लेकर उन दोनों के विचार एक दूसरे से एकदम विपरीत होते हैं। इसलिए अगर पुट ऑप्शन को खरीदने वाला बाजार को लेकर मंदी में है तो पुट ऑप्शन को बेचने वाला बाजार पर तेजी की राय रखेगा। हमने पिछले अध्याय में बैंक निफ़्टी के चार्ट को देखा था हम उसी चार्ट को फिर से देखते हैं लेकिन इस बार इस चार्ट को बेचने वाले के नजरिए से देखेंगे।

पुट ऑप्शन को बेचने वाले की सोच कुछ इस तरह की होती है – 

  1. बैंक निफ़्टी 18417 पर ट्रेड कर रहा है।
  2. दो दिन पहले बैंक निफ्टी ने 18550 के अपने रेजिस्टेंस को छुआ है (रेजिस्टेंस लेवल को यहां हरे रंग की लाइन से हाईलाइट किया गया है)।
  3. 18550 को यहां पर रजिस्टेंस के तौर पर इसलिए माना गया है क्योंकि यहां पर एक ऐसा प्राइस एक्शन जोन बना है जो लंबे समय तक फैला हुआ है। (जो लोग रेजिस्टेंस लेवल के बारे में पढना चाहते हैं वो यहां पढ़ सकते हैं)।
  4. मैंने प्राइस एक्शन जोन को नीले रंग के बॉक्स से हाईलाइट किया है।
  5. बैंक निफ्टी में रजिस्टेंस को लगातार तीन बार तोड़ने की कोशिश की है। 
  6. ऐसे में रेजिस्टेंस टूटने के लिए अब केवल एक और धक्के की जरूरत है (किसी बड़े बैंक के अच्छे नतीजे आने से ऐसा हो सकता है HDFC ICICI SBI इन सब के नतीजे जल्दी आने वाले हैं)।
  7. तेजी का एक अच्छा संकेत और रेजिस्टेंस लेवल के ऊपर की चाल मिल कर बैंक निफ़्टी को तेजी की ओर ले जा सकते हैं।
  8. ऐसे मैं पुट ऑप्शन को राइट (write) करना यानी बेचना और प्रीमियम पाना एक अच्छी रणनीति हो सकती है।

आप यहां सवाल कर सकते हैं कि अगर रूख तेजी का है तो फिर पुट ऑप्शन को बेचने की क्या जरूरत है क्यों नहीं कॉल ऑप्शन को खरीद लिया जाए?

कॉल ऑप्शन खरीदा जाए या पुट ऑप्शन को बेचा जाए इसका फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रीमियम क्या चल रहा है? यह फैसला करते समय अगर कॉल ऑप्शन का प्रीमियम कम है तो तो कॉल ऑप्शन खरीदना बेहतर होगा लेकिन अगर पुट ऑप्शन को बेचने पर ज्यादा प्रीमियम मिल रहा है तो पुट ऑप्शन को बेचना अच्छा हो सकता है। लेकिन कॉल ऑप्शन का प्रीमियम ज्यादा अच्छा है या पुट ऑप्शन का प्रीमियम ज्यादा अच्छा है यह जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि ऑप्शन की प्राइसिंग कैसे होती है? इसलिए इस मॉड्यूल में आगे हम ऑप्शन प्राइसिंग को भी समझेंगे। 

अभी आप यह मान लीजिए कि ट्रेडर ने फैसला किया है कि वह 18400 के पुट ऑप्शन को बेचेगा और ₹315 का प्रीमियम लेगा। तो एक बार फिर से हम उसके P&L के बर्ताव को देखते हैं और यह समझते हैं कि हम ऐसे कौन से संकेत निकाल सकते हैं जो सब जगह लागू हो सकें यानी हम सामान्यीकरण कर सकें। 

यहां याद रखिए कि जब भी आप ऑप्शन को बेचते हैं चाहे  कॉल ऑप्शन हो या पुट ऑप्शन तो आपके अकाउंट से मार्जिन ब्लॉक हो जाता है। इसको हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं आप इसको यहां दोबारा पढ़ सकते हैं।

6.2- पुट ऑप्शन बेचने वाले के P&L की चाल

याद रखिए कि ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू की गणना पुट ऑप्शन के खरीदने और पुट ऑप्शन के बेचने पर एक समान ही रहती है। लेकिन P&L की गणना बदलती है। हम यहां पर इसी पर चर्चा करेंगे। देखते हैं कि एक्सपायरी के दिन अलग-अलग स्थितियों में P&L किस तरह से बदलता है 

क्रम सं. स्पॉट में संभावित कीमत प्राप्त प्रीमियम इंट्रिन्सिक वैल्यू (IV) P&L (प्रीमियम – IV)
01 16195 + 315 18400 – 16195 = 2205 315 – 2205 = – 1890
02 16510 + 315 18400 – 16510 = 1890 315 – 1890 = – 1575
03 16825 + 315 18400 – 16825 = 1575 315 – 1575 = – 1260
04 17140 + 315 18400 – 17140 = 1260 315 – 1260 = – 945
05 17455 + 315 18400 – 17455 = 945 315 – 945 = – 630
06 17770 + 315 18400 – 17770 = 630 315 – 630 = – 315
07 18085 + 315 18400 – 18085 = 315 315 – 315 = 0
08 18400 + 315 18400 – 18400 = 0 315 – 0 = + 315
09 18715 + 315 18400 – 18715 = 0 315 – 0 = + 315
10 19030 + 315 18400 – 19030 = 0 315 – 0 = + 315
11 19345 + 315 18400 – 19345 = 0 315 – 0 = + 315
12 19660 + 315 18400 – 19660 = 0 315 – 0 = + 315

 

मुझे लगता है कि अब P&L की चाल के आधार पर आप उन संकेतों को निकाल सकेंगे जो सभी स्थितियों पर समान रूप से लागू हों। ऐसा हम लगातार तीन अध्यायों से करते आ रहे हैं। यहां पर वह सामान्य संकेत या सामान्यीकरण इस तरह से हैं-

  1. पुट ऑप्शन को बेचने के पीछे इरादा यह होता है कि प्रीमियम लिया पाया जाए और बाजार में तेजी का फायदा उठाया जाए। यहां पर हम यह भी देख सकते हैं कि जब तक कि स्पॉट की कीमत स्ट्राइक कीमत के ऊपर रहे तब तक मुनाफा प्रीमियम के बराबर यानी ₹315 ही रहता है।

 सामान्यीकरण 1 – पुट ऑप्शन को बेचने वाला तब तक फायदे में रहता है जब तक स्पॉट की कीमत स्ट्राइक कीमत से ऊपर हो। दूसरे शब्दों में, पुट ऑप्शन तब बेचना चाहिए जब आप बाजार के बारे में तेजी की राय रखते हो यानी आपको लगता हो कि अंडरलाइंग की कीमत अब और नहीं गिरेगी। 

  1. जब स्पॉट की कीमत स्ट्राइक कीमत से नीचे चली जाती है तो यह पोजीशन घाटा देने लगती है। यहां साफ है कि घाटे की कोई सीमा नहीं है। आपको कितना भी घाटा हो सकता है यानी घाटा असीमित होता है।

सामान्यीकरण 2-  जब स्पॉट कीमत स्ट्राइक से नीचे जाने लगे तो पुट ऑप्शन के बेचने वाले का घाटा असीमित हो सकता है। 

अब एक फार्मूले पर नजर डालते हैं जिसके आधार पर आप पुट ऑप्शन पोजीशन का P&L निकाल सकते हैं। यहां ये याद रखिए कि यह फार्मूला तभी काम करता है जब आप पोजीशन एक्सपायरी तक होल्ड करें।

P&L =प्राप्त प्रीमियम – [Max (0, स्ट्राइक कीमतस्पॉट कीमत)]

P&L = Premium Recieved – [Max (0, Strike Price – Spot Price)]

 दो अलग-अलग कीमतों के लिए इस फार्मूले को लगाकर देखते हैं कि यह काम करता है या नहीं

  • 16510
  • 19660

@16510 (स्पॉट स्ट्राइक से नीचे, पोजीशन में नुकसान होना चाहिए)

= 315 – Max (0, 18400 -16510)

= 315 – 1890

= – 1575

@19660 (स्पॉट स्ट्राइक से ऊपर , पोजीशन में फायदा होना चाहिए, प्राप्त प्रीमियम से अधिक नहीं )

= 315 – Max (0, 18400 – 19660)

= 315 – Max (0, -1260)

=  315

साफ है कि दोनों परिणाम उम्मीद के मुताबिक ही हैं।

पुट ऑप्शन के बेचने वाले के लिए ब्रेकडाउन प्वाइंट वह होता है जहां पर पुट ऑप्शन को ना तो घाटा हो रहा होता है और ना ही मुनाफा हो रहा होता है लेकिन इस जगह तक वह अपना सारा प्रीमियम गंवा चुका होता है

ब्रेकडॉउन प्वाइंट = स्ट्राइक कीमत  – प्राप्त प्रीमियम

बैंक निफ्टी के लिए ब्रेकडॉउनप्वाइंट

= 18400 – 315

= 18085

तो ब्रेकडॉउन प्वाइंट की परिभाषा के मुताबिक 18085 पर पुट ऑप्शन बेचने वाला कोई पैसे नहीं बना रहा होता और ना ही उसको कोई घाटा हो रहा होता है। इसका मतलब यह है कि इस जगह पर उसने अपना प्रीमियम लिया था वह प्रीमियम को गंवा चुका है। ये सही है या नहीं इसको देखने के लिए एक बार हम P&L फार्मूला का इस्तेमाल करते हैं और ब्रेकडाउन प्वाइंट पर P&L को निकालते हैं

= 315 – Max (0, 18400 – 18085)

= 315 – Max (0, 315)

= 315 – 315

=0

ये परिणाम ब्रेकडॉउन प्वाइंट के मुताबिक ही है।

6.3- पुट ऑप्शन बेचने वाले का पे ऑफ (Put Option Seller’s Pay Off)

अगर हम P&L के बिंदुओं को एक लाइन से जोड़ें और एक लाइन चार्ट बनाएं जैसा कि नीचे के टेबल में दिखाया गया है तो हम यह देख सकते हैं कि हमने जो सामान्यीकरण बनाया है वह पुट ऑप्शन के बेचने वाले के लिए सही दिखाई दे रहा है। नीचे देखिए:

ऊपर के लाइन चार्ट से आपको कुछ बातें सीखने को मिलेंगी, याद रखिए कि यहां स्ट्राइक प्राइस 18400 है।

  1. ऑप्शन को बेचने वाले को नुकसान तब होता है जब स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत से नीचे चली जाती है(18400 या उससे नीचे)।
  2. सैद्धांतिक तौर पर यह नुकसान असीमित होता है (और रिस्क भी)।
  3. ऑप्शन बेचने वाले को फायदा तब होता है जब स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत से ऊपर चली जाती है।
  4. उसको होने वाला मुनाफा उतने तक ही सीमित होता है जितना उसको प्रीमियम मिला है।
  5. ब्रेकडाउन कीमत पर पुट ऑप्शन बेचने वाला ना तो पैसे बना रहा होता है और ना ही उसको पैसे का नुकसान हो रहा होता है हालांकि इस स्थिति तक पहुंचने पर वह अपना सारा प्रीमियम गंवा चुका होता है। 
  6. आप चार्ट में भी देख सकते हैं कि ब्रेकइवन प्वाइंट तक पहुंचने के बाद P&L ग्राफ नीचे जाने लगता है। मुनाफे यानी पॉजिटिव स्थिति से ग्राफ न्यूट्रल पर जाता है और उसके बाद यह नीचे नुकसान की तरफ बढ़ने लगता है। 

उम्मीद है कि इन बातों के साथ अब आपको पुट ऑप्शन बेचने के बारे में काफी कुछ जानकारी मिल चुकी है। पिछले कुछ अध्यायों में हमने कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन दोनों को बेचने और खरीदने वाले के नजरिए से देखा है। अगले अध्याय में हम इन सब को एक साथ संक्षेप में देखेंगे और उसके बाद आगे दूसरे सिद्धांतों और मुद्दों पर बात करेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. आप ऑप्शन तब बेचते हैं जब आप बाजार को लेकर तेजी का नजरिया रखते हों और आपको भरोसा होता है कि स्टॉक की कीमत अब नीचे नहीं जाएगी।
  2. जब आप बाजार या अंडरलाइंग को लेकर तेजी की राय रखते हैं तो या तो आप कॉल ऑप्शन खरीद सकते हैं या पुट ऑप्शन बेच सकते हैं यह फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रीमियम कहां पर ज्यादा है।
  3. ऑप्शन प्रीमियम प्राइसिंग और ऑप्शन ग्रीक्स (Greeks) यह बताते हैं कि प्रीमियम कितने ज्यादा लुभावने हैं।
  4. पुट ऑप्शन को बेचने वाले और पुट ऑप्शन को खरीदने वाले का P&L एक दूसरे से एकदम विपरीत बनता है। 
  5. जब पुट ऑप्शन बेचते हैं तो आपको प्रीमियम मिलता है।
  6. पुट ऑप्शन बेचने पर आपको मार्जिन जमा करना पड़ता है। 
  7. पुट ऑप्शन बेचने पर आपका मुनाफा सीमित होता है, उतना ही जितना आपको प्रीमियम मिला है लेकिन आपका नुकसान का नुकसान असीमित हो सकता है।
  8. P&L = प्राप्त प्रीमियम – Max[0,(स्ट्राइक कीमत -स्पाट कीमत)]/ P&L = Premium received – Max [0, (Strike Price – Spot Price)]
  9. ब्रेकडॉउन प्वाइंट = स्ट्राइक कीमत – प्राप्त प्रीमियम

The post पुट ऑप्शन को बेचना appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%9a%e0%a4%a8%e0%a4%be/feed/ 35 Image 1_ Bank Nifty M5-Ch6-title Image 3_Payoff
पुट आप्शन की खरीदारी https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%86%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%96%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%86%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%96%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80/#comments Tue, 04 Feb 2020 10:02:26 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6473 5.1 – दिशा की सही समझ मुझे उम्मीद है कि अब तक आपको कॉल ऑप्शन की खरीदने और बेचने के बारे में सारी बातें समझ में आ गई होंगी। अगर आपको कॉल ऑप्शन अच्छे से समझ में आने लगा है, तो आपके लिए पुट ऑप्शन को समझना आसान होगा। पुट ऑप्शन के खरीदार और कॉल […]

The post पुट आप्शन की खरीदारी appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
5.1 – दिशा की सही समझ

मुझे उम्मीद है कि अब तक आपको कॉल ऑप्शन की खरीदने और बेचने के बारे में सारी बातें समझ में आ गई होंगी। अगर आपको कॉल ऑप्शन अच्छे से समझ में आने लगा है, तो आपके लिए पुट ऑप्शन को समझना आसान होगा। पुट ऑप्शन के खरीदार और कॉल ऑप्शन के खरीदार में सिर्फ एक ही अंतर होता है पुट ऑप्शन का खरीदार बाजार में मंदी की राय रखता है जबकि कॉल ऑप्शन का खरीदार बाजार में तेजी की राय रखता है। 

पुट ऑप्शन का खरीदार बाजार में इस बात पर दांव लगाता है कि बाजार में स्टॉक की कीमतें नीचे गिरेंगी और इसी बात का फायदा उठाने के लिए वह पुट ऑप्शन एग्रीमेंट करता है। पुट ऑप्शन के एग्रीमेंट में ऑप्शन के खरीदार को यह अधिकार मिलता है कि वह स्ट्राइक प्राइस पर कभी भी अपने स्टॉक को बेच सकें भले ही उस समय अंडरलाइंग की कीमत कुछ भी चल रही हो। 

हां, यह बात भी याद रखने वाली है कि ऑप्शन के खरीदार की राय के ठीक विपरीत राय ऑप्शन के बेचने वाले की होती है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अगर सबकी एक ही राय होगी तो बाजार में सौदा कभी होगा ही नहीं। तो, पुट ऑप्शन का खरीदार उम्मीद करता है कि बाजार नीचे जाएगा जबकि पुट ऑप्शन को बेचने वाला उम्मीद करता है कि एक्सपायरी तक बाजार फ्लैट रहेगा या फिर तेजी रहेगी।

पुट ऑप्शन का खरीदार बेचने का अधिकार खरीदता है। उसे यह ऑप्शन मिलता है कि वह कभी भी अंडरलाइंग को निश्चित कीमत (स्ट्राइक कीमत) पर ऑप्शन राइटर को बेच सके। इसका मतलब यह है कि अगर पुट ऑप्शन का खरीदार एक्सपायरी के समय बेचना चाहे तो पुट ऑप्शन को बेचने वाले को खरीदना होगा। इस बात को ध्यान से समझिए पुट ऑप्शन को बेचने वाला पुट ऑप्शन के खरीदार को बेचने का अधिकार बेच रहा है। इसका मतलब है कि ऑप्शन खरीदने वाला एक्सपायरी के समय पुट ऑप्शन के बेचने वाले को अंडरलाइंग को बेच सकता है।

उलझाने वाला लग सकता है इसलिए अभी आप यह समझ लीजिए कि पुट ऑप्शन एक ऐसा कॉन्ट्रैक्ट है जहां पर आज दो पार्टियां भविष्य में अंडरलाइंग का एक सौदा एक निश्चित कीमत तय करती हैं।

  • प्रीमियम देने वाली पार्टी को कॉन्ट्रैक्ट का खरीदार कहते हैं और प्रीमियम लेने वाली पार्टी को कॉन्ट्रैक्ट को बेचने वाला कहते हैं 
  • कॉन्ट्रैक्ट का खरीदार प्रीमियम अदा करता है और अपने लिए ऑप्शन यानी अधिकार खरीदता है 
  • कॉन्ट्रैक्ट को बेचने वाला एक प्रीमियम पाता है और अपने लिए एक दायित्व भी लेता है 
  • कॉन्ट्रैक्ट को खरीदने वाला ही यह तय कर सकता है कि वह अपने अधिकार का एक्सरसाइज (उपयोग) करेगा या नहीं।  
  • अगर कॉन्ट्रैक्ट खरीदने वाला अपने अधिकार को एक्सरसाइज करने का फैसला करता है तो वह अंडरलाइंग को निश्चित कीमत यानी स्ट्राइक कीमत पर बेच सकता है। कॉन्ट्रैक्ट बेचने वाले का यह दायित्व है कि वह इस अंडरलाइंग को खरीद ले (जिसे कॉन्ट्रैक्ट खरीदने वाला बेचना चाहता है)  
  • वैसे कॉन्ट्रैक्ट खरीदने वाला अपने अधिकार का इस्तेमाल तभी करेगा जब अंडरलाइंग की कीमत स्ट्राइक कीमत से नीचे हो। मतलब, जब उसे दिख रहा हो कि कॉन्ट्रैक्ट बेचने वाले से अंडरलाइंग की कीमत बाजार से ज्यादा मिलेगी। 

इसको अच्छे से समझने के लिए एक उदाहरण देखते हैं।

  • मान लीजिए कि रिलायंस इंडस्ट्रीज स्टॉक ₹850 पर ट्रेड हो रहा है। 
  • कान्ट्रैक्ट का खरीदार यह अधिकार खरीदता है कि वह एक्सपायरी के दिन कान्ट्रैक्ट बेचने वाले को रिलायंस का शेयर ₹850 पर बेच सकता है। 
  • इस अधिकार के लिए कान्ट्रैक्ट का खरीदार कान्ट्रैक्ट बेचने वाले को एक प्रीमियम देता है।  
  • प्रीमियम पाने के बाद कान्ट्रैक्ट बेचने वाला इस बात के लिए राजी हो जाता है कि वो रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयर को एक्सपायरी के दिन ₹850 तक खरीदेगा (यदि कान्ट्रैक्ट खरीदने वाला रिलायंस का शेयर बेचना चाहे)।
  • उदाहरण के लिए अगर एक्सपायरी के दिन रिलायंस की कीमत ₹820 हो जाती है तो कान्ट्रैक्ट खरीदने वाला अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए कान्ट्रैक्ट बेचने वाले को रिलायंस को ₹850 पर बेच सकता है।   
  • इस तरह से कान्ट्रैक्ट का खरीदार रिलायंस को 850 पर बेच फायदा उठा सकता है जबकि उस दिन ओपन मार्केट में रिलायंस की कीमत ₹820 है।
  • अगर रिलायंस 850 या उससे ऊपर मान लीजिए 870 पर बिक रहा है तब कान्ट्रैक्ट को खरीदने वाला अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं करेगा क्योंकि उसको कोई फायदा नहीं हो रहा होगा। वास्तव में वह इससे ऊंची कीमत पर तो बाजार में ही रिलायंस बेच सकता है।
  • इस तरह का समझौता जिसमें किसी को एक्सपायरी पर अंडरलाइंग बेचने का अधिकार मिलता है उसे पुट ऑप्शन कहते हैं। 
  • कान्ट्रैक्ट को बेचने वाले का यह दायित्व है कि रिलायंस को ₹850 पर कान्ट्रैक्ट के खरीदार से खरीद ले क्योंकि उसने रिलायंस का ₹850 का पुट ऑप्शन बेचा है।

मुझे उम्मीद है कि ऊपर के उदाहरण से आपको पुट ऑप्शन कुछ समझ में आया होगा। लेकिन अगर अभी भी आपको समझ में नहीं आया है तो भी आगे बढिए आप इसको आगे और अच्छे से समझ पाएंगे। अभी आप को तीन बातें याद रखनी चाहिए 

  • पुट ऑप्शन का खरीदार अंडरलाइंग एसेट के बारे में मंदी की राय रखता है जबकि पुट ऑप्शन बेचने वाला उसी अंडरलाइंग एसेट को लेकर तेजी की या न्यूट्रल राय रखता है।
  • ऑप्शन के खरीदार को अधिकार होता है कि वह अब अंडरलाइंग एसेट को एक्सपायरी के दिन स्ट्राइक कीमत पर बेच सकें।
  • पुट ऑप्शन बेचने वाले का यह दायित्व होता है कि वह अंडरलाइंग एसेट को स्ट्राइक कीमत पर पुट ऑप्शन के खरीदार से खरीद ले। (अगर वो बेचना चाहे)।

5.2 – पुट ऑप्शन बेचने वाले के लिए सही स्थिति

अब शेयर बाजार का एक उदाहरण लेते हैं और कोशिश करते हैं कि उसके जरिए पुट ऑप्शन को बेहतर तरीके से समझा जा सके। पहले हम पुट ऑप्शन को खरीदार के नजरिए से देखेंगे और उसके बाद पुट ऑप्शन को बेचने वाले के नजरिए से देखेंगे।

नीचे बैंक निफ़्टी का 8 अप्रैल 2015 का चार्ट दिखाया गया है

यहां पर मेरा नजरिया है कि 

  1. बैंक निफ्टी 18417 पर ट्रेड कर रहा है 
  2. 2 दिन पहले बैंक निफ्टी ने 18550 का अपना रेजिस्टेंस टेस्ट किया था (यह रेजिस्टेंस लेवल हरे रंग की लाइन से दिखाया गया है) 
  3. मैं 18550 को रेजिस्टेंस इसलिए मानता हूं कि यह यहां पर एक ऐसा प्राइस एक्शन जोन बना है जो कि लंबे समय तक फैला हुआ है (जो लोग रेजिस्टेंस लेवल के बारे में पढना चाहते हैं वो यहां  here पढ़ सकते हैं)
  4. मैंने प्राइस एक्शन जोन को नीले रंग के बॉक्स से हाईलाइट किया है 
  5. इसके 1 दिन पहले यानी 7 अप्रैल को RBI ने अपनी मॉनेटरी पॉलिसी में बायाज दरों में कोई बदलाव नहीं करने का ऐलान किया था (आपको पता ही है कि बैंक निफ्टी के लिए RBI की मॉनेटरी पॉलिसी सबसे महत्वपूर्ण होती है) 
  6. ऐसे में, जबकि एक टेक्निकल रजिस्टेंस दिखाई दे रहा है और फंडामेंटल तौर पर अब और कोई बड़ी घोषणा होने वाली नहीं है तो बैंक के लिए ऊपर बढ़ना थोड़ा मुश्किल होगा 
  7. इसी वजह से ट्रेडर्स बैंक निफ्टी को बेचना चाहेंगे और कुछ इसके बजाय कुछ और ऐसा खरीदना चाहेंगे जिसमें इस समय तेजी हो 
  8. इसी वजह से मेरा बैंक निफ्टी को लेकर मंदी का नजरिया है 
  9. लेकिन चूंकि पूरा बाजार तेजी में है ऐसे में बैंक निफ्टी का फ्यूचर्स बेचना रिस्क भरा काम है ऐसी परिस्थिति में ऑप्शन को लेना एक बेहतर रणनीति हो सकती है इसलिए मैं बैंक निफ़्टी कॉल पुट ऑप्शन खरीदूंगा 
  10. याद रखें कि जब आप पुट ऑप्शन खरीदते हैं और बाद में अंडरलाइंग नीचे आता है तो आपको फायदा होता है 

ऊपर दिए कारणों की वजह से अब मैं 18400 का पुट ऑप्शन खरीदूंगा जो कि ₹315 के प्रीमियम पर मिल रहा है।  और मैं ₹315 का जो प्रीमियम दे रहा हूं वह पुट ऑप्शन बेचने वाले को मिल रहा है।

पुट ऑप्शन को खरीदना काफी आसान है। सबसे आसान तरीका यह है कि आप अपने ब्रोकर को फोन कीजिए और उससे स्टॉक का नाम बताइए उस स्टॉक का स्ट्राइक प्राइस बताइए और बोलिए कि वह आपके लिए उस स्टॉक का पुट ऑप्शन खरीद दे। वैसे, आप जीरोधा पाई (Pi) पर खुद अपने आप भी ये ट्रेड कर सकते हैं। ट्रेडिंग टर्मिनल पर यह काम कैसे किया जाता है इसके बारे में हम आगे के अध्याय में जानेंगे। 

अभी मान लीजिए कि आपने बैंक निफ़्टी 18400 का पुट ऑप्शन खरीदा है। एक्सपायरी पर इस पुट ऑप्शन का P&L कैसा दिखेगा यह देखते हैं और उसके आधार पर कुछ सामान्य संकेत निकालते हैं।

5.3 – पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू (Intrinsic Value- IV)

हम पुट ऑप्शन के P&L के बारे में कुछ सामान्य बातें निकाल सकें, उसके पहले जरूरी है कि हम पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू की गणना कर लें। इंट्रिन्सिक वैल्यू क्या होती है इसके बारे में हम पिछले अध्याय में चर्चा कर चुके हैं और मुझे लगता है कि वह आपको याद होगा। इंट्रिन्सिक वैल्यू वह रकम होती है जो कि खरीदार को तब मिलेगी जब वह अपने ऑप्शन को एक्सपायरी के दिन एक्सरसाइज करेगा। पुट ऑप्शन का इंट्रिन्सिक वैल्यू की गणना कॉल ऑप्शन के इंट्रिन्सिक वैल्यू की गणना से थोड़ा अलग होती है। आप इसको ठीक से समझ सके इसलिए जरूरी है कि पहले आप कॉल ऑप्शन के इंट्रिन्सिक वैल्यू का फॉर्मूला देख लें।

IV (कॉल ऑप्शन) = स्पॉट कीमतस्ट्राइक कीमत

पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू  –

IV (पुट ऑप्शन) = स्ट्राइक कीमतस्पॉट कीमत

 यहां पर ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू से जुड़ी एक खास बात जान लेना जरूरी है। आप नीचे दी गई टाइम लाइन पर नजर डालिए।

ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू निकालने के जिस फार्मूले को हमने अभी-अभी देखा है, वह केवल एक्सपायरी के दिन ही लागू होता है। लेकिन एक सीरीज के दौरान इंट्रिन्सिक वैल्यू की गणना अलग होती है। यह गणना कैसे की जाती है इसको हम आगे जानेंगे। लेकिन अभी के लिए, आप केवल एक्सपायरी के दिन की इंट्रिन्सिक वैल्यू पर ध्यान दें।

5.4 – पुट ऑप्शन के खरीदार का P&L

पुट ऑप्शन के इंट्रिन्सिक वैल्यू सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए अब हम एक ऐसा टेबल बनाने की कोशिश करते हैं जो यह बताएगा कि अगर मैंने बैंक निफ्टी के 18400 का पुट  ऑप्शन खरीदा तो स्पॉट बाजार में बैंक निफ्टी की अलग-अलग कीमतों पर मैं एक्सपायरी के दिन कितने पैसे कमाउंगा। याद रखिए कि इस ऑप्शन के लिए ₹315 का प्रीमियम अदा किया गया है और भले ही स्पॉट में निफ्टी बैंक की कुछ भी कीमत हो ये 315 का प्रीमियम नहीं बदलेगा। ये 18400 के बैंक निफ्टी ऑप्शन की कीमत है। इस आधार पर अब हम P&L निकालते हैं और उसको टेबल में रखते हैं। 

प्रीमियम के कॉलम में जो निगेटिव  (-) का संकेत दिया गया है को यह बताता है कि मेरे ट्रेडिंग अकाउंट से पैसे बाहर जा रहे हैं।

क्रम सं.

स्पॉट में संभावित कीमत दिया गया प्रीमियम इंट्रिन्सिक वैल्यू (IV) P&L (IV + प्रीमियम)
01 16195 -315 18400 – 16195 = 2205

2205 + (-315) = + 1890

02

16510 -315 18400 – 16510 = 1890 1890 + (-315)= + 1575
03 16825 -315 18400 – 16825 = 1575

1575 + (-315) = + 1260

04

17140 -315 18400 – 17140 = 1260 1260 + (-315) = + 945
05 17455 -315 18400 – 17455 = 945

945 + (-315) = + 630

06

17770 -315 18400 – 17770 = 630 630 + (-315) = + 315
07 18085 -315 18400 – 18085 = 315

315 + (-315) = 0

08

18400 -315 18400 – 18400 = 0 0 + (-315)= – 315
09 18715 -315 18400 – 18715 = 0

0 + (-315) = -315

10

19030 -315 18400 – 19030 = 0 0 + (-315) = -315
11 19345 -315 18400 – 19345 = 0

0 + (-315) = -315

12

19660 -315 18400 – 19660 = 0 0 + (-315) = -315

 

अब हम कुछ विचार बना सकते हैं कि P&L किस तरह से काम करता है। इसके आधार अब हम कुछ सामान्य संकेत भी निकालेंगे जो कि P&L के बारे में सभी जगह लागू हो सके। ऊपर के टेबल की 8वीं पंक्ति को केन्द्र मान लीजिए। 1. पुट ऑप्शन को खरीदने के पीछे इरादा यह होता है कि गिरती हुई कीमतों का फायदा उठाया जा सके। जैसा कि हम यहां देख सकते हैं कि जैसे-जैसे स्पॉट बाजार में कीमतें गिरती हैं वैसे वैसे मुनाफा बढ़ता जाता है। 

सामान्यीकरण 1 पुट ऑप्शन के खरीदार को फायदा तब होता है जब स्पॉट में कीमतें गिरती हैं और स्ट्राइक प्राइस के नीचे चली जाती हैं। इसका मतलब यह है कि आपको पुट ऑप्शन तभी खरीदना चाहिए जब आप अंडरलाइंग की कीमत के बारे में मंदी की राय रखते हो। 

  1. जब स्पॉट की कीमत स्ट्राइक कीमत से ऊपर चली जाती हैं तो इस पोजीशन पर घाटा होने लगता है लेकिन यह घाटा उससे ज्यादा नहीं हो सकता जितना आपने प्रीमियम अदा किया है। जैसे इस मामले में ₹315 तक का ही घाटा हो सकता है जितना कि प्रीमियम दिया गया है। 

सामान्यीकरण 2–  पुट ऑप्शन के खरीदार को नुकसान तब होता है जब स्पॉट की कीमत स्ट्राइक कीमत से ऊपर चली जाती है लेकिन उसका नुकसान की सीमा सीमित है और वह नुकसान उतना ही हो सकता है जितना उसने प्रीमियम दिया है। 

नीचे दिए गए फार्मूले का इस्तेमाल करके आप पुट ऑप्शन पोजीशन की P&L निकाल सकते हैं याद रखिए कि यह फार्मूला एक्सपायरी तक पोजीशन होल्ड करने पर ही काम करता है।

P&L = [Max (0, स्ट्राइक कीमतस्पॉट कीमत)] – दिया गया प्रीमियम

दो कीमत पर ये फार्मूला लगा कर देखते हैं कि ये काम कर रहा है या नहीं   –

  1. 16510
  2. 19660

@16510 (स्पॉट कीमत स्ट्राइक से नीचे है, पोजीशन में फायदा होना चाहिए)

= Max (0, 18400 -16510)] – 315

= 1890 – 315

= + 1575

@19660 (स्पॉट स्ट्राइक से ऊपर, पोजीशन में नुकसान होना चाहिए, दिए गए प्रीमियम तक,)

= Max (0, 18400 – 19660) – 315

= Max (0, -1260) – 315

= – 315

साफ है कि दोनों नतीजे उम्मीद के मुताबिक हैं। हमें पुट ऑप्शन की खरीदार के लिए ब्रेक इवन प्वाइंट की गणना भी करना है और उसे समझना है। ब्रेक इवन प्वाइंट क्या होता है इसके बारे में पहले ही जान चुके हैं, इसलिए अब सीधे फार्मूला देखते हैं।

ब्रेक इवन प्वाइंट = स्ट्राइक कीमतदिया गया प्रीमियम 

 बैंक निफ्टी के लिए ब्रेक इवन प्वाइंट होगा

 = 18400 – 315

= 18085

तो ब्रेक इवन प्वाइंट के फार्मूले के मुताबिक 18085 पर पुट ऑप्शन ना तो पैसे बना रहा होगा और ना ही पैसे गंवा रहा होगा। क्या हमें P&L फार्मूला भी यह बात सही साबित करके दिखाएगा?

= Max (0, 18400 – 18085) – 315

= Max (0, 315) – 315

= 315 – 315

=0

यह परिणाम भी एकदम उम्मीद के मुताबिक ही है। 

महत्वपूर्ण बात इंट्रिन्सिक वैल्यू,P&L, ब्रेक इवन प्वाइंट, इन सब की गणना एक्सपायरी के आधार पर की गई है। इस मॉड्यूल में अब तक हमने यह माना है कि ऑप्शन का खरीदार या ऑप्शन का बिकवाल अपना ऑप्शन ट्रेड इस इरादे के साथ कर रहे हैं कि वह इस पोजीशन को एक्सपायरी के दिन तक होल्ड करेंगे। लेकिन जल्दी ही आपको यह पता चलेगा कि हमेशा ऐसा नहीं होता है। आप अपना ऑप्शन ट्रेड शुरू करते हैं लेकिन उसे जल्दी ही बंद करके एक्सपायरी के पहले उससे निकल जाते हैं। ऐसे में ब्रेक इवन प्वाइंट की गणना कुछ खास महत्व नहीं रखती है। लेकिन P&L और इंट्रिन्सिक वैल्यू की गणना तब भी महत्वपूर्ण रहती है। लेकिन उसको निकालने का फार्मूला बदल जाता है।

इसको और अच्छे से समझने के लिए बैंक निफ़्टी के ट्रेड को जो कि 7 अप्रैल 2015 को शुरू हुआ है और जिसकी एक्सपायरी 30 अप्रैल 2015 को है उसके दो अलग-अलग उदाहरण को देखते हैं।

  1. अगर 30 अप्रैल 2015 को स्पॉट में निफ़्टी बैंक 17000 का है तो P&L कैसा होगा?
  2. अगर 15 अप्रैल को निफ़्टी बैंक 17000 का है तो p&l कैसा होगा? 

