टेक्निकल एनालिसिस – Varsity by Zerodha https://zerodha.com/varsity/module/टेक्निकल-एनालिसिस/ Markets, Trading, and Investing Simplified. Wed, 20 Jan 2021 03:07:02 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.5 वॉल्यूम https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b5%e0%a5%89%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82%e0%a4%ae-volumes/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b5%e0%a5%89%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82%e0%a4%ae-volumes/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:54:41 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5719 वॉल्यूम टेक्निकल एनालिसिस में बहुत जरूरी भूमिका निभाता है क्योंकि यह हमें रुझानों (ट्रेंड) और पैटर्न की पुष्टि करने में मदद करता है। बाजार के कारोबारी, बाजार के बारे में क्या सोच रहे हैं ये जानने के लिए वॉल्यूम पर नज़र रखना जरूरी होता है।   वॉल्यूम संकेत देते हैं कि किसी एक समय अवधि में […]

The post वॉल्यूम appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
वॉल्यूम टेक्निकल एनालिसिस में बहुत जरूरी भूमिका निभाता है क्योंकि यह हमें रुझानों (ट्रेंड) और पैटर्न की पुष्टि करने में मदद करता है। बाजार के कारोबारी, बाजार के बारे में क्या सोच रहे हैं ये जानने के लिए वॉल्यूम पर नज़र रखना जरूरी होता है।  

वॉल्यूम संकेत देते हैं कि किसी एक समय अवधि में कितने शेयर खरीदे और बेचे गए हैं। कोई शेयर जितना अधिक सक्रिय होगा, उसका वॉल्यूम उतना ही अधिक होगा। उदाहरण के लिए, आप अमारा राजा बैटरी के 100 शेयर 485 पर खरीदने का फैसला करते हैं, और मैं 485 पर अमरा राजा बैटरी के 100 शेयर बेचने का फैसला करता हूं। यहाँ कीमत और वॉल्यूम का मैच है, जिसके परिणामस्वरूप एक व्यापार होता है। आपने और मैंने मिलकर 100 शेयरों का वाल्यूम बनाया है। कई लोग वॉल्यूम काउंट को 200 (100 खरीदे + 100 बेचे) मान लेते हैं, जो वॉल्यूम को देखने का सही तरीका नहीं है। निम्नलिखित काल्पनिक उदाहरण से आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि किसी एक दिन में वॉल्यूम कैसे बढ़ता है:

क्रम सं समय खरीद संख्या बिक्री संख्या कीमत वॉल्यूम बढ़ता कुल वॉल्यूम
1 9:30 AM 400 400 62.2 400 400
2 10.30 AM 500 500 62.75 500 900
3 11:30 AM 350 350 63.1 350 1,250
4 12:30 PM 150 150 63.5 150 1,400
5 1:30 PM 625 625 63.75 625 2,025
6 2:30 PM 475 475 64.2 475 2,500
7 3:30 PM 800 800 64.5 800 3,300

सुबह 9:30 बजे 62.20 की कीमत पर 400 शेयरों की खरीद-बिक्री हुई। एक घंटे बाद, 500 शेयरों का कारोबार 62.75 पर हुआ। इसलिए सुबह 10:30 बजे यदि आप दिन के लिए कुल वॉल्यूम को देखते हैं, तो यह 900 (400 + 500) होगा। इसी तरह सुबह 11:30 बजे, 63.10 पर 350 शेयरों की खरीद-बिक्री हुई । अब 11:30 बजे तक वॉल्यूम 1,250 (400 + 500 + 350) हो जाएगा। इसी तरह आगे भी चलता रहेगा। यहाँ कुछ शेयरों के लिए वॉल्यूम को बताने वाला लाइव बाजार से एक स्क्रीन शॉट नीचे है। इस स्क्रीन शॉट को 5 अगस्त 2014 को अपराह्न/दोपहर 2:55 बजे लिया गया।

आप ध्यान दें कि, कमिंस इंडिया लिमिटेड (Cummins India Limited) का वॉल्यूम 12,72,737 शेयर है, इसी तरह नौकरी (इन्फो एज इंडिया लिमिटेड) का वॉल्यूम 85,427 शेयर है। वॉल्यूम जानकारी जो आप यहां देख रहे हैं वह कुल वॉल्यूम (cumulative) है। मतलब, 2:55 बजे, 634.90 (लो) और 689.85 (हाई) से लेकर विभिन्न मूल्य बिंदुओं पर कमिंस के कुल 12,72,737 शेयरों का कारोबार हुआ। बाजार बंद होने के 35 मिनट बचे होने के समय, वॉल्यूम में बढोत्तरी तर्कसंगत है (बेशक यह मानते हुए कि कारोबारी बाकी बचे हुए समय में भी स्टॉक में ट्रेड करना जारी रखेंगे)। वास्तव में यहां एक और स्क्रीन शॉट है जो उसी शाम 3:30 बजे उन्हीं स्टॉक के लिए लिया गया है।

जैसा कि आप देख सकते हैं, कमिंस इंडिया लिमिटेड का वॉल्यूम 12,72,737 से बढ़कर 13,49,736 हो गया है। इसलिए, कमिंस इंडिया के लिए दिन का वॉल्यूम 13,49,736 शेयर है। नौकरी (Naukri)  के लिए कुल वॉल्यूम  86,712 हुए, यानी नौकरी के शेयर का वॉल्यूम 85,427 से बढ़कर 86,712 हो गया है। आपके लिए यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यहां दिखाए गए वॉल्यूम दिन के कुल वॉल्यूम का जोड़ हैं यानी हर ट्रेड का वॉल्यूम जोड़ कर बनने वाली संख्या। 

12.1 – वॉल्यूम ट्रेंड तालिका (The Volume trend table) 

अपने आप में वॉल्यूम की जानकारी का कोई खास उपयोग नहीं है। उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि कमिंस इंडिया पर वॉल्यूम 13,49,736 शेयर है। तो अलग से सिर्फ यह जानकारी कितनी उपयोगी है? वास्तव में इसका कोई मतलब नहीं होगा। हालाँकि जब आप आज की वॉल्यूम की जानकारी को – पहले की कीमत और वॉल्यूम के ट्रेंड के साथ देखते हैं, तो फिर वॉल्यूम की जानकारी बहुत अधिक काम की हो जाती है। 

नीचे दी गई तालिका में आपको वॉल्यूम जानकारी का उपयोग करने का एक सारांश मिलेगा:

क्रम सं कीमत वॉल्यूम आगे की उम्मीद
1 बढ़त बढ़त बुलिश
2 बढ़त गिरावट सावधान-खरीदारी में दम नहीं
3 गिरावट बढ़त बेयरिश
4 गिरावट गिरावट सावधान-बिकवाली में दम नहीं

ऊपर दी गई तालिका में पहली पंक्ति कहती है, जब कीमत में बढ़त के साथ-साथ वॉल्यूम बढ़ता है, तो उम्मीद तेजी की (बुलिश) होती है।

इससे पहले कि हम ऊपर दी गई तालिका को समझें, इस बारे में सोचें – हम ‘वॉल्यूम में बढ़ोतरी’ के बारे में बात कर रहे हैं। इसका वास्तव में क्या मतलब है? इसक संदर्भ यहां क्या है? क्या यहाँ पिछले दिन के वॉल्यूम की बात हो रही है या पिछले सप्ताह के कुल वॉल्यूम की? वृद्धि कहाँ होनी चाहिए? 

कारोबारी आमतौर पर पिछले 10 दिनों के वॉल्यूम के औसत की तुलना आज के वॉल्यूम से करते हैं। आमतौर पर वाल्यूम को ऐसे परिभाषित किया जाता है : 

हाई वॉल्यूम = आज का वॉल्यूम > पिछले 10 दिनों का औसत वॉल्यूम

लो वॉल्यूम = आज का वॉल्यूम  < पिछले 10 दिनों का औसत वाल्यूम 

एवरेज वॉल्यूम = आज का वॉल्यूम = पिछले 10 दिनों का औसत वॉल्यूम

पिछले 10 दिन का औसत वॉल्यूम जानने के लिए, आपको केवल वॉल्यूम बार पर एक मूविंग एवरेज लाइन खींचनी होगी।  हम अगले अध्याय में मूविंग एवरेज पर चर्चा करेंगे।

ऊपर दिए गए चार्ट में, आप देख सकते हैं कि वॉल्यूम नीले रंग के बार के रूप (चार्ट के नीचे) में दिखाए गए हैं। वॉल्यूम बार पर खींची गई लाल रेखा 10 दिन के औसत को दर्शाती है। जैसा कि आप देख सकते हैं, 10 दिनों के औसत से अधिक और ऊपर वाले सभी वॉल्यूम बार को ज्यादा वॉल्यूम का दिन माना जा सकता है। इन दिनों पर कुछ संस्थागत गतिविधि (Institutional activity )या बड़ी भागीदारी हुई है। 

इस बात को ध्यान में रखते हुए,  अब आप कीमत वॉल्यूम तालिका देखें। 

12.2 – वॉल्यूम ट्रेंड चार्ट (तालिका) के पीछे की सोच 

जब संस्थागत निवेशक खरीद या बिक्री करते हैं, तो वे स्पष्ट रूप से छोटे सौदे नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, भारत के LIC के बारे में सोचें, वे भारत में सबसे बड़े घरेलू संस्थागत निवेशकों में से एक हैं। अगर वे कमिंस इंडिया के शेयर खरीदेंगे, तो क्या आप सोचेंगे कि वे 500 शेयर खरीदेंगे? जाहिर है, वे शायद 500,000 शेयर या इससे भी अधिक खरीदेंगे। अब, अगर वे खुले बाजार से 500,000 शेयर खरीदने वाले थे, तो यह वॉल्यूम में दिखने लगेगा। इसके अलावा, क्योंकि वे शेयरों का एक बड़ा हिस्सा खरीद रहे हैं, शेयर की कीमत भी बढ़ जाती है। आमतौर पर संस्थागत धन को “स्मार्ट मनी” कहा जाता है। यह माना जाता है कि स्मार्ट मनी बाजार में छोटे कारोबारियों की तुलना में हमेशा समझदारी से निवेश करता है। इसलिए स्मार्ट मनी का अनुसरण करना एक बुद्धिमानी का काम है। 

यदि कीमत और वॉल्यूम दोनों में बढ़ोतरी हो रही है तो इसका केवल एक ही मतलब है – एक बड़ा खिलाड़ी स्टॉक में दिलचस्पी दिखा रहा है। ऐसे में स्टॉक को खरीदना चाहिए क्योंकि ये धारणा है कि स्मार्ट मनी हमेशा स्मार्ट निवेश करती है। 

या कह सकते हैं कि, जब भी आप खरीदने का फैसला करते हैं, तो सुनिश्चित करें कि वॉल्यूम पर्याप्त हैं। इसका मतलब है कि आप स्मार्ट मनी के साथ खरीद रहे हैं।

यही बात ऊपर वॉल्यूम ट्रेंड तालिका की पहली पंक्ति भी बता रही थी- जब कीमत और वॉल्यूम दोनों बढ़ जाते है तो तेजी की उम्मीद बन जाती है। 

लेकिन दूसरी पंक्ति में संकेत के अनुसार जब मूल्य बढ़ता है और वॉल्यूम घट जाता है, तब आपको क्या लगता है? 

निम्नलिखित बातों के आधार पर इसके बारे में सोचें: 

  • क्यों बढ़ रही है कीमत? 

क्योंकि बाजार में खरीदारी हो रही है।

  • क्या कोई संस्थागत खरीदार कीमत बढ़ने के लिए जिम्मेदार हैं?

 कम संभावना है।

  • आप कैसे जानेंगे कि संस्थागत निवेशकों द्वारा कोई खास खरीद नहीं की जा रही है?

  आसान है, यदि वे खरीद रहे थे तो वॉल्यूम में वृद्धि होती, कमी नहीं।

  • तो घटते वॉल्यूम और साथ में कीमत बढ़ने का क्या अर्थ है?

 इसका मतलब है कि एक छोटी खुदरा भागीदारी के कारण कीमत बढ़ रही है, बड़ी संस्थागत खरीद से नहीं। इसलिए आपको सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि यह एक बुल ट्रैप हो सकता है और आप फंस सकते हैं।

आगे बढ़ते हैं, ऊपर की तालिका की तीसरी पंक्ति कहती है, वॉल्यूम में वृद्धि के साथ कीमत में कमी – एक मंदी की उम्मीद जगाती है। आप ऐसा क्यों सोचते हैं? मूल्य में कमी से संकेत मिलता है कि बाजार कारोबारी स्टॉक बेच रहे हैं। वॉल्यूम में वृद्धि स्मार्ट मनी की उपस्थिति को इंगित करती है। एक साथ होने वाली दोनों घटनाओं (मूल्य में कमी + वॉल्यूम में वृद्धि) का मतलब यह होना चाहिए कि स्मार्ट मनी स्टॉक बेच रहा है। चूंकि स्मार्ट मनी हमेशा स्मार्ट विकल्प चुनती है, इसलिए स्टॉक में बिक्री के अवसर को तलाशना चाहिए। 

या दूसरे ढंग से कहें तो, जब भी आप बेचने का फैसला करते हैं, तो सुनिश्चित करें कि वॉल्यूम अच्छे हैं। इसका मतलब है कि आप भी स्मार्ट मनी के साथ बेच रहे हैं। 

आगे बढ़ते हैं, आपको क्या लगता है कि चौथी पंक्ति में, जहां, वॉल्यूम और कीमत दोनों में कमी आती है, वहाँ क्या संकेत हैं? निम्नलिखित बातों पर ध्यान दीजिए: 

  • क्यों घट रही है कीमत? 

क्योंकि बाजार के सहभागी बेच रहे हैं। 

  • क्या कोई संस्थागत विक्रेता कीमत में कमी के साथ जुड़े हैं? 

कम संभावना है।

  • आपको कैसे पता चलेगा कि संस्थागत निवेशकों की तरफ से बिक्री के कोई आदेश नहीं हैं?

सरल है, यदि वे बेच रहे थे तो वॉल्यूम बढ़ता और घटता नहीं। 

  • तो आप कीमत और वॉल्यूम में गिरावट से क्या अनुमान लगाएंगे? 

इसका मतलब है कि छोटे कारोबारियों की बिकवाली के कारण कीमत कम हो रही है, और संस्थागयत निवेशक (स्मार्ट मनी के रूप में पढ़ें) नहीं बेच रहे है। इसलिए आपको सावधान रहने की आवश्यकता है क्योंकि यह एक बेयर ट्रैप हो सकता है।

12.3 चेकलिस्ट को फिर से देखें

आइए हम चेकलिस्ट को फिर से देखें और वॉल्यूम के परिप्रेक्ष्य में इसको समझें। एक स्टॉक में इस काल्पनिक टेक्निकल स्थिति की कल्पना करें: 

  1. बुलिश एनगल्फिंग (Bullish engulfing) पैटर्न का बनना – पहले चर्चा किए गए कारणों की वजह से ये एक लांग ट्रेड का सुझाव देता है। 
  2. बुलिश एनगल्फिंग के लो के पास सपोर्ट – सपोर्ट एक स्टॉक में मांग को दिखाता है। इसलिए सपोर्ट के पास एक बुलिश एनगल्फिंग पैटर्न बनने से पता चलता है कि वास्तव में स्टॉक की मजबूत मांग है और इसलिए करोबारी स्टॉक खरीदने पर गौर कर सकता है।
  1. एक जानापहचाना कैंडलस्टिक पैटर्न और स्टॉपलॉस के पास सपोर्ट, ये दोनों मिल कर कारोबारी को लांग जाने के लिए दोहरी पुष्टि देते हैं। 

अब लो के पास सपोर्ट के साथ, बुलिश एनगल्फिंग पैटर्न के दूसरे दिन यानी P2 (नीली कैंडल) पर हाई वॉल्यूम की कल्पना करें। आप इससे क्या अनुमान लगा सकते हैं? अनुमान काफी हद तक स्पष्ट है – हाई वॉल्यूम के साथ-साथ कीमत बढ़ने से हमें पुष्टि होती है कि बड़े पार्टिसिपेंट शेयर खरीदने के लिए तैयार हो रहे हैं। 

तो तीन संकेत यानी कैंडलस्टिक्स, S&R, और वॉल्यूम एक साथ एक ही कार्रवाई यानी लांग करने का सुझाव देते हैं। एस तरह यहाँ एक बात की तीन तरह से पुष्टि हो रही है। 

जिस बात पर मैं यहाँ जोर देना चाहता हूं यह है कि वॉल्यूम बहुत शक्तिशाली हैं क्योंकि ये ट्रेडर को पुष्टि करने में मदद करता है। इस कारण यह एक महत्वपूर्ण चीज है और इसलिए इसे चेकलिस्ट में शामिल किया जाना चाहिए। 

इसको जोड़ कर अब नई चेकलिस्ट ऐसी दिखती है: 

  1. स्टॉक में एक जाना पहचाना कैंडलस्टिक पैटर्न बनना चाहिए।
  2. S&R को व्यापार की पुष्टि करनी चाहिए। स्टॉपलॉस भी S&R के आसपास होना चाहिए।
    1. एक लांग ट्रेड के लिए, पैटर्न का लो सपोर्ट के आसपास होना चाहिए। 
    2. एक शॉर्ट ट्रेड के लिए, पैटर्न का हाई रेजिस्टेंस के आसपास होना चाहिए।
  3. वॉल्यूम को ट्रेड की पुष्टि करनी चाहिए।
    1. खरीदने के दिन और बेचने के दिन वॉल्यूम एवरेज से अधिक होना चाहिए।
    2. लो वॉल्यूम उत्साहजनक नहीं है और इसलिए जहां वॉल्यूम कम हो वहाँ ट्रेड करने से बचें।

इस अध्याय से मुख्य बातें 

  1. किसी ट्रेंड की पुष्टि के लिए वॉल्यूम का उपयोग किया जाता है।
  2. 100 शेयर खरीदने और 100 शेयर बेचने से कुल वॉल्यूम 100 होता है, 200 नहीं।
  3. दिन के अंत का वॉल्यूम पूरे दिन के हर ट्रेड का कुल संयुक्त वॉल्यूम दिखाता है।
  4. हाई वॉल्यूम स्मार्ट मनी की उपस्थिति को बताता है।
  5. लो वॉल्यूम से खुदरा यानी रिटेल भागीदारी का संकेत मिलता है।
  6. जब आप किसी लांग या शॉर्ट ट्रेड की शुरुआत करते हैं तो हमेशा सुनिश्चित करें कि वॉल्यूम उसकी पुष्टि करे। 
  7. लो वॉल्यूम के दिनों में व्यापार करने से बचें।

 

The post वॉल्यूम appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b5%e0%a5%89%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82%e0%a4%ae-volumes/feed/ 60 M2-Ch12-title M2-Ch12-chart1 M2-Ch12-chart2 M2-Ch12-chart3
मूविंग एवरेज https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ae%e0%a5%82%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-%e0%a4%8f%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%9c-moving-averages/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ae%e0%a5%82%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-%e0%a4%8f%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%9c-moving-averages/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:54:37 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5721 हम सब ने स्कूल में औसत के बारे में सीखा है, मूविंग एवरेज उसी का एक विस्तार है। मूविंग एवरेज से ट्रेंड पता चलते हैं और अक्सर उनकी सादगी और प्रभावशीलता के कारण इनका उपयोग किया जाता है। इससे पहले कि हम मूविंग एवरेज सीखें, आइए हम जल्दी रिकैप से दोहरा लें कि औसत की […]

The post मूविंग एवरेज appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
हम सब ने स्कूल में औसत के बारे में सीखा है, मूविंग एवरेज उसी का एक विस्तार है। मूविंग एवरेज से ट्रेंड पता चलते हैं और अक्सर उनकी सादगी और प्रभावशीलता के कारण इनका उपयोग किया जाता है। इससे पहले कि हम मूविंग एवरेज सीखें, आइए हम जल्दी रिकैप से दोहरा लें कि औसत की गणना कैसे की जाती है।

मान लें कि 5 लोग समुद्र तट पर धूप में बैठे हैं और एक अच्छा ठंडे शरबत का आनंद ले रहे हैं। गर्मी इतनी है कि उनमें से हर व्यक्ति कई बोतलें समाप्त कर देता है। अंतिम गणना इस तरह से मानें:

क्रम सं व्यक्ति बोतलों की संख्या
1 A 7
2 B 5
3 C 6
4 D 3
5 E 8
बोतलों की कुल संख्या 29

अब मान लें कि एक 6वाँ व्यक्ति वहाँ आता है और वहाँ बिखरी पड़ी 29 बोतलों को देखकर ये जानने की कोशिश करता है कि हर व्यक्ति ने कितनी बोतल पी। वह जल्दी से लोगों की कुल संख्या को कुल बोतलों की संख्या से विभाजित करके ये संख्या निकालता है, इस मामले में यह गणना होगी : = 29/5 = 5.8 बोतलें प्रति व्यक्ति। तो, इस मामले में औसत हमें मोटे तौर पर बताता है कि प्रत्येक व्यक्ति ने कितनी बोतलें पी थीं। जाहिर है कि उनमें से कुछ ऐसे होंगे जिन्होंने औसत से ऊपर और कुछ ने औसत से नीचे उपभोग किया हो। उदाहरण के लिए, व्यक्ति E ने पेय की 8 बोतलें पी, जो कि 5.8 बोतलों के औसत से ऊपर है। इसी तरह, व्यक्ति D ने सिर्फ 3 बोतल पेय पिया, जो कि 5.8 बोतलों के औसत से नीचे है। इसलिए औसत केवल एक अनुमान है और कोई भी इसके सटीक होने की उम्मीद नहीं कर सकता है। 

इसी अवधारणा को आगे बढ़ाते हैं शेयरों में, पिछले 5 ट्रेडिंग सत्रों के लिए ITC लिमिटेड के समापन मूल्य दिए गए हैं। इनके आधार पर, पिछले 5 दिन की औसत गणना निम्नानुसार की जाएगी:

तारीख बंद कीमत
14/07/14 344.95
15/07/14 342.35
16/07/14 344.2
17/07/14 344.25
18/07/14 344
कुल 1719.75

= 1719.75 / 5 = 343.95 

इसलिए पिछले 5 कारोबारी सत्रों में ITC का औसत बंद भाव 343.95 है। 

13.1 – मूविंग एवरेज (The Moving Averages) – इसे साधारण मूविंग एवरेज (Simple Moving Average) भी कहा जाता है।

अब एक नए उदाहरण पर विचार करें जहां आप पिछले 5 दिनों के लिए मैरिको लिमिटेड के औसत बंद की गणना करना चाहते हैं। डाटा इस प्रकार है

तारीख बंद कीमत
21/07/14 239.2
22/07/14 240.6
23/07/14 241.8
24/07/14 242.8
25/07/14 247.9
कुल 1212.3

= 1212.3 / 5

 = 242.5 

इसलिए पिछले 5 कारोबारी सत्रों में मैरिको का औसत समापन मूल्य 242.5 है

अब आगे बढ़ते हैं, अगले दिन यानी 28 जुलाई (26 और 27 को क्रमशः शनिवार और रविवार थे) हमारे पास एक नया डाटा है। मतलब अब नए 5 दिन हैं 22, 23, 24, 25 और 28 । हम 21 तारीख के डाटा को छोड़ देंगे क्योंकि हमारा उद्देश्य नवीनतम 5 दिन के औसत की गणना करना है।

तारीख बंद कीमत
21/07/14 239.2
22/07/14 240.6
23/07/14 241.8
24/07/14 242.8
25/07/14 247.9
कुल 1212.3

= 244.66 = 1223.3 / 5 

इसलिए पिछले 5 कारोबारी सत्रों में मैरिको का औसत समापन मूल्य 244.66 है।

जैसा कि आप देख सकते हैं, हमने 5 दिन के औसत की गणना करने के लिए नवीनतम डाटा (28 जुलाई) को शामिल किया है, और सबसे पुराने डाटा (21 जुलाई) को छोड़ दिया है। 29 तारीख को, हम 29 का डाटा शामिल करेंगे और 22 के डाटा को बाहर कर देंगे, 30 तारीख को हम 30 के डाटा को शामिल करेंगे, लेकिन 23 के डाटा को हटा देंगे। 

तो हर बार, हम नवीनतम डाटा पर जा रहे हैं और नवीनतम 5 दिन के औसत की गणना करने के लिए सबसे पुराने को छोड़ रहे हैं। इसलिए नाम “मूविंग” एवरेज ! 

उपरोक्त उदाहरण में, मूविंग एवरेज की गणना बंद कीमत(क्लोज) पर आधारित है। कभी-कभी, मूविंग एवरेज की गणना अन्य मापदंडों जैसे हाई, लो और ओपन का उपयोग करके भी की जाती है। हालाँकि ज्यादातर कारोबारी और निवेशक क्लोज का ही उपयोग करते हैं क्योंकि यह उस कीमत को दिखाता है जिस कीमत पर बाजार अंत में रूकता है। 

मूविंग एवरेज की गणना मिनटों, घंटों से लेकर वर्षों तक किसी भी समय सीमा के लिए की जा सकती है। अपनी आवश्यकताओं के आधार पर चार्टिंग सॉफ़्टवेयर से किसी भी समय सीमा का चयन किया जा सकता है। 

एक्सेल से परिचित लोगों के लिए, यहां बताया गया है कि एमएस एक्सेल (MS Excel) पर मूविंग एवरेज की गणना कैसे की जाती है।

सेल रेफरेंस तारीख क्लोज़ कीमत 5 दिन का एवरेज एवरेज का फार्मूला
D3 1-Jan-14 1287.7
D4 2-Jan-14 1279.25
D5 3-Jan-14 1258.95
D6 6-Jan-14 1249.7
D7 7-Jan-14 1242.4
D8 8-Jan-14 1268.75 1263.6 =AVERAGE(D3:D7)
D9 9-Jan-14 1231.2 1259.81 =AVERAGE(D4:D8)
D10 10-Jan-14 1201.75 1250.2 =AVERAGE(D5:D9)
D11 13-Jan-14 1159.2 1238.76 =AVERAGE(D6:D10)
D12 14-Jan-14 1157.25 1220.66 =AVERAGE(D7:D11)
D13 15-Jan-14 1141.35 1203.63 =AVERAGE(D8:D12)
D14 16-Jan-14 1152.5 1178.15 =AVERAGE(D9:D13)
D15 17-Jan-14 1139.6 1162.41 =AVERAGE(D10:D14)
D16 20-Jan-14 1140.6 1149.98 =AVERAGE(D11:D15)
D17 21-Jan-14 1166.35 1146.26 =AVERAGE(D12:D16)
D18 22-Jan-14 1165.4 1148.08 =AVERAGE(D13:D17)
D19 23-Jan-14 1168.25 1152.89 =AVERAGE(D14:D18)

जैसा कि यह स्पष्ट है, जब क्लोज़ कीमत बदलती है तब मूविंग एवरेज बदलता है। ऊपर की गई गणना को ‘सिंपल मूविंग एवरेज’ (SMA) भी कहा जाता है। चूंकि हम इसे नवीनतम 5 दिनों के आंकड़ों के अनुसार गणना कर रहे हैं, इसलिए इसे 5 दिन SMA कहा जाता है। 

इसके बाद, 5 दिन के इस औसत (या यह 5, 10, 50, 100, 200 दिनों की तरह कुछ भी हो सकता है) को एक रेखा से जोड़ा जाता है जिसे मूविंग एवरेज लाइन कहते हैं यह रेखा समय बढ़ने के साथ आगे बढ़ती रहती है। 

नीचे दिखाए गए चार्ट में, मैंने ACC के कैंडलस्टिक ग्राफ पर 5 दिन का SMA बनाया है।

तो एक मूविंग एवरेज क्या बताता है और इसका उपयोग कैसे करते हैं? मूविंग एवरेज के कई प्रयोग हैं और जल्दी ही मैं मूविंग एवरेज के आधार पर ट्रेड का एक सरल तरीका पेश करूंगा। लेकिन उससे पहले, चलिए एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज के बारे में जानें। 

13.2 – एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (The Exponential Moving Average) 

इस उदाहरण में उपयोग किए गए डाटा बिंदुओं पर विचार करें,

तारीख क्लोजिंग कीमत
22/07/14 240.6
23/07/14 241.8
24/07/14 242.8
25/07/14 247.9
28/07/14 250.2
कुल 1214.5

 

जब कोई इन नंबरों पर औसत की गणना करता है तो एक कल्पना की जाती है कि प्रत्येक डाटा बिंदु का महत्व एक समान है। मतलब, हम यह मान रहे हैं कि 22 जुलाई का डाटा उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि 28 जुलाई का डाटा बिंदु। हालांकि, बाजार में यह हमेशा सच नहीं हो सकता है। 

तकनीकी विश्लेषण की मूल धारणा को याद रखें – बाजार सब कुछ डिस्काउंट कर देता है। इसका मतलब है कि नवीनतम कीमत (28 जुलाई को) में बाज़ार सभी ज्ञात और अज्ञात जानकारी को डिस्काउंट कर चुका है। इससे यह भी पता चलता है कि 28 तारीख की कीमत 25 वीं तारीख की तुलना में अधिक भरोसेमंद है। 

इसलिए, डाटा के ‘नयेपन’ के आधार पर डाटा बिंदुओं को महत्व देना चाहिए। इसलिए 28 जुलाई के डाटा प्वाइंट को सबसे ज्यादा महत्व मिलता है, 25 जुलाई को अगला सबसे ज्यादा वेटेज मिलता है, 24 जुलाई को तीसरा सबसे ज्यादा वेटेज मिलता है, और इसी तरह ये सिलसिला चलता रहता है। 

ऐसा करके, मैंने नयेपन के अनुसार डाटा बिंदुओं के महत्व को बढ़ाया है – नवीनतम डाटा बिंदु को अधिकतम ध्यान दिया जाता है और सबसे पुराने डाटा बिंदु को कम से कम ध्यान दिया जाता है। 

संख्याओं के महत्व या वेटेज के आधार पर बने इस स्केल पर की गयी गणना से प्राप्त औसत हमें एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (EMA) प्रदान करती है। मैंने जानबूझकर EMA गणना भाग को छोड़ दिया,  क्योंकि अधिकांश तकनीकी विश्लेषण सॉफ़्टवेयर में हमें EMA को कीमतों पर खींचने की सुविधा मिल जाती है। इसलिए हम इसकी गणना कैसे करते हैं- ये सीखने के बजाय EMA के इस्तेमाल पर ध्यान केंद्रित करेंगे। 

यहाँ सिप्ला लिमिटेड का एक चार्ट है। मैंने सिप्ला के समापन मूल्यों पर एक 50 दिन SMA (काला) और 50 दिन EMA (लाल) प्लॉट किया है। यद्यपि SMA और EMA दोनों 50 दिन की अवधि के लिए हैं, आप देख सकते हैं कि EMA कीमतों से अधिक प्रभावित हो रहा है और इसलिए यह कीमत के ज्यादा करीब है।

EMA वर्तमान बाजार मूल्य पर सबसे तेज प्रतिक्रिया क्यों दिखाता है? क्योंकि EMA सबसे नए डाटा बिंदुओं को अधिक महत्व देता है। EMA ट्रेडर को जल्दी फैसला लेने में मदद करता है। इस कारण से, ट्रेडर SMA के बजाय EMA को प्राथमिकता देते हैं। 

13.3 – मूविंग एवरेज का एक सरल प्रयोग ( A simple application of moving averages)

मूविंग एवरेज का उपयोग सही मौके पर स्टॉक को खरीदने और बेचने के लिए किया जा सकता है। जब स्टॉक मूल्य अपने औसत मूल्य से ऊपर ट्रेड करता है, तो इसका मतलब है कि कारोबारी स्टॉक को उसकी औसत कीमत से अधिक कीमत पर खरीदने के लिए तैयार हैं। इसका मतलब यह है कि ट्रेडर को उम्मीद है कि स्टॉक का मूल्य बढेगा। इसलिए ऐसे अवसरों पर खरीदने पर ध्यान देना चाहिए। 

इसी तरह, जब स्टॉक मूल्य अपने औसत मूल्य से नीचे ट्रेड करता है, तो इसका मतलब है कि ट्रेडर अपने औसत मूल्य से कम कीमत पर स्टॉक बेचने के लिए तैयार हैं। इसका मतलब है कि ट्रेडर मानते हैं कि स्टॉक की कीमत और नीचे जा सकती है। इसलिए ऐसे में बेचने के अवसरों को देखना चाहिए। 

इन निष्कर्षों के आधार पर हम एक सरल ट्रेडिंग सिस्टम विकसित कर सकते हैं। एक ट्रेडिंग सिस्टम को नियमों का एक ऐसा समूह माना जा सकता है जो आपको एन्ट्री और एक्जिट के सही समय की पहचान करने में मदद करता है। 

अब हम 50 दिन के एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज के आधार पर एक ऐसा ही ट्रेडिंग सिस्टम बनाने की कोशिश करते हैं । याद रखें कि एक अच्छी ट्रेडिंग सिस्टम आपको ट्रेड में एन्ट्री और एक्जिट करने के लिए संकेत देता है। हम निम्नलिखित नियमों के साथ मूविंग एवरेज ट्रेड सिस्टम को विकसित कर सकते हैं: 

नियम 1) मौजूदा बाजार मूल्य यानी CMP के 50 दिन EMA से अधिक हो जाने पर खरीदें (लांग करें)। एक बार जब आप लांग करते हैं, तो आपको तब तक निवेशित रहना चाहिए जब तक कि बेचने के नियम की सही स्थिति ना आ जाए।

नियम 2) वर्तमान बाजार मूल्य यानी CMP के 50 दिन EMA से कम होने पर लांग से बाहर निकलें (स्क्वेयर ऑफ करें)।

यहां एक चार्ट है जो अंबुजा सीमेंट्स पर इस ट्रेडिंग सिस्टम के प्रयोग को दिखाता है। प्राइस चार्ट पर काली रेखा 50 दिन की EMA (एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज) है।

बाएं से शुरू करते हैं, खरीदने का पहला अवसर 165 पर नज़र आया, चार्ट पर  B1 @ 165 के रूप में इसे दिखाया गया है। ध्यान दें कि, बिंदु B1 पर, शेयर की कीमत अपने 50 दिन के EMA की तुलना में ऊपर हो गई है। इसलिए, ट्रेडिंग सिस्टम पहले नियम के अनुसार, यहाँ हम एक नया लांग बना सकते हैं। 

ट्रेडिंग सिस्टम के मुताबिक ही हम तब तक निवेशित रहते हैं जब तक हमें एक एक्जिट का संकेत नहीं मिल जाता है, जो हमें अंततः 187 पर मिला, जिसे S1 @ 187 के रूप में दिखाया गया है। इस ट्रेड से प्रति शेयर 22 रुपये का लाभ हुआ। 

लांग जाने का अगला संकेत B2 @ 178 पर आया, इसके बाद S2 @ 182 पर स्क्वायर ऑफ करने का संकेत मिला। यह ट्रेड उतना प्रभावशाली नहीं था क्योंकि इससे महज 4 रुपये का लाभ हुआ। हालांकि अंतिम ट्रेड, B3 @ 165, और S3 @ 215 काफी प्रभावशाली थे, जिसके परिणामस्वरूप 50 रुपये का लाभ हुआ। 

यहां ट्रेडिंग सिस्टम के आधार पर किए गए इन सौदों का सारांश दिया गया है:

क्रम सं खरीद कीमत बिक्री कीमत नफा/नुकसान %कमाई
1 165 187 22 13%
2 178 182 4 2.20%
3 165 215 50 30%

उपरोक्त तालिका से, यह बहुत साफ है कि पहले और अंतिम ट्रेड लाभदायक थे, लेकिन दूसरा व्यापार इतना लाभदायक नहीं था। यदि आप देखें हैं कि ऐसा क्यों हुआ, तो यह दिखेगा है कि ट्रेड 1 और 3 के दौरान, स्टॉक एक दिशा में चल रहा था, लेकिन दूसरे व्यापार के दौरान स्टॉक की दिशा साफ नहीं थी (साइडवेज था)।

यह हमें मूविंग एवरेज के बारे में एक बहुत ही महत्वपूर्ण निष्कर्ष पर ले जाता है। मूविंग एवरेज जब एक ट्रेंड में होता है तो शानदार ढंग से काम करता है और जब स्टॉक बिना ट्रेंड साइडवेज चल रहा होता है तो मूविंग एवरेज अच्छा प्रदर्शन करने में विफल रहता है। मूल रूप से इसका अर्थ है कि मूविंग एवरेज को एक ट्रेंड से जुड़ी प्रणाली मानना चाहिए। 

मूविंग एवरेज के आधार पर ट्रेडिंग के अपने निजी अनुभव से, मैंने कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं पर ध्यान दिया है: 

  1. मूविंग एवरेज आपको बिना ट्रेंड वाले (साइडवेज/ sideways) बाजार के दौरान कई ट्रेडिंग सिग्नल (खरीदने और बेचने दोनों के) देता है। इन संकेतों में से अधिकांश मामूली लाभ वाले या नुकसान वाले होते हैं। 
  2. ,लेकिन आमतौर पर उनमें से एक ट्रेड में से एक एक विशाल रैली (जैसे B3@165 वाला ट्रेड था) के परिणामस्वरूप भारी मुनाफा होता है। 
  3. कई छोटे ट्रेड से बड़े विजेता ट्रेड को अलग करना बहुत मुश्किल होगा। 
  4. इसलिए ट्रेडर को उन संकेतों में से मुनाफे वाला ट्रेड चुनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। वास्तव में, ट्रेडर को उन सभी ट्रेड को करना चाहिए जो सिस्टम सुझा रहा होता है। 
  5. याद रखें कि मूविंग एवरेज ट्रेड सिस्टम में नुकसान न्यूनतम हैं, लेकिन एक बड़ा ट्रेड सभी नुकसानों की भरपाई के लिए काफी है और आपको पर्याप्त लाभ दे सकता है। 
  6. मुनाफा कमाने वाले इस ट्रेड में आप तब तक रहते हैं जब तक कि ट्रेंड बना रहे। कभी-कभी कई महीनों तक भी। इस कारण से, मूविंग एवरेज को लांग टर्म निवेश के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 
  7. मूविंग एवरेज ट्रेडिंग सिस्टम में सफल होने की कुंजी है उन सभी ट्रेड को करना जो कि सिस्टम ने संकेतों में सुझाए हैं, उन पर अलग से विचार करके चुनना गलत होगा।

यहां बीपीसीएल (BPCL) का एक और उदाहरण है, जहां मूविंग एवरेज सिस्टम ने बिना ट्रेंड वाले साइडवेज बाजार के दौरान कई ट्रेड का सुझाव दिया था, हालांकि उनमें से कोई भी वास्तव में लाभदायक नहीं था। लेकिन, अंतिम एक ट्रेड में लगभग 5 महीनों में 67% लाभ हुआ।