पहले सवाल के जवाब में हम बहुत सीधे तरीके से P&L का फार्मूला लगा सकते हैं

= Max (0, 18400 – 17000) – 315

= Max (0, 1400) – 315

= 1400 – 315

= 1085

दूसरे सवाल का जवाब देखते हैं, अगर एक्सपायरी के अलावा किसी भी दिन स्पॉट की कीमत 17000 है तो P&L 1085 नहीं होगा, उससे ऊपर होगा। ऐसा क्यों होता है इस पर चर्चा बाद में करेंगे। लेकिन अभी याद रखें कि यह ऊपर होगा।

5.5 – पुट ऑप्शन के खरीदार का P&L पेऑफ

यदि हम पुट ऑप्शन के P&L पॉइंट्स को एक लाइन से जोड़ें और एक लाइन चार्ट बनाएं तो हमें वही सामान्यीकरण मिलेगा जिसको हमने पहले देखा है। नीचे के चार्ट पर एक बार नजर डालिए– 

₹18400 स्ट्राइक प्राइस वाले ऑप्शन के आधार पर बने इस चार्ट को देखकर कुछ बातें जो आपको याद आएंगी वह हैं

  1. पुट ऑप्शन के खरीदार को तब नुकसान होता है जब स्पॉट की कीमत स्ट्राइक प्राइस (18400) से ऊपर चली जाती हैं
  2. लेकिन यह नुकसान वहीं तक सीमित रहता है जितना उसने प्रीमियम दिया है। 
  3. जब स्पॉट की कीमतें स्ट्राइक प्राइस से नीचे जाने लगती हैं तो पुट ऑप्शन के खरीदार का मुनाफा काफी तेजी से बढ़ सकता है। 
  4. इससे होने वाला मुनाफा असीमित होता है।
  5. 18085 के ब्रेक इवन प्वाइंट पर पुट ऑप्शन का खरीदार ना तो पैसे बना रहा होता है और ना ही पैसे का नुकसान उठा रहा होता है। आप चार्ट में देख सकते हैं कि ब्रेक इवन प्वाइंट पर पहुंचने के बाद उसका ग्राफ नुकसान वाली स्थिति से एक न्यूट्रल स्थिति पर पहुंच जाता है। पुट ऑप्शन का खरीदार इसके बाद ही पैसे बनाना शुरू करता है।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. अगर आप अंडरलाइंग की कीमत को लेकर मंदी में हैं तो आपको पुट ऑप्शन खरीदना चाहिए, दूसरे शब्दों में कहें तो पुट ऑप्शन के खरीदार को फायदा तब होता है जब अंडरलाइंग की कीमत गिरती है।
  2. पुट ऑप्शन के इंट्रिन्सिक वैल्यू की गणना कॉल ऑप्शन के इंट्रिसिक वैल्यू की गणना थोड़ा अलग होती है।
  3. IV (पुट ऑप्शन)= स्ट्राइक कीमत – स्पॉट कीमत
  4. पुट ऑप्शन के खरीदार का P&L निकालने का फार्मूला P&L = [max(0,स्ट्राइक कीमत – स्पॉट कीमत)] – दिया गया प्रीमियम/  P&L = [Max (0, Strike Price – Spot Price)] – Premium Paid
  5. पुट ऑप्शन के खरीदार का ब्रेकइवन प्वाइंट निकालने का फार्मूला: स्ट्राइक कीमत – दिया गया प्रीमियम

 

 

 

The post पुट आप्शन की खरीदारी appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%86%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%96%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80/feed/ 46 M5-Ch5-title Image 1_ Bank Nifty Image 2_Option Chain Image-3_timeline-new Image 4_P&L Payoff
कॉल ऑप्शन को राइट करना/ बेचना https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%9a/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%9a/#comments Tue, 04 Feb 2020 10:01:29 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6470 4.1 – एक सिक्के के दो पहलू ऑप्शन के खरीदार और ऑप्शन के राइटर (बेचने वाले/ बिकवाल) दोनों, एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। बस बाजार को लेकर दोनों की राय और दोनों की उम्मीदें अलग-अलग होती हैं। यहां पर आपको एक बात याद रखनी चाहिए– ऑप्शन बेचने वाले का P&L जैसा होता […]

The post कॉल ऑप्शन को राइट करना/ बेचना appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

4.1 – एक सिक्के के दो पहलू

ऑप्शन के खरीदार और ऑप्शन के राइटर (बेचने वाले/ बिकवाल) दोनों, एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। बस बाजार को लेकर दोनों की राय और दोनों की उम्मीदें अलग-अलग होती हैं। यहां पर आपको एक बात याद रखनी चाहिएऑप्शन बेचने वाले का P&L जैसा होता है ऑप्शन खरीदने वाले का P&L एकदम उससे उल्टा होता है। उदाहरण के तौर पर अगर ऑप्शन को बेचने वाला ₹70 का मुनाफा कमा रहा है तो इसका मतलब है कि ऑप्शन खरीदने वाला ₹70 का नुकसान सह रहा है। इसी तरह की, ऑप्शन की कुछ और समान बातें भी हैं।

  1. अगर ऑप्शन खरीदने वाले का रिस्क सीमित है (जितना उसने प्रीमियम दिया है) तो ऑप्शन बेचने वाले का मुनाफा भी सीमित है (उतना ही जितना उसको प्रीमियम मिला है) 
  2. अगर ऑप्शन खरीदने वाले का मुनाफा असीमित है तो ऑप्शन बेचने वाले के लिए रिस्क असीमित होता है।
  3. ब्रेक इवन प्वाइंट वह कीमत है जहां से ऑप्शन खरीदने वाला पैसे बनाना शुरू करता है। ठीक इसी जगह से ऑप्शन बेचने वाला पैसे गंवाना शुरू करता है।
  4. अगर ऑप्शन खरीदने वाला ₹ X  का मुनाफा कमा रहा है तो इसका मतलब है कि ऑप्शन बेचने वाला ₹ X का नुकसान उठा रहा है। 
  5. अगर ऑप्शन बेचने वाला ₹ X  का नुकसान उठा रहा है तो इसका मतलब है कि ऑप्शन खरीदने वाला ₹ X का फायदा बना रहा है।
  6. अगर ऑप्शन खरीदने वाले की राय यह है कि बाजार में कीमत ऊपर जाएगी तो ऑप्शन बेचने वाले की राय उल्टी होगी और उसे  लग रहा होगा कि बाजार में कीमत नीचे जाएगी।

इन बातों को और अच्छे से समझने के लिए कॉल ऑप्शन को, बेचने वाले के नजरिए से देखना जरूरी है और इसीलिए इस अध्याय में हम इस पर ही ध्यान देंगे।

लेकिन इस अध्याय में आगे बढ़ने से पहले मैं आपको एक बात जरूरी बात बताना चाहता हूं, ऑप्शन बेचने वाले और ऑप्शन खरीदने वाले के P&L में काफी ज्यादा समानता होती है, इसलिए इस अध्याय में कई बार आपको ऐसा लगेगा कि हम वही बातें बता रहे हैं जो पिछले अध्याय में बताई जा चुकी हैं। संभव है कि ऐसे में आपको यह लगे कि हम बातें दोहरा रहे हैं और आप अगले अध्याय की ओर बढ़ जाएं। मेरी आपको सलाह है कि आप ऐसा ना करें। बेचने वाले और खरीदने वाले के P&L के छोटे से छोटे अंतर और उसकी वजह से पड़ने वाले असर को ध्यान से देखें।

4.2 कॉल ऑप्शन को बेचने वाला और उसकी सोच

एक बार फिर से अजय और वेणु के उस उदाहरण को याद कीजिए जिस पर हमने पहले अध्याय में चर्चा की थी। हमने देखा था कि वहां 3 संभावित स्थितियां हैं जो इस समझौते में हो सकती हैं।

  1. जमीन की कीमत ₹500000 से ऊपर जा सकती है (अजय यानी ऑप्शन के खरीदार के लिए बेहतर स्थिति)  
  2. कीमत ₹500000 पर स्थिर रह सकती है ( ऑप्शन को बेचने वाले यानी वेणु के लिए बेहतर स्थिति) 
  3. जमीन की कीमत ₹500000 से नीचे जा सकती है (वेणु यानी ऑप्शन के बेचने वाले के लिए बेहतर स्थिति)

आप देख सकते हैं कि संभावनाओं का प्रतिशत ऑप्शन के खरीदार के पक्ष में नहीं है। तीन संभावना में से सिर्फ एक संभावना उसके पक्ष में है। इसका मतलब यह है कि 3 में से 2 संभावनाएं ऑप्शन बेचने वालों को फायदा पहुंचाने वाली हैं। यही वजह लोगों को ऑप्शन को बेचने को प्रोत्साहित करती है। संभावनाओं के आंकड़े के पक्ष में होने के अलावा अगर ऑप्शन बेचने वाले को बाजार की अच्छी समझ है तो उसके मुनाफा कमाने की उम्मीद काफी ज्यादा बढ़ जाती है।

याद रखिए कि मैं यहां पर सिर्फ आंकड़ों के तौर पर संभावनाओं की बात कर रहा हूं। मैं यह नहीं कह रहा कि आप्शन बेचने वाला हमेशा पैसा कमाएगा। 

एक बार फिर से बजाज ऑटो वाले उदाहरण पर नजर डालते हैं जिस पर हमने पिछले अध्याय में चर्चा की थी। इस बार इसको ऑप्शन बेचने वाले के नजरिए से देखते हैं और यह समझने की कोशिश करते हैं कि वह उसके लिए कैसी स्थिति  बन रही है। एक बार फिर से उसी चार्ट पर नजर डालते हैं

 

  • स्टॉक बुरी तरीके से पिटा हुआ है। इसका मतलब है कि इस स्टॉक को लेकर लोगों में मंदी का माहौल है। 
  • स्टॉक के इतना पिटा हुआ होने की वजह से कई लोग स्टॉक में लॉन्ग पोजीशन बनाकर फंसे हुए होंगे।
  • ऐसे में स्टॉक की कीमत में आने वाली कोई भी तेजी को लोग इस स्टॉक से निकलने के मौके के तौर पर देखेंगे।
  • इस वजह से स्टॉक की कीमत में तेज बढ़ोतरी की गुंजाइश कम ही है।
  • अगर बाजार में स्टॉक की कीमत बढ़ने की गुंजाइश कम है तो बजाज ऑटो के शेयर के कॉल ऑप्शन को बेचना और प्रीमियम ले लेना एक अच्छा मौका हो सकता है।

तो, इसी सोच के साथ ऑप्शन का बिकवाल ऑप्शन बेचता है। यहां सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि उसको भरोसा है कि बजाज ऑटो की कीमत अभी नहीं बढ़ेगी और इसीलिए ऑप्शन बेचना और प्रीमियम ले लेना एक अच्छी रणनीति है।

जैसा कि मैंने पिछले अध्याय में भी कहा था कि सही स्ट्राइक कीमत को पहचान पाना ही ऑप्शन की ट्रेडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। हम इस मॉड्यूल में जब आगे बढ़ेंगे तो इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे। अभी बस यह सब मान लीजिए कि ऑप्शन को बेचने वाले ने बजाज ऑटो का ऑप्शन 2050 के स्ट्राइक कीमत पर बेचने का फैसला किया है और इसके लिए उसने ₹6.35 का प्रीमियम लिया है. एक बार फिर से नीचे दिए ऑप्शन चेन को देखते हैं– 

पिछले अध्याय की तरह एक बार फिर हम ऑप्शन बेचने वाले का P&L समझने की कोशिश करते हैं और इसके जरिए से कुछ सामान्य बिंदु/साधारणीकरण/सामान्यीकरण (Generalization) निकालते हैं जो कि कॉल ऑप्शन बेचने के बारे में कुछ बता सके। ऑप्शन के इंट्रिंसिक मूल्य के बारे में जो हमने पिछले अध्याय में पढ़ा था वो यहां भी वैसे ही लागू होगा।

Serial No.

Possible values of spot Premium Received Intrinsic Value (IV) P&L (Premium – IV)

01

1990 + 6.35 1990 – 2050 = 0 = 6.35 – 0 = + 6.35

02

2000 + 6.35 2000 – 2050 = 0 = 6.35 – 0 = + 6.35

03

2010 + 6.35 2010 – 2050 = 0

= 6.35 – 0 = + 6.35

04

2020 + 6.35 2020 – 2050 = 0 = 6.35 – 0 = + 6.35
05 2030 + 6.35 2030 – 2050 = 0

= 6.35 – 0 = + 6.35

06

2040 + 6.35 2040 – 2050 = 0 = 6.35 – 0 = + 6.35
07 2050 + 6.35 2050 – 2050 = 0

= 6.35 – 0 = + 6.35

08

2060 + 6.35 2060 – 2050 = 10 = 6.35 – 10 = – 3.65
09 2070 + 6.35 2070 – 2050 = 20

= 6.35 – 20 = – 13.65

10 2080 + 6.35 2080 – 2050 = 30

= 6.35 – 30 = – 23.65

11 2090 + 6.35 2090 – 2050 = 40

= 6.35 – 40 = – 33.65

12 2100 + 6.35 2100 – 2050 = 50

= 6.35 – 50 = – 43.65

 

हम इस चार्ट के बारे में चर्चा करें, इसके पहले कुछ बातों को ध्यान दीजिए 

  1. प्रीमियम वाले कॉलम में जो जोड़/प्लस (+) का चिन्ह लगाया गया है वह यह बताता है कि ऑप्शन बेचने वाले (ऑप्शन राइटर) के अकाउंट में पैसा आ रहा है। 
  2. ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू (एक्सपायरी पर) एक ही रहती है वह चाहे कॉल ऑप्शन का बेचने वाले के लिए हो या कॉल ऑप्शन का खरीदार के लिए।
  3. कॉल ऑप्शन के राइटर के लिए नेट P&L की गणना कुछ अलग तरीके से की जाती है। इस बदलाव की वजह यह है कि-
  1. ऑप्शन को बेचने वाला जो ऑप्शन बेचता है तो उसको एक प्रीमियम मिलता है (जैसे 6.35 रूपए का प्रीमियम) ऑप्शन बेचने वाले को नुकसान तब होता है जब वह अपना पूरा प्रीमियम गंवा दे। मतलब अगर उसे ₹6.35 का प्रीमियम मिला है और उसने ₹5 का नुकसान उठाया है तो इसका मतलब है कि वह अभी भी ₹1.35 के फायदे पर बैठा है यानी ऑप्शन बेचने वाले का नुकसान तब शुरू होता है जब वह अपनी प्रीमियम की पूरी रकम गंवा दे। प्रीमियम गंवाने के बाद होने वाला नुकसान ही उसका वास्तविक नुकसान होता है। इसलिए उसके P&L की गणना में होगी प्रीमियम इंट्रिसिक वैल्यू
  1. इसी बात को ऑप्शन के खरीदार पर भी लागू कर सकते हैं। क्योंकि ऑप्शन का खरीदार प्रीमियम देता है इसलिए उसे पहले अपना प्रीमियम वापस कमाना होगा तभी उसका फायदा शुरू होगा। प्रीमियम की रकम वापस पाने के बाद उसको जो भी कमाई होती है वह उसका वास्तविक मुनाफा होता है। 

ऊपर का टेबल आपको जानापहचाना लगेगा। इस टेबल के आधार पर अब हम कुछ सामान्य बातें निकाल सकते हैं (याद रखिए कि स्ट्राइक प्राइस 2050 है)

  1. बजाज ऑटो का स्टॉक जब तक 2050 के स्ट्राइक प्राइस के नीचे रहेगा तब तक ऑप्शन बेचने वाले का पैसा बनेगा। मतलब उसे ₹6.35 का पूरा पेमेंट अपने पास रखने का मौका मिलेगा। ध्यान रखिए कि उसका मुनाफा ₹6.35 पैसे पर ही स्थिर रहेगा इससे ज्यादा नहीं।

 सामान्यीकरण 1 कॉल ऑप्शन के राइटर को अधिकतम मुनाफा उतना ही होगा जितना कि उसे प्रीमियम मिला है। हां, इस मुनाफे को कमाने के लिए स्पॉट की कीमत को स्ट्राइक प्राइस के नीचे रहना जरूरी है। 

  1. अगर बजाज ऑटो की कीमत स्ट्राइक प्राइस के ऊपर जाने लगे तो ऑप्शन राइटर का नुकसान कई गुना बढ़ सकता है 

सामान्यीकरण 2 कॉल ऑप्शन के राइटर को तब नुकसान होने लगता है जब स्पॉट की कीमत स्ट्राइक प्राइस के ऊपर जाने लगती हैं। स्पॉट की कीमत स्ट्राइक प्राइस से जितना ऊपर जाएगी कॉल राइटर का नुकसान उतना ज्यादा होगा । 

  1. ऊपर के दोनों सामान्यीकरण से यह साफ है कि ऑप्शन बेचने वाले का मुनाफा तो सीमित है लेकिन नुकसान असीमित हो सकता है।

अब इनके आधार पर हम कॉल ऑप्शन को बेचने वाले का P&L बनाने की कोशिश करते हैं

P&L = प्रीमियम – Max [0, (स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत)]

P&L = Premium – Max [0, (Spot Price – Strike Price)]

इस फार्मूले के आधार पर एक्सपायरी पर कुछ स्पॉट कीमतों का P&L निकालते हैं

    1. 2023
    2. 2072
    3. 2055

गणना इस तरह से होगी

@2023

= 6.35 – Max [0, (2023 – 2050)]

= 6.35 – Max [0, -27]

= 6.35 – 0

6.35

 

ये आंकड़ा सामानयीकरण के अनुसार सही है। (मुनाफा प्रीमियम तक सीमित है)

 

.

@2072

= 6.35 – Max [0, (2072 – 2050)]

= 6.35 – 22

-15.65

यहां भी उत्तर सामान्यीकरण 2 के अनुसार ही है। (जब स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत के ऊपर चली जाएगी तो कॉल ऑप्शन राइटर को घाटा होगा)

@2055

= 6.35 – Max [0, (2055 – 2050)]

= 6.35 – Max [0, +5]

= 6.35 – 5

1.35

हालांकि स्पॉट कीमत स्ट्राइक से ऊपर है लेकिन कॉल राइटर फिर भी कुछ मुनाफे में दिख रहा है। ये सामान्यीकरण 2 के विपरीत है। आपको अब तक ये पता चल ही चुका है कि ये ब्रेक इवन प्वांइट के सिद्धांत की वजह से है, इसको हमने पिछले अध्याय में समझा था। 

अब इसे थोड़ा करीब से देखते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं कि स्ट्राइक प्राइस के पास ऐसी कौन सी कीमत है जहां पर कॉल ऑप्शन का राइटर नुकसान उठाना शुरू करता है।

 

क्रम सं.

स्पॉट की संभावित कीमत प्राप्त प्रीमियम इंट्रिन्सिक वैल्यू (IV) P&L (प्रीमियम – IV)

01

2050 + 6.35 2050 – 2050 = 0 = 6.35 – 0 = 6.35
02 2051 + 6.35 2051 – 2050 = 1

= 6.35 – 1 = 5.35

03

2052 + 6.35 2052 – 2050 = 2 = 6.35 – 2 = 4.35
04 2053 + 6.35 2053 – 2050 = 3

= 6.35 – 3 = 3.35

05

2054 + 6.35 2054 – 2050 = 4 = 6.35 – 4 = 2.35
06 2055 + 6.35 2055 – 2050 = 5

= 6.35 – 5 = 1.35

07

2056 + 6.35 2056 – 2050 = 6 = 6.35 – 6 = 0.35
08 2057 + 6.35 2057 – 2050 = 7

= 6.35 – 7 = – 0.65

09

2058 + 6.35 2058 – 2050 = 8

= 6.35 – 8 = – 1.65

10 2059 + 6.35 2059 – 2050 = 9

= 6.35 – 9 = – 2.65

 

साफ है कि स्पॉट कीमत के स्ट्राइक से ऊपर जाने के बाद भी ऑप्शन राइटर तब तक मुनाफे में रहता है जब तक स्पॉट कीमत, स्ट्राइक + प्रीमियम से अधिक नहीं होता। इस कीमत को ब्रेकडाउन प्वाइंट –Break down point कहते हैं और इसके बाद ऑप्शन बेचने वाले को नुकसान होने लगता है।

कॉल ऑप्शन बेचने वाले के लिए ब्रेक डाउन प्वाइंट = स्ट्राइक कीमत + प्राप्त प्रीमियम

बजाज ऑटो वाले उदाहरण में 

= 2050 +6.35

=2056.35

तो कॉल ऑप्शन के खरीदार का ब्रेक इवन प्वाइंट ही कॉल ऑप्शन बेचने वाले ब्रेक डाउन प्वाइंट बन जाता है।

4.3 कॉल ऑप्शन बेचने वाले का पेऑफ (Call Option Seller’s Pay-Off)

जैसा कि इस अध्याय में हमने बारबार देखा है कि कॉल ऑप्शन के राइटर और कॉल ऑप्शन के खरीदार के बीच में काफी ज्यादा समरूपता होती है। अगर हम ऑप्शन बेचने वाले के P&L ग्राफ को देखें तो हमें यह बहुत साफसाफ दिखाई पड़ता है– 

आप देख सकते हैं कि कॉल ऑप्शन के बेचने वाले का P&L पेऑफ कॉल ऑप्शन के खरीदार के P&L पेऑफ के प्रतिबिंब जैसा दिखता है। इस ग्राफ से जो बातें निकलती हैं वो वैसी ही हैं जैसी हमने अब तक इस अध्याय में चर्चा की हैं। 

  1. जब तक कीमत स्ट्राइक प्राइस यानी 2050 के नीचे रहती है तब तक मुनाफा 6.35 ही रहता है।
  2. जब कीमत 2050 से 2056.35 (ब्रेक डॉउन प्वाइंट) के बीच में रहती है तो मुनाफा धीमे-धीमे कम होता रहता है। 
  3. 2056.35 पर पहुंचने पर ना मुनाफा होता है ना नुकसान रहता है।
  4. कीमत 2056.35 के बाद कॉल ऑप्शन बेचने वाले को नुकसान होने लगता है। जैसा कि आप ग्राफ में देख सकते हैं कि जैसे-जैसे कीमत ऊपर जाती है वैसे वैसे नुकसान तेजी के साथ बढ़ता जाता है।

4.4 – मार्जिन से जुड़ी कुछ बातें

अब एक बार ऑप्शन बेचने और ऑप्शन खरीदने से जुड़े रिस्क को करीब से देखते हैं। ऑप्शन खरीदने वाले का कोई रिस्क नहीं होता, उसे सिर्फ बेचने वाले को एक प्रीमियम देना होता है। इस प्रीमियम के बदले उसे अंडरलाइंग को बाद के किसी दिन किसी एक तय कीमत पर खरीदने का अधिकार मिलता है। इस तरह से, उसका रिस्क सिर्फ इतना है जितना कि उसने प्रीमियम अदा किया है। 

लेकिन जब हम ऑप्शन बेचने वाले के रिस्क को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि उसका रिस्क असीमित है। अगर अंडरलाइंग की कीमत, स्पॉट में बढ़ती जाती है तो ऑप्शन बेचने वाले का नुकसान भी उसी के साथ लगातार तेजी से बढ़ता जाता है। लेकिन अगर शेयर बाजार या स्टॉक एक्सचेंज के नजरिए से देखें तो क्या वह ऑप्शन बेचने वाले का रिस्क घटाने के लिए कोई रास्ता और निकाल सकता है? अगर ऑप्शन बेचने वाले का रिस्क या नुकसान इतना ज्यादा हो जाता है कि वह नुकसान उठाने के बजाय डिफॉल्ट करने का फैसला कर ले तो?

यह निश्चित है कि कोई भी स्टॉक एक्सचेंज ऐसी स्थिति नहीं आने देगा जहां पर ऑप्शन बेचने वाला एक बहुत बड़ा डिफॉल्ट कर बैठे। इसीलिए यह जरूरी होता है कि ऑप्शन बेचने वाला एक निश्चित रकम एक्सचेंज के पास मार्जिन मनी के तौर पर जमा करे। ऑप्शन बेचने वाले की मार्जिन उसी तरीके की होती है जैसे कि फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में होती है। 

ज़ेरोधा मार्जिन कैलकुलेटर के नीचे दिए स्नैपशॉट में  देखते हैं कि बजाज ऑटो फ्यूचर्स और बजाज ऑटो की 2050 के स्ट्राइक प्राइस वाले कॉल ऑप्शन एग्रीमेंट की मार्जिन क्या है, दोनों की एक्सपायरी 30 अप्रैल 2015 है।


और 2050 के कॉल ऑप्शन को बेचने के लिए मार्जिन है-

जैसा कि आप देख सकते हैं कि ऑप्शन राइटिंग यानी ऑप्शन बेचने और फ्यूचर एग्रीमेंट के लिए मार्जिन की जरूरत करीब-करीब बराबर है। लेकिन इसमें एक छोटा सा अंतर भी है। इस अंतर पर हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे। अभी सिर्फ ये याद रखिए कि मार्जिन की जरूरत करीब-करीब बराबर है और रकम भी लगभग एक बराबर है।

4.5 – सभी बातें एक साथ/अब सभी बातों को एक साथ देखते हैं

मुझे उम्मीद है कि पिछले 4 अध्यायों के बाद अब आप ऑप्शन बेचने और ऑप्शन खरीदने को लेकर काफी बातें जान और समझ चुके हैं। वैसे दूसरे विषयों के मुकाबले ऑप्शन को समझना थोड़ा ज्यादा मुश्किल होता है। इसीलिए हमें जब भी मौका मिले हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि जो कुछ अभी तक सीखा है उसे दोहरा लिया जाए। इसीलिए एक बार फिर से उन खास बातों पर नजर डालते हैं जो ऑप्शन को बेचने और खरीदने से जुड़ी हुई  हैं।

ऑप्शन खरीदने से जुड़ी बातें

  • ऑप्शन तभी खरीदना चाहिए जब आपको उम्मीद हो कि अंडरलाइंग की कीमत बढ़ने वाली है। अगर एक्सपायरी के दिन स्पॉट की कीमत आपके स्ट्राइक प्राइस से ऊपर पहुंच जाती हैं तभी आपको इस एग्रीमेंट या समझौते में फायदा होगा।
  • ऑप्शन खरीदने को लांग आन कॉल ऑप्शन – ‘Long on a Call Option’ या केवल लांग कॉल –Long Call कहते हैं।
  • ऑप्शन खरीदने के लिए आपको ऑप्शन राइटर को एक प्रीमियम अदा करना पड़ता है।
  • कॉल ऑप्शन के खरीदार का रिस्क बहुत ही सीमित होता है (उसने जितना प्रीमियम दिया है) लेकिन उसका मुनाफा असीमित हो सकता है। 
  • ब्रेक इवन प्वाइंट वो कीमत है जहां पर कॉल ऑप्शन के खरीदार को न फायदा हो रहा होता है और ना ही नुकसान हो रहा होता है।
  • P&L = Max[0,(स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत)] दिया गया प्रीमियम /P&L = Max [0, (Spot Price – Strike Price)] – Premium Paid
  • ब्रेक इवन प्वाइंट = स्ट्राइक कीमत + दिया गया प्रीमियम/Breakeven point = Strike Price + Premium Paid

ऑप्शन बेचने से जुड़ी अहम बातें

  • ऑप्शन बेचना (जिसे ऑप्शन राइटिंग भी कहते हैं) तभी करना चाहिए जब आपको उम्मीद हो कि एक्सपायरी के दिन तक अंडर लाइंग की कीमत स्ट्राइक प्राइस के नीचे ही रहेगी। 
  • आपशन बेचने को शॉर्टिंग आ कॉल ऑप्शन –‘Shorting a call option’ कहते हैं या कभी कभी सिर्फ शार्ट कॉल –Short Call भी कहते हैं। 
  • जब आप ऑप्शन बेचते हैं तो आपको प्रीमियम के तौर पर एक रकम मिलती है।
  • ऑप्शन बेचने वाले का मुनाफा सीमित होता है- उतना ही जितना कि उसे प्रीमियम मिला है लेकिन उसका नुकसान असीमित हो सकता है। 
  • ब्रेकडाउन प्वाइंट वो कीमत है जहां पर ऑप्शन बेचने वाले का ना तो फायदा हो रहा होता है और ना ही नुकसान हो रहा होता है, ब्रेकडाउन कीमत तक पहुंचते-पहुंचते वह अपना पूरा प्रीमियम गंवा चुका होता है। 
  • क्योंकि ऑप्शन के शार्ट पोजीशन में असीमित रिस्क होता है इसलिए ऑप्शन बेचने वाले को एक्सचेंज को मार्जिन मनी देनी पड़ती है।
  • ऑप्शन की मार्जिन मनी भी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के मार्जिन मनी की तरह ही होती है।

कुछ और महत्वपूर्ण बातें 

  • जब आप किसी स्टॉक पर तेजी में होते हैं या बुलिश होते हैं तो आप उस स्टॉक को स्पॉट बाजार में खरीदते हैं या फ्यूचर्स बाजार में खरीदते हैं या फिर उस स्टॉक का कॉल ऑप्शन खरीदते हैं।
  • जब आप किसी स्टॉक को लेकर मंदी में होते हैं तो आप उसको स्पॉट में बेच सकते हैं उसे फ्यूचर्स में बेच सकते हैं या फिर ऑप्शन बाजार में उसको शॉर्ट कर सकते हैं। 
  • किसी कॉल ऑप्शन की इंट्रिंसिक वैल्यू पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ता कि आप कॉल ऑप्शन को बेच रहे हैं या खरीद रहे हैं।
  • लेकिन अगर कॉल ऑप्शन की जगह यह पुट ऑप्शन है तो फिर इंट्रिंसिक वैल्यू में बदलाव होता है।
  • कॉल ऑप्शन का नेट P&L इस बात के साथ बदलता है कि आप बेचने वाले हैं या खरीदने वाले। 
  • पिछले चार अध्यायो में हमने सिर्फ और सिर्फ एक्सपायरी के दिन तक P&L को देखा है ताकि आपको इन सिद्धांतों को ठीक से समझ सकें।  
  • ऑप्शन का ज्यादातर कारोबार मार्जिन में बदलाव पर आधारित होता है उदाहरण के तौर पर अगर मैंने बजाज ऑटो का 2050 के स्ट्राइक प्राइस वाला ऑप्शन ₹6.35 के प्रीमियम पर खरीदा और दोपहर होते-होते उसका प्रीमियम बढ़कर ₹9 हो सकते हो गया है तो मैं इसको बेच कर अपना मुनाफा बुक कर सकता हूं।
  •  किसी भी ऑप्शन का प्रीमियम लगातार हर मिनट बदलता रहता है। इसके बदलने के पीछे कई तरीके की चीजें काम कर रही होती हैं जिनको हम आगे के अध्याय में समझेंगे।
  • कॉल ऑप्शन का छोटा रूप CE होता है तो बजाज ऑटो के 2050 कॉल ऑप्शन को बजाज ऑटो 2050CE लिखा जाता है। यहां CE का अर्थ है यूरोपियन कॉल ऑप्शन।

4.6- यूरोपियन vs  अमेरिकन ऑप्शन – European Vs American Option

भारत में जब ऑप्शन कारोबार की शुरुआत हुई थी तो यहां 2 तरीके के ऑप्शन थे अमेरिकन ऑप्शन और यूरोपियन ऑप्शन। सभी तरह के इंडेक्स ऑप्शन जैसे निफ़्टी ऑप्शन या बैंक निफ़्टी ऑप्शन यूरोपियन ऑप्शन पर आधारित होते थे जबकि अलग-अलग स्टॉक्स के ऑप्शन अमेरिकन ऑप्शन होते थे। इन दोनों का अंतर ऑप्शन के एक्सरसाइज करने के तरीके पर आधारित होता था।

यूरोपियन ऑप्शन यूरोपियन ऑप्शन में खरीदार को अपना ऑप्शन एक्सरसाइज करने के लिए नियमित रूप से ऑप्शन की एक्सपायरी तक इंतजार करना पड़ता था। सेटलमेंट इस आधार पर होता था कि एक्सपायरी के दिन अंडरलाइंग की स्पॉट में क्या कीमत है। इसका मतलब यह है कि अगर बजाज ऑटो का कॉल ऑप्शन 2050 के स्ट्राइक प्राइस पर खरीदा गया है तो खरीदार को मुनाफा तभी होगा जब बजाज ऑटो का शेयर एक्सपायरी के दिन स्पॉट में स्ट्राइक प्राइस से ऊपर जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता तो वह सारा पैसा जो उसने प्रीमियम के तौर पर अदा किया है वह डूब जाएगा।

अमेरिकन ऑप्शन  अमेरिकन ऑप्शन में ऑप्शन खरीदने वाले के पास अपने ऑप्शन को कभी भी एक्सरसाइज करने का अधिकार होता है। इस ऑप्शन में सेटलमेंट उस समय की कीमत के आधार पर होता है जब खरीदने वाले ने ऑप्शन को एक्सरसाइज किया, ना कि उस कीमत पर जो एक्सपायरी के दिन होती है। इसका मतलब है कि अगर किसी ने बजाज ऑटो का 2050 के स्ट्राइक प्राइस वाला ऑप्शन खरीदा है जबकि आज उसकी कीमत 2030 है तो जिस किसी भी दिन बजाज ऑटो की कीमत 2050 के ऊपर पहुंच जाती है तो ऑप्शन खरीदने वाला अपने ऑप्शन को एक्सरसाइज कर सकता है और ऑप्शन बेचने वाले को अपना दायित्व पूरा करना होगा इस पर इस बात का कोई असर नहीं होता कि एक्सपायरी में अभी कितने दिन बाकी हैं।

जो लोग ऑप्शन के बारे में जानते हैं वह यह सवाल उठा सकते हैं कि जब हमें यह अधिकार है कि ऑप्शन को खरीदने के 30 मिनट बाद भी अगर हम चाहे तो अपना ऑप्शन एक्सरसाइज कर सकते हैं तो फिर इस बात से क्या अंतर पड़ता है कि वह ऑप्शन यूरोपियन है या अमेरिकन? 

यह सवाल सही है। इस सवाल का जवाब जानने के लिए हम एक बार फिर से अजय और वेणु वाले उदाहरण पर नजर डालते हैं। इस उदाहरण में अगर अजय के पास ये अधिकार होता कि वह 6 महीने में कभी भी आकर इस समझौते पर से जुड़े अपने ऑप्शन के अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है और ऐसी स्थिति में अगर कोई अफवाह फैलती है कि हाईवे प्रोजेक्ट शुरू होने वाला है तो हो सकता है कि जमीन की कीमत काफी ऊपर चली जाती, ऐसे में अजय यह फैसला कर सकता है कि वह अपने ऑप्शन के अधिकार को अभी एक्सरसाइज करेगा और वेणु के पास इसके सिवा कोई रास्ता नहीं होता कि वह इस जमीन को अजय को बेच दे (भले ही उसे इस बात का अंदाज हो कि यह कीमत सिर्फ इसलिए ऊपर गई है क्योंकि यह अफवाह काफी तेजी से फैली है)। क्योंकि इस तरह के ऑप्शन में वेणु ज्यादा रिस्क ले रहा होगा कि अजय कभी भी ऑप्शन एक्सरसाइज कर सकता है, इसलिए उसे अब ज्यादा प्रीमियम भी चाहिए होगा। 

इसी वजह से अमेरिकन ऑप्शन हमेशा यूरोपियन ऑप्शन के मुकाबले ज्यादा महंगे होते हैं 

आपको अभी यह भी जानना चाहिए कि इसी वजह से करीब 3 साल पहले यानी 2012 में NSE ने अमेरिकन ऑप्शन को पूरी तरीके से छोड़ दिया है। अब भारतीय बाजार में सभी ऑप्शन यूरोपियन ऑप्शन पर ही आधारित हैं। इसका मतलब है कि अब सभी ऑप्शन एक्सपायरी के दिन की कीमत पर ही एक्सरसाइज किए जाते हैं। 

अगले अध्याय में अब हम पुट ऑप्शन के बारे में बात करेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. आप कॉल ऑप्शन तभी बेचते हैं जब आप मंदी में होते हैं यानी आपका नजरिया बेयरिश होता है। 
  2. कॉल ऑप्शन बेचने वाले और को खरीदने वाले का P&L एक दूसरे के एकदम विपरीत होता है। 
  3. जब आप कॉल ऑप्शन बेचते हैं तो आपको एक प्रीमियम मिलता है। 
  4. कॉल ऑप्शन बेचने वाले को एक्सचेंज में एक मार्जिन जमा करना होता है।
  5. ऑप्शन बेचने वाले का मुनाफा सीमित होता है उतना ही जितना कि उसे प्रीमियम मिल रहा है लेकिन उसको होने वाला नुकसान असीमित हो सकता है।
  6. P&L = प्रीमियम –  Max[0,(स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत)]
  7. ब्रेक डॉउन प्वाइंट = स्ट्राइक कीमत + प्राप्त प्रीमियम
  8. भारत में सभी ऑप्शन यूरोपियन होते हैं। 

The post कॉल ऑप्शन को राइट करना/ बेचना appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%ac%e0%a5%87%e0%a4%9a/feed/ 211 M5-Ch4-title Image 1_Bajaj Auto stock price Image 2_Bajaj Auto Image 3_Short call pay off Image 4_Futures Margin Image 5_ Options Margin
कॉल ऑप्शन की खरीदारी https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%96%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%96%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:59:40 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6413 3.1 कॉल ऑप्शन की खरीद  पिछले अध्याय में हमने कॉल ऑप्शन के मूल सिद्धांतों को समझा और यह भी समझा कि किस परिस्थिति में उसको खरीदा जाना चाहिए। इस अध्याय में हम उसी बात को आगे बढ़ाएंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि कॉल ऑप्शन की खरीद–बिक्री कैसे होती है। लेकिन इसके पहले, हमने […]

The post कॉल ऑप्शन की खरीदारी appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
3.1 कॉल ऑप्शन की खरीद 

पिछले अध्याय में हमने कॉल ऑप्शन के मूल सिद्धांतों को समझा और यह भी समझा कि किस परिस्थिति में उसको खरीदा जाना चाहिए। इस अध्याय में हम उसी बात को आगे बढ़ाएंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि कॉल ऑप्शन की खरीदबिक्री कैसे होती है। लेकिन इसके पहले, हमने अब तक जो सीखा है, एक बार उसको दोहरा लेते हैं:

  1. जब आप अंडरलाइंग की कीमत के बढ़ने की उम्मीद करते हैं तो ऐसे में कॉल ऑप्शन खरीदना एक अच्छा विकल्प होता है 
  2. अगर अंडरलाइंग की कीमत अपनी जगह पर टिकी रहती है या नीचे जाती है तो कॉल ऑप्शन खरीदने वाले को नुकसान होता है 
  3. कॉल ऑप्शन के खरीदार को उतना ही नुकसान होता है जितना उसने कॉल ऑप्शन के राइटर या बेचने वाले को प्रीमियम के तौर पर अदा किया है 

ऊपर कही गई तीनों बातें कॉल ऑप्शन के मूल सिद्धांत के तौर पर काम करती हैं आप इनको याद रखेंगे तो आगे की बातें समझना आपके लिए आसान होगा।

3.2 – कॉल ऑप्शन की तैयारी

बाजार में कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है जब कॉल ऑप्शन खरीदना एक बहुत अच्छा विकल्प होता है। ऐसा ही एक उदाहरण मुझे मिला। आप नीचे के चार्ट को देखिए

यहां बजाज ऑटो लिमिटेड के स्टॉक को दिखाया गया है। जैसा कि आपको पता है यह भारत में दो पहिया वाहन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। यहां आप देख सकते हैं कि यह स्टॉक अपने 52 हफ्तों के निचले स्तर पर चल रहा है, मुझे लगता है कि यहां पर इस स्टॉक में एक ट्रेड बनता है। मेरी इस राय की वजह ये हैं 

  1. बजाज ऑटो फंडामेंटल तौर पर एक बहुत ही बढ़िया स्टॉक है 
  2. स्टॉक इतना ज्यादा पिट चुका है कि मुझे लगता है कि बाजार ने इस बिजनेस साइकिल में आने वाले उतार-चढ़ाव को पर कुछ ज्यादा ही बुरी प्रतिक्रिया दे दी है 
  3. स्टॉक काफी नीचे जा चुका है, मुझे लगता है कि अब ये यहां से ज्यादा नहीं गिरेगा और उसके बाद फिर से ऊपर जाने लगेगा 
  4. लेकिन मैं इस स्टॉक को डिलीवरी के लिए नहीं खरीदना चाहता क्योंकि मुझे डर है कि ये कहीं और ना गिर जाए 
  5. इसी वजह से मैं बजाज ऑटो को फ्यूचर्स में भी नहीं खरीदना चाहता क्योंकि मुझे M2M घाटे का डर लग रहा है 
  6. लेकिन मैं इसमें आने वाली तेजी के मौके को चूकना भी नहीं चाहता हूं

तो कुल मिलाकर मैं बजाज ऑटो के स्टॉक को लेकर काफी तेजी में हूं, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि तेजी अभी तुरंत शुरू होगी या कुछ और गिरावट के बाद। मेरी अनिश्चितता इस वजह से है कि यह बाजार में बहुत छोटी अवधि के लिए आई गिरावट भी बड़ा नुकसान कर सकती है। मेरे आकलन के मुताबिक नुकसान की संभावना कम है लेकिन संभावना तो है। ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए? 

मेरी दुविधा वैसी ही है जैसी अजय को थी (अध्याय 1 के अजय वेणु वाले उदाहरण में)।  ऐसी परिस्थिति में ऑप्शन ट्रेड एक बेहतरीन विकल्प होता है।

इस दुविधा की स्थिति में मेरे लिए कॉल ऑप्शन खरीदना सबसे बेहतर विकल्प होगा। लेकिन पहले बजाज ऑटो के ऑप्शन चेन पर एक नजर डालते हैं

जैसे कि आप देख सकते हैं कि स्टॉक ₹2026.9 पर ट्रेड हो रहा है (इसको नीले रंग से हाईलाइट किया गया है)। मैं 2050 के स्ट्राइक वाला कॉल ऑप्शन खरीदना चाहता हूं इसके लिए मुझे ₹6.35 का प्रीमियम देना पड़ेगा (लाल रंग के बक्से में एक लाल तीर के साथ दिखाया गया है)। आप सोच रहे होंगे कि मैंने 2050 का स्ट्राइक प्राइस क्यों चुना जबकि मेरे सामने बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं। स्ट्राइक प्राइस को चुनना अपने आप में एक अलग विषय है, जिसको ज्यादा समझने की जरूरत है। आगे के मॉड्यूल में हम इसको अच्छे से समझेंगे लेकिन अभी बस यह समझ लीजिए कि 2050 इस ट्रेड के लिए सही स्ट्राइक प्राइस है।

3.3 – एक्सपायरी पर कॉल ऑप्शन का अंतर्निहित मूल्य/इंट्रिन्सिक वैल्यू (Intrinsic Value) 

इस कॉल ऑप्शन की एक्सपायरी 15 दिनों बाद है। ऐसे में इस दौरान इस कॉल ऑप्शन का क्या होगा? अब तक आपको पता चल ही गया है कि यहां पर तीन स्थितियां हो सकती हैं। 

स्थिति 1 स्टॉक की कीमत स्ट्राइक प्राइस से ऊपर चली जाती है, मान लीजिए 2080 तक 

स्थिति 2 स्टॉक की कीमत स्ट्राइक कीमत से नीचे चली जाती है, मान लीजिए 2030 तक 

स्थिति 3 स्टॉक की कीमत 2050 पर ही टिकी रहती है 

ऊपर दी गई तीनों स्थितियां वैसी ही हैं जिन पर हमने अध्याय 1 में चर्चा की थी इसलिए मैं उम्मीद करता हूं कि अलग-अलग स्पॉट कीमत पर इनके P&L की गणना आप कर सकेंगे। 

अभी यहां पर हम एक अलग बात पर चर्चा करते हैं

  1. आप सहमत होंगे कि यहां पर बजाज ऑटो के शेयरों की कीमत में बदलाव की केवल तीन परिस्थितियां ही बनती हैं शेयर या तो बढ़ेगा, घटेगा या इसी कीमत पर स्थिर रहेगा। 
  2. लेकिन इस बीच में जो और अलग-अलग कीमतें हैं उनके असर को कैसे समझें? उदाहरण के तौर पर अगर स्थिति 1 को लें, इसमें शेयर की कीमत को हमने 2080 माना है यानी 2050 की स्ट्राइक कीमत के मुकाबले ऊपर। लेकिन शेयर की कीमत 2080 की जगह 2055, 2060, 2065, 2070 या 2075 हो तो? ऐसे में क्या हम P&L में से कुछ ऐसे संकेत निकाल सकते हैं जो हर कीमत के लिए सही साबित हों? 
  3. इसी तरीके से स्थिति 2 में स्टॉक की कीमत 2030 तक पहुंचने की बात की गई है लेकिन वहां पर भी 2045, 2040, 2035 जैसी अलग-अलग कीमत बीच में आएंगी। ऐसे में एक्सपायरी पर बनने वाले P&L के बारे में सामान्य तौर पर क्या कहा जा सकता है? 

एक्सपायरी के दिन स्पॉट में अलग-अलग कीमत पर P&L कैसा बनेगा और उनमें एक समान बात क्या होगी? इन अलग-अलग कीमतों को मैं एक्सपायरी पर स्पॉट में आने वाली संभावित कीमतें कहता हूं। अब इनके जरिए P&L का सामान्यीकरण करता हूं जिससे कॉल ऑप्शन को समझा जा सके।

ऐसा करने के लिए मुझे ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू के सिद्धांत को समझना पड़ेगा। हालांकि हम यह सिद्धांत यहां पूरा नहीं समझेंगे इसका कुछ हिस्सा ही समझेंगे। 

ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू एक्सपायरी के समय नॉन नेगेटिव (Non-Negative) होती है मतलब यह नेगेटिव नहीं हो सकती। इंट्रिन्सिक वैल्यू वह रकम है या कीमत है जो कॉल ऑप्शन के खरीदार को कॉल ऑप्शन एक्सरसाइज करने पर मिलेगी। आम भाषा में कहें तो यह वह रकम है जो कि कॉल ऑप्शन की एक्सपायरी के समय कॉल ऑप्शन के खरीदार को मुनाफे के तौर पर मिलती है। इसको ऐसे निकालते हैं

IV = स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत

IV = Spot Price – Strike Price

तो अगर बजाज ऑटो एक्सपायरी के दिन 2068 पर बिक रहा है तो तो 2050 के कॉल ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 

= 2068-2050

= 18

इसी तरह अगर बजाज ऑटो 2025 पर बिक रहा है तो एक्सपायरी के दिन उसकी इंट्रिन्सिक वैल्यू होगी 

= 2025 2050

यहां पर एक बात याद रखने वाली है किसी भी ऑप्शन की (चाहे वह कॉल ऑप्शन हो या फिर पुट ऑप्शन) इंट्रिन्सिक वैल्यू कभी भी नेगेटिव नहीं होती ये हमेशा नॉन नेगेटिव होती है मतलब कभी भी – में नहीं हो सकती। इसलिए हम इसको यहां 2025 पर ही छोड़ देंगे।

= 0

यहां पर हम इंट्रिन्सिक वैल्यू वैल्यू के संदर्भ में यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि एक्सपायरी के दिन बजाज ऑटो की अलग-अलग कीमतों पर मैं कितना पैसा बनाऊंगा। इसी सिलसिले में मैं कॉल ऑप्शन के खरीदार के P&L का सामान्यीकरण कर रहा हूं।

3.4 कॉल ऑप्शन के खरीदार के P&L का सामान्यीकरण – Generalizing the P&L for a call option buyer

किसी ऑप्शन के इंट्रिसिक वैल्यू सिद्धांत को अपने दिमाग में रखते हुए अब हम एक ऐसा टेबल बनाने की कोशिश करेंगे जिससे यह पता चल सके कि बजाज ऑटो के 2050 के कॉल ऑप्शन को खरीदने वाले खरीदार के अलग-अलग कीमतों पर कितने पैसे बनेंगे? याद रखिए कि इस ऑप्शन के लिए ₹6.35 का क्या प्रीमियम दिया गया है। स्पॉट बाजार में शेयर की कीमत में कितना भी बदलाव हो यह प्रीमियम नहीं बदलेगा। 2050 के कॉल ऑप्शन को खरीदने के लिए मैंने यह कीमत अदा की है। इन बातों को ध्यान रखते हुए अब P&L का टेबल बनाते हैं

ध्यान दीजिए कि जहां पर भी मैंने इस टेबल में प्रीमियम के आगे जो नेगेटिव या माइनस का साइन दिया है वह उस रकम को दिखलाता है जो मेरे ट्रेडिंग अकाउंट से निकली है

क्रम सं. स्पॉट की संभावित कीमत दिया गया प्रीमियम इंट्रिन्सिक वैल्यू (IV) P&L (IV + प्रीमियम)
01 1990 (-) 6.35 1990 – 2050 = 0 = 0 + (– 6.35) = – 6.35
02 2000 (-) 6.35 2000 – 2050 = 0 = 0 + (– 6.35) = – 6.35
03 2010 (-) 6.35 2010 – 2050 = 0 = 0 + (– 6.35) = – 6.35
04 2020 (-) 6.35 2020 – 2050 = 0 = 0 + (– 6.35) = – 6.35
05 2030 (-) 6.35 2030 – 2050 = 0 = 0 + (– 6.35) = – 6.35
06 2040 (-) 6.35 2040 – 2050 = 0 = 0 + (– 6.35) = – 6.35
07 2050 (-) 6.35 2050 – 2050 = 0 = 0 + (– 6.35) = – 6.35
08 2060 (-) 6.35 2060 – 2050 = 10 = 10 +(-6.35) = + 3.65
09 2070 (-) 6.35 2070 – 2050 = 20 = 20 +(-6.35) = + 13.65
10 2080 (-) 6.35 2080 – 2050 = 30 = 30 +(-6.35) = + 23.65
11 2090 (-) 6.35 2090 – 2050 = 40 = 40 +(-6.35) = + 33.65
12 2100 (-) 6.35 2100 – 2050 = 50 = 50 +(-6.35) = + 43.65

 

तो इस टेबल में आपको क्या दिख रहा है?! इसमें दो बहुत ही खास बातें नजर आएंगी।

  1. अगर बजाज ऑटो की कीमत स्ट्राइक प्राइस यानी 2050 के नीचे भी चली जाती है तो भी अधिकतम नुकसान ₹6.35 पैसे का ही दिखता है।
    1. समान्यीकरण 1: कॉल ऑप्शन के खरीदार तो तब नुकसान होता है जब स्पॉट की कीमतें स्ट्राइक प्राइस के नीचे चली जाती हैं लेकिन यह नुकसान उतने पर ही रूक जाता है   जितना उस ऑप्शन के खरीदार ने  प्रीमियम दिया है। 
  2. अगर बजाज ऑटो के शेयर की कीमतें उसकी स्ट्राइक प्राइस यानी 2050 के ऊपर जाने लगती हैं तो ऑप्शन के खरीदार का मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है। 
    1. समान्यीकरण 2: कॉल ऑप्शन तब मुनाफे का सौदा होता है जब स्पॉट की कीमतें ऊपर जाने लगती हैं और स्ट्राइक प्राइस के ऊपर बढती जाती हैं। स्पॉट की कीमत स्ट्राइक प्राइस के जितना ज्यादा ऊपर होंगी मुनाफा उतना ही अधिक होगा।
  3. इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि कॉल ऑप्शन के खरीदार के लिए रिस्क एक सीमा तक ही है लेकिन मुनाफे की कोई सीमा नहीं है। 

नीचे के फार्मूले से आप किसी भी स्पॉट कीमत के आधार पर कॉल ऑप्शन का P&L निकाल सकते हैं

P&L = Max [0,(स्पॉट कीमत –  स्ट्राइक प्राइस)] प्रीमियम

P&L = Max [0, (Spot Price – Strike Price)] – Premium Paid

इस फार्मूले के आधार पर हम स्पॉट की कुछ संभावित कीमतों का P&L निकालने की कोशिश करते हैं

    1. 2023
    2. 2072
    3. 2055

गणना देखिए

@2023

= Max [0, (2023 – 2050)] – 6.35

= Max [0, (-27)] – 6.35

= 0 – 6.35

– 6.35

 आप देख सकते कि ये परिणाम समान्यीकरण 1 से मिलता है यानी नुकसान प्रीमियम के बराबर है।

@2072

= Max [0, (2072 – 2050)] – 6.35

= Max [0, (+22)] – 6.35

= 22 – 6.35

+15.65

ये परिणाम सामान्यीकरण 2 से मेल खाता है यानी जब स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत से ऊपर जाती हैं तो कॉल ऑप्शन में फायदा होता है।

@2055

= Max [0, (2055 – 2050)] – 6.35

= Max [0, (+5)] – 6.35

= 5 – 6.35

-1.35

आप देख सकते हैं कि यहां पर हमें जो परिणाम मिला है वह समान्यीकरण 2 के विपरीत है। स्टॉक की स्पॉट कीमत उसकी स्ट्राइक प्राइस के ऊपर है लेकिन फिर भी इस ट्रेड में नुकसान हो रहा है। ऐसा क्यों है? साथ ही, नुकसान भी अधिकतम सीमा यानी ₹6.35 पैसे के मुकाबले कम है सिर्फ ₹1. 35 । इसको समझने के लिए हमें उन स्पॉट कीमतों के P&L को ध्यान से देखना होगा जो कि 2050 की स्ट्राइक कीमत से कुछ ही ऊपर हैं। और वहां पर यह देखना होगा कि P&L वहां कैसे काम करता है

क्रम सं. स्पॉट की संभावित कीमत दिया गया प्रीमियम इंट्रिंसिक वैल्यू (IV) P&L (IV + प्रीमियम)
01 2050 (-) 6.35 2050 – 2050 = 0 = 0 + (– 6.35) = – 6.35
02 2051 (-) 6.35 2051 – 2050 = 1 = 1 + (– 6.35) = – 5.35
03 2052 (-) 6.35 2052 – 2050 = 2 = 2 + (– 6.35) = – 4.35
04 2053 (-) 6.35 2053 – 2050 = 3 = 3 + (– 6.35) = – 3.35
05 2054 (-) 6.35 2054 – 2050 = 4 = 4 + (– 6.35) = – 2.35
06 2055 (-) 6.35 2055 – 2050 = 5 = 5 + (– 6.35) = – 1.35
07 2056 (-) 6.35 2056 – 2050 = 6 = 6 + (– 6.35) = – 0.35
08 2057 (-) 6.35 2057 – 2050 = 7 = 7 +(- 6.35) = + 0.65
09 2058 (-) 6.35 2058 – 2050 = 8 = 8 +(- 6.35) = + 1.65
10 2059 (-) 6.35 2059 – 2050 = 9 = 9 +(- 6.35) = + 2.65

आप ऊपर के टेबल में देख सकते हैं कि जब तक स्पॉट की कीमत स्ट्राइक कीमत के बराबर रहती हैं तब तक कॉल ऑप्शन के खरीदार का अधिकतम नुकसान 6.35 ही रहता है। जब स्पॉट की कीमत स्ट्राइक कीमत के ऊपर जाने लगती है तब घाटा कम होने लगता है। घाटा कम होता रहता है और एक ऐसी जगह पहुंच जाता है जहां पर ना तो मुनाफा हो रहा है ना ही घाटा हो रहा है। ऐसी स्थिति को ब्रेक इवन प्वाइंट कहते हैं। किसी कॉल ऑप्शन के ब्रेक इवन प्वाइंट को निकालने का फार्मूला है

B.E = स्ट्राइक कीमत + दिया गया प्रीमियम

B.E = Strike Price + Premium Paid

बजाज आटो के उदाहरण में ब्रेक-इवन प्वाइंट होगा

= 2050 + 6.35

2056.35

अब एक बार P&L पर नजर डालते हैं

= Max [0, (2056.35 – 2050)] – 6.35

= Max [0, (+6.35)] – 6.35

= +6.35 – 6.35

= 0

 जैसा कि आप देख सकते हैं जो कि ब्रेक इवन प्वाइंट पर ना तो पैसे बनते हैं और ना ही पैसे का नुकसान होता है। इसका मतलब यह है कि अगर कॉल ऑप्शन को फायदेमंद बनना है तो इस स्पॉट की कीमतों को ना सिर्फ स्ट्राइक कीमत के ऊपर जाना होगा बल्कि ब्रेक इवन प्वाइंट के भी ऊपर जाना होगा।

3.5 कॉल ऑप्शन के खरीदार को मिलने वाला भुगतान

तो हमने अब तक कॉल ऑप्शन के खरीदार को मिलने वाले भुगतान की अलग-अलग परिस्थितियों को समझ लिया है। एक बार इन सारी परिस्थितियों को फिर से देख लेते हैं

  1. कॉल ऑप्शन के खरीदार के लिए अधिकतम नुकसान उतना ही होगा जितना उसने प्रीमियम दिया है। खरीदार को तब तक नुकसान होता रहेगा जब तक स्पॉट की कीमतें स्ट्राइक कीमतों से नीचे रहेंगी। 
  2. अगर स्पॉट की कीमतें स्ट्राइक कीमतों से ऊपर बढ़ती रहें तो कॉल ऑप्शन के खरीदार के लिए मुनाफे की संभावना असीमित हैं।
  3. वैसे तो कॉल ऑप्शन के खरीदार के लिए मुनाफे की शुरूआत तभी हो जाती है जब स्पॉट की कीमतें स्ट्राइक कीमतों से ऊपर चली जाती हैं लेकिन उसे पहले अपने प्रीमियम की रकम को कमाना होता है। 
  4. वह कीमत जिस कीमत पर कॉल ऑप्शन का खरीदार अपनी प्रीमियम की रकम को पूरी तरह से कमा चुका होता है उस कीमत को ब्रेक इवन प्वाइंट कहते हैं।
  5. कॉल ऑप्शन के खरीदार की कमाई वास्तव में तभी शुरू होती है जब उसकी कीमत ब्रेक इवन प्वाइंट से ऊपर जाती है।

यह सभी बातें नीचे के ग्राफ में बहुत आसानी से दिखाई पड़ती हैं। बजाज ऑटो के कॉल ऑप्शन ट्रेड का यह ग्राफ देखिए।

ऊपर के ग्राफ से जो बातें निकल कर आती हैं उन पर एक बार फिर से नजर डालते हैं

  1. अगर स्पॉट कीमतें 2050 की स्ट्राइक कीमत से नीचे रहती है तो घाटा ₹6.35 पैसे से अधिक नहीं होता 
  2.  2050 से 2056.35 (ब्रेक इवन प्वाइंट) तक घाटा कम होता रहता है। 
  3. 2056.35 पर ना तो फायदा हो रहा है ना तो नुकसान हो रहा है।
  4. 2056.35 के बाद कॉल ऑप्शन में पैसे बनने लगते हैं। यहां ग्राफ की लाइन जिस तरीके से ऊपर जा रही है वह यह दिखाती है कि इसके बाद से मुनाफा तेजी से बढ़ता है। 

यह ग्राफ फिर से वही बताता है कि एक कॉल ऑप्शन के खरीदार के लिए रिस्क की सीमा तय है लेकिन उसके मुनाफे की कोई सीमा नहीं है।

अब आपने खरीदार के हिसाब से कॉल ऑप्शन को समझ लिया है। अगले अध्याय में हम कॉल ऑप्शन को बिकवाल यानी बेचने वाले के हिसाब से समझेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. अगर आपको लगता है कि अंडरलाइंग की कीमतें ऊपर जाएंगी तो कॉल ऑप्शन खरीदना बेहतर होता है।
  2. अगर अंडरलाइंग की कीमतें अपनी जगह पर टिकी रहती हैं या नीचे जाती है तो कॉल ऑप्शन के खरीदार को नुकसान उठाना पड़ता है।
  3. कॉल ऑप्शन के खरीदार को उतना ही नुकसान होता है जितना उसने कॉल ऑप्शन के राइटर या बेचने वाले को प्रीमियम के तौर पर अदा किया है। 
  4. कॉल ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू नॉन नेगेटिव संख्या होती है मतलब ये 0 से नीचे नहीं जा सकती। 
  5. IV = Max[0,(स्पॉट कीमतस्ट्राइक कीमत)]
  6. कॉल ऑप्शन के खरीदार के लिए नुकसान की अधिकतम सीमा उतनी ही होती है जितना उसने प्रीमियम के तौर पर अदा किया है और उसे नुकसान तब तक होता रहता है जब तक स्पॉट की कीमत स्ट्राइक कीमत से नीचे रहती है।
  7. कॉल ऑप्शन के खरीदार के लिए मुनाफा असीमित होता है। जब तक स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत से ऊपर जाती रहती है तब तक उसे मुनाफा होता रहता है 
  8. वैसे तो कॉल ऑप्शन में जब भी स्पॉट कीमत स्ट्राइक कीमत से ऊपर चली जाती है तो कॉल ऑप्शन में फायदा होने लगता है लेकिन कॉल ऑप्शन के खरीदार को पहले अपनी प्रीमियम की रकम को वापस लाना होता है।
  9. जिस कीमत पर कॉल ऑप्शन के खरीदार की प्रीमियम की रकम बाहर निकल आती है या प्रीमियम के बराबर कमाई हो जाती है उस कीमत तो ब्रेक इवन प्वाइंट कहते हैं।
  10. कॉल ऑप्शन में खरीदार वास्तव में कमाई तब शुरु करता है जब स्पॉट की कीमतें ब्रेक इवन प्वाइंट से ऊपर चली जाती हैं।

The post कॉल ऑप्शन की खरीदारी appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%96%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80/feed/ 102 Image 1_Bajaj Auto stock price Image 2_Bajaj Auto M5-Ch3-title Image-3_Payoff
ऑप्शन की शब्दावली https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b6%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%b2%e0%a5%80/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b6%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%b2%e0%a5%80/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:57:58 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6411 2.1 ज़रूरी शब्दावली का अर्थ पिछले अध्याय में हमने कॉल ऑप्शन के कुछ ज़रूरी सिद्धांतों को समझा था, जैसे-  जब आप अंडरलाइंग की कीमत में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हों तो कॉल ऑप्शन को खरीदना एक बेहतर विकल्प होता है।  यदि अंडरलाइंग की कीमत स्थिर रहती है, या नीचे जाती है तो कॉल ऑप्शन […]

The post ऑप्शन की शब्दावली appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
2.1 ज़रूरी शब्दावली का अर्थ

पिछले अध्याय में हमने कॉल ऑप्शन के कुछ ज़रूरी सिद्धांतों को समझा था, जैसे- 

  1. जब आप अंडरलाइंग की कीमत में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हों तो कॉल ऑप्शन को खरीदना एक बेहतर विकल्प होता है। 
  2. यदि अंडरलाइंग की कीमत स्थिर रहती है, या नीचे जाती है तो कॉल ऑप्शन के खरीदार को नुकसान उठाना पड़ता है। 
  3. कॉल ऑप्शन के खरीदार को उतनी ही रकम का नुकसान होता है जितना प्रीमियम (एग्रीमेंट फीस) वो कॉल ऑप्शन के राइटर/बेचने वाले को देता है। 

अगले अध्याय यानी कॉल ऑप्शन भाग 2 में हम कॉल ऑप्शन को ज्यादा विस्तार से समझेंगे। लेकिन ऐसा करने के पहले ये ज़रूरी है कि हम इससे जुड़ी शब्दावली को समझ लें। ऐसा करने से हमें आगे के अध्यायों को समझने में आसानी होगी। जिन शब्दों का अर्थ हम समझने की कोशिश करेंगे वो हैं-

  1. स्ट्राइक प्राइस/कीमत
  2. अंडरलाइंग कीमत
  3. ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज करना 
  4. ऑप्शन एक्सपायरी 
  5. ऑप्शन प्रीमियम 
  6. ऑप्शन सेटलमेंट

याद रखिये कि अभी हम इन शब्दों का अर्थ सिर्फ कॉल ऑप्शन के संदर्भ में ही समझ रहे हैं। 

स्ट्राइक प्राइस/कीमत

स्ट्राइक प्राइस को आप वो आधार मान सकते हैं जिस कीमत पर खरीदार और बिकवाल दोनों में ऑप्शन एग्रीमेंट करने का फैसला किया है। उदाहरण के तौर पर पिछले अध्याय के “अजय-वेणु” उदाहरण में एंकर प्राइस 5 लाख रूपये थी जोकि उस सौदे की स्ट्राइक प्राइस भी थी। हमने एक शेयर का उदाहरण भी लिया था, जहाँ पर एंकर कीमत 75 रूपये थी जोकि स्ट्राइक कीमत भी थी। सभी कॉल ऑप्शन में स्ट्राइक कीमत वो कीमत होती है जिस पर एक्सपायरी के दिन उस शेयर को खरीदा जा सकता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर कोई ITC लिमिटेड के 350 रूपये के कॉल ऑप्शन को खरीदना चाहता है (यहाँ 350 स्ट्राइक कीमत है) तो यह बताता है कि खरीदार एक्सपायरी के दिन ITC को 350 पर खरीदने के लिए आज ही प्रीमियम देने को तैयार है। ध्यान रखें कि वो ITC को 350 पर तभी खरीदेगा, जब ITC  350 के ऊपर बिक रहा होगा। 

मैंने NSE की वेबसाइट से ITC की अलग-अलग स्ट्राइक कीमतों और उनसे जुड़े प्रीमियम का स्क्रीनशॉट लिया है जिसे आप नीचे देख सकते हैं। 

ऊपर की सारणी/टेबल में जो कुछ आप देख रहे हैं उसे ऑप्शन चेन कहते हैं। ऑप्शन चेन में अलग-अलग स्ट्राइक कीमतों पर किसी कॉन्ट्रैक्ट के प्रीमियम को दिखाया जाता है। इसके अलावाऑप्शन चेन में ट्रेडिंग के लिए और कई सूचनाएँ भी होती हैं, जैसे ओपन इंट्रेस्ट, वॉल्यूम, बिड/आस्क मात्राएँ आदि। मेरी सलाह है कि अभी के लिए आप इन सूचनाओं पर ध्यान न दें और सारणी में हाईलाइट किये गए हिस्से पर ही फोकस करें –

  1. लाल रंग से हाईलाइट किये गए हिस्से में अंडरलाइंग की स्पॉट कीमत को दिखाया गया है। जैसा कि आप देख सकते हैं कि इस चित्र को लेते समय ITC 336.9 रूपये प्रति शेयर पर बिक रहा था। 
  2. नीले रंग से हाईलाइट किये गए हिस्से में सभी उपलब्ध स्ट्राइक कीमतों को दिखाया गया है। जैसा कि हम देख सकते हैं कि 260 रूपये से लेकर 480 रूपये तक की स्ट्राइक कीमतें हर 10 रूपये के अंतर पर दिख रही हैं। 
  3. याद रखिए कि किसी भी स्ट्राइक कीमत का संबंध किसी दूसरी स्ट्राइक कीमत से नहीं है। आप किसी भी कीमत पर ऑप्शन एग्रीमेंट कर सकते हैं, बस आपको उससे जुड़ा प्रीमियम देना होगा। 
  4. उदाहरण के तौर पर आप 340 के कॉल ऑप्शन को 4 रूपये 75 पैसे का प्रीमियम देकर ले सकते हैं। इसे ऊपर लाल रंग से दिखाया गया है। 
  5. ये खरीदार को एक्सपायरी के अंत तक ITC का शेयर 340 रूपये पर खरीदने का विकल्प देगा। 

अंडरलाइंग कीमत/प्राइस 

जैसा कि हम जानते है कि किसी भी डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट की कीमत उसके अंडरलाइंग एसेट की कीमत से तय होती है। अंडरलाइंग कीमत वो कीमत है जिस कीमत पर अंडरलाइंग एसेट स्पॉट बाज़ार में बिक रहा होता है। उदाहरण के तौर पर ITC वाले उदाहरण में स्पॉट बाज़ार में ITC 336.90 रुपये पर बिक रहा है। यही अंडरलाइंग कीमत है। किसी भी कॉल ऑप्शन में खरीदार के पैसे तभी बनते हैं जब अंडरलाइंग कीमत बढ़ती है।    

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज करना 

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज करने का मतलब ये होता है कि आपके पास एक्सपायरी के अंत में ऑप्शन खरीदने का जो अधिकार है, आप उसका उपयोग करते हैं। जब भी आप ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज करने के बारे में सुनते हैं तो उसका मतलब यही होता है कि खरीदार ने पहले से तय स्ट्राइक कीमत पर खरीदने का ऑप्शन ले लिया है। अब तक आपको ये साफ हो चुका होगा कि वो ऐसा तभी करेगा जब वो शेयर स्ट्राइक कीमत से ऊपर बिक रहा हो। यहाँ पर एक बहुत ज़रूरी बात जो आपको याद रखनी चाहिए, वो है – आप एक्सपायरी के दिन ही अपने ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज कर सकते हैं, एक्सपायरी के पहले नहीं। 

मान लिजिए एक्सपायरी से 15 दिन पहले किसी ने ITC का कॉल ऑप्शन 340 पर लिया जबकि स्पॉट बाज़ार में ITC 330 पर था। अब अगर ITC की कीमत अगले दिन 360 रुपये पर पहुँच जाती है, तो ऑप्शन का खरीदार सेटलमेंट यानी अपने कॉल ऑप्शन को एक्सरसाइज नहीं कर सकता। सेटलमेंट सिर्फ एक्सापयरी के दिन ही होगा और वो भी उस कीमत पर जिस पर वो एसेट एक्सपायरी के दिन स्पॉट बाज़ार में बिक रहा है। 

ऑप्शन एक्सपायरी

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की तरह ही ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में भी एक्सपायरी होती है। वास्तव में फ्यूचर और ऑप्शन दोनों के कॉन्ट्रैक्ट महीने के आखिरी गुरूवार को एक्सपायर होते हैं। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की तरह ही ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में भी करेंट मंथ, मिड मंथ और फार मंथ के कॉन्ट्रैक्ट होते हैं। नीचे के चित्र को देखिए- 

इस चित्र में अशोक लेलैंड लिमिटेड को 70 रुपये के स्ट्राइक प्राइस पर 3.10 रुपये पर बिकता दिखाया गया है। जैसा कि आप देख सकते हैं कि यहाँ पर एक्सपायरी के 3 विकल्प दिखाए गए हैं- 26 मार्च 2015 (करेंट मंथ), 30 अप्रैल 2015 (मिड मंथ), और 28 मई 2015 (फार मंथ)। जब एक्सपायरी बंदलती है तो ऑप्शन का प्रीमियम भी बदलता है। इसके बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे लेकिन अभी आपको 2 बातें याद रखनी चाहिए – फ्यूचर की तरह ही यहाँ एक्सपायरी के 3 विकल्प होते हैं, और हर एक्सपायरी में अलग-अलग प्रीमियम होता है। 

ऑप्शन प्रीमियम



प्रीमियम वो रकम है जो कि ऑप्शन का खरीदार ऑप्शन के बिकवाल/राइटर को अदा करता है। प्रीमियम की अदायगी के बदले में ऑप्शन के खरीदार को यह अधिकार मिलता है कि वो एक्सपायरी के दिन अपने ऑप्शन को एक्सरसाइज कर सके और एसेट को पहले से निश्चित स्ट्राइक प्राइस पर खरीद सके। 

अगर आपको अब तक सब कुछ समझ में आ रहा है तो आप के सीखने की गति अच्छी है, और अब हम प्रीमियम से जुड़ा नया नज़रिया समझ सकते हैं। साथ ही आपके लिए ये जानना महत्वपूर्ण है कि पूरी की पूरी ऑप्शन थ्योरी सिर्फ ऑप्शन प्रीमियम पर टिकी हुई है। ऑप्शन की ट्रेडिंग में ऑप्शन प्रीमियम एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जैसे-जैसे हम इस मॉड्यूल में आगे बढ़ेंगे, वैसे-वैसे हम ऑप्शन प्रीमियम के बारे में ज्यादा से ज्यादा बात करेंगे। 

एक बार फिर से अजय और वेणु वाले उदाहरण पर नज़र डालते हैं। याद कीजिए की वेणु ने किन हालात में अजय से एक लाख रूपये का प्रीमियम लिया था- 

  1. न्यूज़ फ्लो/खबरें – हाईवे प्रोजेक्ट आने की खबर सिर्फ एक अनुमान था और किसी को भी पक्का पता नहीं था कि प्रोजेक्ट आएगा। 
  1. हमने 3 संभावित विकल्पों पर चर्चाकी थी जिसमें से 2 वेणु के लिए फायदे वाले थे। तो आंकड़ों के हिसाब से भी वेणु को फायदा होने की संभावना ज्यादा थी और इस खबर के पक्का ना होने की वजह से उसको फायदा होने के ज्यादा उम्मीद थी। 
  1. टाइम/समय- प्रोजेक्ट आएगा या नहीं ये साफ होने में 6 महीने का समय था। 
  1. समय वास्तव में अजय के लिए फायदेमंद है। जितना ज्यादा समय है उतना ही चीजें अजय के पक्ष में होने की उम्मीद बढ़ जाएगी। उदाहरण के तौर पर अगर आपको 10 किलोमीटर दौड़ना है तो आप 20 मिनट में आसानी से दौड़ पूरी कर पाएँगे या 70 मिनट में? साफ है ज्यादा समय चीजें अपने पक्ष में करने का मौका देता है। 

अब इन दोनों मुद्दों को अलग-अलग देखते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि इनका ऑप्शन के प्रीमियम पर क्या असर पड़ेगा। 

खबर- जब अजय और वेणु के बीच में सौदा हुआ था तो खबर पक्की नहीं थी। इसलिए वेणु ने बड़ी आसानी से 100,000 रूपये का प्रीमियम स्वीकार कर लिया। लेकिन मान लीजिए कि किसी स्थानीय नेता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान किया होता कि इस इलाके में एक हाईवे पर विचार किया जा रहा है तो ये खबर सिर्फ अफवाह नहीं रह जाती बल्कि हाईवे के बनने की संभावना बढ़ जाती। 

इस परिदृश्य में क्या वेणु 100,000 का प्रीमियम स्वीकार करता? शायद नहीं, क्योंकि उसे पता होता कि हाईवे बनने की संभावना बहुत ज्यादा है और इसकी वजह से ज़मीन की कीमतें बढ़ेंगी। ये हो सकता था कि वो फिर भी ये सौदा कर लेता अगर उसे 100,000 के बजाय 175,000 का प्रीमियम मिलता क्योंकि वो इस स्थिति में ज्यादा रिस्क ले रहा था इसलिए वो ज्यादा प्रीमियम की उम्मीद कर सकता था। 

अब इसी को शेयर बाज़ार के नज़रिये से देखते हैं। मान लीजिए इंफोसिस 2200 पर चल रहा है। 2300 रुपये का कॉल ऑप्शन जिसकी एक्सपायरी 1 महीने के बाद है 20 रुपये पर बिक रहा है। अब अपने आप को वेणु (ऑप्शन राइटर) की जगह पर रखिए और सोचिए कि क्या आप 20 रूपये प्रति शेयर का प्रीमियम स्वीकार करेंगे। 

अगर आप ये ऑप्शन एग्रीमेंट करते हैं तो आप खरीदार को एक महीने बाद 2300 रुपये पर इंफोसिस खरीदने का अधिकार दे रहे हैं। 

मान लीजिए कि अगले एक महीने में ऐसी कोई घटना नहीं दिख रही कि इंफोसिस की कीमत ऊपर चली जाए। ऐसे में शायद आप 20 रूपये का प्रीमियम स्वीकार भी कर लें। 

लेकिन अगर तिमाही नतीजों जैसी कोई घटना आ जाए जिसकी वजह से शेयर की कीमत ऊपर चली जाए तो क्या ऑप्शन बेचने वाला फिर भी 20 रूपये का प्रीमियम ले लेगा? साफ है कि 20 रूपये के लिए वो इतना रिस्क नहीं लेगा। 

लेकिन तिमाही नतीजों की तारीख पता होने के बावजूद अगर कोई 20 की जगह 75 रुपये का प्रीमियम दे तो? मुझे लगता है कि 75 रुपये पर इतना रिस्क तो लिया जा सकता है।

अब दूसरे मुद्दे पर आते हैं – समय

जब 6 महीने का समय था तो अजय को अच्छे से पता था कि हाईवे प्रोजेक्ट के बारे में पक्की बात सामने आने के लिए पर्याप्त समय है। लेकिनअगर 6 महीने के बदले 10 दिन का समय होता तो? क्योंकि समय कम हो गया है और इतना समय किसी घटना की तह खोलने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे हालात में (जब वक्त अजय के पक्ष में नहीं है), क्या अजय वेणु को 100,000 रुपये का प्रीमियम देता? मुझे ऐसा नहीं लगता है क्योंकि अजय के पास इस तरह का प्रीमियम देने की कोई वजह नहीं होती। शायद अजय तब कम प्रीमियम देता, जैसे 20,000 रुपये। 

खैर, जो बात मैं यहाँ खबर और समय को ध्यान में रख कर कहना चाह रहा हूं वो ये है कि – प्रीमियम का कोई तय रेट नहीं होता। ये अलग-अलग वजहों पर निर्भर करता है। कुछ वजहों से प्रीमियम बढ़ जाता है, कुछ वजहें प्रीमियम को गिरा सकती हैं। शेयर बाज़ार ये सारी वजहें एक साथ, एक ही समय पर काम कर रही होती हैं जिससे प्रीमियम पर असर पड़ता है। दरअसल 5 वजहें प्रीमियम पर असर डालती हैं। इन्हें ‘ऑप्शन ग्रीक्स- Option Greeks’ कहते हैं। इनके बारे में हम इसी मॉड्यूल में आगे समझेंगे। 

अभी के लिए मैं चाहता हूं कि आप ऑप्शन प्रीमियम से जुड़ी इन बातों को याद रखें-

  1. ऑप्शन थ्योरी पूरे तरीके से प्रीमियम पर टिकी हुई है।
  2. प्रीमियम कभी भी निश्चित नहीं होता। ये कई वजहों पर निर्भर रहता है। 
  3. शेयर बाज़ार में प्रीमियम हर मिनट बदलता रहता है। 

अगर आपने इन बातों को समझ लिया है तो यकीन मानें आप सही दिशा में हैं। 

ऑप्शंस सेटलमेंट

इस कॉल ऑप्शन एग्रीमेंट पर ध्यान दें

यहाँ हरे रंग से हाईलाइट किया गया है , यहाँ जेपी एसोसिएट्स के कॉल ऑप्शन को 25 रूपये में खरीदने । इसकी एक्सपायरी 26 मार्च 2015 की है। प्रीमियम 1.35 रूपया है (लाल रंग में), और मार्केट लॉट 8000 शेयर का है। As highlighted in green, this is a Call Option to buy JP Associates at Rs.25/-. 