13.4 – मूविंग एवरेज क्रॉसओवर प्रणाली (Moving average crossover system)

जैसा कि स्पष्ट है कि सीधे सादे मूविंग एवरेज सिस्टम के साथ समस्या यह है कि यह एक साइडवेज मार्केट में बहुत अधिक ट्रेडिंग सिग्नल उत्पन्न करता है। एक मूविंग एवरेज क्रॉसओवर प्रणाली सादे मूविंग एवरेज सिस्टम पर एक सुधार  है। यह व्यापारी को एक साइडवेज बाजार में कम ट्रेड को लेने में मदद करता है। 

मूविंग एवरेज क्रॉसओवर सिस्टम में, ट्रेडर एक मूविंग एवरेज के बजाय दो मूविंग एवरेज औसत को जोड़ते हैं। इसे आमतौर पर स्मूथिंग (Smoothing) कहा जाता है। 

इसका एक विशिष्ट उदाहरण 100 दिन के EMA के साथ 50 दिन के EMA को जोड़ना होगा। छोटे मूविंग एवरेज (इस मामले में 50 दिन) को तेज यानी फास्टर (faster) मूविंग एवरेज भी कहा जाता है। जबकि लंबे मूविंग एवरेज (100 दिन मूविंग एवरेज) को धीमी यानी स्लोवर (slower) मूविंग एवरेज कहते हैं। 

छोटे मूविंग एवरेज की गणना करने के लिए डाटा बिंदुओं की कम संख्या होती है और इसलिए यह वर्तमान बाजार मूल्य के करीब रहती है, और इसलिए अधिक तेज़ी से प्रतिक्रिया करती है।  लंबे मूविंग एवरेज की गणना करने के लिए अधिक संख्या में डाटा बिंदु होते हैं और इसलिए यह वर्तमान बाजार मूल्य से दूर रह जाता है। इसलिए इसमें प्रतिक्रियाएँ धीमी होती हैं। 

यहां बैंक ऑफ बड़ौदा का चार्ट है, जो आपको दिखा रहा है कि चार्ट पर लोड होने पर दो मूविंग एवरेज कैसे काम करते हैं।

जैसा कि आप देख सकते हैं कि 50 दिन की EMA को दिखाने वाली काली रेखा वर्तमान बाजार मूल्य के करीब है (यह तेजी से प्रतिक्रिया करता है) जबकि 100 दिन EMA (इसकी प्रतिक्रिया धीमी होती है) को दिखाने वाली गुलाबी रेखआ इससे कुछ दूर है। 

कारोबारियों ने एन्ट्री और एक्जिट प्वाइंट को बेहतर करने के लिए क्रॉसओवर सिस्टम के साथ सादे मूविंग एवरेज सिस्टम को भी संशोधित किया है। इस प्रक्रिया में, व्यापारी को बहुत कम संकेत मिलते हैं, लेकिन व्यापार के लाभदायक होने की संभावना काफी अधिक होती है।

क्रॉसओवर सिस्टम के लिए एन्ट्री और एक्जिट नियम निम्नानुसार हैं: 

नियम 1) – जब शॉर्ट टर्म मूविंग एवरेज किसी लांग टर्म मूविंग एवरेज से अधिक हो जाती है तो ट्रेडर को खरीदना (नयी लांग पोजीशन बनाना) चाहिए। इस ट्रेड में तब तक रहें जब तक यह स्थिति बनी रहे।

नियम 2) – जब शॉर्ट टर्म मूविंग एवरेज किसी स्टॉक में लांग टर्म मूविंग एवरेज से कम हो जाती है लांग ट्रेड से बाहर निकल जाना (पोजीशन स्क्वेयर ऑफ करना) चाहिए।

आइए हम पहले लिए गए BPCL उदाहरण के लिए मूविंग एवरेज क्रॉसओवर सिस्टम लागू करें। तुलना में आसानी के लिए, मैंने BPCL के चार्ट को 50 दिनों के मूविंग एवरेज के साथ पुन: पेश किया है।

ध्यान दें, जब बाजार साइडवेज चल रहे थे, MA यानी मूविंग एवरेज ने कम से कम 3 ट्रेडिंग सिग्नल का सुझाव दिया। इसमें चौथा ट्रेड मुनाफे वाला था जिसके परिणामस्वरूप 67% लाभ हुआ। 

नीचे दिखाया गया चार्ट 50 और 100 दिन EMA के साथ MA क्रॉसओवर सिस्टम के उपयोग को दिखाता है।

काली रेखा 50 दिन मूविंग एवरेज को दिखा रही है और गुलाबी रेखा 100 दिन मूविंग एवरेज को। क्रॉस ओवर नियम के अनुसार, लांग जाने का संकेत तब मिलता है जब 50 दिन मूविंग एवरेज  (कम समय वाला MA) 100 दिन मूविंग एवरेज (दीर्घकालिक MA) से अधिक हो जाती है। क्रॉसओवर पॉइंट को एक तीर से हाईलाइट किया गया है। कृपया ध्यान दें कि क्रॉसओवर सिस्टम कैसे ट्रेडर को 3 लाभहीन ट्रेड से दूर रखता है। यह क्रॉस ओवर सिस्टम का सबसे बड़ा फायदा है। 

एक ट्रेडर क्रॉसओवर सिस्टम पर MA क्रॉसओवर बनाने के लिए किसी भी संयोजन या मेल (Combination) का उपयोग कर सकता है। स्विंग ट्रेडर के लिए कुछ लोकप्रिय संयोजन हैं: 

  1. 9 दिन EMA को 21 दिन EMA के साथ – शॉर्ट टर्म के ट्रेड के लिए इसका उपयोग करें (कुछ ट्रेडिंग सत्र तक)
  2. 25 दिन EMA और 50 दिन EMA एक साथ – मीडियम टर्म के ट्रेड (कुछ हफ्तों तक) की पहचान करने के लिए इसका उपयोग करें। 
  3. 50 दिन EMA  100 दिन EMA के साथ – कुछ महीनों तक चलने वाले ट्रेडों की पहचान करने के लिए इसका उपयोग करें। 
  4. 100 दिन EMA के साथ 200 दिन EMA – लांग टर्म (निवेश के अवसरों) की पहचान करने के लिए इसका उपयोग करें, उनमें से कुछ एक वर्ष या उससे अधिक समय तक भी रह सकते हैं। 

याद रखें, अधिक समय अवधि के लिए ट्रेडिंग सिग्नल की संख्या कम होती है। 

यहां 25 x 50 EMA क्रॉसओवर का एक उदाहरण है। यहाँ तीन ट्रेडिंग संकेत हैं जो क्रॉसओवर नियम के तहत हैं।

कहने की जरूरत नहीं है कि इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए MA क्रॉसओवर सिस्टम भी लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति इंट्राडे अवसरों की पहचान करने के लिए 15 x 30 मिनट के क्रॉसओवर का उपयोग कर सकता है। एक अधिक आक्रामक कारोबारी (Aggressive trader) 5 x 10 मिनट के क्रॉसओवर का उपयोग कर सकता है। आपने बाज़ारों में यह लोकप्रिय कहावत सुनी होगी – ट्रेंड है आपका दोस्त (The trend is your friend)। मूविंग एवरेज आपको इस दोस्त को पहचानने में मदद करता है। याद रखें, MA एक ट्रेंड का अनुसरण करने वाली प्रणाली है – जब तक एक ट्रेंड है, मूविंग एवरेज शानदार ढंग से काम करता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप किस समय सीमा का उपयोग करते हैं या कौन से संयोजन का इस्तेमाल करते हैं। 


इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. औसत- गणना संख्याओं की एक श्रृंखला का जल्दी से निकाला गया अनुमान है। 
  2. एक मूविंग एवरेज गणना में जहां नवीनतम डाटा शामिल होता है, और सबसे पुराने डाटा को बाहर रखा जाता है ।
  3. सरल मूविंग एवरेज (SMA) श्रृंखला के सभी डेटा बिंदुओं को समान भार देता है।
  4. एक ऐक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (EMA) डाटा को उसके नयेपन के अनुसार मापता है। नए डेटा को अधिकतम वेटेज मिलता है और सबसे पुराने को सबसे कम वेटेज मिलता है। 
  5. सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, SMA की जगह EMA का उपयोग करें। ऐसा इसलिए है क्योंकि EMA सबसे नए डाटा बिंदुओं को अधिक वेटेज देता है। 
  6. वर्तमान बाजार मूल्य EMA से अधिक होने पर आउटलुक तेजी का होता है। वर्तमान बाजार मूल्य EMA से कम होने पर आउटलुक मंदी का हो जाता है। 
  7. बिना ट्रेंड वाले मार्केट में, मूविंग एवरेज के इस्तेमाल से लगातार नुकसान हो सकता है। इसे दूर करने के लिए EMA क्रॉसओवर प्रणाली को अपनाया जाता है। 
  8. एक EMA क्रॉसओवर सिस्टम में, मूल्य चार्ट को  दो EMA के साथ रखा जाता है। छोटा EMA प्रतिक्रिया करने में तेज़ होता है, जबकि लंबे समय का EMA प्रतिक्रिया करने में धीमा होता है। 
  9. जब तेज EMA धीमी EMA से ऊपर होता है और उसके पार हो जाता है तो दृष्टिकोण तेजी का हो जाता है। ऐसे में स्टॉक खरीदने पर विचार करना चाहिए। ये ट्रेड उस बिंदु तक रहता है जहां तेज EMA धीमे EMA से नीचे जाने लगता है।
  10.  एक क्रॉसओवर सिस्टम के लिए समय सीमा जितनी लंबी होती है, ट्रेडिंग सिग्नल उतने ही कम होते हैं।

The post मूविंग एवरेज appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ae%e0%a5%82%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-%e0%a4%8f%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%9c-moving-averages/feed/ 73 M2-Ch13-title M2-Ch13-chart1 M2-Ch13-chart2 M2-Ch13-chart3 M2-Ch13-chart4 M2-Ch13-chart5 M2-Ch13-chart6 M2-Ch13-chart7 M2-Ch13-chart8
इंडिकेटर्स -भाग 1 https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:54:33 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5723 यदि आप किसी ट्रेडर के ट्रेडिंग टर्मिनल पर स्टॉक चार्ट को देखते हैं, तो आपको चार्ट पर कई तरह की रेखाएं दिखेंगी। इनको ‘टेक्निकल इंडिकेटर्स’ कहा जाता है। टेक्निकल इंडिकेटर एक ट्रेडर को स्टॉक की कीमत में हो रहे फेरबदल का विश्लेषण करने में मदद करता है। टेक्निकल इंडिकेटर एक स्वतंत्र ट्रेडिंग सिस्टम है जो […]

The post इंडिकेटर्स -भाग 1 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

यदि आप किसी ट्रेडर के ट्रेडिंग टर्मिनल पर स्टॉक चार्ट को देखते हैं, तो आपको चार्ट पर कई तरह की रेखाएं दिखेंगी। इनको ‘टेक्निकल इंडिकेटर्स’ कहा जाता है। टेक्निकल इंडिकेटर एक ट्रेडर को स्टॉक की कीमत में हो रहे फेरबदल का विश्लेषण करने में मदद करता है।

टेक्निकल इंडिकेटर एक स्वतंत्र ट्रेडिंग सिस्टम है जो दुनिया के सफल ट्रेडर्स ने बनाया है। टेक्निकल इंडिकेटर्स एक प्रीसेट लॉजिक (preset logic) पर बनाए गए हैं, जिनका उपयोग करके एक ट्रेडर अपने टेक्निकल एनालिसिस (कैंडलस्टिक्स, वॉल्यूम, S&R) को और मजबूत कर सकता है। इंडिकेटर्स ट्रेडिंग से जुड़े फैसले, जैसे खरीदना, बेचना, ट्रेड की पुष्टि करना और कभी-कभी ट्रेंड की भविष्यवाणी करने में मदद करता है।

टेक्निकल इंडिकेटर्स दो प्रकार के होते हैं लीडिंग (Leading) और लैगिंग (Lagging)। एक लीडिंग इंडिकेटर कीमत के आगे चलता है, जिसका अर्थ है कि आम तौर पर यह पहले से ही ट्रेंड में रिवर्सल (यानी बदलाव) या एक नए ट्रेंड के बनने का संकेत दे देता है। ये लगता बहुत रोचक है लेकिन यहाँ आपको ध्यान देना चाहिए कि सभी लीडिंग इंडिकेटर्स सटीक नहीं हैं। लीडिंग इंडिकेटर्स झूठे संकेत देने के लिए कुख्यात हैं। इसलिए, लीडिंग इंडिकेटर्स का उपयोग करते समय कारोबारी को अत्यधिक सतर्क होना चाहिए। वास्तव में ट्रेडिंग के अनुभव के साथ लीडिंग इंडिकेटर्स का उपयोग करने की कुशलता बढ़ जाती है।

अधिकांश लीडिंग इंडिकेटर्स को ऑसिलेटर (Oscillators) कहा जाता है क्योंकि वे एक तय सीमा के भीतर ही इधर उधर घूमा करते हैं। आमतौर पर एक ऑसिलेटर दो मूल्यों के बीच ही रहता है – उदाहरण के लिए 0 से 100 के बीच। ऑसिलेटर की रीडिंग (उदाहरण के लिए 55, 70 आदि) के आधार पर ट्रेडिंग की व्याख्या अलग-अलग होती है। 

दूसरी ओर एक लैगिंग इंडिकेटर कीमत के पीछे चलता है; इसका अर्थ यह है कि आमतौर पर यह ट्रेंड रिवर्सल या एक नए ट्रेंड के घटित होने के बाद संकेत देता है। आप सोच सकते हैं कि घटना घटने के बाद संकेत मिलने का क्या फायदा होगा? खैर, संकेत ना मिलने से कहीं बेहतर है बाद में संकेत मिल जाना। सबसे लोकप्रिय लैगिंग इंडिकेटर्स में से एक है–  मूविंग एवरेजेस (Moving Averages)। 

आप सोच रहे होंगे कि अगर मूविंग एवरेज अपने आप में एक इंडिकेटर है, तो हमने इंडिकेटर्स पर चर्चा करने से पहले ही इसकी चर्चा क्यों की? कारण यह है कि मूविंग एवरेज अपने आप में एक मूल सिद्धांत है। RSI, MACD, स्टोकस्टिक (Stochastic) जैसे कई इंडिकेटर्स में मूविंग एवरेजेस का उपयोग होता है। इस कारण से, हमने एक अलग विषय के रूप में मूविंग एवरेजेस पर चर्चा की। 

इससे पहले कि हम अलग अलग इंडिकेटर्स को समझने के लिए आगे बढ़ें, मुझे लगता है कि हमें मोमेंटम (momentum) यानी गति/वेग का मतलब समझ लेना चाहिए। मोमेंटम वह दर है जिस पर कीमत बदलती है। उदाहरण के लिए यदि स्टॉक की कीमत आज 100 रुपये है और यह अगले दिन 105 रुपये तक जाती है, और एक दिन बाद 115 तक, हम कहते हैं कि मोमेंटम अधिक है क्योंकि स्टॉक की कीमत केवल 3 दिनों में 15% बदल गई है। हालाँकि अगर यही 15% बदलाव 3 महीने में होता तो हम कहते कि मोमेंटम कम है। तो जितनी तेजी से कीमत बदलती है, मोमेंटम उतना ही अधिक होता है।

14.1 – रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (Relative Strength Index)

रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स या सिर्फ RSI एक लोकप्रिय इंडिकेटर है जिसे जे. वेल्स वाइल्डर ने विकसित किया है। RSI एक लीडिंग इंडिकेटर है जो एक ट्रेंड रिवर्सल की पहचान करने में मदद करता है। RSI इंडिकेटर 0 और 100 के बीच ही रहता है, और इस इंडिकेटर की नवीनतम रीडिंग के आधार पर, बाजार की दिशा का अनुमान लगाया जाता है। 

“रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स” शब्द थोड़ा भ्रामक हो सकता है क्योंकि यह दो शेयरों की तुलना नहीं करता है, बल्कि इसके बजाय स्टॉक की आंतरिक ताकत को दिखाता है। RSI सबसे लोकप्रिय लीडिंग इंडिकेटर है, जो साइडवेज बाजार में और बिना ट्रेंड वाले बाजार में रेंज की अवधि के दौरान सबसे मजबूत संकेत देता है। 

RSI की गणना करने का फार्मूला ये है:

इस इंडिकेटर को निम्नलिखित उदाहरण की सहायता से समझते हैं: मान लें कि एक स्टॉक 99 पर कारोबार कर रहा है, इसे दिन 0 मान लें और अब निम्न डाटा पर विचार करें:  

क्रम सं क्लोजिंग प्राइस प्वाइंट्स बढत प्वाइंट्स नुकसान
1 100 1 0
2 102 2 0
3 105 3 0
4 107 2 0
5 103 0 4
6 100 0 3
7 99 0 1
8 97 0 2
9 100 3 0
10 105 5 0
11 107 2 0
12 110 3 0
13 114 4 0
14 118 4 0
कुल 29 10

उपरोक्त तालिका में, प्वाइंट्स में बढत/नुकसान पिछले दिन के क्लोज से प्वाइंट्स में बढत/नुकसान को दिखा रहे हैं। उदाहरण के लिए यदि आज का क्लोज 104 है और कल का क्लोज 100 था, तो प्वाइंट्स में बढत 4 की होगी और नुकसान 0 प्वाइंट का.। यदि आज का क्लोज 104 था और पिछले दिन का क्लोज 107 था, तो बढत  0 प्वाइंट और नुकसान 3 प्वाइंट का होगा। कृपया ध्यान दें कि, हार की गणना सकारात्मक मान के रूप में की जाती है।

हमने गणना के लिए 14 डाटा बिंदुओं का उपयोग किया है, जो चार्टिंग सॉफ़्टवेयर में डिफ़ॉल्ट सेटिंग (Default setting) है। इसे ‘लुक-बैक पीरियड (Look back period)‘ भी कहा जाता है। यदि आप प्रति घंटा वाले चार्ट का विश्लेषण कर रहे हैं तो डिफ़ॉल्ट (Default) अवधि 14 घंटे है, और यदि आप दैनिक चार्ट का विश्लेषण कर रहे हैं, तो डिफ़ॉल्ट अवधि 14 दिन है। 

पहला कदम ‘RS’ की गणना करना है जिसे RSI फैक्टर भी कहा जाता है। जैसा कि आप RS के फार्मूले में देख सकते हैं, कि प्वाइंट में औसत नुकसान और औसत बढत के अनुपात को RS कहते हैं।

प्वाइंट में औसत बढत = 29/14 

= 2.07 

प्वाइंट में औसत नुकसान = 10/14 

= 0.714 

RS = 2.07 / 0.714 

= 2.8991 

RSI के फार्मूले में RS को डालने पर, 

= 100 – [100 / (1 + 2.8991)] 

= 100 – [100 / 3.8991] 

= 100 – 25.6469 

RSI = 74.3531

जैसा कि आप देख सकते हैं RSI की गणना काफी सरल है। RSI के उपयोग से ट्रेडर को अधिक खरीदे हुए (ओवरबॉट/ overbought) और अधिक बिके हुए (ओवरसोल्ड/ oversold) कीमत वाले क्षेत्र की पहचान करने में मदद मिलती है। ओवरबॉट का अर्थ है कि स्टॉक में खरीद का यानी पॉजिटिव मोमेंटम इतना अधिक है कि यह लंबे समय तक टिक नहीं सकता है और इसलिए इसमें करेक्शन हो सकता है। इसी तरह, एक ओवरसोल्ड स्थिति बताती है कि निगेटिव मोमेंटम काफी अधिक है एक रिवर्सल संभव है। 

सिप्ला लिमिटेड के चार्ट पर एक नज़र डालें, आपको बहुत सारे दिलचस्प घटनाक्रम मिलेंगे।

सबसे पहले, प्राइस चार्ट के नीचे की लाल रेखा 14 अवधि RSI दिखा रही है। यदि आप RSI के पैमाने पर ध्यान देते हैं, तो आपको इसकी ऊपरी सीमा 100 तक महसूस होगी, और निचली 0 तक। हालांकि 100 और 0 आपको चार्ट में दिखाई नहीं देंगे।

जब RSI रीडिंग 30 से 0 के बीच होती है, तो स्टॉक ओवरसोल्ड होता है और करेक्शन के लिए तैयार होना चाहिए। जब रीडिंग 70 से 100 के बीच होती है, तो स्टॉक भारी मात्रा में खरीदा जा चुका है यानी ओवरबॉट है और यह नीचे की ओर करेक्शन के लिए तैयार है। 

बाईं ओर से चिह्नित पहली खड़ी रेखा (vertical line) एक स्तर दिखाती है जहां RSI 30 से नीचे है, वास्तव में RSI 26.8 है। मतलब RSI सुझाव दे रहा है कि स्टॉक ओवरसोल्ड है। इस उदाहरण में, 26.8 का RSI मूल्य, एक बुलिश एनगल्फिंग पैटर्न के साथ जुड़ रहा है। यह ट्रेडर को लांग जाने की दोहरी पुष्टि देता है! कहने की जरूरत नहीं है कि वॉल्यूम और S&R को भी इसकी पुष्टि करनी चाहिए। 

दूसरी खड़ी रेखा (vertical line) उस स्तर की ओर इशारा करती है जहां RSI 81 हो जाता है, जिस जगह इसे ओवरबॉट माना जाता है। इसलिए, यदि शॉर्ट करने का इरादा न हो तो फिर ट्रेडर को इस स्टॉक को खरीदने के अपने निर्णय में सावधानी बरतनी चाहिए। यदि आप फिर कैंडल पर नजर डालते हैं, तो वे एक बेयरिश एनगल्फिंग पैटर्न बनाते दिखेंगे। तो बेयरिश एनगल्फिंग पैटर्न और 81 का RSI मिल कर स्टॉक को शॉर्ट करने के लिए संकेत दे रहे हैं। इसके बाद स्टॉक में एक तेज और एक छोटा करेक्शन है। 

मैंने यहां जो उदाहरण दिखाया है वह काफी अच्छा है, जिसका अर्थ है कि कैंडलस्टिक पैटर्न और RSI दोनों एक ही घटना की पुष्टि करने के लिए पूरी तरह से सामंजस्य में हैं। हमेशा ऐसा नहीं हो सकता है। यह RSI की व्याख्या करने के लिए हमें एक और दिलचस्प तरीके की तरफ ले जाता है। निम्नलिखित दो परिदृश्यों की कल्पना करें:

परिदृश्य 1) ​​एक स्टॉक जो निरंतर अपट्रेंड में है (याद रखें कि अपट्रेंड कुछ दिनों से कुछ वर्षों तक रह सकता है) का RSI लंबे समय तक ओवरबॉट क्षेत्र में अटका रह सकता है, इसकी वजह यह है कि RSI ऊपरी सिरे पर 100 से बंधा हुआ है। यह 100 के पार नहीं जा सकता है। ऐसे में ट्रेडर शॉर्ट करने के अवसरों को देख रहा होगा लेकिन दूसरी ओर स्टॉक एक अलग ज़ोन में होगा। उदाहरण – आयशर मोटर्स लिमिटेड के स्टॉक ने वर्ष दर वर्ष लगभग 100% का रिटर्न दिया है। 

परिदृश्य 2) एक स्टॉक जो निरंतर गिरावट में है उसका RSI ओवरसोल्ड क्षेत्र में अटक जाएगा क्योंकि RSI 0 से कम नहीं जा सकता है। इस मामले में ट्रेडर खरीद के अवसरों की तलाश में रहेगा लेकिन स्टॉक नीचे गिरता जा रहा है। उदाहरण – सुजलॉन एनर्जी, इस स्टॉक ने वर्ष दर वर्ष 34% का निगेटिव रिटर्न दिया है। 

यह हमें बताता है कि RSI की सिर्फ एक क्लासिक व्याख्या ही नहीं बल्कि कई और अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की जा सकती है। 

  1. यदि RSI एक लंबी अवधि के लिए एक ओवरबॉट क्षेत्र में है, तो शॉर्टिंग के बजाय खरीदने के अवसरों को देखें। RSI एक बहुत अधिक पॉजिटिव मोमेंटम के कारण लंबे समय तक के लिए ओवरबॉट क्षेत्र में रहता है 
  2. यदि RSI एक लंबी अवधि के लिए ओवरसोल्ड क्षेत्र में है, तो खरीदने के बजाय बेचने के अवसरों की तलाश करें। RSI अधिक निगेटिव मोमेंटम के कारण लंबे समय तक ओवरसोल्ड क्षेत्र में रहता है। 
  3. यदि लंबे समय के बाद RSI ओवरसोल्ड क्षेत्र से दूर जाने लगता है, तो ऐसे अवसरों पर खरीदने के मौके देखें। उदाहरण के लिए, RSI लंबे समय के बाद 30 से ऊपर चला जाता है इसका मतलब यह हो सकता है कि स्टॉक का बॉटम बन गया है, और अब लांग करने का समय है।
  4. यदि लंबे समय के बाद RSI ओवरबॉट क्षेत्र से दूर जाना शुरू करता है, तो बिक्री के अवसरों की तलाश करें। उदाहरण के लिए, RSI लंबे समय के बाद 70 से नीचे जा रहा है। इसका मतलब है कि स्टॉक में टॉप बन गया है, इसलिए शॉर्टिंग के लिए सही समय है।

14.2 – एक और बात (One last note)

RSI का विश्लेषण करते समय उपयोग किए गए मापदंडों में से कोई भी जड़ता के साथ इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, जे.वेल्स वाइल्डर ने 14 दिनों के लुक बैक पीरियड का उपयोग करने का विकल्प चुना, क्योंकि इसने 1978 में बाजार की स्थितियों (जब RSI को दुनिया में पेश किया गया था) पर विश्लेषण करते हुए सर्वोत्तम परिणाम दिए। आप चाहें तो 5,10,20 या 100 दिन की अवधि का उपयोग कर सकते हैं। वास्तव में इस तरह से आप एक ट्रेडर के रूप में अपने को विकसित करते हैं। आपको यह विश्लेषण करने की आवश्यकता है कि आपके लिए क्या सही काम कर रहा है और उसी को अपनाएं। कृपया याद रखें कि RSI की गणना करने के लिए आप जितने कम दिनों का उपयोग करते हैं, इंडिकेटर उतना अधिक अस्थिर होगा।

इसके अलावा, जे.वेल्स वाइल्डर ने ओवरबॉट रीजन को दिखाने  के लिए ओवरसोल्ड क्षेत्रों और 70-100 के स्तर को इंगित करने के लिए 0-30 स्तर का उपयोग करने का निर्णय लिया। फिर से कहता हूं कि यह पत्थर की लकीर नहीं है, आप अपने संयोजन पर पहुंच सकते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से क्रमशः ओवरसोल्ड और ओवरबॉट क्षेत्रों की पहचान करने के लिए 0-20 स्तर और 80-100 स्तर का उपयोग करना पसंद करता हूं। मैं इसका उपयोग शास्त्रीय यानी क्लासिक 14 दिन के लुक बैक पीरियड के साथ करता हूं। बेशक, मैं आपसे उन मापदंडों का पता लगाने का आग्रह करता हूं जो आपके लिए काम करते हैं। वास्तव में यही है कि जो आप अंततः एक सफल व्यापारी के रूप में विकसित करेगा। 

अंत में, याद रखें कि कारोबारी अक्सर RSI का उपयोग अकेले नहीं करते हैं, बाजार का अध्ययन करने के लिए इसका उपयोग दूसरे कैंडलस्टिक पैटर्न और इंडिकेटर्स के साथ किया जाता है।


इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. इंडिकेटर्स सफल व्यापारियों द्वारा विकसित किया गया एक स्वतंत्र ट्रेडिंग सिस्टम है।
  2. इंडिकेटर्स लीडिंग या लैगिंग होते हैं। लीडिंग इंडिकेटर्स किसी संभावित घटना का संकेत देते हैं। दूसरी ओर लैगिंग इंडिकेटर्स एक ट्रेंड की पुष्टि करता है। 
  3. RSI एक मोमेंटम ऑसिलेटर है जो 0 और 100 के स्तर के बीच रहता है। 
  4. RSI का 0 और 30 के बीच रहने का मतलब है कि स्टॉक ओवरसोल्ड है, इसलिए ट्रेडर को खरीदने के अवसरों को देखना चाहिए। 
  5. RSI के 70 और 100 के बीच होने को ओवरबॉट का संकेत माना जाता है, इसलिए ट्रेडर को बेचने के अवसरों को देखना चाहिए। 
  6. यदि RSI मूल्य एक क्षेत्र में लंबे समय तक टिक जाता है, तो यह बहुत ज्यादा मोमेंटम को दिखाता है और ऐसे में रिवर्सल की संभावना कम होती है, इसलिए ऐसे में ट्रेडर को मोमेंटम की दिशा में ही ट्रेड करने पर विचार करना चाहिए।

 

The post इंडिकेटर्स -भाग 1 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/feed/ 61 M2-Ch14-title M2-Ch14-Chart1 M2-Ch14-Chart2
इंडिकेटर्स -भाग 2 https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2-indicators-part-2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2-indicators-part-2/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:54:30 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5725 15.1 मूविंग एवरेज कन्वर्जेंस एंड डाइवर्जेंस (Moving Average Convergence and Divergence – MACD)  सत्तर के दशक के अंत में जेराल्ड एपेल ने मूविंग एवरेज कन्वर्जेंस एंड डाइवर्जेंस (MACD) इंडिकेटर विकसित किया था। कारोबारी MACD को सबसे पुराना और महत्वपूर्ण इंडिकेटर मानते हैं। इसका आविष्कार सत्तर के दशक में किया गया था, लेकिन मोमेंटम ट्रेडर अभी […]

The post इंडिकेटर्स -भाग 2 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

15.1 मूविंग एवरेज कन्वर्जेंस एंड डाइवर्जेंस (Moving Average Convergence and Divergence – MACD

सत्तर के दशक के अंत में जेराल्ड एपेल ने मूविंग एवरेज कन्वर्जेंस एंड डाइवर्जेंस (MACD) इंडिकेटर विकसित किया था। कारोबारी MACD को सबसे पुराना और महत्वपूर्ण इंडिकेटर मानते हैं। इसका आविष्कार सत्तर के दशक में किया गया था, लेकिन मोमेंटम ट्रेडर अभी भी MACD को सबसे विश्वसनीय इंडिकेटर्स में से एक मानते हैं। 

जैसा कि नाम से भी पता चलता है, MACD दो मूविंग एवरेजेस के एक जगह मिलने (संमिलन– Convergence) और अंतर (विचलन– Divergence) के बारे में है। संमिलन तब होता है जब दो मूविंग एवरेज एक दूसरे की ओर बढ़ते हैं, और एक विचलन तब होता है जब मूविंग एवरेज एक दूसरे से दूर जाते हैं। 

एक आम MACD की गणना 12 दिन EMA और 26 दिन EMA का उपयोग करके की जाती है। कृपया ध्यान दें कि दोनों EMA क्लोजिंग कीमत पर आधारित हैं। संमिलन और विचलन (Convergence & Divergence – CD) का अनुमान लगाने के लिए हम 12 दिन EMA से 26 EMA घटाते हैं। इसका एक सरल रेखा ग्राफ अक्सर ‘MACD लाइन’ के रूप में जाना जाता है। पहले गणना समझ लें और फिर MACD का उपयोग समझेंगे।

तारीख क्लोज़ 12दिनEMA 26दिनEMA MACDलाइन
1-जनवरी-14 6302
2-जनवरी-14 6221
3-जनवरी-14 6211
6-जनवरी-14 6191
7-जनवरी-14 6162
8-जनवरी-14 6175
9-जनवरी-14 6168
10-जनवरी-14 6171
13-जनवरी-14 6273
14-जनवरी-14 6242
15-जनवरी-14 6321
16-जनवरी-14 6319
17-Jan-14 6262 6230
20-जनवरी-14 6304 6226
21-जनवरी-14 6314 6233
22-जनवरी-14 6339 6242
23-जनवरी-14 6346 6254
24-जनवरी-14 6267 6269
27-जनवरी-14 6136 6277
28-जनवरी-14 6126 6274
29-जनवरी-14 6120 6271
30-जनवरी-14 6074 6258
31-जनवरी-14 6090 6244
3-फरवरी-14 6002 6225
4-फरवरी-14 6001 6198
5-फरवरी-14 6022 6176
6-फरवरी-14 6036 6153 6198 -45
7-फरवरी-14 6063 6130 6188 -58
10-फरवरी-14 6053 6107 6182 -75
11-फरवरी-14 6063 6083 6176 -94
12-फरवरी-14 6084 6066 6171 -106
13-फरवरी-14 6001 6061 6168 -107

हम ऊपर की तालिका पर बाईं ओर से नज़र डालना शुरू करते हैं: 

  1. हमारे पास 1 जनवरी 2014 से शुरू हो रही तारीखें हैं।
  2. तारीखों के बाद हमारे पास निफ्टी का समापन मूल्य (क्लोज कीमत) है।
  3. हम 12 दिन EMA की गणना करने के लिए पहले 12 डाटा बिंदुओं (निफ्टी की बंद कीमत) को छोड़ देते हैं। 
  4. हम 26 दिन EMA की गणना करने के लिए पहले 26 डाटा प्वाइंट छोड़ते हैं। 
  5. एक बार जब हमें 12 दिन और 26 दिन EMA एक दूसरे के समानांतर मिलने लगते हैं (6 फरवरी 2014 से) तो हम MACD की गणना करते हैं।
  6. MACD मूल्य = [12 दिन EMA – 26 दिन EMA] उदाहरण के लिए 6 फरवरी 2014 को, 12 दिन EMA 6153 था, और 26 दिन EMA 6198 था, इसलिए MACD 6153-6198 = – 45 होगा। 

जब हम 12 और 26 दिन EMA के आधार पर MACD की गणना करते हैं और इसे एक रेखा ग्राफ के रूप में प्लॉट करते हैं, तो हमें MACD लाइन मिलती है, जो केंद्रीय रेखा के ऊपर और नीचे घूमती रहती है।

तारीख क्लोज 12दिनEMA 26दिनEMA MACDलाइन
1-Jan-14 6302
2-Jan-14 6221
3-Jan-14 6211
6-Jan-14 6191
7-जनवरी-14 6162
8-जनवरी-14 6175
9-जनवरी-14 6168
10-जनवरी-14 6171
13-जनवरी-14 6273
14-जनवरी-14 6242
15-जनवरी-14 6321
16-जनवरी-14 6319
17-जनवरी-14 6262 6230
20-जनवरी-14 6304 6226
21-जनवरी-14 6314 6233
22-जनवरी-14 6339 6242
23-जनवरी-14 6346 6254
24-जनवरी-14 6267 6269
27-जनवरी-14 6136 6277
28-जनवरी-14 6126 6274
29-जनवरी-14 6120 6271
30-जनवरी-14 6074 6258
31-जनवरी-14 6090 6244
3-फरवरी-14 6002 6225
4-फरवरी-14 6001 6198
5-फरवरी-14 6022 6176
6-फरवरी-14 6036 6153 6198 -45
7-फरवरी-14 6063 6130 6188 -58
10-फरवरी-14 6053 6107 6182 -75
11-फरवरी-14 6063 6083 6176 -94
12-फरवरी-14 6084 6066 6171 -106
13-फरवरी-14 6001 6061 6168 -107
14-फरवरी-14 6048 6051 6161 -111
17-फरवरी-14 6073 6045 6157 -112
18-फरवरी-14 6127 6045 6153 -108
19-फरवरी-14 6153 6048 6147 -100
20-फरवरी-14 6091 6060 6144 -84
21-फरवरी-14 6155 6068 6135 -67
24-फरवरी-14 6186 6079 6129 -50
25-फरवरी-14 6200 6092 6126 -34
26-फरवरी-14 6239 6103 6122 -19
28-फरवरी-14 6277 6118 6119 -1
3-मार्च-14 6221 6136 6117 20
4-मार्च-14 6298 6148 6112 36
5-मार्च-14 6329 6172 6113 59
6-मार्च-14 6401 6196 6121 75
7-मार्च-14 6527 6223 6131 92
10-मार्च-14 6537 6256 6147 110
11-मार्च-14 6512 6288 6165 124
12-मार्च-14 6517 6324 6181 143
13-मार्च-14 6493 6354 6201 153
14-मार्च-14 6504 6380 6220 160

: 400;”>MACD

मूल्य को देखने के बाद, कुछ प्रश्नों के उत्तर देने की कोशिश करें: 

  1. एक निगेटिव MACD क्या दिखाता है?
  2. पॉजिटिव MACD क्या दिखाता है?
  3. MACD के अधिक या कम होने का क्या मतलब होता है? एक -90 MACD बनाम एक – 30 MACD क्या बताता है? 