मान लें कि दो ट्रेडर हैं – ट्रेडर A और ट्रेडर B। ट्रेडर A इस एग्रीमेंट को खरीदना चाहता है (ऑप्शन खरीदार) और ट्रेडर B इसे बेचना चाहता है। मान लेते हैं कि एग्रीमेंट 8000 शेयर का है, तो कैश फ्लो कुछ ऐसा होगा –

क्योंकि प्रीमियम 1.35 रूपये प्रति शेयर है, तो ट्रेडर A को कुल 

= 8000 * 1.35

= 10,800 रूपया प्रीमियम के तौर पर ट्रेडर B को देना होगा 

अगर ट्रेडर A एग्रीमेंट को एक्सरसाइज करने का फैसला करता है तो ट्रेडर B को जेपी एसोसिएट्स के 8000 शेयर 26 मार्च 2015 को बेचना होगा, क्योंकि ट्रेडर B को ट्रेडर A से प्रीमियम मिला है। हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि ट्रेडर B के पास 26 मार्च को 8000 शेयर होने चाहिए। भारत में ऑप्शन का सेटलमेंट कैश यानी नकद में होता है, इसका मतलब ये कि 26 मार्च को अगर ट्रेडर A अपने अधिकार का उपयोग करता है, तो ट्रेडर B को ट्रेडर A को सिर्फ नकद का अंतर देना 

इसे और बेहतर एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि 26 मार्च को जेपी एसोसिएट्स 32 रुपये पर ट्रेड कर रहा है। इसका मतलब कि ऑप्शन बायर/खरीदार (ट्रेडर A) 25 रुपये पर  8000 शेयर खरीदने के अपने अधिकार का उपयोग करेगा। मतलब ये कि उसे 32 रुपये पर ट्रेड हो रहे जेपी एसोसिएट्स के शयेर 25 रुपये पर मिल रहे हैं। 

सामान्यत: कैश फ्लो ऐसा दिखना चाहिए –

  • 26 तारीख को ट्रेडर A, ट्रेडर B से 8000 शेयर खरीदने के अपने अधिकार का उपयोग करता है।
  • जिस कीमत पर ये सौदा होना है, वो कीमत पहले ही 25 रुपये पर (स्ट्राइक प्राइस) तय हो चुकी है। The price at which the transaction will take place is pre decided at Rs.25 (strike price)
  • ट्रेडर A 200,000 रुपये (8000 * 25) ट्रेडर B को देता है।
  • पेमेंट मिलने के बाद ट्रेडर B 8000 शेयर 25 रुपये के भाव पर ट्रेडर A को देता है। 
  • ट्रेडर A तुरंत इन शेयरों को ओपन मार्केट में 32 रुपये प्रति शेयर के भाव पर बेच देता है और उसे 256,000 रुपये मिलते है। 
  • ट्रेडर A को इस सौदे से 56,000 रुपये (256000 – 200000) का मुनाफा होता है।
  • दूसरे तरीके से इसे ऐसे देख सकते हैं कि ऑप्शन बायर/खरीदार को 7 रुपये प्रति शेयर (32-25) का मुनाफा हो रहा है। क्योंकि ऑप्शन का सेटलमेंट कैश में होता है तो तो ऑप्शन बायर/ खरीदार को 8000 शेयर देने के बजाय ऑप्शन सेलर/बिकवाल सीधे उतनी रकम दे देता है, जितना कि ऑप्शन बायर/खरीदार को मुनाफा होगा। मतलब ये कि ट्रेडर A को मिलेगा…

= 7*8000

= 56,000 रुपये (ट्रेडर B से)

ज़ाहिर सी बात है कि ऑप्शन बायर ने शुरूआत में 10,800 रुपये राइट/अधिकार खरीदने के लिए खर्च किए हैं तो उसका मुनाफा ये होगा 

= 56,000 – 10,800

= 45,200 रुपये

अगर परसेंट या प्रतिशत में रिटर्न देखेंगे तो ये 419% होगा (बिना एनुअलाइज़-annualize किए हुए).

इस तरह के असंयमित रिटर्न ही ऑप्शंस को ट्रेडिंग के लिए एक आकर्षक इंस्ट्रूमेंट बनाते हैं। ये एक वजह है कि क्यों ऑप्शंस ट्रेडर के बीच इतना ज्यादा प्रचलित है। 

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. कॉल ऑप्शन खरीदना तभी सही होता है जब ऐसेट की कीमत बढ़ने की उम्मीद हो
  2. स्ट्राइक प्राइस/कीमत वो कीमत होती है जिसपर ऑप्शन बायर (खरीदने वाला) और ऑप्शन राइटर (बेचने वाला) सौदा तय करते हैं। 
  3. ऐसेट का स्पॉट प्राइस को ही अंडरलाइंग कीमत/प्राइस माना जाता है। 
  4. ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज करने का मतलब ये होता है कि आपके पास एक्सपायरी के अंत में ऑप्शन खरीदने का जो अधिकार है, आप उसका उपयोग करते हैं
  5. फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की तरह ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में भी एक्सपायरी होती है। ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट हर महीने के आखिरी गुरूवार को एक्सपायर होते हैं। 
  6. ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में विभिन्न एक्सपायरी होती है – करेंट मंथ, मिड मंथ और फार मंथ कॉन्ट्रैक्ट
  7. प्रीमियम तय नहीं होता, ये दरअसल कई कारकों पर निर्भऱ करता है।
  8. भारत में ऑप्शंस का सेटलमेंट कैश यानी नकद में होता है।

The post ऑप्शन की शब्दावली appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b6%e0%a4%ac%e0%a5%8d%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%b2%e0%a5%80/feed/ 81 M5-Ch2-I1 Image 1_SP M5-Ch2-I2 M5-Ch2-I3 M5-Ch2-I4 Image 2_AL M5-Ch2-I5 M5-Ch2-I6 Image 3_JP
ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का मनीनेस https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%80/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%80/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:53:55 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6770 8.1 इंट्रिन्सिक वैल्यू जैसा कि मैंने पिछले अध्याय में भी कहा था कि किसी भी ऑप्शन ट्रेडर के लिए सही स्ट्राइक कीमत को चुनना महत्वपूर्ण होता है। और इस सही स्ट्राइक कीमत को चुनने में एक चीज जो उसकी मदद करती है वह होती है मनीनेस ऑफ ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट। मनीनेस एक तरह का वर्गीकरण होता […]

The post ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का मनीनेस appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
8.1 इंट्रिन्सिक वैल्यू

जैसा कि मैंने पिछले अध्याय में भी कहा था कि किसी भी ऑप्शन ट्रेडर के लिए सही स्ट्राइक कीमत को चुनना महत्वपूर्ण होता है। और इस सही स्ट्राइक कीमत को चुनने में एक चीज जो उसकी मदद करती है वह होती है मनीनेस ऑफ ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट। मनीनेस एक तरह का वर्गीकरण होता है जिसमें हर तरीके के ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को वर्गीकृत किया जाता है। यह वर्गीकरण 3 तरीके का होता है – ITM यानी इन द मनी- In the Money, ATM यानी ऐट द मनी- At the Money और आउट ऑफ द मनी- Out of the Money यानी OTM।  हम इनके बारे में विस्तार से जानें इसके पहले जरूरी है कि हम एक बार फिर से इंट्रिन्सिक वैल्यू के सिद्धांत को ठीक से समझ लें।

किसी ऑप्शन के इंट्रिन्सिक वैल्यू का मतलब है वह रकम जो ऑप्शन को खरीदने वाले को तब मिलेगी जब वह अपने ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज करेगा। इंट्रिन्सिक वैल्यू हमेशा एक पॉजिटिव नंबर होता है और 0 से नीचे कभी नहीं जाता। इस उदाहरण पर नजर डालिए

अंडरलाइंग निफ्टी
स्पॉट कीमत 8070
ऑप्शन स्ट्राइक 8050
ऑप्शन का प्रकार कॉल ऑप्शन (CE)
एक्सपायरी में बचे दिन 15
पोजीशन लाँग

इसके आधार पर, मान लीजिए कि आपने 8050CE खरीदा और एक्सपायरी का 15 दिन तक इंतजार करने के बजाय आपने अपने ऑप्शन को उसी दिन एक्सरसाइज करने का फैसला किया। अब सवाल यह है कि आप उस दिन कितने पैसे बनाएंगे?

याद रखिए जब आप किसी लाँग ऑप्शन को एक्सरसाइज करते हैं तो जो पैसे आप बनाते हैं वह उस ऑप्शन के इंट्रिन्सिक वैल्यू में से प्रीमियम को घटाने के बाद प्राप्त हुई रकम होती है। इसलिए इस सवाल का जवाब देने के लिए आपको ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू निकालनी होगी और इसके लिए आपको अध्याय 3 में बताए गए कॉल ऑप्शन के इंट्रिन्सिक वैल्यू के फार्मूले का इस्तेमाल करना होगा। यह रहा वह फॉर्मूला

कॉल ऑप्शन का इंट्रिन्सिक वैल्यू = स्पॉट कीमत – स्ट्राइक कीमत

Intrinsic Value of a Call option = Spot Price – Strike Price

इस फार्मूले का इस्तेमाल करते हैं

= 8070 – 8050

= 20

तो अगर आप अपने ऑप्शन को आज एक्सरसाइज करते हैं तो आपको 20 प्वाइंट का फायदा मिलेगा ( दिए गए प्रीमियम को दरकिनार करते हुए)। 

नीचे के टेबल में हमने कर अलग-अलग ऑप्शन स्ट्राइक पर इंट्रिन्सिक वैल्यू को दिखाया है।( यह आंकड़े सिर्फ आपको समझाने के लिए लिए गए हैं)

ऑप्शन का प्रकार स्ट्राइक स्पॉट फार्मूला इंट्रिन्सिक वैल्यू टिप्पणी-Remarks
लाँग कॉल 280 310 स्पॉट कीमत – स्ट्राइक कीमत 310 – 280 = 30
लाँग  पुट 1040 980 स्ट्राइक कीमत – स्पॉट कीमत 1040 -980 = 60
लाँग कॉल 920 918 स्पॉट कीमत – स्ट्राइक कीमत 918 – 920 = 0 क्योंकि IV -ve नहीं हो सकता
लाँग पुट 80 88 स्ट्राइक कीमत – स्पॉट कीमत 80 – 88 = 0 क्योंकि IV  -ve नहीं हो सकता

मुझे उम्मीद है कि अब आप किसी भी ऑप्शन स्ट्राइक के लिए इंट्रिन्सिक वैल्यू निकालने का तरीका ठीक से समझ गए होंगे। फिय भी, मैं कुछ बातें आपके लिए फिर से संक्षेप में बताता हूं।

  1. इंट्रिन्सिक वैल्यू वह रकम है जो आपको तब मिलेगी जब आप अपने ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज करेंगे। 
  2. किसी भी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की इंट्रिन्सिक वैल्यू कभी भी नेगेटिव में नहीं होती है यह या तो जीरो होगा है या फिर एक पॉजिटिव नंबर होता है। 
  3. कॉल ऑप्शन इंट्रिन्सिक वैल्यू = स्पॉट कीमत – स्ट्राइक कीमत 
  4. पुट ऑप्शन इंट्रिन्सिक वैल्यू = स्ट्राइक कीमत – स्पॉट कीमत

अब मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं, आपको क्या लगता है कि इंट्रिन्सिक वैल्यू कभी निगेटिव क्यों नहीं हो सकता? 

इसका जवाब देने के लिए ऊपर के टेबल से ही एक उदाहरण को देखते हैं। स्ट्राइक 920 की है, स्पॉट 918 का और ऑप्शन एक लाँग कॉल ऑप्शन है। मान लीजिए कि 920 के इस कॉल ऑप्शन का प्रीमियम ₹15 है।

अब,  

  1. अगर आपको यह ऑप्शन एक्सरसाइज करना पड़े तो आपको क्या मिलेगा?
    1.  साफ है कि इंट्रिन्सिक वैल्यू मिलेगी। 
  2. इंट्रिन्सिक वैल्यू कितनी होगी?
    1. इंट्रिन्सिक वैल्यू= 918-920= -2
  3. फार्मूला हमें बता रहा है कि हमें – -₹2 मिलेंगे, इसका मतलब क्या है?
    1. इसका मतलब है कि हमारे जेब से ₹2 जाएंगे 
  4. कुछ समय के लिए मान लीजिए कि यह सही है तो ऐसे में हमारा कुल नुकसान कितना होगा?
    1. 15 + 2 = 17 
  5. लेकिन हमें पता है कि कॉल ऑप्शन के खरीदने वाले का कुल नुकसान उतना ही हो सकता है जितना कि उसने प्रीमियम दिया है, जो कि इस मामले में ₹15 है। 
    1. अब अगर हम निगेटिव इंट्रिन्सिक वैल्यू को लेते हैं तो ऑप्शन पे ऑफ का ये नियम गलत हो जाएगा। (हमें ₹15 की जगह ₹17 का घाटा दिख रहा है) इसीलिए ऑप्शन पे ऑफ के नॉन-लीनियर नियम को लागू किया जाएगा और माना जाएगा कि इंट्रिन्सिक वैल्यू कभी भी निगेटिव में नहीं हो सकती। 
  6. पुट ऑप्शन के इंट्रिन्सिक वैल्यू की गणना में भी आप यही तरीका लगा सकते हैं।

उम्मीद है कि इससे आपको समझ में आ गया होगा कि किसी ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू निगेटिव क्यों नहीं हो सकती।

8.2 –कॉल ऑप्शन का मनीनेस (Moneyness) 

इंट्रिन्सिक वैल्यू पर हुई इस चर्चा के बाद अब आपके लिए मनीनेस को समझना ज्यादा आसान होगा। मनीनेस वर्गीकरण का एक ऐसा तरीका है जो हर ऑप्शन को इस आधार पर बाँटता है कि आज ऑप्शन एक्सरसाइज करने पर ट्रेडर को उसमें कितने पैसे मिलने वाले हैं। मोटे तौर पर यहां 3 वर्ग होते हैं।

  1. इन द मनी यानी ITM 
  2. ऐट मनी यानी ATM 
  3. आउट ऑफ द मनी यानी OTM

मुझे लगता है कि इनको और भी वर्गों में बांटा जा सकता है- 

  1. डीप इन द मनी- Deep in the Money
  2. इन द मनी- In the Money (ITM)
  3. एट द मनी- At the Money (ATM)
  4. आउट ऑफ द मनी- Out of the Money (OTM)
  5. डीप आउट ऑफ द मनी- Deep out of the Money

ऑप्शन स्ट्राइक के इस वर्गीकरण को समझना बहुत आसान है। आपको करना सिर्फ यह है कि इंट्रिन्सिक वैल्यू को ठीक से समझ लें। अगर इंट्रिन्सिक वैल्यू जीरो नहीं है तो उस ऑप्शन स्ट्राइक को इन द मनी कहा जाता है। अगर ऑप्शन स्ट्राइक का इंट्रिन्सिक वैल्यू जीरो है तो फिर उसे आउट ऑफ द मनी कहा जाता है। स्पॉट कीमत के सबसे करीब के स्ट्राइक को ऐट द मनी कहा जाता है।

इसी ठीक से समझने के लिए एक उदाहरण देखते हैं। 7 मई 2015 को  निफ़्टी 8060 पर था इस को ध्यान में रखते हुए मैंने नीचे उस दिन के उपलब्ध स्ट्राइक कीमतों का एक चार्ट बनाया है। जिसको नीले रंग के बक्से में दिखाया गया है। हम हर स्ट्राइक को ITM, ATM और OTM में बाटेंगे। हम डीप ITM और डीप OTM पर बाद में चर्चा करेंगे।

 जैसा कि आप ऊपर के चित्र में देख सकते हैं कि स्ट्राइक प्राइस 7100 से लेकर 8700 तक के बीच है। 

सबसे पहले हम ऐट मनी (ATM)ऑप्शन को देखेंगे क्योंकि इसको पहचाना सबसे आसान है। 

ATM ऑप्शन की परिभाषा से हम जानते हैं कि यह वह ऑप्शन स्ट्राइक है जो स्पॉट कीमत के सबसे करीब होता है। यहां पर स्पॉट 8060 है और सबसे करीब का स्ट्राइक है 8050। क्योंकि 8060 का स्ट्राइक मौजूद नहीं है इसलिए 8050 को ATM ऑप्शन माना जाएगा। 

ATM ऑप्शन (8050) को पहचानने के बाद अब हम ITM और OTM ऑप्शन की ओर देखते हैं। इसके लिए हमें पहले कुछ स्ट्राइक कीमतों की इंट्रिन्सिक वैल्यू को निकालना होगा। 

  1. 7100
  2. 7500
  3. 8050
  4. 8100
  5. 8300

याद रखिए कि स्पॉट कीमत 8060 है। इसके आधार पर इंट्रिन्सिक वैल्यू

@7100 

इंट्रिन्सिक वैल्यू = 8060-7100

=960

यह संख्या जीरो नहीं है इसलिए यह इन द मनी (ITM) ऑप्शन होगा 

@7500 

 इंट्रिन्सिक वैल्यू = 8060 – 7500

= 560

यह संख्या भी जीरो नहीं है इसलिए इसे भी इन द मनी (ITM) ऑप्शन कहेंगे। 

@8050

हमें पता है कि 8050 स्ट्राइक ATM ऑप्शन है क्योंकि यह स्पॉट कीमत के सबसे करीब है। इसलिए हम इसकी इंट्रिन्सिक वैल्यू नहीं निकालेंगे। 

@8100

इंट्रिन्सिक वैल्यू = 8060 – 8100

= -40

यह इंट्रिन्सिक वैल्यू निगेटिव में आ रही है इसलिए यहाँ इंट्रिन्सिक वैल्यू जीरो मानी जाएगी। क्योंकि यहां इंट्रिन्सिक वैल्यू जीरो आ रही है इसलिए यह आउट ऑफ द मनी (OTM) ऑप्शन होगा। 

@8300

इंट्रिन्सिक वैल्यू = 8060 – 8300

= – 240

यहां भी इंट्रिन्सिक वैल्यू निगेटिव में आ रही है इसलिए इसे जीरो माना जाएगा। इंट्रिन्सिक वैल्यू जीरो है इसलिए यह स्ट्राइक आउट ऑफ द मनी (OTM) ऑप्शन है।

अब तक आपको समझ में आ गया होगा इसका सामान्यीकरण कैसे किया जा सकता है। 

  1. ATM ऑप्शन के स्ट्राइक से ऊपर के सभी स्ट्राइक वाले ऑप्शन OTM ऑप्शन होते हैं 
  2. ATM ऑप्शन के नीचे के स्ट्राइक वाले सभी ऑप्शन ITM ऑप्शन होते हैं।

इस चित्र पर एक बार फिर से नजर डालिए-

NSE सभी ITM ऑप्शन को पीला बैकग्राउंड दिया है जबकि OTM ऑप्शन को NSE सफेद रंग के बैकग्राउंड के साथ दिखाता है। अब दो ITM 7500 और 8000 को देखते हैं। दोनों की इंट्रिन्सिक वैल्यू 560 और 60 आती है (यहां पर स्पॉट 8060 है)। इंट्रिन्सिक वैल्यू जितनी ज्यादा होगी ऑप्शन का मनीनेस उतना ही ज्यादा होगा। इसलिए 7500 को डीप इन द मनी ऑप्शन कहा जाएगा जबकि 8000 के स्ट्राइक वाले ऑप्शन को सिर्फ इन मनी ऑप्शन कहा जाएगा।

यहां पर आपको प्रीमियम पर ध्यान देना चाहिए (हरे रंग के बक्से में) जैसे-जैसे आप डीप ITM से डीप OTM की तरफ पढ़ते हैं वैसे-वैसे प्रीमियम कम होता जाता है। इसका मतलब यह है कि ITM ऑप्शन हमेशा OTM ऑप्शन की तुलना में महंगे होते हैं।

8.3 – पुट ऑप्शन का मनीनेस

एक बार पुट ऑप्शन पर नजर डालते हैं और यह देखते हैं कि वहां पर ITM है और OTM ऑप्शन कैसे बनते हैं?पुट ऑप्शन के लिए उपलब्ध स्ट्राइक का चित्र नीचे है। ऑप्शन के लिए उपलब्ध स्ट्राइक कीमत को बायीं तरफ के बॉक्स में नीले रंग से हाईलाइट गया है। यह तस्वीर 8 मई 2015 की है उस दिन निफ्टी की स्पॉट कीमत 8202 .थी।

जैसा कि आप देख सकते हैं कि 7100 से 8700 तक के  स्ट्राइक मौजूद हैं। हम पहले ATM ऑप्शन को पहचानेंगे। उसके बाद ITM और OTM ऑप्शन पर नजर डालेंगे। स्पॉट कीमत 8202 है इसके सबसे करीब की स्ट्राइक वाला ही ATM ऑप्शन होना चाहिए। जैसा कि आप देख सकते हैं कि 8200 की स्ट्राइक वाला ऑप्शन मौजूद है और ₹131.35 के प्रीमियम पर मिल रहा है। यही ATM ऑप्शन है।

अब हम ATM के ऊपर और  नीचे के कुछ अलग अलग स्ट्राइक लेंगे और उनमें से   ITM और OTM ऑप्शन को पहचानेंगे। इसके लिए नीचे दी गयी स्ट्राइक कीमतों की  इंट्रिन्सिक वैल्यू निकालते हैं।( इसे मनीनेस भी कहते हैं)।

  1. 7500
  2. 8000
  3. 8200
  4. 8300
  5. 8500

@7500

हमें पता है कि पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू कैसे निकालते हैं ,

इंट्रिन्सिक वैल्यू = स्ट्राइक – स्पॉट

= 7500 – 8200

= – 700

यह इंट्रिन्सिक वैल्यू निगेटिव है इसलिए यह और OTM ऑप्शन है।

@8000

इंट्रिन्सिक वैल्यू = 8000 – 8200

= -200

यह इंट्रिन्सिक वैल्यू निगेटिव है इसलिए यह और OTM ऑप्शन है।

@8200

इसे  हम पहले ही ATM ऑप्शन बता चुके हैं। इसलिए हम इसकी इंट्रिन्सिक वैल्यू नहीं निकालेंगे। आगे बढ़ते हैं।

 @8300

इंट्रिन्सिक वैल्यू = 8300 – 8200

= 100

पॉजिटिव इंट्रिन्सिक वैल्यू है इसलिए यह ITM ऑप्शन है ।

@8500

इंट्रिन्सिक वैल्यू = 8500 – 8200

= 300

पॉजिटिव इंट्रिन्सिक वैल्यू है इसलिए यह ITM ऑप्शन है । 

अब यहां पुट ऑप्शन का सामान्यीकरण क्या होगा?

  1. ATM के ऊपर वाले सभी स्ट्राइक ऑप्शन ITM होते हैं 
  2. ATM के नीचे की स्ट्राइक वाले सभी ऑप्शन OTM होते हैं 

यहां भी आप देख सकते हैं कि ITM ऑप्शन का प्रीमियम OTM ऑप्शन के प्रीमियम से ज्यादा है।

मुझे उम्मीद है कि अब आपको ऑप्शन स्ट्राइक के वर्गीकरण के बारे में और मनीनेस के बारे में समझ में आ गया होगा। लेकिन आपके दिमाग में यह सवाल उठ सकता है कि मनीनेस का वर्गीकरण करना क्यों जरूरी है? इस सवाल का जवाब भी ऑप्शन ग्रीक्स में छुपा है। जैसा कि आप जानते हैं ऑप्शन ग्रीक्स वो ताकतें हैं  जो ऑप्शन के स्ट्राइक पर असर डालती हैं और उससे जुड़े हुए प्रीमियम पर भी असर डालती हैं। एक खास तरीके का ऑप्शन ग्रीक्स किसी ITM पर एक खास तरह का असर डालेगा जबकि इसका OTM पर असर अलग होगा। इसीलिए यह जरूरी है कि हम मनीनेस को ठीक से समझें क्योंकि ऑप्शन ग्रीक्स और ऑप्शन प्रीमियम के आपसी समीकरण को समझने के लिए ये जरूरी है।

8.4 – ऑप्शन चेन- Option Chain

ज्यादातर एक्सचेंज  और ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर ऑप्शन चेन देते हैं यह एक बहुत ही जरूरी फीचर है। ऑप्शन चेन के जरिए आप किसी अंडरलाइंग के लिए उपलब्ध  हर स्ट्राइक के बारे में जान सकते हैं।इसके साथ ही, आपको यह भी पता चलता है कि उस स्ट्राइक का मनीनेस क्या है। इसके अलावा ऑप्शन चेन आपको प्रीमियम, कीमत (LTP),  बिड आस्क प्राइस, वॉल्यूम, ओपन इंटरेस्ट आदि भी बताता है। 

नीचे मैंने अशोक लेलैंड के ऑप्शन चेन को दिखाया है जो NSE से लिया गया है-

ऑप्शन चेन को अच्छे तरीके से समझने के लिए इन बातों पर ध्यान दें-  

  1. अंडरलाइंग की स्पाट कीमत ₹68.7 है। (इसे नीले रंग से दिखाया गया है)
  2.  ऑप्शन चेन में बायीं तरफ कॉल ऑप्शन को दिखाया गया है 
  3. पुट ऑप्शन को ऑप्शन चेन के दायीं तरफ दिखाया गया है 
  4. स्ट्राइक को बीचों-बीच बढ़ते हुए क्रम में रखा गया है 
  5. स्पॉट कीमत 68.7 तक है तो इसका सबसे करीब का स्ट्राइक  67.5 होगा। इसलिए यह ATM ऑप्शन होगा( इसे पीले रंग से दिखाया गया है)
  6. कॉल ऑप्शन के लिए- वो सभी ऑप्शन  जो ATM ऑप्शन से नीचे हैं वह ITM ऑप्शन होंगे। इसलिए उनका बैकग्राउंड हल्के पीले रंग का है
  7. कॉल ऑप्शन के लिए- वो सभी ऑप्शन जिनकी स्ट्राइक कीमत ATM से ऊपर है वह OTM ऑप्शन हैं उनको सफेद रंग के बैकग्राउंड से दिखाया गया है 
  8. पुट ऑप्शन के लिए – सभी ऑप्शन जिनकी स्ट्राइक कीमत ATM से ऊपर है वो ITM ऑप्शन हैं ,इसलिए वह हल्के पीले रंग के बैकग्राउंड से दिखाए गए हैं
  9. पुट ऑप्शन के लिए- सभी ऑप्शन जिनकी स्ट्राइक कीमत ATM से कम है वह OTM ऑप्शन हैं। इसलिए वो सफेद रंग के बैकग्राउंड के साथ हैं।
  10. हल्के पीले रंग और सफेद रंग के बैकग्राउंड को डालना NSE का अपना तरीका है जिससे आप ITM और OTM को अलग-अलग पहचान सकें। ये कोई सर्वमान्य तरीका नहीं है।  

निफ्टी ऑप्शन के ऑप्शन चेन के लिए लिंक.

8.5 – आगे क्या जानेंगे

कॉल और पुट ऑप्शन को बेचने वाले और खरीदने वाले के नजरिए से समझने के अलावा अब आप ITM, OTM और ATM भी समझ चुके हैं। इसका मतलब है कि अब आप ऑप्शन पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं।

अगले कुछ अध्यायों में हम ऑप्शन ग्रीक्स के बारे में जानेंगे और यह भी जानेंगे कि वह किस तरीके से ऑप्शन के प्रीमियम पर असर डालते हैं। इसको समझने के बाद हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि किस तरीके से ऑप्शन के लिए सबसे बढ़िया स्ट्राइक प्राइस चुना जाता है। साथ ही, ऑप्शन की कीमत किस तरीके से तय होती है इसे “ब्लैक एंड स्कोल्स ऑप्शन प्राइसिंग फार्मूला – Black & Scholes Option Pricing Formula” के जरिए समझेंगे। ये फार्मूला हमें ये भी बताएगा कि 8200 का निफ्टी 131 पर क्यों ट्रेड हो रहा है 152 पर या 102 पर क्यों नहीं? 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. किसी भी ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू उस रकम के बराबर होती है जो कॉन्ट्रैक्ट को एक्सरसाइज करने पर मिलेगी।
  2. ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू कभी निगेटिव में नहीं हो सकती यह जीरो या पॉजिटिव संख्या ही होती है।
  3. कॉल ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू = स्पॉट कीमत – स्ट्राइक कीमत
  4. पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू =  स्ट्राइक कीमत – स्पॉट कीमत
  5. कोई भी ऑप्शन जिसकी इंट्रिन्सिक वैल्यू हो उसे इन द मनी (ITM) ऑप्शन कहते हैं 
  6. जिस ऑप्शन में इंट्रिन्सिक वैल्यू कुछ भी ना हो उसे आउट ऑफ द मनी(OTM) ऑप्शन कहते हैं 
  7. अगर स्ट्राइक कीमत स्पॉट कीमत के बराबर है तो उस ऑप्शन को ऐट द मनी (ATM) ऑप्शन कहते हैं।
  8. कॉल ऑप्शन में सारे ऑप्शन जिनकी स्ट्राइक ATM से नीचे है वो ITM होते हैं
  9. कॉल ऑप्शन में सभी ऐसे ऑप्शन जिनकी स्ट्राइक ATM से ऊपर है उन्हें OTM ऑप्शन कहते हैं 
  10. पुट ऑप्शन में वो सभी ऑप्शन जिनकी स्ट्राइक ATM से ऊपर है उन्हें ITM ऑप्शन कहते हैं 
  11. पुट ऑप्शन में वो सभी ऑप्शन जिनकी स्ट्राइक ATM से नीचे है उन्हें OTM ऑप्शन कहते हैं 
  12. जब इंट्रिन्सिक वैल्यू बहुत ज्यादा ऊपर होती है तो उसे डीप ITM ऑप्शन कहते हैं 
  13. इसी तरीके से जब इंट्रिन्सिक वैल्यू बहुत कम होती है तो इसे डीप OTM ऑप्शन कहते हैं 
  14. ITM ऑप्शन के प्रीमियम हमेशा OTM ऑप्शन के प्रीमियम से ज्यादा होते हैं 
  15. ऑप्शन चेन से हमें समझ में आता है कि किस ऑप्शन की स्ट्राइक ATM में है, किसकी ITM में, किसकी OTM में। इसके साथ हमें ऑप्शन के बारे में और भी कई जानकारियां मिलती हैं।

 

The post ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का मनीनेस appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%88%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%80/feed/ 42 M5-Ch8-title Image 1 _Call Option Image 2 _Call Option again Image 3_Put Option Strikes Image 4_Option Chain
ऑप्शन ग्रीक्स (डेल्टा) भाग 1 https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:52:40 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6777 9.1 – संक्षिप्त परिचय किसी ऑप्शन ट्रेड के सफल होने के लिए कई चीजों को एक साथ मिलकर काम करना होता है। अगर यह सारी ताकतें एक साथ ट्रेडर के पक्ष में काम करेगी तो उसका ट्रेड सफल होगा। ऑप्शन ट्रेड में इन ताकतों को ऑप्शन ग्रीक्स कहते हैं। यह ताकतें हर ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट पर […]

The post ऑप्शन ग्रीक्स (डेल्टा) भाग 1 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
9.1 – संक्षिप्त परिचय

किसी ऑप्शन ट्रेड के सफल होने के लिए कई चीजों को एक साथ मिलकर काम करना होता है। अगर यह सारी ताकतें एक साथ ट्रेडर के पक्ष में काम करेगी तो उसका ट्रेड सफल होगा। ऑप्शन ट्रेड में इन ताकतों को ऑप्शन ग्रीक्स कहते हैं। यह ताकतें हर ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट पर हर मिनट असर डाल रही होती हैं और इसकी वजह से प्रीमियम बढ़ता या घटता है। मुश्किल बात यह है कि ये ताकतें प्रीमियम पर सीधे-सीधे ही असर नहीं डालती बल्कि यह ताकतें एक दूसरे पर भी असर डालती हैं। ऑप्शन प्रीमियम, ऑप्शन ग्रीक्स और बाजार की मांग और सप्लाई सब एक दूसरे पर असर डालते हैं और यह सारी ताकतें अलग-अलग भी काम करती हैं। इन ताकतों के मिले-जुले असर की वजह से ही प्रीमियम ऊपर नीचे होता रहता है। किसी ऑप्शन ट्रेडर के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज यह होती है कि वह प्रीमियम के इस उतार-चढ़ाव को ठीक से पहचान पाए। अगर वह यह समझ पाएगा की प्रीमियम किस दिशा में जाने वाले हैं और यह ताकतें किस तरह से काम कर रही है, तो उसका ऑप्शन ट्रेड सफल होगा।

तो अब देखते हैं कि ग्रीक्स क्या-क्या होते –

  1. डेल्टा (Delta)- यह इस चीज को बताता है कि ऑप्शन प्रीमियम के बदलाव की दर क्या है और ये इस पर आधारित होता है कि अंडरलाइंग की दिशा क्या है 

2, गामा (Gamma)– यह डेल्टा में बदलाव को बताता है 

  1. वेगा (Vega)– यह वोलैटिलिटी के आधार पर प्रीमियम में बदलाव को बताता है 
  2. थीटा (Theta)– यह एक्सपायरी में बचे हुए समय के आधार पर प्रीमियम में बदलाव को बताता है 

हम इन ग्रीक्स का अगले कुछ अध्याय में अध्ययन करेंगे।

9.2 – एक ऑप्शन का डेल्टा

नीचे दिए गए दो चित्रों को देखिए। यह निफ्टी के 8250CE कॉल ऑप्शन के चित्र हैं। पहला चित्र सुबह 9:18 पर लिया गया था जब निफ्टी का स्पॉट 8292 पर था।

कुछ समय बाद

अब आप प्रीमियम को बदलता हुआ देख सकते हैं, 9:18 बजे जब निफ्टी 8292 पर था तब कॉल ऑप्शन 144 पर ट्रेड कर रहा था, लेकिन 10:00 बजे निफ़्टी जब 8315 पर पहुंच गया तब वही कॉल ऑप्शन 150 पर ट्रेड कर रहा था। 

,अब एक और चित्र पर देखिए जो 10:55 बजे लिया गया, निफ़्टी अब नीचे 8288 पर था और ऑप्शन का प्रीमियम भी नीचे आ कर 133 पर ट्रेड कर रहा है। 

इससे एक चीज साफ है कि जब भी स्पॉट में कीमत घटती या बढ़ती है तो उसी के साथ ऑप्शन का प्रीमियम भी बदलता रहता है। मतलब कॉल ऑप्शन का प्रीमियम स्पॉट की कीमत के साथ उठता और गिरता है ।

इस बात को याद रखिए और अब मान लीजिए कि आपका मानना है कि शाम 3 बजे तक निफ्टी 8355 पर पहुंचेगा। ऊपर के चित्रों से हमें पता है कि निफ्टी के प्रीमियम में बदलाव तो बिल्कुल होगा लेकिन कितना? अगर निफ़्टी 8355 पर पहुंच जाएगा तो 8250 CE का प्रीमियम कितना होगा? 

यही जानने के लिए ऑप्शन का डेल्टा काम आता है। डेल्टा हमें बताता है कि ऑप्शन का मूल्य अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव के साथ कैसे बदलता है। मतलब ये कि डेल्टा हमें बताता है की अंडरलाइंग में होने वाले हर प्वाइंट के बदलाव के साथ ऑप्शन के प्रीमियम में कितने प्वाइंट का बदलाव आएगा।

यानी ऑप्शन ग्रीक्स का डेल्टा यह बताता है कि बाजार के बदलाव की दिशा का ऑप्शन के प्रीमियम पर क्या असर होगा?

डेल्टा एक ऐसी संख्या है जो

  1. 1. कॉल ऑप्शन के लिए 0 से 1 के बीच में होती है। कुछ ट्रेडर इसको 0 से 100 के रूप में भी देखते हैं। अगर 0 से 1 के पैमाने पर डेल्टा 0.55 है तो ऐसे ट्रेडर के लिए 0 से 100 के पैमाने के मुताबिक यह डेल्टा 55 होगा।  
  2. पुट ऑप्शन के लिए डेल्टा – 1 से 0 के बीच (-100 से 0) होता है। तो -1 से 0 के पैमाने पर  -0.4 का डेल्टा -100 से 0 के पैमाने पर -40 के डेल्टा के बराबर होगा।
  3. हम आगे यह समझेंगे कि पुट ऑप्शन का डाटा नेगेटिव में क्यों होता है 

अब यहां अब मैं आपको इस बारे में बताना चाहता हूं कि इस अध्याय के आगे किस तरीके की बातें होंगी। आप इन बातों का ख्याल रखें-  

  1. हम समझेंगे कि हम कॉल ऑप्शन के लिए डेल्टा का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं 
  2. डेल्टा के मूल्य को कैसे निकाला जाता है 
  3. पुट ऑप्शन के लिए डेल्टा का कैसे इस्तेमाल किया जाता है 
  4. डेल्टा की विशेषताएं – डेल्टा और स्पॉट के बीच का संबंध, डेल्टा एक्सेलेरेशन (Acceleration) क्या होता है (अगले अध्याय में भी)
  5. डेल्टा से जुड़ा हुआ ऑप्शन पोजीशन कैसा होता है (अगले अध्याय में भी)

आइए अब आगे बढ़ते हैं।

9.3 – कॉल ऑप्शन के लिए डेल्टा

हम जानते हैं कि डेल्टा 0 से 1 के बीच में होता है। मान लीजिए एक कॉल ऑप्शन का डाटा 0.30 या 30 है तो इसका क्या मतलब है? 

हमें पता है कि डेल्टा अंडरलाइंग में होने वाले हर प्वाइंट के बदलाव के मुताबिक प्रीमियम में होने वाले बदलाव को बताता है। अगर डेल्टा 0.3 है तो ये हमें बताता है कि अंडरलाइंग में हर एक प्वाइंट के बदले प्रीमियम में 0.3 बदलाव होगा।  मतलब अंडरलाइंग में अगर 100 प्वाइंट का बदलाव हो रहा है तो प्रीमियम में 30 प्वाइंट का बदलाव होगा। 

इस उदाहरण से आपको यह बात अच्छे से समझ में आएगी-

सुबह 10:55  बजे निफ्टी 8288 पर है 

ऑप्शन स्ट्राइक = 8250 कॉल ऑप्शन 

प्रीमियम = 133

ऑप्शन का डेल्टा = 0.55

शाम  3:15 बजे  तक निफ्टी के  8310 पर पहुंचने की संभावना 

शाम 3:15 पर ऑप्शन का प्रीमियम क्या होगा?

 इसको पता करना बहुत ही आसान है हमें पता है कि इस ऑप्शन का डेल्टा 0.55 है। मतलब है कि अंडरलाइंग में हर एक प्वाइंट के बदलाव पर प्रीमियम में 0.55 प्वाइंट का बदलाव होगा। 

हम उम्मीद कर रहे है कि अंडरलाइंग में 22 प्वाइंट का बदलाव होगा (8310-8288), इसका मतलब है कि प्रीमियम में बदलाव होगा-

=22*0.55

=12.1

इसका मतलब है कि ऑप्शन का नया प्रीमियम 145.1 (133+12.1) के आसपास होना चाहिए। 

जो कि है- पुराना प्रीमियम + प्रीमियम में संभावित बदलाव

एक और उदाहरण देखते हैं-  अगर किसी को निफ्टी में गिरावट की उम्मीद है, तो प्रीमियम में क्या बदलाव होगा? आइए देखते हैं

सुबह 10: 55 बजे निफ्टी 8288 पर है 

ऑप्शन की स्ट्राइक 8250 कॉल ऑप्शन 

प्रीमियम = 133 

ऑप्शन का डेल्टा = 0.55 

शाम 3:15 पर निफ्टी के 8200 पर पहुंचने की संभावना है 

शाम 3:15 पर प्रीमियम कितना होगा?  

हम निफ्टी में -88 प्वाइंट की गिरावट (8200-8288) की उम्मीद कर रहे हैं। इसलिए प्रीमियम में बदलाव होगा

= -88 *0.55 

= -48.4

इसका मतलब है कि प्रीमियम होगा करीब 

= 133-48.4

= 84.6 (नया प्रीमियम)

जैसा कि आप ऊपर के दो उदाहरण से देख सकते हैं कि डेल्टा हमें अंडरलाइंग की दिशा को देखते हुए प्रीमियम का मूल्य पता करने में मदद करता है। ऑप्शन को ट्रेड करने वालों के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सूचना है। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि आप निफ्टी में 100 प्वाइंट की भारी बढ़त की उम्मीद कर रहे हैं और इस उम्मीद पर आप ऑप्शन खरीदने का फैसला करते हैं। आपके सामने दो कॉल ऑप्शन है और आपको फैसला करना है कि आप किसको खरीदेंगे?  

कॉल ऑप्शन 1 का डेल्टा है 0.05 

कॉल ऑप्शन 2 का डेल्टा है 0.2 

सवाल यह है कि आप इनमे से कौन सा ऑप्शन खरीदेंगे 

आइए गणना करते हैं- 

अंडरलाइंग में बदलाव = 100 प्वाइंट 

कॉल ऑप्शन 1 का डेल्टा =  0.05 

कॉल ऑप्शन 1 के प्रीमियम में बदलाव = 100*0.05

= 5

 कॉल ऑप्शन 2 का डेल्टा = 0.2

कॉल ऑप्शन 2 के प्रीमियम में बदलाव = 100*0.2

= 20

आप देख सकते हैं कि 100 प्वाइंट का बदलाव दोनों ऑप्शन पर अलग-अलग असर दिखाता है। वैसे, इस उदाहरण में ट्रेडर के लिए अच्छा यह होगा कि वह कॉल ऑप्शन 2 खरीदें।  इस उदाहरण से आपको यह भी पता चलता है कि डेल्टा आपको सही ऑप्शन स्ट्राइक खरीदने का में मदद करता है। हालांकि इसमें और भी कई चीजें जुड़ी होती हैं,जिनको हम आगे समझेंगे।

अब मैं आपके सामने एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल रखता हूं- कॉल ऑप्शन का डेल्टा 0 और 1 के बीच में ही क्यों होता है? कॉल ऑप्शन का डेल्टा 0 से नीचे या 1 से ऊपर क्यों नहीं जाता? 

इसको समझने के लिए हम उदाहरण के तौर पर दो परिस्थिति देखते हैं। यहां पर मैंने जानबूझकर डेल्टा 1 से ऊपर और 0 से नीचे रखा है। 

परिस्थिति 1 :  कॉल ऑप्शन का डेल्टा 1 से ज्यादा है 

सुबह 10:55 पर निफ्टी 8268 पर है 

ऑप्शन स्ट्राइक 8250 पर है 

प्रीमियम = 133 

ऑप्शन का डेल्टा = 1.5 (जानबूझ कर 1 से ऊपर रखा है)

3.15 बजे निफ्टी के 8310 पर पहुंचने की उम्मीद है

अब 3:15 बजे प्रीमियम कितना होगा? 

निफ्टी में बदलाव = 42 पॉइंट 

इसलिए प्रीमियम में बदलाव होगा (डेल्टा 1.5 है) 

= 1.5*42

= 63

तो आप देख सकते हैं कि हमारा उत्तर यह बता रहा है कि अंडरलाइंग में 42 प्वाइंट के बदलाव से  प्रीमियम में 65 प्वाइंट की बढ़ोतरी होगी। इसका मतलब है कि इस ऑप्शन की कीमत अंडरलाइंग से भी ज्यादा है। अब यहां आपको यह याद रखना है कि ऑप्शन एक डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है, मतलब ऑप्शन की कीमत इसके अंडरलाइंग से निकलती है। इसलिए ऑप्शन की कीमत कभी भी अंडरलाइंग के मुकाबले ज्यादा तेजी से नहीं बढ़ सकती। 

अगर डेल्टा 1 है (जो कि उसकी अधिक अधिकतम संख्या हो सकती है) तो इसका मतलब यह होता है कि ऑप्शन अंडरलाइंग के बराबर तेजी से बढ़ेगा जो कि ठीक है, लेकिन अगर डेल्टा 1 से ज्यादा है तो ऑप्शन अंडरलाइंग से ज्यादा तेजी से बढ़ेगा जो कि नहीं हो सकता। इसीलिए ऑप्शन का डेल्टा 1 या 100 माना जाता है। 

अब देखते हैं कि अगर डेल्टा 0 से नीचे पहुंच जाए तो क्या होगा?

परिस्थिति 2 : कॉल ऑप्शन का डेल्टा 0 से नीचे है 

सुबह 10:55 तक निफ्टी 8288 पर है 

ऑप्शन स्ट्राइक = 8300 कॉल ऑप्शन 

प्रीमियम =  9 

ऑप्शन का डेल्टा = –  0.2 (जानबूझ कर 0 से नीचे रखा है इसीलिए – लगा है)

3.15 बजे निफ्टी के 8200 पर पहुंचने की उम्मीद है

अब 3:15 बजे तक प्रीमियम कितना रहेगा?  

निफ्टी में बदलाव 88 प्वाइंट (8288-8200)

इसलिए प्रीमियम म में बदलाव (यह मानते हुए कि डेल्टा -0.2 है)

= -0.2*88

= – 17.6

अगर कुछ देर के लिए हम यह मान ले कि यह सही है तो इसका मतलब है कि नया प्रीमियम होगा

= – 17.6 + 9

= – 8.6  

जैसा कि आप यहां देख सकते हैं कि जब कॉल ऑप्शन का डेल्टा जीरो के नीचे गया तो यह हो सकता है कि प्रीमियम भी 0 के नीचे चला जाए, जो कि असंभव  है। आपको याद रखना होगा कि कॉल ऑप्शन हो या पुट ऑप्शन प्रीमियम कभी भी नेगेटिव नहीं हो सकता। इस वजह से कॉल ऑप्शन का डेल्टा भी जीरो के नीचे नहीं हो सकता। 

9.4 – डेल्टा का मूल्य कौन तय करता है? 

ब्लैक एंड स्कोल्स ऑप्शन प्राइसिंग फार्मूला (Black & Scholes option pricing formula) से कई चीजें निकलती हैं उनमें से डेल्टा भी एक है। जैसा कि मैंने इस मॉड्यूल के शुरू में ही कहा था की ब्लैक एंड स्कोल्स फार्मूला कई इनपुट लेता है और कई परिणाम देता है। इन परिणामों में ऑप्शन का डेल्टा और दूसरे ग्रीक्स शामिल हैं। सभी तरह के ग्रीक्स को समझने के बाद हम बी एंड एस फार्मूला को समझेंगे जिससे हमें ऑप्शन और भी अच्छी तरीके से समझ में आ सके। लेकिन अभी के लिए आपको यह जान लेना चाहिए कि डेल्टा और दूसरे ग्रीक बाजार के ऊपर निर्भर होते हैं और बी एंड एस फार्मूला से इनको निकाला जाता है। 

नीचे के टेबल में आपसे आपको किसी भी ऑप्शन के डेल्टा का मूल्य निकालने में मदद मिल सकती है-

ऑप्शन का प्रकार डेल्टा का लगभग मूल्य (CE) डेल्टा का लगभग मूल्य (PE)
Deep ITM + 0.8 to + 1 के बीच – 0.8 to – 1 के बीच
Slightly ITM + 0.6 to + 1 के बीच – 0.6 to – 1 के बीच
ATM + 0.45 to + 0.55 के बीच – 0.45 to – 0.55 के बीच
Slightly OTM + 0.45 to + 0.3 के बीच – 0.45 to -0.3 के बीच
Deep OTM + 0.3 to + 0 के बीच – 0.3 to – 0 के बीच

वैसे आप किसी भी ऑप्शन पर सही डेल्टा निकालने के लिए ब्लैक एंड स्कोल्स ऑप्शन प्राइसिंग फार्मूले का इस्तेमाल कर सकते हैं।

9.5- पुट ऑप्शन के लिए डेल्टा 

याद रखिए कि पुट ऑप्शन का डेल्टा -1 से 0 के बीच में होता है। यहां (-) नेगेटिव इस लिए लगाया जाता है जिससे आपको यह समझ में आ सके जब भी अंडरलाइंग की कीमत बढ़ेगी तब प्रीमियम नीचे जाएगा। इस को ध्यान में रखते हुए जरा नीचे के टेबल को देखिए। 

मापदंड मूल्य
अंडरलाइंग Nifty
स्ट्राइक 8300
स्पॉट कीमत 8268
प्रीमियम 128
डेल्टा -0.55
निफ्टी का अनुमानित मूल्य (Case 1) 8310
निफ्टी का अनुमानित मूल्य (Case 2) 8230

ध्यान दें कि 8268 ITM ऑप्शन है इसलिए इसका डेल्टा 0.55 के आसपास होगा। 

यहां कोशिश इस बात की है कि आप नया प्रीमियम निकाल सके जबकि डेल्टा – 0.55 है। नीचे की गणना को ध्यान से देखिए।

स्थिति 1-  निफ्टी के 8310 तक पहुंचने की उम्मीद है 

निफ्टी में बदलाव = 8310 – 8268

= 42

डेल्टा = – 0.55

= – 0.55*42

= – 23.1

मौजूदा प्रीमियम = 128

नया प्रीमियम = 128 – 23.1

= 104.9 

यहां पर मैं मौजूदा प्रीमियम से डेल्टा की वैल्यू को घटा रहा हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि जब अंडरलाइंग की कीमत बढ़ती है तो पुट ऑप्शन का मूल्य नीचे की तरफ जाता है। 

स्थिति 2 –  निफ्टी को 8230 तक पहुंचने की उम्मीद है 

निफ्टी में बदलाव की उम्मीद = 8268 – 8230

= 38 

डेल्टा = – 0.55

= – 0.55*38

= – 20.9 

मौजूदा प्रीमियम = 128

नया प्रीमियम = 128 + 20.9 

= 148.9 

यहां पर मैं डेल्टा को मौजूदा प्रीमियम में जोड़ रहा हूं क्योंकि मुझे पता है कि जब अंडरलाइंग की कीमत घटती है तो पुट ऑप्शन की कीमत बढ़ती है। 

मुझे उम्मीद है कि ऊपर के दोनों उदाहरण से आपको समझ में आ गया होगा कि पुट ऑप्शन के डेल्टा का इस्तेमाल प्रीमियम निकालने के लिए कैसे किया जाता है। मैं जानबूझकर यहां यह नहीं समझा रहा हूं कि पुट ऑप्शन का डेल्टा – 1 और 0 के बीच में क्यों होता है।  

आप खुद ये समझ सकत हैं कि कि जैसे कॉल ऑप्शन का डेल्टा  0 से 1 के बीच में है उसी तरीके से पुट ऑप्शन का डेल्टा – 1 और 0 के बीच में क्यों होता है।  

हम अगले अध्याय में डेल्टा को और गहराई से समझेंगे। 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. ऑप्शन ग्रीक्स वह ताकतें हैं जो किसी भी ऑप्शन के प्रीमियम पर असर डालती हैं।
  2. डेल्टा एक ऑप्शन ग्रीक है जो कि बाजार की दिशा का असर बताता है।
  3. कॉल ऑप्शन का डेल्टा 0 से 1 के बीच में होता है लेकिन सब कुछ ट्रेडर इसको 0 से 100 मानते हैं।
  4. पुट ऑप्शन का डेल्टा – 1 से 0 के बीच में होता है।
  5. पुट ऑप्शन के डेल्टा में नेगेटिव होने का मतलब यह होता है कि अंडरलाइंग की कीमत के विपरीत दिशा में ऑप्शन का प्रीमियम जाता है।
  6. ATM ऑप्शन का डेल्टा 0.5 होता है।
  7. ITM ऑप्शन का डेल्टा 1 होता है।
  8. OTM ऑप्शन का डेल्टा 0 होता है।

The post ऑप्शन ग्रीक्स (डेल्टा) भाग 1 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/feed/ 77 M5-Ch9-Illustration1 Image 1_at 918 Image 2_nifty 8316 Image 3_nifty 8288 M5-Ch9-Illustration2
डेल्टा (भाग 2) https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:52:09 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6782 10.1 – मॉडल सोच पिछले अध्याय में हमने पहले ऑप्शन ग्रीक – डेल्टा के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त की थी। इसके अलावा हमें ऑप्शन को देखने का एक नया नजरिया भी पता चला था। हमने जाना था कि ऑप्शन सिर्फ एक तरीके से चलने वाला प्रोडक्ट नहीं है, इसके कई आयाम होते हैं और […]

The post डेल्टा (भाग 2) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
10.1 – मॉडल सोच

पिछले अध्याय में हमने पहले ऑप्शन ग्रीक – डेल्टा के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त की थी। इसके अलावा हमें ऑप्शन को देखने का एक नया नजरिया भी पता चला था। हमने जाना था कि ऑप्शन सिर्फ एक तरीके से चलने वाला प्रोडक्ट नहीं है, इसके कई आयाम होते हैं और उन सब को देखना जरूरी होता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर बाजार को लेकर आपका तेजी का रुख है, तो यह जरूरी नहीं है कि आप हमेशा एक ही तरीके से ट्रेड करें कि –  मेरा तेजी का रूख है इसलिए या तो मैं कॉल ऑप्शन खरीद लूंगा या पुट ऑप्शन बेच कर प्रीमियम ले लूंगा।  

इसके बदले आप यह भी कर सकते हैं कि मेरा रुख तेजी का है और मुझे लगता है कि बाजार 40 प्वाइंट ऊपर जाएगा, इसलिए मैं ऐसा ऑप्शन खरीदूंगा जिसका डेल्टा 0.5 या ज्यादा है, क्योंकि तब बाजार में 40 प्वाइंट की तेजी आने के बाद मुझे कम से कम 20 प्वाइंट का फायदा होगा।

आपको इन दोनों विचारधाराओं में कुछ अंतर समझ में आ रहा है? पहली रणनीति थोड़ी कच्ची और कामचलाउ है जबकि दूसरी रणनीति सोची-समझी और आंकड़ों पर आधारित है। ऑप्शन के प्रीमियम में 20 प्वाइंट की मुनाफे की उम्मीद उस फार्मूले से निकली है जिसको हमने पिछले अध्याय में देखा था। 

ऑप्शन के प्रीमियर में संभावित बदलाव = ऑप्शन डेल्टा* अंडरलाइंग में प्वाइंट बदलाव

यह फार्मूला एक पूरी बड़ी रणनीति का छोटा सा हिस्सा है। जब हम बाकी ऑप्शन ग्रीक्स को जान लेंगे तब हमें समझ में आएगा कि ऑप्शन को देखने के लिए और किन तरीकों से आंकड़ों का इस्तेमाल किया जा सकता है और कैसे अपने ट्रेड को और ज्यादा से ज्यादा आंकड़ों पर आधारित बनाया जा सकता है। इस तरह से आपके सौदे फार्मूले और संख्याओं पर आधारित होंगें, केवल ट्रेडिंग से जुड़े या बाजार से जुड़े आपके विचारों से पर आधारित नहीं। हालांकि बाजार में ऐसे ट्रेडर भी है जो अपने विचारों के बल पर सफल ट्रेड कर लेते हैं। लेकिन सबके लिए ऐसा करना आसान नहीं होता। इसलिए अगर आपके सौदे संख्या या आंकड़ों पर आधारित हैं तो आपके सफल होने के संभावना ज्यादा होती है। ऐसा करने के लिए आपको मॉडल पर आधारित सोच को विकसित करना होगा। 

आगे से जब भी आप ऑप्शन को देखें या उसकी एनालिसिस करें तो ध्यान रखें कि आपको मॉडल पर आधारित सोच का इस्तेमाल करना है।

10.2 – डेल्टा और स्पॉट कीमत का संबंध

पिछले अध्याय में हमने डेल्टा के महत्व को समझा था और यह भी जाना था कि कैसे डेल्टा का इस्तेमाल प्रीमियम में बदलाव को जानने के लिए किया जा सकता है। हम आगे बढ़े इसके पहले एक बार फिर से पिछले अध्याय की बातों को दोहरा लेते हैं। 

  1. कॉल ऑप्शन का डेल्टा पॉजिटिव होता है। कॉल ऑप्शन का डेल्टा 0.4 होने का मतलब होता है कि अंडरलाइंग की कीमत में 1 प्वाइंट की बढ़त या गिरावट के बदले कॉल ऑप्शन का प्रीमियम 0.4 प्वाइंट घटता है या बढ़ता है। 
  2. पुट ऑप्शन का डेल्टा नेगेटिव होता है। पुट ऑप्शन में -0.4 के डेल्टा का मतलब होता है कि अंडरलाइंग की कीमत में 1 प्वाइंट की बढ़त या गिरावट के सामने ऑप्शन के प्रीमियम में 0.4 प्वाइंट की बढ़त या गिरावट होगी। 
  3. OTM ऑप्शन के डेल्टा की वैल्यू 0 से 0.5 के बीच में होती है, ATM ऑप्शन का डेल्टा 0.5 होता है और ITM ऑप्शन का डेल्टा 0.5 से 1 के बीच में होता है। 

तीसरे प्वाइंट से मिले संकेत के आघार पर कुछ नतीजे निकालते हैं। मान लीजिए कि निफ्टी स्पॉट 8312 पर है स्ट्राइक 8400 पर और  ऑप्शन CE है (कॉल ऑप्शन यूरोपियन)

       1. 8400 CE पर डेल्टा वैल्यू क्या होगी जब स्पॉट 8312 है

         डेल्टा 0 से 0.5 के बीच में होना चाहिए क्योंकि 8400 CE एक OTM है मान लीजिए कि डेल्टा 0.4 है

2. मान लीजिए कि निफ़्टी स्पॉट 8312 से 8400 हो जाता है तब डेल्टा की वैल्यू क्या होगी?

          डेल्टा की वैल्यू 0.5 के आसपास होनी चाहिए क्योंकि 8400 CE अब एक ATM ऑप्शन है 

      3.अब अगर निफ्टी के स्पॉट 8400 से 8500 हो जाता है तो डेल्टा वैल्यू क्या होगी?

         अब डेल्टा 1 के पास होना चाहिए क्योंकि 8400 CE अब ITM ऑप्शन है मान लीजिए 0.8 

     4. इस बीच अगर निफ्टी स्पॉट टूटता है और 8500 से गिरकर 8300 हो जाता है तो डेल्टा कितना होगा?

         स्पॉट में गिरावट के साथ ऑप्शन ITM से फिर से OTM बन जाता है इसलिए डेल्टा की वैल्यू भी गिरेगी और वह 0.8 से 0.3 भी पहुंच सकती है 

ऊपर के 4 बिंदुओं से आपको क्या समझ में आया?

जब-जब स्पॉट की कीमत गिरती या बढ़ती है तो ऑप्शन का मनीनेस भी बदलता है और इस वजह से डेल्टा भी बदलता है 

यहां पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि डेल्टा स्पॉट में होने वाले बदलाव के साथ बदलता है। मतलब यह कि कोई फिक्स या निश्चित संख्या नहीं है यानी अगर किसी ऑप्शन का डेल्टा 0.4 है तो यह अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव के साथ-साथ बदलेगा। 

नीचे के चार्ट को देखिए यह स्पॉट में होने वाले बदलाव के साथ डेल्टा में आ रहे बदलाव को दिखा रहा है। यह चार्ट किसी खास ऑप्शन के लिए या स्ट्राइक के लिए नहीं है, यह एक आम चार्ट है। आप देख सकते हैं कि यहां पर दो रेखाएं हैं 

  1. नीले रंग की रेखा कॉल ऑप्शन के बदलाव को दिखाती है (0 से 1 के बीच रहता है) 
  2. लाल रंग की रेखा पुट ऑप्शन के डेल्टा के को दिखाती है( -1 से 0 के बीच) 

इसको और अच्छे से समझते हैं – 

यह चार्ट बहुत ही रोचक है। मेरा सुझाव है कि आप पहले सिर्फ नीली रेखा को देखिए और लाल रेखा पर बिल्कुल भी नजर मत डालिए। नीली रेखा एक कॉल ऑप्शन के डेल्टा को दिखाती है। इस ग्राफ से डेल्टा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं मिलती हैं। मैं उनकी एक लिस्ट नीचे दे रहा हूं, (यहां पर आप ये भी याद रखिए कि जब भी स्पॉट की कीमत बदलती है ऑप्शन का मनीनेस (Moneyness of Option) भी बदलता है) 

1.पहले X-axis पर नजर डालिए- बाएं तरफ से आप देखेंगे तो आपको दिखेगा कि जैसे-जैसे स्पॉट की कीमत ATM से OTM से ATM और फिर ATM की तरफ बढ़ती है वैसे-वैसे मनीनेस बढ़ता जाता है। 

  1. डेल्टा की रेखा यानी नीली रेखा को देखिए- जैसे जैसे स्पॉट की कीमत बढ़ती है डेल्टा भी बढ़ता है।
  2. ध्यान से देखिए, OTM में डेल्टा करीब-करीब 0 तक पहुंच जाता है इसका मतलब है कि स्पॉट की कीमत में कितनी भी गिरावट हो (OTM से डीप OTM जाते हुए) ऑप्शन का डेल्टा 0 पर ही रहता है।  
  3. याद रखिए कि कॉल ऑप्शन का डेल्टा नीचे में 0 तक ही जाता है।
  4. स्पॉट की कीमत OTM से ATM की तरफ जाती है तो डेल्टा भी बढ़ने लगता है (याद रखिए कि ऑप्शन का मनीनेस भी बढ़ता है)। 
  5. ध्यान दीजिए कि अगर ऑप्शन ATM से कम है तो उसका डेल्टा 0 से 0.5  के बीच में रहता है।
  6. ATM पर डेल्टा 0.5 हो जाता है।
  7. जब स्पॉट ATM से ITM की तरफ बढ़ता है तो डेल्टा भी 0.5 से ऊपर जाने लगता है।
  8. ध्यान दीजिए कि 1 पर पहुंचने के बाद डेल्टा बढ़ना रुक जाता है। 
  9. उसका यह भी मतलब है कि जब डेल्टा ITM से ऊपर डीप ITM की तरफ जाता है तो डेल्टा का मूल्य बदलता नहीं है यह अधिकतम 1 पर ही रहता है। 

ऐसी ही चीजें आपको ऑप्शन के डेल्टा यानी लाल रेखा में भी देख सकते हैं।

10.3 – डेल्टा एक्सेलेरेशन – Delta Acceleration

हो सकता है कि आपने ऑप्शन ट्रेड के बारे में यह सुना हो कि ट्रेडर कई बार ATM ऑप्शन में अपने पैसे को दोगुना या तिगुना कर लेते हैं। अगर आपने ऐसी कहानी नहीं सुनी है, तो मैं आपको एक कहानी बताता हूं। 17 मई 2009 को भारत के चुनाव के नतीजे आए थे। यूपीए की सरकार फिर से चुन कर आई थी और डॉक्टर मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। आपको पता ही है कि शेयर बाजार यानी स्टॉक मार्केट केन्द्र सरकार में स्थिरता चाहता है। चुनाव के नतीजे के बाद सबको पता था कि अगले दिन यानी 18 मई को बाजार में तेजी आएगी। इसके पिछले दिन निफ्टी 3671 पर बंद हुआ था ।

उस समय तक ज़ेरोधा नहीं बना था हम लोग ट्रेडर्स थे और अपने अपने पैसों को लेकर ट्रेडिंग करते थे, हमारे कुछ ग्राहक भी थे। हमारे एक सहयोगी  ने 17 मई से कुछ दिनों पहले एक बड़ा सा रिस्क लिया था। उसने ₹200000 के ATM ऑप्शन खरीदे थे। ये एक बड़ा रिस्क इसलिए था कि किसी को नहीं पता था कि चुनाव के नतीजे क्या आएंगे। अगर बाजार में तेजी आती तो उसको फायदा जरूर होता। लेकिन बाजार में तेजी आने के लिए कई चीजों का होना जरूरी था। लेकिन जब नतीजे आ गए तो हम सबको पता था कि 18 मई को वह पैसे बनाएगा। लेकिन किसी को नहीं पता था कि उसको कितना फायदा होगा ।

18 मई 2009 को जो कुछ हुआ मैं उसको भूल नहीं सकता। बाजार 9:55 पर खुला (उस समय बाजार खुलने का समय यही था)। बाजार ने धमाकेदार शुरुआत की । निफ्टी तुरंत ऊपर के सर्किट पर पहुंच गया और बाजार में कारोबार बंद हो गया। कुछ ही मिनटों में निफ्टी 20% ऊपर चढ़ा गया और 4321 पर बंद हो या। एक्सचेंज ने 10:30 पर बाजार को बंद करने का फैसला किया क्योंकि बाजार में जरूरत से ज्यादा तेजी हो गई थी। वो मेरे ट्रेडिंग करियर का सबसे छोटा काम का दिन था। जिसमें बाजार सिर्फ 6 मिनट के लिए खुला था । 

बाजार के उस दिन के चार्ट को देखिए-

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान हमारे सहयोगी ने एक बड़ा मुनाफा कमा लिया। उस सोमवार के सुबह 10:30 पर उसके ऑप्शन की कीमत हो गई थी 2800000 रुपए यानी उसने कुल 1300% का मुनाफा कमा लिया था। हर ट्रेडर ऐसे ही मुनाफे की उम्मीद में रहता है ।

अब इस कहानी से जुड़े हुए कुछ सवाल पूछता हूं जिससे हम मुद्दे की बात पर आ सकेंगे –

  1. आपको क्या लगता है हमारे सहयोगी ने ATM ऑप्शन खरीदने का फैसला क्यों किया और OTM या ITM ऑप्शन क्यों नहीं खरीदा?
  2. उसने अगर ITM या OTM ऑप्शन खरीदा होता तो क्या होता ?

इन सवालों के जवाब इस ग्राफ में छुपे हैं

यह ग्राफ डेल्टा एक्सीलरेशन के बारे में बताता है – डेल्टा की 4 स्थितियां होती हैं जिनको ये ग्राफ दिखाता है। आइए इन पर नजर डालते हैं। 

लेकिन पहले कुछ बातें याद रख लीजिए- 

  • जो बातें हमें यहां आगे करने जा रहे हैं वो बहुत ही महत्वपूर्ण है उनको जानिए और याद रखिए। 
  • पिछले अध्याय में बताए हुए डेल्टा टेबल को जिसमें ऑप्शन टाइप और डेल्टा वैल्यू के आदि के बारे में बताया गया था। उसको याद रखें और उस पर फिर से नजर डाल लीजिए 
  • यह भी याद रखें कि यहां पर दिखाई गयी डेल्टा और प्रीमियम की संख्या एक अनुमान भर है और इसे केवल आपको समझाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

प्रीडेवलपमेंट (Predevelopment) – यह वह स्थिति है जब ऑप्शन OTM या डीप OTM होता है। यहां पर डेल्टा 0 के करीब होता है। अगर ऑप्शन डीप OTM से OTM तक भी आता है, तो भी डेल्टा 0 के करीब ही बना रहता है। उदाहरण के लिए जब स्पॉट 8400 है तो 8700 कॉल ऑप्शन एक डीप OTM है और इसका डेल्टा करीब 0.05 रहेगा। ऐसे में अगर स्पॉट 8400 से 8500 की तरफ बढ़ता है, तो भी 8700 कॉल ऑप्शन का डेल्टा बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेगा क्योंकि 8700 CE अभी भी OTM ऑप्शन ही रहेगा। डेल्टा अभी भी 0 के पास ही रहेगा। 

तो जब स्पॉट 8400 है तो 8700 CE का प्रीमियम ₹12 होगा। जब निफ्टी 8500 तक जाएगा यानी 100 प्वाइंट बढ़ेगा तो प्रीमियम 100*0.05 = 5 प्वाइंट ही बढ़ेगा ।

अब नया प्रीमियम 12 + 5 = 17  होगा लेकिन 8700 CE अब स्लाइट OTM ही रहेगा डीप OTM नहीं। 

अब सबसे महत्वपूर्ण बात, प्रीमियम में बदलाव भले ही बहुत छोटा( 5 ) दिख रहा हो लेकिन प्रतिशत के तौर पर 12 से 17 तक इसमें 41.6% का बदलाव हुआ है। 

निष्कर्ष – डीप OTM ऑप्शन में प्रतिशत बदलाव काफी बड़ा होता है लेकिन ऐसा होने के लिए स्पॉट में बहुत बड़ा बदलाव होना चाहिए। 

सुझाव –  डीप OTM ऑप्शन खरीदने से बचें क्योंकि इसमें डेल्टा काफी छोटा होता है और अंडरलाइंग में काफी बड़ा बदलाव होने पर ही ऑप्शन का फायदा आपको मिल सकता है। इससे ज्यादा फायदा आप दूसरी जगह कमा सकते हैं। लेकिन इसी वजह से डीप OTM को बेचना समझदारी भरा होता है। इसे हम आगे समझेंगे जब हम ग्रीक थीटा को समझ रहे होंगे।

टेक ऑफ और एक्सीलरेशन (Take off and Acceleration) यह वह स्थिति है जब ऑप्शन OTM से ATM में बदल रहा होता है। सबसे ज्यादा कमाई यहीं पर होती है और इसीलिए यहां सबसे ज्यादा रिस्क भी होता है। 

मान लीजिए कि निफ़्टी स्पॉट 8400 है, स्ट्राइक है 8500 CE, ऑप्शन है स्लाइटली OTM , डेल्टा 0.25 और प्रीमियम है ₹20। 

स्पॉट 8400 से 8500 तक 100 पॉइंट बढ़ता है। आइए अब निकालते हैं कि प्रीमियम में क्या बदलाव होगा?