MACD से जुड़ा संकेत स्टॉक की चाल की दिशा को बताता है। उदाहरण के लिए यदि 12 दिन EMA 6380 है, और 26 दिन EMA 6220 है तो MACD मूल्य +160 है। अब आपको क्या लगता है कि किस परिस्थिति में 12 दिन EMA 26 दिन EMA से अधिक होगा? वैसे हमने इस पर मूविंग एवरेज अध्याय में ध्यान दिया था। शॉर्ट टर्म एवरेज आम तौर पर लांग टर्म एवरेज से अधिक होगा खासकर तब जबकि स्टॉक की कीमत ऊपर की ओर चल रही हो। यह भी याद रखें कि शॉर्ट टर्म एवरेज हमेशा लांग टर्म एवरेज की तुलना में मौजूदा बाजार मूल्य (CMP) के प्रति अधिक प्रतिक्रियाशील होगा। इसलिए एक पॉजिटिव संकेत हमें बताता है कि स्टॉक में पॉजिटिव मोमेंटम है, और स्टॉक ऊपर की तरफ बढ़ रहा है। जितना अधिक मोमेंटम उतनी अधिक उछाल। उदाहरण के लिए, +160 एक सकारात्मक प्रवृत्ति को दिखाता है और ये +120 से अधिक मजबूत है। 

हालांकि, मैग्नीट्यूड (Magnitude) के साथ काम करते समय ये हमेशा याद रखें कि स्टॉक की कीमत मैग्नीट्यूड को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, बैंक निफ्टी जैसी कोई चीज जिसकी खुद की कीमत अधिक है उसके लिए MACD का मैग्नीट्यूड उतना ही अधिक होगा। 

जब MACD निगेटिव है, तो इसका मतलब है कि 12 दिन EMA 26 दिन EMA से कम है। इसलिए मोमेंटम भी निगेटिव है। MACD का मैग्नीट्यूड जितना होगा, निगेटिव मोमेंटम में उतनी अधिक ताकत होगी। 

दो मूविंग एवरेज के बीच के अंतर को MACD स्प्रेड (MACD Spread) कहा जाता है। जब मोमेंटम कम हो जाता है तो स्प्रेड कम हो जाता है और मोमेंटम बढ़ने पर स्प्रेड बढ़ जाता है। संमिलन और विचलन को देखने के लिए कारोबारी आमतौर पर MACD का चार्ट बनाते हैं, जिन्हें अक्सर MACD लाइन कहा जाता है। 

1 जनवरी 2014 से 18 अगस्त 2014 तक के डाटा बिंदुओं के लिए निफ्टी का MACD लाइन चार्ट नीचे है।

जैसा कि आप देख सकते हैं कि MACD लाइन एक जीरो लाइन के आसपास है। इसे ‘सेंटर लाइन’ भी कहा जाता है। MACD की मूल व्याख्या यह है कि: 

  1. जब MACD रेखा, केंद्र रेखा को पार निगेटिव से पॉजिटिव क्षेत्र में आती है, तो इसका मतलब है कि दो एवरेज के बीच विचलन है। यह तेजी से बढते मोमेंटम का संकेत है; इसलिए इसे एक खरीदने के मौके के तौर पर देखना चाहिए। उपर के चार्ट में हम इस 27 फरवरी के आसपास ऐसा होता देख सकते हैं। 
  2. जब MACD रेखा, केंद्र रेखा को पार कर के पॉजिटिव क्षेत्र से निगेटिव क्षेत्र में आती है तो इसका मतलब है कि दो औसत के बीच संमिलन है। यह बढती मंदी की निशानी है; इसलिए इसको बिक्री के अवसरों के तौर पर देखना चाहिए। जैसा कि आप ऊपर के चार्ट में देख सकते हैं कि MACD दो बार लगभग निगेटिव हो गया था (8 मई और 24 जुलाई को) लेकिन फिर ये सिर्फ सेंटर लाइन पर ही रुक गया और इसकी दिशा उलट गयी।

आमतौर पर कारोबारियों का तर्क होता है कि अगर आप MACD रेखा के केंद्र रेखा को पार करने का इंतजार करते हैं तो शेयर में आ रही चाल लगभग खत्म हो जाती है और ट्रेड करने का मौका नहीं रह जाता। इस समस्या से निपटने के लिए MACD लाइन में एक बदलाव किया जाता है। यह बदलाव MACD में एक और चीज को जोड़ कर लाया जाता है 9 दिन की सिग्नल लाइन को जोड़ कर। 9 दिन की सिग्नल लाइन MACD लाइन की एक एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (EMA) है।  तो हमारे पास दो लाइनें हैं: 

  1. एक MACD लाइन। 
  2. MACD लाइन के 9 दिन के EMA की लाइन, इसको सिग्नल लाइन भी कहा जाता है।

इन दो लाइन के साथ, ट्रेडर सरल 2 लाइन क्रॉसओवर रणनीति बना सकता है जैसा कि मूविंग एवरेजेस के अध्याय में बताया गया है, और ट्रेडर को अब सेंटर लाइन क्रॉस ओवर का इंतजार नहीं करना होगा। 

  1. जब MACD लाइन 9 दिन EMA को पार कर जाती है तो सेंटीमेंट बुलिश होता है और इसमें MACD लाइन 9 दिन EMA से अधिक होती है। जब ऐसा होता है, तो ट्रेडर को खरीदना चाहिए। 
  2. जब MACD लाइन 9 दिन EMA से नीचे हो जाती है, तो MACD लाइन 9 दिनों की EMA से कम होती है। जब ऐसा होता है, तो ट्रेडर को बेचना चाहिए। 

एशियन पेंट्स लिमिटेड पर MACD इंडिकेटर का चार्ट नीचे है। आप देख सकते हैं कि MACD मूल्य चार्ट के नीचे है।

यहां इंडिकेटर MACD के साधारण मापदंडों का उपयोग करता है: 

  1. क्लोजिंग कीमतों का 12 दिन EMA
  2. क्लोजिंग कीमतों का 26 दिन EMA 
  3. MACD लाइन (12 दिन EMA – 26 दिन EMA) को काले रंग की लाइन से दिखाया गया है।  
  4. MACD लाइन के 9 दिन EMA को लाल रंग की लाइन से दिखाया गया है।

चार्ट की खड़ी (vertical) लाइनें चार्ट पर क्रॉसओवर बिंदुओं को दिखाती हैं जहां पर या तो खरीदने या बेचने का संकेत सामने आया है। 

उदाहरण के लिए, बाईं तरफ की पहली खड़ी लाइन एक क्रॉसओवर को दिखाती है जहां MACD लाइन सिग्नल लाइन (9 दिन EMA) के नीचे है और एक शॉर्ट ट्रेड सुझाती है। 

बाईं तरफ की दूसरी खड़ी (vertical) लाइन एक ऐसे क्रॉसओवर की ओर इशारा करती है जहां MACD लाइन सिग्नल लाइन के ऊपर है, इसलिए यहां खरीदने का अवसर है। इसी तरह आगे भी चलता है। 

कृपया ध्यान दें, MACD सिस्टम के मूल में मूविंग एवरेजेस हैं। इसलिए MACD इंडिकेटर में एक मूविंग एवरेज सिस्टम के समान ही गुण हैं। जब एक मजबूत ट्रेंड होता है तो वे काफी अच्छी तरह से काम करते हैं और जब बाजार साइडवेज या बिना ट्रेंड के चल रहे होते हैं तो ये इंडिकेटर बहुत उपयोगी नहीं होते हैं । आप इसे बाईं ओर की पहली दो लाइन के बीच नोटिस कर सकते हैं।

MACD के नियम में आप फेरबदल कर सकते हैं। अपनी जरूरत के मुताबिक आप 12 दिन और 26 दिन EMA की जगह कोई भी समय सीमा डाल सकते हैं। लेकिन व्यक्तिगत रूप से मैं MACD को अपने मूल रूप में ही उपयोग करना पसंद करता हूं, जैसा कि गेराल्ड एपेल द्वारा इसे बनाया गया है।

15.2 – बोलिंगर बैंड्स (The Bollinger Bands)

 1980 के दशक में जॉन बोलिंगर द्वारा प्रस्तुत किया गया बोलिंगर बैंड्स (बीबी- BB) संभवतः टेक्निकल एनालिसिस में उपयोग किए जाने वाले सबसे उपयोगी इंडिकेटर्स में से एक है। BB का उपयोग ओवरबॉट और ओवरसोल्ड स्तरों को निर्धारित करने के लिए किया जाता है, जहां एक कीमत बैंड के ऊपरी स्तर पर ट्रेडर बेचने की कोशिश करेगा और जब कीमत उसी बैंड के निचले सिरे पर पहुंचती है तो ट्रेडर खरीदने की कोशिश करेगा। 

BB के 3 घटक हैं: 

  1. मध्य रेखा (मिडिल लाइन), जो क्लोजिंग कीमतों का 20 दिन का सरल मूविंग एवरेज है। 
  2. एक ऊपरी बैंड – यह मध्य रेखा का +2 स्टैन्डर्ड डेविएशन (Standard Deviation) है। 
  3. एक निचला बैंड – यह मध्य रेखा का  -2 स्टैन्डर्ड डेविएशन (Standard Deviation) है।

मानक विचलन यानी स्टैन्डर्ड डेविएशन (एसडी– SD) एक सांख्यिकीय अवधारणा है; जो किसी विशेष वैरिएबल के वैरिएंस यानी प्रसरण को उसके औसत से मापता है। यानी ये बताता है कि वो अपने औसत से कितना दूर है। स्टॉक मूल्य का स्टैन्डर्ड डेविएशन किसी स्टॉक की परिवर्तनशीलता (volatility) को दिखाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी स्टॉक का स्टैन्डर्ड डेविएशन 12% है, तो ये कहा जा सकता है कि स्टॉक की परिवर्तनशीलता (volatility) 12% है। 

BB में, स्टैन्डर्ड डेविएशन (SD) 20 दिन SMA पर लागू किया जाता है। ऊपरी बैंड +2 SD को इंगित करता है। +2 SD का उपयोग करके, हम SD को 2 से गुणा करते हैं, और इसे औसत में जोड़ते हैं। उदाहरण के लिए यदि 20 दिन SMA 7800 है, और SD 75 (या 0.96%) है, तो +2 SD 7800 + (75 * 2) = 7950 होगा। इसी तरह, एक -2 SD  बताता है कि हम SD को 2 से गुणा करें और इसे औसत से घटाएं। 7800 – (2 * 75) = 7650। 

अब हमारे पास BB के घटक हैं: 

  1. 20 दिन SMA = 7800 
  2. अपर बैंड = 7950 
  3. लोअर बैंड = 7650 

सांख्यिकीय रूप से, मौजूदा बाजार मूल्य को 7800 के औसत मूल्य के आसपास ही रहना चाहिए। लेकिन, यदि मौजूदा बाजार मूल्य 7950 के आसपास है, तो इसे औसत की तुलना में महंगा माना जाएगा, इसलिए यहां शॉर्ट करने पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, ये उम्मीद करनी चाहिए कि कीमत अपने औसत मूल्य पर वापस आ जाएगी। 

इसलिए ट्रेड बनेगा7800 के लक्ष्य के साथ 7950 पर बेचना । 

इसी तरह अगर मौजूदा बाजार मूल्य 7650 के आसपास है, तो इसे औसत कीमतों के संदर्भ में सस्ता माना जाएगा, और इसलिए इसे खरीदने के अवसर के तौर पर देखना चाहिए।और उम्मीद करनी चाहिए कि कीमतें औसत कीमत पर वापस आ जाएंगी।

इसलिए ट्रेड होगा 7800 के लक्ष्य के साथ 7650 पर खरीदना। 

अपर और लोअर बैंड ट्रेड शुरू करने के लिए एक ट्रिगर के रूप में कार्य करते हैं।

नीचे BPCL लिमिटेड का चार्ट है:

सेन्ट्रल काली लाइन 20 दिन की SMA (SIMPLE MOVING AVERAGE) है। काली की तरह ऊपर और नीचे दो लाल लाइनें +2 SD और -2SD हैं। जब स्टॉक की कीमत ऊपरी बैंड को छूती है तो इस उम्मीद के साथ शॉर्ट करना चाहिए कि यह औसत कीमत पर वापस आ जाएगी। इसी तरह जब कीमत लोअर बैंड को छूती है तो लांग जा सकते है और ये उम्मीद रखनी चाहिए कि यह औसत पर वापस आ जाएगी। 

मैंने BB से निकलने वाले उन सभी संकेतों को डाउन ऐरो (Down Arrow) से हाईलाइट किया है जो बेचने का संकेत देते हैं, हालांकि अधिकांश सिग्नल काफी अच्छी तरह से काम कर रहे थे, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब कीमत ऊपरी बैंड से चिपक गयी थी। वास्तव में कीमत लगातार ऊंची होती चली गई, और इसलिए कीमत के ऊपरी बैंड का भी विस्तार हुआ। इसे एनवेलप एक्सपैंशन (Envelope expansion) कहा जाता है। 

BB का ऊपरी और निचला बैंड एक साथ मिलकर एनवेलप बनाते हैं। एनवेलप का एक्सपैंशन तब होता है जब कीमत एक विशेष दिशा में मजबूत मोमेंटम का संकेत देती है। एक एनवेलप एक्सपैंशन होने पर BB का सिग्नल विफल हो जाता है। इससे एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलता है कि साइडवेज बाजार में BB अच्छी तरह से काम करता है, और एक ट्रेंड वाले बाजार में विफल रहता है। 

व्यक्तिगत रूप से मैं जब भी BB का उपयोग करता हूं तो उम्मीद करता हूं कि ट्रेड तुरंत मेरे पक्ष में नतीजे दिखाना शुरू कर देगा। यदि ऐसा नहीं होता है, तो मैं देखना शुरू कर देता हूं कि कहीं एनवेलप एक्सपैंशन तो नहीं हो रहा है। 

15.3 – अन्य इंडिकेटर (Other Indicators)

टेक्निकल इंडिकेटर बहुत सारे हैं और इनकी सूची अंतहीन है। सवाल यह है कि एक सफल व्यापारी होने के लिए क्या आपको इन सभी इंडिकेटर को जानना चाहिए? उत्तर है नहीं। टेक्निकल इंडिकेटर को जानना अच्छा है, लेकिन उनको कभी भी आपकी एनालिसिस का मुख्य उपकरण नहीं होना चाहिए। 

मैं कई महत्वाकांक्षी ट्रेडर्स से मिला हूं जो विभिन्न संकेतकों यानी इंडिकेटर को सीखने में बहुत समय बिताते हैं और मेहनत करते हैं, लेकिन लंबे समय में यह व्यर्थ ही साबित होता है। कुछ बुनियादी संकेतकों के काम का ज्ञान, जैसे कि इस मॉड्यूल में चर्चा की गई पर्याप्त हैं।

15.4 – चेकलिस्ट (The checklist)

कुछ अध्याय पहले से हमने एक चेकलिस्ट का निर्माण शुरू किया जो ट्रेडर को खरीदने या बेचने के निर्णय का मार्गदर्शन कर सके। अब उस चेकलिस्ट को फिर से देखने का समय है। 

इंडिकेटर का उपयोग ट्रेडर अपने ट्रेड से जुड़े फैसलों की पुष्टि करने के लिए कर सकते हैं, खरीदने या बेचने का ऑर्डर डालने से पहले इंडिकेटर के संकेत को जाँच लेना अच्छा होता है। इंडिकेटर पर आप S&R, वॉल्यूम या कैंडलस्टिक पैटर्न के जितना निर्भर नहीं कर सकते लेकिन ये जानना हमेशा अच्छा होता है कि मूल इंडिकेटर क्या सुझाव दे रहे हैं। सिर्फ इसी कारण से, मैं चेकलिस्ट में इंडिकेटर को जोड़ने की सलाह दूंगा, लेकिन एक बदलाव के साथ। मैं बदलाव को कुछ देर में समझाऊंगा, लेकिन इससे पहले हम चेकलिस्ट को इस नए बिन्दु के साथ फिर से देखते हैं। 

  1. स्टॉक को एक पहचानने योग्य कैंडलस्टिक पैटर्न बनाना चाहिए।
  2.  S&R को ट्रेड की पुष्टि करनी चाहिए। स्टॉपलॉस कीमत S & R के आसपास होनी चाहिए।
    • एक लांग ट्रेड के लिए पैटर्न के लो को सपोर्ट के आसपास होना चाहिए।
    • एक शॉर्ट के लिए, पैटर्न के हाई को रेजिस्टेंस के आसपास होना चाहिए। 
  3. वॉल्यूम से निम्न पुष्टि होनी चाहिए..
    • खरीद और बिक्री दोनों के दिन का वॉल्यूम औसत से ऊपर हो। 
    • कम वॉल्यूम उत्साहजनक नहीं है, इसलिए जहां वॉल्यूम कम हो तो ट्रेड ना करने में संकोच न करें।
  4. इंडिकेटर को भी पुष्टि करनी चाहिए..
    • अगर इंडिकेटर ने खरीद या बिक्री की पुष्टि की है तो ऑर्डर का आकार अधिक बढ़ाएँ
    • यदि इंडिकेटर पुष्टि नहीं करते हैं, तो ट्रेड के मूल प्लान के साथ आगे बढ़ें 

इंडिकेटर के दो सबप्वाइंट में ही उठा-पटक या फेर-बदल की संभावना हो सकती है। 

अब एक ऐसी स्थिति की कल्पना करें जहां आप कर्नाटक बैंक लिमिटेड के शेयर खरीदने का अवसर देख रहे हैं। एक दिन, कर्नाटक बैंक ने एक हैमर बनाया है और चेकलिस्ट पर बाकी हर चीज पूरी हो रही है: 

  1. बुलिश हैमर एक पहचानने योग्य कैंडलस्टिक पैटर्न है।
  2. बुलिश हैमर का लो भी सपोर्ट के पास है।
  3. वॉल्यूम औसत से ऊपर है।
  4. MACD क्रॉसओवर भी है (सिग्नल लाइन MACD लाइन से अधिक है) 

सभी चार चेकलिस्ट बिंदुओं को पूरा होते देखने के बाद मैं खुशी खुशी कर्नाटक बैंक को खरीदना चाहूंगा। इसलिए मैं खरीदने के लिए 500 शेयरों का ऑर्डर डालता हूं।

लेकिन अगर आप ऐसी स्थिति की कल्पना करें जहां चेकलिस्ट की पहली 3 शर्तें पूरी हों लेकिन चौथी शर्त (इंडिकेटर से भी पुष्टि होनी चाहिए) पूरी नहीं हो रही है। आपको क्या लगता है मुझे क्या करना चाहिए? 

मैं तब भी खरीदता, लेकिन 500 शेयरों के बजाय, शायद मैं 300 शेयर खरीदता। 

इससे मैं आपको ये समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि मैं इंडिकेटर्स का इस्तेमाल कब और कैसे करने को कह रहा हूं।

जब इंडिकेटर पुष्टि करते हैं, तो मैं अपने ऑर्डर का आकार बढ़ाता हूं, लेकिन जब इंडिकेटर पुष्टि नहीं करते हैं तो भी मैं खरीदने के अपने निर्णय के साथ आगे बढ़ता हूं, लेकिन मैंने अपने ऑर्डर का आकार कम कर दिया। 

लेकिन मैं पहले तीन चेकलिस्ट प्वाइंट्स के साथ ऐसा नहीं करूँगा। उदाहरण के लिए, यदि बुलिश हैमर का लो सपोर्ट के आस-पास नहीं होता है, तो मैं स्टॉक खरीदने की अपनी योजना पर पुनर्विचार करूंगा। हो सकता है कि मैं इस अवसर को पूरी तरह छोड दूं और दूसरे अवसर की तलाश करूं।

 लेकिन मैं इंडिकेटर पर इसी तरह से विश्वास नहीं करता हूं। यह जानना हमेशा अच्छा होता है कि इंडिकेटर क्या बता रहे हैं, लेकिन मैं उसके आधार  पर अपने निर्णय नहीं करता। यदि इंडिकेटर पुष्टि करते हैं, तो मैं ऑर्डर का आकार बढ़ाता हूं, यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो भी मैं अपनी रणनीति के साथ आगे बढ़ता हूं। 


इस अध्याय की मुख्य बातें

    1. MACD एक ट्रेंड फॉलोइंग सिस्टम है।
    2. MACD में 12 दिन, 26 दिन EMA होते हैं। 
    3. MACD लाइन 12d EMA – 26d EMA है। 
    4. सिग्नल लाइन MACD लाइन का 9 दिन का SMA है। 
    5. MACD लाइन और सिग्नल लाइन के बीच एक क्रॉसओवर रणनीति बनायी जा सकती है।
    6. बोलिंगर बैंड परिवर्तनशीलता को पकड़ता है। इसमें 20 दिन का औसत, एक +2 SD और एक -2 SD है। 
    7. जब मौजूदा कीमत +2SD पर होती है तो आप इस उम्मीद के साथ शॉर्ट कर सकते हैं कि कीमत अपने औसत पर पहुंच जाएगी।
    8. जब मौजूदा कीमत -2SD पर हो तो आप इस उम्मीद के साथ लांग कर सकते हैं कि कीमत अपने औसत पर पहुंच जाएगी। 
    9. BB एक साइडवेज बाजार में अच्छी तरह से काम करता है। ट्रेंड वाले मार्केट में BB का एनवेलप एक्सपैंशन होता है और ये कई झूठे संकेत पैदा करता है।
    10. इंडिकेटर के बारे में जानना अच्छा है, लेकिन इसे निर्णय लेने के लिए अकेले स्रोत के रूप में नहीं देखना चाहिए।

 

The post इंडिकेटर्स -भाग 2 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a5%87%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2-indicators-part-2/feed/ 21 M2-Ch15-title M2-Ch15-Chart1 M2-Ch15-Chart2 M2-Ch15-Chart3
फिबोनाची रीट्रेसमेंट्स https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%9a%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b8-fibonacc/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%9a%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b8-fibonacc/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:54:25 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5727 फिबोनाची रीट्रेसमेंट्स काफी रोचक विषय है। फिबोनाची रीट्रेसमेंट्स की अवधारणा को पूरी तरह से समझने और सराहने के लिए आपको फिबोनाची श्रृंखला को समझना होगा। कुछ दावों के मुताबिक फिबोनाची श्रृंखला की उत्पत्ति प्राचीन भारतीय गणित लिपियों में 200 ईसा पूर्व में हुई थी। लेकिन इसके मौजूदा स्वरूप की खोज 12वीं शताब्दी में इटली के […]

The post फिबोनाची रीट्रेसमेंट्स appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

फिबोनाची रीट्रेसमेंट्स काफी रोचक विषय है। फिबोनाची रीट्रेसमेंट्स की अवधारणा को पूरी तरह से समझने और सराहने के लिए आपको फिबोनाची श्रृंखला को समझना होगा। कुछ दावों के मुताबिक फिबोनाची श्रृंखला की उत्पत्ति प्राचीन भारतीय गणित लिपियों में 200 ईसा पूर्व में हुई थी। लेकिन इसके मौजूदा स्वरूप की खोज 12वीं शताब्दी में इटली के पीसा शहर के गणितज्ञ लियोनार्डो पिसानो बोगोलो ने की थी। बोगोलो के दोस्त उसे फिबोनाची बुलाते थे और फिबोनाची ने ही फिबोनाची संख्या की खोज की।

फिबोनाची श्रृंखला शून्य से शुरू होने वाली संख्याओं का एक क्रम है, जो इस तरह से व्यवस्थित हैं कि श्रृंखला में किसी भी संख्या का मूल्य पिछले दो संख्याओं का जोड़ है।

 फिबोनाची श्रृंखला निम्नानुसार है: 

0, 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, 89, 144, 233, 377, 610… 

निम्नलिखित पर ध्यान दें: 

233 = 144 + 89 

144 = 89 + 55 

89 = 55 +34 

मतलब पिछली दो संख्याओं के जोड़ से अगली संख्या बनती है और ये ऐसे ही श्रृंखला अनंत तक चलती है। फिबोनाची श्रृंखला के कुछ दिलचस्प गुण हैं। 

श्रृंखला में किसी भी संख्या को पिछले संख्या से विभाजित करें तो अनुपात हमेशा लगभग 1.618 होगा। 

उदाहरण के लिए: 

610/377 = 1.618 

377/233 = 1.618 

233/144 = 1.618 

1.618 के अनुपात को गोल्डन अनुपात (Golden Ratio) भी कहा जाता है, इसे फाई (Phi) भी कहा जाता है। फिबोनाची संख्याओं के इस गुण का संबंध हमारी प्रकृति से भी है। गोल्डन अनुपात को आप मानव चेहरे, फूलों की पंखुड़ियों, जानवरों के शरीर, फल, सब्जियां से लेकर पत्थरों और अंतरिक्ष में भी देख सकते हैं। अभी इस पर चर्चा नहीं करेंगे क्योंकिऐसा करने से  हम मुख्य विषय से हट जाएंगे। लेकन इसमें रुचि रखने वाले लोग इंटरनेट पर गोल्डन अनुपात के उदाहरणों को खोज सकते हैं। आपको काफी आश्चर्यजनक जानकारियां मिलेंगी। गोल्डन अनुपात के अलावा फिबोनाची श्रृंखला का एक और गुण है, जब इस श्रृंखला की कोई संख्या, श्रृंखला में अपने तुरंत बाद आने वाली संख्या से विभाजित होती है, तो ये अनुपात भी स्थिर ही रहता है।

 उदाहरण के लिए: 

89/144 = 0.618 

144/233 = 0.618 

377/610 = 0.618 

यहाँ पर, ध्यान रखें कि 0.618, जब प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है 61.8% है। 

इसी तरह की स्थिरता तब भी पाई जाती है जब फिबोनाची श्रृंखला में कोई भी संख्या अपने से दो स्थान बाद आने वाली संख्या से विभाजित हो। 

उदाहरण के लिए: 

13/34 = 0.382 

21/55 = 0.382 

34/89 = 0.382 

0.382 प्रतिशत के संदर्भ में 38.2% है।

 इसी तरह के परिणाम आप तब भी देखेंगे जब फिबोनाची श्रृंखला की एक संख्या को उसके 3 जगह बाद आने वाली संख्या से विभाजित किया जाता है। 

उदाहरण के लिए: 

13/55 = 0.236 

21/89 = 0.236 

34/144 = 0.236 

55/233 = 0.236 

0.236 प्रतिशत के संदर्भ में 23.6% है। 

16.1 – शेयर बाजारों में उपयोगिता (Relevance to stocks markets)

ऐसा माना जाता है कि फिबोनाची अनुपात यानी 61.8%, 38.2% और 23.6% का स्टॉक चार्ट में उपयोग किया जा सकता है। फिबोनाची विश्लेषण तब लागू किया जा सकता है जब कीमतों में अच्छा खासा उतार या चढ़ाव हो। जब भी स्टॉक तेजी से ऊपर या नीचे की ओर बढ़ता है, तो आमतौर पर यह अपनी अगली चाल से पहले एक स्तर तक वापस लौटता है। उदाहरण के लिए, यदि स्टॉक 50 रुपये से लेकर 100 रुपये तक चला है, तो इससे पहले कि यह Rs.120 तक आगे बढ़ सके इसके Rs.70 तक वापस आने (रीट्रेसमेंट करने) की संभावना होती है। 

रीट्रेसमेंट लेवल फोरकास्ट – The retracement level forecast एक ऐसी तकनीक है जिसके इस्तेमाल से कोई भी पहचान कर सकता है कि किस लेवल तक की रीट्रेसमेंट हो सकता है। ये रीट्रेसमेंट लेवल ही ट्रेडर को मौका देते हैं कि वो ट्रेंड की दिशा को देख कर नए सौदे कर सकें। फिबोनाची अनुपात यानी 61.8%, 38.2% और 23.6% ट्रेडर को रीट्रेसमेंट की संभावित सीमा को पहचानने में मदद करता है। ट्रेडर इन स्तरों का उपयोग ट्रेड के लिए कर सकता है। 

नीचे दिए गए चार्ट पर एक नज़र डालें:

मैंने चार्ट पर दो बिंदुओं को घेरा है, 380 रुपये पर जहां शेयर ने अपनी रैली शुरू की और 489 रुपये पर, जहां शेयर की कीमतें अपनी ऊँचाई पर थीं। 

अब मैं 109 (380 – 489) तक की चाल (move) को फिबोनाची अपमूव (Fibonacci Upmove) यानी चढ़ाव के रूप में परिभाषित करूंगा। फिबोनाची रीट्रेसमेंट सिद्धांत के अनुसार, ऊपर चढ़ रहा कोई भी स्टॉक जब करेक्शन में आता है तो वो फिबोनाची अनुपात तक गिर सकता है।  उदाहरण के लिए, स्टॉक का पहला करेक्शन 23.6% तक हो सकता है। यदि यह स्टॉक आगे भी करेक्ट होता है, तो 38.2% और 61.8% के स्तर भी दिखा सकता है। 

नीचे दिखाए गए उदाहरण में स्टॉक 61.8% तक नीचे आ गया है, जो 421.9 के साथ मेल खाता है, इसके बाद ही यह फिर से रैली शुरू करता है।

हम साधारण गणित का उपयोग करके भी 421 तक पहुंच सकते हैं – 

कुल फिबोनाची बढत = 109 

फिबोनाची की 61.8% चाल = 61.8% * 109 = 67.36 

रिट्रेसमेंट @ 61.8% = 489- 67.36 = 421.6 

इसी तरह, हम 38.2% और अन्य अनुपातों के लिए गणना कर सकते हैं। हालाँकि हमें ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमारे लिए ये काम सॉफ़्टवेयर करता है। 

यहां एक और उदाहरण है जहां चार्ट 288 से 338 तक बढ़ा हुआ है। इसलिए 50 प्वाइंट की ये बढत फिबोनाची अपमूव से जुड़ी बढ़त है। स्टॉक ने अपनी चाल को दोबारा से शुरू करने से पहले 38.2% तक यानी 319  तक रीट्रेस किया।

फिबोनाची रीट्रेसमेंट उन शेयरों पर भी लागू किया जा सकता है जो गिर रहे हैं, इसके जरिए हम उस स्तर की पहचान कर सकते हैं जहां से स्टॉक वापस उछल सकता है। नीचे दिए गए चार्ट (DLF Limited) में, शेयर 187 से 120.6 तक गिरा और इस प्रकार फिबोनाची डाउन के रूप में 67 अंक बनते हैं।

नीचे गिरने के बाद, शेयर ने वापस आकर 162 तक उछाल देने का प्रयास किया, जो कि 61.8% फिबोनाची रीट्रेसमेंट स्तर है। 

16.2 – फिबोनाची रीट्रेसमेंट का निर्माण (Fibonacci Retracement construction)

जैसा कि अब हम जानते हैं कि फिबोनाची रीट्रेसमेंट किसी चार्ट के उन बदलावों को दिखाते हैं जो ट्रेंड के खिलाफ जाते हैं। फिबोनाची रीट्रेसमेंट का उपयोग करने के लिए हमें पहले फिबोनाची चाल 100% मूल्य  पता करना चाहिए। चाल चाहे ऊपर की रैली में हो या नीचे की रैली में। चाल के 100% को पता करने के लिए, हमें चार्ट पर सबसे हाल के हाई और लो को चुनने की जरूरत पड़ेगी। इनकी पहचान हो जाने के बाद, हम फिबोनाची रीट्रेसमेंट टूल का उपयोग करके इन्हें कनेक्ट करते हैं। यह टूल Zerodha के Pi सहित टेक्निकल एनालिसिस के कई सॉफ्टवेयर पैकेजों में उपलब्ध है। 

अब इसके उपयोग को समझते हैं: 

चरण 1) सबसे नए हाई और लो की पहचान करें। इस मामले में लो 150 पर है और हाई 240 पर है। यानी यहाँ 90 प्वाइंट की चाल है। इसका मतलब 90 प्वाइंट ही यहाँ 100% है।

चरण 2) चार्ट के टूल में से फिबोनाची रीट्रेसमेंट टूल को चुनें।

चरण 3) अब फिबोनाची रीट्रेसमेंट टूल के जरिए लो और हाई को आपस में जोड़ें।

चार्ट टूल से फिबोनाची रीट्रेसमेंट टूल को चुनने के बाद ट्रेडर को पहले लो पर क्लिक करना होगा और बिना क्लिक किए उस लाइन को हाई तक खींचना होगा। इसे करने के साथ ही साथ फिबोनाची रीट्रेसमेंट स्तर चार्ट पर प्लॉट होने लगता है। जैसे ही आप सॉफ़्टवेयर में लो और हाई दोनों को चुन लेते हैं, वैसे ही रीट्रेसमेंट पहचानने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। दोनों बिंदुओं को चुनने के बाद चार्ट ऐसा दिखता है।

अब आप देख सकते हैं कि चार्ट पर फिबोनाची रीट्रेसमेंट स्तर बन कर दिख रहा है। इस जानकारी का उपयोग करके आप बाजार में पोजीशन बना सकते हैं।

16.3 – आपको फिबोनाची रीट्रेसमेंट स्तरों का उपयोग कैसे करना चाहिए? (How should you use Fibonacci retracement levels)

एक ऐसी स्थिति के बारे में सोचें जहां आप एक खास स्टॉक खरीदना चाहते थे लेकिन उसमें बहुत ज्यादा तेजी आने के कारण आप उसे नहीं खरीद पाए। ऐसी स्थिति में सबसे समझदारी का काम होगा स्टॉक में रीट्रेसमेंट के लिए इंतजार करना। वो स्टॉक फिबोनाची रीट्रेसमेंट स्तर यानी 61.8%, 38.2% और 23.6% तक गिर (रीट्रेस) सकता है।  

फिबोनाची रीट्रेसमेंट स्तर को चार्ट पर पहचान कर ट्रेडर इन स्तरों पर में स्टॉक में प्रवेश करने के अवसर के लिए तैयार रह सकता है। लेकिन, याद रखें कि किसी भी दूसरे इंडिकेटर की तरह ही इसका इस्तेमाल भी पुष्टि के लिए ही करना चाहिए। 

मतलब ये कि चेकलिस्ट की बाकी शर्तों के पूरा होने के बाद ही मैं शेयर खरीदूंगा सिर्फ फिबोनाची रीट्रेसमेंट के आधार पर नहीं। दूसरे शब्दों में, स्टॉक तो खरीदने के लिए मेरा विश्वास अधिक होगा अगर: 

 

  • एक पहचानने योग्य कैंडलस्टिक पैटर्न का बन रहा है।
  • स्टॉपलॉस और S&R स्तर मेल खा रहे हैं।  
  • वॉल्यूम औसत से ऊपर हैं।

 

ऊपर के बिदुओं के साथ साथ अगर स्टॉपलॉस भी फिबोनाची स्तर के साथ मेल खाता है, तो मुझे पता है कि ट्रेड सेटअप सभी शर्तो को पूरा कर रहा है और इससे मेरा भरोसा बढेगा और मैं खरीदने के लिए मजबूती से जाऊंगा। याद रखिए कि ट्रेंड और रिवर्सल का अध्ययन करते हुए हम जितने ज्यादा तरीकों से इनकी पुष्टि करते हैं,  संकेत उतना ही भरोसेमंद होता है। शॉर्ट ट्रेड या लांग, दोनों के लिए। 


इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. फिबोनाची रीट्रेसमेंट का आधार फिबोनाची श्रृंखला बनाती है।
  2. एक फिबोनाची श्रृंखला में कई गणितीय गुण हैं। ये गणितीय गुण प्रकृति के कई पहलुओं में भी दिखते हैं। 
  3. कारोबारी मानते ​​हैं कि स्टॉक चार्ट में फिबोनाची श्रृंखला का उपयोग है क्योंकि यह संभावित रीट्रेसमेंट स्तरों की पहचान करता है। 
  4. फिबोनाची रीट्रेसमेंट स्तर (61.8%, 38.2%, और 23.6%) हैं, एक तेजी से चढ़ता शेयर अपने ट्रेंड की मूल दिशा में फिर से चलने से पहले संभवतः इन स्तरों तक वापस गिर सकता है।
  5. फिबोनाची रीट्रेसमेंट स्तर पर ट्रेडर एक नया ट्रेड शुरू करने पर विचार कर सकता है। हालांकि, व्यापार शुरू करने से पहले उसे चेकलिस्ट में दिए गए अन्य बिंदुओं की भी पुष्टि करनी चाहिए।

The post फिबोनाची रीट्रेसमेंट्स appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%ac%e0%a5%8b%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%9a%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b8-fibonacc/feed/ 20 M2-Ch16-title M2Ch16-chart1 M2Ch16-chart2 M2Ch16-chart3 M2Ch16-chart4 M2Ch16-chart5 M2Ch16-chart6 M2Ch16-chart7 M2Ch16-chart8
डॉउ थ्योरी – भाग 1 https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%89-%e0%a4%a5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%89-%e0%a4%a5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:54:20 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5729 टेक्निकल एनालिसिस का एक बहुत अभिन्न अंग है – डॉउ थ्योरी । कैंडलस्टिक्स के आने  से पहले पश्चिमी देशों में डॉउ थ्योरी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता था। वास्तव में आज भी डॉउ थ्योरी की अवधारणाओं का उपयोग किया जा रहा है। अच्छे ट्रेडर कैंडलस्टिक्स और डॉउ थ्योरी के सर्वोत्तम गुणों को मिला कर […]

The post डॉउ थ्योरी – भाग 1 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

टेक्निकल एनालिसिस का एक बहुत अभिन्न अंग है डॉउ थ्योरी । कैंडलस्टिक्स के आने  से पहले पश्चिमी देशों में डॉउ थ्योरी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता था। वास्तव में आज भी डॉउ थ्योरी की अवधारणाओं का उपयोग किया जा रहा है। अच्छे ट्रेडर कैंडलस्टिक्स और डॉउ थ्योरी के सर्वोत्तम गुणों को मिला कर काम करते हैं। 

डॉउ थ्योरी को दुनिया में चार्ल्स एच डॉउ ने पेश किया था, डॉउ-जोन्स फाइनेंशियल न्यूज सर्विस (वॉल स्ट्रीट जर्नल) की स्थापना भी उन्होंने ही की थी। उन्होंने 1900 के दशक के शुरू से लेखों की एक श्रृंखला लिखी, जिसे बाद के वर्षों में ‘द डॉउ थ्योरी ‘ के नाम से जाना गया। इन लेखों को इकट्ठा करने का श्रेय विलियम पी हैमिल्टन को जाता है, जिन्होंने 27 साल की अवधि में इन लेखों को जरूरी उदाहरणों के साथ संकलित किया। चूंकि अब का समय चार्ल्स डॉउ के समय से बहुत बदल गया है इसलिए डॉउ थ्योरी को मानने वाले भी हैं और इसके आलोचक भी हैं।

17.1 – डॉउ थ्योरी के सिद्धांत (The Dow theory principles)

डॉउ थ्योरी कुछ मान्यताओं पर बनी है। इन्हें डॉउ थ्योरी के सिद्धांत कहा जाता है। चार्ल्स एच डॉउ ने बाजारों का लगातार कई सालों तक अध्ययन करके इनको विकसित किया था। डॉउ थ्योरी के पीछे 9 मार्गदर्शक सिद्धांत हैं:

क्रम सं सिद्धांत इसका अर्थ क्या है?
1 बाजार का इंडेक्स हर चीज को डिस्काउंट कर लेता है स्टॉक मार्केट इंडेक्स उस हर खबर को डिस्काउंट कर लेता है जो सार्वजनिक है या छुपी हुई भी है। अगर अचानक कोई घटना हो जाती है तो इंडेक्स में उस हिसाब से बढत या गिरावट आ जाती है और ये सही कीमत तक पहुंच जाता है
2 बाजार में कुल तीन तरह के ट्रेंड होते हैं प्राइमरी ट्रेंड,सेकेंडरी ट्रेंड और माइनर (Minor) ट्रेंड
3 प्राइमरी ट्रेंड प्राइमरी ट्रेंड बाजार का मुख्य ट्रेंड है जो एक वर्ष से कई वर्षों तक चलता है। यह बाजार की लंबी और बड़ी दिशा को बताता है। लंबी अवधि के निवेशक प्राइमरी ट्रेंड को ही देखते हैं, जबकि एक सक्रिय ट्रेडर सभी तरह के ट्रेंड में रुचि रखता है। प्राइमरी ट्रेंड ऊपर की तरफ यानी अपट्रेंड(Uptrend)या नीचे की तरफ यानी डाउनट्रेंड(Downtrend)दोनों में से कुछ भी हो सकता है
4 सेकेंडरी ट्रेंड ये प्राइमरी ट्रेंड में आ रहे करेक्शन हैं। आप इन्हें बाजार की लंबी अवधि के ट्रेंड में पैदा हुए छोटी मोटी रूकावट के रूप में देख सकते हैं। उदाहरण के तौर पर- बुल मार्केट में आया करेक्शन,बेयर मार्केट में आया सुधार या रैली। प्राइमरी ट्रेंड से उल्टा चलने वाला ये सेकंडरी ट्रेंड कुछ हफ्तों या कभी-कभी कुछ महीनों तक भी चल सकता है।
5 माइनर ट्रेंड/दैनिक उतार-चढाव ये बाजार में हर दिन होने वाले उतार-चढाव हैं। कुछ ट्रेडर इसे मार्केट नॉयज (Market- noise)कहते हैं।
6 सभी इंडेक्स से पुष्टि होनी चाहिए हम केवल एक सूचकांक के आधार पर एक ट्रेंड की पुष्टि नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए बाजार में तेजी तभी मानी जाती है जबCNXनिफ्टी,CNXनिफ्टी मिडकैप,CNXनिफ्टी स्मॉलकैप आदि सभी इंडेक्स एक ही साथ ऊपर की दिशा में चलते हैं। केवलCNXनिफ्टी की तेजी से बाजारों में तेजी का ट्रेंड तय करना संभव नहीं होगा
7 वॉल्यूम से भी पुष्टि होनी चाहिए कीमत के साथ-साथ वॉल्यूम से भी ट्रेंड की पुष्टि होनी चाहिए। अगर बाजार ऊपर की ओर जा रहा है और ये एक ट्रेंड है तो बाजार में कीमत बढने के साथ वॉल्यूम भी बढना चाहिए। और कीमत नीचे आने के साथ वॉल्यूम भी नीचे आना चाहिए।नीचे के ट्रेंड वाले बाजार में कीमत गिरने के साथ वॉल्यूम बढना चाहिए और कीमत बढने पर वॉल्यूम कम होना चाहिए। अध्याय 12 में वॉल्यूम को विस्तार से समझाया गया है।
8 साइडवेज बाजार को सेकेंडरी ट्रेंड के तौर पर देखा जा सकता है बाजार लंबे समय तक एक सीमित दायरे में (साइडवेज) ट्रेड कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर 2010 से 2013 के बीच रिलायंस इंडस्ट्रीज का शेयर 860 से 990 के बीच ही था। साइडवेज बाजार को सेकेंडरी ट्रेंड की जगह देखा जा सकता है
9 क्लोजिंग कीमत सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है ओपन, हाई, लो और क्लोज में से क्लोज का महत्व सबसे ज्यादा होता है क्योंकि ये शेयर की अंतिम कीमत को बताता है।

 17.2-  बाजार की अलग अलग अवस्थाएं (The different phases of Market)

डाउ थ्योरी के हिसाब से बाजार में तीन अलग-अलग अवस्थाएं (phases) होती हैं जो बार-बार वापस आती रहती हैं इनको एक्यूमुलेशन (accumulation), मार्क अप (mark up) और डिस्ट्रीब्यूशन (distribution) फेज (phase) कहा जाता है। 

एक्यूमुलेशन फेज आमतौर पर एक भारी गिरावट के बाद आता है। बाजार में आई एक भारी गिरावट बाजार के बहुत सारे खिलाड़ियों को निराश कर देती है और उन्हें नहीं लगता कि अब यह बाजार ऊपर जाएगा। कीमतें अपने एकदम निचले स्तर पर पहुंच जाती हैं और फिर भी बाजार में कोई भी शेयरों को खरीदना नहीं चाहता क्योंकि उन्हें लगता है कि अभी और बिकवाली आ सकती है। इसकी वजह से शेयर की कीमत अपने निचले स्तर पर ही बनी रहती है ऐसे में स्मार्ट मनी बाजार में प्रवेश करती है।

स्मार्ट मनी आमतौर पर उस पैसे को कहा जाता है जिसे बड़े-बड़े संस्थागत निवेशक यानी बड़ी-बड़ी कंपनियां लेकर आती हैं। वे लंबे समय के लिए निवेश करना चाहती है। ऐसे निवेशक आमतौर पर बाजार में तब घुसते हैं जब उनको शेयरों की कीमत में अपने लिए वैल्यू दिखाई पड़ रही होती है यानी शेयरों की कीमत काफी गिर चुकी होती है। ऐसी हालत में यह संस्थागत निवेशक काफी लंबे समय तक लगातार बड़ी बड़ी मात्रा में शेयरों की खरीदारी करते जाते हैं शेयरों को जमा करने की उनकी इस हरकत की वजह से ही इसे एक्यूमुलेशन फेज कहते हैं। इसीलिए एक्यूमुलेशन फेज में खरीदार मिलना आसान होता है और यही वजह है कि इस फेज में शेयरों की कीमत और ज्यादा नहीं गिरती। इसका मतलब यह होता है कि बाजार अपनी सबसे निचली कीमतों पर आ चुका है। ऐसे में ही बाजार अपना सपोर्ट लेवल तैयार करता है। यह फेज कई महीनों तक चल सकता है।

जब बड़े संस्थागत निवेशक यानी स्मार्ट मनी एक बार बाजार में उपलब्ध सभी शेयर खरीद लेते हैं तब शॉर्ट टर्म ट्रेडर को बाजार में सपोर्ट दिखने लगता है साथ ही, इस समय तक बाजार का माहौल भी सुधरने लगता है, इस वजह से बाजार में शेयरों की कीमत ऊपर जाने लगती है इसीलिए इसे मार्क अप फेज कहते हैं। इस फेज में शेयरों की कीमत काफी तेजी से ऊपर की तरफ जाती है यह तेजी ही इस फेज सबसे बड़ा पहचान होती है।बाजार में इतनी तेजी से आए इस सुधार की वजह से आम लोग इस रैली में हिस्सा नहीं ले पाते हैं यानी उनको यह शेयर नहीं मिल पाते हैं। इसके बाद सभी को नए निवेशकों को और एनलिस्ट को और सभी सभी को इन शेयरों में तेजी और ऊंचे स्तर दिखाई देने लगते हैं।

अंत में जब शेयरों की कीमत अपने 52 हफ्तों की ऊंचाई पर या अब तक के सबसे उपरी स्तर पर पहुंच जाती है तो सारे लोग स्टॉक मार्केट के बारे में बात करने लगते हैं, अखबारों में यह खबरें छपने लगती हैं, बाजार का माहौल सुधर जाता है और हर तरफ तेजी के बारे में बात होने लगती है। ऐसे में सबको बाजार में निवेश करना होता है इसीलिए इस फेज को डिस्ट्रीब्यूशन फेज कहते हैं।

स्मार्ट इन्वेस्टर जो पहले से बाजार में घुसे हुए थे यानी एक्यूमूलेशन फेज में बाजार में घुस गए थे वह अब अपने शेयर बेचना शुरू कर देते हैं उनके द्वारा बेचे गए शेयर आम लोग खरीदते जाते हैं इससे स्मार्ट इन्वेस्टर को अपना मनचाही कीमत मिल जाती है। इस दौरान जब भी शेयरों की कीमत और ऊपर जाने लगती है तो स्मार्ट इन्वेस्टर अपने शेयर बेचते हैं जिससे कीमत ज्यादा ऊपर नहीं जा पाती है। ऐसा बार बार होता है और इसीलिए यहां पर शेयर का रेजिस्टेंस लेवल बन जाता है

अंततः जब संस्थागत निवेशक अपने सारे शेयर बेच देते हैं तो बाजार में कीमत को सपोर्ट करने वाला कोई नहीं रह जाता है और इसीलिए डिस्ट्रीब्यूशन फेज के बाद बाजार में तेज बिकवाली आने लगती है, इसीलिए इस फेज को मार्क डाउन ऑफ प्राइस (mark down of prices) भी कहते हैं। बाजार में आई ये तेज गिरावट आम जनता के लिए काफी निराशाजनक होती है।

ये चक्र तब पूरा होता है जब इस तेज गिरावट के बाद फिर से एक्यूम्युलेशन फेज शुरू हो जाता है और यह चक्र इसी तरीके से चलता रहता है। यह माना जाता है यह पूरा चक्र एक्यूम्युलेशन फेज से सेल ऑफ फेज तक कुछ सालों तक चल सकता है

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसे दो चक्र एक जैसे नहीं हो सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर भारतीय संदर्भ में देखें तो 2006 और 2007 के बीच का बुल मार्केट 2013 और 2014 के बुल मार्केट से अलग था। कभी-कभी बाजार एक्यूम्युलेशन से डिस्ट्रीब्यूशन फेस तक पहुंचने में कई साल ले लेता है लेकिन कई बार यह पूरा चक्र कुछ महीनों में ही पूरा हो जाता है। बाजार के खिलाड़ियों को यह ध्यान देना चाहिए कि इस समय यह फेज कैसे चल रहा है और उसी हिसाब से अपनी रणनीति बनानी चाहिए।

17.3-  डॉउ पैटर्न  (The Dow Patterns)

कैंडलस्टिक की तरह डॉउ थ्योरी में भी कुछ महत्वपूर्ण पैटर्न होते हैं। इन पैटर्न के आधार पर ट्रेडर अपने लिए ट्रेड करने के मौके तलाश सकते हैं। कुछ पैटर्न जिनके बारे में हमें जानना चाहिए वह हैं

  1. डबल बॉटम और डबल टॉप फॉर्मेशन (The double bottom & double top formation)
  2. ट्रिपल बॉटम और ट्रिपल टॉप (The triple bottom & Triple top)
  3. रेंज फॉर्मेशन (Range formation)
  4. फ्लैग फॉर्मेशन (Flag formation)

डॉउ थ्योरी के लिए भी सपोर्ट और रेजिस्टेंस एक जरूरी सिद्धांत होते हैं वैसे हम इसके  बारे में पहले ही जान चुके हैं।

17.4-  डबल बॉटम और टॉप फॉर्मेशन (The Double bottom and top formation)

 डबल टॉप और डबल बॉटम पैटर्न को एक रिवर्सल पैटर्न माना जाता है यानी यहां से ट्रेंड बदलता है। डबल बॉटम तब बनता है जब स्टॉक की कीमत एक निश्चित निचले स्तर पर जाकर वहां से काफी तेजी से वापस ऊपर की ओर जाती है। इस तेज रफ्तार से हुए सुधार के बाद स्टॉक करीब 2 हफ्ते तक एक ऊंचे स्तर पर ट्रेड करता है उसके बाद स्टॉक अपने निचले स्तर तक दोबारा पहुंचता है और अगर स्टॉक अपने निचले स्तर पर पहुंचने के बाद फिर से ऊपर आता है तो इसको डबल बॉटम कहते हैं।

डबल बॉटम एक बुलिश पैटर्न होता है और इसलिए शेयर खरीदने वालों को यहां पर खरीदने का मौका तलाशना चाहिए। नीचे सिप्ला लिमिटेड के चार्ट में आपको डबल बॉटम दिखेगा।

यहां पर दोनों बॉटम फॉर्मेशन के बीच के समय पर ध्यान दें साफ है कि दोनों के बीच में कुछ समय बीता है।

इसी तरीके से डबल टॉप फॉर्मेशन में एक शेयर अपने निचले स्तर को दो बार छूने की कोशिश करता है ध्यान रहे कि यहां पर यहां भी इन दोनों कोशिशों के बीच कम से कम 2 हफ्ते का अंतर होना चाहिए। नीचे के चार्ट में केर्न इंडिया लिमिटेड का शेयर 336 के स्तर पर दो बार डबल टॉप बनाता है। ध्यान से देखने पर आपको पता चलेगा कि पहला टॉप 336 पर बना था और दूसरा टॉप करीब 332 पर बना था। इतना अंतर कई बार मान्य होता है और इसको डबल टॉप माना जा सकता है।

ट्रेडिंग में अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि डबल टॉप और डबल बॉटम काफी महत्वपूर्ण और उपयोगी होते हैं खासकर तब जब डबल फॉर्मेशन किसी पहचाने हुए कैंडलस्टिक फॉर्मेशन के साथ बन रहे हों।

उदाहरण के तौर पर, एक ऐसी स्थिति मान लीजिए जहां पर डबल टॉप फॉर्मेशन बन रहा हो और दूसरा टॉप ऐसे बेयरिश पैटर्न पर बन रहा हो जहां पर शूटिंग स्टार हो। इसका मतलब है कि डॉउ थ्योरी और कैंडलस्टिक पैटर्न दोनों ही एक साथ बन रहे हैं और एक ही तरफ इशारा कर रहे हैं। ऐसे में अपने ट्रेड पर भरोसा बढ़ जाता है।

17.5- ट्रिपल टॉप और बॉटम (The triple top and bottom)

आपने अंदाजा लगा ही लिया होगा कि डबल टॉप की तरह ही ट्रिपल टॉप फॉर्मेशन भी होता है। अंतर सिर्फ इतना होता है कि कीमत का स्तर दो बार नहीं बल्कि 3 बार छुआ जाता है। ट्रिपल टॉप फॉर्मेशन का मतलब भी वैसे ही निकाला जाता है जैसे डबल टॉप फॉर्मेशन का निकाला जाता है।

जितनी ज्यादा बार शेयर अपने कीमत के किसी एक स्तर को छूता है उस संकेत को उतना ही ज्यादा मजबूत माना जाता है इसीलिए ट्रिपल टॉप फॉर्मेशन को हमेशा डबल टॉप फॉर्मेशन से ज्यादा महत्वपूर्ण और मजबूत संकेत माना जाता है।

नीचे के चार्ट में DLF  लिमिटेड का ट्रिपल टॉप फॉर्मेशन दिखाया गया है। तीसरे टॉप के बाद आई तेज बिकवाली पर ध्यान दीजिए, इससे ट्रिपल टॉप के बनने की पुष्टि होती है।

 


इस अध्याय की खास बातें

  1. पश्चिमी दुनिया में डॉउ थ्योरी का इस्तेमाल कैंडलस्टिक के आने के पहले से हो रहा है।
  2.  डॉउ थ्योरी अपनी 9 मान्यताओं के आधार पर चलती है।
  3. बाजार में तीन महत्वपूर्ण फेज होते हैं-एक्यूम्युलेशन, मार्क अप और डिस्ट्रीब्यूशन फेज।
  4. एक्यूम्युलेशन फेज तब होता है जब संस्थागत निवेश यानी स्मार्ट मनी बाजार में घुसते हैं मार्क अप फेज तब होता है जब ट्रेडर बाजार में घुसते हैं और फाइनल डिस्ट्रीब्यूशन फेज तब होता है जब आम जनता बाजार में घुसती है।
  5. डिस्ट्रीब्यूशन फेज के बाद मार्क डाउन शुर हो जाता है जिसके बाद फिर से एक्यूम्युलेशन फेज शुरू हो जाता है और यह चक्र पूरा होता है।
  6.  डॉउ थ्योरी में भी कुछ महत्वपूर्ण पैटर्न होते हैं जिनका इस्तेमाल कैंडलस्टिक के साथ किया जा सकता है।
  7. डबल और ट्रिपल फॉर्मेशन एक रिवर्सल पैटर्न होते हैं और बहुत ही काम के होते हैं। 
  8. डबल फॉर्मेशन और ट्रिपल फॉर्मेशन का मतलब एक ही तरीके से निकाला जाता है।

 

The post डॉउ थ्योरी – भाग 1 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%89-%e0%a4%a5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-1/feed/ 46 M2-Ch17-title phases M2-Ch17-Chart1 M2-Ch17-Chart2 M2-Ch17-Chart3
डॉउ थ्योरी – भाग 2 https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%89-%e0%a4%a5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2-the-dow-theory-part-2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%89-%e0%a4%a5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2-the-dow-theory-part-2/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:54:15 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5732 18.1- ट्रेडिंग रेंज (Trading Range) डबल और ट्रिपल फॉर्मेशन के बाद अगला मुद्दा रेंज वाला बाजार है। ट्रेडिंग रेंज बाजार का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब बाजार में कीमत बहुत समय तक ऊपर या नीचे के एक दायरे में घूमती रहती है तो कहते हैं कि बाजार एक रेंज में है। इसमें बाजार बार-बार […]

The post डॉउ थ्योरी – भाग 2 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
18.1- ट्रेडिंग रेंज (Trading Range)

डबल और ट्रिपल फॉर्मेशन के बाद अगला मुद्दा रेंज वाला बाजार है। ट्रेडिंग रेंज बाजार का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब बाजार में कीमत बहुत समय तक ऊपर या नीचे के एक दायरे में घूमती रहती है तो कहते हैं कि बाजार एक रेंज में है। इसमें बाजार बार-बार ऊपर और नीचे एक निश्चित कीमत तक ही जाता है और उसके आगे नहीं बढ़ता है। इस तरह के बाजार में कोई नया ट्रेंड नहीं बन रहा होता है इसलिए इसे साइडवेज बाजार (Sideways market or Sideways drift) भी कहते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि बेचने वाला और खरीदने वाला दोनों ही बाजार की अगली दिशा के बारे में बहुत ही निश्चित नहीं होते हैं। इस तरह का बाजार लंबे समय के निवेशक को थोड़ा सा निराश करता है। 

लेकिन ऐसे बाजार में ट्रेड करने के बहुत सारे मौके मिलते हैं और यह मौके दोनों ही तरफ होते हैंऊपर की तरफ के ट्रेड के भी और नीचे की तरफ के ट्रेड के भी। ऐसे बाजार में अपसाइड यानी बढोत्तरी का मौका ऊपर रेजिस्टेंस (Resistance) तक होता है और डाउनसाइड या गिरावट का मौका नीचे सपोर्ट तक, इसीलिए इसे रेंज बाउंड मार्केट कहते हैं। इसे ट्रेडर्स का मार्केट भी कहते हैं जहां पर बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों के लिए बहुत सारे मौके होते हैं।

नीचे के चार्ट में आप एक स्टॉक की चाल को रेंज में देख सकते हैं:

जैसा कि आप देख सकते हैं कि स्टॉक ने 165 के ऊपरी स्तर को और 128 के निचले स्तर को कई बार छुआ और इसी दायरे में ट्रेड करता रहा। ऊपर और नीचे के स्तर के बीच के क्षेत्र को विड्थ ऑऱ रेंज (Width of range) यानी रेंज की चौड़ाई कहते हैं ऐसे बाजार में सबसे आसान ट्रेड यह होता है कि आप नीचे सपोर्ट के पास यानी निचले स्तर के पास खरीदें और ऊपर रेजिस्टेंस स्तर के पास बेच दें। आप चाहे तो ऊपर के स्तर पर शॉर्ट भी कर सकते हैं और वापस नीचे के स्तर पर आकर खरीद सकते हैं।

आप ध्यान दें तो आपको दिखेगा कि ऊपर का चार्ट एक कैंडलस्टिक और डॉउ थ्योरी के मिलने का एक अच्छा उदाहरण है। बायीं तरफ से घेरे गए कैंडल पर ध्यान दीजिए।

  1. बुलिश एनगल्फिंग पैटर्न आपको लांग की सलाह दे रहा है।
  2. मार्निंग दोजी स्टार एक लांग का संकेत है।
  3. बेयरिश एनगल्फिंग पैटर्न शॉर्ट का संकेत है।
  4. बेयरिश हरामी पैटर्न भी शॉर्ट की सलाह दे रहा है।

एक शॉर्ट टर्म ट्रेडर को यह मौका चूकना नहीं चाहिए क्योंकि इसको पहचानना बहुत ही ज्यादा आसान है। बाजार में एक रेंज कुछ हफ्तों से लेकर कुछ सालों तक भी रह सकती है। जितना ही लंबा रेंज का समय होगा उस रेंज की चौड़ाई उतनी ही ज्यादा होगी।

18.2- रेंज ब्रेक आउट (The range breakout)

एक रेंज में बहुत समय तक रहने के बाद कभी-कभी स्टॉक उस रेंज को तोड़ देते हैं। इसको समझने के पहले एक बार यह देख लेते हैं कि आखिर स्टॉक एक रेंज में रहते क्यों हैं।

स्टॉक के एक रेंज में ट्रेड करने की दो वजह हो सकती हैं:

  1. जब स्टॉक को चलाने वाले कोई महत्वपूर्ण फंडामेंटल संकेत नहीं होते हैं जब किसी स्टॉक में तिमाही या सालाना नतीजों का ऐलान, नए प्रोडक्ट का लांच, नए बाजार में घुसने का ऐलान, मैनेजमेंट में बदलाव, ज्वाइंट वेंचर का ऐलान, मर्जर, एक्विजिशन (Merger,Acquisition ) जैसा कुछ ट्रिगर नहीं होता । जब कोई अच्छी या बुरी खबर कंपनी के बारे में नहीं होती है तो शेयर आमतौर पर एक ट्रेडिंग रेंज में रहते हैं। अगर कोई महत्वपूर्ण संकेत ना बन रहे हों तो रेंज काफी लंबे समय तक रह सकती है।
  2.  किसी बड़े ऐलान के इंतजार में जब बाजार किसी कंपनी के ऐसे बड़े ऐलान की उम्मीद कर रहा होता है जिससे शेयर ऊपर या नीचे जा सकता हो तो बाजार तब तक एक रेंज में रहता है जब तक उस ऐलान का इंतजार रहता है क्योंकि बाजार के कारोबारी कोई कदम नहीं उठाना चाहते। हालांकि इस तरह के रेंज में स्टॉक कम समय के लिए ही रहता है, तभी तक जब तक वो ऐलान हो नहीं जाता।

एक रेंज में रहने के बाद स्टॉक उस रेंज को तोड़ भी सकता है। रेंज ब्रेकआउट आमतौर पर एक नई दिशा या नए ट्रेंड की ओर इशारा करता है। रेंज ब्रेक आउट की दिशा क्या होगी यह उस पर निर्भर करता है कि बाजार में होने वाला अगला इवेंट कैसा है और उसका नतीजा क्या निकलता है। इसलिए हमेशा ब्रेकआउट अपनी दिशा से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि ब्रेकआउट ट्रेड  करने के मौके देता है। 

एक ट्रेडर हमेशा लांग पोजीशन लेगा जब स्टॉक अपने रेजिस्टेंस लेवल को ब्रेक करता है या तोड़ता है और ट्रेडर शार्ट जाएगा जब शेयर की कीमत अपने सपोर्ट लेवल के नीचे जाती है। 

रेंज को आप एक ऐसे प्रेशर वाले चेंबर के तौर पर भी देख सकते हैं जहां हर एक दिन प्रेशर बढ़ता जा रहा है और पहला मौका मिलते ही वह प्रेशर बहुत ही ज्यादा तेजी के साथ बाहर निकलता है। जिसकी वजह से ब्रेकआउट होता है लेकिन कई बार ट्रेडर को फॉल्स ब्रेकआउट (False Breakout) यानी नकली ब्रेकआउट से बचना चाहिए।

एक फॉल्स ब्रेकआउट तब होता है जब ट्रिगर इतना मजबूत ना हो कि वह स्टॉक को एक किसी एक दिशा में ले जा सके। आसान भाषा में कहें तो यह फॉल्स ब्रेकआउट तब होता है जब किसी छोटी घटना को ट्रिगर मान कर रिटेल यानी छोटे निवेशक ट्रेड करने लगते हैं। आमतौर पर फॉल्स ब्रेकआउट में वॉल्यूम काफी कम होती है क्योंकि स्मार्ट मनी इसमें हिस्सेदार नहीं होती। फॉल्स ब्रेकआउट के बाद स्टॉक वापस अपने रेंज में चला जाता है।

एक ब्रेकआउट में दो शर्तों का पूरा होना जरूरी होता है:

  1. वॉल्यूम हाई यानी ज्यादा हो
  2. ब्रेकआउट के बाद मोमेंटम (Momentum) यानी कीमत में बदलाव की रफ्तार काफी ज्यादा हो

नीचे चार्ट को देखें

यहां इस स्टॉक ने तीन बार रेंज से ब्रेक आउट करने की कोशिश की लेकिन पहली दो बार फॉल्स ब्रेकआउट थे यानी नकली ब्रेकआउट थे। पहला ब्रेकआउट जो बायीं तरफ के पहले घेरे में है उसमें वॉल्यूम काफी कम थे और उसका मोमेंटम (Momentum) यानी तेजी भी कम थी। दूसरे ब्रेकआउट में वॉल्यूम तो था लेकिन उसमें मोमेंटम यानी गति नहीं थी। लेकिन तीसरा ब्रेकआउट एक सही ब्रेकआउट था जिसमें हाई वॉल्यूम और हाई मोमेंटम था। 

18.3 –  रेंज ब्रेकआउट में ट्रेडिंग (Trading the the range breakout) 

जैसे ही कोई स्टॉक अपने रेंज से ब्रेकआउट करता है और साथ में उसमें अच्छे वॉल्यूम भी होते हैं तो ट्रेडर उस शेयर को तुरन्त खरीदते हैं। अच्छा वॉल्यूम रेंज ब्रेकआउट की सिर्फ एक शर्त को पूरा करता है लेकिन ट्रेडर के पास इसको जानने का कोई तरीका नहीं होता है कि मोमेंटम बनता रहेगा या नहीं बनेगा, इसलिए ट्रेडर को रेंज ब्रेकआउट के ट्रेड में हमेशा एक स्टॉपलॉस रखना चाहिए।

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि एक स्टॉक 128 और 165 की रेंज में ट्रेड कर रहा है। स्टॉक अपने रेंज को तोड़ता है और 165 से ऊपर जाकर 170 पर ट्रेड करने लगता है ऐसे में ट्रेडर के लिए सलाह यह होगी कि वह 170 पर लांग तो जाए लेकिन 165 का स्टॉपलॉस जरूर रखे।  या फिर यह मान लीजिए कि स्टॉक 128 के रेंज को नीचे की तरफ तोड़ता है और 123 पर ट्रेड करने लगता है ऐसे में ट्रेडर 123 पर शॉर्ट तो जा सकता है लेकिन उसे 128 का स्टॉपलॉस जरूर रखना चाहिए।

ट्रेड शुरू करने के बाद अगर ब्रेकआउट सही निकलता है तो ट्रेडर उम्मीद कर सकता है कि कम से कम रेंज की चौड़ाई के बराबर का मूव तो मिलेगा। उदाहरण के तौर पर 168 के ब्रेकआउट में कम से कम टारगेट 43 प्वाइंट का होना चाहिए क्योंकि रेंज की चौड़ाई 168125 = 43 है। इसका मतलब हुआ कि टारगेट हुआ 168+43=211 

18.4- फ्लैग फॉर्मेशन (The Flag formation)

 आमतौर पर फ्लैग फॉर्मेशन तब होता है जब एक स्टॉक लगातार तेज रैली में एक वर्टिकल यानी सीधी रेखा में ऊपर की तरफ कीमत में बढ़ोतरी दिखाता है। फ्लैग फॉर्मेशन आमतौर पर एक बहुत बड़ा मूव होता है इसमें बाद में 1 एक छोटा सा करेक्शन भी होता है। करेक्शन के इस फेज में कीमत आमतौर पर दो समांतर रेखाएं बनाती है। फ्लैग फॉर्मेशन आमतौर पर आयताकार आकार बनाता है और वह एक डंडे पर लगे हुए झंडे की तरह दिखाई देता है। इसमें कीमत की गिरावट 5 दिन से 15 दिन तक चल सकती है।

कीमत में रैली और उसके बाद कीमत में गिरावट एक के बाद एक इस तरह से होती हैं जिससे फ्लैग फॉर्मेशन बनता है। जब एक फ्लैग बनता है तो स्टॉक आमतौर पर अचानक तेजी दिखाता है और ऊपर की तरफ भागता है।

अगर कोई ट्रेडर किसी एक शेयर को खरीदने का मौका चूक जाता है तो फ्लैग फॉर्मेशन उस ट्रेडर को वह मौका दोबारा देता है लेकिन ट्रेडर को अपनी पोजीशन लेने में तेजी दिखानी होगी क्योंकि स्टॉक काफी तेजी से फिर से ऊपर जाता है। आप ऊपर के चार्ट में इसे देख सकते हैं।

फ्लैग फॉर्मेशन के पीछे का तर्क बहुत ही सीधा हैस्टॉक की अचानक तेज रैली बाजार के खिलाड़ियों को प्रॉफिट बुक करने यानी मुनाफा कमाने का मौका देती है। आमतौर पर रिटेल निवेशक, जो स्टॉक में आई तेजी से खुश होते हैं, अपना प्रॉफिट बुक करते हैं और शेयर बेचते हैं इसी वजह से शेयर की कीमतें कुछ नीचे जाती हैं लेकिन चूंकि केवल रिटेल निवेशक ही शेयर बेच रहे होते हैं इसलिए वॉल्यूम काफी कम होता है। स्मार्ट मनी अभी भी शेयर में निवेशित रहती है और इसलिए बाजार में माहौल पॉजिटिव ही रहता है। इसीलिए कई  ट्रेडर इसे एक मौके के तौर पर देखते हैं और शेयर खरीदना शुरू कर देते हैं जिसकी वजह से शेयर में फिर से एक तेज रैली आती है।

18.5- रिवार्ड टू रिस्क रेश्यो ( The Reward to Risk Ratio)

 रिवार्ड टू रिस्क रेश्यो (RRR) का सिद्धांत केवल डॉउ थ्योरी के लिए नहीं है बल्कि यह पूरे बाजार के लिए होता है। वैसे तो इसे बाजार के ट्रेडिंग सिस्टम और रिस्क मैनेजमेंट के तहत समझाया जाना चाहिए था लेकिन इसका उपयोग हर तरीके के सौदे में होता है, टेक्निकल एनालिसिस पर आधारित ट्रेडिंग हो या फंडामेंटल के आधार पर होने वाला निवेश हो। इसीलिए हम RRR को यहां पर समझने की कोशिश कर रहे हैं। 

रिवार्ड टू रिस्क रेश्यो (RRR) की गणना करना आसान है। नीचे दिए गए एक शॉर्ट टर्म लांग ट्रेड के आंकड़े देखिए:

एन्ट्री (Entry) : 55.75

स्टॉपलॉस : 53.55

टारगेट : 57.20

चूंकि ये एक शॉर्ट टर्म ट्रेड है इसलिए ये ठीक दिख रहा है लेकिन इसे कुछ गहराई से देखते हैं:

ट्रेडर कितना रिस्क ले रहा है? : (एन्ट्री स्टॉपलॉस) यानी 55.75-53.25=2.2

 ट्रेडर को रिवार्ड कितना मिल सकता है: (एक्जिटएन्ट्री) 57.2-55.75=1.45

इसका मतलब है कि 1.45 के रिवार्ड के लिए ट्रेडर 2.2 का रिस्क ले रहा है यानी रिवार्ड टू रिस्क रेश्यो (RRR) 1.45/2.2= 0.65 है। इसका मतलब ये अच्छा ट्रेड नहीं है।

एक अच्छे सौदे को एक अच्छे रिवार्ड टू रिस्क रेश्यो (RRR) से पहचाना जा सकता है। एक सौदे में अगर आप 1 रुपये का रिस्क ले रहे हैं तो आपका रिवार्ड कम से कम 1.3 रुपये होना चाहिए, नहीं तो ये रिस्क नहीं लेना चाहिए।

उदाहरण के लिए इस सौदे पर नजर डालिए:

एन्ट्री : 107

स्टॉपलॉस : 102

टारगेट : 114

इस ट्रेड में ट्रेडर का रिस्क ₹5 (107-102) का है जबकि उसको रिवार्ड की उम्मीद है ₹7 (114-107) यहां RRR 7/5= 1.4 हुआ मतलब यह हुआ कि हर एक रुपये के रिस्क पर ट्रेडर को 1.4 रुपये के रिवार्ड की उम्मीद है। मतलब सौदा बुरा नहीं है।

हर ट्रेडर को अपने रिस्क लेने की क्षमता के आधार पर अपना रिवार्ड टू रिस्क रेश्यो (RRR) तय करना चाहिए। व्यक्तिगत तौर पर मैं कभी भी 1.5 से कम के RRR वाले सौदे नहीं करता हूं। कुछ एग्रेसिव ट्रेडर तो एक रुपये के रिवार्ड टू रिस्क रेश्यो (RRR) पर भी सौदे कर लेते हैं । यानी एक रुपये का रिस्क लेते हैं एक रुपये का रिवार्ड पाने के लिए। कुछ का मानना है कि RRR कम से कम 1.25 होना चाहिए। जो ट्रेडर्स सेफ खेलना चाहते हैं वह 2 से ऊपर का RRR खोजते हैं इसका मतलब वह ₹1 का रिस्क लेते हैं और ₹2 के रिवार्ड की तलाश करते हैं।

हर ट्रेड को RRR के हिसाब से भी देखना चाहिए। कम RRR वाले सौदे के लिए रिस्क लेना बुद्धिमानी नहीं है। ट्रेड का एक अच्छा मौका भी छोड़ देना चाहिए अगर RRR अच्छा नहीं है तो।

समझने के लिए इस स्थिति की कल्पना करें:

एक ट्रेड के ऊपरी सिरे पर बेयरिश एनगल्फिंग पैटर्न बनता है, जहां बेयरिश एनगल्फिंग पैटर्न बन रहा है वहीं पर डबल टॉप फॉर्मेशन भी हो जाता है। वॉल्यूम भी अच्छा है, पिछले 10 दिन के एवरेज वॉल्यूम से 30 परसेंट ज्यादा वॉल्यूम है। बेयरिश एनगल्फिंग पैटर्न के हाई के पास चार्ट में मीडियम टर्म सपोर्ट भी दिख रहा है।

यहां एक शॉर्ट ट्रेड के लिए सारे अच्छे संकेत हैं, मान लीजिए कि ट्रेड ऐसा बनता है :

एन्ट्री : 765.67

स्टॉपलॉस : 772.85

टारगेट : 758.5

रिस्क : 7.18 (772.85-765.67) या (स्टॉप लॉस एन्ट्री) 

रिवार्ड : 7.17 (765.67-758.5) या (एन्ट्रीएक्जिट)

RRR : 7.17/7.18= 1 (लगभग)

जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैं RRR का बहुत कड़ाई से पालन करता हूं और मेरे लिए ये कम से कम 1.5 होना ही चाहिए। इसलिए मेरे हिसाब से, सौदा बहुत अच्छा दिखने के बाद भी इसे छोड़ देना चाहिए।

अब आपको समझ आ गया होगा कि चेकलिस्ट में RRR का होना जरूरी है।

18.6 –  टेक्निकल एनालिसिस के चेकलिस्ट

टेक्निकल एनालिसिस के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के बाद अब हमारे लिए समय है कि हम अपने चेकलिस्ट को फिर से देखें और उस को अंतिम रूप दें। जैसा कि आपने अब तक अनुमान लगा लिया होगा कि डॉउ थ्योरी भी चेक लिस्ट का हिस्सा है क्योंकि यह ट्रेड की पुष्टि करने के लिए एक और संकेत देता है।

  1. स्टॉक को ऐसा कैंडलस्टिक बनाना चाहिए, जो पहचान में आए।
  2. S&R से ट्रेड की पुष्टि होनी चाहिए, स्टॉप लॉस S&R के करीब होना चाहिए।
    1. एक लांग ट्रेड में पैटर्न का लो, सपोर्ट के पास होना चाहिए
    2. एक शॉर्ट ट्रेड में पैटर्न का हाई, रेजिस्टेंस के पास होना चाहिए
  3. वॉल्यूम से पुष्टि होनी चाहिए
    1. बेचने के दिन और खरीदने के दिन वॉल्यूम औसत से ऊपर होना चाहिए
    2. कम वॉल्यूम भरोसा नहीं देते, ऐसे में ट्रेड छोड़ सकते हैं
  4. ट्रेड को डॉउ थ्योरी के नजरिए से भी देखें
    1. प्राइमरी और सेकेंडरी ट्रेंड
    2. डबल और ट्रिपल फॉर्मेशन और रेंज
    3. डॉउ फार्मेशन को पहचानें
  5. इंडिकेटर से भी पुष्टि करें
    1. अगर इंडिकेटर आपकी योजना की पुष्टि करें तो ट्रेड के साइज को बढ़ाएं
    2. अगर इंडिकेटर आपकी योजना की पुष्टि ना करें तो अपनी योजना के मुताबिक चलें
  6. RRR अच्छा होना चाहिए
    1. अपनी रिस्क लेने की क्षमता के मुताबिक अपना RRR तय करें
    2. एक नए ट्रेडर को सुरक्षा के लिए, RRR जितना संभव हो उतना ऊपर रखना चाहिए
    3. एक एक्टिव ट्रेडर को मेरे हिसाब से 1.5 का RRR रखना चाहिए

जब भी आप एक ट्रेड का मौका पहचानते हैं हमेशा कोशिश कीजिए कि अपने ट्रेड को डॉउ थ्योरी के दृष्टिकोण से भी देखें। अभी आप अगर एक लांग ट्रेड लेना चाहते हैं जिसको आपने कैंडलस्टिक के आधार पर बनाया है तो ध्यान से देखें कि प्राइमरी और सेकेंडरी ट्रेंड क्या बता रहे हैं। अगर प्राइमरी ट्रेंड बुलिश है तो एक अच्छा संकेत है लेकिन अगर सेकेंडरी ट्रेंड चल रहा है, जो कि आमतौर पर प्राइमरी ट्रेंड की विरोध में होता है, तो आपको दोबारा सोचना चाहिए कि अपना लांग ट्रेड लेना है या नहीं क्योंकि यह ट्रेड मौजूदा ट्रेंड के विपरीत होगा।

अगर आप ऊपर दिखाए गए चेक लिस्ट के हिसाब से  चलते हैं और मानते हैं कि यह महत्वपूर्ण है तो मैं आपको कह सकता हूं कि आपकी ट्रेडिंग की कुशलता और ज्यादा बढ़ जाएगी। इसलिए अगली बार जब भी ट्रेड करें तो आप कोशिश करें कि ऊपर दिए गए चेकलिस्ट के हिसाब से ही हो। और कुछ हो या ना हो कम से कम इतना तो जरूर होगा कि आपका ट्रेड एक अच्छे तर्क पर आधारित होगा।

18.7- अब आगे क्या (What next?)