अंडरलाइंग में बदलाव = 100 

8500 CE का डेल्टा = 0.25 

प्रीमियम में बदलाव = 100*0.25 = 25

नया प्रीमियम = Rs 20 +25 = Rs 45

प्रतिशत बदलाव = 125%

आप देख सकते हैं कि 100 पॉइंट के बदलाव के वजह से स्लाइटली OTM ऑप्शन में काफी अलग तरीके का  बदलाव होता 

निष्कर्ष:  स्लाइटली (Slightly) OTM ऑप्शन जिसका डेल्टा आमतौर पर 0.2 से 0.3 होता है उसमें अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव का असर काफी ज्यादा होता है। अंडरलाइंग मैं हुआ थोड़ा सा बदलाव भी स्लाइटली OTM ऑप्शन में  प्रतिशत तौर पर काफी बदलाव लाता है और इसी वजह से इस तरह के ऑप्शन में ट्रेडर अपना पैसा दोगुना या तिगुना कर पाते हैं। जब उन्हें लगता है कि काफी बड़ा बदलाव आने वाला है तो वह स्लाइटली OTM  ऑप्शन को खरीदते हैं। लेकिन याद रखिए कि यह सिक्के का सिर्फ एक पहलू है, दूसरे पहलू को जानना अभी आपके लिए बाकी है। 

सुझाव: स्लाइटली (Slightly) OTM ऑप्शन को खरीदना डीप OTM ऑप्शन को खरीदने के मुकाबले महंगा होता है। लेकिन अगर आपका दाँव सही पड़ा तो आप काफी पैसे कमा सकते हैं। इसलिए जब भी ऑप्शन खरीदना हो स्लाइटली OTM ऑप्शन को खरीदने पर विचार जरूर करें। लेकिन ध्यान रखें कि एक्सपायरी में समय होना चाहिए। इस पर हम आगे बात करेंगे।

अब देखते हैं कि उसी 100 पॉइंट के बदलाव का ATM ऑप्शन पर क्या असर पड़ता है- 

स्पॉट = 8400 

स्ट्राइक = 8400 ATM 

प्रीमियम ₹60 

अंडरलाइंग में बदलाव = 100

8400 CE का डेल्टा = 0.5

प्रीमियम में बदलाव = 100*0.5 = 50

नया प्रीमियम = Rs 60 + 50 = Rs 110/-

प्रतिशत बदलाव = 83%

निष्कर्ष OTM ऑप्शन के मुकाबले ATM ऑप्शन पर स्पॉट में बदलाव का ज्यादा असर दिखता है। ATM ऑप्शन का डेल्टा ज्यादा होता है इसलिए अंडरलाइंग में बहुत ज्यादा बदलाव की जरूरत नहीं पड़ती। अगर अंडरलाइंग में थोड़ा बदलाव भी होता है तो ऑप्शन का प्रीमियम काफी बदलता है।लेकिन ATM ऑप्शन को खरीदना OTM ऑप्शन के मुकाबले ज्यादा महंगा होता है। 

सुझाव जब आप सुरक्षित रहना चाहते हैं तो ATM ऑप्शन खरीदें। ATM ऑप्शन तब भी बदलेगा जब अंडरलाइंग में ज्यादा बड़ा बदलाव ना हो। इसी वजह से यह भी याद रखें कि ATM ऑप्शन को बेचना खतरों भरा हो सकता है। यह तब तक ना करें जब तक आप बहुत ही ज्यादा निश्चित ना हों।

स्टेबलाइजेशन(Stabilization) जब ऑप्शन ATM से ITM या डीप ITM की तरफ जाता है, तो डेल्टा 1  के आस पास रुकने लगता है। जैसा कि हम ग्राफ में देख सकते हैं डेल्टा 1 पर पहुंचकर थम जाता है। इसका मतलब है कि ऑप्शन ITM हो या डीप ITM, डेल्टा 1 एक ही रहता है। 

आइए देखते हैं यह कैसे काम करता है –

निफ़्टी स्पॉट = 8400 

ऑप्शन 1 = 8300 CE स्ट्राइक, ITM ऑप्शन, डेल्टा 0.8, प्रीमियम  ₹105 

ऑप्शन 2 = 8200 CE स्ट्राइक, डीप ITM ऑप्शन, डेल्टा है 1, और प्रीमियम है ₹210 अं

डरलाइन में बदलाव = 100 पॉइंट और निफ्टी पहुंचता है 8500 पर 

देखते हैं इसका असर दोनों ऑप्शन पर क्या पड़ता है 

ऑप्शन 1 के प्रीमियम में बदलाव = 100*0.8 = 80

ऑप्शन 1 के लिए नया प्रीमियम = Rs 105 + 80 = 185 

प्रतिशत बदलाव =  80/105 = 76.19%     

ऑप्शन 2 के प्रीमियम में बदलाव = 100*1 = 100 

ऑप्शन 2 का नया प्रीमियम = Rs 210 + 100 = Rs 310 

प्रतिशत बदलाव = 100/210 = 47.6%

निष्कर्ष: कुल बदलाव के मामले में डीप ITM स्लाइटली ITM ऑप्शन के मुकाबले ज्यादा बेहतर होता है, लेकिन प्रतिशत बदलाव के मामले में इसका ठीक उल्टा होता है। साफ है कि ITM ऑप्शन अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव से ज्यादा प्रभावित होते हैं और यह सबसे महंगे भी होते हैं। 

एक महत्वपूर्ण बात जो आप को देखनी चाहिए तो वह यह है कि अगर अंडरलाइंग में 100 प्वाइंट का बदलाव हुआ है तो डीप ITM ऑप्शन में भी 100 प्वाइंट का बदलाव होता है। इसका मतलब है कि डीप ITM ऑप्शन खरीदना करीब-करीब अंडरलाइंग को खरीदने के बराबर ही होता है। ऐसा इसीलिए क्योंकि अंडरलाइंग में जैसा बदलाव होता है डीप ITM में भी वैसा ही बदलाव होता है।

सुझाव: ITM ऑप्शन तब खरीदें जब आप सुरक्षित रहना चाहते हैं। सुरक्षित रहने से मेरा मतलब है कि डीप ITM की तुलना डीप OTM से करें तो। ITM ऑप्शन का डेल्टा ऊंचा होता है जिसका मतलब है कि उसमें अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव का असर काफी ज्यादा होता है। 

डीप ITM ऑप्शन एकदम अंडरलाइंग के साथ साथ चलता है। इसका मतलब है कि डीप ऑप्शन ITM ऑप्शन को एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की जगह भी रखा जा सकता है।

देखिए –

निफ़्टी स्पॉट  = 8400 

निफ़्टी फ्यूचर्स = 8409 

स्ट्राइक = 8000 डीप ITM 

प्रीमियम = 450 

डेल्टा =

स्पॉट में बदलाव = 30 पॉइंट 

नया स्पॉट = 8430 

फ्यूचर्स में बदलाव 8409 + 30 = 8439 पूरे 30 पॉइंट का बदलाव 

ऑप्शन प्रीमियम में बदलाव = 1*30 =30

नया ऑप्शन प्रीमियम = 30 +450 – 480  पूरे 30 पॉइंट का बदलाव 

तो यहां समझने की बात यह है कि फ्यूचर्स और डीप ITM ऑप्शन करीब-करीब तरह का बदलाव ही दिखाते हैं। जब अंडरलाइंग में कोई बदलाव होता है तो इसलिए आपको डीप ITM ऑप्शन खरीदकर अपने मार्जिन को कम कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करते वक्त आप को ध्यान में रखना चाहिए कि आपका डीप ITM ऑप्शन डीप ITM ऑप्शन ही बना रहे। इसका मतलब है कि डेल्टा 1 पर ही रहे। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि बाजार में लिक्विडिटी बनी रहे।

मुझे लगता है कि इस अध्याय में हमने बहुत सारी बातें कर ली हैं। खासकर यह जानते हुए कि आप ग्रीक्स के बारे में पहली बार जान रहे हैं। इसलिए अब थोड़ा सा विश्राम करते हैं। 

डेल्टा से जुड़ी और कई बातें हैं जिनको हमें जानना है लेकिन हम उनको अगले अध्याय में जानेंगे। लेकिन ऐसा करने के पहले हमने जो कुछ इस अध्याय में सीखा है, उसको एक टेबल के रूप में देख लेते हैं।

इस टेबल से हमें समझ में आएगा कि अलग-अलग तरह के ऑप्शन अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव से किस तरीके से प्रभावित होते हैं। यहां मैंने बजाज ऑटो को अंडरलाइंग के तौर पर लिया है। कीमत है 2210 और उम्मीद है कि इसमें यानी अंडरलाइंग में 30 पॉइंट का बदलाव होगा। इसका मतलब है कि बजाज ऑटो 2240 तक जाएगा। यह भी माना गया है कि अभी एक्सपायरी में काफी समय बाकी है, इसलिए समय को लेकर कोई चिंता नहीं है।

मनीनेस  स्ट्राइक डेल्टा पुराना प्रीमियम प्रीमियम में वदलाव नया प्रीमियम % बदलाव
Deep OTM 2400 0.05 Rs.3/- 30* 0.05 = 1.5 3+1.5 = 4.5 50%
Slightly OTM 2275 0.3 Rs.7/- 30*0.3 = 9 7 +9 = 16 129%
ATM 2210 0.5 Rs.12/- 30*0.5 = 15 12+15 = 27 125%
Slightly ITM 2200 0.7 Rs.22/- 30*0.7 = 21 22+21 = 43 95.45%
Deep ITM 2150 1 Rs.75/- 30*1 = 30 75 + 30 =105 40%

जैसा कि आप देख सकते हैं अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव से हर ऑप्शन अलग अलग तरह से प्रभावित हो रहा है। 

इस अध्याय के शुरू में मैंने आपको एक कहानी सुनाई थी और उससे जुड़े कुछ सवाल भी पूछे थे। अब आप उन सवालों के जवाब को देने की कोशिश कीजिए, शायद इस अध्याय से आपको और जवाब देने में मदद मिले।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. मॉडल पर आधारित सोच के जरिए आप अपने ट्रेडिंग को एक वैज्ञानिक तरीके में बदल सकते हैं 
  2. जब भी स्पॉट की वैल्यू में बदलाव होता है तो डेल्टा भी बदलता है 
  3. जब ऑप्शन OTM से ATM और फिर ITM की तरफ बढ़ता है तो डेल्टा भी साथ में बदलता है 
  4. ATM ऑप्शन के लिए डेल्टा 0.5 तक पहुंच जाता है 
  5. जब ऑप्शन डीप OTM से OTM में बदलता है तो यह डेल्टा की प्रीडेवलपमेंट स्थिति होती है 
  6. डेल्टा का टेकऑफ और एक्सीलरेशन तब होता है जब ऑप्शन OTM से ATM की तरफ बढ़ता है 
  7. डेल्टा स्टेबलाइजेशन तब होता है जब ऑप्शन ATM से ITM या डीप ITM की तरफ बढ़ता है 
  8. टेक ऑफ स्थिति पर ऑप्शन खरीदने से आपको काफी ऊंचा रिटर्न मिल सकता है
  9.  डीप ITM ऑप्शन को खरीदना अंडरलाइंग को खरीदने के बराबर ही होता है

The post डेल्टा (भाग 2) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2/feed/ 35 Image-1_Delta-vs-Spot M5-Ch10-title Image 3_Story Image 2_Delta accelaration
डेल्टा (भाग 3) https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-3/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-3/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:51:43 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6789 11.1 – डेल्टा को जोड़ना सीखीये डेल्टा की एक खास विशेषता यह है कि उसे जोड़ा जा सकता है।  इसको समझने के लिए एक बार फिर से फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट पर जाना पड़ेगा। हमें पता है कि अंडरलाइंग की स्पॉट में 1 प्वाइंट का बदलाव फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में भी 1 प्वाइंट  का बदलाव लाता है। उदाहरण […]

The post डेल्टा (भाग 3) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

11.1 – डेल्टा को जोड़ना सीखीये

डेल्टा की एक खास विशेषता यह है कि उसे जोड़ा जा सकता है। 

इसको समझने के लिए एक बार फिर से फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट पर जाना पड़ेगा। हमें पता है कि अंडरलाइंग की स्पॉट में 1 प्वाइंट का बदलाव फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में भी 1 प्वाइंट  का बदलाव लाता है। उदाहरण के तौर पर अगर निफ्टी का स्पॉट 8340 से 8350 हो जाता है तो निफ्टी का फ्यूचर 8347 से 8357 होगा। (यह माना गया है कि निफ्टी का फ्यूचर 8347 पर ट्रेड कर रहा है जबकि स्पॉट 8340 पर है ) अब अगर हम फ्युचर्स को एक डेल्टा देना चाहें तो फ्यूचर का डेल्टा 1 होगा क्योंकि हमें पता है कि अंडरलाइंग के हर एक प्वाइंट  के बदलाव पर फ्यूचर में भी एक प्वाइंट का बदलाव होता है। 

अब मान लीजिए कि मैंने एक ATM ऑप्शन खरीदा जिसका डेल्टा 0.5 है इसका मतलब हमें पता है कि अगर अंडरलाइंग में 1 प्वाइंट  का बदलाव होगा तो ऑप्शन में 0.5 प्वाइंट का बदलाव होगा। इसका मतलब यह है कि एक ATM ऑप्शन को होल्ड करना आधे फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के बराबर है। इसको देखते हुए, अगर मैं दो ऐसे ATM कॉन्ट्रैक्ट लूं तो वो एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के बराबर होगा क्योंकि दो ATM ऑप्शन का डेल्टा 0.5 -0.5 है जो मिलकर 1 का डेल्टा बनाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के डेल्टा को जोड़कर यह पता किया जा सकता है कि हमारी कुल पोजीशन का डेल्टा कितना है?

इसको समझने के लिए कुछ उदाहरणों पर नजर डालते हैं-

उदाहरण 1- निफ़्टी का स्पॉट एक 8125 पर है ट्रेडर के पास तीन अलग-अलग कॉल ऑप्शन हैं

क्रमांक कॉन्ट्रैक्ट वर्गीकरण लॉट्स डेल्टा पोजिशन डेल्टा
1 8000 CE ITM 1 -Buy 0.7 + 1 * 0.7 = + 0.7
2 8120 CE ATM 1 -Buy 0.5 + 1 * 0.5 = + 0.5
3 8300 CE Deep OTM 1- Buy 0.05 + 1 * 0.05 = + 0.05
Total Delta of positions = 0.7 + 0.5 + 0.05 = + 1.25

टिप्पणी- 

  1. पोजीशन के कॉलम में एक के आगे जो पॉजिटिव या प्लस का साइन लगाया गया है उसका मतलब यह है कि यह एक लॉन्ग पोजीशन है। 
  2. सभी पोजीशन को मिलाकर एक +1.25 का डेल्टा बनता है। इसका मतलब है कि अंडरलाइंग और आपकी पोजीशन दोनों एक ही दिशा में चलेंगे। 
  3. निफ्टी में 1 प्वाइंट के बदलाव पर पूरे पोजीशन में 1.25 प्वाइंट का बदलाव आएगा।
  4. अगर निफ्टी 50 प्वाइंट चलता है तो सभी पोजीशन मिलकर 50*1.25 +  62.5 प्वाइंट चलेंगे।

उदाहरण दो- निफ़्टी का स्पॉट 8125 पर है ट्रेडर के पास कॉल और पुट दोनों तरह के ऑप्शन हैं 

क्रमांक कॉन्ट्रैक्ट वर्गीकरण लॉट डेल्टा पोजिशन डेल्टा
1 8000 CE ITM 1- Buy 0.7 + 1*0.7 =0.7
2 8300 PE Deep ITM 1- Buy – 1.0 + 1*-1.0 = -1.0
3 8120 CE ATM 1- Buy 0.5 + 1*0.5 = 0.5
4 8300 CE Deep OTM 1- Buy 0.05 + 1*0.05 = 0.05
Total Delta of positions  0.7 – 1.0 + 0.5 + 0.05 = + 0.25

टिप्पणी- 

  1. सभी पोजीशन को मिलाकर एक पॉजिटिव डेल्टा है +0.25 इसका मतलब है कि अंडरलाइंग और सभी पोजीशन एक ही दिशा में चलेंगे।
  2. डीप ITM पुट ऑप्शन को जोडे जाने की वजह से डेल्टा कम हो गया है। इसका मतलब है कि कुल पोजीशन पर बाजार के बदलाव का असर कम पड़ेगा। 
  3. निफ्टी में 1 प्वाइंट के बदलाव पर कुल पोजीशन में 0.25 प्वाइंट का बदलाव होगा। 
  4. अगर निफ्टी 50 प्वाइंट बदलता है तो सारी पोजीशन मिलकर केवल 50*0.25 = 12.5 प्वाइंट बदलेंगी।
  5. यहां ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि कॉल और पुट ऑप्शन का डेल्टा भी आपस में जोड़ा जा सकता है अगर दोनों एक ही अंडरलाइंग से जुड़े हैं।

उदाहरण 3 – निफ़्टी स्पॉट 8125 पर है, ट्रेडर के पास कॉल और पुट दोनों तरह के ऑप्शन हैं उसके पास पुट के दो लॉट हैं 

क्रमांक कॉन्ट्रैक्ट वर्गीकरण लॉट डेल्टा पोजिशन डेल्टा
1 8000 CE ITM 1- Buy 0.7 + 1 * 0.7 = + 0.7
2 8300 PE Deep ITM 2- Buy -1 + 2 * (-1.0) = -2.0
3 8120 CE ATM 1- Buy 0.5 + 1 * 0.5 = + 0.5
4 8300 CE Deep OTM 1- Buy 0.05 + 1 * 0.05 = + 0.05
Total Delta of positions 0.7 – 2 + 0.5 + 0.05 = – 0.75

टिप्पणी- 

  • यहां पर कुल मिलाकर पोजीशन का डेल्टा नेगेटिव है। इसका मतलब है कि अंडरलाइंग और पोजीशन अलग-अलग दिशा में चलेंगे। 
  • 2 डीप ITM पुट ऑप्शन के जुड़ने से ओवरऑल कुल पोजीशन का डेल्टा नेगेटिव हो गया है। इसका मतलब है कि बाजार में होने वाले बदलाव का असर पोजीशन पर काफी कम पड़ेगा। 
  • निफ्टी में 1 प्वाइंट के बदलाव के बाद पोजीशन में -0.75 का नेगेटिव बदलाव होगा। इसका मतलब यह है कि अगर निफ्टी 50 प्वाइंट  बदलता है तो पोजीशन में – 37.5 प्वाइंट का बदलाव आएगा [50*(-0.75)] 

उदाहरण 4- निफ़्टी स्पॉट 8125 पर है ट्रेडर के पास  एक ही स्ट्राइक वाले कॉल और पुट ऑप्शन हैं और अंडरलाइंग भी एक ही है 

क्रमांक कॉन्ट्रैक्ट वर्गीकरण लॉट डेल्टा पोजिशन डेल्टा
1 8100 CE ATM 1- Buy 0.5 + 1 * 0.5 = + 0.5
2 8100 PE ATM 1- Buy -0.5 + 1 * (-0.5) = -0.5
Total Delta of positions + 0.5 – 0.5 = 0

टिप्पणी- 

  1. 8100 CE (ATM) का डेल्टा है +0.5 
  2. 8100 PE (ATM) का नेगेटिव डेल्टा है -0.5 
  3. दोनों पोजीशन का डेल्टा मिलाकर 0 है। इसका मतलब है कि इस पोजीशन पर बाजार में होने वाले बदलाव का कोई असर नहीं पड़ेगा। 

1.उदाहरण के लिए निफ्टी 100 प्वाइंट बदलता है तो दोनों पोजीशन को मिलाकर 0 प्वाइंट का ही बदलाव होगा। (100*0=0) 

  1. इस तरह की पोजीशन जिसमें सब मिलाकर डेल्टा 0 हो उसे डेल्टा न्यूट्रल (Delta Neutral) पोजीशन कहते हैं 
  2. डेल्टा न्यूट्रल पोजीशन में बाजार के किसी भी दिशा के बदलाव का कोई असर नहीं पड़ता। यह एक तरीके से बाजार से अछूते रहते हैं। 
  3. लेकिन डेल्टा न्यूट्रल पोजीशन पर वोलेटिलटी और समय जैसी दूसरी चीजों का असर पड़ता है। इस पर हम बाद में चर्चा करेंगे।

उदाहरण 5 – निफ़्टी स्पॉट 8125 पर है और ट्रेडर ने एक कॉल ऑप्शन बेचा है 

क्रमांक कॉन्ट्रैक्ट वर्गीकरण लॉट डेल्टा पोजिशन डेल्टा
1 8100 CE ATM 1- Sell 0.5 – 1 * 0.5 =  – 0.5
2 8100 PE ATM 1- Buy -0.5 + 1 * (-0.5) = – 0.5
Total Delta of positions – 0.5 – 0.5 = – 1.0

टिप्पणी- 

  1. पोजीशन डेल्टा कॉलम में 1 के आगे नेगेटिव साइन(-) का मतलब है कि यह एक शार्ट पोजीशन है। 
  2. जैसा कि आप देख सकते हैं कि शॉर्ट कॉल ऑप्शन की वजह से डेल्टा नेगेटिव या माइनस में है। इसका मतलब है कि ऑप्शन की पोजीशन और अंडरलाइंग अलग-अलग दिशा में चलेंगे। इसका मतलब यह है कि स्पॉट में बढ़ोतरी का मतलब होगा कि कॉल ऑप्शन में घाटा होगा। 
  3. इसी तरीके से अगर आप एक पुट ऑप्शन को शॉर्ट करेंगे तो डेल्टा पॉजिटिव हो जाएगा । [-1*(-0.5) = +0.5]कु

अंत में अब एक ऐसे उदाहरण पर नजर डालते हैं जहां ट्रेडर के पास 5 लॉट लॉन्ग डीप ITM ऑप्शन है। हमें पता है कि ऐसी पोजीशन का कुल डेल्टा +5 *+1 = +5 होगा। इसका मतलब है कि अंडरलाइंग में 1 प्वाइंट का बदलाव पोजीशन में 5 प्वाइंट का बदलाव लाएगा और ये बदलाव उसी दिशा में होगा।

डीप ITM ऑप्शन के 5 पुट ऑप्शन को शॉर्ट करने से भी ऐसा ही होगा

-5* -1 = +5

यहाँ -5 का मतलब है 5 शॉर्ट पोजीशन और -1 डीप ITM पुट ऑप्शन का डेल्टा है। 

इन सारे उदाहरणों से आपको समझ में आ गया होगा कि डेल्टा को आपस में कैसे जोड़ा जा सकता है और कुल पोजीशन का डेल्टा कैसे निकाला जा सकता है। डेल्टा को इस तरह से जोड़ने से काफी मदद मिलती है जब आपके पास कई तरीके की पोजीशन है और आप यह जानना चाहते हों कि कुल मिलाकर आपके पोजीशन की दिशा  क्या है 

मैं आपको सुझाव दूंगा कि हमेशा अपनी सभी पोजीशन की अलग-अलग डेल्टा को एक साथ जोड़कर कुल डेल्टा निकालें जिससे आपको बाजार में अपनी पोजीशन की स्थिति का पता चल सके। 

यहां पर कुछ और बातें जो आपको याद रखनी चाहिए। वह हैं-  

ATM ऑप्शन का डेल्टा =  0.5 

आपके पास अगर दो ATM ऑप्शन है तो = पोजीशन का डेल्टा 1  होगा 

तो इस तरह से अंडरलाइंग में 1 प्वाइंट के बदलाव से और आपकी कुल पोजीशन में भी 1 प्वाइंट  का बदलाव होगा क्योंकि डेल्टा 1 है। इसका मतलब है कि ये ऑप्शन एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की तरह ही चलेगा। लेकिन याद रखिए कि यह फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। याद रखिए कि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट केवल बाजार की दिशा से प्रभावित होता है लेकिन ऑप्शन कांटेक्ट और बहुत सारी चीजों से प्रभावित होते हैं। 

कई बार ऐसा समय आएगा जब आप ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को फ्यूचर की जगह लेना चाहेंगे खासकर मार्जिन के नजरिए से, जब भी आप ऐसा करें तो इसके असर को याद रखिएगा। हम आगे इस पर बात करेंगे।

11.2- संभावना निकालने के लिए डेल्टा का प्रयोग

हम डेल्टा पर अपनी चर्चा को खत्म करें, उसके पहले डेल्टा का एक और रोचक इस्तेमाल आपको बताता हूं। कोई भी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के एक्सपायर होने समय इन द मनी होगा या नहीं इसकी संभावना पता करने के लिए डेल्टा का इस्तेमाल किया जा सकता है। 

जब कोई ट्रेडर एक ऑप्शन खरीदता है (कॉल हो या पुट), तो वह क्या चाहता है? जब आप निफ़्टी के 8000 PE  को खरीदते हैंजबकि स्पॉट 8100 पर है तो आप क्या उम्मीद कर रहे होते हैं?(ध्यान रखें कि 8000 PE यहाँ एक OTM ऑप्शन है ) साफ है कि हम उम्मीद करते हैं कि बाजार गिरेगा जिससे पुट ऑप्शन में हमारे पैसे बनें। 

वास्तव में हर ट्रेडर यही उम्मीद करता है कि स्पॉट में कीमत गिर जाए और उसकी स्ट्राइक कीमत के नीचे चली जाए, जिससे उसका OTM ऑप्शन एक ITM ऑप्शन बन जाए और इस तरह से उसका प्रीमियम ऊपर की ओर जाता जाए जिससे उसके पैसे बनें। 

ट्रेडर डेल्टा का इस्तेमाल इस बात को पता लगाने के लिए कर सकता है कि उसके ऑप्शन के OTM से ITM बनने की कितनी संभावना है? 

इस उदाहरण में 8000 PE एक स्लाइटली OTM ऑप्शन है, इसलिए यहां पर डेल्टा 0.5 के नीचे होना चाहिए मान लीजिए यह 0.3 है।

अब इस ऑप्शन के OTM से ITM में बदलने की संभावना को पता करने के लिए हमें डेल्टा को प्रतिशत में बदलना होगा। 

जब हम 0.3 डेल्टा को प्रतिशत में बदलते हैं तो यह 30% प्रतिशत हो जाता है। इसका मतलब है कि 8000 PE के ITM ऑप्शन बनने की सिर्फ 30% संभावना है 

अब एक स्थिति पर विचार कीजिए, हालांकि यह काल्पनिक स्थिति है लेकिन यह स्थिति बाजार में कई बार बनती है –

  1. 8400 CE ₹4 पर ट्रेड कर रहा है 
  2. स्पॉट 8275 पर ट्रेड कर रहा है 
  3. एक्सपायरी को सिर्फ 2 दिन बचे हैं, क्या आप इस ऑप्शन को खरीदेंगे? 

एक आम ट्रेडर सोचेगा कि यह एक बहुत ही कम खर्च वाला ट्रेड है क्योंकि इसमें प्रीमियम से ₹4 का है इसलिए इसमें ज्यादा कुछ गंवाने के लिए नहीं है। ऐसे में ट्रेडर को लगेगा कि यह ट्रेड उसके लिए कमाई कर सकता है और वह एक बड़ा मुनाफा कमा सकता है। 

लेकिन कुछ समय के लिए अपने मॉडल सोच को का इस्तेमाल करते हैं और देखते हैं कि यह सही है या गलत? –

  1. 8400 CE डीप OTM कॉल ऑप्शन है क्योंकि स्पॉट 8275 है 
  2. इस ऑप्शन का डेल्टा 0.1 के आसपास होगा 
  3. यह डेल्टा हमें बताता है कि इस ऑप्शन के ITM में एक्सपायर होने की संभावना सिर्फ 10% है। 
  4. हमें यह भी पता है कि अब एक्सपायरी के लिए सिर्फ 2 दिन बचे हैं ऐसे में यह साफ है कि इस ऑप्शन को खरीदना सही नहीं होगा

एक समझदार ट्रेडर इस ऑप्शन को कभी नहीं खरीदेगा। लेकिन क्या आपको ऐसा नहीं लगता इस ऑप्शन को बेचकर प्रीमियम को ले लेना एक अच्छा सौदा होगा? जरा सोचिए यहां इस ऑप्शन को ITM में एक्सपायर होने की सिर्फ 10% संभावना है यानी 90% संभावना इस बात की है कि ऑप्शन OTM की तरह एक्सपायर होगा। अगर इतनी ज्यादा संभावना बेचने वाले के पक्ष में है, तो किसी कोई भी ट्रेडर बेच कर कमाई कर सकता है। 

ऐसे ही, एक ITM ऑप्शन का डेल्टा क्या होगा? 1 के करीब ? इसका मतलब है कि ITM  ऑप्शन को एक ITM की तरह एक्सपायर होने की संभावना काफी ज्यादा है। दूसरे शब्दों में कहें तो एक ITM ऑप्शन के OTM के तौर पर एक्सपायर होने की संभावना काफी कम है इसलिए किसी भी ITM ऑप्शन को शॉर्ट करने के समय बहुत ही सावधानी बरतना चाहिए। क्योंकि संभावनाएं आपकी विरुद्ध ही होगीं। 

याद रखिए कि अच्छा ट्रेडर वही है जो ऐसे ट्रेड करता है जिसके सफल होने की संभावना आप के पक्ष में हो और संभावनाएं किसके पक्ष में है, यह जानने के लिए आपको मॉडल सोच को काम में लाना होगा। 

इसके साथ अब मुझे लगता है कि आपको पहले ऑप्शन यानी डेल्टा के बारे में काफी कुछ समझ में आ गया होगा। अब हम आगे गामा को जानेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. डेल्टा को आपस में जोड़ा जा सकता है।
  2. एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का डेल्टा हमेशा 1 होता है।
  3. दो ATM ऑप्शन को एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के बराबर माना जा सकता है।
  4. ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की जगह नहीं ले सकता।
  5. एक ऑप्शन का डेल्टा इस संभावना को भी बताता है कि वह ITM की तरह एक्सपायर होगा या नहीं।

The post डेल्टा (भाग 3) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-3/feed/ 31 M5-Ch11-title
गामा (भाग 1) https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%be-gamma-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%be-gamma-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:51:18 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6792 12.1- बाजार की एक अलग दुनिया  अगर आपने स्कूल या कॉलेज में कैलकुलस- कलन पढा है तो आज उसको दोहराने का दिन है। कैलकुलस में भी हम डिफरेंसिएशन– अवकलन और इंटीग्रेशन– समाकलन करना, पढ़ते थे। तब हम डेरीवेटिव–अवकलज भी पढ़ते थे और उसके जरिए डिफरेंसिएशन और इंटीग्रेशन के सवालों का जवाब निकालते थे। वो सब […]

The post गामा (भाग 1) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
12.1- बाजार की एक अलग दुनिया 

अगर आपने स्कूल या कॉलेज में कैलकुलस- कलन पढा है तो आज उसको दोहराने का दिन है। कैलकुलस में भी हम डिफरेंसिएशनअवकलन और इंटीग्रेशनसमाकलन करना, पढ़ते थे। तब हम डेरीवेटिवअवकलज भी पढ़ते थे और उसके जरिए डिफरेंसिएशन और इंटीग्रेशन के सवालों का जवाब निकालते थे। वो सब याद करिए। 

मैं आपको कैलकुलस पढ़ाने की कोशिश नहीं कर रहा हूं। मैं यह बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मैं एक खास जगह पर पहुंचना चाहता हूं। इनमें से कुछ चीजें ऑप्शन से जुड़ी हुई है, जिनको समझने के लिए आपको वह पुरानी बातें याद करने से फायदा होगा। 

आइए देखते हैं- 

एक कार 0 किलोमीटर से चलना शुरू करती है और 10 मिनट तक चलने के बाद 3 किलोमीटर तक पहुंच जाती है। 3 किलोमीटर से कार फिर से चलना शुरु करती है और 5 मिनट तक चलने के बाद 7 किलोमीटर तक पहुंच जाती है। 

जरा ध्यान दीजिए कि तीसरे और सातवें किलोमीटर के बीच में क्या होता है? 

 

  • मान लीजिए कि दूरी = x ,  दूरी में बदलाव है dx
  • दूरी में बदलाव dx = 7-3=4 
  • समय = t , समय में बदलाव dt है 
  • समय में बदलाव dt  = 15-10 = 5

अब अगर dx को dt से विभाजित करें ( दूरी में बदलाव को दूरी में समय से विभाजित करें) तो हमें  वेग/रफ्तार या वेलोसिटी (V / velocity) मिलेगी

V = dx / dt

= 4/5

इसका मतलब हुआ कि कार हर 5 मिनट में 4 किलोमीटर चल रही है यहां पर वेग को किलोमीटर प्रति मिनट में बताया गया है। आमतौर पर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में हम इस तरीके से गति नहीं बताते, हम गति या वेग को किलोमीटर प्रति घंटे की से बताते हैं। 

हम इस 4/5 को भी किलोमीटर प्रति घंटे में बदल सकते हैं 

जब 5 मिनट को घंटे में बदलना हो तो इसे 5/60 लिख सकते हैं तो अब समीकरण होगा –

= 4/(5/60)

= (4*60) /5 

= 48 KmPH

इसका मतलब है कि कार 48 किलोमीटर प्रति घंटे के वेग से चल रही है। 

याद रखिए कि वेग निकालने के लिए तय की गई दूरी में बदलाव को समय में हुए बदलाव से विभाजित करना पड़ता है। कैलकुलस में वेग को चली गई दूरी का फर्स्ट ऑर्डर डेरिवेटिव कहते हैं । 

अब इस उदाहरण को थोड़ा आगे बढ़ाते हैं, अपनी यात्रा के पहले चरण में कार ने 15 मिनट में 7 किलोमीटर की दूरी तय की। अब मान लीजिए कि यात्रा के दूसरे चरण में कार 7वें  किलोमीटर से चलना शुरू करती है और 5 मिनट चलने के बाद 15वें किलोमीटर तक पहुंच जाती है।

हमें पता है कि पहले चरण में कार की रफ्तार 48 किलोमीटर प्रति घंटे थी और हम दूसरे चरण में कार की रफ्तार को बहुत आसानी से निकाल सकते हैं कि यह 96 किलोमीटर प्रति घंटे थी (dx =8  और dt = 5)। 

इससे साफ है कि कार अपनी यात्रा के दूसरे चरण में दोगुनी रफ्तार से चली। 

अब मान लीजिए की वेग में बदलाव का dv है, हमें पता है कि वेग में बदलाव को एक्सीलरेशन कहते हैं। या फिर वेग वृद्धि कहते हैं। 

यहां पर वेग में बदलाव है 

= 96 किलोमीटर प्रति घंटा 48 किलोमीटर प्रति घंटा 

= 48 किलोमीटर प्रति घंटा/ ???

तो वेग  में बदलाव 48 किलोमीटर प्रति घंटा है लेकिन यह बदलाव कितने समय में हुआ? 

जरा समझते हैं 

घबराइए नहीं मैं गामा के मुख्य विषय से दूर नहीं जा रहा हूं इस उदाहरण के जरिए आप गामा तो सीखेंगे ही साथ ही आपके हाईस्कूल के गणित और फिजिक्स का भी को भी दोहरा लेंगे।

जब आप एक नई कार खरीदने जाते हैं तो कार बेचने वाला सेल्समैन जो चीजें सबसे पहले बताता है उनमें से एक होती है कि यह कार 0 से 60 किलोमीटर की रफ्तार 5 सेकेंड में पकड़ सकती है। तो दूसरे शब्दों में वह आपसे यह बता रहा है कि 0 किलोमीटर (स्थिर स्थिति) से 60 किलोमीटर तक पहुंचने में कार को सिर्फ 5 सेकंड का समय लगता है। यहां पर वेग में बदलाव 60 किलोमीटर प्रति घंटा (60 -0) को 5 सेकंड के समय सीमा के आधार पर बताया गया है। 

तो इसी तरीके से जब हम कहते हैं कि यहां पर गति में बदलाव 48 किलोमीटर प्रति घंटा है तो यह जानना जरूरी है कि यह बदलाव कितने समय में हुआ क्योंकि जब तक हम यह नहीं जानेंगे तब तक हम यह नहीं जान सकते कि वेग वृद्धि यानी एक्सीलरेशन क्या है। 

इसको जानने के लिए हमें कुछ कल्पनाएं करनी होगीं – 

  1. एक्सीलरेशन स्थिर रहता है यह बदलता नहीं है। 
  2. हम कुछ देर के लिए 7वें किलोमीटर को भुला कर केवल यह मान सकते हैं कि कार 10वें  मिनट पर 3 किलोमीटर की स्थिति पर थी और 15वें किलोमीटर की स्थिति पर 20वें मिनट पर पहुंच गई।

 इस जानकारी के आधार पर हम कुछ परिणाम निकाल सकते हैं (कैलकुलस में इन चीजों को इनिशियल कंडीशन यानी प्राथमिक धारणाएं कहा जाता है)

  • 10वें मिनट पर (3 किलोमीटर वाली स्थिति पर) कार का वेग = 0 किलोमीटर प्रति घंटे सेकंड इसे कार की प्रारंभिक या शुरुआती वेग कहते हैँ 
  • तीसरे किलोमीटर तक लग चुका समय = 10 मिनट 
  • 3 सरे किलोमीटर से लेकर 15 वें किलोमीटर तक के बीच में एक्सीलरेशन एक समान यानी स्थिर रहा 
  • 15 वें किलोमीटर तक लग चुका समय = 20 मिनट 
  • 20 वें मिनट या 15 वें किलोमीटर 15 किलोमीटर पर कार के वेग को फाइनल वेलोसिटी या अंतिम वेग कहते हैं 
  • हमें यह पता है कि प्रारंभिक वेग 0 किलोमीटर प्रति घंटा था लेकिन अंतिम वेग क्या है, यह हम को नहीं पता 
  • तय की गई कुल दूरी = 15 – 3 = 12 kms
  • कार के चलने का कुल समय = 20 -10 = 10 mins
  • औसत वेग = 12/10 = 1.2 km प्रति मिनट । इसे प्रति घंटे में देखें तो 72 किलोमीटर प्रति घंटा 

तो अब हम जानते हैं कि-  

  • प्रारंभिक वेग = 0 किलोमीटर प्रति घंटा 
  • औसत वेग = 72 किलोमीटर प्रति घंटा 
  • अंतिम वेग = ?? 

अगर हमें पता औसत और प्रारंभिक वेग पता है तो हम अंतिम वेग निकाल सकते हैं। ये 144 होगा ( 0 और 144 का औसत 72 होता है) 

इसके अलावा हमें यह भी पता है कि एक्सीलरेशन = अंतिम वेग / समय (जब एक्सीलरेशन एक समान या स्थिर हो) 

इसलिए एक्सीलरेशन होगा 

= 144 / 10 minutes

अगर हम 10 मिनट को घंटे में बदले तो (10/60) घंटे  

अब इसे ऊपर के समीकरण में डालने पर 

= 144 / (10/60) घंटे 

= 864 किलोमीटर प्रति घंटा 

इसका मतलब है कि कार का वेग हर घंटे 864 किलोमीटर की दर से बढ़ रहा है। कार को बेचने वाला सेल्समैन आपसे कह सकता है कि यह कार 0  से 72 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार 5 सेकंड में पा सकती है।

तो हमने एक मुश्किल सवाल का हल निकालने के लिए सिर्फ एक कल्पना की कि एक्सीलरेशन स्थिर है। लेकिन वास्तविकता में एक्सीलरेशन स्थिर नहीं होता। अलग-अलग रफ्तार पर आपका एक्सीलरेशन अलग-अलग होता है। तो इस तरह के सवालों जहां एक परिवर्तनशील वस्तु में हो रहे बदलाव की वजह से दूसरी परिवर्तनशील वस्तु के बदलाव को निकालना हो उनमें हमें डेरिवेटिव कैलकुलस का इस्तेमाल करना पड़ सकता है। आप यह भी कह सकते हैं कि यहां पर आपको डिफरेंशियल इक्वेशन का इस्तेमाल करना पड़ सकता है। 

आप जरा कुछ समय के लिए यह सोचिए कि 

तय की गई दूरी में बदलाव = वेग, इसे दूरी में दो अलग-अलग जगहों या स्थितियों का फर्स्ट ऑर्डर डेरिवेटिव भी कहते हैं। 

वेग में बदलाव = एक्सीलरेशन 

एक्सीलरेशन = वेग में एक दिए गए समय में हुआ बदलाव, जो कि किसी दिए गए समय में एक जगह(स्थिति) से दूसरी जगह (स्थिति) में हुआ बदलाव भी है 

इसीलिए एक्सीलरेशन को स्थिति में हुए बदलाव का सेकंड ऑर्डर डेरिवेटिव या वेलोसिटी यानी वेग का फर्स्ट ऑर्डर डेरिवेटिव कहा जा सकता है 

फर्स्ट ऑर्डर डेरिवेटिव आफ सेकंड ऑर्डर डेरिवेटिव के इस सिद्धांत को अपने दिमाग में रखिए हां अब हम आगे गामा को समझने की कोशिश करते हैं।

12.2 – समानताएं क्या हैं

पिछले कुछ अध्यायों में हमने यह समझा के ऑप्शन का डेल्टा कैसे काम करता है। जैसा कि हमें पता है कि डेल्टा यह बताता है कि अंडरलाइंग की कीमत में होने वाले बदलाव से प्रीमियम पर क्या असर पड़ेगा 

उदाहरण के लिए अगर निफ्टी स्पॉट 8000 है, तब हमें पता है कि 8200 CE ऑप्शन OTM है। इसलिए इसका डेल्टा 0 से 0.5 के बीच में होगा। अभी इसे 0.2 मान लेते हैं। 

मान लीजिए कि निफ्टी स्पॉट एक ही दिन में 300 पॉइंट उछलता है इसका मतलब है कि 8200 CE अब OTM ऑप्शन नहीं है बल्कि एक स्लाइटली  ITM ऑप्शन हो गया है। अब इस वजह से 8200 CE का डेल्टा 0.2 नहीं रहेगा यह अब 0.5 से 1 के बीच में हो जाएगा। इसे 0.8 मान लेते हैं। 

अंडरलाइंग में हुए इस बदलाव से एक बात साफ है कि – डेल्टा खुद भी बदलता है। इसका मतलब है कि डेल्टा स्थिर नहीं रहता इसका मूल्य अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव और प्रीमियम में होने वाले बदलाव के साथ बदलता है। अगर आप ध्यान से सोचें तो आपको दिखेगा कि डेल्टा काफी हद तक वेग की तरह है जो कि समय में होने वाले बदलाव और दूरी के साथ बदलता रहता है। 

किसी ऑप्शन गामा डेल्टा में होने वाले उस बदलाव को नापता है जोकि अंडरलाइंग में बदलाव के साथ होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो, गामा हमें इस सवाल का जवाब देता है कि -अंडरलाइंग में होने वाले किसी बदलाव के साथ ऑप्शन के डेल्टा में कितना बदलाव होगा? 