हमने टेक्निकल एनालिसिस से जुड़े बहुत सारे मुद्दों पर इस मॉड्यूल में चर्चा कर ली है। मैं व्यक्तिगत तौर पर आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि इस मॉड्यूल में हमने जिन मुद्दों पर चर्चा की है उसके आधार पर आप टेक्निकल एनालिसिस में काफी मजबूत हो जाएंगे। ऐसा हो सकता है कि आपको लगे कि और भी बहुत सारे पैटर्न और इंडिकेटर हैं जिनके बारे में या चर्चा नहीं की गई है और उन पर आपको ज्यादा जानना चाहिए, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि अगर हमने किसी मुद्दे पर चर्चा नहीं की है तो इसका कोई खास वजह होगी इसलिए आप भरोसा रखें कि आपके काम की सारी जानकारी या टेक्निकल एनालिसिस से जुड़ी काम की सारी जानकारी यहां दी गई है। अगर आप इन सारे मुद्दों को ठीक से समझने के लिए समय निकालेंगे तो आप अपने लिए टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर एक बेहतर फ्रेमवर्क तैयार कर पाएंगे। इसके बाद अब आपको ट्रेड के लिए अपने को टेस्ट करने वाली स्ट्रैटेजी बनानी चाहिए, रिस्क मैनेजमेंट और ट्रेडिंग साइकॉलजी (Psychology) यानी ट्रेडिंग मनोविज्ञान पर ध्यान देना चाहिए। हम आगे आने वाले मॉड्यूल में इन चीजों पर चर्चा करेंगे। 

इस माड्यूल के अंतिम कुछ अध्यायों में हम कुछ जरूरी तरीके बताएंगे जिससे आप टेक्निकल एनालिसिस शुरू कर सकें।


इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. एक रेंज तब बनता है जब शेयर कीमत के दो बिंदुओं के बीच में झूलता रहता है। 
  2. एक ट्रेडर इन बिंदुओं के निचले स्तर पर खरीद सकता है और ऊपरी स्तर पर बेच सकता है।
  3. शेयर रेंज में तब जाता है जब आगे कोई फंडामेंटल ट्रिगर या कोई घटना ना हो।
  4. एक स्टॉक रेंज से बाहर निकलकर ब्रेकआउट भी दे सकता है। एक अच्छा ब्रेकआउट तब होता है जब वॉल्यूम औसत से ज्यादा हो और कीमत में तेज उछाल आए।
  5. यदि किसी ट्रेडर ने स्टॉक को खरीदने का मौका गंवा दिया है तो फ्लैग फॉर्मेशन उसको यह मौका दोबारा देता है।
  6. किसी भी ट्रेड के लिए RRR एक महत्वपूर्ण चीज है, अपनी रिस्क लेने की क्षमता के आधार पर अपना RRR तय करें।
  7. ट्रेड को शुरू करने के पहले ट्रेडर को हर मौके को डॉउ थ्योरी के दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए।

The post डॉउ थ्योरी – भाग 2 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%89-%e0%a4%a5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%97-2-the-dow-theory-part-2/feed/ 15 M2-Ch18-Chart1 M2-Ch18-title M2-Ch18-Chart2 M2-Ch18-Chart3
शुरू करने से पहले कुछ ज़रूरी जानकारी https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b6%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%82-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b9%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%9b-%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a5%82/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b6%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%82-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b9%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%9b-%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a5%82/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:54:10 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5734 19.1 – चार्टिंग सॉफ्टवेयर (The charting Software) पिछले 18 अध्यायों में हमने टेक्निकल एनालिसिस के कई पहलुओं को सीखा है। यदि आपने सभी अध्यायों को ठीक से पढ़ा और समझा है तो आप निश्चित रूप से टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर ट्रेडिंग शुरू कर सकते हैं। इस अध्याय में आपको टेक्निकल ट्रेडिंग के मौके पहचानने […]

The post शुरू करने से पहले कुछ ज़रूरी जानकारी appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

19.1 – चार्टिंग सॉफ्टवेयर (The charting Software)

पिछले 18 अध्यायों में हमने टेक्निकल एनालिसिस के कई पहलुओं को सीखा है। यदि आपने सभी अध्यायों को ठीक से पढ़ा और समझा है तो आप निश्चित रूप से टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर ट्रेडिंग शुरू कर सकते हैं। इस अध्याय में आपको टेक्निकल ट्रेडिंग के मौके पहचानने में मदद करेंगे।

इस अध्याय में मैंने जो सुझाव दिए हैं, वे ट्रेडिंग के मेरे अनुभव पर आधारित हैं। 

टेक्निकल एनालिसिस शुरू करने के लिए आपको एक चार्ट विज़ुअलाइज़ेशन सॉफ़्टवेयर (Chart Visualisation Software) की ज़रूरत होगी, इसे ‘चार्टिंग सॉफ़्टवेयर (Charting Software)‘ कहा जाता है। चार्टिंग सॉफ़्टवेयर आपको विभिन्न स्टॉक चार्ट को देखने और उसका विश्लेषण करने में मदद करता है। चार्टिंग सॉफ्टवेयर एक टेक्निकल एनालिस्ट के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 

वैसे तो बाजार में कई चार्टिंग सॉफ़्टवेयर उपलब्ध हैं। लेकिन सबसे लोकप्रिय दो हैं ‘मेटास्टॉक’ (Metastock) और ‘अमीब्रोकर’ (Amibroker)। अधिकांश तकनीकी विश्लेषक इन्हीं दो चार्टिंग सॉफ़्टवेयर में से एक का उपयोग करते हैं। इसका उपयोग करने से पहले आपको इन सॉफ़्टवेयर का लाइसेंस खरीदना होगा। 

वैसे कुछ मुफ़्त चार्टिंग टूल ऑनलाइन उपलब्ध हैं जिनका आप उपयोग कर सकते है। आप इनको याहू फाइनेंस, गूगल फाइनेंस और बिजनेस मीडिया कंपनियों की तमाम वेबसाइटों पर पा सकते हैं। लेकिन मेरी सलाह है कि यदि आप एक टेक्निकल एनालिस्ट बनना चाहते हैं, तो एक अच्छा चार्टिंग सॉफ़्टवेयर ले लें। 

चार्टिंग सॉफ़्टवेयर को आप एक डीवीडी प्लेयर की तरह मान सकते हैं जहाँ आपको फिल्में देखने के लिए डीवीडी किराए पर लेना होगा। जब आपके पास एक चार्टिंग सॉफ़्टवेयर होगा, तो आपको चार्ट को देखने के लिए डेटा फीड लेना होगा। 

डेटा फीड देने वाली कई कंपनियां बाजार में हैं।  आप इनको इंटरनेट पर पा सकते हैं। आपको केवल डेटा विक्रेता को सूचित करना होगा कि आपके पास कौन सा चार्टिंग सॉफ़्टवेयर है, और वह आपको डेटा उसी रूप में प्रदान करेगा जो आपके चार्टिंग सॉफ़्टवेयर के साथ चल सके। एक बार जब आप एक डेटा का सब्सक्रिप्शन खरीद लेते हैं, तो वह आपको पहले सभी ऐतिहासिक डेटा देगा, जिसके बाद हर दिन आपको उसके सर्वर से डेटा अपडेट करना होगा। 

मेरे अनुभव से एक अच्छा चार्टिंग सॉफ्टवेयर (मेटास्टॉक या अमीब्रोकर) का नवीनतम संस्करण खरीदने पर आपको 25,000 रुपये से 30,000 रुपये के बीच का खर्च हो सकता है। डेटा फीड के लिए 15,000 से 25,000 रुपये और जोड़ें। याद रखें कि सॉफ्टवेयर का खर्च एक बार होता है, जबकि डेटा फीड के लिए सालाना फीस होती है। ध्यान दें कि चार्टिंग सॉफ़्टवेयर के पुराने संस्करण आपको बहुत कम में मिल सकते हैं। 

यदि आप चार्टिंग सॉफ़्टवेयर और डेटा के लिए इतना खर्च करने के मूड में नहीं हैं तो आपके लिए एक और विकल्प है ज़ेरोधा का साफ्टवेयर पाई (Pi)। 

जैसा कि आप जानते हैं, ज़ेरोधा के पास एक अपना खुद का ट्रेडिंग टर्मिनल है, जिसे Zerodha Pi कहा जाता है। पाई आपकी कई तरह से मदद करता है; मैं टेकक्निकल एनालिसिस से जुड़ी इसकी कुछ विशेषताओं पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं: 

  1. ह डबल पैकेज हैPi एक चार्टिंग सॉफ्टवेयर है और इसके साथ आपको डेटा फीड भी मुफ्त मिलता है, मतलब ये डबल पैकेज है 
  2. अच्छा विज़ुअलाइज़ेशनPi आपको इंट्राडे चार्ट के साथ साथ कई और समय सीमा वाले चार्ट की देखने में मदद करता है 
  3. आधुनिक फीचर्स Pi में आधुनिक चार्टिंग सुविधाएँ हैं। इसमें 80 टेक्निकल इंडिकेटर और 30 से अधिक ड्राइंग टूल पहले से शामिल हैं
  4. रणनीति की स्क्रिप्टिंग संभवPi में एक स्क्रिप्टिंग लैंग्वेज भी है जिसमें आप तकनीकी रणनीतियों को कोड कर सकते हैं और ऐतिहासिक डेटा पर उसे टेस्ट  कर सकते हैं। जेरोधा वर्सिटी पर हम जल्द ही ट्रेडिंग रणनीतियों और स्क्रिप्टिंग पर एक मॉड्यूल शामिल करेंगे 
  5. मौके पहचानने की आसानीPi में पैटर्न रेकोगनिशन फीचर (Pattern recognition feature) हैआप स्क्रीन पर एक पैटर्न ला सकते हैं। एक बार जब पैटर्न आ जाता है, तो Pi बाज़ार में उस पैटर्न को खोज निकालेगा।  
  6. Pi से ट्रेड करना संभवPi आपको चार्ट से सीधे ट्रेड करने की सुविधा देता है (टेक्निकल ट्रेडर के लिए ये बड़ी सुविधा है
  7. ऐतिहासिक डेटा डंपPi में एक बहुतड़ा ऐतिहासिक डेटा डंप (50,000 से अधिक कैंडल) है, जिसका मतलब है कि आप अपनी रणनीति का परीक्षण आसानी से कर सकेंगे।  
  8. आपका व्यक्तिगत ट्रेडिंग सहायक Pi के ‘विशेषज्ञ सलाहकार’, आपको बाजार में बन रहे नए पैटर्न के बारे में लाइव सूचना देते हैं 
  9. सुपर एडवांस्ड फीचर्सPi में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और जेनेटिक एल्गोरिदम हैं। ये आपको अपने ट्रेडिंग  करने में मदद करते हैं 
  10. यह मुफ़्त है – ज़ेरोधा अपने सभी ऐक्टिव ट्रेडर को Pi मुफ्त में दे रहा है 

तो आपने देखा कि काफी बड़ी लिस्ट है। इससे पहले कि आप चार्टिंग पैकेज और डेटा फीड को लेने पर कोई फैसला लेते हैं, मैं सुझाव दूंगा कि आप Pi का इस्तेमाल करके देखें। 

19.2 – किस समय सीमा को चुनना है? (Which time frame to choose?)

हमने अध्याय 3 में टाइमफ्रेम यानी समय सीमा पर चर्चा की थी। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि आप इसे एक बार दोबारा पढ़ें ताकि वो आपको याद रहे। 

ट्रेडिंग के अवसर तलाश करते समय टाइमफ्रेम का चयन करना नए निवेशक के लिए शायद सबसे बड़ी दुविधा होती है। ऐसे कई टाइमफ्रेम हैं जिन्हें आप चुन सकते हैं – 1 मिनट, 5 मिनट, 10 मिनट, 15 मिनट, EOD, साप्ताहिक, मासिक और वार्षिक। इतने विकल्पों को देख कर दुविधा हो सकती है। 

समय सीमा जितनी अधिक होगी, ट्रेडिंग सिग्नल उतना अधिक विश्वसनीय होगा। उदाहरण के लिए, एक बुलिश एनगल्फिंग पैटर्न 5 मिनट की जगह 15 मिनट के टाइमफ्रेम पर कहीं अधिक विश्वसनीय होगा। इसलिए इसे ध्यान में रखते हुए और अपने ट्रेड की लंबाई  के हिसाब से ही हर ट्रेड के लिए समय सीमा को चुनना होगा। 

आप अपने ट्रेड की लंबाई कैसे तय करते हैं? 

यदि आप नए ट्रेडर हैं या यदि आप एक अनुभवी ट्रेडर नहीं हैं, तो मैं आपको दिन के ट्रेड यानी डे ट्रेडिंग से बचने का सुझाव दूंगा। आप ट्रेड करें तो ये सोच कर कि कुछ दिन के लिए पोजीशन होल्ड करेंगे। इसे ‘पोजीशनल ट्रेड’ या ‘स्विंग ट्रेडिंग’ कहा जाता है। एक स्विंग ट्रेडर आमतौर पर कुछ दिनों के लिए अपनी पोजीशन को ओपन रखता है। स्विंग ट्रेडर के लिए सबसे अच्छा लुक बैक पीरियड 6 महीने से एक साल का होता है। 

दूसरी ओर, एक स्कैल्पर एक अनुभवी ट्रेडर होता है; आम तौर पर वह 1 मिनट या 5 मिनट के टाइमफ्रेम का इस्तेमाल करता है। 

एक बार जब आप कुछ दिनों वाले ट्रेड ठीक से करने लगें तो  आप को ’डे ट्रेडिंग’ की तरफ धीरे धीरे बढ़ सकते हैं। मेरा मानना है कि इसमें आपको कुछ समय लगेगा। आप जितने अनुशासन में रहेंगे ये समय उतना ही कम होगा।

19.3 – लुक बैक पीरियड (Look back period)

लुक बैक पीरियड का मतलब है कि ट्रेडिंग का निर्णय लेने से पहले आप पिछले कितने समय के कैंडल को देखना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, 3 महीने के लुक बैक पीरियड का मतलब है कि आप आज के किसी कैंडल को कम से कम पिछले 3 महीनों के डेटा की पृष्ठभूमि में देख रहे हैं। ऐसा करके आप पिछले 3 महीने से कीमत में आ रहे फेरबदल को ठीक से समझ सकेंगे और आज सही फैसला ले सकेंगे।  

स्विंग ट्रेडिंग के लिए सही लुक बैक पीरियड क्या है? मैं सुझाव दूंगा कि एक स्विंग ट्रेडर को कम से कम 6 महीने से एक साल के डेटा को देखना चाहिए। इसी तरह एक स्कैल्पर के लिए पिछले 5 दिनों के डेटा को देखना बेहतर होगा। 

S&R लेवल निकालते वक्त समय आपको लुक बैक पीरियड को कम से कम 2 साल तक बढ़ाना चाहिए।

19.4 – किन स्टॉक्स में ट्रेड करें (The opportunity universe)

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई – BSE) में लगभग 6000 स्टॉक लिस्टेड हैं और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई – NSE) में लगभग 2000 स्टॉक लिस्टेड हैं। क्या आप हर दिन इन हजारों शेयरों में से अपने लिए सही अवसर तलाश सकते हैं? नहीं ना! इसके लिए आपको ऐसे स्टॉक चुनने होंगे जिनमें आप आसानी से ट्रेड कर सकेंस्टॉक का यह समूह ही आपके लिए वह दुनिया या यूनिवर्स होगा जिसमें से आप अपने लिए हर दिन अवसर तलाश सकेंगे

 लेकिन यह स्टॉक्स आप चुनेंगे कैसे? इसके लिए आपको कुछ सिद्धांत बताते हैं:

  1. सबसे पहले देखें कि स्टॉक में पर्याप्त लिक्विडिटी हो। इसको देखने के लिए आप एक बार बिड (bid) और स्क (ask) की गिनती देखें। अगर बिड (bid) और स्क (ask)  के बीच में अंतर कम है तो इसका मतलब है कि स्टॉक लिक्विड है
  1. आप चाहें तो इसके बदले वॉल्यूम का भी पैमाना बना सकते हैं, बस तय कर लें कि कम से कम इतना वॉल्यूम होगा तभी ट्रेड करूंगा। उदाहरण के तौर पर आप केवल उन स्टॉक्स में ट्रेड करने का फैसला कर सकते हैं जिनमें कम से कम 500000 शेयर का वॉल्यूम हो
  1.  यह भी सुनिश्चित कीजिए कि स्टॉक ई क्यू (EQ) सेगमेंट में हो, ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि केवल क्यू (EQ) सेगमेंट के स्टॉक में ही डे ट्रेडिंग करने की अनुमति है। यानी इन्हीं में डे ट्रेडिंग हो सकती हैहालांकि मैंने नए लोगों को डे ट्रेडिंग ना करने की सलाह दी है लेकिन आपने अगर कोई पोजीशन ली है और आपका टारगेट उसी दिन जाता है तो अपनी पोजीशन क्लोज कर लेने और उस स्टॉक से निकल जाने में कोई बुराई नहीं है
  2. आप कोशिश करें कि यह भी सुनिश्चित हो जाए कि यह स्टॉक वैसा नहीं हो जिसे ऑपरेटर चलाते हैं। हालांकि ये पता करना थोड़ा मुश्किल काम है कि ऑपरेटर वाला स्टॉक कौन सा है? इसे जानने का कोई सीधा तरीका नहीं है, यह सिर्फ अनुभव से सकता है

अगर ऐसे स्टॉक्स चुनने में दिक्कत हो रही है जो ऊपर दी ग शर्तों को पूरा करते हो, तो मैं आपको सलाह दूंगा कि आप निफ्टी 50 या सेंसेक्स 30 के स्टॉक में ही बने रहें इंडेक्स स्टॉक्स के नाम से जाने वाले ये स्टॉक खुद स्टॉक एक्सचेंज द्वारा चुने जाते हैं और इनके चुने जाने की प्रक्रिया काफी अच्छी होती है। साथ ही, इनमें ऊपर दी गयी शर्तों का भी पालन होता है 

स्विंग ट्रेडर और स्कैलपर के लिए भी निफ़्टी 50 के स्टॉक्स में ही ट्रेड करना एक अच्छा आईडिया है

19.5 – मौके तलाशना (The Scout)

आइए अब देखते हैं कि उन स्टॉक्स का चुनाव कैसे किया जाए जिनमें हम ट्रेडिंग कर सकते हैं  इसके लिए हम एक प्रक्रिया बनाने की कोशिश करते हैं, जिसको देख कर आप अपने लिए सही ट्रेडिंग के मौके चुन सकते हैं खासकर स्विंग ट्रेडर के लिए यह एक बहुत अच्छा तरीका होगा

अभी तक हमने चार बहुत महत्वपूर्ण चीजों को समझा है:

  1. चार्टिंग सॉफ्टवेयर जिसमें हम ने सलाह दी है कि आप जेरोधा Pi का इस्तेमाल करें 
  2. टाइमफ्रे दिन के अंत के डाटा का इस्तेमाल करें। 
  3. अपॉर्च्यूनिटी यूनिवर्स- निफ़्टी 50 के शेयर 
  4. ट्रेड का तरीका पोजीशनल ट्रेड करें लेकिन जिसमें दिन में ही टारगेट पूरा होने पर पोजीशन बंद करने का रास्ता खुला हुआ हो
  5. लुक बैक पीरियड- कम से कम 6 महीने से 1 साल का डेटा और अगर S&R पर काम कर रहे हैं तो डेटा को 2 साल तक के लिए बढ़ा दें।

इन महत्वपूर्ण चीजों को पूरा करना बहुत जरूरी है। इसके बाद अब मैं बताता हूं कि मैं अपने लिए ट्रेड के मौके कैसे तलाशता हूं। इसे मैनें दो हिस्सों में बाँटा है।

भाग 1 मौके का चुनाव (The shortlisting process)

  1. मैं अपॉर्च्यूनिटी यूनिवर्स के शेयरों के चार्ट को देखता हूं।
  2. इन शेयरों के चार्ट में मैं केवल हाल के 3 या 4 कैंडल पर ही नजर रखता हूं
  3. इन 3 या 4 कैंडल पर नजर रखते समय मैं कोई पहचाना हुआ कैंडलस्टिक पैटर्न तलाशता हूं। 
  4. अगर मुझे कोई पहचाना हुआ कैंडलस्टिक पैटर्न दिख जाता है तो मैं उस स्टॉक को और गहराई से देखता हूं। 

भाग 2 – मौके को परखना (The Evaluation process)

ये सब करने के बाद आमतौर पर मुझे 4 से 5 शेयर मिल जाते हैं जो कि मेरे 50 शेयरों के अपॉर्च्यूनिटी यूनिवर्स का ही हिस्सा होते हैं। अब मैं इन 4-5 स्टॉक को गहराई से जाँचता हूं। आमतौर पर हर स्टॉक के चार्ट पर मैं 15 से 20 मिनट का समय लगाता हूं और देखता हूं कि: 

  1. जो पैटर्न दिख रहा है वो कितना ज्यादा मजबूत है। खासकर मैं यह देखने की भी कोशिश करता हूं कि क्या मुझे पैटर्न के मामले में थोड़ा फ्लेक्सिबल होने की जरूरत है?
    • उदाहरण के तौर पर अगर एक बुलिश मारूबोजू में शैडो है तो मैं ये जानने की कोशिश करता हूं कि इस शैडो की लंबाई उस रेंज के मुकाबले में कैसी है? 
  2. फिर मैं पिछले ट्रेंड पर नजर डालता हूं। बुलिश ट्रेंड के पहले का ट्रेंड नीचे की तरफ यानी डाउनट्रेंड होगा इसी तरह, बेयरिश ट्रेंड में पहले का ट्रेंड ऊपर की तरफ यानी अपट्रेंड होना चाहिए।  
  3. एक पहचाना हुआ पैटर्न मिलने और पिछला ट्रेंड सही दिशा में देख लेने के बाद मैं स्टॉक को और ज्यादा जांचने की कोशिश शुरू करता हूं। 
  4. इसके बाद मैं वॉल्यूम पर नजर डालता हूं वॉल्यूम कम से कम पिछले 10 दिन के एवरेज के बराबर या उससे ज्यादा होना चाहिए। 
  5. कैंडलस्टिक पैटर्न और वॉल्यूम की पुष्टि होने के बाद मैं सपोर्ट (लांग ट्रेड में) और रेजिस्टेंस (शॉर्ट ट्रेड में) को पहचानने की कोशिश करता हूं
    • जहाँ तक संभव हो S&R स्तर ट्रेड के स्टॉपलॉस (कैंडलस्टिक आधारित) के साथ मेल खाना चाहिए। 
    • यदि स्टॉपलॉस से S&R स्तर 4% से अधिक दूर है, तो मैं चार्ट का आगे मूल्यांकन करना बंद कर देता हूं और अगले चार्ट पर चला जाता हूं। 
  6. अब मैं डॉउ पैटर्न की तलाश करता हूं – विशेष रूप से डबल और ट्रिपल टॉप और बॉटम फॉर्मेशन, फ्लैग फॉर्मेशन और रेंज ब्रेकआउट की संभावना के लिए।
    • साथ ही, मैं प्राइमरी और सेकंडरी ट्रेंड भी देख लेता हूं।
  7. यदि अब तक सब सही चलता है यानी ऊपर के 1 से 5 तक सब कुछ संतोषजनक हैं, तो मैं RRR देखना शुरू करता हूं।  
    • RRR पता करने के लिए, रेजिस्टेंस या सपोर्ट के आधार पर अपना टारगेट तय करता हूं।
    • RRR कम से कम 1.5 होना चाहिए।
  8. अंत में मैं  MACD और RSI इंडिकेटर को देखता हूं, अगर वे पुष्टि करते हैं और अगर मेरे पास पैसे हैं तो मैं अपने सौदे का साइज बढ़ा देता हूं।

आमतौर पर 4-5 शॉर्टलिस्ट किए गए स्टॉक में से 1 या 2 ट्रेड के लायक होते हैं। कभी-कभी ट्रेड का एक भी अवसर नहीं होता हैं। ट्रेड ना करने का ये फैसला भी अपने आप में एक बड़ा निर्णय है। याद रखें कि यह एक काफी कड़ी चेकलिस्ट है, अगर कोई स्टॉक चेकलिस्ट की पुष्टि करता है, तो उस ट्रेड के लिए मेरा विश्वास बहुत अधिक बढ़ जाता है। 

एक बात जो मैंने इस मॉड्यूल में कई बार कही है, उसको यहाँ फिर दोहराता हूं – एक बार जब आप कोई ट्रेड करते हैं, तो तब तक कुछ भी न करें जब तक कि आपका टारगेट हासिल न हो जाए या स्टॉपलॉस शुरू न हो जाए। हाँ, आप अपने स्टॉपलॉस को ट्रेल जरूर कर सकते हैं। अगर आपका ट्रेड चेकलिस्ट का पालन करता है तो इसके सफल होने की संभावना अधिक है। 

19.5 स्कैल्पर (The Scalper)

एक अनुभवी स्विंग ट्रेडर के लिए दूसरा विकल्प है स्कैल्पिंग। स्कैल्पिंग करने वाला ट्रेडर बड़ा ट्रेड करता है लेकिन सिर्फ कुछ मिनटों के लिए। कुछ मिनट बाद ही वो इस ट्रेड से निकल जाता है।

ट्रेड का पहला हिस्सा ट्रेड का दूसरा हिस्सा
समय- 10:15 बजे समय- 10:25 बजे
शेयर-इन्फोसिस शेयर-इन्फोसिस
कीमत- 3980 कीमत- 3976
बेचा खरीदा
मात्रा- 1000शेयर मात्रा- 1000 शेयर

 

शुल्क के बाद कुल मुनाफा = 2644 रुपये

ध्यान दें, कुल मुनाफे की ये गणना यह मान कर की गयी है कि आप ज़ेरोधा Pi पर ट्रेड कर रहे हैं, अगर आप एक महंगी ब्रोकरेज दर पर स्कैल्पिंग कर रहे हैं तो मुनाफा कम हो सकता है। स्कैल्पिंग में  मुनाफे के लिए ट्रांजैक्शन चार्ज कम होना बेहद जरूरी है।   

स्कैल्पर एक ऐसा ट्रेडर होता है जिसका सारा फोकस कीमत पर होता है। वो 1 मिनट और 5 मिनट के टाइम फ्रेम वाले चार्ट के आधार पर अपने  ट्रेड का फैसला लेता है। स्कैल्पर दिन में कई ट्रेड करता है। उसकी लक्ष्य साफ होता है – दिन में कई छोटे-छोटे ट्रेड करो और कुछ मिनट तक ही उनको अपने पास रखो। उसको स्टॉक में आने वाले छोटे से मूव से भी फायदा मिल सकता है और वो इसी की कोशिश करता है।

अगर आपको स्कैल्पर बनना है तो आपके लिए कुछ दिशा-निर्देश दे रहा हूं-

    1. हमारे द्वारा ऊपर बताई गई चेकलिस्ट को याद रखें, लेकिन चेकलिस्ट के सभी बिन्दुओं के अनुपालन की उम्मीद न करें क्योंकि ट्रेड की अवधि बहुत कम होती है। 
    2. अगर मुझे स्कैल्पिंग के लिए चेकलिस्ट में सिर्फ 1 या 2 महत्वपूर्ण बिंदु बताने हों तो मैं कैंडलस्टिक पैटर्न और वॉल्यूम को चुनुंगा। 
    3. स्कैल्पिंग करते समय भी 0.5 से 0.75 का RRR ठीक माना जाता है।
    4. स्कैलपिंग केवल लिक्विड स्टॉक में ही किया जाना चाहिए। 
    5. अच्छा रिस्क मैनेजमेंट रखें – जरूरत पड़ने पर फौरन लॉस बुक करने के लिए तैयार रहें।
    6. यह देखने के लिए कि वॉल्यूम कैसे हो रहे  हैं आप बिड और आस्क के अनुपात पर नजर रखें।  
    7. दुनिया के दूसरे बाजारों पर भी नज़र रखें – उदाहरण के लिए अगर हैंग सेंग (हांगकांग स्टॉक एक्सचेंज) में अचानक गिरावट आई है, तो घरेलू बाजारों में भी अचानक गिरावट आ सकती है।
    8. अपनी लागत कम करने के लिए कम लागत वाला ब्रोकर चुनें।
    9. मार्जिन का प्रभावी ढंग से उपयोग करें, अधिक लीवरेज न लें।
    10. एक विश्वसनीय इंट्राडे चार्टिंग सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करें।
    11. यदि आपको लगता है कि दिन अच्छा नहीं जा रहा है, तो ट्रेड करना बंद कर दें और अपने टर्मिनल से दूर चले जाएं।

एक डे ट्रेडिंग तकनीक के रूप में स्कैल्पिंग का इस्तेमाल करने के लिए तेज फैसले और मशीन जैसे काम करने की आदत होनी चाहिए। एक सफल स्कैल्पर बाजार की उठापटक से घबराता नहीं है बल्कि उसको पसंद करता है।


इस अध्याय की मुख्य बातें 

    1. अगर आपको अच्छा टेक्निकल ट्रेडर बनना है तो आपको एक अच्छे चार्टिंग सॉफ्टवेयर की जरूरत पड़ेगी इसमें मेरी पसंद होगी जीरोधा पाई। 
    2. डे ट्रेडिंग और स्विंग ट्रेडिंग के लिए दिन के अंत का चार्ट यानी EOD चार्ट का इस्तेमाल करें।
    3. अगर आप स्कैल्पिंग कर रहे हैं तो इंट्राडे चार्ट का इस्तेमाल करें।
    4. स्विंग ट्रेडिंग के लिए कम से कम 6 महीने से 1 साल के लुक बैक पीरियड का इस्तेमाल करें।
    5. शुरुआत करने के लिए निफ्टी 50 को अपॉर्च्यूनिटी यूनिवर्स के तौर पर इस्तेमाल करें।
    6. अवसर की तलाश 2 हिस्सों में करें।
    7. पहले हिस्से में अपने अपॉर्च्यूनिटी यूनिवर्स में से सभी चार्ट को देखें और कुछ स्टॉक को शॉर्टलिस्ट करें। 
    8. दूसरे हिस्से के लिए शॉर्टलिस्ट किए हुए स्टॉक्स के चार्ट को और गहराई से देखें और सही मौका चुने।
    9. स्कैल्पिंग उन लोगों के लिए होती है जो अच्छे या पुराने स्विंग ट्रेडर होते हैं।

The post शुरू करने से पहले कुछ ज़रूरी जानकारी appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b6%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%82-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b9%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%9b-%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a5%82/feed/ 68 M2-Ch19-illustration1 M2-Ch19-illustration6 M2-Ch19-illustration3 M2-Ch19-illustration4 M2-Ch19-illustration5 M2-Ch19-illustration2
ट्रेडिंगव्यू के उपयोगी फीचर https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%97%e0%a5%80-%e0%a4%ab/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%97%e0%a5%80-%e0%a4%ab/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:53:58 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5736 यदि आप अब तक नहीं जानते हैं, तो हम बता दें कि अब ट्रेडिंगव्यू (TV) जेरोधा काइट पर उपलब्ध है। बीटा लॉन्च की घोषणा करने वाली Trading Q&A पोस्ट के लिए यहाँ क्लिक करें। इसीलिए मुझे लगा कि मैं ट्रेडिंगव्यू (TV) की अपनी कुछ पसंदीदा विशेषताएं आपको बता दूं। उम्मीद है कि इससे आपको मदद […]

The post ट्रेडिंगव्यू के उपयोगी फीचर appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
यदि आप अब तक नहीं जानते हैं, तो हम बता दें कि अब ट्रेडिंगव्यू (TV) जेरोधा काइट पर उपलब्ध है। बीटा लॉन्च की घोषणा करने वाली Trading Q&A पोस्ट के लिए यहाँ क्लिक करें।

इसीलिए मुझे लगा कि मैं ट्रेडिंगव्यू (TV) की अपनी कुछ पसंदीदा विशेषताएं आपको बता दूं। उम्मीद है कि इससे आपको मदद मिलेगी, खासकर यदि आप ट्रेडिंगव्यू (TV) पर नए हैं। ट्रेडिंगव्यू (TV) पर अधिकतर चार्टिंग सुविधाएं आसान हैं और उनको समझना मुश्किल नहीं होगा। लेकिन मैं कुछ ऐसी चीजों पर बात करूंगा जो तब काफी काम आ सकती हैं जब आप चार्ट के साथ काम कर रहे हों। 

21.1 मल्टी टाइमफ्रेम सेटिंग (Multi timeframe settings)

यह फीचर सिर्फ TV पर ही नहीं है इसके अलावा दूसरे प्लेटफार्म पर भी ये सुविधा है लेकिन मुझे लगता है कि यह अन्य प्लेटफार्मों की तुलना में TV पर बेहतर काम करता है। मुझे यकीन है कि आप में से अधिकांश लोग लेआउट विकल्पों से परिचित हैं। 

कल्पना कीजिए कि आप ‘इंडिगो’ पर इंट्राडे ट्रेड करना चाहते हैं। आप ऑर्डर देने से पहले देखना चाहते हैं कि इंडिगो की कीमत अलग-अलग टाइमफ्रेम पर कैसी दिखती है। आमतौर पर आपको टाइमफ्रेम को 1 दिन से 15 मिनट या 5 मिनट में बदलना होगा। हालांकि ऐसा करने से काम पूरा हो जाएगा लेकिन और भी अच्छा होता यदि आप अलग अलग टाइमफ्रेम का चार्ट एक साथ देख सकते। इससे आपको कीमत की तुलना करने में मदद मिलती।  उदाहरण के लिए, मुझे 1 दिन का चार्ट, 30 मिनट का चार्ट और 15 मिनट का चार्ट सभी एक ही समय में देखना पसंद आता ।

 आप इसे TV पर आसानी से कर सकते हैं। देखिए कैसे –

ऊपरी दाएं कोने पर उपलब्ध एक विकल्प- “सेलेक्ट लेआउट” पर क्लिक करें, और एक ऐसा लेआउट चुनें जो आप चाहते हों। चूँकि मुझे 3 चार्ट चाहिए, इसलिए मैंने एक 3 चार्ट लेआउट चुना।

एक बार जब आप लेआउट को चुनते हैं, तो यह चार्ट ऐसा दिखाई देता है। सभी तीन चार्ट में आप एक ही स्टॉक, एक ही टाइमफ्रेम देख रहे हैं  – इंडिगो का 1 डे चार्ट ।

यह भी ध्यान दें, तीन चार्ट में से बाएं पैनल वाले को नीले रंग के बॉर्डर से हाईलाइट किया गया है।

अब हमें तीनों में टाइम फ्रेम को बदलना है। मेरी व्यक्तिगत प्राथमिकता बाएं पैनल को उस टाइम फ्रेम पर रखना है जिसमें मैं ट्रेड करने का इरादा रखता हू यानी 15 मिनट पर दायीं ओर ऊपर का पैनल 30 मिनट होग और दायां निचला पैनल 1 दिन का होगा। आप किसी भी चार्ट पर क्लिक करके टाइम फ्रेम को बदल सकते हैं (जब आप ऐसा करते हैं, तो चार्ट हाईलाइट हो जाता है और एक नीला बॉर्डर दिखाई देता है), । टाइमफ्रेम को बदलने का विकल्प लाल तीर द्वारा हाईलाइट किया गया है।

अब इस लेऑउट के साथ मैं तीनों टाइम फ्रेम में हुए कीमत के बदलाव को एक साथ देख सकता हूं।

एक बार ये सेट अप होने के बाद आप कई अच्छी चीजें कर सकते हैं- जैसे तीनों चार्ट में क्रॉसहेयर (crosshair) एक साथ सामंजस्य में चलेगा।

ऐसे में, जब आप क्रॉसहेयर को एक विशेष मूल्य बिंदु पर रखते हैं, तो यह एक साथ सभी समय फ़्रेमों में दिखाई देता है। यह आपको टाइमफ्रेम के दौरान प्राइस में हो रही हरकत को समझने में मदद करता है।

तीन चार्ट में से, यदि आप किसी 1 विशेष चार्ट पर ध्यान देना चाहते हैं, तो बस दाईं ओर स्थित टॉगल (toggle) बटन पर क्लिक करें। वह चार्ट बड़ा हो जाएगा। 

आप चार्ट पर टिप्पणी कर सकते हैं, इस पर नोट्स बना सकते हैं, और इसे केवल अपने टाइमफ्रेम पर देख सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी दिन के अंत का चार्ट (EOD chart) का एक डबल टॉप का संकेत दे सकता है, तो मैं अपने शॉर्ट के साथ तैयार रहना चाहूंगा। ऐसे में मैं सिर्फ उस चार्ट पर नोट्स बना कर रख सकता हूं। सिर्फ मुझे टेक्स्ट बॉक्स (Text Box) पर क्लिक करना है और एक बॉक्स चुनना है –

अब टेक्स्ट बॉक्स को अपने चुने हुए टाइमफ्रेम में ले जा कर अपने नोट्स लिख लीजिए।

मल्टी टाइमफ्रेम के साथ मिलने वाली ये सुविधा इंट्रा डे ट्रेडर के काफी काम की है।

21.2 सुधारने और फिर से करने यानी undo and redo की सुविधा

 यह एक और विशेषता है जो मुझे बहुत पसंद है। कई बार मैं चार्ट में गलत ट्रेंड लाइन्स और इंडिकेटर्स लगा देता हूं, जैसे ये :

दूसरे जगह पर आपको इस ट्रेंड लाइन को चुन करके उसे डिलीट करना यानी मिटाना होगा, लेकिन TV पर ये सिर्फ एक क्लिक से हो सकता है। ध्यान दें कि ये सुविधा सिर्फ सबसे आखिर वाले एक्शन को सुधारने के लिए ही है।

21.3- चार्ट में टाइमफ्रेम पर स्टडी करने यानी विजीबिल्टी की सुविधा (Visibility)

एक और रोचक सुविधा है विजीबिलिटी की। इसके जरिए आप किसी भी ट्रेंड लाइन या ड्रॉइंग को किसी भी टाइम फ्रेम पर देख सकते हैं। जैसे यहाँ फिबोनाची रीट्रेसमेंट को EOD चार्ट पर दिखाया गया है

 अब मैं इसकी जगह एक हर घंटे वाला चार्ट लाता हूं और फिबोनाची रीट्रेसमेंट अभी भी देख सकता हूं।

ये एक भटकाने वाली बात भी हो सकती है क्योंकि ये इस टाइमफ्रेम के लिए काम की स्टडी नहीं है। लेकिन TV में ये सुविधा इसलिए दी गयी है जिससे आप अपने मनचाहे टाइमफ्रेम में इसका उपयोग कर सकें। और आप जब टाइमफ्रेम बदलें तो ये स्टडी नहीं दिखेगी। इसके लिए आपको सिर्फ स्टडी की सेटिंग बदलनी होगी।

यहाँ मैने सेटिंग में डाला है कि मुझे स्टडी सिर्फ EOD चार्ट पर चाहिए। अब अगर मैं टाइमफ्रेम बदलता हूं तो मुझे स्टडी नहीं दिखेगी।

21.4- किसी भी तारीख पर जाने यानी गो टू डेट की सुविधा (Go-to date)

कितनी ही बार आप यह पता लगाना चाहते हैं कि एक निश्चित समय पर और एक निश्चित तारीख को शेयर की कीमत में क्या हो रहा था? उदाहरण के लिए मान लीजिए कि मैं जानना चाहता हूं कि Infy ने 2 जनवरी 2019 को दोपहर 12:30 बजे क्या किया था। यह पता लगाने के लिए, आपको आमतौर पर चार्ट के माध्यम से स्क्रॉल करना होगा और कई कोशिशों के बाद आप सटीक तिथि पर पहुंचेंगे। TV के साथ ऐसा कोई झंझट नहीं है, क्योंकि TV में एक ‘गो-टू’ सुविधा है। यह फीचर आपको इंट्राडे आधार पर भी सटीक कैंडल तक ले जा सकता है। यह फीचर चार्ट के निचले भाग में उपलब्ध है।

यहाँ मैं 5 मार्च के 12.15 बजे के कैंडल को देख रहा हूं

21.5 – HD चित्र (HD images)

कई बार आप बहुत मेहनत से खूब स्टडी करके एक चार्ट बनाते हैं और उसे दूसरों के साथ व्हाट्सऐप और ट्वीट के जरिए शेयर करना चाहते हैं और इसके लिए आपको स्क्रीनशॉट लेना पड़ता है। लेकिन TV में इसे भेजने का एक बढिया और सुन्दर तरीका है। 

आपको सिर्फ Alt + S दबाना है

इससे आपको सेव करने या ट्वीट करने का ऑप्शन मिल जाएगा।

हैप्पी ट्रेडिंग!

The post ट्रेडिंगव्यू के उपयोगी फीचर appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%82-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%97%e0%a5%80-%e0%a4%ab/feed/ 95 M2-Ch4-title Image 1_TV Image 2_layout Image 3_load image 4_ch Image 2_layout image 5_toggle image 7_annotate Image 8_undo image 9_fib retracement Image 10_hr Image 11_vis Image 12_goto Image 13_gototime Image 14_image
कुछ ज़रूरी नोट्स – 1 https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%9b-%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b8-1/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%9b-%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b8-1/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:53:52 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5740 ऐवरज डायरेक्शनल इंडेक्स (Average Directional Index- ADX) ऐवरज डायरेक्शनल इंडेक्स, डायरेक्शनल मूवमेंट इंडिकेटर्स के एक ऐसे समूह का हिस्सा है जिसे वो ट्रेडिंग सिस्टम बनता है, जिसे वेलेस वाइल्डर ने बनाया था। इस समूह में माइनस डायरेक्शनल इंडिकेटर और प्लस डायरेक्शनल इंडिकेटर भी होते हैं। ऐवरज डायरेक्शनल इंडेक्स किसी ट्रेंड की मज़बूती को नापता है […]

The post कुछ ज़रूरी नोट्स – 1 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

ऐवरज डायरेक्शनल इंडेक्स (Average Directional Index- ADX)

ऐवरज डायरेक्शनल इंडेक्स, डायरेक्शनल मूवमेंट इंडिकेटर्स के एक ऐसे समूह का हिस्सा है जिसे वो ट्रेडिंग सिस्टम बनता है, जिसे वेलेस वाइल्डर ने बनाया था। इस समूह में माइनस डायरेक्शनल इंडिकेटर और प्लस डायरेक्शनल इंडिकेटर भी होते हैं। ऐवरज डायरेक्शनल इंडेक्स किसी ट्रेंड की मज़बूती को नापता है जबकि बाकी दोनों इंडिकेटर यानी प्लस डायरेक्शनल इंडिकेटर और माइनस डायरेक्शनल इंडिकेटर, उस ट्रेंड की दिशा निर्धारित करते हैं। इस पूरे समूह को एक साथ इस्तेमाल करके ट्रेंड की ताकत या मज़बूती और दिशा- दोनों का पता लगाया जा सकता है। 

आपको क्या जानना चाहिए? 

  1. ADX सिस्टम में 3 चीजें होती हैं- ADX, +DI, और -DI 
  2. ADX का इस्तेमाल ट्रेंड की मज़बूती या कमज़ोरी जानने के लिए किया जाता है, उसकी दिशा जानने के लिए नहीं। 
  3. 25 के ऊपर का ADX बताता है कि ट्रेंड मज़बूत है, जबकि 20 के नीचे का ADX बताता है कि ट्रेंड मज़बूत नहीं है। 20 से 25 के बीच का ADX कुछ भी साफ-साफ नहीं बताता। 
  4. जब ADX 25 हो और +DI, – DI को पार कर रहा हो, तो इसको स्टॉक खरीदने का संकेत मानना चाहिए। 
  5. ADX 25 हो, और -DI, +DI को पार कर रहा हो, तो इसे बेचने का संकेत मानना चाहिए। 
  6. जब बेचने और खरीदने का संकेत मिल जाए, तो फिर स्टॉपलॉस तय करके ट्रेड करना चाहिए। 
  7. जिस कैंडल से खरीदने का संकेत मिल रहा हो, उसका लो (Low) स्टॉपलॉस होगा और जिस कैंडल से बेचने का संकेत मिल रहा हो, उसका हाई (High) स्टॉपलॉस होगा। 
  8. जब तक स्टॉपलॉस ना टूट जाए, तब तक ये ट्रेड मान्य होगा। 
  9. ADX के लिए लुक बैक पीरियड (Look back period) आमतौर पर 14 दिन का होता है। 

Kite पर इसका इस्तेमाल 

ADX इंडिकेटर लोड करें। Kite पर लुक बैक पहले से दिया गया होता है, लेकिन आप उसे बदल भी सकते हैं। 

 

आप ADX सिस्टम के तीनों हिस्सों को अलग-अलग रंग दे सकते हैं। इंडिकेटर को लोड करने के लिए, Create  पर क्लिक करें। 

जब आप ADX इंडिकेटर को लोड करेंगे तो वो इंस्ट्रूमेंट के नीचे लोड होगा। काले रंग की रेखा ADX को दिखाती है। जब भी आप क्रॉसओवर की तलाश कर रहे हों, तो ध्यान दें कि ADX 25 के ऊपर हो। 

ऐलिगेटर इंडिकेटर 

ये एक ऐसा इंडिकेटर है, जो ट्रेंड के न होने, उसमें कोई दिशा न होने या उसके न बन पाने की स्थिती को बताता है। बिल विलियम्स (Bill Williams) ने पहली बार ऐलिगेटर के बर्ताव को पहचाना था और इसे बाज़ार का वो रूप बताया था जो एक घड़ियाल की तरह व्यवहार करता है। मतलब, आराम का वह दौर जो तब आता है, जब घड़ियाल खाना खाने के बाद सो जाता है। ऐसे ही बाज़ार में भी कीमत में फेर बदल के बाद एक सुस्ती यानी सोने का दौर आता है। जैसे घड़ियाल जितना लंबा सोता है, उतना भूखा हो जाता है, वैसे ही बाज़ार भी जितनी देर सुस्ती के दौर में रहता है, आने वाला मूव (Move) उतना ही मज़बूत होता है। 

आपको क्या जानना चाहिए? 

  1. ऐलिगेटर इंडिकेटर को प्राइस चार्ट के ऊपर लगाया जाता है। 
  2. ये इंडिकेटर 3 सिंपल मूविंग ऐवरेज (SMA) – 13,8 और 5 से बनता है। 
  3. 13 की अवधि का मूविंग ऐवरेज ऐलिगेटर के जबड़े को बताता है, 8 की अवधि का मूविंग ऐवरेज ऐलिगेटर के दाँत को बताता है, और 5 की अवधि की मूविंग ऐवरेज ऐलिगेटर के होंठ को दर्शाता है। 
  4. 13 MA नीले रंग का, 8 MA लाल और 5 MA हरा होता है। 
  5. खरीदने का संकेत तब बनता है जब-
    1. तीनों MA अलग-अलग हों
    2. कीमत 5 MA से ऊपर हो, 5 MA – 8 MA से ऊपर हो, और 8 MA- 13 MA  से ऊपर हो
    3. जब ऊपर की शर्तें पूरी हों, तो इसका मतलब है कि एसेट का ट्रेंड ऊपर की तरफ है
    4. जब ऊपर का ट्रेंड निश्चित हो जाए, तो ट्रेडर को एक अच्छा एंट्री प्वाइंट तलाशना चाहिए
  6. बेचने का संकेत तब बनता है जब-
    1. तीनों MA अलग-अलग हों
    2. कीमत 5 MA से नीचे हो, 5 MA – 8 MA से नीचे हो, और 8 MA- 13 MA  से नीचे हो
    3. जब ऊपर की शर्तें पूरी हों, तो इसका मतलब है कि एसेट का ट्रेंड नीचे की तरफ है
    4. जब नीचे का ट्रेंड निश्चित हो जाए, तो ट्रेडर को एक अच्छा एंट्री प्वाइंट तलाशना चाहिए
  7. ऐसा समय जब 13,8 और 5 MA एक फ्लैट ज़ोन में हों, तो उसे नो ट्रेडर ज़ोन कहा जाता है, और ऐसे में ट्रेडर को बाज़ार से दूर रहना चाहिए। 

Kite पर ऐलिगेटर इंडिकेटर का इस्तेमाल: 

ऐलिगेटर इंडिकेटर  को स्टडीज से लोड कीजिए। जब आप लोड करेंगे तो 13,8 और 5 के MA अपने आप लोड हो जाएंगे। 

आपको दिखेगा कि इंडिकेटर इनपुट हर MA के लिए एक ऑफसेट वैल्यू (Offset Value) भी दिखाता है, जो कि अपने आप लोड हो जाती है। मूविंग ऐवरेज को ऑफसेट करने या डिसप्लेस करने से ऐवरेज में व्हिपसॉ (Whipsaw) के नंबर कम हो जाते हैं। आप जब भी चाहें मूविंग ऐवरेज और ऑफसेट को अपने हिसाब से बदल सकते हैं। आप चाहें तो इनका रंग भी अपने हिसाब से डाल सकते हैं। 

नीचे हमने दिखाया है कि जब इस इंडिकेटर को चार्ट के ऊपर लगाया जाता है तो ये कैसा दिखता है। दो स्थानों पर बेचने की शर्तें पूरी हो रही हैं (लाल रंग से उसे दिखाया गया है) और एक स्थान पर खरीदने की शर्त पूरी हो रही है, जिसे नीले रंग से दिखाया गया है। 

अरूण (Aroon)

एक स्टॉक ट्रेंड कर रहा है या नहीं और वो ट्रेंड कितना मज़बूत है, ये बताने के लिए 1995 में तुषार चांदे ने अरूण नाम का इंडिकेटर बनाया। अरूण संस्कृत का शब्द है जिसका मतलब होता है- सुबह की आभा या पहली किरण। चांदे ने नाम इसलिए चुना क्योंकि इसके ज़रिए वो नए ट्रेंड की शुरूआत को बताना चाहते थे। अरूण इंडिकेटर उस अवधि को मापता है जिस अवधि में कीमत ने एक हाई या लो बनाया है। इसमें दो तरह के इंडिकेटर होते हैं- अरूण अप (Arun-Up) और अरूण डाउन (Arun-Down)

25 दिन का अरूण अप 25 दिन के हाई से अब तक के दिनों को मापता है। इसी तरह से 25 दिन अरूण डाउन, 25 दिन के लो से अब तक के दिनों को गिन कर बताता है। अरूण इंडिकेटर किसी आम मोमेंटम ऑसिलेटर (Momentum Oscillator) से इस मामले में अलग है कि वो समय को कीमत के हिसाब से देखता है, जबकि दूसरे मोमेंटम ऑसिलेटर कीमत को समय के हिसाब से देखते हैं। अरूण इंडिकेटर का इस्तेमाल नए ट्रेंड को और कंसॉलिडेशन को पहचानने के लिए, करेक्शन की अवधि को परिभाषित करने के लिए और रिवर्सल का अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है। 

आपको क्या जानना चाहिए? 

  1. ये इंडिकेटर पिछले हाई या लो से अब तक के दिनों को नापता है, यानी समय को कीमत के हिसाब से देखता है। 
  2. अरूण के दो हिस्से होते हैं- अरूण अप, और अरूण डाउन
  3. आमतौर पर अरूण 25 दिन का होता है। अरूण अप 25 दिनों के हाई से अब तक के दिनों को नापता है, जबकि अरूण डाउन 25 दिनों के लो से अब तक के दिनों को नापता है। 
  4. अरूण अप और अरूण डाउन,एक चार्ट पर अगल-बगल बनते हैं।
  5. अरूण अप/डाउन नीचे में 0 (ज़ीरो) और ऊपर में 100 तक हो सकता है।
  6. जब अरूण अप 50 के ऊपर होता है, या अरूण लो 30 के नीचे होता है, तो खरीदने का संकेत होता है। 
  7. जब अरूण डाउन 50 के ऊपर, और अरूण अप 30 के नीचे, तो बेचने का संकेत होता है।

Kite पर अरूण का इस्तेमाल 

नीचे के चित्र में ये दिखाया गया है कि जब इस इंडिकेटर को स्टडीज से लोड किया जाता है तो ये कैसा दिखता है- 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि डिफॉल्ट अवधि 14 दिन की दिख रही है। आप इसको अपनी ज़रूरत के हिसाब से बदल सकते हैं। याद रखें कि अगर ये अवधि 14 दिन की है, तो अरूण ये बता रहा है कि 14 दिन के हाई या लो से अब तक कितने दिन हुए हैं। 

आप देख सकते हैं कि अरूण अप और अरूण डाउन, दोनों साथ में हैं। 

अरूण ऑसिलेटर (Arun Oscillator)

अरूण ऑसिलेटर, अरूण इंडिकेटर का ही विस्तार है। अरूण ऑसिलेटर और अरूण अप और डाउन के बीच के अंतर को नापता है और इसे एक ऑसिलेटर के रूप में दिखाता है। ये ऑसिलेटर -100 से 100 के बीच में घूमता है और 0 इसका केंद्र बिंदू होता है। नीचे के चार्ट में अरूण ऑसिलेटर को दिखाया गया है। 

इस ऑसिलेटर का 0 के ऊपर होने का मतलब है कि अरूण अप, अरूण डाउन से बड़ा है, यानी पिछले कुछ समय में कीमतें नया हाई ज्यादा बार बना रही हैं। ठीक इसका उल्टा, 0 के नीचे होने का मतलब है कि अरूण डाउन, अरूण अप से बड़ा है, यानी कीमतें नए हाई से ज्यादा नए लो बना रही हैं। 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि अरूण ऑसिलेटर आमतौर पर या तो पॉजिटिव होगा या निगेटिव होगा। इस वजह से इस ऑसिलेटर को पढ़ना आसान हो जाता है। समय और कीमत दोनों तब तेज़ी दिखाते हैं, जब ये इंडिकेटर पॉजिटिव हो और मंदी दिखाते हैं, जब ये इंडिकेटर निगेटिव हो। पॉजिटिव और निगेटिव में ये इंडिकेटर किस संख्या पर, उससे पता चलता है कि ट्रेंड कितना मज़बूत है। उदाहरण के तौर पर, 50 के ऊपर होने का मतलब है कि मज़बूत तेज़ी है, जबकि इसके -50 के नीचे होने का मतलब कि मंदी में मज़बूती है। 

एवरेज ट्रू रेंज (Average True Range)

एवरेज ट्रू रेंज (ATR) को जे वेल्स वाइल्डर ने विकसित किया था। इसका इस्तेमाल बाज़ार की वोलैटिलिटी () उठा-पटक को नापने के लिए किया जाता है। वाइल्डर ने ATR को बनाते हुए, कमोडिटीज और दैनिक कीमतों को भी ध्यान में रखा था। कमोडिटीज आमतौर पर स्टॉक्स के मुकाबले ज्यादा उठा-पटक दिखाते हैं। इनमें गैप ओपनिंग () और लिमिट मूव () ज्यादा होते हैं। ऐसा तब होता है जब कोई कमोडिटी उतना ऊपर या नीचे खुलती है, जितना ऊपर या नीचे खुलने की उसकी सीमा होती है। वोलैटिलिटी नापने का वो फॉर्मूला, जो हाई और लो के आधार पर बना होता है, वो गैप या लिमिट वाली उठा-पटक को ठीक से नहीं बता पाता। वाइल्डर ने इसलिए ATR बनाया था। याद रखिए कि ATR कीमत की दिशा नहीं बताता बल्कि सिर्फ वोलैटिलिटी को दिखाता है। 

आपको क्या जानना चाहिए? 

  1. ATR ट्रू रेंज सिद्धांत का एक विस्तार है। 
  2. ATR में ऊपर या नीचे की कोई सीमा नहीं होती। ये कोई भी वैल्यू दिखा सकता है। 
  3. ATR हर स्टॉक की कीमत के लिए अलग-अलग होता है। मतलब, स्टॉक नंबर 1 के लिए ATR 1.2 हो सकता है, जबकि स्टॉक नंबर 2 के लिए ATR 150 भी हो सकता है। 
  4. ATR वोलैटिलिटी को नापने की कोशिश करता है ना कि कीमत की दिशा को। 
  5. ATR स्टॉपलॉस को भी बता सकता है। 
  6. अगर एक स्टॉक का ATR 48 है, तो इसका मतलब है कि आमतौर पर वह स्टॉक 48 प्वाइंट ऊपर या नीचे की तरफ मूव कर सकता है। आप इसे किसी खास दिन के रेंज में डाल कर उस दिन के स्टॉक कीमत का रेंज पता कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर स्टॉक की कीमत 1320 है तो स्टॉक 1320-48 = 1272 और 1320+48 =1368 के बीच में रहेगा। 
  7. अगर अगले दिन का ATR 40 हो जाता है तो इसका मतलब है कि वोलैटिलिटी कम हो रही है और स्टॉक की रेंज भी कम होगी। 
  8. ATR का सबसे अच्छा इस्तेमाल वोलैटिलिटी पर आधारित स्टॉपलॉस को पहचानने के लिए होता है। उदाहरण के लिए, मान लिजिए कि आपने किसी स्टॉक को 1325 के भाव पर खरीदने का फैसला किया तो आपका स्टॉपलॉस 1272 होना चाहिए क्योंकि ATR 48 है। 
  9. इसी तरह से अगर आपने 1320 पर शॉर्ट जाने का फैसला किया है तो आपका स्टॉपलॉस 1368 होना चाहिए। 
  10. अगर ये स्टॉपलॉस आपके रिस्क टू रिवार्ड में फिट नहीं बैठते तो ऐसे ट्रेड को छोड़ देना ही बेहतर है। 

Kite पर ATR का इस्तेमाल:

जैसा कि आप देख सकते हैं कि ATR की डिफॉल्ट वैल्यू 14 दिख रही है। इसका मतलब है कि पिछले 14 दिन के ATR की गणना की गई है। वैसे आप इसे अपने हिसाब से बदल सकते हैं। 

जब आप चार्ट लोड करते हैं, तो ATR प्राइस चार्ट के नीचे दिखाई देता है। 

तो अगली बार जब आप स्टॉपलॉस लगाएं, तो ATR से उसे ज़रूर चेक करें। मेरी सलाह होगी कि आप वोलैटिलिटी और इसके उपयोग के बारे में और ज्यादा पढ़ाई करें। 

एवरेज ट्रू रेंज बैंड (Average True Range Band)

ATR बैंड, ATR का ही विस्तार है। ATR बैंड अपर और लोअर बैंड कैलकुलेट करके ये पता लगाने की कोशिश करता है कि स्टॉक की कीमतों में कोई असाधारण बदलाव तो नहीं हो रहा या वो किसी खास दिशा में ट्रेंड तो नहीं कर रहा। इसके लिए स्टॉक की कीमत के आस-पास एक एनवेलप/ऑनवेलप बना कर देखा जाता है। 

आपको क्या जानना चाहिए? 

  1. स्टॉक की कीमत के आस-पास अपर और लोअर एनवेलप/ऑनवेलप बना कर ATR बैंड की गणना की जाती है। 
  2. सबसे पहले स्टॉक की कीमत का मूविंग एवरेज () निकाला जाता है। 
  3. मूविंग एवरेज में ATR की वैल्यू को जोड़ा जाता है और इससे अपर एनवेलप/ऑनवेलप बनता है। 
  4. मूविंग एवरेज में से ATR की वैल्यू को घटाया जाता है और इससे लोअर एनवेलप/ऑनवेलप बनता है। 
  5. अगर स्टॉक की कीमत लोअर या अपर एनवेलप/ऑनवेलप के पार निकल जाती है, तो ये उम्मीद की जाती है कि स्टॉक की कीमत उसी दिशा में आगे चलती रहेगी। उदाहरण के तौर पर अगर स्टॉक की कीमत ने अपर एनवेलप/ऑनवेलप को पार किया है, तो उम्मीद है कि स्टॉक ऊपर की तरफ चलेगा। 
  6. ATR बैंड को बॉलिंगर बैंड ट्रेडिंग सिस्टम () की जगह भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 

Kite पर एवरेज ट्रू रेंज बैंड का इस्तेमाल: 

जब आप ATR बैंड को लोड करेंगे तो आपको और कुछ चीजें भी भरनी होंगी। 

पीरियड में मूविंग एवरेज टाइम फ्रेम भरना होगा, वैसे डिफॉल्ट वैल्यू 5 दिन की है, लेकिन आप इसे अपनी ज़रूरत के हिसाब से बदल सकते हैं। हमारी सलाह होगी कि आप shift को जैसे का तैसा छोड़ दें। Field में close सेलेक्ट करें क्योंकि इससे आपको क्लोजिंग प्राइस का मूविंग एवरेज दिखेगा। बाकी सारी जानकारियाँ चार्ट को सुंदर बनाने के लिए माँगी गई हैं, आप इसे खुद इस्तेमाल करके देख लें। आप जब Create पर क्लिक करेंगे, तो ATR बैंड चार्ट पर बन जाएगा। 

सुपर ट्रेंड (Super Trend)

सुपर ट्रेंड को समझने के पहले ATR को जानना ज़रूरी था क्योंकि सुपर ट्रेंड इंडिकेटर में ATR का इस्तेमाल होता है। सुपर ट्रेंड इंडिकेटर भी स्टॉक या इंडेक्स के प्राइस चार्ट पर बनाया जाता है। इंडिकेटर की रेखा कीमत के मुताबिक लाल या हरे रंग की होती है। सुपर ट्रेंड दिशा नहीं बताता बल्कि दिशा तय होने के बाद, पोजिशन बनाने में मदद करता है और बताता है कि ट्रेंड के खत्म होने तक पोजिशन छोड़नी नहीं चाहिए। 

आपको क्या जानना चाहिए? 

  1. देखने में सुपर ट्रेंड इंडिकेटर की रेखा लगातार चलने वाली रेखा है, जो हरे या लाल रंग में बदलती रहती है। 
  2. इस इंडिकेटर में जब स्टॉक या इंडेक्स की कीमत इंडिकेटर की वैल्यू से ज्यादा हो जाती है तो ये खरीदने का संकेत होता है। ऐसे समय में इंडिकेटर का रंग हरा हो जाता है और आपको दिखता है कि कीमत की लाइन इंडिकेटर की लाइन को पार कर जाती है (कीमत इंडिकेटर की वैल्यू से ज्यादा होती है।)
  3. जब ट्रेडर ने लांग पोजिशन बना ली हो तो उसे तब तक उसे नहीं छोड़ना चाहिए तब तक कि कीमत हरे रेखा से नीचे ना बंद हो। तो एक तरह से हरी रेखा लांग पोजिशन के लिए ट्रेलिंग स्टॉपलॉस का काम करती है। 
  4. एक सेल सिग्नल या बेचने का संकेत तब बनता है जब स्टॉक/इंडेक्स की कीमत इंडिकेटर की वैल्यू से कम होती है। इस जगह पर इंडिकेटर लाल रंग का होता है और आप प्राइस और इंडिकेटर की रेखाओं को एक-दूसरे को काटते देखते हैं (कीमत इंडिकेटर वैल्यू से कम)
  5. बेचने के संकेत का इस्तेमाल नया शॉर्ट बनाने या लांग से बाहर निकलने के लिए किया जा सकता है। लेकिन ध्यान रखें कि लांग पोजिशन से निकलने के लिए बेचने के संकेत का इंतजार कभी-कभी नुकसान भी करा सकता है, इसलिए ट्रेडर को यहाँ अपने दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए। 
  6. एक बार शॉर्ट पोजिशन लेने पर ट्रेडर को अपनी पोजिशन तब तक होल्ड करनी चाहिए, जब तक कीमत हरी रेखा के नीचे बंद ना हो। एक तरह से लाल रेखा शॉर्ट पोजिशन के लिए ट्रेलिंग स्टॉपलॉस का काम करती है।  
  7. सुपर ट्रेंड एक ट्रेंड को बताता है इसलिए इसका सबसे अच्छा इस्तेमाल ऐसे समय में होता है जब बाज़ार में एक ट्रेंड हो। 
  8. सुपर ट्रेंड इंडिकेटर किसी आम मूविंग एवरेज ट्रेडिंग सिस्टम की तुलना में कम गलत सिग्नल देता है। इसलिए लोग मूविंग एवरेज ट्रेडिंग सिस्टम की जगह सुपर ट्रेंड को पसंद करते हैं। 

Kite पर सुपर ट्रेंड का इस्तेमाल: 

जब आप स्टडीज की लिस्ट में सुपर ट्रेंड को चुनते हैं, तो आपको पीरियड और मल्टीप्लायर तय करना पड़ता है। 

यहाँ पीरियड का मतलब है ATR के दिनों की संख्या। Kite में इसकी डिफॉल्ट वैल्यू 7 है। इसका मतलब Kite 7 दिनों का ATR कैलकुलेट करेगा। आप अपने हिसाब से इसको बदल सकते हैं। 

मल्टीप्लायर का मतलब है कि ATR किस संख्या से मल्टीप्लाई हो रहा है। Kite में इसकी डिफॉल्ट वैल्यू 3 है यानी ATR की जो भी वैल्यू है, उसे 3 से गुणा किया जाएगा। मल्टीप्लायर सुपर ट्रेंड के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर मल्टीप्लायर बहुत ऊपर है तो कम सिग्नल बनते हैं। अगर मल्टीप्लायर बहुत छोटा है, तो सिग्नल की संख्या बढ़ जाती है जिससे आपको गलत सिग्नल मिलने की संभावना अधिक हो जाती है। मेरी सलाह है कि आप मल्टीप्लायर 3 से 4 ही रखें। 

इस इंडिकेटर का चार्ट ऐसा दिखता है – 

ध्यान दीजिए कि कीमत में बदलाव के साथ इंडिकेटर का रंग कैसे बदलता है। जब भी खरीदने या बेचने का संकेत बनता है, तो हरे और लाल रंग के तीर के निशान बनते हैं जो ट्रेडर को लांग या शॉर्ट जाने के लिए कहते हैं। 

वॉल्यूम वेटेड एवरेज प्राइस (VWAP)

VWAP एक बहुत ही सरल इंडिकेटर है। ये ट्रेड हुए वॉल्यूम की औसत या एवरेज कीमत के आधार पर काम करता है। एक उदाहरण से इसे समझते हैं। 

2 नवंबर 2016 को 14:30 से 14:35 के बीच में Infy में हुए ट्रेड को नीचे की सारणी में दिखाया गया है – 

आप देखेंगे कि 14:32 पर 2475 शेयर का ट्रेड हुआ। इसने 983.95 का हाई बनाया, 983 का लो बनाया और इस मिनट में इसकी क्लोजिंग रही 983.1

अब इस डेटा के आधार पर VWAP कीमत निकालते हैं। इसके लिए हमें-

  1. साधारण कीमत= ये हाई, लो और क्लोज की औसत कीमत है। 
  2. वॉल्यूम प्राइस/कीमत (VP)= इसके लिए हमें साधारण कीमत को वॉल्यूम से गुणा करना पड़ेगा। 
  3. टोटल वॉल्यूम प्राइस/ कुल VP= यह एक बढ़ती हुई संख्या है (Cumulative number) जो मौजूदा VP और पिछले VP को जोड़ कर बनती है। 
  4. टोटल वॉल्यूम/कुल वॉल्यूम= ये भी एक बढ़ती हुई संख्या है जो मौजूदा वॉल्यूम और पिछले वॉल्यूम को जोड़ने से मिलती है। 
  5. VWAP= हमें ये संख्या कुल VP को कुल वॉल्यूम से विभाजित करने पर मिलती है। 

 

आइए इसके आधार पर Infy के डेटा को देखते हैं- 

आप देख सकते हैं कि ये संख्या लगातार बदलने वाली संख्या है जो उस समय होने वाले सौदों के आधार पर बदलती रहती है। 

VWAP का इस्तेमाल कैसे करें? 

  1. VWAP एक इंट्राडे इंडिकेटर है। इसको मिनट वाले चार्ट पर इस्तेमाल करना चाहिए। आप जब इसे चार्ट पर डालेंगे तो आपको दिखेगा कि 9:15 मिनट पर इसमें एक उछाल आता है, जब आप इसकी तुलना पिछले दिन से कर रहे हों। इस उछाल का कोई मतलब नहीं होता। इस पर ध्यान ना दें। 
  2. VWAP एक औसत है और औसत के आधार पर चलने वाले किसी भी इंडिकेटर की तरह ये भी मौजूदा कीमत से पीछे चलता है। 
  3. VWAP का इस्तेमाल 2 खास वजहों से किया जाता है – इंट्राडे दिशा जानने के लिए और अपने ऑर्डर की सफलता को समझने के लिए। 
  4. अगर मौजूदा कीमत VWAP से नीचे है तो इंट्राडे ट्रेंड नीचे की तरफ माना जाता है। 
  5. अगर मौजूदा कीमत VWAP से ऊपर है तो स्टॉक का ट्रेंड ऊपर की तरफ माना जाता है।
  6. अगर VWAP हाई और लो के बीच है, तो उम्मीद की जाती है कि स्टॉक में उठा-पटक बनी रहेगी। 
  7. अगर आप किसी स्टॉक को शॉर्ट करना चाहते हैं तो VWAP से ऊंची कीमत पर शॉर्ट करना सही माना जाता है। 
  8. इसी तरह, अगर आप स्टॉक पर लांग जाना चाहते हैं तो VWAP से नीची कीमत पर लांग जाना सही माना जाता है। 

Kite पर VWAP का इस्तेमाल 

अपनी पसंद का चार्ट खोलें और स्टडीज में से VWAP को चुनें। 

ध्यान रखें कि VWAP को केवल इंट्राडे टाइम फ्रेम पर इस्तेमाल किया जा सकता है EOD डेटा पर नहीं। 

एक बार टाइम फ्रेम (1 मिनट, 5 मिनट, 10 मिनट आदि) चुन लेने के बाद VWAP कैलकुलेट हो जाता है और ये चार्ट पर दिखने लगता है। 

अब आप VWAP को मौजूदा बाज़ार कीमत के साथ देख सकते हैं और अपने ट्रेड कर सकते हैं।

The post कुछ ज़रूरी नोट्स – 1 appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%9b-%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%9f%e0%a5%8d%e0%a4%b8-1/feed/ 41 SN-Cartoon Image 1_ADX Image 2_ADX_loaded Image 3_Aligator_load Image 4_aligator overlay Image 5_aroon load Image 6_Aroon applied Image 7_Aroon Osc Image 8_ATR_load Image 9_ATR_create Image 10_ATRB_load Image 11_ATRbands_created Image 12_supertrend load Image 13_supertrend_create image-14_vwap image-15_vwap image-16_vwap image-17_vwap
टेक्निकल एनालिसिस से परिचय https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%b2-%e0%a4%8f%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%b8-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%bf/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%b2-%e0%a4%8f%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%b8-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%bf/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:53:47 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5698 2.1 -संक्षिप्त विवरण पिछले अध्याय में हमने टेक्निकल एनालिसिस की परिभाषा को समझा। इस अध्याय में हम इसकी अवधारणाओं और इसके कुछ उपयोगिताओं को जानेंगे। 2.2- अलग अलग परिसंपत्ति यानी एसेट (Asset) में उपयोग  टेक्निकल एनालिसिस की सब से खास उपयोगिता यह है कि किसी भी तरीके के एसेट क्लास में इसका उपयोग किया जा […]

The post टेक्निकल एनालिसिस से परिचय appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

2.1 -संक्षिप्त विवरण

पिछले अध्याय में हमने टेक्निकल एनालिसिस की परिभाषा को समझा। इस अध्याय में हम इसकी अवधारणाओं और इसके कुछ उपयोगिताओं को जानेंगे।

2.2- अलग अलग परिसंपत्ति यानी एसेट (Asset) में उपयोग 

टेक्निकल एनालिसिस की सब से खास उपयोगिता यह है कि किसी भी तरीके के एसेट क्लास में इसका उपयोग किया जा सकता है। शर्त सिर्फ एक है कि उस एसेट क्लास का पुराना ऐतिहासिक डाटा उपलब्ध हो। ऐतिहासिक डाटा का मतलब है कि उस ऐसेट का ओपन, हाई, लो, क्लोज (OHLC) और वॉल्यूम का डाटा मौजूद हो। 

इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। अगर आपने एक बार कार चलाना सीख लिया तो आप किसी भी तरीके की कार चला सकते हैं। इसी तरह से अगर आपने एक बार टेक्निकल एनालिसिस सीख लिया तो आप इसका इस्तेमाल शेयर ट्रेडिंग, कमोडिटी ट्रेडिंग, विदेशी मुद्रा ट्रेडिंग, फिक्स्ड इनकम प्रॉडक्ट, कहीं भी कर सकते हैं। 

किसी भी दूसरे तरीके की तकनीक के मुकाबले टेक्निकल एनालिसिस का यह सबसे बड़ा फायदा है। उदाहरण के तौर पर फंडामेंटल एनालिसिस में आपको हर शेयर का घाटा मुनाफा, बैलेंस शीट, कैश फ्लो जैसी तमाम चीजें देखनी पड़ती है जबकि कमोडिटी के एनालिसिस में इनमें से बहुत सारी चीजें काम नहीं आती। आपको नए तरीके का डाटा इस्तेमाल करना पड़ता है। 

अगर आप खेती से जुड़ी कमोडिटी जैसे कॉफी या काली मिर्च की फंडामेंटल एनालिसिस करना चाहते हैं, तो आपको मॉनसून, उपज या पैदावार, मांग, आपूर्ति, रखा हुआ माल जैसी तमाम चीजों के बारे में जानकारी जुटानी होगी। इसी तरीके से अगर धातु या मेटल के बारे में या एनर्जी से जुड़े कमोडिटी जैसे कच्चा तेल की फंडामेंटल एनालिसिस करना है, तो आपको अलग तरह का डाटा चाहिए होगा।

लेकिन हर एसेट क्लास की टेक्निकल एनालिसिस एक ही तरीके से ही की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर मूविंग एवरेज कन्वर्स डायवर्जेंस (MACD- moving average convergence divergence) या रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (RSI-Relative Strength Index) को किसी भी ऐसेट क्लास जैसे इक्विटी कमोडिटी या करेंसी में इस्तेमाल किया जा सकता है।

2.3- टेक्निकल एनालिसिस की अवधारणाएं

टेक्निकल एनालिसिस इस बात पर ध्यान नहीं देती कि कोई शेयर अंडरवैल्यूड यानी अपनी वास्तविक कीमत से सस्ता है या ओवरवैल्यूड यानी अपनी वास्तविक कीमत से महंगा है। टेक्निकल एनालिसिस में सिर्फ एक चीज का महत्व है और वह है शेयर का पुराना ट्रेडिंग डाटा और यह डाटा आगे आने वाले समय के बारे में क्या संकेत दे सकता है।

टेक्निकल एनालिसिस कुछ मूलभूत अवधारणाओं पर आधारित होती है, जिनके बारे में जानना जरूरी है:

 

  1. बाजार हर जरूरी चीज को कीमत में शामिल कर लेता है (Markets discount everything)-  ये अवधारणा हमें बताती है कि किसी शेयर से जुड़ी हर सूचना या जानकारी उस शेयर की बाजार कीमत में शामिल हो जाती है। उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति अगर किसी शेयर को चुपचाप बाजार से खरीद रहा है क्योंकि शायद उसे पता है कि कंपनी का अगला तिमाही नतीजा अच्छा आने वाला है तब शेयर से मुनाफा होगा। वह व्यक्ति भले ही ये छुपा कर कर रहा हो लेकिन शेयर की कीमतों में इसका असर दिखने लगता है। एक अच्छा टेक्निकल एनालिस्ट शेयर के चार्ट पर इसको पहचान लेता है और वह इस शेयर को खरीदने के लिए उपयुक्त मानता है।
  2. “क्यों” से ज्यादा जरूरी है “क्या”यह अवधारणा पहली अवधारणा से ही मिली हुई है। हमारे पिछले उदाहरण में ही अगर देखें तो एक अच्छा टेक्निकल एनालिस्ट यह नहीं जानना चाहेगा कि उस व्यक्ति ने यह शेयर क्यों खरीदा? टेक्निकल एनालिस्ट का पूरा ध्यान इस बात पर होगा कि उस व्यक्ति के छुपा कर की गई खरीदारी से शेयर की कीमतों पर क्या असर हो रहा है और आगे क्या होगा?
  3. कीमत में एक चलन दिखता है (Price moves in trend)टेक्निकल एनालिसिस के मुताबिक कीमत में हर बदलाव एक खास ट्रेंड या चलन को बताता है। उदाहरण के तौर पर- निफ़्टी का 6400 से बढ़कर 7700 तक पहुंचना- एक दिन में नहीं हुआ। यह चलन 11 महीने पहले शुरू हुआ था। इसी से जुड़ी हुई एक दूसरी अवधारणा यह है कि जब एक तरफ की चाल शुरू होती है तो शेयर की कीमत भी उसी दिशा में बढ़ती जाती हैं, कभी उपर की तरफ तो कभी नीचे की तरफ।
  4. इतिहास अपने को दोहराता हैटेक्निकल एनालिसिस के मुताबिक कीमत का चलन अपने आप को दोहराता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बाजार के भागीदार एक तरीके की घटना पर हर बार एक ही तरीके की प्रतिक्रिया देते हैं। इसीलिए शेयर की कीमत एक ही तरीके से चलती हैं। उदाहरण के तौर पर ऊपर जा रहे बाजार में बाजार का हर खिलाड़ी किसी भी कीमत पर शेयर खरीदना चाहता है भले ही वह शेयर कितना भी महंगा हो। इसी तरीके से गिरते हुए बाजार में वह किसी भी कीमत पर बेचना चाहते हैं भले ही शेयर की कीमत अपनी वास्तविक कीमत से बहुत सस्ती हो। इंसान की इसी आदत की वजह से इतिहास अपने को दोहराता है।

2.4- बाजार पर नजर रखने का तरीका (The Trade Summary)

भारतीय शेयर बाजार सुबह 9:15 से 3:30 बजे तक खुले रहते हैं। इन 6.15 घंटों में लाखों ट्रेड होते हैं। किसी एक शेयर में भी हर मिनट कोई ना कोई सौदा हो रहा होता है। सवाल यह उठता है कि बाजार के भागीदार के तौर पर क्या हमें हर सौदे पर नजर रखनी चाहिए?