आइए अब वेलोसिटी और एक्सीलरेशन के उदाहरण को फिर से देखते हैं उसमें से डेल्टा और गामा के साथ होने वाली समानता पर नजर डालते हैं।

फर्स्ट ऑर्डर डेरिवेटिव 

  • तय की गई दूरी में बदलाव (स्थिति में बदलाव) जोकि समय में हुए बदलाव के साथ हुई है वह वेग या वेलोसिटी को दिखाती है इसीलिए वेलोसिटी को स्थिति का फर्स्ट ऑर्डर डेरिवेटिव कहते हैं 
  • अंडरलाइंग की कीमत में होने वाले बदलाव के साथ प्रीमियम में होने वाले बदलाव को डेल्टा दिखाता है। इसीलिए डेल्टा को प्रीमियम का फर्स्ट ऑर्डर डेरिवेटिव कहते हैं 

सेकंड ऑर्डर डेरिवेटिव 

  • समय में होने वाले बदलाव के साथ वेलोसिटी या वेग में जो बदलाव होता है उसको एक्सीलरेशन दिखाता है इसीलिए एक्सीलरेशन को स्थिति का सेकंड ऑर्डर डेरिवेटिव कहते हैं। 
  • अंडर लाइन में होने वाले बदलाव के साथ डेल्टा में होने वाले बदलाव को गामा दिखाता है इसीलिए गामा को प्रीमियम का सेकंड ऑर्डर डेरिवेटिव कहते हैं 

जैसा कि आप तक आपको समझ में आ गया होगा कि डेल्टा और गामा और इसके अलावा बाकी भी सभी ऑप्शन ग्रीक्स को निकालने के लिए काफी बड़ी बड़ी गणनाओं का इस्तेमाल होता है और इसमें कैलकुलस का काफी इस्तेमाल होता है।(खासकर डिफरेंशियल इक्वेशन और स्टेाकास्टिक कैलकुलसstochastic calculus का)

यहां एक जानकारी देता हूं – जैसा कि आप जानते हैं डेरिवेटिव को डेरिवेटिव इसलिए कहा जाता है क्योंकि डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट की कीमत इसके अंडरलाइंग से डिराइव-derive होती है। 

डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट की कीमत जो कि उसके अंडरलाइंग से निकलती है उस को नापने के लिए गणित के डेरिवेटिव एप्लीकेशन का इस्तेमाल होता है। इसीलिए फ्यूचर और ऑप्शन को डेरिवेटिव कहा जाता है।

आप शायद यह भी जानना चाहेंगे कि एक खास तरीके के ट्रेडर ऐसे भी होते हैं जो डेरिवेटिव कैलकुलस का इस्तेमाल करके हर दिन अपने लिए ट्रेडिंग के मौके तलाशते हैं। ट्रेडिंग की दुनिया में ऐसे ट्रेडर को क्वान्टस कहा जाता है। बाजार की इस अलग दुनिया में क्वान्टिटेटिव ट्रेडिंग होती है। 

मेरा अनुभव कहता है कि गामा जैसे सेकंड ऑर्डर डेरिवेटिव को समझना आसान नहीं है। लेकिन हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे कि यह आपके लिए आसान बन सके और हम आने वाली अध्यायों में इसे आपको समझा सकें 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. फाइनेंशियल डेरिवेटिव को फाइनेंशियल डेरिवेटिव इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह कैलकुलस और डिफरेंशियल इक्वेशन (सामान्य तौर पर इन्हें डेरिवेटिव कहते हैं) पर आधारित होते हैं।
  2. किसी भी ऑप्शन का डेल्टा बदलता रहता है और यह अंडरलाइंग और प्रीमियम में होने वाले हर बदलाव के साथ ऊपर नीचे होता है। 
  3. डेल्टा के बदलाव के दर को नापने के लिए गामा का इस्तेमाल किया जाता है यह हमें इस बात का जवाब देता है कि अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव से डेल्टा पर क्या असर पड़ेगा। 
  4. डेल्टा को प्रीमियम का फर्स्ट ऑर्डर डेरिवेटिव भी कहते हैं। 
  5. गामा को प्रीमियम का सेकंड ऑर्डर डेरिवेटिव कहते हैं।

The post गामा (भाग 1) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%be-gamma-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/feed/ 21 Ch12-diagram-1 Ch12-diagram-2 Ch12-diagram-3 M5-Ch12-title
गामा (भाग 2) https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:50:59 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6794 13.1 – कर्वेचर  (The Curvature) अब हमें पता है कि किसी ऑप्शन का डेल्टा स्थिर नहीं होता बल्कि यह एक चर यानी वेरियेबल-Variable है जो कि अपने अंडरलाइंग में बदलाव के साथ लगातार बदलता रहता है। डेल्टा के उतार-चढ़ाव से जुड़े हुए ग्राफ को एक बार फिर से देखें-  अगर आप नीली रेखा को देखेंगे […]

The post गामा (भाग 2) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
13.1 – कर्वेचर  (The Curvature)

अब हमें पता है कि किसी ऑप्शन का डेल्टा स्थिर नहीं होता बल्कि यह एक चर यानी वेरियेबल-Variable है जो कि अपने अंडरलाइंग में बदलाव के साथ लगातार बदलता रहता है। डेल्टा के उतार-चढ़ाव से जुड़े हुए ग्राफ को एक बार फिर से देखें- 

अगर आप नीली रेखा को देखेंगे जो कॉल ऑप्शन के डेल्टा को दिखाती है, तो आपको यह साफ हो जाएगा कि यह 0 और 1 के बीच में या फिर जरुरत पर 1 से 0 के बीच में घूमती रहती है। इसी तरीके का निष्कर्ष लाल रेखा के बारे में निकाल सकते हैं, जो कि पुट ऑप्शन के डाटा को दिखाती है (बस इसका मूल्य 0 से -1 के बीच में होता है)। यह ग्राफ हमें वो बताता है जो कि हम पहले से ही जानते हैं कि डेल्टा एक चर है और यह हर समय बदलता है। इसलिए जिस सवाल का जवाब हमें देना है वो है – 

  1. तो हमें पता है कि डेल्टा बदलता रहता है, लेकिन इससे हमें क्या अंतर पड़ता है? 
  2. अगर डेल्टा में के बदलाव से अंतर पड़ता है तो फिर हम कैसे अनुमान लगाएं कि डेल्टा में कितना बदलाव होगा? 

हम दूसरे सवाल का जवाब पहले देखेंगे क्योंकि मुझे लगता है कि जब आप इस अध्याय में आगे बढ़ेंगे तो पहले सवाल का जवाब अपने आप आपके सामने आ जाएगा। 

गामा (प्रीमियम का सेकंड ऑर्डर डेरिवेटिव) जिसके बारे में हमने पिछले अध्याय में जाना था, उसे ऑप्शन का कर्वेचर (the curvature of the option) भी कहते है। गामा हमें बताता है अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव के आधार पर डेल्टा में बदलाव की दर क्या होगी आमतौर पर गामा को अंडरलाइंग में होने वाले प्रति प्वाइंट बदलाव के साथ जोड़ कर बताया जाता है। जैसे प्रति प्वाइंट डेल्टा इतना प्वाइंट बढेगा या घटेगा। जब अंडरलाइंग बढ़ता है तो डेल्टा गामा की संख्या के मुताबिक बढ़ता है और जब अंडरलाइंग गिरता है तो डेल्टा गामा की संख्या के मुताबिक घटता है।

उदाहरण के लिए इसे देखिए – 

  • निफ़्टी स्पॉट =  8326 
  • स्ट्राइक = 8400 
  • ऑप्शन का प्रकार = CE 
  • ऑप्शन का मनीनेस = स्लाइटली OTM  
  • प्रीमियम = ₹26 
  • डेल्टा = 0.3 
  • गामा = 0.0025 
  • स्पॉट में बदलाव = 70 प्वाइंट 
  • नई स्पॉट कीमत = 8326 + 70 = 8396
  • नया प्रीमियम = ???
  • नया डेल्टा = ???
  • नया मनीनेस = ???

चलिए इनको निकालते हैं 

  • प्रीमियम में बदलाव = डेल्टा* स्पॉट में बदलाव चेंज i.e. 0.3*70 = 21
  • नया प्रीमियम = 21 + 26 = 47
  • डेल्टा में बदलाव की दर = 0.0025 यूनिट, अंडरलाइंग में हर 1 पॉइंट के बदलाव पर ,
  • डेल्टा में बदलाव = गामा*अंडरलाइंग में बदलाव i.e. 0.0025*70 = 0.175
  • नया डेल्टा = पुराना डेल्टा +  डेल्टा में बदलाव i.e. 0.3 + 0.175 = 0.475
  • नया मनीनेस = ATM 

जब निफ़्टी 8326 से 8396 तक जाता है 8400 CE  का प्रीमियम बदल कर  ₹26 से ₹47 हो जाता है। इसके साथ ही डेल्टा भी बदल कर 0.3 से 0.475 हो जाता है।

यहां ध्यान दीजिए कि 70 पॉइंट के बदलाव की वजह से ऑप्शन स्लाइटली OTM से ATM बदल जाता है।इसका मतलब है कि ऑप्शन के डेल्टा को 0.3 से 0.5 के तक पहुंचना चाहिए। यहाँ एकदम ऐसा ही हो रहा है। 

अब मान लीजिए कि निफ्टी और 70 पॉइंट चढ़कर 8396 हो जाता है। देखते हैं अब 8400 CE के ऑप्शन पर क्या असर पड़ता है

  • पुराना स्पॉट = 8396
  • नया स्पॉट = 8396 + 70 = 8466
  • पुराना प्रीमियम =  47
  • पुराना डेल्टा = 0.475
  • प्रीमियम में बदलाव = 0.475*70 =33.25
  • नया प्रीमियम = 47 + 33.25 = 80.25
  • नया मनीनेस = ITM (डेल्टा अब 0.5 से ऊपर होना चाहिए)
  • डेल्टा में बदलाव  0.0025*70 = 0.175
  • नया डेल्टा = 0.475m+ 0.175 = 0.65

अब इसको थोड़ा और आगे बढ़ाते हैं, अब मान लीजिए कि निफ्टी 50 पॉइंट गिर जाता है, 8400 CE ऑप्शन पर क्या असर पड़ेगा? 

  • पुराना स्पॉट = 8466 
  • नया स्पॉट = 8466 – 50 =8416
  • पुराना प्रीमियम = 80.25
  • पुराना डेल्टा = 0.65
  • प्रीमियम में बदलाव = 0.65*(50) = -32.5
  • नया प्रीमियम = 80.25 – 32.5 = 47.75
  • नया मनीनेस स्लाइटली ITM  (डेल्टा अब 0.5 से ऊपर होना चाहिए)
  • डेल्टा में बदलाव = 0.0025*(50) = – 0.125
  • नया डेल्टा = 0.65 – 0.125 =0.525

यहां ध्यान दीजिए कि डेल्टा कैसे बदलता है और कैसे उन नियमों का पालन करता है जिनके बारे में हमने इस अध्याय के शुरू में बात की थी। आपको यह लग रहा होगा कि यहां गामा का मूल्य स्थिर क्यों रखा है? वास्तव में गामा भी अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव के साथ साथ बदलता रहता है। अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव की वजह से गामा में जो बदलाव होता है उसे अंडरलाइंग के थर्ड डेरिवेटिव से नापा जाता है। इसे स्पीड या गामा ऑफ गामा या DgammaDspot कहते हैं।हमें इसके विस्तार में जाने की जरूरत नहीं है अगर आप इन्वेस्टमेंट बैंक में काम करते हैं जहाँ ट्रेडिंग का रिस्क करोड़ों में होता है या फिर आपको गणित से बहुत ज्यादा लगाव है तब आप इस पर नजर डाल सकते हैं। 

गामा डेल्टा की तरह नहीं होता कि कभी पॉजिटिव कभी निगेटिव, गामा हमेशा एक पॉजिटिव संख्या होती है, चाहे कॉल ऑप्शन हो या पुट ऑप्शन। इसीलिए जब एक ट्रेडर लाँग ऑप्शन बनाता है (पुट और कॉल दोनों) तो उसे लाँग गामा कहते हैं और जब वह शॉर्ट ऑप्शन लेता है तो उसे शार्ट गामा कहते हैं। 

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि एक ATM पुट ऑप्शन का गामा 0.004 है। अब अगर अंडरलाइंग 10 पॉइंट बदलता है तो नया डेल्टा क्या होगा?  

आप इसका जवाब निकालें इसके पहले मैं सलाह दूंगा कि आप कुछ मिनट इस सवाल के जवाब पर विचार करें।

ये रहा इसका जवाब – हम एक ATM पुट ऑप्शन की बात कर रहे हैं, इसलिए डेल्टा -0.5 के आसपास होना चाहिए। आपको याद होगा कि पुट ऑप्शन का डेल्टा निगेटिव होता है। जबकि आप देख रहे होंगे कि गामा +0.004 है। अब अंडरलाइंग में 10 प्वाइंट का बदलाव होता है, यह जाने बगैर कि बदलाव की दिशा क्या है हम जानने की कोशिश करते हैं कि दोनों स्थितियों पर क्या असर पड़ेगा

स्थिति 1 – अंडरलाइंग 10 प्वाइंट ऊपर चढ़ता है 

  • डेल्टा = – 0.5
  • गामा = 0.004
  • अंडरलाइंग में बदलाव = 10 प्वाइंट 
  • डेल्टा में बदलाव = गामा*अंडरलाइंग में बदलाव = 0.004*10 = 0.04
  •  नया डेल्टा = हमें पता है कि पुट ऑप्शन में जब अंडरलाइंग ऊपर जाता है तो डेल्टा नीचे जाता है तो – 0.5 + 0.04 = – 0.46  

उदाहरण 2 –  अंडरलाइंग 10 प्वाइंट नीचे जाता है 

  • डेल्टा = – 0.5
  • गामा = 0.004 
  • अंडरलाइंग में बदलाव = 10 प्वाइंट 
  • डेल्टा में बदलाव गामा*अंडरलाइंग में बदलाव = 0.004*-10 = – 0.04
  • नया डेल्टा = हमें पता है कि जब अंडर लाइंग नीचे जाता है तो पुट ऑप्शन का डेल्टा ऊपर जाता है अब – 0.5 +(-0.4) = -0.54 

यहां पर आपके लिए एक सवाल पहले के अध्यायों में हमने पढ़ा है कि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का डेल्टा हमेशा 1 होता है। तो आपको क्या लगता है फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का गामा कितना होना चाहिए? अपने जवाब नीचे के कमेंट बॉक्स में लिखिए। 

13.2 – गामा के जरिए अपना रिस्क पता करना

मुझे पता है कि बहुत सारे ट्रेडर ऐसे हैं जो अपने रिस्क लेने की क्षमता को तय करके रखते हैं। रिस्क लेने की क्षमता से क्या मतलब है यह मैं बताता हूं-  मान लीजिए ट्रेडर के पास कुल ₹300,000 की पूंजी है और हर निफ्टी फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के लिए उसे ₹16500 का मार्जिन देना पड़ता है। याद रखिए कि आप जेरोधा के स्पैन केलकुलेटर से अपने F&O कॉन्ट्रैक्ट का मार्जिन पता कर सकते हैं। तो अब मार्जिन और M2M मार्जिन की जरूरतों को पहचानते हुए ट्रेडर तय करता है कि अब वह 5 निफ़्टी फ्यूचर कांट्रैक्ट से ज्यादा अपने पास नहीं रखेगा। इसका मतलब उसने अपने रिस्क की सीमा को तय कर दिया है। यह एक जरूरी कदम है और फ्यूचर्स की ट्रेडिंग में काफी महत्वपूर्ण है।

लेकिन क्या ऑप्शन पर ट्रेडिंग में भी यह काम करता है चलिए देखते हैं कि ऑप्शन ट्रेडिंग में रिस्क के बारे में क्या किया जा सकता है। 

इस स्थिति पर नजर डालिए 

  • ट्रेड किए गए लॉट = 10 लॉट (ध्यान रखिए कि ATM कॉन्ट्रैक्ट के 10 लॉट जिनका डेल्टा 0.5 है वह 5 फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के बराबर होंगे) 
  • ऑप्शन  = 8400 CE 
  • स्पॉट = 8405
  • डेल्टा = 0.5
  • गामा = 0.005
  • पोजीशन = शॉर्ट

ट्रेडर ने 8400 निफ़्टी कॉल ऑप्शन के 10 लॉट शॉर्ट किए हैं। इसका मतलब है कि ट्रेडर अपनी रिस्क लेने की सीमा के अंदर है। याद कीजिए कि हमने डेल्टा के अध्याय में डेल्टा को जोड़ने की बात की थी। यहां पर हम डेल्टा को जोड़ रहे हैं जिससे पूरी पोजीशन का डेल्टा पता चल सके। साथ ही, डेल्टा 1 होने का मतलब है अंडरलाइंग का लॉट।  इस को ध्यान में रखते हुए हम पूरी पोजीशन का डेल्टा पता करते हैं-  

  • डेल्टा = 0.5
  • लॉट की संख्या = 10
  • पोजीशन का डेल्टा = 10*0.5 = 5

तो कुल डेल्टा के नजरिए से ट्रेडर अपने रिस्क की सीमा में है, जहां उसे 5 लॉट से अधिक का ट्रेड नहीं करना है।  यह भी याद रखिए कि ट्रेडर का ने शॉर्ट ऑप्शन लिया है इसका मतलब है कि वह शॉर्ट गामा है। 

5 का पोजीशन डेल्टा यह बताता है कि ट्रेडर की पोजीशन अंडरलाइंग में होने वाले 1 प्वाइंट के बदलाव पर 5 प्वाइंट बदलेगी। 

अब मान लीजिए निफ्टी उसकी उम्मीद के विपरीत दिशा में 70 प्वाइंट चलता है, लेकिन ट्रेडर अपनी पोजीशन को होल्ड करके रखता है क्योंकि उसे उम्मीद है कि रिकवरी आएगी। अभी ट्रेडर को यह लग सकता है कि उसने ऑप्शन के 10 लॉट ही लिए हैं इसलिए वह अपनी रिस्क की सीमा के अंदर है। लेकिन थोड़ा गणित करते हैं और देखते हैं कि वास्तव में क्या हो रहा है- 

  • डेल्टा = 0.5
  • गामा = 0.005
  • अंडरलाइंग में बदलाव = 70 प्वाइंट 
  • डेल्टा में बदलाव = गामा* अंडरलाइंग में बदलाव = 0.005*70 = 0.35
  • नया डेल्टा = 0.5 + 0.35 = 0.85
  • पोजीशन का नया डेल्टा = 0.85*10 = 8.5

अब आपको समझ में आ गया होगा कि समस्या क्या है?  ट्रेडरर ने अपने रिस्क की सीमा 5 लॉट रखी थी, लेकिन गामा ऊपर होने की वजह से वह अपने रिस्क की सीमा के बाहर चला गया है। अब वह 8.5 पोजीशन होल्ड कर रहा है जो उसकी रिस्क की सीमा से काफी अधिक है। एक नया ट्रेडर ऐसी स्थिति में फंस सकता है। क्योंकि जबकि उसे यह लग रहा हो कि वह रिस्क की सीमा के अंदर है लेकिन उसका एक्स्पोज़र काफी अधिक है। 

अब क्योंकि डेल्टा 8.5 है, इसलिए अंडरलाइंग में होने वाले हर बदलाव के साथ उसकी कुल पोजीशन 8.5 प्वाइंट बदलेगी। कुछ समय के लिए मान लीजिए कि ट्रेडर ने शॉर्ट नहीं बल्कि लाँग कॉल ऑप्शन लिया है- अब ऐसे में उसे अच्छा लगेगा क्योंकि बाजार उसकी उम्मीद के मुताबिक चल रहा है। बाजार की इस तेजी के सात उसकी उसकी पोजीशन और ज्यादा लाँग होती जा रही है क्योंकि लाँग गामा उसके डेल्टा को जोड़ रहा है, इसलिए डेल्टा बड़ा होता जा रहा है।इसकी वजह से अंडरलाइंग में बदलाव के साथ प्रीमियम में बदलाव तेजी से हो रहा है। 

अगर यह बात समझ में नहीं आई है फिर से पढ़ लीजिए। 

लेकिन क्योंकि ट्रेडर ने शॉर्ट किया है वह शॉर्ट गामा है इसका मतलब है कि जब उसकी उम्मीद के मुताबिक नहीं उसके विपरीत चलता है, (जैसे यहाँ बाजार ऊपर जा रहा है जबकि वो शार्ट है) तो डेल्टा जुड़ते जाते हैं( गामा की वजह से) इसलिए बाजार की बढ़ोतरी के हर स्तर पर डेल्टा और गामा आपस में मिलकर शॉर्ट ऑप्शन ट्रेडर की मुश्किलें बढ़ाते जाते हैं, और पोजीशन को ज्यादा रिस्की बनाते जाते हैं, जिसको वह देख नहीं पाता। शायद इसीलिए कहा जाता है कि ऑप्शन को शॉर्ट करना एक काफी बड़ा रिस्क होता है दूसरे शब्दों में कहें तो ऑप्शन को शॉर्ट करना शॉर्ट गामा के रिस्क के बराबर होता है।

लेकिन ध्यान रखिए मैं यह बिल्कुल नहीं कह रहा हूं कि आपको ऑप्शन शॉर्ट नहीं करना चाहिए। एक सफल ट्रेडर वही है जो जरुरत के मुताबिक शॉर्ट और लाँग दोनों तरीके की पोजीशन को बनाता है, मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि जब आप ऑप्शन को शॉर्ट करते हैं तो आपको ग्रीक्स के बारे में पता होना चाहिए और यह भी पता होना चाहिए कि उनकी वजह से आपकी पोजीशन पर क्या असर पड़ सकता है। 

हां आप यह जरूर कर सकते हैं और मेरी सलाह भी यही होगी कि आप ऐसे ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को शॉर्ट ना करें जिनका गामा काफी बड़ा हो। 

अब हमें लार्ज गामा पर चर्चा करना होगा क्योंकि ये एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है।

13.3 – गामा की चाल 

इस अध्याय के शुरू में हमने कुछ देर के लिए ये बात की थी कि अंडरलाइंग में बदलाव के साथ गामा बदलता है। गामा में होने वाला यह बदलाव थर्ड ऑर्डर डेरिवेटिव (जिसे स्पीड भी कहते हैं) में दिखता है। मैं स्पीड के बारे में गहराई में नहीं जाऊंगा और इसका कारण मैं बता चुका हूँ। लेकिन हमें गामा की चाल पर चर्चा जरूर करनी चाहिए जिससे हमें यह पता चल सके कि बड़े गामा वाले ट्रेड से बचा कैसे जाए। गामा की चाल को जानने के और भी कई फायदे होते हैं जिनके बारे में आपको आगे पता चलेगा अभी हम यह पता करेंगे कि अंडरलाइंग में होने वाले बदलाव के साथ गामा में क्या परिवर्तन होता है।

ऊपर के चार्ट में तीन अलग-अलग CE स्ट्राइक कीमतों-80, 100 और 120 को दिखाया गया है। इनके अलग अलग गामा की चाल को भी इसमें दिखाया गया है। उदाहरण के तौर पर नीली रेखा 80 CE ऑप्शन के गामा को दिखाती है।आप इन तीनों रेखाओं को अलग-अलग देखिए तो आपको यह ज्यादा अच्छे से समझ में आएगा। मैं यहां पर सिर्फ 80 CE स्ट्राइक ऑप्शन वाले गामा के बारे में बात करूंगा जिसको नीली रेखा से दिखाया गया है। 

मान लीजिए स्पॉट कीमत 80 है इसलिए 80 के स्ट्राइक को ATM माना जाना चाहिए। इस को ध्यान में रखते हुए हम ऊपर के चार्ट में यह देख सकते हैं कि-

  1. क्योंकि यहाँ 80 CE स्ट्राइक की बात हो रही है इसलिए जब स्पॉट कीमत 80 होगी तो ऑप्शन ATM हो जाएगा।
  2. 80 के नीचे के स्ट्राइक (यानी 65 70 75) ITM होंगे और 80 के ऊपर वाले (85, 90, 95 आदि) OTM ऑप्शन होंगे। 
  3. ध्यान दीजिए कि OTM ऑप्शन (80 या उपर) के लिए गामा कम है। ये इस बात को भी बताता है कि OTM ऑप्शन के प्रीमियम बहुत ज्यादा नहीं बदलते हैं उनका बदलाव प्रतिशत में ज्यादा होता है। उदाहरण के तौर पर एक एटीएम ऑप्शन का प्रीमियम ₹2 से 2.50 रुपए तक बदल सकता है यह सिर्फ ₹0.50 का बदलाव है लेकिन प्रतिशत में यह बदलाव 25% है। 
  4. गामा सबसे ऊपर तब होता है जब ऑप्शन ATM बनता है। इससे यह पता चलता है कि डेल्टा में भी सबसे ज्यादा बदलाव तब होता है जब ऑप्शन ATM होता है। इसका मतलब यह भी है कि ATM ऑप्शन अंडरलाइंग में बदलाव से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं 
  1. क्योंकि ATM ऑप्शन में गामा सबसे ज्यादा होता है इसलिए ATM ऑप्शन को शॉर्ट करने से बचना चाहिए
  1. ITM ऑप्शन (स्ट्राइक 80 के नीचे) का गामा कम होता है। इसलिए अंडरलाइंग में बदलाव होने पर डेल्टा में बदलाव की दर ITM ATM में ऑप्शन के मुकाबले कम होती है। लेकिन याद रखिए कि 5. ITM ऑप्शन का डेल्टा वैसे ही ज्यादा होता है। तो अगर ITM ऑप्शन का डेल्टा अंडरलाइंग में बदलाव से कम प्रभावित होता भी है (क्योंकि गामा कम है) तो भी प्रीमियम में बदलाव ज्यादा होता है (क्योंकि डेल्टा का बेस भी ज्यादा होता है) 
  2. आप दूसरे स्ट्राइक के गामा चार्ट को भी ऊपर देख सकते हैं, वास्तव में आपको दिखेगा कि अलग-अलग स्ट्राइक के गामा एक जैसे ही बर्ताव करते हैं। 

ऊपर की चर्चा से अगर कोई तीन बातें निकालनी हो तो वह हैं –

  • ATM ऑप्शन का डेल्टा तेजी से बदलता है 
  • OTM और ITM ऑप्शन का डेल्टा धामे धीमे बदलता है 
  • कभी भी ATM या ITM ऑप्शन को इस उम्मीद के साथ शार्ट न करें कि वे समाप्ति पर बेकार हो जाएंगे।
  • शॉर्ट करने के लिए OTM ऑप्शन सबसे बेहतर होते हैं खासकर तब जब आप अपने शॉर्ट को एक्सपायरी तक होल्ड करें और अपने ऑप्शन को एक्सपायरी पर बिना कीमत का मान रहे हों.

13.3 – ऑप्शन ग्रीक्स की एक दूसरे को प्रतिक्रिया 

ऑप्शन ट्रेडिंग में सफलता पाने के लिए यह जरूरी है कि आप समझें कि अलग-अलग ऑप्शन ग्रीक्स अलग-अलग स्थितियों में कैसे काम करते हैं। लेकिन इसके अलावा यह जानना भी जरूरी है कि ग्रीक्स एक दूसरे के साथ किस तरीके से काम करते हैं और उनकी आपसी प्रतिक्रिया कैसी होती है 

अभी तक हमने केवल स्पॉट कीमत के आधार पर प्रीमियम में होने वाले बदलाव को देखा है, लेकिन बाजार तो हर मिनट बदलता रहता है हर समय हर चीज बदलती है- समय, वोलैटिलिटी, अंडरलाइंग की कीमत, सब कुछ। इसलिए एक ऑप्शन ट्रेडर के लिए यह जरूरी है कि वह यह समझ सके कि इन सब चीजों का ऑप्शन के प्रीमियम पर क्या असर पड़ रहा है। 

इस बात को आप तक ज्यादा अच्छे से समझेंगे जब आपको यह समझ में आ जाएगी ऑप्शन ग्रीक एक दूसरे से किस तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं। उदाहरण के लिए गामा और समय के बीच का संबंध, गामा और वोलैटिलिटी के बीच का संबंध, वोलैटिलिटी और समय, समय और डेल्टा आदि 

सच तो ये है कि ग्रीक्स को लेकर आपकी समझ तब पूरी होगी जब आप कुछ महत्वपूर्ण फैसले कर पाएंगे, जैसे –

  1. बाजार की मौजूदा स्थिति में कौन सा स्ट्राइक सबसे अच्छा है 
  2. उस चुने गए स्ट्राइक के प्रीमियम को लेकर आपकी क्या उम्मीदें हैं? यह बढ़ेगा या घटेगा? आप उस ऑप्शन को खरीदेंगे या बेचेंगे? 
  3. अगर आप किसी ऑप्शन को खरीदना चाहते हैं तो क्या उसके प्रीमियम के बढ़ने की सही-सही संभावना है 
  4. अगर आप ऑप्शन को शॉर्ट करना चाहते हैं तो क्या यह सुरक्षित है क्या आपको वह सभी रिस्क दिखाई दे रहे हैं जो आसानी से नजर नहीं आते 

इन सारे सवालों के जवाब तब पता चलेंगे जब आप अलग-अलग ग्रीक्स को जानेंगे और उनके आपसी संबंधों को समझेंगे। 

इसीलिए आगे के मॉड्यूल में हम जो चीजें जानेंगे वो हैं –

  1. हमने अब तक डेल्टा और गामा को जाना है 
  2. अगले कुछ अध्यायों में हम थीटा और वेगा को जानेंगे 
  3. जब हम वेगा (वोलेटिलिटी में होने वाले बदलाव की वजह से प्रीमियम में होने वाला बदलाव) के बारे में जानेंगे तो हम वोलेटिलिटी के आधार पर तय किए जाने वाले स्टॉपलॉस को भी समझेंगे 
  4. हम एक से दूसरे ग्रीक के बीच के संबंध को भी जानेंगे जैसे गामा Vs समय, गामा Vs स्पॉट, थीटा Vs वेगा, वेगा Vs स्पॉट आदि 
  5. ब्लैक एंड स्कोल ऑप्शन प्राइसिंग फार्मूला का विस्तार 
  6. ऑप्शन कैलकुलेटर 

तो अभी आगे का रास्ता काफी लंबा है।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. गामा डेल्टा के बदलाव की दर को बताता है। 
  2. कॉल और पुट दोनों तरह के ऑप्शन के लिए गामा हमेशा एक पॉजिटिव संख्या ही होती है।
  3. लार्ज गामा बड़े रिस्क में बदल सकता है।
  4. जब आप ऑप्शन खरीदते हैं (कॉल या पुट) तो आप लाँग गामा हैं।
  5. जब आप ऑप्शन शॉर्ट करते हैं (कॉल या पुट) तो आप शॉर्ट गामा हैं।
  6. ऐसे ऑप्शन को शॉर्ट करने से बचना चाहिए जो लार्ज गामा हों।
  7. ATM ऑप्शन के लिए डेल्टा काफी तेजी से बदलता है।
  8. OTM और ITM ऑप्शन के लिए डेल्टा धीमे-धीमे बदलता है।

The post गामा (भाग 2) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2/feed/ 54 Image 1_Delta vs Spot M5-Ch13-cartoon Image 2_Gamma vs Spot
कॉल और पुट ऑप्शन से फिर परिचय https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%bf/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%bf/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:50:41 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6830 22.1 – अब क्यों? इस अध्याय के शीर्षक को देखकर आप थोड़ा चकित हो सकते हैं। आपको लग सकता है कि हमने तो ऑप्शन के बारे में इतना कुछ पिछले 21 अध्यायों जान लिया है। तो अब हम दोबारा कॉल और पुट ऑप्शन के बारे में क्या पढ़ने जा रहे हैं? वास्तव में इस मॉड्यूल […]

The post कॉल और पुट ऑप्शन से फिर परिचय appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
22.1 – अब क्यों?

इस अध्याय के शीर्षक को देखकर आप थोड़ा चकित हो सकते हैं। आपको लग सकता है कि हमने तो ऑप्शन के बारे में इतना कुछ पिछले 21 अध्यायों जान लिया है। तो अब हम दोबारा कॉल और पुट ऑप्शन के बारे में क्या पढ़ने जा रहे हैं? वास्तव में इस मॉड्यूल की शुरुआत में ही हमने कॉल और पुट ऑप्शन के बारे में पढ़ लिया था तो दोबारा पढ़ने की जरूरत क्या है? 

वास्तव में, मैं व्यक्तिगत तौर पर यह मानता हूं कि ऑप्शन के बारे में जानना दो स्तर पर होता है- पहला स्तर तब होता है जब आप ऑप्शन ग्रीक के बारे में नहीं जानते हैं। तब ऑप्शन के बारे में आप की जानकारी पहले स्तर की होती है और ऑप्शन ग्रीक को जानने के बाद कॉल और पुट ऑप्शन को लेकर आपकी जानकारी दूसरे स्तर पर पहुंचती है। क्योंकि अब हम ऑप्शन वृक्ष के बारे में जान चुके हैं तो इसलिए यह जरूरी है कि एक बार आप फिर से कॉल और पुट ऑप्शन को समझ लेँ। ताकि इसको ऑप्शन ग्रीक के नजरिए से देख लें।

तो पहले एक बार कॉल और पुट ऑप्शन के बारे में हमने जो सीखा है उसको दोहरा लेते हैं-

  1. आप कॉल ऑप्शन तब खरीदते हैं जब आपको यह उम्मीद हो कि अंडरलाइंग की कीमत बढ़ेगी। (आप पूरी तरीके से तेजी में हैं) 
  2. आप कॉल ऑप्शन तब बेचते हैं जब आपको उम्मीद हो कि अंडरलाइंग की कीमत नहीं बढ़ेगी (आप मार्केट के सपाट यानी फ्लैट रहने या नीचे जाने की उम्मीद करते हैं) 
  3. आप पुट ऑप्शन तब खरीदते हैं जब आपको उम्मीद हो कि अंडरलाइंग की कीमत गिरेगी (आप पूरी तरीके से मंदी में हों) 
  4. आप पुट ऑप्शन तब बेचते हैं जब आपको उम्मीद होगी अंडरलाइंग की कीमत नहीं गिरेगी (आप मार्केट को बढ़ता देखते हैं या फिर उसके सपाट या फ्लैट रहने की उम्मीद करते हैं) 

इस मॉड्यूल के शुरुआती कुछ अध्यायों में हमने कॉल और पुट ऑप्शन के बारे में जरूरी बातें जान ली थी। अब हम यह जानेंगे कि कॉल और पुट ऑप्शन को वोलैटिलिटी और समय के नजरिए से कैसे देखा जाए? तो आइए शुरू करते हैं।

22.2 – वोलैटिलिटी का असर

हमें पता है कि कॉल ऑप्शन को तब खरीदना चाहिए जब हमें उम्मीद हो कि अंडरलाइंग एसेट ऊपर की तरफ बढ़ेगा। तो फिर मान लीजिए कि निफ्टी कुछ प्रतिशत ऊपर जाने वाला है, तो क्या आप ऐसे में कॉल ऑप्शन खरीदेंगे यदि- 

  1. निफ्टी के ऊपर जाने की उम्मीद हो लेकिन वोलैटिलिटी के नीचे जाने की उम्मीद हो? 
  2. आप क्या करेंगे जब एक्सपायरी में सिर्फ 2 दिन बचे हैं? 
  3. आप क्या करेंगे जब एक्सपायरी में 15 दिन से ज्यादा का समय हो? 
  4. ऊपर की दोनों स्थितियों में आप कौन से स्ट्राइक प्राइस लेना पसंद करेंगे, और OTM,ATM या ITM आप इनको क्यों चुनेंगे? 