इसपर गहराई से नजर डालने के लिए हम एक काल्पनिक शेयर की बात करते हैं। नीचे के चित्र पर नजर डालिए, हर बिंदु एक ट्रेड को दिखलाता है। अगर हम हर सेकंड होने वाले वाले हर सौदे को इस ग्राफ पर दिखाएंगे तो इस ग्राफ में कुछ भी नहीं दिखेगा। इसलिए यहां केवल कुछ महत्वपूर्ण बिंदु ही दिखाए जा रहे हैं।

Daily Trade Pattern: दैनिक ट्रेड पैटर्न

बाजार सुबह 9 :15 बजे खुला और शाम के 3:30 बजे बंद हुआ। बाजार का रूख समझने के लिए, इस दौरान जितने भी ट्रेड हुए उन सब को देखने के बजाय उनका एक संक्षिप्त विवरण देख लेना ही काफी होगा।

अगर हम बाजार में ओपन यानी खुलने की कीमत, हाई यानी सबसे ऊंची कीमत,  लो यानी सबसे नीची कीमत और क्लोज यानी अंतिम कीमत को देखें तो हमें बाजार का एक मोटा-मोटी सार मिल जाएगा।

ओपन कीमत यानी खुलने के समय की कीमत: जब बाजार खुलता है तो उस समय होने वाले पहले ट्रेड या सौदे की कीमत ओपन कीमत होती है।

हाई यानी सबसे ऊँची कीमत: उस दिन जिस की सबसे ऊँची कीमत जिस पर कोई सौदा हुआ।

सबसे नीची कीमत यानी लो : दिन की वो सबसे नीची कीमत जिस पर सौदा हुआ।

बंद के समय कीमत यानी क्लोज: दिन के आखिरी सौदे में जो कीमत रही। ये कीमत काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इससे पता चलता है कि दिन में शेयर कितना मजबूत रहा। अगर बंद कीमत ऊपर है खुलने वाली कीमत से तो तेजी का दिन माना जाता है। इसी तरह अगर बंद के समय की कीमत अगर खुलने के समय की कीमत से नीचे रहे तो उसे मंदी का दिन माना जाता है।

क्लोज या बंद कीमत को अगले दिन के लिए संकेत के तौर पर भी देखा जाता है और इससे बाजार का मूड आंका जाता है। इसीलिए OHLC में C यानी क्लोज (Close) सबसे महत्वपूर्ण होता है।

टेक्निकल एनालिसिस में इन चारों कीमतों को देखा जाता है। इनको एक चार्ट पर डाल कर एनालिसिस की जाती है।

 


इस अध्याय की खास बातें

  1. टेक्निकल एनालिसिस में कोई बंधन नहीं है, इस का इस्तेमाल किसी भी एसेट क्लास में किया जा सकता है। 
  2. TA में कुछ खास अवधारणाएं होती हैं।
    1. बाजार की कीमत में सब जानकारियां शामिल होती हैं।
    2. “क्यों” से ज्यादा महत्वपूर्ण है “क्या”
    3. कीमत एक चलन का पालन करती है।
    4. इतिहास अपने को दोहराता है।
  3. दिन के कारोबार को संक्षेप में देखने के लिए OHLC अच्छा तरीका है।

 

The post टेक्निकल एनालिसिस से परिचय appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%b2-%e0%a4%8f%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%b8-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%bf/feed/ 59 M2-Ch2-title M2-Ch1-Chart1 M2-Ch1-Chart2
सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न्स (भाग 2) https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b2%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%aa%e0%a5%88%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a8-2/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b2%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%aa%e0%a5%88%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a8-2/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:51:53 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5706 6.1- स्पिनिंग टॉप (The Spinning Top) स्पिनिंग टॉप एक बहुत ही रोचक कैंडलस्टिक है। यह मारूबोज़ू की तरह ट्रेडर को बाजार में घुसने और वहां से निकलने यानी एंट्री (Entry) और एग्जिट (Exit) के लिए सही सिग्नल तो नहीं देता है, लेकिन स्पिनिंग टॉप बाजार की मौजूदा हालत के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी देता […]

The post सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न्स (भाग 2) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

6.1- स्पिनिंग टॉप (The Spinning Top)

स्पिनिंग टॉप एक बहुत ही रोचक कैंडलस्टिक है। यह मारूबोज़ू की तरह ट्रेडर को बाजार में घुसने और वहां से निकलने यानी एंट्री (Entry) और एग्जिट (Exit) के लिए सही सिग्नल तो नहीं देता है, लेकिन स्पिनिंग टॉप बाजार की मौजूदा हालत के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी देता है, इस जानकारी के आधार पर ट्रेडर के लिए बाजार में अपनी पोजीशन बनाना आसान हो जाता है।

स्पिनिंग टॉप का कैंडल नीचे दिखाया गया है इसको ध्यान से देखिए और बताइए कि आपको इसमें क्या खास दिख रहा है?

आप देखेंगे कि

  • इन कैंडल में रियल बॉडी (Real Body) काफी छोटी है। 
  • आपको यह भी दिखेगा कि अपर और लोअर शैडो (Upper and Lower Shadow) एक बराबर हैं।

आपको क्या लगता है दिन में बाजार में ऐसा क्या हुआ होगा कि स्पिनिंग टॉप कैंडल बना? दिखने में स्पिनिंग टॉप बहुत ही सीधासादा सा, छोटी रियल बॉडी वाला कैंडल दिखता है, लेकिन वास्तव में, दिन में हुई कई घटनाओं के संकेत इसमें छुपे होते हैं।

आइए इन घटनाओं पर नजर डालते हैं:

 

  1. छोटी रियल बॉडी (Small Real Body)-  यह बताता है कि ओपन कीमत और क्लोज कीमत एक दूसरे के काफी करीब हैं। उदाहरण के तौर पर ओपन कीमत ₹210 और क्लोज कीमत ₹213 हो सकती है या फिर ओपन कीमत ₹210 और क्लोज कीमत ₹207 हो सकती है। इन दोनों ही हालात में स्मॉल रियल बॉडी बनना एक आम बात है क्योंकि एक ₹200 की कीमत वाले शेयर के लिए ₹3 का बदलाव ज्यादा मायने नहीं रखता है। क्योंकि ओपन कीमत और बंद यानी क्लोज कीमत एक दूसरे के इतने करीब हैं इसलिए ऐसे में कैंडल के रंग का भी कोई बहुत मतलब नहीं रह जाता है। कैंडल नीले रंग का हो या लाल रंग का इससे कोई अंतर नहीं पड़ता, मतलब की बात ये होती है कि ओपन कीमत और क्लोज कीमत एक दूसरे के काफी करीब हैं।
  2. अपर शैडो (Upper Shadow)–  अपर शैडो रियल बॉडी को दिन के उच्चतम स्तर से जोड़ता है। अगर यह लाल कैंडल है तो हाई और ओपन एक दूसरे से जुड़ते हैं और अगर यह नीला कैंडल है तो हाई और क्लोज एक दूसरे से जुड़ते हैं। अगर आप लोअर शैडो को कुछ समय के लिए भूल जाएं, और सिर्फ छोटे रियल बॉडी और अपर शैडो पर ही ध्यान दें तो आपको क्या समझ में आता है, बाजार में क्या हुआ होगा? अपर शैडो का वहां होना यह बताता है कि बाजार में बुल्स यानी तेजी करने वालों ने बाजार को ऊपर ले जाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी इस कोशिश में सफल नहीं हुए। अगर वो अपनी इस कोशिश में सफल हुए होते तो रियल कैंडल नीले रंग का एक लंबा कैंडल होता एक छोटा कैंडल नहीं। इसका मतलब है कि बुल्स ने कोशिश की लेकिन वह अपनी कोशिश में सफल नहीं हुए।
  3. लोअर शैडो (Lower Shadow) –  लोअर शैडो रियल बॉडी को दिन के लो प्वाइंट यानी सबसे निचली कीमत से जोड़ता है। अगर यह लाल कैंडल है तो लो और क्लोज एक साथ जुड़ते हैं और अगर यह नीला कैंडल है तो लो और ओपन आपस में जुड़ते हैं। अगर आप रियल बॉडी और लोअर शैडो को एक साथ देखें और अपर शैडो की ओर ध्यान ना दें, तो आपको क्या दिखता है, क्या हुआ होगा? एक दम वैसा ही जैसा बुल्स के साथ भी हुआ था, लोअर शैडो का वहां होना ये बताता है कि बेयर्स यानी मंदी वालों ने बाजार का कंट्रोल लेने की और बाजार को नीचे खींचने की कोशिश की लेकिन वह अपनी इस कोशिश में सफल नहीं हुए।  अगर बेयर्स अपनी कोशिश में सफल होते तो रियल बॉडी लंबी होती और लाल रंग की होती और एक छोटी कैंडल नहीं होती इसलिए इसको मंदी वालों की एक कोशिश भर ही माना जाएगा।

अब स्पिनिंग टॉप के सारे हिस्सों -रियल बॉडी,  अपर शैडो और लोअर शैडो- तीनों को एक साथ जोड़ कर उनके बारे में अनुमान लगाइए । बुल्स ने एक कोशिश की बाजार को ऊपर ले जाने की जो सफल नहीं हुई, बेयर्स ने कोशिश की बाजार को नीचे ले जाने की, जो कि सफल नहीं हुई। तेजी के खिलाड़ी और मंदी के खिलाड़ी यानी बुल्स और बेयर्स दोनों ने बाजार को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की, लेकिन उनकी ये कोशिश सफल नहीं हुई। छोटी रियल बॉडी यही दिखाती है। इसीलिए स्पिनिंग टॉप का मतलब है कि बाजार में अभी अनिश्चितता है और बाजार में कोई एक दिशा तय नहीं हो पा रही है।

अगर आप सिर्फ और सिर्फ स्पिनिंग टॉप को देखेंगे तो ये आपको बहुत कुछ नहीं बताता, सिर्फ इतना बताता है कि बुल्स और बीयर्स दोनों बाजार को अपने कब्जे में नहीं कर पाए। लेकिन जब आप स्पिनिंग टॉप को एक चार्ट पर देखेंगे तो यह आपको बहुत मजबूत तरीके से बताएगा कि बाजार में क्या हो रहा है और उसके आधार पर आप बाजार में अपनी पोजीशन बना पाएंगे

 

6.2  मंदी में स्पिनिंग टॉप का मतलब 

जब शेयर में मंदी चल रही हो तब अगर स्पिनिंग टॉप कैंडल बने तो क्या होगा? जब मंदी चल रही होती है तो बाजार में बेयर्स का कब्जा होता है। स्पिनिंग टॉप बनने के समय हो सकता है कि बेयर्स बिकवाली के नए दौर की तैयारी कर रहे हों। जबकि बुल्स कोशिश कर रहे होते हैं कि बाजार में गिरावट को थाम सके इसके लिए वह अपनी पोजीशन बना रहे होते हैं, लेकिन उनकी कोशिश सफल नहीं हो रही होती है। अगर बुल्स की कोशिश सफल होती तो यह एक नीले कैंडल वाला दिन होता ना कि एक स्पिनिंग टॉप वाला। ऐसे में स्पिनिंग टॉप को देखते हुए आप क्या फैसला करेंगे? फैसला करते हुए आपको देखना होगा कि आगे क्या होने वाला है। आगे दो चीजें हो सकती हैं: 

  1.  या तो बाजार में और बिकवाली आएगी
  2. या फिर बाजार संभलेगा और ऊपर की तरफ जाने लगेगा 

जब तस्वीर साफ ना हो तो ट्रेडर को दोनों तरफ की पोजीशन की तैयारी बनाकर रखना चाहिए यानी नीचे जाने और ऊपर जाने दोनों की तैयारी।

अगर ट्रेडर बाजार में तेजी करने का मौका ढूंढ रहा हो तो शायद उसके लिए ये सही अवसर हो सकता है, लेकिन उसे थोड़ा सावधान रहने की जरूरत होगी। इसलिए ऐसी स्थिति में उसे अपनी कुल पूंजी का आधा ही इस समय लगाना चाहिए। मतलब अगर उसका इरादा 500 शेयर खरीदने का था तो उसे इस समय सिर्फ 250 शेयर ही खरीदने चाहिए, और इंतज़ार करना चाहिए। यह देखना चाहिए कि बाजार का रुख क्या होता है और बाजार किधर जाता है? अगर बाजार ऊपर की तरफ जाता है तो वह बाकी बचे हुए 250 शेयर भी खरीद सकता है और कीमत में एवरेजिंग (Averaging) कर सकता है। अगर बाजार वास्तव में ऊपर की तरफ जाने लगता है तो ट्रेडर को शेयर सबसे नीची कीमत पर मिल चुके होंगे। 

लेकिन मान लीजिए उल्टा होता है और शेयर की कीमतें और गिरने लगती है तो भी ट्रेडर को आधा ही नुकसान होगा क्योंकि उसने आधे शेयर खरीदे हैं, पूरे नहीं।

यहां नीचे एक चार्ट में दिखाया गया है कि जब मंदी के समय स्पिनिंग टॉप बनता है तो क्या होता है इस उदाहरण में शेयर ने स्पिनिंग टॉप के बाद तेजी पकड़ ली थी।

अब एक और चार्ट देखते हैं, इस चार्ट में स्पिनिंग टॉप के बाद मंदी का दौर बना रहता है।

यह कहा जा सकता है की स्पिनिंग टॉप तूफान के पहले की शांति है। यह तूफान तेजी या मंदी किसी को भी बढा सकता है। ये तूफान ट्रेंड में बदलाव भी ला सकता है। बाजार किधर जाएगा यह तो नहीं पता चलता लेकिन यह जरूर पता चलता है कि बाजार को दिशा मिलने वाली है और आप को उसके लिए तैयार रहना है।

6.3 – तेजी में स्पिनिंग टॉप का मतलब

तेजी के समय के स्पिनिंग टॉप का असर भी वैसा ही होता है जैसा मंदी के समय का। बस हम इसे थोड़ा अलग तरीके से देखते हैं। आप नीचे के चार्ट को देखिए और बताइए कि आप को क्या लग रहा है।

यहाँ बहुत साफ साफ दिख रहा है कि बाजार तेजी में है, इसका मतलब है कि बाजार पूरी तरीके से बुल्स के कब्ज़े में हैं। लेकिन स्पिनिंग टॉप बनने के बाद से थोड़ी असमंजस की स्थिति आ चुकी है।

  1. बुल्स की बाजार पर पकड़ कमजोर हो गयी है, ऐसा नहीं होता तो स्पिनिंग टॉप नहीं बनता। 
  2. स्पिनिंग टॉप बनने का मतलब है कि बाजार में मंदी वाले खिलाड़ी यानी बेयर्स का प्रवेश हो चुका है। हालांकि अभी वो सफल नहीं हुए हैं लेकिन बुल्स ने उन्हें घुसने की जगह तो दे ही दी है।

अब आप क्या करेंगे? इस स्थिति का मतलब क्या है? आपको क्या लगता है आपको कैसी पोजीशन लेनी चाहिए?

  1. स्पिनिंग टॉप बता रहा है कि बाजार में असमंजस की स्थिति है और ना तो बुल्स और ना ही बेयर्स, दोनों में कोई भी बाजार पर पूरी तरीके से अपनी पकड़ नहीं बना पा रहा है।
  2. तेजी के समय के इस माहौल को देखते हुए हमें दो चीजें पता चलती हैं 
  • बुल्स अपनी पोजीशन को पकड़ कर बैठे हैं और एक नई तेजी की शुरुआत की तैयारी कर रहे हैं।
  • बुल्स थक गए हैं और अब वो बेयर्स को बाजार में घुसने का मौका दे सकते हैं इसका मतलब है कि बाजार में एक करेक्शन आने वाला है।
  •  बाजार में इन दोनों की संभावना 50-50% यानी आधी-आधी है।

अब आप क्या करेंगे दोनों तरफ की संभावनाएं बराबर हैं ऐसे में आपका अगला कदम क्या होगा? वास्तव में, आपको दोनों तरफ की तैयारी रखनी चाहिए।

मान लीजिए आपने शेयर बाजार की रैली शुरू होने के पहले शेयर खरीदा था, ये आपके लिए मौका है कि आप कुछ प्रॉफिट बुक कर ले। लेकिन ऐसे में आपको अपना पूरा प्रॉफिट बुक नहीं करना चाहिए मान लीजिए आपके पास 500 शेयर हैं आप इसमें से 50% यानी 250 शेयर बेच सकते हैं। आपके ऐसा करने के बाद दो चीजें हो सकती हैं:

  1. मंदी वाले (बेयर्स) बाजार में आ जाएं–  बाजार में मंदी आ जाए और बेयर्स बाजार में घुस जाएं अगर ऐसा हुआ तो बाजार नीचे की तरफ जाने लगेगा। आपने तो 50% शेयर बेच कर फायदा उठा लिया है अब आप बाकी बचे हुए 50% से भी जो फायदा मिल रहा है उसे निकाल सकते हैं। आपका जो फायदा अब होगा वो भी बाजार के करंट मार्केट प्राइस यानी सीएमपी(CMP) से ऊपर का होगा।
  2.  तेजी वाले (बुल्स) बाजार में आ जाएंअगर बाजार में वापस तेजी आ जाए यानी अगर वास्तव में बुल्स सुस्ता रहे थे और नई रैली की तैयारी कर रहे थे, तो भी आप पूरी तरीके से बाजार से नहीं निकले हैं तो अभी भी आपके पास 50% शेयर हैं और आप आने वाले समय में और फायदा कमा सकते हैं। 

इस तरह का फैसला आपको दोनों तरफ के फायदे दिला सकता है।

नीचे के चार्ट में तेजी के बाद एक स्पिनिंग टॉप बना है और उसके बाद बाजार ने और भी तेजी पकड़ ली है। ऐसे में अगर आपका 50% शेयर निवेश अभी भी बाजार में है तो आप इस रैली का फायदा उठा सकते हैं।

कुल मिलाकर स्पिनिंग टॉप कैंडल बाजार की असमंजस और अनिश्चितता को बताता है। यह बताता है कि दोनों तरफ बराबर की संभावनाएं हैं यह बाजार ऊपर भी जा सकता है और नीचे भी। जब तक माहौल साफ ना हो तब तक ट्रेडर को थोड़ा सा सावधान रहना चाहिए और अपनी पोजीशन कम से कम रखनी चाहिए।

6.4  – दोजी (The Dojis)

दोजी भी एक सिंगल कैंडल पैटर्न है। ये भी करीब-करीब स्पिनिंग टॉप की तरह ही होते हैं, लेकिन इनमें रियल बॉडी बिल्कुल भी नहीं होती।  रियल बॉडी ना होने का मतलब है कि यहाँ पर ओपन और क्लोज कीमतें बराबर होती हैं। दोजी हमें बाजार के मूड और माहौल की सूचना देता है और इस लिहाज से ये एक महत्वपूर्ण पैटर्न है।

 

दोजी की परिभाषा यह है कि ओपन कीमत और क्लोज कीमत बराबर हो और रियल बॉडी बिल्कुल भी ना हो। अपर और लोअर शैडो कितने भी बड़े हो सकते हैं। 

हालांकि हमें कैंडलस्टिक के दूसरे नियमहमें अपने विचार में थोड़ा लचीलापन रखना चाहिए और पैटर्न या चार्ट को जांच लेना चाहिए को ध्यान में रखकर, कई बार पतले कैंडल वाले पैटर्न को भी दोजी मान सकते हैं। हमेशा बिना रियल बॉडी वाला दोजी तलाशने की जरूरत नहीं है।

ऐसे में, कैंडल के रंग का कोई महत्व नहीं रह जाता है, महत्व सिर्फ एक चीज का है, कि ओपन और क्लोज कीमतें बराबर हो।

दोजी का असर भी स्पिनिंग टॉप की तरह का ही होता है। जो कुछ हमने स्पिनिंग टॉप के बारे में जाना है, वह सब दोजी पर भी लागू होता है। वास्तव में, दोजी और स्पिनिंग टॉप अक्सर एक साथ, एक ही समूह में, एक जगह पर दिखाई देते हैं और बाजार के असमंजस को बताते हैं।

नीचे के चार्ट पर नजर डालेंगे तो आपको दिखेगा कि एक मंदी के बाजार में दोजी कैसे बनता है और बाजार की अगली चाल के पहले के असमंजस को कैसे बताता है। 

 

अब इस चार्ट को देखिए, यहाँ दोजी एक अच्छी तेजी के बाद बना और उसके बाद बाजार की दिशा बदल गयी और गिरावट आ गयी।

तो अब आप अगर एक दोजी या स्पिनिंग टॉप को अलग अलग या एक साथ देखें तो याद रखिए कि बाजार दिशाहीन है यानी असमंजस में है। ऐसे में, बाजार किसी भी तरफ जा सकता है और आपको अपना ट्रेड ऐसा रखना चाहिए कि दोनों तरफ का फायदा मिल सके।


इस अध्याय की खास बातें

  1. स्पिनिंग टॉप में बहुत छोटी रियल बॉडी होती है, साथ ही, अपर और लोअर शैडो करीब करीब बराबर होते हैं।
  2. स्पिनिंग टॉप में कैंडल के रंग का कोई महत्व नहीं होता। महत्व होता है तो इस बात का कि ओपन और क्लोज कीमतें एक दूसरे के काफी करीब होती हैं।
  3. स्पिनिंग टॉप बाजार के असमंजस को बताता है। बुल्स और बेयर्स बराबरी पर होते हैं बाजार नयी दिशा तलाश रहा होता है।
  4. किसी रैली में उपर की तरफ में स्पिनिंग टॉप के बनने का मतलब है कि या तो बुल्स सुस्ता रहे हैं और बाजार को फिर से ऊपर ले जाने की तैयारी में हैं या तो बेयर्स बाजार में घुसने की तैयारी में हैं और तेजी पर रोक लगने वाली है। जो भी हो ऐसे में ट्रेडर को संभल कर रहना चाहिए, अपनी कुल खरीद का आधा हिस्सा ही खरीदना चाहिए और बाजार की दिशा देखनी चाहिए।
  5. किसी रैली के निचली तरफ बनने वाले स्पिनिंग टॉप का मतलब है कि बेयर्स थक गए हैं या फिर वह सुस्ता रहे हैं। अगर वह थक गए हैं तो बुल्स बाजार में घुस जाएंगे और ट्रेंड बदल जाएगा और बाजार ऊपर जाएगा। दोनों ही स्थितियों में ट्रेडर को संभल कर रहना चाहिए और अपना आधा सौदा ही करना चाहिए।
  6. दोजी भी स्पिनिंग टॉप की तरह ही होते हैं। ये भी बताते हैं कि बाजार दिशाहीन है। परिभाषा के हिसाब से दोजी में रियल बॉडी न के बराबर होती है। लेकिन काफी पतली बॉडी वाले कैंडल को भी दोजी माना जा सकता है।
  7. एक ट्रेडर की रणनीति दोजी और स्पिनिंग टॉप में एक समान ही होती है। 

 

The post सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न्स (भाग 2) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b2%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%aa%e0%a5%88%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a8-2/feed/ 62 M2-Ch6-title M2-Ch6-D1a M2-Ch6-Chart1 M2-Ch6-Chart2 M2-Ch6-Chart3 M2-Ch6-Chart4 doji M2-Ch6-D2a M2-Ch6-Chart5 M2-Ch6-Chart6
सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न्स ( भाग 3) https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b2%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%aa%e0%a5%88%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a5%8d/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b2%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%aa%e0%a5%88%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a5%8d/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:51:16 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5708 7.1- पेपर अम्ब्रेला (Paper Umbrella) पेपर अंब्रेला एक ऐसा सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न है जो ट्रेडर को अपने ट्रेड की दिशा तय करने में मदद करता है। पेपर अम्ब्रेला का असर समझने के लिए ये देखना जरूरी होता है कि वो चार्ट में कहाँ पर बन रहा है। एक पेपर अम्ब्रेला में 2 तरीके के ट्रेन्ड […]

The post सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न्स ( भाग 3) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

7.1- पेपर अम्ब्रेला (Paper Umbrella)

पेपर अंब्रेला एक ऐसा सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न है जो ट्रेडर को अपने ट्रेड की दिशा तय करने में मदद करता है। पेपर अम्ब्रेला का असर समझने के लिए ये देखना जरूरी होता है कि वो चार्ट में कहाँ पर बन रहा है।

एक पेपर अम्ब्रेला में 2 तरीके के ट्रेन्ड रिवर्सल पैटर्न (Trend Reversal Pattern) होते हैं हैंगिंग मैन (Hanging Man) और हैमर (Hammer)। हैंगिंग मैन पैटर्न मंदी का यानी बेयरिश होता है जबकि हैमर पैटर्न बुलिश यानी तेजी का होता है। पेपर अंब्रेला में एक लंबा शैडो होता है और छोटी अपर बॉडी होती है। 

अगर पेपर अम्ब्रेला एक मंदी की रैली के चार्ट के निचले सिरे पर होता है तो उसे हैमर कहते हैं। 

अगर पेपर अंब्रेला तेजी की रैली के चार्ट के उपरी सिरे की तरफ होता है तो उसे हैंगिंग मैन कहते हैं। 

पेपर अम्ब्रेला की खासियत यह होती है कि उसका लोअर शैडो कम से कम रियल बॉडी का 2 गुना होना चाहिए। इसे शैडो टू रियल बॉडी रेश्यो (Shadow to Real Body Ratio) कहते हैं। 

एक उदाहरण पर नजर डालते हैं। ओपन = 100, हाई = 103, लो = 94, क्लोज = 102 (बुलिश कैंडल)

यहाँ पर रियल बॉडी की लंबाई होगी: क्लोज ओपन यानी 102-100 =2 और लोअर शैडो की लंबाई ओपन लो यानी 10094=6 होगी। ये साफ है कि यहाँ लोअर शैडो की लंबाई रियल बॉडी के दोगुने से ज्यादा है, इसलिए हम मान सकते हैं कि यहाँ पेपर अम्ब्रेला बन चुका है।

7.2 – हैमर का बनना (The Hammer Formation)

बुलिश हैमर एक बहुत ही महत्वपूर्ण कैंडल स्टिक पैटर्न है जो कि किसी ट्रेन्ड के नीचे की तरफ बनता है। हैमर में उस दिन के ट्रेडिंग रेंज के ऊपरी ओर एक छोटी रियल बॉडी होती है और एक लंबा लोअर शैडो होता है। जितना लंबा लोअर शैडो होगा उतना ही बुलिश पैटर्न बनेगा।

नीचे के चार्ट में दो हैमर दिखाए गये हैं जो मंदी वाले दिन नीचे की तरफ बने हैं। 

ध्यान दीजिए कि नीले हैमर में बहुत ही छोटा अपर शैडो है, जो कि मान्य है क्योंकि कैंडलस्टिक का दूसरा नियम हमें “कुछ लचीलापन रखने और जाँचने “ को कहता है।

हैमर किसी भी रंग का हो सकता है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि उसका रंग क्या है ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये होती है कि “शैडो टू रियल बॉडी रेश्यो” के पैमाने को पूरा करता है या नहीं वैसे नीले रंग का हैमर एक ट्रेडर को कुछ ज्यादा ही भरोसा दिलाता है।

एक हैमर के लिए उसके पहले का ट्रेंड नीचे की तरफ होना चाहिए। यहां पहले का ट्रेंड नीचे एक मुड़ती हुई लाइन से दिखाया गया है। हैमर के पीछे की सोच ऐसी होती है:

  1. बाजार नीचे की तरफ चल रहा है और बाजार पर बेयर्स का कब्जा है।
  2. इस नीचे की चाल में बाजार हर दिन पिछले दिन की क्लोज कीमत के मुकाबले और नीचे खुलता है और उसके बाद एक नया लो बना कर बंद होता है।
  3. जिस दिन हैमर बनता है उस दिन भी बाजार नीचे ही ट्रेड करता है और एक नया लो बनाता है।
  4.  हालांकि लो पर कुछ खरीदारी आती हैं जिसकी वजह से कीमतें थोड़ी सी बढ़ जाती हैं और शेयर उस दिन के हाई पर बंद होते हैं।
  5. हैमर के बनने वाले दिन की कीमत का उतार चढ़ाव बताता है कि बुल्स कीमत को और नीचे ना गिरने देने की कोशिश में लगे हैं और उन्हें कुछ सफलता भी मिली है।
  6.  बुल्स की यह कोशिश बाजार का मूड सुधारने में मदद करती है और इसे खरीद के एक मौके के तौर पर देखा जाना चाहिए।

हैमर के मुताबिक सौदे कुछ इस तरह से होने चाहिए:

  1. हैमर का बनना खरीद शुरू करने का संकेत देता है।
  2.  ट्रेडर बाजार में एंट्री कब ले ये इस पर निर्भर करता है कि वह कितना रिस्क उठा सकता है। अगर ट्रेडर ज्यादा रिस्क लेने को तैयार है तो वो उसी दिन स्टॉक खरीद सकता है। याद रखिए कि  हैमर में रियल बॉडी के रंग का कोई महत्व नहीं है, इसलिए पहले नियम का कोई उल्लंघन नहीं हो रहा है। अगर ट्रेडर थोड़ा कम रिस्क लेना चाहता है या रिस्क से बचना चाहता है तो वो पैटर्न बनने के अगले दिन यह देखेगा कि कैंडल का रंग नीला है।
  1. रिस्क लेने को तैयार ट्रेडर उसी दिन हैमर बनने के बाद 3:20 पर यह देखेगा कि ओपन और क्लोज बराबर हों जिससे निश्चित हो जाए कि हैमर बन चुका है।
    1. ओपन और क्लोज करीब करीब बराबर हों (उनमें एक दो परसेंट का ही अंतर हो)
    2. लोअर शैडो की लंबाई रियल बॉडी की लंबाई के मुकाबले कम से कम दोगुनी होनी चाहिए। 
    3. अगर यह दोनों शर्तें पूरी होती है तो यह एक हैमर है और रिस्क लेने को तैयार ट्रेडर सौदा शुरू कर सकता है।
  2. रिस्क से बचने वाला ट्रेडर अगले दिन OHLC के आँकड़ों पर नज़र डालेगा और अगर कैंडल नीले रंग का हुआ तो वो अपना सौदा बना सकता है।
  3. हैमर का लो ही ट्रेडर के लिए स्टॉप लॉस का काम करता है।

नीचे का चार्ट एक ऐसा हैमर दिखा रहा है जिसमें रिस्क लेने वाला और रिस्क से बचने वाला दोनों ही तरीके के ट्रेडर को सौदे में फायदा होगा। ये Cipla Ltd का 15 मिनट का इंट्राडे चार्ट है।

इसमें सौदे ऐसे बनेंगे:

रिस्क लेने के लिए तैयार ट्रेडर के लिए खरीदने की सही कीमत वो हैमर कैंडल पर ही खरीदेगा यानी 444 रुपये पर।

रिस्क से बचने वाले ट्रेडर के लिए खरीदने की सही कीमत –   वह अगले कैंडल पर सौदा करेगा, यह देखने के बाद कि अगला कैंडल नीले रंग का है।

दोनों तरीके के ट्रेडर के लिए स्टॉप लॉस होगा ₹441.50, यानी हैमर का लो। 

आप देख सकते हैं कि सौदे कैसे पूरे हुए और कैसे इंट्राडे में उनसे फायदा हुआ।

अब एक और चार्ट पर नजर डालते हैं, यहाँ रिस्क से बचने वाला ट्रेडर “मजबूती में खरीदो और कमजोरी में बेचोके नियम का फायदा पाता है 

और अब दो हैमर वाला एक रोचक चार्ट।

यहां दोनों हैमर में उन शर्तों का पालन किया गया है जो हैमर बनने के लिए जरूरी हैं।

  1. इसके पहले का ट्रेंड नीचे की तरफ का होना चाहिए।
  2.  शैडो टू रियल बॉडी रेश्यो

पहले हैमर में, रिस्क से बचने वाला ट्रेडर अपने को घाटे से बचा लेगा क्योंकि वो कैंडलस्टिक के नियम नंबर 1 का पालन कर रहा है। लेकिन दूसरे हैमर के समय रिस्क लेने वाला और रिस्क से बचने वाला, दोनों ही ट्रेडर लालच में आ सकते हैं और अपना ट्रेड कर सकते हैं। यहाँ उनका ट्रेड शुरू होने के बाद स्टॉक ऊपर नहीं गया, फ्लैट बना रहा और बाद में टूट गया यानी नीचे गिर गया।

हम जानते हैं कि आप एक ट्रेड में तब तक बने रहते हैं जब तक कि स्टॉपलॉस या आप का टारगेट पूरा नहीं होता। ऐसे में, आप अपने सौदे में कोई बदलाव नहीं करते, इसीलिए इस सौदे (पहले हैमर में) में घाटा होना ही है। लेकिन याद रखिए यह एक जान बूझ कर लिया गया रिस्क है। 

अब एक और चार्ट पर नजर डालिए जहाँ एक हैमर बनता दिख रहा है लेकिन ये हैमर के पहले मंदी के ट्रेंड वाली शर्त को पूरा नहीं करता। इसलिए इसे हैमर पैटर्न नहीं परिभाषित किया जा सकता।

7.3 – हैंगिंग मैन (The Hanging Man)

अगर किसी ट्रेंड में एकदम ऊपर की तरफ पेपर अंब्रेला बने तो उसको हैंगिंग मैन कहते हैं। बेयरिश हैंगिंग मैन (Bearish Hanging Man) एक सिंगल कैंडल स्टिक पैटर्न है। यह बताता है कि अब बाजार की दिशा बदलने वाली है यानी ये ट्रेन्ड रिवर्सल दिखाता है। हैंगिंग मैन बताता है कि बाजार अपनी ऊंचाई पर पहुंच गया है। हैंगिंग मैन को हैंगिंग मैन तभी कहा जाता है जब उसके पहले बाजार में तेजी चल रही हो। बाजार में ऊंचाई के बाद हैंगिंग मैन बनता है इसीलिए बेयरिश हैंगिंग मैन का मतलब है कि बिकवाली का दबाव आ रहा है

हैंगिंग मैन का कैंडल किसी भी रंग का हो सकता है और अगर वो शैडो टू रियल बॉडी रेश्यो की अपनी शर्त पूरी कर रह हो तो रंग से कोई अंतर भी नहीं पड़ता। हैंगिंग मैन के बनने के पहले का ट्रेंड एक तेजी यानी ऊपर जाने का ट्रेंड होना चाहिए जैसा की ऊपर मुड़ती हुई लाइन से दिखाया गया है। आइए इसके बनने के पीछे की सोच को समझते हैं। 

  1. बाजार तेजी में है यानी बाजार बुल्स के कब्जे में है।
  2. बाजार नए हाई और हायर (higher) लो यानी ऊँचे लो बना रहा है।
  3. जिस दिन हैंगिंग मैन पैटर्न बना है उस दिन बाजार में बेयर्स ने एंट्री ले ली है। 
  4.  हैंगिंग मैन के साथ बनने वाला एक लंबा लोअर शैडो यही बताता है कि बेयर्स आ चुके हैं।
  5. बाजार में बेयर्स का घुसना ये बताता है कि वो बुल्स से कंट्रोल छीनने को तैयार हैं।

हैंगिंग मैन पैटर्न बताता है कि अब बाजार में शॉर्ट करने यानि बेचने का समय आ गया है। अब देखते हैं कि सौदा कैसे बनाना है। 

  1. रिस्क लेने वाला ट्रेडर उसी दिन क्लोजिंग कीमत के करीब अपना शॉर्ट ट्रेड शुरू कर सकता है।
  2. रिस्क से बचने वाला ट्रेडर अगले दिन अपना सौदा या ट्रेड शुरू कर सकता है जब वह यह देख ले कि कैंडल लाल रंग का है।
    • रिस्क लेने वाले और इससे बचने वाले ट्रेडर दोनों के लिए, कैंडल को सही तरीके से पहचानने का तरीका एकदम वैसा ही है जैसा कि हैमर पैटर्न में होता है।

एक बार शॉर्ट ट्रेड लेने पर कैंडल का हाई ही स्टॉपलॉस होगा।

ऊपर के चार्ट में BPCL  Ltd ने 593 पर एक हैंगिंग मैन बनाया है। OHLC इस प्रकार है

ओपन =592, हाई= 593.7, लो =587, क्लोज =593 इसके आधार पर जो ट्रेड या सौदा बनता है :

  • रिस्क लेने वाला, अपना शॉर्ट ट्रेड उसी दिन पैटर्न बनने के बाद 593 पर करेगा।
  • रिस्क से बचने वाला ट्रेडर अपना शॉर्ट ट्रेड अगले दिन क्लोजिंग कीमत पर शुरू करेगा जब उसे यह दिख जाए कि कैंडल लाल रंग का है।
  • रिस्क से बचने वाला और इसको लेने वाला दोनों तरह के ट्रेडर अपना ट्रेड करेंगे।
  •  इन सौदों के लिए स्टॉपलॉस दिन के हाई यानी 593.75 पर होगा।

दोनों तरह के ट्रेडर के लिए सौदा फायदे का होगा।

7.4 – पेपर अम्ब्रेला के साथ मेरा अनुभव

वैसे तो हैमर और हैंगिंग, दोनों ही कैंडलस्टिक पैटर्न हैं, लेकिन मैं हैमर पर ज्यादा भरोसा करता हूं, हैंगिंग मैन की तुलना में। अगर बाकी सारी चीजें एक समान हो और दो ट्रेड के मौके मिल रहे हों, एक हैमर पर आधारित और एक हैंगिंग मैन पर आधारित, तो मैं अपना पैसा हैमर वाले ट्रेड पर लगाउंगा। यह सिर्फ मेरे अनुभव के आधार पर किया गया फैसला है। हैंगिंग मैन में मेरा विश्वास सिर्फ इसलिए कम होता है क्योंकि मुझे यह नहीं समझ में आता कि अगर बेयर्स इतने ज्यादा ताकतवर हो चुके हैं तो बाजार में लो बनने के बाद कीमतें ऊपर क्यों गई? मेरे हिसाब से ऐसा होना ये बताता है कि बाजार में अभी भी बुल्स ताकतवर हैं। 

मेरी आपसे गुजारिश होगी कि आप बाजार को खुद देखें और अपना खुद का नजरिया बनाएं। इससे बाजार को लेकर आप अपनी नई नीतियां बना पाएंगे और बाजार को अच्छे से समझ सकेंगे।

7.5 – शूटिंग स्टार (The Shooting Star)

सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न में शूटिंग स्टार आखिरी पैटर्न है जिसको हम समझेंगे। इसके बाद हम मल्टीपल कैंडलस्टिक पैटर्न समझने की कोशिश करेंगे। शूटिंग स्टार में कीमत का एक्शन यानी प्राइस एक्शन काफी ताकतवर या महत्वपूर्ण होता है। इसीलिए शूटिंग स्टार पैटर्न काफी ज्यादा प्रचलित पैटर्न है।

देखने में शूटिंग स्टार उल्टे पेपर अंब्रेला की तरह दिखता है।

 

शूटिंग स्टार एक मामले में पेपर अम्ब्रेला से अलग होता है, वो ये कि इसमें एक लंबा लोअर शैडो नहीं होता है बल्कि शूटिंग स्टार में एक लंबा अपर शैडो होता है। यहां पर भी शैडो की लंबाई रियल बॉडी से कम से कम दोगुनी होती है। यहां भी कैंडल के रंग से कोई अंतर नहीं पड़ता है, लेकिन अगर कैंडल लाल रंग का है तो यह ज्यादा भरोसेमंद जरूर माना जाता है। इसमें अपर विक (Upper Wick) जितना बड़ा होगा इसे उतना ही ज्यादा बेयरिश पैटर्न माना जाएगा। शूटिंग स्टार और पेपर अम्ब्रेला दोनों में रियल बॉडी काफी छोटी होती है। किताब की परिभाषा के अनुसार, शूटिंग स्टार में लोअर शैडो नहीं होना चाहिए लेकिन जैसा ऊपर के चार्ट में दिख रहा है वैसा एक छोटा लोअर शैडो कभी-कभी मान्य होता है। शूटिंग स्टार बेयरिश पैटर्न है इसलिए इसके पहले का ट्रेन्ड बुलिश यानी तेजी का होना चाहिए।

शूटिंग स्टार के पीछे की सोच :

  • स्टॉक तेजी में हैं, इसका मतलब है कि बाजार पूरी तरीके से बुल्स के कब्जे में हैं। जब बुल्स मज़बूत होते हैं तो फिर स्टॉक या बाजार एक नया हाई यानी नई ऊंचाई और हायर लो बनाता रहता है।
  • जिस दिन शूटिंग स्टार पैटर्न बनता है उस दिन बाजार एक नया हाई बनाता है ।
  • दिन के उच्चतम स्तर या हाई पर बाजार में बिकवाली या बेचने का दबाव बढ़ता है जिसकी वजह से स्टॉक की कीमत उस दिन के लो पर जाकर बंद होती है और शूटिंग स्टार बनता है।
  • बाजार में आई बिकवाली बताती है कि बेयर्स ने बाजार में प्रवेश कर लिया है और अब वह कीमत को नीचे ले जाने में कुछ हद तक सफल भी हो गए हैं, एक लंबा अपर शैडो भी यही बताता है। 
  • यह उम्मीद की जाती है कि बेयर्स बाजार में बिकवाली करते रहेंगे और अगले कुछ दिनों तक बिकवाली का ये दौर जारी रहेगा। इसलिए ट्रेडर्स को शॉर्ट करने के मौके ढूंढने चाहिए।

इस चार्ट पर नजर डालिए जिसमें तेजी के चार्ट में ऊपर की तरफ शूटिंग स्टार बना है। 

इस शूटिंग स्टार में OHLC है

ओपन = 1426, हाई = 1453, लो = 1410, क्लोज =1417

इसके आधार पर ये सौदा बनेगा।

  1. रिस्क लेने वाला अपना सौदा 1417 पर शुरू करेगा यानी उसी दिन जिस दिन शूटिंग स्टार बनेगा।
    1. रिस्क लेने वाला ट्रेडर जब अपना ट्रेड शुरू करेगा तो वह यह देखेगा कि शूटिंग स्टार वास्तव में बन गया है। वो उसको जांचेगा भी।
      1. सीएमपी (CMP) या करंट मार्केट प्राइस या बाजार की मौजूदा कीमत करीब करीब लो प्राइस के बराबर है।
      2. अपर शैडो की लंबाई कम से कम रियल बॉडी से दुगनी है।
    2. रिस्क ना लेने वाला ट्रेडर अगले दिन सौदा करेगा जब वह यह देख लेगा कि अगले दिन लाल रंग का कैंडल बना है।
  2. एक बार जब सौदा शुरू होने पर स्टॉपलॉस दिन के हाई पर बनेगा। जैसे इस ट्रेड में 1453 पर होगा।

जैसा कि हम पहले बात कर चुके हैं एक बार सौदा शुरू होने पर हमें तब तक इंतजार करना होता है जब तक स्टॉपलॉस या टारगेट दोनों में से कोई एक चीज ना आ जाए। हां आप अपने स्टॉपलॉस को ट्रेल कर सकते हैं, वैसे हमने ट्रेलिंग के बारे में अभी तक बात नहीं की है और हम आगे चलकर इस पर चर्चा करेंगे।

नीचे के चार्ट में रिस्क लेने वाले और रिस्क से बचने वाले दोनों ने शूटिंग स्टार के आधार पर किए गए सौदे में अच्छा खासा मुनाफा कमाया।

यह एक उदाहरण है जहां पर रिस्क लेने वाला और इससे बचने वाला दोनों ही तरीके के ट्रेडर्स ने शूटिंग स्टार के आधार पर अपना सौदा किया है लेकिन इस मामले में स्टॉपलॉस टूट गया है आपको याद ही होगा कि जब स्टॉपलॉस आ जाए तो ट्रेडर को उस सौदे में से निकल जाना होता है क्योंकि वह सौदा अब काम का नहीं रह जाता। आमतौर पर इस तरीके के सौदे में से निकल जाना है सबसे बेहतर होता है।


इस अध्याय की खास बातें 

  1. एक पेपर अम्ब्रेला में लंबा लोअर शैडो और छोटी रियल बॉडी होती है। लोअर शैडो और रियल बॉडी में एक शैडो टू रियल बॉडी रेश्यो होना चाहिए। पेपर अम्ब्रेला में लोअर शैडो को रियल बॉडी का कम से कम 2 गुना होना चाहिए।
  2. क्योंकि ओपन और क्लोज एक दूसरे के काफी करीब होते हैं इसलिए पेपर अम्ब्रेला में कैंडल के कलर का कोई अंतर नहीं पड़ता।
  3. अगर पेपर अमरेला किसी मंदी के चार्ट में नीचे की तरफ बनता है तो उसको हैमर कहते हैं। 
  4. अगर पेपर अम्ब्रेला किसी तेजी के चार्ट में ऊपर की तरफ बनता है तो उसको हैंगिंग मैन कहते हैं।
  5.  हैमर एक बुलिश पैटर्न है और इसके बनने के बाद आपको खरीदने के मौके तलाशने चाहिए। 
    1. हैमर का लो आपके लिए स्टॉपलॉस होता है।
  6. हैंगिंग मैन बेयरिश या मंदी का पैटर्न है जो कि चार्ट में ऊपर की तरफ होता है और ऐसे में आपको बेचने के मौके तलाशने चाहिए।   
    1. हैंगिंग मैन का हाई आप का स्टॉपलॉस होगा। 
  7. शूटिंग स्टार एक बेयरिश पैटर्न है जो कि चार्ट में ऊपर की तरफ होता है और आपको शूटिंग स्टार के समय शॉर्ट करने के मौके ढूंढने चाहिए।
    1. शूटिंग स्टार का हाई आपके लिए स्टॉपलॉस होगा

The post सिंगल कैंडलस्टिक पैटर्न्स ( भाग 3) appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%b2-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%a1%e0%a4%b2%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%aa%e0%a5%88%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a5%8d/feed/ 66 M2-Ch7-title M2-Ch7-D1a M2-Ch7-Chart1 M2-Ch7-Chart2 M2-Ch7-Chart3 M2-Ch7-Chart4 M2-Ch7-Chart5 M2-Ch7-Chart6 M2-Ch7-Chart7 shooting-star M2-Ch7-Chart8 M2-Ch7-Chart9 M2-Ch7-Chart10 M2-Ch7-Chart11
परिप्रेक्ष्य https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%af/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%af/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:51:10 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5696 1.1 संक्षिप्त विवरण पिछले मॉड्यूल में हमने स्टॉक मार्केट के बारे में ज़रूरी जानकारी प्राप्त कर ली है। अब हमें पता है कि स्टॉक मार्केट में सफल होने के लिए एक अच्छे रिसर्च के आधार पर अपना नजरिया तैयार करना जरूरी है। एक अच्छे नजरिए का मतलब है कि बाजार की दिशा का अंदाजा तो […]

The post परिप्रेक्ष्य appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
1.1 संक्षिप्त विवरण

पिछले मॉड्यूल में हमने स्टॉक मार्केट के बारे में ज़रूरी जानकारी प्राप्त कर ली है। अब हमें पता है कि स्टॉक मार्केट में सफल होने के लिए एक अच्छे रिसर्च के आधार पर अपना नजरिया तैयार करना जरूरी है। एक अच्छे नजरिए का मतलब है कि बाजार की दिशा का अंदाजा तो हो ही साथ में कुछ और जानकारी भी हो जैसे 

  1. शेयर की वो कीमत जिस पर उसे खरीदा और बेचा जाना चाहिए
  2. रिस्क कितना है
  3. कितना फायदा हो सकता है
  4. शेयर का होल्डिंग पीरियड

टेक्निकल एनालिसिस (TA या टी ए) वो तकनीक है जो आपको इन सारे सवालों के जवाब दे सकती है। इसके आधार पर शेयर और इंडेक्स दोनों पर नजरिया तैयार कर सकते हैं, साथ ही एन्ट्री यानी बाजार में प्रवेश करने का सही समय, एक्जिट यानी निकलने का सही समय और रिस्क के हिसाब से अपना सौदा भी फाइनल कर सकते हैं।

रिसर्च की सारी तकनीकों की तरह टेक्निकल एनालिसिस की अपनी विशिष्टताएं हैं जो कई बार काफी मुश्किल लग सकती हैं। लेकिन टेक्नालॉजी इसको कुछ आसान बना देती है।

इस मॉड्यूल में हम इन विशिष्टताओं को समझने की कोशिश करेंगे।

1.2- टेक्निकल एनालिसिस क्या है?

एक उदाहरण से समझते हैं।

कल्पना कीजिए कि आप विदेश में छुट्टी मना रहे हैं, एक ऐसे देश में जहाँ भाषा, मौसम, रहनसहन, खाना सब कुछ आपके लिए नया है। पहले दिन आप दिन भर घूमते हैं और शाम तक आपको जोर की भूख लग जाती है। आप एक अच्छा खाना चाहते हैं। आपको पता चलता है कि पास में ही एक जगह है जहाँ खाने पीने की कई मशहूर दुकानें हैं। आप उसे आजमाने का फैसला करते हैं।

वहाँ जा कर आपको बहुत सारी दुकानें दिखती हैं और वहाँ बिक रही हर चीज अलग और मजेदार दिखती है। अब आप असमंजस में हैं कि क्या खाया जाए? आप लोगों से पूछ भी नहीं सकते क्योंकि भाषा आपको नहीं आती। ऐसे में अब आप क्या करेंगे? क्या खाएंगे?

आपके सामने दो विकल्प हैं

विकल्प 1: आप पहली दुकान पर जाएंगे और देखेंगे कि वह क्या पका रहा है। पकाने के लिए वो किन-किन चीजों का इस्तेमाल कर रहा है, उसके पकाने का तरीका क्या है, और हो सके तो थोड़ा सा चख कर भी देखेंगे। तब आप तय कर पाएंगे कि यह चीज आपके खाने के लिए अच्छी है या नहीं। जब यह काम आप हर विक्रेता के साथ करेंगे, तब आप अपनी पसंद की जगह ढूंढ पाएंगे और मनपसंद चीज खा पाएंगे। इस तरीके का फायदा यह है कि आप पूरी तरीके से संतुष्ट रहेंगे कि आप क्या खा रहे हैं क्योंकि इसको खाने के लिए आपने खुद रिसर्च की है।

लेकिन दिक्कत यह है कि अगर 100 या उससे ज्यादा दुकानें हैं, तो आप हर दुकान को खुद चेक नहीं कर पाएंगे। अगर ज्यादा दुकानें हैं तो आपके लिए और भी मुश्किल हो सकती है। समय की कमी भी आपके लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है क्योंकि आप कुछ ही दुकानों तक जा पाएंगे। ऐसे में यह संभव है कि आप से सबसे अच्छी चीज ही छूट जाए।

विकल्प 2: आप एक जगह खड़े होकर पूरे बाजार पर नजर डालें। यह देखने की कोशिश करें कि किस दुकान पर सबसे ज्यादा भीड़ लगी है और सबसे ज्यादा बिक्री हो रही है। इस तरह से आप अनुमान लगा सकते हैं कि उस दुकान में जरूर से अच्छा खाना मिल रहा होगा तभी वहां इतनी भीड़ है। अपने अनुमान के आधार पर आप उस दुकान पर जाएंगे और वहां खाना खाएंगे। इस तरीके से इस बात की संभावना ज्यादा होगी कि आप को उस बाजार का सबसे अच्छा खाना मिल सके।

इस तरीके का फायदा यह है कि आप अधिक से अधिक अच्छी दुकानों को जल्दी से खोज पाएंगे और सबसे ज्यादा वाली भीड़ वाली दुकान पर दाँव लगाकर अच्छा खाना पाने की उम्मीद कर सकते हैं। मुश्किल यह है कि हो सकता है कि भीड़ की पसंद गलत हो और आपको हर बार अच्छा खाना ना मिले।

इन दोनों विकल्पों को पढ़कर आपको समझ में आ ही गया होगा कि पहला विकल्प फंडामेंटल एनालिसिस के जैसा है, जहां पर आप खुद कुछ कंपनियों के बारे में गहराई से रिसर्च करते हैं। फंडामेंटल एनालिसिस के बारे में विस्तार से अगले मॉड्यूल में चर्चा करेंगे।

विकल्प दो ज्यादा करीब है टेक्निकल एनालिसिस के। यहां पर आप पूरे बाजार में मौके तलाशते हैं यह देखते हुए कि बाजार इस समय किधर जा रहा है और बाजार की पसंद क्या है? टेक्निकल एनालिसिस की तकनीक में बाजार में मौजूद सभी कारोबारियों की पसंद को देखते हुए ट्रेडिंग के मौके ढूंढे जाते हैं। बाजार के ज्यादातर कारोबारियों की पसंद क्या है इस को पहचानने के लिए शेयर या इंडेक्स के चार्ट(chart/graph) को देखा जाता है। कुछ समय बाद उस चार्ट में एक पैटर्न बन जाता है और उस पैटर्न को देखकर आप बाजार का संकेत समझ सकते हैं। टेक्निकल एनालिस्ट (Technical Analyst) का काम है कि वो इस पैटर्न को समझे और अपना नजरिया बनाए।

किसी भी दूसरी रिसर्च तकनीक की तरह टेक्निकल एनालिसिस में भी बहुत सारी चीजों को मानकर चलना पड़ता है। टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर ट्रेड करने वाले लोगों को इन धारणाओं को दिमाग में रख कर ट्रेड करना पड़ता है। हम जैसे जैसे आगे बढ़ेंगे आप इन धारणाओं के बारे में विस्तार से समझ पाएंगे।

फंडामेंटल एनालिसिस और टेक्निकल एनालिसिस में बेहतर कौन है इस पर कई बार बहस होती है। लेकिन वास्तव में बाजार में सबसे अच्छी तकनीक जैसी कोई चीज नहीं होती। हर तकनीक की मजबूतियां और कमजोरियां होती हैं। 

दोनों तकनीक अलग-अलग हैं और उनके बीच में तुलना करने जैसा कुछ है नहीं। एक समझदार ट्रेडर वह है जो दोनों तकनीक को जानता हो और उनके आधार पर अपने लिए अच्छे कमाई के मौके तलाश कर सकता हो।

1.3- ट्रेड के किसी मौके से कितनी उम्मीद रखें

कई लोग यह सोचकर बाजार में आते हैं कि टेक्निकल एनालिसिस के रास्ते बाजार में जल्दी से बहुत सारा पैसा कमा लेंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि ये ना तो आसान है और ना तो जल्दी पैसा बनाने का रास्ता। हाँ, ये सही है कि अगर टेक्निकल एनालिसिस ठीक से किया जाए तो बड़ा मुनाफा मिल सकता है, लेकिन उसके लिए आपको बहुत सारी मेहनत करनी होगी और यह तकनीक सीखनी होगी। अगर आप टेक्निकल एनालिसिस के रास्ते जल्दी-जल्दी बहुत सारा पैसा बनाना चाहते हैं तो हो सकता है कि आप बहुत बड़ा नुकसान हो जाए। जब बाजार में बहुत सारे पैसे डूब जाते हैं तो आमतौर पर लोग इसका सारा जिम्मा टेक्निकल एनालिसिस पर डाल देते हैं जबकि ट्रेडर की गलती पर नज़र नहीं डालते। इसलिए जरूरी है कि टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर ट्रेड करने के पहले अपनी उम्मीदों को काबू में रखें और समझें।

 

  1. सौदे (Trades)- टेक्निकल एनालिसिस (TA) का सबसे अच्छा उपयोग हैशार्ट टर्म सौदे पहचानने के लिए। TA के आधार पर लंबे समय के निवेश के मौके मत तलाशें। लंबे निवेश के मौकों के लिए फंडामेंटल एनालिसिस ठीक होती है। हाँ, अगर आप फंडामेंटल एनालिस्ट हैं या फंडामेंटल एनालिसिस के ज़रिए निवेश करते हैं तो खरीदने का सही समय (एन्ट्री प्वाइंट) और बेचने का सही समय (एक्जिट प्वाइंट) जानने के लिए टेक्निकल एनालिसिस का सहारा ले सकते हैं।
  2. हर सौदे से होने वाली कमाई (Return per trade)चूंकि TA आधारित सौदे कम समय वाले होते हैं इसलिए बहुत बड़े मुनाफे की उम्मीद ना रखें। TA में सफलता के लिए जरूरी है कि आप लगातार जल्दी-जल्दी छोटे -छोटे सौदे करते रहें और उनसे मुनाफा कमाते रहें।
  3. होल्डिंग पीरियड (Holding Period)आमतौर पर टेक्निकल एनालिसिस के आधार पर किए गए सौदे कुछ मिनट से लेकर कुछ हफ्तों के लिए किए जाते हैं, उससे ज्यादा नहीं। 
  4. रिस्क (Risk)एक ट्रेडर किसी मौके को पहचान कर सौदा करता है, लेकिन कभीकभी सौदा गलत भी पड़ सकता है और ट्रेडर नुकसान में जा सकता है। कई बार ट्रेडर इस उम्मीद में सौदे से नहीं निकलता कि नुकसान बाद में मुनाफे में बदल जाएगा। लेकिन याद रखिए कि TA पर आधारित सौदे शॉर्ट टर्म के होते हैं, इसलिए नुकसान कम से कम रखते हुए सौदे से निकल जाना और कमाई का नया मौका तलाशना ही समझदारी है।

इस अध्याय की खास बातें

  1. बाजार के बारे में अपना नजरिया बनाने के लिए टेक्निकल एनालिसिस एक प्रचलित तरीका है। TA के आधार पर आप खरीदने (एन्ट्री) और बेचने (एक्जिट) का समय भी तय कर सकते हैं।
  2. टेक्निकल एनालिसिस में चार्ट के आधार पर बाजार के भागीदारों के मूड को पहचाना जाता है।
  3. चार्ट पर पैटर्न बनते हैं और इन्हीं के आधार पर ट्रेडर सौदों के मौके पहचानता है।
  4. सही तरीके से TA का इस्तेमाल करने के लिए कुछ धारणाओं को दिमाग में रखना जरूरी होता है।
  5. TA का इस्तेमाल शॉर्ट टर्म सौदों के लिए सही होता है।

 

The post परिप्रेक्ष्य appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%aa%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%af/feed/ 132 M2-Ch1-title
चार्ट के प्रकार https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/ https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/#comments Fri, 13 Sep 2019 18:51:06 +0000 https://zerodha.com/varsity/?post_type=chapter&p=5700 3.1 -संक्षिप्त विवरण अब हम जानते हैं कि बाजार के एक्शन को संक्षेप में देखने का सबसे अच्छा तरीका ओपन (O), हाई (H), लो (L), और कलोज (C) है। अब हमें देखना है कि किस तरीके के चार्ट पर यह सारी सूचनाएं सबसे अच्छे तरीके से देखी जा सकती हैं। अगर चार्ट की तकनीक अच्छी […]

The post चार्ट के प्रकार appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>

3.1 -संक्षिप्त विवरण

अब हम जानते हैं कि बाजार के एक्शन को संक्षेप में देखने का सबसे अच्छा तरीका ओपन (O), हाई (H), लो (L), और कलोज (C) है। अब हमें देखना है कि किस तरीके के चार्ट पर यह सारी सूचनाएं सबसे अच्छे तरीके से देखी जा सकती हैं। अगर चार्ट की तकनीक अच्छी नहीं है तो फिर चार्ट देखना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। किसी भी दिन के ट्रेडिंग में चार सबसे जरूरी सूचनाएं होती है OHLC . अगर हम 10 दिन के चार्ट को देखें तो हमें 40 डाटा प्वाइंट मिलते हैं यानी हर दिन के लिए चार-चार डाटा प्वाइंट। अब आप समझ गए होंगे कि अगर हमें 6 महीने के लिए यह उससे भी ज्यादा 1 साल के लिए चार्ट देखना है तो कितने ज्यादा डाटा प्वाइंट देखने होंगे।

अब तक आप अनुमान लगा चुके होंगे कि आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले चार्ट जैसे कॉलम चार्ट, पाई चार्ट, एरिया चार्ट आदि टेक्निकल एनालिसिस में काम नहीं आते। इस में से केवल एक चार्ट टेक्निकल एनालिसिस में काम आता है और वह है लाइन चार्ट। ऐसा इसलिए होता है कि आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले चार्ट सिर्फ एक डाटा प्वाइंट दिखाते हैं जबकि टेक्निकल एनालिसिस में कम से कम 4 डाटा प्वाइंट को देखना जरूरी होता है।

चार्ट के कुछ प्रकार हैं:

  1. लाइन चार्ट
  2. बार चार्ट
  3. जापानी कैंडलस्टिक 

हम कैंडलस्टिक चार्ट पर ज्यादा जानकारी प्राप्त करेंगे, लेकिन पहले समझ लेते हैं कि लाइन चार्ट और बार चार्ट का इस्तेमाल क्यों नहीं करते।

 

3.2- लाइन और बार चार्ट

लाइन चार्ट सबसे सीधा और आसान चार्ट होता है। इसमें केवल एक डाटा प्वाइंट होता है और उसी पर यह चार्ट तैयार किया जाता है। टेक्निकल एनालिसिस में सिर्फ एक चीज के लिए लाइन चार्ट बनाया जाता है क्लोजिंग प्राइस को लेकर। ये चार्ट शेयर का भी हो सकता है और इंडेक्स का भी। हर दिन के क्लोजिंग प्राइस के लिए एक चार्ट पर एक बिंदु बनाया जाता है और उसके बाद उन सारे बिंदुओं को एक लाइन से जोड़ दिया जाता है जिससे लाइन चार्ट बन जाता है।

अगर आप 60 दिन का डाटा देख रहे हैं तो उन सारे दिनों के क्लोजिंग प्राइस को जोड़कर एक लाइन खींची जाती है और लाइन चार्ट बन जाता है।

लाइन चार्ट अलग अलग समय सीमा के लिए बनाया जा सकता है जैसे महीने का लाइन चार्ट, हफ्ते का लाइन चार्ट, घंटे का लाइन चार्ट आदि। अगर आप सप्ताह का लाइन चार्ट बनाना चाहते हैं तो आप तो सप्ताह के क्लोजिंग प्राइस को एक चार्ट पर डालना होगा और उनको लाइन से जोड़ना होगा।

 लाइन चार्ट की सबसे बड़ी खासियत यह है यह बहुत ही सीधा और सरल होता है। कोई भी ट्रेडर इसको देख कर एक ट्रेंड का पता लगा सकता है। लेकिन इसका सीधा और सरल होना ही इसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है। लाइन चार्ट सिर्फ एक ट्रेंड बता सकता है और कुछ नहीं। इसके अलावा लाइन चार्ट की दूसरी कमजोरी यह है कि यह सिर्फ क्लोजिंग कीमत के आधार पर बनाया जाता है और दूसरे डाटा प्वाइंट जैसे ओपन हाई और लो पर ध्यान नहीं देता। इसलिए ट्रेडर लाइन चार्ट का इस्तेमाल ज्यादा नहीं करते।

बार चार्ट में लाइन चार्ट के मुकाबले कुछ ज्यादा डाटा डाला जा सकता है। जैसे OHLC चारों को इसमें दिखा सकते हैं। एक बार चार्ट के तीन हिस्से होते हैं।

  1. सेन्ट्रल लाइन (Central Line)- बार का सबसे ऊँचा हिस्सा सबसे ऊँची कीमत यानी हाई (High) को दिखाता है जबकि बार का नीचे का हिस्सा सबसे निचली कीमत यानी लो (Low) को बताता है।
  2. बाँया मार्क/ टिक (The left mark/Tick)- ये ओपन (O) यानी खुलने के समय वाली कीमत बताता है।
  3. दाहिना मार्क/ टिक (The right mark/Tick)- ये क्लोज (C) यानी बंद कीमत दिखाता है।

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि किसी शेयर का डाटा ये है:

ओपन 65

हाई– 70

लो– 60

क्लोज– 68

इस डाटा का बार चार्ट कुछ ऐसा दिखेगा:

आप देख सकते हैं कि एक अकेले बार पर चार अलगअलग कीमतें दिखाई जा सकती हैं। अब अगर आपको पाँच दिन का चार्ट चाहिए तो आपको पाँच ऐसे बार बनाने पड़ेंगे।

चार्ट के लेफ्ट और राइट मार्क पर ध्यान दीजिए। आपको दिखेगा कि उस दिन मार्केट किस तरीके से ऊपर नीचे हुआ है। लेफ्ट मार्क जो उस दिन की ओपन कीमत को दिखाता है वह नीचे है राइट मार्क से।  इसका मतलब है कि जो क्लोज कीमत है वह ओपन कीमत से ऊपर है यानी यह बाजार के लिए एक अच्छा और तेजी का दिन था। उदाहरण के लिए इस पर ध्यान दीजिए जहां पर O = 46, H =51, L= 45  और C = 49 । इस को दिखाने के लिए बार को नीले रंग में दिखाया गया है।

इसी तरीके से अगर लेफ्ट मार्क, राइट मार्क से ऊपर है तो यह बताता है कि क्लोज नीचे है ओपन से, मतलब बाजार के लिए मंदी का या बुरा दिन। इस उदाहरण पर नजर डालिए: O =74, H = 76, L =70, C =71. ये बताने के लिए कि ये मंदी का दिन था, बार को लाल रंग में दिखाया गया है।

बीच की लाइन यानी सेंट्रल लाइन की लंबाई यह बताती है कि उस दिन बाजार किस दायरे में रहा। दायरे का मतलब है कि बाजार की सबसे ऊंची कीमत और सबसे नीचे की कीमत के बीच का फासला। यह लाइन जितनी बड़ी होगी दायरा उतना बड़ा और यह लाइन जितनी छोटी होगी दायरा उतना छोटा होगा।

हालांकि बार चार्ट चारों डाटा प्वाइंट दिखाता है लेकिन फिर भी यह देखने में बहुत अच्छा नहीं होता। यह बार चार्ट की सबसे बड़ी कमजोरी है। इसको देखकर आसानी से किसी पैटर्न का पता लगाना थोड़ा मुश्किल दिखता है, खासकर तब जब आपको दिन में कई चार्ट देखने हों। इसीलिए ट्रेडर बार चार्ट का इस्तेमाल कम करते हैं। लेकिन अगर आप बाजार में नए हैं तो हमारी सलाह यह होगी कि आप जापानी कैंडलस्टिक का इस्तेमाल करें। बाजार के ज्यादातर ट्रेडर्स कैंडलस्टिक का ही इस्तेमाल करते हैं।

3.3- जापानी कैंडलस्टिक का इतिहास

आगे बढ़ने से पहले जापानी कैंडलस्टिक का इतिहास जान लेना अच्छा होगा। नाम से आपको पता ही चल गया होगा कि कैंडलस्टिक की उत्पत्ति जापान में हुई थी। इसका पहला इस्तेमाल 18वीं सदी में जापान में एक चावल के व्यापारी ने किया था। हालांकि जापान में कीमतों की एनालिसिस करने के लिए इसका इस्तेमाल काफी पहले से हो रहा है, लेकिन पश्चिमी देशों को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था। यह माना जाता है कि 1980 में एक स्टीव निशन (Steve Nison) नाम के एक ट्रेडर ने इसे पाया और फिर दुनिया को इसका उपयोग और इसके काम का तरीका बताया। उसने इस पर एक किताब भी लिखी जैपनीज कैन्डलस्टिक चार्टिंग टेक्निक्स (Japanese Candlestick Charting Techniques)”।अभी भी ये किताब काफी लोकप्रिय है।

कैंडलस्टिक तकनीक से जुड़े बहुत सारे नाम अभी भी जापानी नाम ही हैं।

3.4- कैंडलस्टिक की संरचना

बार चार्ट में ओपन और क्लोज कीमतें टिक या मार्क के तौर पर दिखाई जाती हैं जो कि बाएं या दाएं ओर होती हैं। जबकि कैंडलस्टिक में ओपन और क्लोज कीमतें एक चौकोर आयत यानी रेक्टैंगल (Rectangle) के तौर पर दिखाई जाती हैं। कैंडलेस्टिक चार्ट में बेयरिश कैंडल यानी मंदी की कैंडल और तेजी की कैंडल यानी बुलिश कैंडल दोनों होती हैं। बुलिश कैंडल नीले हरे या सफेद और बेयरिश कैंडल लाल या काले कैंडल के तौर पर दिखाई जाती हैं। वैसे आप इन रंगों को कभी भी बदल सकते हैं और अपने पसंद के रंग डाल सकते हैं। टेक्निकल एनालिसिस का सॉफ्टवेयर आपको रंग बदलने की सुविधा देता है। इस मॉड्यूल में हमने बुलिश यानी तेजी के लिए नीले और बेयरिश यानी मंदी के लिए लाल रंग के कैंडल चुने हैं। 

सबसे पहले बुलिश कैंडल को देखते हैं। बार चार्ट की तरह ही कैंडल शेप में तीन हिस्से होते हैं।

  1. सेन्ट्रल रीयल बॉडी (The Central real body)मुख्य हिस्सा जो कि आयताकार यानी रेक्टैंगुलर (Rectangular) होता है और ओपन और क्लोज कीमत को जोड़ता है।
  2. अपर शैडो (Upper Shadow) यानी ऊपरी शैडोहाई (सबसे ऊँची कीमत) को क्लोज कीमत से जोड़ता है।
  3. लोअर शैडो (Lower Shadow) यानी नीचे का शैडोलो (सबसे निचली कीमत) को ओपन कीमत से जोड़ता है।

इस चित्र को देख कर समझिए कि बुलिश कैंडलस्टिक (Bullish Candlestick) कैसे बनता है।

अब इसको एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए कि कीमतें हैं

ओपन = 62

हाई = 70

लो = 58

क्लोज = 67

इसी तरह बेयरिश कैंडल (Bearish candle) में भी तीन हिस्से होते हैं। 

  1. सेन्ट्रल बाडी (Central body) – आयताकार मुख्य बॉडी जो ओपन और क्लोज कीमत को जोड़ती है। हालांकि ओपनिंग ऊपर की तरफ और क्लोजिंग रेक्टैंगल के नीचे की तरफ होता है।
  2. अपर शैडो (Upper shadow)यानी ऊपर का शैडोहाई प्वाइंट (high point) को ओपन (open) से जोड़ता है।
  3. लोअर शैडो  (Lower shadow) यानी नीचे का शैडोलो प्वाइंट (low point) को क्लोज (close) यानी बंद से जोड़ता है।

बेयरिश कैंडल (Bearish candle) ऐसा दिखता है

अब एक उदाहरण के साथ देखते हैं। मान लीजिए कीमतें इस प्रकार हैं:

ओपन (open) = 456

हाई (high) = 470

लो (low) = 420

क्लोज (close)= 435

अब कैंडलस्टिक को अच्छे से समझने के लिए आपके लिए अभ्यास। इन आंकड़ों (data-डाटा) के आधार पर एक कैंडलस्टिक बनाइए।

दिन ओपन हाई लो क्लोज
1 430 444 425 438
2 445 455 438 450
3 445 455 430 437

अगर आपको यह अभ्यास करने में कोई दिक्कत आती है तो नीचे के कमेंट बॉक्स में आप हमें अपना सवाल लिख कर भेज सकते हैं।

 एक बार आप को कैंडलस्टिक प्लॉट करना आ जाए तो कैंडलस्टिक को पढ़कर उससे पैटर्न समझना आपके लिए आसान हो जाएगा। अगर आपको एक टाइम सीरीज पर कैंडल स्टिक प्लॉट करना हो तो वो ऐसा दिखेगा। नीले रंग का कैडल बुलिश यानी तेजी का है और लाल कैंडल बेयरिश है। 

जरा ध्यान से देखिए, लंबे कैंडल ज्यादा खरीदारी या ज्यादा बिकवाली को दिखाते हैं जबकि छोटे कैंडल कम ट्रेडिंग को दिखाते हैं। छोटे कैंडल के समय कीमत में उतार-चढ़ाव भी कम होता है। कुल मिलाकर कैंडलस्टिक बार चार्ट की तुलना में ज्यादा आसान है समझने और ट्रेंड को पहचानने के लिए। कैंडलस्टिक के जरिए आप ओपन क्लोज हाई और लो प्वाइंट में संबंध को ज्यादा आसानी से समझ सकते हैं।

 

3.5 समय अवधि (Time frames) से जुड़ी कुछ बातें

समय अवधि/समयावधि या टाइम फ्रेम (Time Frame) उसको कहते हैं जिस समय के लिए आप चार्ट को देखना चाहते हैं। कुछ लोकप्रिय टाइम फ्रेम या समयावधि हैं;

  • मासिक या मंथली चार्ट
  • साप्ताहिक या वीकली चार्ट
  • दिन का या डेली चार्ट
  • इंट्रा डे चार्ट – 30 मिनट, 15 मिनट और 5 मिनट

समय अवधि में अपनी जरूरत के मुताबिक फेर बदल किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर एक ट्रेडर 1 मिनट का चार्ट भी देख सकता है अगर उसे जल्दी-जल्दी सौदे करने हों तो।

अलग अलग समय अवधि पर एक नजर:

समय अवधि ओपन हाई लो क्लोज कैंडल की संख्या
मासिक महीने के पहले दिन की ओपन कीमत महीने की सबसे ऊँची कीमत महीने की सबसे नीची कीमत महीने के अंतिम दिन की क्लोज कीमत साल के लिए12कैंडल
साप्ताहिक सोमवार की ओपन कीमत सप्ताह की सबसे ऊँची कीमत सप्ताह की सबसे नीची कीमत शुक्रवार की क्लोज कीमत साल के लिए 52कैंडल
दिन का यानी डेली ईओडी(Daily EOD) दिन की ओपन कीमत दिन की सबसे ऊची कीमत दिन की सबसे नीची कीमत दिन की क्लोज कीमत हर दिन एक,साल के लिए 252कैंडल
इंट्रा डे 30 मिनट पहले मिनट की ओपन कीमत 30मिनट के बीच सबसे ऊँची कीमत 30मिनट के बीच सबसे नीची कीमत 30वें मिनट की क्लोज कीमत हर दिन करीब 12 कैंडल
इंट्राडे 15 मिनट पहले मिनट की ओपन कीमत 15मिनट के बीच सबसे ऊँची कीमत 15मिनट के बीच सबसे नीची कीमत 15वें मिनट की क्लोज कीमत हर दिन 25 कैंडल
इंट्राडे 5 मिनट पहले मिनट की ओपन कीमत 5मिनट के बीच सबसे ऊँची कीमत 5मिनट के बीच सबसे नीची कीमत 5वें मिनट की क्लोज कीमत हर दिन 75 कैंडल

जैसा कि आप ऊपर की सारणी में देख सकते हैं कि जैसेजैसे समय अवधि कम होती है तो कैंडल की संख्या यानी डाटा प्वाइंट बढ़ जाते हैं। आपको कैसी समय अवधि चाहिए ये इस पर निर्भर करता है कि आप किस तरह के ट्रेडर हैं।

आँकड़े या डाटा आपको काम की जानकारी भी दे सकते हैं और बेवजह की जानकारी भी दे सकते हैं। एक ट्रेडर के तौर पर आपको जानकारी या जरूरत से ज्यादा जानकारी के बीच में चुनाव करना होता है। उदाहरण के तौर पर एक लंबी अवधि के इन्वेस्टर को साप्ताहिक या मासिक चार्ट देखना चाहिए क्योंकि यही उसको उसके काम की जानकारी देगा, जबकि एक इंट्राडे ट्रेडर को डेली चार्ट या 15 मिनट के चार्ट को देखना चाहिए। दिन में बहुत सारे सौदे करने वाले ट्रेडर को 1 मिनट का चार्ट ही उसके काम की जानकारी देगा। तो आप समझ गए होंगे कि आपको समय अवधि का चुनाव अपनी जरूरत की जानकारी के हिसाब से करना चाहिए।


इस अध्याय की खास बातें

  1. आम चार्ट टेक्निकल एनालिसिस में काम नहीं आते हैं क्योंकि उनमें 4 डाटा प्वाइंट एक साथ नहीं दिखाए जा सकते हैं।
  2.  लाइन चार्ट के जरिए ट्रेंड को दिखाया जा सकता है लेकिन इसके अलावा उसका और कोई इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
  3.  बार चार्ट देखने में बहुत आसान नहीं होता है और इसीलिए उसमें से कोई पैटर्न निकालना थोड़ा मुश्किल काम होता है। इसीलिए बार चार्ट बहुत लोकप्रिय नहीं है।
  4.  कैंडलस्टिक दो तरह की होती हैबुलिश कैंडल और बेयरिश कैंडल। हालांकि दोनों तरीके के कैंडल की संरचना एक तरह की ही होती है।
  5.  जब क्लोज प्राइस यानी क्लोज कीमत ओपन कीमत से ऊपर होती है तो यह बुलिश कैंडल होता है और जब क्लोज कीमत ओपन कीमत से कम होती है तो यह बेयरिश कैंडल होता है।
  6.  समय अवधि सौदों की सफलता में एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। किसी भी ट्रेडर को इसका इस्तेमाल बहुत सोच समझ कर करना चाहिए।
  7.  जब समय अवधि बढ़ती है तो कैंडल की संख्या बढ़ती जाती है।
  8.  एक ट्रेडर को अपने काम की सूचना या जानकारी निकालना आना चाहिए।

 

The post चार्ट के प्रकार appeared first on Varsity by Zerodha.

]]>
https://zerodha.com/varsity/chapter/%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9f-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/feed/ 94 M2-Ch3-title M2-Ch3-Chart1 M2-ch3-diagrams-1 M2-Ch3-Chart3 M2-ch3-diagrams-2 M2-ch3-diagrams-3 M2-ch3-diagrams-4 M2-ch3-diagrams-5 M2-ch3-diagrams-6 M2-ch3-diagrams-7 M2-Ch3-Chart3