इन सवालों से आपको समझ में आ गया होगा कि कॉल ऑप्शन या फिर पुट ऑप्शन खरीदने का फैसला इतना सीधा नहीं है। ऑप्शन को खरीदने के पहले आपको कई तरह की बातों पर विचार करना पड़ता है। आपको यह देखना होता है कि वोलैटिलिटी कितनी है, एक्सपायरी में समय कितना है और बाजार किस तरफ जाने वाला है।

बाजार किस तरफ जाने वाला है, इसके बारे में हम यहां बात नहीं करेंगे। यह आपको खुद से करना होगा। आपको किसी टेक्निकल एनालिसिस का या क्वांटिटेटिव एनालिसिस का सहारा लेना होगा। 

उदाहरण के लिए टेक्निकल एनालिसिस के सहारे आप यह जान सकते हैं कि निफ्टी 2 से 3% ऊपर जाने वाला है, लेकिन ये जानने के बाद आप क्या करेंगे? आप ATM ऑप्शन खरीदेंगे या ITM ऑप्शन खरीदेंगे? जब आपको पता है कि निफ्टी अगले 2 दिनों में 2% से 3% ऊपर जाने वाला है तो आप कौन सी स्ट्राइक चुनेंगे जिससे आपको सबसे ज्यादा फायदा हो? इस अध्याय में हम इसी पर चर्चा करेंगे। 

तो सबसे पहले नीचे के ग्राफ को देखते हैं, आपको याद होगा कि हमने इस ग्राफ पर वेगा के अध्याय में भी चर्चा की थी।

ऊपर का ग्राफ बताता है कि एक्सपायरी में बचे हुए अलग-अलग समय के दौरान वोलैटिलिटी बढ़ने पर कॉल ऑप्शन का प्रीमियम किस तरह से बदलता है। उदाहरण के लिए नीली रेखा दिखाती है कि जब एक्सपायरी में 30 दिन बचे हों तो कॉल ऑप्शन का प्रीमियम कैसे बदलता है। हरी रेखा यह दिखाती है कि एक्सपायरी में जब 15 दिन बचे हैं तब क्या होता है और लाल रेखा यह दिखाती है कि जब एक्सपायरी में 5 दिन बचे हो तो क्या होता है। 

ऊपर के ग्राफ के आधार पर हम अपने काम के लिए कुछ निष्कर्ष निकाल सकते हैं और ऑप्शन खरीदने और बेचने में इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। 

  1. एक्सपायरी में कितना भी समय बचा हो वोलैटिलिटी बढ़ने के साथ साथ प्रीमियम हमेशा बढ़ता है और वह वोलैटिलिटी घटने के साथ प्रीमियम घटता है। 
  2. लॉन्ग कॉल ऑप्शन में वोलैटिलिटी का फायदा तब मिलता है जब आप कॉल ऑप्शन ऐसे समय खरीद रहे हो जब वोलैटिलिटी बढ़ने वाली हो। जब वोलैटिलिटी गिरने वाली हो तब कॉल ऑप्शन को खरीदने से बचना चाहिए। 
  3. कॉल ऑप्शन को शॉर्ट करते समय वोलैटिलिटी का फायदा तब मिलता है जब आप ऑप्शन ऐसे समय बेच रहे हों जब वोलैटिलिटी नीचे गिरने वाली हो। ऐसे समय में कॉल ऑप्शन को बेचने से बचना चाहिए जब वोलैटिलिटी बढ़ने वाली हो। 

पुट ऑप्शन के प्रीमियम और वोलैटिलिटी के संबंध को नीचे के ग्राफ में दिखाया गया है-

यह ग्राफ लगभग वैसा ही है जैसे कॉल ऑप्शन और वोलैटिलिटी के बीच के संबंध को दिखाने वाला ग्राफ था, इसलिए पुट ऑप्शन के लिए भी निष्कर्ष एकदम वैसे ही होंगे जैसे कि कॉल ऑप्शन के लिए थे। 

इन निष्कर्षों से एक बात साफ हो जाती है कि ऑप्शन को तब खरीदना चाहिए जब वोलैटिलिटी बढ़ने वाली हो और ऑप्शन शॉर्ट तब करना चाहिए जब वोलैटिलिटी कम होने वाली हो। अब अगला सवाल यह उठता है कि ऑप्शन को बेचने या खरीदनेके लिए कौन सी स्ट्राइक चुनी जाए। स्ट्राइक को चुनने के लिए आपको एक्सपायरी में कितना समय बचा है इसका आकलन भी करना होगा।

22.3 – समय का असर

मान लीजिए कि अंडरलाइंग की कीमत में बढ़ोतरी के साथ-साथ वोलैटिलिटी में भी बढ़ोतरी होने वाली है। ऐसे में कॉल ऑप्शन को खरीदना फायदे का सौदा हो सकता है। लेकिन फायदा तभी होगा जब आप सही स्ट्राइक कीमत चुनेंगे। जब भी आप ऑप्शन को खरीदने का फैसला करते हैं, तो ये महत्वपूर्ण हो जाता है कि आप इस बात का विश्लेषण करें कि एक्सपायरी में कितना समय बचा है। सही स्ट्राइक चुनना काफी हद तक एक्सपायरी में बचे हुए समय पर भी आधारित होता है। 

ध्यान रखें कि नीचे दिखाए गए चार्ट को समझना शुरू में थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन अगर आप इसे पहली बार में ना समझ पाएं तो दूसरी कोशिश जरूर करें क्योंकि ये उतना भी कठिन नहीं है।

हम आगे बढ़ें इसके पहले हमें टाइमलाइन को समझ लेना चाहिए। आमतौर पर F&O की कोई भी सीरीज 30 दिन तक चलती है और फिर एक्सपायर होती है आप को समझाने के लिए मैंने सीरीज को दो हिस्सों में बांटा है- पहला सीरीज के पहले 15 दिनों के बारे में बात करता है और दूसरा हिस्सा सीरीज के दूसरे 15 दिनों के बारे में। आगे पढ़ते समय इस बात का ध्यान रखिएगा। 

नीचे के चित्र पर नजर डालिए जिसमें चार बार चार्ट दिखाए गए हैं जो अलग-अलग स्ट्राइक पर होने वाले फायदे को दिखा रहे हैं, यहाँ माना गया है कि –

  1. स्पॉट बाजार में ये स्टॉक 5000 पर बिक रहा है इसलिए 5000 की स्ट्राइक ATM स्ट्राइक है। 
  2. यह सौदा (ट्रेड) सीरीज के पहले हिस्से में यानी सीरीज शुरू होने के पहले 15 दिनों के बीच में होता है।
  3. हमें उम्मीद है कि यह स्टॉक 4% बढ़ेगा मतलब 5000 से 5200 तक जाएगा 

इन सूचनाओं के आधार पर नीचे का चार्ट यह बताने की कोशिश करता है कि इनमें से कौन सा स्ट्राइक सबसे ज्यादा मुनाफा कमा कर देगा। अगर स्टॉक 4% के टारगेट को पूरा करता है- 

  1. ट्रेड शुरू होने के 5 दिन बाद 
  2. ट्रेड शुरू होने के 15 दिन बाद 
  3. ट्रेड शुरू होने के 25 दिन बाद 
  4. एक्सपायरी के दिन 

तो सबसे पहले बाई तरफ के ऊपर के पहले चार्ट पर नजर डालते हैं। यह चार्ट हमें अलग-अलग कॉल ऑप्शन के स्ट्राइक के मुनाफे को दिखाता है तब जबकि यह ट्रेड इस F&O सीरीज के पहले हिस्से यानी पहले 15 दिनों में किया गया हो। टारगेट 5 दिनों के भीतर पूरा हो सकता है। 

एक उदाहरण पर नजर डालते हैं, अगर आज 7 अक्टूबर है, इंफोसिस के नतीजे 12 अक्टूबर को आने वाले हैं और आपको लगता है कि नतीजे अच्छे होंगे। आप एक कॉल ऑप्शन खरीदना चाहते हैं और आपका इरादा है कि 5 दिन बाद इस ट्रेड को स्क्वेयर ऑफ कर देंगे, तो ऐसे में आप कौन सी स्ट्राइक चुनेंगे? 

इस चार्ट से साफ है कि जब एक्सपायरी में काफी समय बचा हो (याद रखें कि हम सीरीज के पहले 15 दिनों की बात कर रहे हैं) और शेयर बाजार आप की उम्मीद के हिसाब से उसी दिशा में चल रहा है, तो सभी स्ट्राइक में पैसे बनेंगे। लेकिन सबसे ज्यादा पैसे बनेंगे (far/ फार) OTM ऑशन में। जैसा कि आप चार्ट में भी देख सकते हैं कि सबसे ज्यादा पैसे 5400 और 5500 की स्ट्राइक पर बनेंगे।

निष्कर्ष– जब हम सीरीज के पहले हिस्से (पहले 15 दिनों) में हों और आपको उम्मीद हो कि टारगेट जल्दी (अगले कुछ दिनों में) पूरा हो जाएगा तो OTM ऑप्शन खरीदिए। मेरी सलाह यह होगी कि आप ATM ऑप्शन से दो या तीन स्ट्राइक की दूरी तक ही अपना स्ट्राइक चुनें इससे ज्यादा दूर नहीं। 

अब ऊपर के दूसरे चार्ट पर नजर डालते हैं जो कि दाहिनी तरफ है। यहां भी यही माना गया है कि ट्रेड सीरीज के पहले हिस्से यानी पहले 15 दिनों में किया गया है। स्टॉक के 4% ऊपर जाने की उम्मीद है लेकिन टारगेट यहाँ 15 दिनों में पूरा होने वाली उम्मीद है। तो समय (टारगेट पूरा होने का समय) के अलावा यहां और कुछ नहीं बदला है। ध्यान से देखिए कि यहां पर मुनाफा किस तरह से बदलता है। यहां पर OTM ऑप्शन खरीदना मुनाफे का सौदा नहीं है। अगर आप यहाँ OTM ऑप्शन खरीदते हैं, तो आप पैसे भी गंवा भी सकते हैं(5500 की स्ट्राइक पर होने वाले मुनाफे को देखिए) 

निष्कर्ष – जब आप एक्सपायरी सीरीज के पहले हिस्से में यानी पहले 15 दिन में हैं और आप को उम्मीद है कि टारगेट अगले 15 दिनों में पूरा होगा, तो बेहतर यह होगा कि आप ATM ऑप्शन खरीदें या फिर स्लाइटली (slightly) OTM ऑप्शन खरीदे।मैं आपको सलाह दूंगा कि आप ऐसे स्ट्राइक चुने जो ATM से एक स्ट्राइक ही दूर हों उससे ज्यादा नहीं। किसी भी हालत में फार (Far) OTM ऑप्शन ना खरीदें

अब तीसरे चार्ट पर नजर डालते हैं जो नीचे बाई तरफ है। यहां भी ट्रेड सीरीज के पहले हिस्से में किया गया है और स्टॉक के 4% ऊपर जाने की उम्मीद है। लेकिन यहां भी समय बदल गया है। अब टारगेट के 25 दिन में पूरा होने की उम्मीद है। हम साफ देख सकते हैं कि OTM ऑप्शन को खरीदना मुनाफे का सौदा नहीं है। सभी तरह के OTM ऑप्शन में आपके पैसे डूब रहे हैं। यहां पर ITM ऑप्शन खरीदना फायदा दिला सकता है। 

यहां पर मैं आपको याद दिला दूं कि ज्यादातर लोग OTM ऑप्शन ही खरीद लेते हैं क्योंकि उसका प्रीमियम कम होता है। मुझे लगता है कि आपको इस के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। OTM ऑप्शन का कम प्रीमियम यह भ्रम पैदा करता है कि आपको नुकसान कम होगा, लेकिन इसमें इस बात की संभावना काफी ज्यादा रहती है कि आप अपने सारे पैसे डुबा दें। खासकर ऐसी स्थिति में जब बाजार चल तो रहा हो लेकिन उसकी रफ्तार आपकी उम्मीद के हिसाब से ना हो। उदाहरण के लिए बाजार में 4% की तेजी तो आ गयी हो लेकिन यह तेजी 15 दिन में आई हो। तब फार (Far) OTM को होल्ड करने कोई फायदा नहीं है। फार (Far) OTM ऑप्शन में पैसे तब बनते हैं जब बाजार की चाल तेज हो। उदाहरण के लिए 4% की तेजी 1 या 2 दिन में ही आ जाए, तब फार (Far) OTM ऑप्शन में मुनाफा होता है।

निष्कर्ष – जब हम सीरीज की शुरुआत में हो और हमें उम्मीद हो कि टारगेट 25 दिन में पूरा होगा. तब ITM ऑप्शन खरीदना फायदे का सौदा हो सकता है। किसी भी हालत में ATM या  OTM ऑप्शन खरीदने से बचना चाहिए। 

अब अंतिम चार्ट पर नजर डालते हैं जो नीचे दाएं तरफ है। यह तीसरे चार्ट की तरह ही है बस यहां पर यह उम्मीद की जा रही है कि टारगेट एक्सपायरी तक पूरा होगा (या फिर एक्सपायरी के काफी करीब जाकर)। यहां पर निष्कर्ष निकालना काफी आसान है क्योंकि यहां पर ITM ऑप्शन को छोड़कर हर तरीके के ऑप्शन में आपको नुकसान होगा। किसी भी ट्रेडर को यहाँ ATM  या OTM ऑप्शन नहीं खरीदना चाहिए। 

अब हम चार्ट के एक दूसरे समूह पर नजर डालते हैं। यहां पर यह देखने की कोशिश करेंगे कि अगर ट्रेड एक्सपायरी के सीरीज के दूसरे हिस्से में यानी अंतिम 15 दिनों में किया जाए तो क्या होता है। याद रखिए कि यहां पर टाइम डीकेए (Time Decay) काम करता है। इसलिए जैसे जैसे हम एक्सपायरी के करीब जाते हैं ऑप्शन के तौर तरीके बदलते रहते हैं। 

नीचे के 4 चार्ट में हम टारगेट पूरा होने की अलग-अलग अवधि के लिए सही स्ट्राइक पहचानने की कोशिश करेंगे। और हां, यहां पर हम थीटा को भी ध्यान में रखेंगे।

पहला चार्ट (बायीं तरफ ऊपर) यह चार्ट इस बात को पता करने की कोशिश करता है कि अलग-अलग स्ट्राइक के लिए मुनाफा कितना होगा जबकि ट्रेड को सीरीज के दूसरे हिस्से में किया गया हो और टारगेट उसी दिन पूरा होने की उम्मीद हो। इसका एक आम उदाहरण है वैसे ऑप्शन ट्रेड जो किसी समाचार पर आधारित हैं जैसे कि कंपनी के तरफ से होने वाली घोषणा पर आधारित ट्रेड या फिर RBI की मॉनिटरी पॉलिसी या मुद्रा नीति पर आधारित इंडेक्स ऑप्शन का ट्रेड। जैसा कि हमें चार्ट में दिख रहा है कि जब टारगेट उसी दिन पूरा हो जाए तो  सभी तरह की स्ट्राइक में पैसे बनते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा फायदा फार (Far) OTM ऑप्शन में होता है ।

यहां पर आपको पीछे की गयी चर्चा को याद रखना चाहिए कि जब बाजार काफी तेजी से चलता है (जैसे 1 दिन में 4% तक) तब फार (Far) OTM ऑप्शन स्ट्राइक ट्रेड करना ही सबसे अच्छा होता है।

निष्कर्ष– जब आप टारगेट के उसी दिन पूरा होने की उम्मीद कर रहे हों(एक्सपायरी कभी भी हो) तो फार (Far) OTM खरीदना चाहिए। मैं आपको ATM ऑप्शन से 2 या 3 स्ट्राइक की दूरी पर ही ऑप्शन खरीदने की सलाह दूंगा उससे ज्यादा दूर नहीं। ITM और ATM ऑप्शन तो बिल्कुल नहीं खरीदना चाहिए।

दूसरा चार्ट (दाहिनी तरफ ऊपर) ये चार्ट यह पता करने की कोशिश कर रहा है कि जब ट्रेड सीरीज के दूसरे 15 दिनों में हुआ हो और टारगेट 5 दिन के अंदर पूरा होने की उम्मीद हो तो अलग अलग स्ट्राइक का मुनाफा कितना होगा? ध्यान दीजिए कि फार (Far) OTM ऑप्शन का मुनाफा यहां किस तरह से कम हो गया है। पहले चार्ट में टारगेट एक ही दिन में पूरा होने वाला था और इसीलिए वहां पर फार (Far) OTM ऑप्शन खरीदना फायदे का सौदा था। लेकिन यहां पर टारगेट 5 दिन में पूरा होने वाला है। इसलिए सीरीज के दूसरे हिस्से में इस ट्रेड को 5 दिन तक अपने पास रखना होगा। अब थीटा का असर ज्यादा होगा ऐसे में फार (Far) OTM ऑप्शन खरीदने का रिस्क लेना ठीक नहीं है। ऐसे में स्लाइटली (slightly) OTM ऑप्शन स्ट्राइक खरीदना एक बेहतर फैसला होगा है। 

निष्कर्ष जब आप सीरीज के दूसरे हिस्से में हो और आप टारगेट के 5 दिन में पूरा होने की उम्मीद कर रहे हो तो स्लाइटली (slightly) OTM स्ट्राइक खरीदें। मेरी सलाह ये  होगी कि आप ATM ऑप्शन से एक स्ट्राइक दूर का का ऑप्शन खरीदें उससे ज्यादा दूर का नहीं।

चार्ट 3 (नीचे दाहिनी तरफ) और चार्ट 4 (नीचे बायीं तरफ)- यह दोनों चार्ट एक जैसे हैं। फर्क बस इतना है चार्ट 3 में टारगेट 10 दिन में पूरा हो रहा है जबकि चार्ट 4 में टारगेट एक्सपायरी के दिन पूरा हो रहा है। लेकिन क्योंकि हम सीरीज के महीने के दूसरे हिस्से यानी अंतिम 15 दिनों की बात कर रहे हैं इसलिए इन दोनों चार्ट में एक्सपायरी के बचे हुए दिनों की संख्या का बहुत महत्व नहीं है। इसलिए मैं इन दोनों चार्ट को एक जैसा ही मानूंगा। 

निष्कर्ष– जब टारगेट एक्सपायरी के पास जाकर पूरा होता है तो OTM ऑप्शन में नुकसान ज्यादा होता है। सिर्फ ATM और और स्लाइटली (slightly) ITM ऑप्शन में ही पैसे बनते हैं। 

हमने अब तक कॉल ऑप्शन को खरीदने के बारे में चर्चा की है, लेकिन पुट ऑप्शन के लिए भी इसी तरीके के निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। अब हम जरा इनके चार्ट पर भी नजर डालते हैं-

यह चार्ट देख कर हमें पता चल सकता है कि जब हम सीरीज के पहले 15 दिनों में ट्रेड शुरू करते हैं और टारगेट अलग-अलग समय में पूरा होने वाला हो तो कौन सा स्ट्राइक ट्रेड करना ठीक होगा। 

यह चार्ट हमें दिखा रहे हैं कि जब हम सीरीज के दूसरे हिस्से (अंतिम 15 दिन) में अपना ट्रेड लेते हैं और टारगेट अलग-अलग समय पर पूरा होता है तो कौन से स्ट्राइक ट्रेड करना चाहिए। 

अगर आप इन सभी चार्ट को ध्यान से देखेंगे तो आपको समझ में आएगा कि कॉल ऑप्शन में हमने जो निष्कर्ष  निकाले थे, वो पुट ऑप्शन पर भी लागू होते हैं। तो अगर हमें ऑप्शन को खरीदने के लिए सबसे अच्छे समय और सबसे अच्छे स्ट्राइक का एक चार्ट बनाना हो तो-

पोजीशन की शुरुआत टारगेट की उम्मीद ट्रेड के लिए सबसे अच्छी स्ट्राइक
सीरीज का पहला हिस्सा शुरूआत से 5 दिन बाद फार (Far) OTM ( ATM से 2 स्ट्राइक दूर)
सीरीज का पहला हिस्सा शुरूआत से 15 दिन बाद ATM या स्लाइटली (slightly) OTM ( ATM से 1 स्ट्राइक दूर)
सीरीज का पहला हिस्सा शुरूआत से 25 दिन बाद स्लाइटली (slightly) ITM ऑप्शन
सीरीज का पहला हिस्सा एक्सपायरी के दिन ITM
सीरीज का दूसरा हिस्सा उसी दिन फार (Far) OTM (ATM से 2 या 3 स्ट्राइक दूर)
सीरीज का दूसरा हिस्सा शुरूआत से 5 दिन बाद स्लाइटली (slightly)  OTM (ATM से 1 स्ट्राइक दूर)
सीरीज का दूसरा हिस्सा शुरूआत से 10 दिन बाद स्लाइटली (slightly) ITM or ATM
सीरीज का दूसरा हिस्सा एक्सपायरी के दिन ITM

तो अगली बार अगर आपको कॉल या पुट ऑप्शन खरीदना हो तो ध्यान रखिए कि सीरीज के किस हिस्से (पहले हिस्से या दूसरे हिस्से) में यह ट्रेड ले रहे हैं और टारगेट कब तक पूरा होने की उम्मीद है। उसके बाद आप ऊपर के इस टेबल का इस्तेमाल कर सकते हैं और पता कर सकते हैं कि कौन सी स्ट्राइक आपके लिए मुनाफे का सौदा होगी और किस तरह की स्ट्राइक से आपको बचना चाहिए। 

इसके साथ अब हम इस मॉड्यूल को करीब-करीब पूरा कर चुके हैं। अगले अध्याय में हम कुछ सौदों यानी ट्रेड की बात करेंगे जो कि मैंने पिछले कुछ दिनों में किए हैं। मैं यह भी बताऊंगा कि कौन से ट्रेड के पीछे कि मेरी सोच क्या थी। मुझे उम्मीद है कि उन सौदों को देखकर आपको समझ में आएगा कि ऑप्शन ट्रेड में किस तरीके की सोच होनी चाहिए। 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. ऑप्शन खरीदने के फैसले में वोलैटिलिटी एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
  2. आमतौर पर आपको ऑप्शन तब खरीदना चाहिए जब वोलैटिलिटी ऊपर जाने की उम्मीद हो। 
  3. ऑप्शन तब बेचना चाहिए जब वोलैटिलिटी नीचे आने की उम्मीद हो।
  4. वोलैटिलिटी के अलावा एक्सपायरी में कितना समय बचा है और टारगेट कितने दिनों में पूरा होने की उम्मीद है, इन चीजों का भी ख्याल रखना चाहिए क्योंकि ये भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

The post कॉल और पुट ऑप्शन से फिर परिचय appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%89%e0%a4%b2-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%9f-%e0%a4%91%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%bf/feed/ 56 Image 1_CE Image 2_PE Image 3_CE_Theta Image 4_CE_Theta Image 5_PE_Theta Image 6_PE_Theta
ग्रीक कैलकुलेटर https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%b0-greek-calculator/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%b0-greek-calculator/#comments Tue, 04 Feb 2020 09:50:21 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=6828 21.1 – पृष्ठभूमि इस मॉड्यूल में अब तक हमने सभी महत्वपूर्ण ऑप्शन ग्रीक के बारे में बात कर ली है और उनके उपयोग को भी समझ लिया है। अब समय है, यह समझने का कि इन ग्रीक की गणना कैसे की जाती है। ब्लैक एंड स्कोल्स (B&S) ऑप्शन प्राइसिंग कैलकुलेटर, ब्लैक एंड स्कोल्स ऑप्शन प्राइसिंग […]

The post ग्रीक कैलकुलेटर appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
21.1 – पृष्ठभूमि

इस मॉड्यूल में अब तक हमने सभी महत्वपूर्ण ऑप्शन ग्रीक के बारे में बात कर ली है और उनके उपयोग को भी समझ लिया है। अब समय है, यह समझने का कि इन ग्रीक की गणना कैसे की जाती है। ब्लैक एंड स्कोल्स (B&S) ऑप्शन प्राइसिंग कैलकुलेटर, ब्लैक एंड स्कोल्स ऑप्शन प्राइसिंग मॉडल (Black and Scholes options pricing model) पर आधारित है जिसे पहली बार फिशर ब्लैक और मायरॉन स्कोल्स ( Fisher Black and Myron Scholes) ने 1973 में बनाया था, हालांकि बाद में रॉबर्ट सी मर्टन (Robert C Merton) ने इस मॉडल को विकसित किया और इसको पूरी तरीके से गणित पर आधारित पर एक फार्मूले का रूप दिया। 

वित्तीय बाजारों में इस प्राइसिंग मॉडल को काफी महत्व दिया जाता है। वास्तव में रॉबर्ट सी मर्टन को और मायरॉन स्कोल्स को 1997 में इकोनॉमिक्स का नोबेल नोबेल प्राइज भी मिला। B&S प्राइसिंग मॉडल में गणित के कई सिद्धांत जैसे पार्शियल डिफरेंशियल इक्वेशन(Partial Differential equation), नॉरमल डिसटीब्यूशन (Normal Distribution), स्टेास्टिक प्रोसेसेस (Stochastic Processes) आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इस मॉड्यूल में हम आपको गणित के बारे में नहीं पढ़ाने वाले हैं बल्कि हमारा उद्देश्य है कि आप इस फार्मूले के उपयोग को ठीक ढंग से समझ सकें। लेकिन फिर भी आप इस मॉडल को समझने के लिए खान एकेडमी के इस वीडियो को देख सकते हैं

 https://youtu.be/pr-u4LCFYEY

21.2 – क्या है ये मॉडल

B&S कैलकुलेटर को आप एक ऐसी मशीन मान सकते हैं, जिसमें बहुत सारी चीजें डालने पर आपको कई तरह की चीजें बनकर मिलती हैं। जो चीजें इसमें डाली जाती है वह वास्तव में मार्केट से जुड़े हुए आंकड़े होते हैं और जो चीजें निकलती हैं वह ऑप्शन ग्रीक्स होते हैं। 

यह मॉडल इस तरह से काम करता है- 

  1. हम इस मॉडल में स्पॉट कीमत, स्ट्राइक कीमत, ब्याज दर, इंप्लाइड वोलैटिलिटी, डिविडेंड और एक्सपायरी में बचे हुए दिन जैसे आंकड़े डालते हैं। 
  2. प्राइसिंग मॉडल इन पर गणित के फार्मूले का इस्तेमाल करता है और उसके बाद अपने नतीजे देता है। 
  3. इन नतीजों में ऑप्शन ग्रीक तथा कॉल और पुट ऑप्शन की सैद्धांतिक कीमतें निकलती है। 

आप इसे नीचे के चित्र से ठीक ढंग से समझ सकते हैं-

इस मॉडल में जिन चीजों को डालना पड़ता है- 

स्पॉट कीमत-  यह वह कीमत है जिस कीमत पर अंडरलाइंग स्पॉट बाजार में बिक रहा है। याद रखिए कि हम चाहें तो यहां पर स्पॉट कीमत की जगह फ्यूचर कीमत भी डाल सकते हैं। जब ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट फ्यूचर की कीमत को अंडरलाइंग के तौर पर इस्तेमाल कर रहा हो तो ऐसा किया जाता है। कमोडिटी फ्यूचर्स और करेंसी ऑप्शन में कई बार फ्यूचर कीमत को अंडरलाइंग के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। वैसे इक्विटी बाजार में ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट हमेशा स्पॉट की कीमत पर ही आधारित होते हैं। 

ब्याज दरें- यह ब्याज की वो रिस्क फ्री दर है जो अर्थव्यवस्था में मिल रही है। इसके लिए आप RBI के 91 डे (91 day) के ट्रेजरी बिल के दर का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह दर आपको RBI की वेबसाइट से मिल सकती है। RBI ने यह रेट अपने लैंडिंग पेज पर भी डाला है, जिसको नीचे हाईलाइट किया गया है। 

सितंबर 2015 में यह रेट 7.4769% है। 

डिविडेंड– यह प्रति शेयर मिलने वाला वह डिविडेंड है जिसकी उम्मीद की जा रही है। इसका इस्तेमाल तब होता है जब इस एक्सपायरी के दौरान स्टॉक एक्स डिविडेंड (ex-dividend) होने वाला हो। उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि आज 11 सितंबर है और आप ICICI बैंक के ऑप्शन कान्ट्रैक्ट के लिए ऑप्शन ग्रीक की गणना करना चाहते हैं और ICICI बैंक 18 सितंबर को एक्स डिविडेंड (ex-dividend)  हो रहा है। इस पर ₹4 डिविडेंड मिलने वाला है। सितंबर सीरीज की एक्सपायरी 24 सितंबर 2015 को है इसलिए यहां पर इस गणना के लिए डिविडेंड ₹4 होगा।

एक्सपायरी में बचे हुए दिन– एक्सपायरी में कितने दिन बचे हुए हैं। 

वोलैटिलिटी– यहां पर आपको ऑप्शन की इंप्लाइड वोलैटिलिटी का इस्तेमाल करना होगा। NSE की तरफ से जारी किए गए ऑप्शन चेन में आपको सभी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की इंप्लायड वोलैटिलिटी का डेटा मिल सकता है। उदाहरण के तौर पर, नीचे के चित्र में ICICI बैंक के 280 CE को दिखाया गया है और हम देख सकते हैं कि इसका IV 43.55% है।

आइए अब इन आंकड़ों का इस्तेमाल करके ICICI के 280 कॉल ऑप्शन के ग्रीक को निकालते हैं 

  • स्पॉट कीमत = 272.7 
  • ब्याज दर (इंटरेस्ट रेट) = 7.4769% 
  • डिविडेंड =
  • एक्सपायरी में बचे हुए दिन = 1 (एक आज 23 सितंबर है और एक्सपायरी 24 सितंबर को है) 
  • वोलैटिलिटी = 43.55% 

अब जब हमारे पास यह सारी जानकारी है तो हम इसको ब्लैक एंड स्कोल्स ऑप्शन केलकुलेटर में डालेंगे। यह केलकुलेटर हमारी वेबसाइट पर मौजूद है- https://zerodha.com/tools/black-scholes आप इसका इस्तेमाल करके ऑप्शन ग्रीक्स निकाल सकते हैं। 

एक बार जब आप जरूरी डेटा डाल देते हैं और कैलकुलेट का बटन दबाते हैं, तो कैलकुलेटर आपको ऑप्शन ग्रीक का मूल्य बता देता है।

इससे जो चीजें निकलती हैं 

  • 280 के कॉल ऑप्शन और 280  पुट ऑप्शन का प्रीमियम। यह एक सैद्धांतिक ऑप्शन कीमत है जो कि इस ऑप्शन कैलकुलेटर ने निकाली है। लेकिन वास्तव में यह बाजार की मौजूदा ऑप्शन कीमत के बराबर होनी चाहिए। 
  • प्रीमियम की कीमत के नीचे, सभी ऑप्शन ग्रीक को दिखाया गया है। 

मुझे उम्मीद है कि अब तक आप हर ऑप्शन ग्रीक्स के बारे में समझ चुके हैं और यह जानते हैं कि वह क्या बता रहे हैं और इनका इस्तेमाल आप कैसे कर सकते हैं। 

ऑप्शन कैलकुलेटर के बारे में एक और बात जो आपको जानना चाहिए वह यह है कि ऑप्शन कैलकुलेटर का इस्तेमाल मुख्य तौर पर ऑप्शन ग्रीक्स को निकालने के लिए और ऑप्शन की सैद्धांतिक कीमत को निकालने के लिए किया जाता है। कभी-कभी आंकड़े डालते हुए थोड़े से फेरबदल की वजह से आपको कुछ अंतर मिल सकता है, इसलिए जरूरी है कि आप अपने अनुमानों में मॉडलिंग के लिए थोड़ी जगह रखें। लेकिन कुल मिलाकर ऑप्शन कैलकुलेटर काफी सही गणना करता है।

21.3 – पुट कॉल पैरिटी (Put Call Parity)

हम यहां पर ऑप्शन प्राइसिंग के मुद्दे पर बात कर रहे हैं इसलिए शायद यहीं पर हमें पुट कॉल पैरिटी (Put Call Parity) यानी PCP पर बात कर लेनी चाहिए। पुट कॉल पैरिटी एक सीधा-साधा गणित का समीकरण है जो कि बताता है-

पुट कीमत + स्पॉट कीमत + स्ट्राइक की मौजूदा कीमत (मैच्योरिटी तक निवेश पर) + कॉल की कीमत 

Put Value + Spot Price = Present value of strike (invested to maturity) + Call Value.

यह समीकरण बिल्कुल सही साबित होता है अगर –

  1. पुट और कॉल दोनों ऑप्शन एटीएम हैं 
  2. ऑप्शन यूरोपीयन है 
  3. दोनों एक साथ ही एक्सपायर हो रहे हैं 
  4. ऑप्शंस को एक्सपायरी तक होल्ड किया जा रहा है 

जो लोग प्रेजेंट वैल्यू के बारे में नहीं जानते हैं मेरी उनको सलाह है कि वह इसको पढ़ें – http://zerodha.com/varsity/chapter/dcf-primer/ 

लेकिन अगर आप प्रेजेंट वैल्यू के सिद्धांत को समझते हैं तो आप इस समीकरण को ऐसे भी देख सकते हैं 

P + S = Ke(-rt) + C

जहां पर यह Ke(-rt)  स्ट्राइक की प्रेजेंट वैल्यू को बताता है जबकि  K  स्ट्राइक कीमत है। गणित के नजर से देखें तो स्ट्राइक K लगातार डिस्काउंट हो रहा है ‘r’ ओवर टाइम की ‘t’ (‘r’ over time ‘t’ ) की दर से। 

यह भी समझ लीजिए कि अगर आप स्ट्राइक की प्रेजेंट वैल्यू को मैच्योरिटी तक होल्ड करते हैं तो आपको स्ट्राइक कीमत ही वापस मिल जाएगी। इसलिए इस समीकरण को इस तरीके से भी दिखाया जा सकता है 

पुट ऑप्शन +  स्पॉट कीमत = स्ट्राइक कीमत + कॉल ऑप्शन

Put Option + Spot Price = Strike + Call options 

तो यह दोनों बराबर क्यों होने चाहिए? इसको अच्छे तरीके से समझने के लिए आप मान लीजिए कि दो ट्रेडर हैं A और B

  • ट्रेडर A, ATM पुट ऑप्शन को होल्ड करता है और अंडरलाइंग स्टॉक के 1 शेयर को अपने पास रखता है। (PCP समीकरण के बाएं तरफ का हिस्सा) 
  • ट्रेडर B, कॉल ऑप्शन को होल्ड करता है और स्ट्राइक कीमत के बराबर का कैश या नकद (PCP समीकरण का दायीं तरफ का हिस्सा)

ऊपर के तथ्यों के आधार पर PCP बताता है कि दोनों ट्रेडर एक बराबर पैसे कमाएंगे (अगर वह अपनी पोजीशन को एक्सपायरी तक होल्ड करते हैं)। यहां पर कुछ आंकड़े नंबर डालकर देखते हैं कि यह समीकरण कितना सही है-

अंडरलाइंग = इंफोसिस 

स्ट्राइक = 1200 

स्पॉट कीमत = 1200 

ट्रेडर A होल्ड करता है = 1200 PE + इंफोसिस का एक शेयर 1200 पर 

ट्रेडर B होल्ड करता है = 1200 CE + स्ट्राइक के बराबर का नकद यानी 1200 

अब मान लीजिए की एक्सपायरी पर इंफोसिस 1100 पर एक्सपायर होता है, तो क्या होगा? 

ट्रेडर A  का पुट ऑप्शन मुनाफा देता है और वह ₹100 कमाता है। लेकिन उसके पास जो एक शेयर है वहां पर वह ₹100 का नुकसान करता है। इसलिए कुल मिलाकर उसके पास जो रकम बचती है वह है 100 + 1100  = 1200

ट्रेडर B का कॉल ऑप्शन बिना कीमत का यानी वर्थलेस (worthless) हो जाता है। इसलिए उसके ऑप्शन की कीमत 0 पहुंच जाती है। लेकिन उसके पास  ₹1200 हैं, इसलिए उसके पास कुल बची हुए रकम है 0 + 1100 = 1200  

अब एक और उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए कि एक्सपायरी पर इंफोसिस 1350 पर पहुंच जाता है। तो अब इन दोनों ट्रेडर के लिए यह आंकड़ा कैसे बदलता है- 

ट्रेडर A =  पुट ऑप्शन जीरो हो जाता है, उसका शेयर 1350 पर पहुंच जाता है 

ट्रेडर  B =  कॉल की वैल्यू यानी कीमत ₹150 बढ़ जाती है, और उसके पास नकद है ₹1200 तो कुल रकम हुई 1350 

तो इस तरह से स्टॉक कहीं पर भी एक्सपायर हो, यह समीकरण सही साबित होता है। यानी ट्रेडर A और ट्रेडर B दोनों एक बराबर पैसे कमाते हैं। अब आप PCP का इस्तेमाल करके एक ट्रेडिंग स्ट्रेटजी कैसे बनाएंगे? इसके लिए आपको अगले मॉड्यूल का इंतजार करना होगा, जिसमें हम ऑप्शन स्ट्रेटजी की बात करेंगे। लेकिन उसके पहले इस मॉड्यूल में अभी दो और अध्याय बाकी हैं।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. ऑप्शनन कैलकुलेटर ब्लैक एंड स्कोल्स मॉडल पर आधारित है। 
  2. ब्लैक एंड स्कोल्स मॉडल का इस्तेमाल करके ऑप्शन के सैद्धांतिक कीमतें और ऑप्शन ग्रीक्स को पता किया जा सकता है।
  3. कैलकुलेटर में इंटरेस्ट रेट यानी ब्याज दरें वह होती है जो RBI की  वेबसाइट पर रिस्क फ्री  रेट के तौर पर दिखाई जाती हैं।
  4. इंप्लाइड वोलैटिलिटी का आंकड़ा NSE की वेबसाइट पर दिए गए ऑप्शन चेन में से निकाला जा सकता है।
  5. पुट कॉल पैरिटी बताता है कि पुट ऑप्शन और स्पॉट का जोड़, कॉल ऑप्शन प्लस स्ट्राइक के बराबर होता है।

The post ग्रीक कैलकुलेटर appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%95-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%b0-greek-calculator/feed/ 17 M5-C21-Illustration Image 1_91Tbill Image 2_IV Image 3_BS Image 4_Greeks